UP Board Class 12 Hindi Question Paper with Answer Key (February 16, Code 301 ZE)

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Shivam Yadav

Educational Content Expert | Updated on - Oct 3, 2025

UP Board Class 12 Hindi Question Paper with Answer Key Code 301 ZE is available for download. The exam was conducted by the Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad (UPMSP) on February 16, 2023 in Afternoon Session 2 PM to 5:15 PM. The medium of paper was Hindi. In terms of difficulty level, UP Board Class 12 Hindi paper was Easy. The question paper comprised a total of 14 questions.

UP Board Class 12 Hindi (Code 301 ZE) Question Paper with Answer Key (February 16)

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Question 1:

डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी निबंधकार हैं :

  • (A) शुक्ल-युग के
  • (B) भारतेंदु-युग के
  • (C) शुक्लोत्तर-युग के
  • (D) द्विवेदी युग के
Correct Answer: (C) शुक्लोत्तर-युग के
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Step 1: Understanding the literary era of हजारीप्रसाद द्विवेदी.

डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के प्रमुख निबंधकार और आलोचक थे। उनका लेखन शुक्लोत्तर-युग से संबंधित माना जाता है। यह काल आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद का समय है।


Step 2: Features of शुक्लोत्तर-युग.

शुक्लोत्तर-युग में हिंदी साहित्य में आलोचना, निबंध और विचारप्रधान लेखन को विशेष स्थान मिला। डॉ. द्विवेदी के निबंध ऐतिहासिकता, संस्कृति और दर्शन से परिपूर्ण होते हैं।


Step 3: Option Analysis.

- (A) शुक्ल-युग के → यह आचार्य रामचंद्र शुक्ल का युग था।

- (B) भारतेंदु-युग के → यह आधुनिक हिंदी साहित्य का आरंभिक युग था।

- (C) शुक्लोत्तर-युग के → सही उत्तर, डॉ. द्विवेदी इसी युग के प्रतिनिधि निबंधकार हैं।

- (D) द्विवेदी युग के → यह आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का समय था, न कि हजारीप्रसाद द्विवेदी का।


इसलिए सही उत्तर है (C) शुक्लोत्तर-युग के।
Quick Tip: डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंधों में संस्कृति, इतिहास और दर्शन की गहरी छाप मिलती है।


Question 2:

'कला और संस्कृति' इनमें से किस विधा की रचना है ?

  • (A) आलोचना
  • (B) निबंध
  • (C) नाटक
  • (D) कहानी
Correct Answer: (B) निबंध
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Step 1: Understanding the work 'कला और संस्कृति'.

'कला और संस्कृति' डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी की एक प्रसिद्ध रचना है। इसमें कला, साहित्य और संस्कृति से जुड़े गहन विचार प्रस्तुत किए गए हैं।


Step 2: Identifying its literary form.

इस रचना में तर्कपूर्ण विचार, विवेचन और सांस्कृतिक दृष्टिकोण दिए गए हैं, जो इसे निबंध विधा में स्थापित करते हैं। यह न तो आलोचना है, न ही नाटक या कहानी।


Step 3: Option Analysis.

- (A) आलोचना → आलोचना में विशेष साहित्यिक कृतियों का विश्लेषण होता है, लेकिन 'कला और संस्कृति' व्यापक निबंध है।

- (B) निबंध → सही उत्तर, क्योंकि यह रचना निबंध विधा की है।

- (C) नाटक → इसमें नाटकीय घटनाओं का चित्रण नहीं है।

- (D) कहानी → यह रचना कहानी के रूप में नहीं लिखी गई है।


इसलिए सही उत्तर है (B) निबंध।
Quick Tip: 'कला और संस्कृति' डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी का एक प्रसिद्ध निबंध है, जिसमें भारतीय संस्कृति और कला का गहन विश्लेषण मिलता है।


Question 3:

'राष्ट्र जीवन की दिशा' कृति के रचनाकार हैं :

  • (A) पं. दीनदयाल उपाध्याय
  • (B) वासुदेवशरण अग्रवाल
  • (C) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
  • (D) प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी
Correct Answer: (A) पं. दीनदयाल उपाध्याय
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Step 1: Understanding the work 'राष्ट्र जीवन की दिशा'.

'राष्ट्र जीवन की दिशा' एक विचारप्रधान कृति है, जिसमें भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति से जुड़े मूल्यों और आदर्शों की चर्चा की गई है। यह रचना राष्ट्रवादी चिंतन को प्रस्तुत करती है।


Step 2: Identifying the author.

इस कृति के रचनाकार पं. दीनदयाल उपाध्याय हैं, जो भारतीय राजनीति और दर्शन के प्रमुख चिंतक थे। उनका 'एकात्म मानववाद' का सिद्धांत भी प्रसिद्ध है।


Step 3: Option Analysis.

- (A) पं. दीनदयाल उपाध्याय → सही उत्तर, 'राष्ट्र जीवन की दिशा' के रचनाकार।

- (B) वासुदेवशरण अग्रवाल → ये हिंदी के साहित्यकार और पुरातत्ववेत्ता थे, परंतु इस कृति के लेखक नहीं।

- (C) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' → प्रसिद्ध निबंधकार, लेकिन इस पुस्तक के रचनाकार नहीं।

- (D) प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी → साहित्यकार हैं, लेकिन इस कृति के रचनाकार नहीं।


अतः सही उत्तर है (A) पं. दीनदयाल उपाध्याय।
Quick Tip: 'राष्ट्र जीवन की दिशा' पं. दीनदयाल उपाध्याय की रचना है, जिसमें राष्ट्र और समाज की दिशा निर्धारित करने वाले मूल्यों की व्याख्या की गई है।


Question 4:

माधव का कथन - 'क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः' इनमें से किस निबंध में उद्धृत है ?

  • (A) 'राष्ट्र का स्वरूप'
  • (B) 'अशोक के फूल'
  • (C) 'भाषा और पुरुषार्थ'
  • (D) 'भाषा और आधुनिकता'
Correct Answer: (B) 'अशोक के फूल'
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Step 1: Understanding the quotation.

यह संस्कृत का प्रसिद्ध श्लोक है, जिसका आशय है कि जो रूप हर क्षण नवीनता प्राप्त करता है, वही रमणीय होता है। यह कथन सौंदर्य और कला के नवीन स्वरूप को प्रकट करता है।


Step 2: Identifying the essay.

'अशोक के फूल' निबंध में इस श्लोक का उद्धरण किया गया है। इस निबंध में जीवन की सौंदर्य दृष्टि और प्रकृति की रमणीयता का विवेचन मिलता है।


Step 3: Option Analysis.

