UP Board Class 12 Hindi General Question Paper with Answer Key Code 302 ZK is available for download. The exam was conducted by the Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad (UPMSP) on February 16, 2023 in Afternoon Session 2 PM to 5:15 PM. The medium of paper was Hindi. In terms of difficulty level, UP Board Class 12 Hindi General paper was Easy. The question paper comprised a total of 14 questions.
UP Board Class 12 Hindi General (Code 302 ZK) Question Paper with Answer Key (February 16)
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‘विचार और वितर्क’ के लेखक हैं:
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Step 1: Understanding the author.
‘विचार और वितर्क’ महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचना है। वे हिंदी गद्य साहित्य और निबंध लेखन के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं।
Step 2: Option Analysis.
- (A) महावीर प्रसाद द्विवेदी → सही उत्तर, उन्होंने ‘विचार और वितर्क’ लिखा।
- (B) जी. सुन्दर रेड्डी → इनकी रचना नहीं है।
- (C) हजारी प्रसाद द्विवेदी → ये भी हिंदी साहित्य के बड़े लेखक थे, लेकिन यह रचना उनकी नहीं है।
- (D) राय कृष्ण दास → यह उत्तर भी गलत है।
Step 3: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (A) महावीर प्रसाद द्विवेदी।
Quick Tip: महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी गद्य और आलोचना साहित्य को एक नई दिशा दी।
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की रचना है:
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Step 1: About the poet.
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे। वे खड़ी बोली काव्य के प्रमुख हस्ताक्षर माने जाते हैं।
Step 2: About the work.
‘माटी हो गई सोना’ उनकी अत्यंत प्रसिद्ध रचना है। इसमें भारतीय ग्राम्य जीवन और मेहनतकश किसानों की महिमा का चित्रण किया गया है।
Step 3: Option Analysis.
- (A) कल्पवृक्ष → यह उनकी रचना नहीं है।
- (B) ठेठ हिंदी का ठाट → यह भी उनकी कृति नहीं है।
- (C) माटी हो गई सोना → सही उत्तर, यह हरिऔध की रचना है।
- (D) तट की खोज → यह भी गलत है।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (C) माटी हो गई सोना।
Quick Tip: ‘हरिऔध’ की ‘माटी हो गई सोना’ ग्रामीण जीवन और परिश्रम की महत्ता पर आधारित काव्यकृति है।
‘नीड़ का निर्माण फिर’ रचना की विधा है:
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Step 1: About the work.
‘नीड़ का निर्माण फिर’ हिंदी साहित्य की एक प्रसिद्ध निबंध कृति है। इसमें राष्ट्रप्रेम और त्याग की भावना को दर्शाया गया है।
Step 2: Identification of genre.
यह रचना निबंध की विधा में आती है क्योंकि इसमें तर्कपूर्ण ढंग से विचार व्यक्त किए गए हैं और सामाजिक-राष्ट्रीय चेतना को व्यक्त किया गया है।
Step 3: Option Analysis.
- (A) आत्मकथा → गलत है, यह आत्मकथा नहीं है।
- (B) नाटक → गलत है, नाटक की शैली नहीं है।
- (C) संस्मरण → यह भी गलत है।
- (D) निबंध → सही उत्तर, यह रचना निबंध है।
Step 4: Conclusion.
अतः ‘नीड़ का निर्माण फिर’ निबंध विधा की रचना है।
Quick Tip: ‘नीड़ का निर्माण फिर’ को निबंध साहित्य में राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति के लिए विशेष स्थान प्राप्त है।
हरिशंकर परसाई का निबंध-संग्रह है:
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Step 1: About the author.
हरिशंकर परसाई हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार और निबंधकार थे। उनकी रचनाएँ समाज की विसंगतियों और विडंबनाओं पर करारा व्यंग्य प्रस्तुत करती हैं।
Step 2: About the correct work.
‘विचार-प्रवाह’ हरिशंकर परसाई का निबंध-संग्रह है। इसमें विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय मुद्दों पर उनके विचार व्यंग्यपूर्ण शैली में मिलते हैं।
Step 3: Option Analysis.
- (A) विचार-प्रवाह → सही उत्तर, यह हरिशंकर परसाई का निबंध-संग्रह है।
- (B) पृथ्वीपुत्र → यह उनकी रचना नहीं है।
- (C) तब की बात और थी → यह भी उनकी कृति नहीं है।
- (D) क्षण बोले कन मुस्काए → यह भी गलत है।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (A) विचार-प्रवाह।
Quick Tip: हरिशंकर परसाई को हिंदी का व्यंग्य साहित्य का पुरोधा माना जाता है।
हिंदी की प्रथम पत्रिका ‘उदन्त मार्तण्ड’ के सम्पादक थे:
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Step 1: Understanding the context.
हिंदी की पहली पत्रिका ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन 30 मई 1826 ई० को हुआ था।
Step 2: About the editor.
इस पत्रिका के सम्पादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे। वे हिंदी पत्रकारिता के पितामह माने जाते हैं।
Step 3: Option Analysis.
- (A) बालकृष्ण भट्ट → वे ‘हिंदी प्रदीप’ पत्रिका के सम्पादक थे।
- (B) प्रताप नारायण मिश्र → वे ‘ब्राह्मण’ पत्रिका के सम्पादक थे।
- (C) किशोरी लाल गोस्वामी → वे हिंदी के उपन्यासकार और लेखक थे, परंतु ‘उदन्त मार्तण्ड’ से सम्बंधित नहीं।
- (D) पंडित जुगल किशोर शुक्ल → सही उत्तर।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (D) पंडित जुगल किशोर शुक्ल।
Quick Tip: ‘उदन्त मार्तण्ड’ हिंदी की पहली पत्रिका थी जिसने हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी।
मैथिलीशरण गुप्त की रचना है:
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Step 1: About the poet.
मैथिलीशरण गुप्त को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि मिली थी। उन्होंने राष्ट्रप्रेम, त्याग और समाज सुधार पर आधारित कई काव्यकृतियाँ लिखीं।
Step 2: About the correct work.
‘लहर’ उनकी प्रमुख कृति है जिसमें राष्ट्रवादी भावनाओं की गहरी अभिव्यक्ति है।
Step 3: Option Analysis.
- (A) रसकलश → यह रचना अन्य कवि की है।
- (B) सिद्धराज → यह भी उनकी कृति नहीं है।
- (C) कामायनी → यह जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कृति है।
- (D) लहर → सही उत्तर, यह मैथिलीशरण गुप्त की कृति है।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (D) लहर।
Quick Tip: मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ राष्ट्रप्रेम और जनजागरण के लिए प्रसिद्ध हैं।
‘प्रगतिवाद’ के सशक्त कवि हैं:
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Step 1: About Pragativad.
हिंदी साहित्य का प्रगतिवाद आंदोलन समाजवादी दृष्टिकोण और यथार्थवादी प्रवृत्तियों पर आधारित था।
Step 2: About the poet.
‘नागार्जुन’ प्रगतिवाद के सशक्त कवि माने जाते हैं। उन्होंने किसानों, मजदूरों और समाज के शोषित वर्ग की पीड़ा को अपनी कविताओं में प्रस्तुत किया।
Step 3: Option Analysis.
- (A) रामनरेश त्रिपाठी → वे छायावाद से पहले के कवि थे।
- (B) बालमुकुन्द गुप्त → वे पत्रकार और लेखक थे, प्रगतिवादी कवि नहीं।
- (C) नागार्जुन → सही उत्तर, प्रगतिवाद के सशक्त कवि।
- (D) डॉ. नगेंद्र → वे आलोचक थे, प्रगतिवाद के कवि नहीं।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (C) नागार्जुन।
Quick Tip: प्रगतिवाद की कविताएँ आम जनता के संघर्ष और सामाजिक यथार्थ को अभिव्यक्त करती हैं।
‘मास्को अभी दूर है’ के रचयिता हैं:
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Step 1: About the work.
‘मास्को अभी दूर है’ प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि त्रिलोचन की कृति है। इसमें समाजवादी चेतना और संघर्ष की भावना प्रकट होती है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) त्रिलोचन → सही उत्तर, यह उनकी रचना है।
- (B) रामस्वरूप शर्मा → यह गलत है।
- (C) हरिवंश राय ‘बच्चन’ → वे ‘मधुशाला’ के लिए प्रसिद्ध हैं।
- (D) शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ → वे राष्ट्रकवि थे, यह रचना उनकी नहीं है।
Step 3: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (A) त्रिलोचन।
Quick Tip: त्रिलोचन की कविताएँ समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिवादी चेतना को उजागर करती हैं।
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के सम्पादन में कुल कितने सप्तक प्रकाशित हुए?
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Step 1: About Agyeya’s contribution.
अज्ञेय ने हिंदी साहित्य में ‘सप्तक’ श्रृंखला का संपादन किया। इन सप्तकों ने प्रयोगवाद और नई कविता की परंपरा को स्थापित किया।
Step 2: Number of Saptaks.
अज्ञेय के संपादन में कुल चार सप्तक प्रकाशित हुए –
1. तार सप्तक (1943)
2. दूसरा सप्तक (1950)
3. तीसरा सप्तक (1968)
4. चौथा सप्तक (1979)
Step 3: Option Analysis.
- (A) एक → गलत।
- (B) दो → गलत।
- (C) तीन → गलत।
- (D) चार → सही उत्तर।
Step 4: Conclusion.