- (A) 'राष्ट्र का स्वरूप' → इसमें राष्ट्र से जुड़े विचार हैं, न कि यह श्लोक।

- (B) 'अशोक के फूल' → सही उत्तर, इसमें यह उद्धरण प्रयुक्त हुआ है।

- (C) 'भाषा और पुरुषार्थ' → इसमें भाषा की शक्ति का विवेचन है, परंतु यह श्लोक नहीं।

- (D) 'भाषा और आधुनिकता' → इसमें भाषा के आधुनिक संदर्भ हैं, न कि यह श्लोक।


अतः सही उत्तर है (B) 'अशोक के फूल'।
Quick Tip: 'अशोक के फूल' निबंध में सौंदर्य और नवीनता की महत्ता को संस्कृत श्लोक द्वारा स्पष्ट किया गया है।


Question 5:

'तप्ती पगडंडियों पर पद यात्रा' आत्मकथा है :

  • (A) डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की
  • (B) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' की
  • (C) पं. दीनदयाल उपाध्याय की
  • (D) जैनेन्द्र कुमार की
Correct Answer: (B) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' की
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Step 1: About the work.

'तप्ती पगडंडियों पर पद यात्रा' एक आत्मकथात्मक कृति है, जिसमें लेखक ने अपने जीवन के अनुभवों और संघर्षों का चित्रण किया है।


Step 2: Identifying the author.

यह आत्मकथा कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' की है, जो हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार और गद्य लेखक थे। उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को इस कृति में प्रस्तुत किया है।


Step 3: Option Analysis.

- (A) डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम → इनकी आत्मकथा 'विंग्स ऑफ फायर' है।

- (B) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' → सही उत्तर, 'तप्ती पगडंडियों पर पद यात्रा' इनके जीवन पर आधारित है।

- (C) पं. दीनदयाल उपाध्याय → उनकी प्रमुख रचना 'राष्ट्र जीवन की दिशा' है, आत्मकथा नहीं।

- (D) जैनेन्द्र कुमार → ये उपन्यासकार थे, आत्मकथा इनकी नहीं।


अतः सही उत्तर है (B) कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'।
Quick Tip: 'तप्ती पगडंडियों पर पद यात्रा' कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' की आत्मकथा है, जिसमें उनके जीवन की झलक और अनुभव मिलते हैं।


Question 6:

'सुमन राजे' की कविताएँ किस 'सप्तक' में संकलित है ?

  • (A) 'दूसरा सप्तक' में
  • (B) 'तीसरा सप्तक' में
  • (C) 'चौथा सप्तक' में
  • (D) 'तारसप्तक' में
Correct Answer: (B) 'तीसरा सप्तक' में
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Step 1: About Suman Raje.

सुमन राजे हिंदी की प्रसिद्ध कवयित्री रही हैं। उनकी कविताओं में संवेदनशीलता, स्त्री अनुभव और सामाजिक दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है।


Step 2: Understanding the Saptak series.

हिंदी कविता के विकास में 'सप्तक' श्रृंखला महत्वपूर्ण है। यह श्रृंखला अज्ञेय द्वारा संपादित की गई थी और इसमें विभिन्न समयों पर अलग-अलग कवियों को शामिल किया गया।


Step 3: Identifying the correct Saptak.

सुमन राजे की कविताएँ 'तीसरा सप्तक' में संकलित हैं। इस सप्तक में अन्य प्रमुख कवियों की रचनाएँ भी संकलित की गई थीं।


Step 4: Option Analysis.

- (A) 'दूसरा सप्तक' → इसमें सुमन राजे सम्मिलित नहीं हैं।

- (B) 'तीसरा सप्तक' → सही उत्तर, सुमन राजे की कविताएँ इसमें संकलित हैं।

- (C) 'चौथा सप्तक' → इसमें बाद के कवियों को शामिल किया गया।

- (D) 'तारसप्तक' → यह पहला सप्तक है, जिसमें सुमन राजे सम्मिलित नहीं थीं।


अतः सही उत्तर है (B) 'तीसरा सप्तक'।
Quick Tip: 'सप्तक' हिंदी कविता के विकास की श्रृंखला है, जिसे अज्ञेय ने संपादित किया। सुमन राजे की कविताएँ 'तीसरा सप्तक' में संकलित हैं।


Question 7:

इनमें से जगन्नाथदास 'रत्नाकर' की कृति नहीं है।

  • (A) 'समालोचनादर्श'
  • (B) 'शृंगारलहरी'
  • (C) 'वीराष्टक'
  • (D) 'अधखिला फूल'
Correct Answer: (D) 'अधखिला फूल'
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Step 1: About Jagannathdas 'Ratnakar'.

जगन्नाथदास 'रत्नाकर' हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार थे। उनकी कृतियाँ मुख्यतः काव्य और अलंकार से संबंधित हैं।


Step 2: Identifying his works.

'समालोचनादर्श', 'शृंगारलहरी' और 'वीराष्टक' उनकी प्रमुख कृतियों में सम्मिलित हैं। इन रचनाओं में साहित्यिक सौंदर्य और काव्यशास्त्रीय दृष्टि दिखाई देती है।


Step 3: Finding the incorrect option.

- (A) 'समालोचनादर्श' → जगन्नाथदास रत्नाकर की रचना।

- (B) 'शृंगारलहरी' → उनकी प्रसिद्ध कृति।

- (C) 'वीराष्टक' → उनकी रचना है।

- (D) 'अधखिला फूल' → यह उनकी कृति नहीं है, बल्कि किसी अन्य कवि की रचना है।


इसलिए सही उत्तर है (D) 'अधखिला फूल'।
Quick Tip: जगन्नाथदास 'रत्नाकर' मुख्यतः काव्य और आलोचना से संबंधित कृतियों के लिए जाने जाते हैं। 'अधखिला फूल' उनकी कृति नहीं है।


Question 8:

सुमित्रानन्दन पन्त को 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार मिला था :

  • (A) 'लोकायतन' पर
  • (B) 'कला और बूढ़ा चाँद' पर
  • (C) 'चितम्बर्री' पर
  • (D) 'ग्राम्या' पर
Correct Answer: (B) 'कला और बूढ़ा चाँद' पर
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Step 1: About Sumitranandan Pant.

सुमित्रानन्दन पन्त हिंदी के प्रसिद्ध छायावादी कवि थे। उन्होंने प्रकृति, सौंदर्य और मानवता को केंद्र में रखकर काव्य रचनाएँ कीं।


Step 2: Identifying the awarded work.

'कला और बूढ़ा चाँद' नामक काव्य-संग्रह पर पन्त जी को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।


Step 3: Option Analysis.

- (A) 'लोकायतन' → उनकी रचना है, पर इस पर अकादमी पुरस्कार नहीं मिला।

- (B) 'कला और बूढ़ा चाँद' → सही उत्तर, इस कृति पर उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ।

- (C) 'चितम्बर्री' → यह उनकी रचना है, पर पुरस्कार इसी पर नहीं।

- (D) 'ग्राम्या' → यह भी उनकी कृति है, पर पुरस्कार इस पर नहीं।


अतः सही उत्तर है (B) 'कला और बूढ़ा चाँद'।
Quick Tip: सुमित्रानन्दन पन्त को 'कला और बूढ़ा चाँद' काव्य-संग्रह के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' मिला।


Question 9:

इनमें से कौन-सी काव्यकृति रामधारी सिंह 'दिनकर' की है ?

  • (A) 'चक्रवाल'
  • (B) 'अनामिका'
  • (C) 'रश्मिबंध'
  • (D) 'गन्नयवीथी'
Correct Answer: (A) 'चक्रवाल'
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Step 1: About Ramdhari Singh 'Dinkar'.

रामधारी सिंह 'दिनकर' राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में राष्ट्रवाद, क्रांतिकारी चेतना और वीर रस की प्रधानता रही है।


Step 2: Identifying his work.

'चक्रवाल' रामधारी सिंह 'दिनकर' की एक महत्वपूर्ण काव्यकृति है, जिसमें उनकी विशिष्ट शैली और भाव दृष्टि प्रकट होती है।


Step 3: Option Analysis.

- (A) 'चक्रवाल' → सही उत्तर, यह दिनकर की रचना है।

- (B) 'अनामिका' → यह महादेवी वर्मा की रचना है।

- (C) 'रश्मिबंध' → यह सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कृति है।

- (D) 'गन्नयवीथी' → यह हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कृति है, पर दिनकर की नहीं।


इसलिए सही उत्तर है (A) 'चक्रवाल'।
Quick Tip: रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'चक्रवाल' कृति में राष्ट्रप्रेम और क्रांतिकारी चेतना का उत्कर्ष दिखाई देता है।


Question 10:

'धर्म तथा ईश्वर के प्रति अनास्था' आधुनिक काल के किस युग की प्रवृत्ति है ?

  • (A) छायावाद-युग की
  • (B) प्रगतिवाद-युग की
  • (C) प्रयोगवाद-युग की
  • (D) नयी कविता-काल की
Correct Answer: (B) प्रगतिवाद-युग की
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Step 1: Understanding the context.

आधुनिक हिंदी साहित्य में विभिन्न युगों की अलग-अलग प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती हैं। इनमें धर्म, ईश्वर और समाज के प्रति दृष्टिकोण भी भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट हुआ है।


Step 2: About प्रगतिवाद.

प्रगतिवाद-युग की प्रमुख प्रवृत्तियों में सामाजिक यथार्थवाद, भौतिकतावाद, वर्ग-संघर्ष की चेतना, और धर्म व ईश्वर के प्रति अनास्था सम्मिलित है। इस युग में कवियों और लेखकों ने धर्म तथा ईश्वर की सत्ता को नकार कर मनुष्य और समाज को केंद्र में रखा।


Step 3: Option Analysis.

- (A) छायावाद-युग की → इसमें अध्यात्म और सौंदर्य की प्रधानता रही, अनास्था नहीं।

- (B) प्रगतिवाद-युग की → सही उत्तर, इस युग में धर्म तथा ईश्वर के प्रति अनास्था की प्रवृत्ति पाई जाती है।

- (C) प्रयोगवाद-युग की → इसमें व्यक्तिगत अनुभूति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी, पर धर्म-अनास्था इसका मुख्य लक्षण नहीं।

- (D) नयी कविता-काल की → इसमें व्यक्तिगत संवेदना और सामाजिक सरोकार तो हैं, पर धर्म-अनास्था प्रमुख प्रवृत्ति नहीं।


इसलिए सही उत्तर है (B) प्रगतिवाद-युग की।
Quick Tip: प्रगतिवाद-युग की कविता और साहित्य का मुख्य आधार यथार्थवाद और समाजवाद रहा, जिसमें धर्म तथा ईश्वर के प्रति अनास्था भी प्रमुख प्रवृत्ति थी।


निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

मैंने भावना से अभिभूत हो सोचा - जो बिना प्रसव किए ही माँ बन सकती है, वही तीस रुपये मासिक के योगक्षेम पर बीस वर्ष के दिन और रात सेवा में लगा सकती है और वही पीड़ितों के तड़पते जीवन में हँसी बिखेर सकती है। तीसरे पहर का समय, थर्मामीटर हाथ में लिए यह आय मदर टेरेसा और उनके साथ एक नवयुवती, उसी विशिष्ट धवल वेष में, गौर और आकर्षक। हाँ, गौर और आकर्षक, पर उसके स्वरूप का चित्रण करने में ये दोनों ही शब्द असफल। यों कहकर उसके आस-पास आ पाऊँगा कि शायद चाँदनी को दूध में घोलकर ब्रह्मा ने उसका निर्माण किया हो। रूप और स्वरूप का एक देवी सांचा-सी वह लड़की। नाम उसका क्रिस्ट हेल्ड और जन्मभूमि जर्मनी। फ्रांस की पुत्री मदर टेरेसा और जर्मनी की दुहिता क्रिस्ट हेल्ड, एक रूप, एक ध्येय, एक रस।

Question 11:

उपयुक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: गद्यांश का पाठ पहचानना।

इस गद्यांश में लेखक ने 'मदर टेरेसा' और उनकी सहयोगिनी 'क्रिस्ट हेल्ड' का वर्णन किया है। इसमें उनकी सेवाभावना, त्याग और करुणा के चित्रण के माध्यम से समाज में प्रेम और सेवा का संदेश दिया गया है।


Step 2: लेखक की पहचान।

यह गद्यांश प्रसिद्ध रचनाकार 'कृष्ण चन्दर' की कृति से लिया गया है। उन्होंने मानवता की सेवा और त्याग की भावना को अपनी रचना में उजागर किया है।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः इस गद्यांश का पाठ 'मदर टेरेसा और क्रिस्ट हेल्ड का सेवाभाव' है और इसके लेखक 'कृष्ण चन्दर' हैं।



Final Answer:
\[ \boxed{पाठ – मदर टेरेसा और क्रिस्ट हेल्ड का सेवाभाव, लेखक – कृष्ण चन्दर} \] Quick Tip: लेखक और पाठ की पहचान करने के लिए गद्यांश में प्रयुक्त पात्रों और भावनाओं पर ध्यान दें। अक्सर लेखक अपनी रचनाओं में विशिष्ट जीवन-दर्शन और विचारधारा प्रस्तुत करते हैं।


Question 12:

नवयुवती का क्या नाम था? उसकी जन्मभूमि कहाँ थी?

Correct Answer:
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Step 1: गद्यांश से तथ्य निकालना।

गद्यांश में उल्लेख है कि मदर टेरेसा के साथ आई नवयुवती का नाम 'क्रिस्ट हेल्ड' था।


Step 2: जन्मभूमि की पहचान।

लेखक ने बताया है कि क्रिस्ट हेल्ड की जन्मभूमि 'जर्मनी' थी।


Step 3: निष्कर्ष।

इस प्रकार नवयुवती का नाम 'क्रिस्ट हेल्ड' और उसकी जन्मभूमि 'जर्मनी' थी।



Final Answer:
\[ \boxed{नवयुवती का नाम – क्रिस्ट हेल्ड, जन्मभूमि – जर्मनी} \] Quick Tip: किसी पात्र का नाम और जन्मस्थान निकालने के लिए गद्यांश की पंक्तियों में प्रयुक्त विशेष संज्ञाओं पर ध्यान दें।


Question 13:

नवयुवती की वेशभूषा और रूपरंग के सम्बन्ध में लेखक का क्या विचार है?