अतः अज्ञेय के सम्पादन में चार सप्तक प्रकाशित हुए।
Quick Tip: ‘सप्तक’ श्रृंखला ने हिंदी साहित्य में नई कविता को एक नई दिशा दी।
दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
विज्ञान की प्रगति के कारण नयी चीज़ों का निरन्तर आविष्कार होता रहता है। जब कभी नया आविष्कार होता है, उसे एक नयी संज्ञा दी जाती है। जिस देश में उसकी सृष्टि की जाती है वह देश उस आविष्कार के नामकरण के लिए नया शब्द बनाता है; वही शब्द प्रायः अन्य देशों में बिना परिवर्तन के वैसे ही प्रयुक्त किया जाता है। यदि हर देश उस चीज़ के लिए अपना-अपना अलग नाम देता रहेगा, तो उस चीज़ को समझने में ही दिक्कत होगी; जैसे – रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर।
Question 10:
उपयुक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
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Step 1: गद्यांश की पहचान।
यह गद्यांश आधुनिक विज्ञान और उसके आविष्कारों के प्रभाव को स्पष्ट करता है। इसमें यह बताया गया है कि विज्ञान के कारण नित्य नये-नये आविष्कार होते रहते हैं।
Step 2: सन्दर्भ की व्याख्या।
जब कोई नया आविष्कार होता है तो उस आविष्कार का नामकरण उसी देश में होता है जहाँ उसकी उत्पत्ति होती है। वही नाम प्रायः अन्य देशों में भी बिना परिवर्तन के प्रयुक्त होने लगता है। इससे विश्वभर के लोग उसे आसानी से समझ पाते हैं।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यह गद्यांश विज्ञान की प्रगति और उसके नये-नये आविष्कारों के नामकरण की प्रक्रिया पर आधारित है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझ और प्रयोग में सरलता बनी रहती है।
Quick Tip: "सन्दर्भ" लिखते समय गद्यांश का मुख्य भाव और उसके लिखे जाने का उद्देश्य अवश्य बताना चाहिए।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश की पहचान।
यह अंश पाठ में महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत करता है। इसमें लेखक ने गहन भावनाओं और उद्देश्यपूर्ण संदेश को व्यक्त किया है।
Step 2: भावार्थ।
अंश का भाव यह है कि इसमें जीवन के किसी विशेष मूल्य, आदर्श या अनुभव को प्रमुखता से सामने लाया गया है। लेखक पाठक को प्रेरणा देने और जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाने के लिए मार्गदर्शन करता है।
Step 3: संदर्भ से संबंध।
यह अंश संपूर्ण पाठ की मूल भावना से जुड़ा हुआ है। इसमें लेखक की विचारधारा और शैली स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
Step 4: निष्कर्ष।
अतः रेखांकित अंश का आशय यह है कि यह पूरे पाठ की आत्मा तथा मुख्य संदेश को पाठक तक पहुँचाने का कार्य करता है।
Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय उसका संदर्भ, भावार्थ और पाठ से संबंध अवश्य स्पष्ट करना चाहिए।
कौन-सा देश किसी आविष्कृत चीज़ के नामकरण को नया शब्द देता है?
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Step 1: प्रश्न का आशय।
यह प्रश्न इस बात पर आधारित है कि नई-नई आविष्कृत वस्तुओं या उपकरणों के नाम किस प्रकार दिए जाते हैं।
Step 2: उत्तर।
आविष्कार जिस देश में होता है, उसी देश के लोग उस वस्तु या चीज़ के नामकरण के लिए नया शब्द देते हैं।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः किसी भी आविष्कार की वस्तु का नाम सबसे पहले उसी देश द्वारा निर्धारित किया जाता है, जहाँ उसका आविष्कार हुआ हो।
Quick Tip: आविष्कारक देश प्रायः अपनी भाषा और संस्कृति के आधार पर नए शब्द गढ़ता है।
यदि हर देश आविष्कृत चीज़ों का अपना-अपना अलग नाम देता रहे तो क्या होगा?
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Step 1: प्रश्न का आशय।
यह प्रश्न इस स्थिति की ओर संकेत करता है जब एक ही वस्तु के अलग-अलग देशों में अलग-अलग नाम हो जाएँ।
Step 2: संभावित स्थिति।
यदि हर देश आविष्कृत वस्तुओं का अलग-अलग नामकरण करता रहेगा, तो एक ही वस्तु के अनेक नाम हो जाएँगे। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझने में कठिनाई होगी।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यदि हर देश अलग-अलग नाम देगा तो वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक संचार में असुविधा उत्पन्न होगी और एकरूपता समाप्त हो जाएगी।
Quick Tip: साझा वैज्ञानिक शब्दावली अंतरराष्ट्रीय समझ और सहयोग के लिए आवश्यक है।
अथवा
जो कुछ भी हम इस संसार में देखते हैं, वह ऊर्जा का ही स्वरूप है। जैसा कि महर्षि अरविन्द ने कहा है कि हम भी ऊर्जा के ही अंश हैं। इसलिए जब हमने यह जान लिया है कि आत्मा और पदार्थ; दोनों ही अस्तित्व का हिस्सा हैं, वे एक-दूसरे पूरा तादात्म्य रखे हुए हैं तो हमें यह अहसास भी होगा कि भौतिक पदार्थों की इच्छा रखना किसी भी दृष्टिकोण से शर्मनाक या गैर-आध्यात्मिक बात नहीं है।
Question 14:
उपयुक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
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Step 1: गद्यांश की पहचान।
यह गद्यांश मानव जीवन में ऊर्जा, आत्मा और पदार्थ के संबंध को स्पष्ट करता है। इसमें यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि इस संसार की हर वस्तु ऊर्जा का ही स्वरूप है।
Step 2: सन्दर्भ की व्याख्या।
महर्षि अरविंद के विचारों के आधार पर इसमें कहा गया है कि आत्मा और पदार्थ दोनों ही अस्तित्व के आवश्यक अंग हैं। दोनों में घनिष्ठ संबंध और पूर्ण सामंजस्य है। जब यह ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तब यह स्पष्ट होता है कि भौतिक पदार्थों की इच्छा रखना किसी भी दृष्टिकोण से अनुचित या लज्जाजनक नहीं है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यह गद्यांश आत्मा और पदार्थ के सामंजस्य तथा ऊर्जा के स्वरूप को दर्शाता है, जो जीवन को वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टि से समझने का संदेश देता है।
Quick Tip: "सन्दर्भ" लिखते समय लेखक की दृष्टि, मुख्य विचार और उसका जीवनोपयोगी संदेश अवश्य स्पष्ट करें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश की पहचान।
रेखांकित अंश है – "भौतिक पदार्थों की इच्छा रखना किसी भी दृष्टिकोण से शर्मनाक या गैर-आध्यात्मिक बात नहीं है।"
Step 2: व्याख्या।
इस अंश का आशय यह है कि मनुष्य केवल आत्मा या आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि वह भौतिक जगत से भी जुड़ा हुआ है। जब आत्मा और पदार्थ दोनों ही अस्तित्व का हिस्सा हैं, तो भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना स्वाभाविक है। यह इच्छा न तो शर्मनाक है और न ही आध्यात्मिकता के विरुद्ध।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः इस अंश में यह संदेश दिया गया है कि आध्यात्मिक जीवन और भौतिक आवश्यकताएँ परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय उसका भावार्थ सरल भाषा में स्पष्ट करना चाहिए।
महर्षि अरविन्द ने क्या कहा है?
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न गद्यांश में दिए गए महर्षि अरविन्द के विचारों से संबंधित है।
Step 2: उत्तर।
महर्षि अरविन्द ने कहा है कि "हम भी ऊर्जा के ही अंश हैं।" उनका मानना था कि आत्मा और पदार्थ दोनों ऊर्जा के ही रूप हैं और दोनों में सामंजस्य है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः महर्षि अरविन्द का विचार है कि सम्पूर्ण सृष्टि ऊर्जा का ही स्वरूप है और मानव भी उसी ऊर्जा का अंग है।
Quick Tip: लेखक या दार्शनिक के विचार पूछे जाने पर मूल कथन और उसका संक्षिप्त अर्थ अवश्य लिखें।
हम इस संसार में जो कुछ देखते हैं, वह क्या है?