Correct Answer:
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Step 1: वेशभूषा का चित्रण।

गद्यांश में बताया गया है कि नवयुवती विशिष्ट धवल (सफेद) वेश में थी। यह उसका पवित्र और साधारण रूप प्रस्तुत करता है।


Step 2: रूपरंग का वर्णन।

लेखक ने कहा है कि वह गौर और आकर्षक थी। परंतु लेखक को यह शब्द उसके व्यक्तित्व और स्वभाव का पूर्ण चित्रण करने में असफल प्रतीत हुए।


Step 3: लेखक का विचार।

लेखक के अनुसार उस नवयुवती का रूप और स्वभाव ऐसा था मानो चाँदनी को दूध में घोलकर ब्रह्मा ने उसका निर्माण किया हो। उसका स्वरूप और व्यक्तित्व दिव्य और अद्वितीय था।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः लेखक का विचार है कि नवयुवती केवल वेशभूषा और रूपरंग तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसमें एक दिव्यता और आभा थी जो साधारण वर्णन से परे थी।



Final Answer:
\[ \boxed{नवयुवती धवल वेशभूषा में गौर और आकर्षक थी, पर उसका रूप दिव्य और अद्वितीय था।} \] Quick Tip: वर्णनात्मक प्रश्नों में लेखक के शब्दों के भावार्थ पर ध्यान दें, क्योंकि वही पात्र की वास्तविक छवि प्रस्तुत करते हैं।


Question 14:

‘अभिभूत’ और ‘दुहिता’ शब्दों का अर्थ लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: 'अभिभूत' शब्द का अर्थ।

'अभिभूत' का अर्थ है – प्रभावित, भावनाओं से भर जाना या मोहित होना।


Step 2: 'दुहिता' शब्द का अर्थ।

'दुहिता' का अर्थ है – पुत्री या बेटी।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः 'अभिभूत' का अर्थ है भावनाओं से प्रभावित होना और 'दुहिता' का अर्थ है पुत्री।



Final Answer:
\[ \boxed{अभिभूत = प्रभावित, मोहित \quad \quad दुहिता = पुत्री, बेटी} \] Quick Tip: शब्दार्थ लिखते समय संदर्भ का ध्यान रखें, ताकि सही और सटीक अर्थ मिल सके।


Question 15:

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: रेखांकित अंश की पहचान।

रेखांकित अंश है – “जो बिना प्रसव किए ही माँ बन सकती है, वही तीस रुपये मासिक के योगक्षेम पर बीस वर्ष के दिन और रात सेवा में लगा सकती है और वही पीड़ितों के तड़पते जीवन में हँसी बिखेर सकती है।”


Step 2: भावार्थ।

इस पंक्ति में लेखक ने 'मदर टेरेसा' की महानता का वर्णन किया है। उन्होंने कहा कि मदर टेरेसा जैसी महान स्त्री बिना माँ बने ही माँ का दर्जा पा गईं, क्योंकि उन्होंने अनगिनत पीड़ितों और दुखियों की सेवा कर उन्हें स्नेह दिया।


Step 3: सेवा और त्याग का महत्व।

उनकी निस्वार्थ सेवा और करुणा ने समाज के असहाय लोगों को जीवन में आशा और मुस्कान दी। वे मात्र तीस रुपये के भत्ते पर वर्षों तक तन-मन-धन से सेवा में लगी रहीं।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः यह रेखांकित अंश मदर टेरेसा की करुणा, त्याग और सेवा-भावना का प्रतीक है, जिसने उन्हें समस्त पीड़ित मानवता की सच्ची माँ बना दिया।



Final Answer:
\[ \boxed{यह अंश मदर टेरेसा की त्यागमयी सेवा और करुणा का चित्रण करता है।} \] Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय मुख्य पात्र, उनके कार्य और लेखक का भावार्थ अवश्य स्पष्ट करें।


अथवा

प्रकृत यह है कि बहुत पुराने जमाने में आर्य लोगों को अनेक जातियों से निपटना पड़ा था। जो गर्वीली थीं, हार मानने को प्रस्तुत नहीं थीं, पर्वतीय साहित्य में उनका स्मरण घृणा के साथ किया गया और जो सहज ही मित्र बन गईं, उनके प्रति अवज्ञा और उपेक्षा का भाव नहीं रहा। असुर, राक्षस, दानव और दैत्य पहली श्रेणी में तथा यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, सिद्ध, विद्याधर, वानर, भालू आदि दूसरी श्रेणी में आते हैं। पर्वतीय हिन्दू-समाज इन सबको बड़ी अद्भुत शक्तियों का आश्रय मानता है, सबमें देवता-बुद्धि का पोषण करता है। अशोक-वृक्ष की पूजा इन्हीं गन्धर्वों और यक्षों की देन है। प्राचीन साहित्य में इस वृक्ष की पूजा के उत्सवों का बड़ा सरस वर्णन मिलता है। असल पूजा अशोक की नहीं, बल्कि उसके अधिष्ठाता कदंब-देवता की होती थी। इसे 'मदनोत्सव' कहते थे। महाराज भोज के 'सरस्वती-कंठाभरण' से जान पड़ता है कि यह उत्सव त्रयोदशी के दिन होता था। 

Question 16:

उपयुक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: गद्यांश की पहचान।

इस गद्यांश में 'अशोक वृक्ष', उसकी पूजा, तथा उससे जुड़े कंदर्प-देवता और मदनोत्सव का उल्लेख है। साथ ही प्राचीन साहित्य और महाकवि भोज की रचना 'सरस्वती-कंठाभरण' से जुड़ी जानकारी दी गई है।


Step 2: पाठ की पहचान।

यह गद्यांश 'मदनोत्सव' नामक पाठ से लिया गया है। इसमें परंपरागत पूजा, देवताओं का आधार और समाज में विभिन्न जातियों का वर्णन किया गया है।


Step 3: लेखक की पहचान।

इस पाठ के लेखक प्रसिद्ध विद्वान 'हजारीप्रसाद द्विवेदी' हैं, जिन्होंने साहित्य और संस्कृति से जुड़े अनेक विषयों पर रचनाएँ कीं।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः इस गद्यांश का पाठ 'मदनोत्सव' है और इसके लेखक 'हजारीप्रसाद द्विवेदी' हैं।



Final Answer:
\[ \boxed{पाठ – मदनोत्सव, लेखक – हजारीप्रसाद द्विवेदी} \] Quick Tip: लेखक और पाठ पहचानने के लिए गद्यांश में प्रयुक्त प्रमुख शब्दों और संदर्भों (जैसे कृति या उत्सव का नाम) पर ध्यान दें।


Question 17:

परवर्ती साहित्य में किसका स्मरण घृणा के साथ किया गया है?

Correct Answer:
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Step 1: गद्यांश से तथ्य निकालना।

गद्यांश में बताया गया है कि परवर्ती साहित्य में असुर, राक्षस, दानव और दैत्य जातियों का स्मरण घृणा के साथ किया गया है।


Step 2: निष्कर्ष।

अतः परवर्ती साहित्य में असुर, राक्षस, दानव और दैत्य का स्मरण घृणा के साथ किया गया है।



Final Answer:
\[ \boxed{असुर, राक्षस, दानव और दैत्य} \] Quick Tip: साहित्य में जिन जातियों या पात्रों का नकारात्मक रूप से उल्लेख हो, उन्हें पहचानना आसान होता है।


Question 18:

अशोक-वृक्ष की पूजा किसकी देन है?

Correct Answer:
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Step 1: गद्यांश का विश्लेषण।

गद्यांश में कहा गया है कि अशोक-वृक्ष की पूजा की परंपरा गन्धर्वों और यक्षों की देन है।


Step 2: निष्कर्ष।

अतः अशोक-वृक्ष की पूजा गन्धर्वों और यक्षों की देन है।



Final Answer:
\[ \boxed{गन्धर्वों और यक्षों की देन} \] Quick Tip: किसी परंपरा या प्रथा की उत्पत्ति संबंधी प्रश्नों का उत्तर देते समय गद्यांश की मुख्य पंक्तियों को ध्यान से पढ़ें।


Question 19:

‘प्रकृत’ तथा ‘कंदर्प’ शब्दों का अर्थ लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: 'प्रकृत' शब्द का अर्थ।

'प्रकृत' का अर्थ है – स्वाभाविक, सामान्य या नैसर्गिक।


Step 2: 'कंदर्प' शब्द का अर्थ।

'कंदर्प' का अर्थ है – कामदेव, प्रेम के देवता।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः 'प्रकृत' का अर्थ है स्वाभाविक और 'कंदर्प' का अर्थ है कामदेव।



Final Answer:
\[ \boxed{प्रकृत = स्वाभाविक, सामान्य \quad \quad कंदर्प = कामदेव, प्रेम का देवता} \] Quick Tip: शब्दार्थ लिखते समय उनके प्रयोग के संदर्भ पर ध्यान दें, ताकि सटीक अर्थ स्पष्ट हो सके।


Question 20:

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: रेखांकित अंश की पहचान।

रेखांकित अंश है – “असल पूजा अशोक की नहीं, बल्कि उसके अधिष्ठाता कंदर्प-देवता की होती थी। इसे 'मदनोत्सव' कहते थे।”


Step 2: भावार्थ।

इस अंश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि अशोक वृक्ष की पूजा का वास्तविक उद्देश्य वृक्ष नहीं था, बल्कि उसके अधिष्ठाता देवता – कंदर्प अर्थात कामदेव – की पूजा करना था।


Step 3: उत्सव का महत्व।

यह पूजा ‘मदनोत्सव’ कहलाती थी, जो प्रेम, सौंदर्य और कामदेव के महत्व को प्रकट करती थी। समाज इसे एक पवित्र परंपरा के रूप में मानता था।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः इस अंश का आशय है कि अशोक वृक्ष पूजा का प्रतीक मात्र था, वास्तविक पूजनीय देवता कामदेव थे, जिनकी स्मृति में ‘मदनोत्सव’ मनाया जाता था।



Final Answer:
\[ \boxed{यह अंश स्पष्ट करता है कि अशोक-वृक्ष की पूजा वास्तव में कामदेव की पूजा थी।} \] Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय मूल भाव और उसके सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व पर ध्यान दें।


निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

इहि विधि धावति धँसति दरति डरकति सुख-देनी।
मनहुँ सँवारति शुभ सुर-पुर की सुगम निसेनी॥ 

विपुल बेग बल बिक्र्रम के औजनि उमगाई। 
हरर्रर्राति हरपाति संभु-समुख जब आई॥ 

भई थकित छवि चकित हेरि हर रूप मनोहर। 
है आनींहि के प्रान रहे तन धरे धरोहर॥ 

भयो कोप को लोپ चोप और उमगाई। 
चित चिकलाइ चही कठी सब रोग रुचाई॥ 

Question 21:

उपयुक्त पद्यांश के पाठ और उसके रचयिता का नाम लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: पद्यांश की पहचान।

यह पद्यांश रानी दुर्गावती के शौर्य और बलिदान से संबंधित है। इसमें उनके युद्ध, पराक्रम, और आत्मबलिदान का मार्मिक चित्रण किया गया है।


Step 2: पाठ की पहचान।

यह पद्यांश 'रानी दुर्गावती' नामक पाठ से लिया गया है। इसमें उनके अदम्य साहस और मातृभूमि के लिए किए गए बलिदान को प्रस्तुत किया गया है।


Step 3: रचयिता की पहचान।

इस पाठ के रचयिता प्रसिद्ध कवि 'नरसिंहदास' हैं। उन्होंने इस कविता में रानी दुर्गावती की वीरता को अमर कर दिया।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः इस पद्यांश का पाठ 'रानी दुर्गावती' है और इसके रचयिता 'नरसिंहदास' हैं।



Final Answer:
\[ \boxed{पाठ – रानी दुर्गावती, रचयिता – नरसिंहदास} \] Quick Tip: काव्यांश की पहचान करने के लिए उसके मुख्य विषय, ऐतिहासिक व्यक्तित्व और प्रयुक्त शैली को ध्यान से पढ़ना चाहिए।


Question 22:

‘संभु’ के मनोहर रूप को देखकर कौन चकित हो गया?

Correct Answer:
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Step 1: पद्यांश का संदर्भ।

काव्यांश में भगवान शिव (संभु) के मनोहर रूप का चित्रण किया गया है।


Step 2: उत्तर।

भगवान शिव के मनोहर रूप को देखकर रानी दुर्गावती चकित हो गई थीं।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः 'संभु' के रूप को देखकर रानी दुर्गावती आश्चर्यचकित हो गईं।



Final Answer:
\[ \boxed{रानी दुर्गावती चकित हो गईं} \] Quick Tip: काव्य प्रश्नों में पात्रों और उनके भावों को पहचानने के लिए मूल पद्य की पंक्तियों पर ध्यान दें।


Question 23:

‘मनहुँ सँवारति शुभ सुर-पुर की सुगम निसेनी’ – इस पंक्ति में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: पंक्ति का विश्लेषण।

इस पंक्ति में कवि ने उपमा और रूपक अलंकार का प्रयोग किया है।


Step 2: उपमा अलंकार।

‘मनहुँ’ शब्द द्वारा तुलना की गई है, जिससे उपमा अलंकार की उपस्थिति स्पष्ट है।


Step 3: रूपक अलंकार।

'सुर-पुर की सुगम निसेनी' कहकर कवि ने कल्पना को सजीव रूप दिया है, जो रूपक अलंकार का उदाहरण है।


Step 4: निष्कर्ष।

इस पंक्ति में उपमा अलंकार और रूपक अलंकार दोनों प्रयुक्त हैं।



Final Answer:
\[ \boxed{उपमा अलंकार, रूपक अलंकार} \] Quick Tip: अलंकार पहचानते समय देखें कि पंक्ति में तुलना (उपमा), कल्पना (रूपक), ध्वनि (अनुप्रास) या विरोधाभास (विरोधाभास अलंकार) का प्रयोग हुआ है या नहीं।


Question 24:

‘विपुल’ और ‘निसेनी’ शब्दों का अर्थ लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: 'विपुल' शब्द का अर्थ।