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न गद्यांश में दी गई मूल अवधारणा से संबंधित है।
Step 2: उत्तर।
गद्यांश के अनुसार हम संसार में जो कुछ भी देखते हैं, वह ऊर्जा का ही स्वरूप है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यह सम्पूर्ण जगत ऊर्जा के विभिन्न रूपों में प्रकट होता है।
Quick Tip: उत्तर देते समय गद्यांश की मूल पंक्ति का भाव स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।
'अस्तित्व' और 'तात्त्विक' शब्दों के अर्थ स्पष्ट कीजिए।
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Step 1: शब्द की पहचान।
यह प्रश्न गद्यांश में प्रयुक्त महत्वपूर्ण शब्दों के अर्थ से संबंधित है।
Step 2: अर्थ।
1. अस्तित्व – अस्तित्व का अर्थ है "होना", "विद्यमान रहना" या "जीवन का होना"।
2. तात्त्विक (तात्त्वम्य/तात्त्विकता) – इसका अर्थ है "गहन सत्य से संबंधित", "तत्वज्ञानात्मक" या "मूल सिद्धांत से जुड़ा हुआ"।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'अस्तित्व' का संबंध जीवन और होने से है, जबकि 'तात्त्विक' का संबंध तत्वज्ञान और मूल सत्य से है।
Quick Tip: शब्दार्थ लिखते समय सरल भाषा में संक्षेप और स्पष्ट व्याख्या करनी चाहिए।
दिये गये पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
शक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्त
विकल बिखरे हैं, जो निष्प्राय;
समन्वय उसका करे समस्त
विजयीनी मानवता हो जाय।
Question 19:
उपयुक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
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Step 1: पद्यांश की पहचान।
यह पद्यांश 'श्रेय मानव' नामक काव्य से लिया गया है, जिसके रचयिता रामधारी सिंह 'दिनकर' हैं। इसमें विज्ञान और शक्ति के माध्यम से मानवता की उन्नति का संदेश निहित है।
Step 2: सन्दर्भ की व्याख्या।
कवि कहना चाहता है कि शक्ति के विद्युत्कणों के कारण मानव समाज व्यस्त और विचलित हो गया है। यदि इस शक्ति का समुचित और संयमित प्रयोग किया जाए तो मानवता विजयी और उन्नत हो सकती है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः इस पद्यांश का सन्दर्भ यह है कि विज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता के कल्याण और उसकी विजय के लिए होना चाहिए।
Quick Tip: "सन्दर्भ" लिखते समय काव्य का नाम, कवि और उसका मुख्य संदेश अवश्य लिखें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश की पहचान।
रेखांकित अंश है – "विजयीनी मानवता हो जाय।"
Step 2: व्याख्या।
कवि का तात्पर्य है कि यदि मनुष्य शक्ति और विज्ञान का उपयोग संयम और विवेक के साथ करेगा, तो मानवता का उत्थान और विजय निश्चित है। मानवता को विजयी बनाने के लिए शक्ति का सही मार्ग पर प्रयोग आवश्यक है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः इस पंक्ति का भाव यह है कि विज्ञान और शक्ति के सदुपयोग से संपूर्ण मानव समाज का कल्याण संभव है।
Quick Tip: व्याख्या करते समय मूल पंक्ति का भावार्थ सरल और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु से कौन-सी बात बताई?
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Step 1: प्रश्न की समझ।
यह प्रश्न काव्यांश में श्रद्धा द्वारा मनु को दिए गए संदेश से संबंधित है।
Step 2: उत्तर।
श्रद्धा ने मनु से यह कहा है कि शक्ति का बिखराव और अव्यवस्था मानवता को दुर्बल बना देती है। यदि सारी शक्तियों का समन्वय हो, तो मानवता विजयी हो सकती है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः श्रद्धा ने मनु को यह संदेश दिया कि समस्त शक्तियों के एकीकरण और संयम से मानवता की विजय संभव है।
Quick Tip: काव्य संबंधी प्रश्नों में "किसने क्या कहा" का उत्तर हमेशा भाव और संदेश दोनों के साथ लिखें।
समस्त सृष्टि की रचना किनसे हुई है?
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न सृष्टि की उत्पत्ति और उसकी मूल शक्ति से संबंधित है।
Step 2: उत्तर।
समस्त सृष्टि की रचना शक्ति से हुई है। वही शक्ति विभिन्न रूपों में प्रकट होकर जगत की सभी वस्तुओं और घटनाओं का आधार बनी है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः सृष्टि की उत्पत्ति का मूल कारण शक्ति है।
Quick Tip: काव्यांश में पूछे गए "किनसे" प्रकार के प्रश्नों का उत्तर सीधे और स्पष्ट होना चाहिए।
श्रद्धा ने मनु को किस प्रकार मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है?
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Step 1: प्रश्न की समझ।
यह प्रश्न श्रद्धा द्वारा मनु को दिए गए संदेश से संबंधित है।
Step 2: उत्तर।
श्रद्धा ने मनु को यह प्रेरणा दी कि बिखरी हुई शक्तियों को संगठित और संयमित करना आवश्यक है। यदि सभी शक्तियों का समन्वय हो, तो मानवता विजयी होकर अपना साम्राज्य स्थापित कर सकती है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः श्रद्धा ने मनु को यह सन्देश दिया कि शक्ति के सदुपयोग और समन्वय से मानवता का साम्राज्य स्थायी रूप से स्थापित किया जा सकता है।
Quick Tip: काव्य संबंधी प्रश्नों में उत्तर संक्षेप, स्पष्ट और प्रेरणादायक रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
अथवा
मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने
मैं कब कहता हूँ जीवन-मर नन्दन- कानन का फूल बने?
काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,
मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रान्तर का ओछा फूल बने?
Question 24:
उपयुक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
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Step 1: पद्यांश की पहचान।
यह पद्यांश 'पराजय ही विजय' नामक काव्य से लिया गया है, जिसके कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' हैं। इसमें कवि ने जीवन की कठिनाइयों और संघर्ष की स्वाभाविकता पर प्रकाश डाला है।
Step 2: सन्दर्भ की व्याख्या।
कवि कहता है कि उसने कभी यह नहीं चाहा कि संसार उसके अनुसार चले या जीवन केवल सुख-सुविधाओं से भरा हो। काँटा कठोर और तीखा होता है, पर उसमें भी उसकी मर्यादा और महत्त्व है। जीवन में दुःख और संघर्ष भी उतने ही आवश्यक हैं जितने सुख और सरलता।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः इस पद्यांश का सन्दर्भ यह है कि जीवन का वास्तविक सौंदर्य कठिनाइयों और संघर्षों को स्वीकार करने में है, क्योंकि इन्हीं से मानव की मर्यादा और शक्ति प्रकट होती है।
Quick Tip: "सन्दर्भ" लिखते समय काव्य का नाम, कवि और उसके मूल संदेश को संक्षेप में लिखें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश की पहचान।
रेखांकित अंश है – "भौतिक पदार्थों की इच्छा रखना किसी भी दृष्टिकोण से शर्मनाक या गैर-आध्यात्मिक बात नहीं है।"
Step 2: व्याख्या।
इस अंश का आशय यह है कि मनुष्य केवल आत्मा या आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि वह भौतिक जगत से भी जुड़ा हुआ है। जब आत्मा और पदार्थ दोनों ही अस्तित्व का हिस्सा हैं, तो भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना स्वाभाविक है। यह इच्छा न तो शर्मनाक है और न ही आध्यात्मिकता के विरुद्ध।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः इस अंश में यह संदेश दिया गया है कि आध्यात्मिक जीवन और भौतिक आवश्यकताएँ परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय उसका भावार्थ सरल भाषा में स्पष्ट करना चाहिए।
महर्षि अरविन्द ने क्या कहा है?
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न गद्यांश में दिए गए महर्षि अरविन्द के विचारों से संबंधित है।
Step 2: उत्तर।
महर्षि अरविन्द ने कहा है कि "हम भी ऊर्जा के ही अंश हैं।" उनका मानना था कि आत्मा और पदार्थ दोनों ऊर्जा के ही रूप हैं और दोनों में सामंजस्य है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः महर्षि अरविन्द का विचार है कि सम्पूर्ण सृष्टि ऊर्जा का ही स्वरूप है और मानव भी उसी ऊर्जा का अंग है।
Quick Tip: लेखक या दार्शनिक के विचार पूछे जाने पर मूल कथन और उसका संक्षिप्त अर्थ अवश्य लिखें।
‘जीवन-मर’ में कौन-सा अलंकार है?
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न पद्यांश की पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार की पहचान से संबंधित है।
Step 2: उत्तर।
‘जीवन-मर’ में परस्पर विपरीत अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग किया गया है। जब दो विरोधी शब्दों को साथ रखा जाता है, तो उसे ‘विरोधाभास अलंकार’ कहा जाता है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः ‘जीवन-मर’ में विरोधाभास अलंकार है।
Quick Tip: अलंकार पहचानते समय ध्यान रखें कि शब्दों के बीच संबंध उपमा, विरोध, अनुप्रास या किसी विशेषता के आधार पर हो सकता है।
कवि किसकी कामना करता है?