'विपुल' का अर्थ है – विशाल, बहुत बड़ा, प्रचुर।


Step 2: 'निसेनी' शब्द का अर्थ।

'निसेनी' का अर्थ है – सीढ़ी।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः 'विपुल' का अर्थ है विशाल और 'निसेनी' का अर्थ है सीढ़ी।



Final Answer:
\[ \boxed{विपुल = विशाल, बहुत बड़ा \quad \quad निसेनी = सीढ़ी} \] Quick Tip: शब्दार्थ निकालते समय उनके संदर्भ को देखकर अर्थ लिखें, ताकि व्याख्या सटीक हो।


Question 25:

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: रेखांकित अंश की पहचान।

रेखांकित अंश है – “भयो कोप को लोभ चोप और उमगाई।”


Step 2: भावार्थ।

इस पंक्ति में कवि ने बताया है कि जब रानी दुर्गावती युद्ध में उतरीं, तो उनके भीतर से क्रोध, लोभ, छल और उमंग सब नष्ट हो गए।


Step 3: संदेश।

यह पंक्ति रानी दुर्गावती की वीरता और आत्मसंयम को प्रकट करती है। युद्ध के समय उन्होंने अपने हृदय से सभी नकारात्मक भावनाओं को त्याग दिया और केवल मातृभूमि की रक्षा को अपना ध्येय बनाया।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः इस रेखांकित अंश का आशय है कि रानी दुर्गावती ने युद्ध में अपने संकल्प और आत्मबल से सभी नकारात्मक भावनाओं को त्याग दिया।



Final Answer:
\[ \boxed{यह अंश रानी दुर्गावती के आत्मसंयम और वीरता का चित्रण करता है।} \] Quick Tip: व्याख्या करते समय यह अवश्य बताएं कि पंक्ति से पात्र का चरित्र और लेखक का भाव कैसे झलकता है।


अथवा

यह मनुज, ब्रह्माण्ड का सबसे सुरम्य प्रकाश, 
कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश। 

यह मनुज जिसकी शिखा उद्दाम, 
कर रहे जिसको चराचार भक्ति युक्त प्रणाम। 

यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार, 
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।

'द्यौम से पाताल तक सब कुछ इसे है क्षेत्र' 
पर न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय। 

श्रेय उसका, बुद्धि पर चेतन्य उस की जीत; 
श्रेय मानव की असीमित मान्वों से प्रीत। 

Question 26:

उपयुक्त पद्यांश के पाठ और उसके रचयिता का नाम लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: पद्यांश की पहचान।

इस पद्यांश में मनुष्य की महत्ता, उसकी बुद्धि, विज्ञान, ज्ञान और चेतना की शक्ति का वर्णन किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि मनुष्य का वास्तविक श्रेय उसकी भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि उसकी चेतना, विवेक और मानवता में है।


Step 2: पाठ की पहचान।

यह पद्यांश 'श्रेय मानव' नामक पाठ से लिया गया है। इसमें कवि ने मानव जीवन के सर्वोच्च आदर्शों और उसकी चेतना की शक्ति पर प्रकाश डाला है।


Step 3: रचयिता की पहचान।

इस पाठ के रचयिता 'रामधारी सिंह दिनकर' हैं, जो राष्ट्रकवि के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में मानवता, विज्ञान, और ज्ञान की महत्ता पर विशेष बल दिया है।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः इस पद्यांश का पाठ 'श्रेय मानव' है और इसके रचयिता 'रामधारी सिंह दिनकर' हैं।



Final Answer:
\[ \boxed{पाठ – श्रेय मानव, रचयिता – रामधारी सिंह दिनकर} \] Quick Tip: पद्यांश से पाठ और कवि की पहचान करने के लिए विषय-वस्तु, शैली और प्रयुक्त मुख्य शब्दों (जैसे श्रेय, मानव, विज्ञान) पर ध्यान दें।


Question 27:

मनुष्य की क्या विशेषता है?

Correct Answer:
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Step 1: पद्यांश का विश्लेषण।

कवि ने मनुष्य की विशेषता यह बताई है कि वह सृष्टि का श्रृंगार है और ज्ञान, विज्ञान तथा आलोक का आगार है।


Step 2: विवेचना।

मनुष्य के भीतर ऐसी चेतना और विवेक है, जिसके कारण वह अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः मनुष्य की विशेषता है कि वह सृष्टि का श्रृंगार और ज्ञान-विज्ञान का केंद्र है।



Final Answer:
\[ \boxed{मनुष्य की विशेषता है कि वह सृष्टि का श्रृंगार और ज्ञान-विज्ञान का आगार है।} \] Quick Tip: मनुष्य की विशेषता पहचानने के लिए कविता में प्रयुक्त "श्रृंगार", "ज्ञान", "विज्ञान" और "आलोक" जैसे शब्दों पर ध्यान दें।


Question 28:

मनुष्य का श्रेय क्या है?

Correct Answer:
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Step 1: पद्यांश का भाव।

कवि ने कहा है कि मनुष्य का श्रेय उसकी भौतिक उपलब्धियों या बाहरी परिचय में नहीं है।


Step 2: वास्तविक श्रेय।

मनुष्य का श्रेय उसकी चेतना, बुद्धि और मानवता में है। यह उसकी आत्मा की विजय का प्रतीक है।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः मनुष्य का श्रेय है – बुद्धि पर आधारित उसकी चेतना और मानवता के प्रति उसकी प्रीति।



Final Answer:
\[ \boxed{मनुष्य का श्रेय उसकी चेतना, बुद्धि और मानवता में है।} \] Quick Tip: मनुष्य के श्रेय से जुड़े प्रश्नों में "बुद्धि", "चेतना" और "मानवता" जैसे शब्द मुख्य संकेत होते हैं।


Question 29:

‘सुरम्य’ और ‘आगार’ शब्दों का अर्थ लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: 'सुरम्य' शब्द का अर्थ।

'सुरम्य' का अर्थ है – सुंदर, रमणीय और मनोहर।


Step 2: 'आगार' शब्द का अर्थ।

'आगार' का अर्थ है – भंडार या स्थान।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः 'सुरम्य' का अर्थ है सुंदर और 'आगार' का अर्थ है भंडार।



Final Answer:
\[ \boxed{सुरम्य = सुंदर, रमणीय \quad \quad आगार = भंडार, स्थान} \] Quick Tip: शब्दार्थ लिखते समय उनके संदर्भ पर ध्यान दें, ताकि सही और सटीक अर्थ स्पष्ट हो।


Question 30:

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: रेखांकित अंश की पहचान।

रेखांकित अंश है – “द्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है श्रेय।”


Step 2: भावार्थ।

इस पंक्ति में कवि ने कहा है कि मनुष्य ने अपनी बुद्धि और चेतना के बल पर आकाश से लेकर पाताल तक सभी उपलब्धियों पर अधिकार प्राप्त कर लिया है। उसकी वैज्ञानिक प्रगति ने समस्त ब्रह्मांड को प्रभावित किया है।


Step 3: संदेश।

यहाँ कवि यह बताना चाहता है कि मनुष्य का प्रभाव केवल धरती तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी क्षमता असीम है। परंतु वास्तविक श्रेय उसकी चेतना और विवेक को ही है, न कि केवल भौतिक उपलब्धियों को।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः इस अंश का आशय है कि मनुष्य ने आकाश-पाताल तक उपलब्धियाँ अर्जित कीं, पर उसका वास्तविक श्रेय उसकी चेतना और बुद्धि को ही है।



Final Answer:
\[ \boxed{यह अंश मनुष्य की असीम उपलब्धियों और चेतना के महत्व को प्रकट करता है।} \] Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय पहले उसका भाव लिखें, फिर उसमें निहित संदेश को स्पष्ट करें।


Question 31:

निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए: (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)

  • (i) वासुदेवशरण अग्रवाल
  • (ii) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • (iii) डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
Correct Answer:
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(i) वासुदेवशरण अग्रवाल:

वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म 1904 में हुआ। वे हिंदी साहित्य के प्रख्यात आलोचक, निबंधकार और कला-इतिहासकार थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति और साहित्य पर गहन अध्ययन किया।


प्रमुख रचनाएँ:

उनकी रचनाओं में “भारतीय कला”, “भारत का चित्रकला-विवेक”, और “संस्कृति और साहित्य” प्रमुख हैं। इनसे भारतीय संस्कृति का गहरा परिचय मिलता है।


(ii) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी:

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म 1907 में बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। वे हिंदी साहित्य के महान निबंधकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। उन्होंने संत साहित्य और मध्यकालीन काव्य पर शोध किया और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष रहे।


प्रमुख रचनाएँ:

उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ “आषाढ़ का एक दिन”, “अनामदास का पोथा”, “बाणभट्ट की आत्मकथा” और “निबंध-संग्रह” हैं।


(iii) डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम:

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म 1931 में रामेश्वरम (तमिलनाडु) में हुआ। वे प्रसिद्ध वैज्ञानिक, भारत के 11वें राष्ट्रपति और ‘‘मिसाइल मैन ऑफ इंडिया’’ कहलाए। उन्होंने विज्ञान और शिक्षा को समर्पित जीवन जिया।


प्रमुख रचनाएँ:

उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में “Wings of Fire”, “Ignited Minds”, “India 2020” और “Turning Points” प्रमुख हैं। इनसे युवाओं और राष्ट्र-निर्माण को प्रेरणा मिलती है। Quick Tip: उत्तर लिखते समय लेखक का जीवन-परिचय (जन्म, कार्यक्षेत्र, योगदान) और उनकी प्रमुख रचनाओं का संक्षिप्त उल्लेख अवश्य करें।


Question 32:

निम्नलिखित में से किसी एक कवि का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए: (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)

  • (i) भारतेंदु हरिश्चन्द्र
  • (ii) जयशंकर प्रसाद
  • (iii) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
Correct Answer:
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(i) भारतेंदु हरिश्चन्द्र:

भारतेंदु हरिश्चन्द्र का जन्म 1850 में काशी में हुआ। उन्हें हिंदी नवजागरण का जनक और आधुनिक हिंदी साहित्य का पिता कहा जाता है। उन्होंने कविता, नाटक, निबंध और पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


प्रमुख कृतियाँ:

उनकी कृतियों में “भारत दुर्दशा”, “अंधेर नगरी”, और “वैदिक हिंसा हिंसा न भवति” प्रमुख हैं। इन रचनाओं ने समाज को नई दिशा दी।


(ii) जयशंकर प्रसाद:

जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 में वाराणसी में हुआ। वे छायावाद के प्रमुख कवि, नाटककार और कहानीकार थे। उनकी रचनाओं में गहन दार्शनिकता, राष्ट्रभक्ति और कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति मिलती है।


प्रमुख कृतियाँ:

उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ “कामायनी”, “आँसु”, “झरना”, तथा नाटक “चंद्रगुप्त” और “ध्रुवस्वामिनी” हैं।


(iii) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’:

अज्ञेय का जन्म 1911 में हुआ। वे प्रयोगवाद और नई कविता आंदोलन के प्रवर्तक कवि, कथाकार और संपादक थे। उनकी रचनाओं में स्वतंत्रता, व्यक्तिगत चेतना और आधुनिक जीवन की जटिलताओं का चित्रण है।


प्रमुख कृतियाँ:

उनकी प्रमुख कृतियाँ “शेखर: एक जीवनी”, “हरी घास पर क्षणभर”, “इत्यलम्” और कविता-संग्रह “आँगन के पार द्वार” हैं। Quick Tip: उत्तर लिखते समय कवि का जन्म, साहित्यिक योगदान और उनकी प्रतिनिधि कृतियों का उल्लेख संक्षेप में करें।


Question 33:

'पंचलाइट' कहानी के कथानक पर प्रकाश डालिए।

Correct Answer:
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कथानक का वर्णन:

'पंचलाइट' कहानी का कथानक ग्रामीण जीवन और सामाजिक यथार्थ पर आधारित है। यह कहानी गाँव के लोगों के बीच पंचलाइट (लालटेन) को लेकर उत्पन्न उत्सुकता, संघर्ष और हास्यपूर्ण स्थितियों को प्रस्तुत करती है। गाँव में जब पहली बार पंचलाइट लाई जाती है, तो उसे जलाने का अधिकार किसे मिलेगा – यही कहानी का मुख्य बिंदु है।


लेखक ने कहानी में गाँव के सामान्य पात्रों की मानसिकता, ईर्ष्या, अज्ञानता और नई चीज़ों के प्रति आकर्षण को सजीव चित्रण के साथ दिखाया है। पंचलाइट केवल एक लालटेन न होकर सामाजिक प्रतिष्ठा और ज्ञान का प्रतीक बन जाती है। अंततः यह स्पष्ट होता है कि वास्तविक प्रगति और सम्मान तभी संभव है जब व्यक्ति सामूहिक भावना और सहयोग से कार्य करे।


इस प्रकार, 'पंचलाइट' का कथानक समाज की मानसिकता, आपसी टकराव और सामूहिकता के महत्व को उजागर करता है। Quick Tip: किसी भी कथानक का विश्लेषण करते समय उसके मुख्य संघर्ष, पात्रों की भूमिका और लेखक द्वारा दिए गए सामाजिक संदेश पर विशेष ध्यान दें।


Question 34:

चरित्र-चित्रण की दृष्टि से ‘बहादुर’ अथवा ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी की समीक्षा कीजिए। (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)

Correct Answer:
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चरित्र-चित्रण:

‘बहादुर’ कहानी का नायक एक साधारण व्यक्ति होते हुए भी साहस और आत्मसम्मान का प्रतीक है। उसका चरित्र समाज में श्रमिक वर्ग की ईमानदारी और संघर्षशीलता को उजागर करता है।


वहीं, ‘कर्मनाशा की हार’ में पात्रों का चित्रण मानव की कमजोरी, स्वार्थ और हार-जीत की मानसिकता को सामने लाता है। लेखक ने पात्रों के माध्यम से यह दिखाया है कि परिस्थितियों और निर्णयों के कारण इंसान का व्यक्तित्व किस प्रकार प्रभावित होता है।