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न कवि के जीवन-दर्शन और उसकी मूल भावना को जानने के लिए है।
Step 2: उत्तर।
कवि सुख-सुविधाओं और केवल सरल जीवन की कामना नहीं करता। वह चाहता है कि मनुष्य कठिनाइयों, संघर्षों और विपरीत परिस्थितियों को स्वीकार करे और उनसे जूझकर जीवन को सार्थक बनाए।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः कवि संघर्षमय, कठोर और मर्यादित जीवन की कामना करता है, जिससे व्यक्ति की वास्तविक शक्ति और महानता प्रकट हो सके।
Quick Tip: कवि की कामना से जुड़े प्रश्नों में जीवन-दर्शन और मुख्य संदेश अवश्य लिखना चाहिए।
निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए:
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(i) वासुदेवशरण अग्रवाल:
जन्म एवं परिचय:
वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म सन् 1904 में हुआ। वे हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार और भारतीय कला-इतिहास के विद्वान थे।
साहित्यिक योगदान:
अग्रवाल जी ने भारतीय संस्कृति, कला और साहित्य को गहराई से समझते हुए उसे आलोचनात्मक रूप में प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं में परंपरा और आधुनिकता का संतुलन दिखाई देता है। वे इतिहास और संस्कृति के प्रति गहरी आस्था रखते थे।
रचनात्मक विशेषताएँ:
उनकी भाषा सरल, सुबोध और व्याख्यात्मक रही।
उन्होंने कला और साहित्य को जोड़ने का प्रयास किया।
आलोचना में उन्होंने सांस्कृतिक दृष्टि अपनाई।
प्रमुख कृतियाँ:
"भारतीय कला", "भारत का चित्रकला विवेक", "संस्कृति और साहित्य", "निबंध संग्रह"।
(ii) आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी:
जन्म एवं परिचय:
आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में हुआ और 1979 में उनका निधन हुआ। वे हिंदी साहित्य के महान आलोचक, निबंधकार, उपन्यासकार और संत साहित्य के गहरे अध्येता थे।
साहित्यिक योगदान:
उन्होंने हिंदी आलोचना को नई दिशा प्रदान की और हिंदी उपन्यास लेखन में ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक चेतना का समावेश किया। शांतिनिकेतन में अध्यापन के दौरान उन्होंने साहित्य, संस्कृति और समाज को जोड़ने का कार्य किया।
रचनात्मक विशेषताएँ:
गहन विद्वत्ता और सांस्कृतिक दृष्टि।
साहित्यिक गंभीरता और ऐतिहासिकता।
भाषा की सौंदर्यता और सरलता।
प्रमुख कृतियाँ:
"बाणभट्ट की आत्मकथा", "चारु चंद्रलेख", "अनामदास का पोथी", "अशोक के फूल", "हज़ारी प्रसाद द्विवेदी रचनावली"।
(iii) प्रो. जी. सुंदर रेड्डी:
जन्म एवं परिचय:
प्रो. जी. सुंदर रेड्डी हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक, आलोचक और शोधकर्ता रहे हैं। वे शिक्षण और लेखन दोनों क्षेत्रों में सक्रिय थे।
साहित्यिक योगदान:
उन्होंने हिंदी साहित्य की आलोचना को नई दृष्टि प्रदान की। आधुनिक हिंदी कविता, आलोचना और इतिहास लेखन में उनका विशेष योगदान रहा। उन्होंने साहित्य को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर प्रचारित करने का कार्य किया।
रचनात्मक विशेषताएँ:
आलोचनात्मक दृष्टि में गहराई।
भाषा की सटीकता और स्पष्टता।
साहित्य को सामाजिक संदर्भों से जोड़ना।
प्रमुख कृतियाँ:
"हिंदी साहित्य का इतिहास", "निबंध संग्रह", "आधुनिक हिंदी कविता"। Quick Tip: लेखक का परिचय लिखते समय जन्म, साहित्यिक योगदान, रचनात्मक विशेषताएँ और प्रमुख कृतियाँ – इन सभी का संतुलित उल्लेख करना चाहिए।
निम्नलिखित में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं पर प्रकाश डालिए:
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(i) सुमित्रानन्दन पंत:
जन्म एवं परिचय:
सुमित्रानन्दन पंत (1900–1977) छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। वे प्रकृति के कवि और हिंदी के "सौंदर्य के पुजारी" कहे जाते हैं। उनकी कविता में कोमल भावनाएँ, सौंदर्यबोध और मानवतावादी दृष्टिकोण मिलता है।
साहित्यिक योगदान:
पंत जी ने प्रकृति, प्रेम, मानवीय संवेदनाओं और राष्ट्रीय चेतना को अपनी कविताओं का आधार बनाया। उन्होंने छायावाद को नयी ऊँचाई दी और प्रगतिवाद तथा आधुनिकता की ओर भी कदम बढ़ाए।
प्रमुख कृतियाँ:
"पल्लव", "गुंजन", "ग्राम्या", "युगांत", "लोकायतन", "कला और बूढ़ा चाँद"।
(ii) रामधारी सिंह ‘दिनकर’:
जन्म एवं परिचय:
रामधारी सिंह दिनकर (1908–1974) राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे वीर रस, ओज और राष्ट्रीय चेतना के कवि थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी कविताओं ने युवाओं को जागृत किया।
साहित्यिक योगदान:
दिनकर जी ने वीर रस के साथ-साथ शृंगार, करुण और दार्शनिक काव्य भी लिखा। वे आधुनिक हिंदी कविता के ऊर्जावान कवि थे। उन्हें साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
प्रमुख कृतियाँ:
"रश्मिरथी", "परशुराम की प्रतीक्षा", "हुंकार", "उर्वशी", "कुरुक्षेत्र", "संध्या से भोर तक"।
(iii) मैथिलीशरण गुप्त:
जन्म एवं परिचय:
मैथिलीशरण गुप्त (1886–1964) खड़ी बोली हिंदी के पहले महाकवि कहे जाते हैं। उन्हें राष्ट्रीय कवि की उपाधि भी दी गई। उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, सामाजिक सुधार और भारतीय संस्कृति का गहरा चित्रण है।
साहित्यिक योगदान:
गुप्त जी ने खड़ी बोली को काव्य भाषा का दर्जा दिलाया। उनकी कविताओं में ऐतिहासिकता, देशभक्ति और समाज-सुधार की प्रेरणा झलकती है।
प्रमुख कृतियाँ:
"भारत-भारती", "पंचवटी", "साकेत", "यशोधरा", "जयद्रथ-वध", "गुरुकुल"। Quick Tip: कवि का परिचय लिखते समय जन्म-विवरण, साहित्यिक योगदान और प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त और प्रभावी उल्लेख अवश्य करें।
‘बहादुर’ कहानी की कथावस्तु की विवेचना कीजिए। (अधिकतम शब्द-सीमा: 80 शब्द) [5]
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‘बहादुर’ कहानी में लेखक ने एक साधारण चपरासी बहादुर की ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और सादगी का चित्रण किया है। बहादुर अपनी सीमित परिस्थितियों के बावजूद सदैव सत्य और कर्तव्य के मार्ग पर चलता है। उसकी निष्ठा और दृढ़ संकल्प उसे विशेष बनाते हैं। कहानी यह संदेश देती है कि सच्ची महानता बाहरी वैभव में नहीं, बल्कि ईमानदारी और कर्तव्य-पालन में है। Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय पात्र, मुख्य घटनाएँ और संदेश का संक्षेप में उल्लेख करें।
‘पंचलाइट’ अथवा ‘धुवयात्रा’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। [5]
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‘पंचलाइट’ कहानी का उद्देश्य समाज में फैली अंधविश्वास, सामंती प्रवृत्तियों और अज्ञानता पर प्रहार करना है। लेखक ने दिखाया है कि ज्ञान और विज्ञान को अपनाने से ही समाज प्रगति कर सकता है।
‘धुवयात्रा’ कहानी का उद्देश्य यह संदेश देना है कि मनुष्य को अपने जीवन में सत्य, त्याग और आदर्शों को अपनाना चाहिए। यह कहानी संघर्षों के बीच भी उच्च आदर्शों को न छोड़ने की प्रेरणा देती है। Quick Tip: कहानी के उद्देश्य पर लिखते समय यह स्पष्ट करें कि लेखक समाज या पाठक को क्या संदेश देना चाहता है।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य के आधार पर गाँधीजी का चरित्र-चित्रण कीजिए। अथवा 'मुक्तिरण' खण्डकाव्य के आधार पर 'नमक आन्दोलन' कथावस्तु लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य में कवि ने महात्मा गाँधीजी के जीवन, उनके आदर्शों तथा स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को अत्यन्त मार्मिक रूप में चित्रित किया है। इसमें गाँधीजी की सत्य, अहिंसा और आत्मबल की शक्ति को प्रमुखता से दर्शाया गया है।
Step 2: गाँधीजी का चरित्र-चित्रण।
महात्मा गाँधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने अपने जीवन में आत्मसंयम, त्याग और सरलता को अपनाया। वे गरीबों, किसानों और शोषितों के मसीहा माने जाते थे। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार, असहयोग आन्दोलन और नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलनों के माध्यम से जनता को जागरूक किया। उनका व्यक्तित्व तपस्वी, निडर, ईमानदार और प्रेरणादायक था।
Step 3: नमक आन्दोलन की कथावस्तु।
'मुक्तिरण' में नमक आन्दोलन को विस्तार से चित्रित किया गया है। गाँधीजी ने अंग्रेज़ी सरकार द्वारा लगाए गए नमक कर के विरोध में दांडी यात्रा निकाली। उन्होंने हजारों लोगों के साथ पैदल यात्रा कर समुद्र से नमक बनाकर कानून तोड़ा। इस आन्दोलन ने पूरे देश में जन-जागरण फैलाया और अंग्रेज़ी सत्ता की नींव हिला दी।
Step 4: निष्कर्ष।
अतः 'मुक्तिरण' खण्डकाव्य में गाँधीजी का चित्रण राष्ट्रपिता, त्यागमूर्ति और सत्य-अहिंसा के प्रवर्तक के रूप में हुआ है। नमक आन्दोलन को जनजागरण का प्रतीक बनाकर कवि ने भारत की स्वतंत्रता यात्रा का सजीव चित्र प्रस्तुत किया है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण या कथावस्तु लिखते समय व्यक्ति के आदर्शों, गुणों और ऐतिहासिक योगदान को अवश्य उल्लेखित करें।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य के आधार पर 'नमक आन्दोलन' की कथावस्तु लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य में नमक आन्दोलन का मार्मिक और प्रेरक चित्रण किया गया है। इस आन्दोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा और जनजागरण का स्वरूप दिया।
Step 2: आन्दोलन का कारण।
अंग्रेज़ सरकार ने नमक पर कर लगाकर जनता को शोषित किया। नमक जैसी आवश्यक वस्तु पर कर लगाना जनविरोधी था। गाँधीजी ने इसके विरुद्ध आंदोलन छेड़ने का निश्चय किया।
Step 3: दांडी यात्रा।
गाँधीजी ने हजारों सत्याग्रहियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी तक पदयात्रा की। उन्होंने समुद्र से नमक बनाकर अंग्रेजी कानून का उल्लंघन किया। इससे पूरे देश में आज़ादी की चेतना जागी।
Step 4: आन्दोलन का प्रभाव।
नमक आन्दोलन ने देशभर में स्वतंत्रता की लहर पैदा कर दी। आम जनता, महिलाएँ और किसान बड़ी संख्या में आन्दोलन में जुड़े। अंग्रेज़ी शासन हिल गया और यह आन्दोलन स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक अध्याय बन गया।
Step 5: निष्कर्ष।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य में नमक आन्दोलन को सत्य और अहिंसा की शक्ति का प्रतीक माना गया है। यह आन्दोलन स्वतंत्रता की दिशा में एक महान कदम सिद्ध हुआ।
Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय कारण, घटनाक्रम और प्रभाव को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए।
'रश्मिरथी' खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा 'रश्मिरथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'रश्मिरथी' खण्डकाव्य राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की महान कृति है। इसमें महाभारत के महान योद्धा कर्ण के जीवन का मार्मिक और प्रेरक चित्रण किया गया है। कर्ण का चरित्र दानशीलता, पराक्रम और आत्मसम्मान का प्रतीक है।
Step 2: कर्ण की चारित्रिक विशेषताएँ।
कर्ण का व्यक्तित्व बहुआयामी और महान है।
1. दानशीलता – कर्ण 'दानवीर' कहलाता है क्योंकि वह कभी भी याचक को निराश नहीं करता था।
2. पराक्रम – वह महाभारत का अद्वितीय योद्धा था, जिसने अपने साहस और युद्धकला से सबको प्रभावित किया।
3. आत्मसम्मान – जन्म से अपमानित होने के बावजूद उसने अपने स्वाभिमान को कभी गिरने नहीं दिया।
4. निष्ठा – उसने दुर्योधन के प्रति अटूट निष्ठा निभाई और अंत तक उसके पक्ष में खड़ा रहा।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार कर्ण का चरित्र त्याग, दानशीलता और पराक्रम का आदर्श है। कवि ने उसे मानवता का उज्ज्वल प्रतीक प्रस्तुत किया है।
Quick Tip: कर्ण के चरित्र की मुख्य विशेषताएँ याद रखने के लिए “दान–पराक्रम–सम्मान–निष्ठा” सूत्र का ध्यान रखें।
'रश्मिरथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'रश्मिरथी' खण्डकाव्य कर्ण-कथा पर आधारित है। इसमें कर्ण के जीवन के उतार-चढ़ाव, संघर्ष, त्याग और अंततः महाभारत युद्ध में उसके वीरगति को प्राप्त होने तक की गाथा है।
Step 2: कथावस्तु का संक्षिप्त वर्णन।
कर्ण का जन्म विवाहेतर संबंध से हुआ, जिसके कारण उसे समाज में तिरस्कार सहना पड़ा। गुरु परशुराम से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उसके जन्म का रहस्य उजागर होने पर उसे शाप मिला।
कर्ण ने दुर्योधन से मित्रता की और सदैव उसके पक्ष में खड़ा रहा। वह दानशील, त्यागी और महान योद्धा था। महाभारत युद्ध में उसने अर्जुन के साथ युद्ध करते हुए अद्वितीय पराक्रम दिखाया और अंततः वीरगति को प्राप्त हुआ।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार 'रश्मिरथी' की कथावस्तु कर्ण के जीवन के संघर्ष, दानशीलता, निष्ठा और वीरता पर आधारित है। यह महाकाव्य कर्ण को आदर्श मानव के रूप में प्रस्तुत करता है।
Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय पात्र के जन्म, संघर्ष और अंत का क्रमबद्ध उल्लेख अवश्य करें।
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘राज्यश्री’ का चरित्रांकन कीजिए।
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‘राज्यश्री’ त्याग, धैर्य और दृढ़ निश्चय की प्रतीक नारी है। विपरीत परिस्थितियों में भी उसने संयम और साहस बनाए रखा। वह समाज और परिवार के प्रति निष्ठावान रही तथा सत्य और धर्म से कभी समझौता नहीं किया। उसके आदर्श चरित्र से त्याग और कर्तव्यनिष्ठा का आदर्श मिलता है। Quick Tip: चरित्रांकन लिखते समय पात्र की मुख्य विशेषताओं और प्रेरणादायक पक्ष पर ध्यान दें।
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
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‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में त्याग, संघर्ष और आदर्शों का चित्रण है। इसमें मुख्य पात्र कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और कर्तव्य के मार्ग पर चलते हैं। काव्य यह सन्देश देता है कि सच्ची महानता त्याग और सत्य में निहित है। Quick Tip: कथावस्तु संक्षेप में लिखते समय केवल मूल विषय और संदेश पर ध्यान दें।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। अथवा 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में कवि ने सत्य और असत्य के संघर्ष को आधार बनाकर जीवन का महान संदेश प्रस्तुत किया है। इसमें प्रमुख पात्र को सत्य, साहस और न्याय का प्रतीक बताया गया है।
Step 2: प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण।
प्रमुख पात्र सत्य का अनुयायी है। उसका जीवन ईमानदारी, दृढ़ता और साहस से भरा हुआ है। कठिन परिस्थितियों में भी वह असत्य और अन्याय के सामने झुकता नहीं। उसके व्यक्तित्व में नैतिक बल और आत्मविश्वास स्पष्ट झलकता है। वह न्याय और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की आहुति देने के लिए तत्पर रहता है।
Step 3: 'सत्य की जीत' का कथानक।
इस खण्डकाव्य का कथानक सत्य और असत्य के संघर्ष पर आधारित है। इसमें यह दर्शाया गया है कि असत्य चाहे कितनी ही शक्ति क्यों न जुटा ले, अन्ततः पराजित होता है। सत्य मार्ग कठिन अवश्य है, परन्तु उसका परिणाम हमेशा विजय होता है। कवि ने घटनाओं और संवादों के माध्यम से यह संदेश दिया है कि सत्य ही धर्म, न्याय और मानवता का आधार है।
Step 4: निष्कर्ष।
अतः 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य का प्रमुख पात्र सत्य और धर्म का प्रतीक है। उसका जीवन आदर्श रूप में समाज के लिए मार्गदर्शक है और इस खण्डकाव्य का कथानक हमें सिखाता है कि अन्त में जीत सदैव सत्य की ही होती है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण या कथानक लिखते समय प्रमुख पात्र के गुण, आदर्श और संघर्ष को अवश्य उल्लेखित करें।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य एक प्रेरणादायक रचना है, जिसमें सत्य और असत्य का संघर्ष अत्यन्त मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
Step 2: कथानक का सार।
इस खण्डकाव्य में यह बताया गया है कि असत्य और अन्याय का प्रभाव आरम्भ में चाहे बहुत प्रबल क्यों न लगे, परन्तु सत्य और धर्म की विजय निश्चित है। कवि ने प्रमुख पात्र के साहस और अडिग संकल्प के माध्यम से यह दिखाया है कि विपरीत परिस्थितियों में भी यदि मनुष्य सत्य पर अडिग रहे तो अन्ततः उसकी विजय होती है।
Step 3: शिक्षा।
इस खण्डकाव्य का मुख्य संदेश है कि असत्य और अन्याय का अंत निश्चित है और सत्य ही स्थायी है। समाज को उन्नति और शांति की दिशा में ले जाने वाला एकमात्र मार्ग सत्य है।
Step 4: निष्कर्ष।
अतः 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य का कथानक हमें यह प्रेरणा देता है कि कठिनाइयों के बावजूद हमें सदैव सत्य का साथ देना चाहिए। सत्य ही धर्म, न्याय और मानवता का आधार है।
Quick Tip: कथानक लिखते समय प्रारम्भ, मध्य और अन्त को क्रमवार स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के 'अयोध्या' सर्ग का सारांश लिखिए। अथवा 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के आधार पर 'दशरथ' का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य में कवि ने आदर्श पुत्र श्रवणकुमार की कथा का वर्णन किया है। इसमें 'अयोध्या' सर्ग विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसमें अंधे माता-पिता की सेवा में तत्पर श्रवणकुमार की करुण गाथा तथा राजा दशरथ की त्रासदी का चित्रण हुआ है।
Step 2: 'अयोध्या' सर्ग का सारांश।
अयोध्या सर्ग में श्रवणकुमार अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जा रहा था। वह जल लेने गया और संयोगवश राजा दशरथ के बाण से घायल हो गया। श्रवणकुमार ने अंतिम समय में अपने माता-पिता की सेवा का व्रत पूरा किया। उसके निधन से शोकाकुल अंधे माता-पिता ने दशरथ को श्राप दिया कि उन्हें भी अपने पुत्र-वियोग का दुःख सहना पड़ेगा। इस प्रकार अयोध्या सर्ग में त्याग, सेवा और करुणा की भावना प्रमुख रूप से उभरती है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'अयोध्या' सर्ग का सारांश त्यागमूर्ति श्रवणकुमार और करुणा-प्रधान कथा पर आधारित है, जो भारतीय संस्कृति के आदर्श पुत्र धर्म को उजागर करता है।
Quick Tip: सारांश लिखते समय मुख्य घटनाओं और उनके प्रभाव को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के आधार पर 'दशरथ' का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य में राजा दशरथ का चरित्र करुणा, धर्म और दायित्व-बोध का प्रतीक रूप में सामने आता है। उनका जीवन श्रवणकुमार की दुखद घटना से गहरे रूप में प्रभावित हुआ।
Step 2: दशरथ का चरित्र-चित्रण।
1. धर्मप्रिय राजा – दशरथ न्यायप्रिय और धर्म का पालन करने वाले राजा थे।
2. करुणा-प्रधान – अनजाने में श्रवणकुमार की मृत्यु का कारण बनकर वे गहरे दुःख और अपराध-बोध से ग्रस्त हो गए।
3. संवेदनशील पिता – माता-पिता द्वारा दिए गए श्राप ने उनके जीवन की दिशा बदल दी, और वे अंततः राम-वियोग से मृत्यु को प्राप्त हुए।
4. दायित्व-बोध – एक राजा होने के नाते वे अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थे, किन्तु निजी जीवन में त्रासदी से ग्रस्त रहे।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य में दशरथ का चरित्र एक धर्मनिष्ठ, संवेदनशील और करुणा से भरा हुआ व्यक्तित्व है, जिसकी त्रासदी उसे साहित्य में एक मार्मिक चरित्र के रूप में प्रस्तुत करती है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय उसके गुण, कमजोरियाँ और जीवन की प्रमुख घटनाओं को अवश्य जोड़ें।
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधीजी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
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‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में गाँधीजी को सत्य, अहिंसा और त्याग का पुजारी बताया गया है। उनका जीवन सादगी, नैतिकता और दृढ़ निश्चय से परिपूर्ण था। उन्होंने अन्याय और असत्य के विरुद्ध संघर्ष किया और सत्य के मार्ग पर अडिग रहे। गाँधीजी का चरित्र न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रेरणास्रोत है। Quick Tip: चरित्र-विशेषताओं को लिखते समय उसके गुण, आदर्श और प्रेरणादायक पहलुओं को अवश्य शामिल करें।
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के ‘तृतीय सर्ग’ की कथावस्तु लिखिए।
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‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग में गाँधीजी के जीवन-संघर्ष और उनके सत्याग्रह आंदोलन का वर्णन है। इसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार उन्होंने असत्य और अन्याय के विरुद्ध अहिंसक आंदोलन चलाकर स्वतंत्रता की राह प्रशस्त की। तृतीय सर्ग मानवता, त्याग और संघर्ष का संदेश देता है। Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय केवल प्रमुख घटनाओं और उनके संदेश पर ध्यान केंद्रित करें।
निम्नलिखित संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए:
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(1) सन्दर्भ:
यह गद्यांश संस्कृत भाषा की महानता और उसकी महत्ता को स्पष्ट करता है। इसमें संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी और ज्ञान-विज्ञान की मूल भाषा बताया गया है।
अनुवाद/भावार्थ:
हमारे रामायण, महाभारत जैसे ऐतिहासिक ग्रन्थ, चारों वेद, सभी उपनिषद, अठारह पुराण और अन्य महाकाव्य तथा उपन्यास आदि सभी संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं। इसीलिए विद्वानों ने संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी कहा है। संस्कृत का गौरव, उसका बहुविध ज्ञान और व्यापकता किसी से छिपी नहीं है।
(2) सन्दर्भ:
यह गद्यांश हंस और मयूर से संबंधित कथा का अंश है। इसमें मयूर की अहंकारी प्रवृत्ति और हंसराज का उल्लेख मिलता है।
अनुवाद/भावार्थ:
हंसराज ने अपने चित्रचिह्नित स्वामी को बुलाने का आदेश दिया। उस पक्षियों की सभा में मणि-जटित पंखों वाली मयूरी को देखकर उसने कहा— "यह मेरी स्वामिनी हो।" मयूर ने गर्व से कहा— "अभी मुझमें इतनी शक्ति नहीं कि तुझे स्वीकार कर सकूँ।" यह कहकर उसने लज्जा त्याग दी और पक्षियों के समूह के बीच अपने पंख फैलाकर नृत्य करना आरम्भ कर दिया। Quick Tip: संस्कृत गद्यांश का अनुवाद करते समय पहले सन्दर्भ लिखें और फिर उसका भावार्थ सरल, स्पष्ट और क्रमबद्ध हिन्दी में प्रस्तुत करें।
निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से किसी एक का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए:
(क) आँखों में धूल झोंकना
(ख) जहाँ चाह वहाँ राह
(ग) तिल का ताड़ बनाना
(घ) दूर के ढोल सुहावने
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(क) आँखों में धूल झोंकना
अर्थ: धोखा देना।
वाक्य प्रयोग: व्यापारी ने ग़लत सामान बेचकर ग्राहकों की आँखों में धूल झोंक दी।
(ख) जहाँ चाह वहाँ राह
अर्थ: दृढ़ निश्चय से हर कार्य संभव है।
वाक्य प्रयोग: यदि मन में लगन और परिश्रम है तो सफलता अवश्य मिलती है, जहाँ चाह वहाँ राह।
(ग) तिल का ताड़ बनाना
अर्थ: छोटी बात को बड़ा बना देना।
वाक्य प्रयोग: उसने मामूली-सी गलती को तिल का ताड़ बना दिया।
(घ) दूर के ढोल सुहावने
अर्थ: पराई वस्तु या स्थिति अच्छी लगती है।
वाक्य प्रयोग: विदेश की नौकरी बहुत अच्छी लगती है, पर वहाँ की कठिनाइयाँ जानकर समझ आता है कि दूर के ढोल सुहावने। Quick Tip: मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग वाक्य में करते समय उनके सही अर्थ और सन्दर्भ का ध्यान रखना चाहिए।
‘महेश्वरः’ का संधि-विच्छेद है:
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Step 1: Understanding the word.
‘महेश्वर’ शब्द ‘महा’ (अर्थात महान) और ‘ईश्वर’ (अर्थात भगवान) से बना है।
Step 2: Sandhi explanation.
यहाँ ‘अ + ई’ के मिलने से ‘ए’ हो जाता है। इस प्रकार ‘महा + ईश्वर’ → ‘महेश्वर’।
Step 3: Option Analysis.
- (A) महे + श्वरः → गलत।
- (B) महा + एश्वरः → गलत।
- (C) महा + ईश्वरः → सही उत्तर।
- (D) मही + ईश्वरः → गलत।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (C) महा + ईश्वरः।
Quick Tip: स्वर संधि में ‘अ + ई’ मिलकर ‘ए’ बनाता है।
‘उपयुक्ततमम्’ का संधि-विच्छेद है:
View Solution
Step 1: Understanding the word.
‘उपयुक्ततमम्’ शब्द का निर्माण ‘उप’ + ‘युक्ततमम्’ से हुआ है।
Step 2: Sandhi explanation.
यहाँ ‘उप’ (अर्थात निकट) और ‘युक्ततमम्’ (अर्थात सबसे उपयुक्त) मिलकर ‘उपयुक्ततमम्’ बनते हैं। इसमें किसी प्रकार की स्वर संधि नहीं है, केवल संयुक्त प्रयोग है।
Step 3: Option Analysis.
- (A) उपर + उक्ततम् → गलत।
- (B) उपरि + उक्तम् → गलत।
- (C) उप + युक्ततम् → सही उत्तर।
- (D) उपर + युक्ततम् → गलत।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (C) उप + युक्ततमम्।
Quick Tip: संधि-विच्छेद में शब्दों के मूलरूप को पहचानना आवश्यक होता है।
‘पावकः’ का संधि-विच्छेद है:
View Solution
Step 1: Understanding the word.
‘पावक’ शब्द संस्कृत में अग्नि (आग) का पर्याय है। यह शब्द ‘पा’ (शुद्ध करना) और ‘वक’ (वाहक/धारक) से मिलकर बना है।
Step 2: Sandhi explanation.
यहाँ मूल रूप है – ‘पा + वक’। इसका अर्थ है – जो शुद्ध करता है या शुद्धि का वाहक। इसी से ‘पावक’ (अग्नि) शब्द बना।
Step 3: Option Analysis.
- (A) पा + वकः → सही उत्तर।
- (B) पो + अकः → गलत।
- (C) पौ + अकः → गलत।
- (D) पाव + कः → यह भी गलत है।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (A) पा + वकः।
Quick Tip: ‘पावक’ शब्द अग्नि का पर्याय है, जो ‘पा’ (शुद्ध करना) से व्युत्पन्न हुआ है।
‘आत्मना’ शब्द में विभक्ति और वचन है:
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Step 1: Understanding the word.
‘आत्मना’ शब्द संस्कृत के ‘आत्मन्’ धातु से बना है। यह तृतीया विभक्ति का रूप है, जिसका प्रयोग ‘से’, ‘द्वारा’ या ‘के साथ’ के अर्थ में होता है।
Step 2: Identifying the vibhakti and vacana.
‘आत्मना’ में ‘ना’ प्रत्यय जुड़ने से यह तृतीया विभक्ति एकवचन का रूप बनता है। इसका अर्थ है – ‘आत्मा से’।
Step 3: Option Analysis.
- (A) तृतीया विभक्ति, एकवचन → सही उत्तर।
- (B) चतुर्थी विभक्ति, द्विवचन → गलत।
- (C) षष्ठी विभक्ति, बहुवचन → गलत।
- (D) सप्तमी विभक्ति, एकवचन → गलत।
Step 4: Conclusion.
अतः ‘आत्मना’ शब्द तृतीया विभक्ति, एकवचन में है।
Quick Tip: संस्कृत शब्दों के अंत में प्रयुक्त प्रत्यय से विभक्ति और वचन का निर्धारण आसानी से किया जा सकता है।
‘नाम्ने’ शब्द में विभक्ति और वचन है:
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Step 1: Understanding the word.
‘नाम्ने’ शब्द संस्कृत के ‘नाम’ धातु से बना है। यह रूप चतुर्थी विभक्ति का है, जिसका प्रयोग ‘के लिए’ या ‘के नाम से’ के अर्थ में होता है।
Step 2: Identifying vibhakti and vacana.
‘नाम्ने’ में ‘ने’ प्रत्यय जुड़ने से यह चतुर्थी विभक्ति, एकवचन का रूप बनता है। इसका अर्थ है – ‘नाम के लिए’।
Step 3: Option Analysis.
- (A) सप्तमी विभक्ति, द्विवचन → गलत।
- (B) षष्ठी विभक्ति, बहुवचन → गलत।
- (C) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन → सही उत्तर।
- (D) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन → गलत।
Step 4: Conclusion.
अतः ‘नाम्ने’ शब्द चतुर्थी विभक्ति, एकवचन में है।
Quick Tip: संस्कृत में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग सामान्यतः ‘के लिए’ या ‘को’ के अर्थ में होता है।
‘सूत–सूत्र’ शब्द-युग्म का सही अर्थ है:
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Step 1: Understanding the pair.
‘सूत’ का अर्थ है सारथी और ‘सूत्र’ का अर्थ है पुत्र।
Step 2: Correct matching.
इस प्रकार ‘सूत–सूत्र’ शब्द-युग्म का सही अर्थ है – ‘पुत्र और सारथी’।
Step 3: Option Analysis.
- (A) पुत्र और पुत्री → गलत।
- (B) सूत्र और धागा → गलत।
- (C) बालक और केश → गलत।
- (D) पुत्र और सारथी → सही उत्तर।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (D) पुत्र और सारथी।
Quick Tip: शब्द-युग्मों का सही अर्थ जानने के लिए संस्कृत व्युत्पत्ति और सामान्य प्रयोग को ध्यान में रखना चाहिए।
‘जलद–जलधि’ शब्द-युग्म का सही अर्थ है:
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Step 1: Understanding the pair.
‘जलद’ का अर्थ है – बादल (जो जल देता है) और ‘जलधि’ का अर्थ है – समुद्र (जहाँ जल संचित होता है)।
Step 2: Correct matching.
इस प्रकार ‘जलद–जलधि’ का सही अर्थ है – ‘बादल और समुद्र’।
Step 3: Option Analysis.
- (A) बादल और पानी → गलत।
- (B) समुद्र और जल → गलत।
- (C) बादल और समुद्र → सही उत्तर।
- (D) वर्षा और सरिता → गलत।
Step 4: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (C) बादल और समुद्र।
Quick Tip: ‘जलद’ (बादल) = जल देने वाला, और ‘जलधि’ (समुद्र) = जल धारण करने वाला।
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो अर्थ लिखिए:
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Step 1: Understanding the word.
‘हार’ शब्द संस्कृत से लिया गया है। इसका प्रयोग हिंदी में कई अर्थों में होता है।
Step 2: Meanings.
1. हार का अर्थ है गले का आभूषण (माला)।
2. हार का अर्थ है पराजय (हार जाना)।
Step 3: Conclusion.
अतः ‘हार’ शब्द के दो अर्थ हैं – (1) गले का आभूषण और (2) पराजय।
Quick Tip: एक ही शब्द के अलग-अलग प्रसंगों में भिन्न अर्थ निकल सकते हैं। इन्हें ‘अनेकार्थक शब्द’ कहा जाता है।
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो अर्थ लिखिए:
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(i) भुजंग:
(1) साँप
(2) हाथी
(ii) हार:
(1) गले का आभूषण
(2) पराजय
(iii) पर:
(1) दूसरा / अन्य
(2) शत्रु
(iv) अर्क:
(1) सूर्य
(2) औषधीय पौधा (अकौवा)
Quick Tip: बहुअर्थी शब्दों का सही प्रयोग प्रसंग के अनुसार किया जाता है, जिससे वाक्य का भाव स्पष्ट हो सके।
निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द का चयन करके लिखिए:
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Step 1: Understanding the phrase.
"किए गए उपकार को न मानने वाला" व्यक्ति वह है जो किसी के उपकार का मूल्य या आभार नहीं समझता।
Step 2: Option Analysis.
- (अ) अकर्ता → जिसका कोई कार्य न हो, उपयुक्त नहीं।
- (ब) कृतज्ञ → उपकार मानने वाला, उल्टा अर्थ है।
- (स) कृतघ्न → उपकार मानने वाला नहीं, सही उत्तर।
- (द) अकृतघ्न → यह शब्द गलत प्रयोग है, सही रूप "कृतघ्न" है।
Step 3: Conclusion.
अतः सही उत्तर है (स) कृतघ्न।
Quick Tip: "कृतज्ञ" का अर्थ है उपकार मानने वाला और "कृतघ्न" का अर्थ है उपकार न मानने वाला।
'बहुत कम बोल' के लिए एक शब्द है:
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Step 1: Understanding the phrase.
"बहुत कम बोल" वाले व्यक्ति को उस गुण के अनुसार एक विशेषण शब्द दिया जाता है।
Step 2: Option Analysis.
- (अ) अल्पभाषी → जो कम बोलता हो, यही सही उत्तर है।
- (ब) मित्रभाषी → जो मित्रवत भाषण करता हो।
- (स) वाचाल → बहुत अधिक बोलने वाला, विपरीत अर्थ।
- (द) मिताग्रही → यह शब्द अप्रासंगिक है।
Step 3: Conclusion.
सही उत्तर है (अ) अल्पभाषी।
Quick Tip: "अल्प" का अर्थ है कम और "भाषी" का अर्थ है बोलने वाला। इसी से "अल्पभाषी" = कम बोलने वाला।
निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए:
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(i) अशुद्ध वाक्य: तुम तो कुर्सी पर बैठे हो !
शुद्ध वाक्य: तुम तो कुर्सी पर बैठे हो।
(ii) अशुद्ध वाक्य: इस सरोवर में अनेकौं कमल खिले हैं।
शुद्ध वाक्य: इस सरोवर में अनेक कमल खिले हैं।
(iii) अशुद्ध वाक्य: कृपया अनुमोदन करने की कृपा करें।
शुद्ध वाक्य: कृपया अनुमोदन करें।
(iv) अशुद्ध वाक्य: आप प्रातःकाल के समय आइएगा।
शुद्ध वाक्य: आप प्रातःकाल आइएगा। Quick Tip: शुद्ध वाक्य लिखते समय अनावश्यक शब्द, अशुद्ध वर्तनी और व्याकरण संबंधी त्रुटियों को हटाना चाहिए।
‘करुण रस’ अथवा ‘शांत रस’ का लक्षण सहित एक उदाहरण लिखिए। [1+1=2]
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करुण रस का लक्षण: जब हृदय में दुख, करुणा और विषाद की भावना उत्पन्न होती है, तब करुण रस होता है।
उदाहरण:
"रो रही सिता वनवास में, राम बिना उदास।"
शांत रस का लक्षण: जब मन सभी प्रकार की वासनाओं और इच्छाओं से मुक्त होकर शांति का अनुभव करता है, तब शांत रस होता है।
उदाहरण:
"गंगा की धारा में संत शांति पाकर लीन हुआ।" Quick Tip: रस के लक्षण पहचानते समय उसकी मूल भावना और प्रभाव को ध्यान में रखें।
‘अनुप्रास’ अलंकार अथवा ‘रूपक’ अलंकार का लक्षण सहित एक उदाहरण लिखिए। [1+1=2]
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अनुप्रास अलंकार का लक्षण: जब किसी पंक्ति में समान वर्ण या अक्षर की पुनरावृत्ति होती है, तब अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:
"चंचल चपल चितवन चुरा लेती है।"
रूपक अलंकार का लक्षण: जब उपमेय और उपमान में भेद मिटाकर दोनों को एक ही माना जाए, तब रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण:
"नयन रूप के नीर हैं।" Quick Tip: अलंकार लिखते समय लक्षण और उदाहरण को अलग-अलग स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।
‘चौपाई’ छन्द अथवा ‘सोरठा’ छन्द का लक्षण सहित एक उदाहरण लिखिए। [1+1=2]
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चौपाई छन्द का लक्षण: चौपाई में प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं और कुल चार चरण होते हैं।
उदाहरण:
"गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में चौपाई का व्यापक प्रयोग किया।"
सोरठा छन्द का लक्षण: सोरठा में भी 24 मात्राएँ होती हैं, परंतु इसका क्रम चौपाई से उल्टा होता है।
उदाहरण:
"राम सिया रघुनाथ की, जय बोलो हनुमान।" Quick Tip: छन्द लिखते समय उसकी मात्राओं और चरणों की संख्या का ध्यान रखें।
किसी दैनिक-पत्र के सम्पादक के नाम एक पत्र लिखिए जिसमें शहर में फैली संक्रामक बीमारी के प्रति नगर स्वास्थ्य अधिकारी का ध्यान आकर्षित किया गया हो। अथवा किसी बैंक के प्रबन्धक को कोई व्यवसाय करने हेतु ऋण प्राप्ति के लिए एक आवेदन-पत्र लिखिए।
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Step 1: पत्र का प्रारूप।
प्रेषक का पता, तिथि, प्राप्तकर्ता का नाम और पद, विषय, पत्र का मुख्य भाग और अंत में हस्ताक्षर लिखना आवश्यक होता है।
Step 2: सम्पादक को पत्र।
प्रेषक का पता:
रामनगर, वाराणसी
दिनांक: 5 अक्तूबर 2025
प्रति,
सम्पादक महोदय,
दैनिक जागरण, वाराणसी
विषय: शहर में फैली संक्रामक बीमारी के प्रति स्वास्थ्य विभाग का ध्यान आकर्षित करने हेतु।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारे नगर के विभिन्न क्षेत्रों में संक्रामक बीमारी तीव्र गति से फैल रही है। गंदगी और दूषित जल के कारण डायरिया, डेंगू और वायरल बुखार जैसी बीमारियाँ बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित कर रही हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव और नगर निगम की लापरवाही के कारण स्थिति दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है।
अतः निवेदन है कि आपके माध्यम से नगर स्वास्थ्य अधिकारी का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाए ताकि सफाई व्यवस्था सुधारी जाए, दवाइयों का छिड़काव कराया जाए और चिकित्सा शिविर लगाए जाएँ।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
(हस्ताक्षर)
रामकुमार
Quick Tip: सम्पादक को पत्र लिखते समय विषय स्पष्ट, संक्षिप्त और समाजोपयोगी होना चाहिए।
किसी बैंक के प्रबन्धक को कोई व्यवसाय करने हेतु ऋण प्राप्ति के लिए एक आवेदन-पत्र लिखिए।
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प्रेषक का पता:
रामनगर, वाराणसी
दिनांक: 5 अक्तूबर 2025
प्रति,
प्रबन्धक महोदय,
भारतीय स्टेट बैंक, वाराणसी
विषय: व्यवसाय आरम्भ करने हेतु ऋण प्रदान करने के सम्बन्ध में।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं एक छोटे स्तर का व्यवसाय (किराना दुकान/रेडीमेड वस्त्र) आरम्भ करना चाहता हूँ। इसके लिए पूंजी की आवश्यकता है। मेरी आर्थिक स्थिति कमजोर है, अतः बैंक से ऋण की आवश्यकता है।
मैंने आवश्यक दस्तावेज (आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, व्यवसाय योजना) संलग्न कर दिए हैं। कृपया मेरी परिस्थिति को देखते हुए व्यवसाय हेतु ऋण स्वीकृत करने की कृपा करें।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
(हस्ताक्षर)
रामकुमार
Quick Tip: आवेदन-पत्र लिखते समय औपचारिक भाषा, स्पष्ट विषय और आवश्यक विवरण अवश्य शामिल करें।
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा-शैली में निबंध लिखिए:
(क) कृषक-जीवन की त्रासदी
(ख) अनियंत्रित भ्रष्टाचार – कारण और निवारण
(ग) महिला आरक्षण की सार्थकता
(घ) बढ़ती जनसंख्या तथा रोज़गारी की समस्या
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(क) कृषक-जीवन की त्रासदी
प्रस्तावना:
भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। यहाँ की अधिकांश जनसंख्या आज भी खेती पर निर्भर है। किसान अन्नदाता है, परंतु सबसे अधिक दुःख उसी को झेलना पड़ता है। उसकी मेहनत का उचित फल नहीं मिल पाता, यही उसकी त्रासदी है।
मुख्य समस्या:
किसान का जीवन अभाव, कर्ज और संकटों से घिरा है। प्राकृतिक आपदाएँ, सूखा, बाढ़ और ऋणग्रस्तता उसकी कठिनाइयों को बढ़ाती हैं। मेहनत करने पर भी जब उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता तो वह टूट जाता है। आत्महत्या की घटनाएँ इस त्रासदी का प्रमाण हैं।
कारण:
प्राकृतिक आपदाएँ और सिंचाई की कमी।
महँगी खाद, बीज और उपकरण।
बिचौलियों द्वारा शोषण।
कृषि क्षेत्र की उपेक्षा और ऋण का बोझ।
समाधान:
किसान को आधुनिक साधन, सस्ती खाद और बीज, सस्ती बिजली, उचित मूल्य की गारंटी और ऋणमुक्ति की सुविधा मिलनी चाहिए। साथ ही फसल बीमा और वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देना आवश्यक है।
उपसंहार:
किसान सुखी होगा तभी देश समृद्ध होगा। राष्ट्र का अन्नदाता सम्मान और सुरक्षा का हकदार है। कृषक-जीवन की त्रासदी समाप्त करना राष्ट्र की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
(ख) अनियंत्रित भ्रष्टाचार – कारण और निवारण
प्रस्तावना:
भ्रष्टाचार आज समाज और राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्या है। यह प्रशासन को खोखला और समाज को बीमार बना देता है। यह देश की प्रगति की सबसे बड़ी बाधा है।
कारण:
लालच और अनैतिक प्रवृत्तियाँ।
राजनीतिक स्वार्थ और पद का दुरुपयोग।
प्रशासन की शिथिलता और कठोर दण्ड का अभाव।
जनता की उदासीनता और अनभिज्ञता।
प्रभाव:
भ्रष्टाचार से सामाजिक असमानता बढ़ती है। गरीब और गरीब होता जाता है और अमीर और अमीर। राष्ट्र की नीतियाँ असफल हो जाती हैं और जनता का विश्वास टूट जाता है।
निवारण:
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कठोर कानून बनाने होंगे। पारदर्शी व्यवस्था, ई-गवर्नेंस, जनता की भागीदारी और नैतिक शिक्षा आवश्यक है। ईमानदार नेतृत्व ही वास्तविक बदलाव ला सकता है।
उपसंहार:
भ्रष्टाचार का अंत होगा तभी राष्ट्र की प्रगति और समाज की समृद्धि संभव है। सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और पारदर्शिता ही इसका वास्तविक समाधान है।
(ग) महिला आरक्षण की सार्थकता
प्रस्तावना:
समाज में स्त्रियों का स्थान अति महत्वपूर्ण है। वर्षों तक महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं मिले। आज महिला सशक्तिकरण की दिशा में आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है।
महत्व:
महिला आरक्षण से महिलाओं को शिक्षा, राजनीति और प्रशासन में अवसर मिलते हैं। वे निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग ले सकती हैं और समाज में बराबरी का दर्जा प्राप्त कर सकती हैं।
सार्थकता:
महिला नेतृत्व से समाज में संतुलन और न्याय की भावना।
ग्रामीण और पिछड़ी महिलाओं को अवसर।
राजनीति और शिक्षा में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी।
सामाजिक सुधार और विकास में योगदान।
उपसंहार:
महिला आरक्षण केवल अधिकार की बात नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक सार्थक पहल है। इससे देश का विकास और लोकतंत्र दोनों मजबूत होंगे।
(घ) बढ़ती जनसंख्या तथा रोज़गारी की समस्या
प्रस्तावना:
भारत विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में से एक है। जनसंख्या की यह तीव्र वृद्धि एक गंभीर समस्या बन चुकी है। इससे रोज़गारी की समस्या और भी गहरी हो रही है।
समस्या:
जनसंख्या बढ़ने से संसाधनों पर बोझ बढ़ रहा है। बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा और अपराध भी बढ़ रहे हैं। बड़ी आबादी के कारण रोजगार के अवसर कम पड़ जाते हैं।
कारण:
परिवार नियोजन की उपेक्षा।
अशिक्षा और गरीबी।
ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक कुरीतियाँ।
औद्योगीकरण और रोजगार की कमी।
निवारण:
परिवार नियोजन को सफल बनाना, शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना, व्यावसायिक शिक्षा और स्वरोजगार को बढ़ावा देना आवश्यक है। साथ ही सरकार को नए उद्योग और रोजगार सृजन की दिशा में कार्य करना होगा।
उपसंहार:
जनसंख्या और बेरोजगारी का संतुलित समाधान ही भारत को प्रगति के पथ पर आगे ले जा सकता है। नियंत्रित जनसंख्या और पर्याप्त रोजगार ही उज्ज्वल भविष्य की कुंजी है। Quick Tip: निबंध लिखते समय हमेशा प्रस्तावना → समस्या/कारण → प्रभाव → समाधान → उपसंहार की क्रमबद्ध शैली अपनाएँ।



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