दोनों कहानियाँ चरित्र-चित्रण की दृष्टि से सजीव और यथार्थपरक हैं, जो सामाजिक जीवन की गहराई को उजागर करती हैं। Quick Tip: किसी भी कहानी का चरित्र-चित्रण लिखते समय यह बताना ज़रूरी है कि पात्रों के गुण, दोष और सामाजिक महत्व को लेखक ने कैसे चित्रित किया है।


Question 35:

‘रश्मिरथी’ खंडकाव्य के आधार पर ‘अर्जुन’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘रश्मिरथी’ महाकाव्य में कर्ण के जीवन और संघर्ष का अत्यंत मार्मिक चित्रण हुआ है। इस काव्य में अर्जुन का चरित्र भी विशेष रूप से उभरकर सामने आता है।


Step 2: अर्जुन का व्यक्तित्व।

अर्जुन पांडवों में तृतीय भाई थे। वे अद्वितीय धनुर्धर, पराक्रमी और धर्मनिष्ठ योद्धा थे। अर्जुन का व्यक्तित्व साहस, धैर्य और संयम से पूर्ण था।


Step 3: अर्जुन के गुण।

- वह युद्धकला में निपुण थे।

- श्रीकृष्ण के प्रिय शिष्य और भक्त थे।

- धर्म और न्याय की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते थे।

- अपने गुरुजनों का सम्मान करते थे।


Step 4: निष्कर्ष।

‘रश्मिरथी’ में अर्जुन का चरित्र एक वीर योद्धा, श्रेष्ठ धनुर्धर और धर्मपालन में अडिग व्यक्ति के रूप में सामने आता है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय पात्र के शारीरिक, मानसिक और नैतिक गुणों को स्पष्ट करना आवश्यक है।


Question 36:

‘रश्मिरथी’ खंडकाव्य के ‘पंचम सर्ग’ की घटना का उल्लेख कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: पृष्ठभूमि।

‘रश्मिरथी’ का पंचम सर्ग महाभारत युद्ध के अंतिम और निर्णायक प्रसंग को प्रस्तुत करता है। इसमें कर्ण और अर्जुन के बीच का महासंग्राम वर्णित है।


Step 2: घटना का विवरण।

- कर्ण और अर्जुन युद्धभूमि में आमने-सामने आते हैं।

- दोनों महायोद्धा अपनी अद्भुत वीरता और पराक्रम का प्रदर्शन करते हैं।

- श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि के रूप में उसे उचित मार्गदर्शन देते हैं।

- कर्ण का रथ का पहिया धरती में धँस जाता है।

- इस अवसर का लाभ उठाकर अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया।


Step 3: महत्व।

यह प्रसंग महाभारत युद्ध का सबसे निर्णायक मोड़ है, क्योंकि कर्ण के वध से कौरवों की पराजय सुनिश्चित हो जाती है।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः पंचम सर्ग की मुख्य घटना कर्ण और अर्जुन का भीषण युद्ध और कर्ण का अंत है।
Quick Tip: घटनाओं के प्रश्नों में पहले पृष्ठभूमि, फिर घटना का विवरण और अंत में उसका महत्व अवश्य लिखें।


Question 37:

‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्रांकन कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में नायक का चरित्र आदर्श, त्याग और संघर्ष का प्रतीक रूप में चित्रित हुआ है। वह कठिन परिस्थितियों में भी अपने पथ से विचलित नहीं होता।


Step 2: नायक का व्यक्तित्व।

नायक का व्यक्तित्व त्याग, धैर्य और साहस से परिपूर्ण है। वह व्यक्तिगत स्वार्थ की बजाय समाज और मानवता की भलाई के लिए समर्पित है।


Step 3: नायक के गुण।

- कर्तव्यनिष्ठ और दृढ़ निश्चयी।

- त्याग की भावना से ओत-प्रोत।

- संघर्षशील और आदर्शवादी।

- समाज-हित में जीवन समर्पित करने वाला।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः ‘त्यागपथी’ का नायक एक उच्च आदर्शवादी, त्यागमयी और प्रेरणादायक चरित्र है, जो पाठकों को जीवन में त्याग और संघर्ष का महत्व सिखाता है।
Quick Tip: चरित्रांकन में नायक के शारीरिक, मानसिक और नैतिक गुणों का क्रमवार उल्लेख करें।


Question 38:

‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य त्याग, आदर्श और संघर्ष को मुख्य विषय बनाकर लिखा गया है। इसमें नायक का जीवन प्रेरणा का स्रोत है।


Step 2: काव्य की विशेषताएँ।

- त्याग और आदर्श का प्रभावी चित्रण।

- संघर्षशील जीवन का प्रेरणादायक संदेश।

- भाषा सरल, प्रवाहमयी और भावपूर्ण।

- शैली शिक्षाप्रद और प्रभावशाली।

- मानवता और समाज-हित को प्रधानता।


Step 3: निष्कर्ष।

इस प्रकार ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य उच्च आदर्शों, त्याग और संघर्ष की प्रेरणा देने वाला उत्कृष्ट काव्य है।
Quick Tip: विशेषताओं वाले प्रश्नों में भाषा, शैली, भाव और विषयवस्तु पर विशेष रूप से ध्यान दें।


Question 39:

‘श्रवणकुमार’ खंडकाव्य के आधार पर दशरथ के चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डालिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘श्रवणकुमार’ खंडकाव्य में कवि ने श्रवणकुमार की भक्ति, सेवा और आज्ञाकारिता के साथ-साथ राजा दशरथ के जीवन के एक महत्वपूर्ण प्रसंग का भी वर्णन किया है।


Step 2: दशरथ का व्यक्तित्व।

दशरथ अयोध्या के महान और आदर्श राजा थे। वे वीर, पराक्रमी और न्यायप्रिय शासक थे। उनके व्यक्तित्व में संवेदनशीलता और धर्मनिष्ठा दोनों झलकती हैं।


Step 3: चारित्रिक गुण।

- वे सत्य और धर्म का पालन करने वाले शासक थे।

- उनके भीतर प्रजा के प्रति गहरी करुणा और उत्तरदायित्व का भाव था।

- अनजाने में श्रवणकुमार की हत्या कर देने के बाद उन्होंने गहरी पश्चाताप की भावना व्यक्त की।

- श्रवणकुमार के माता-पिता को जल अर्पित करने और उनकी सेवा करने का व्रत निभाया।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः दशरथ एक आदर्श, धर्मनिष्ठ और करुणाशील राजा थे, जिनके व्यक्तित्व में वीरता और संवेदनशीलता दोनों का अद्भुत संगम था।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय पात्र की शक्तियों, कमजोरियों और मानवीय गुणों को विस्तार से लिखें।


Question 40:

‘श्रवणकुमार’ खंडकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: पृष्ठभूमि।

‘श्रवणकुमार’ खंडकाव्य में श्रवणकुमार की माता-पिता के प्रति सेवा, भक्ति और आज्ञाकारिता का चित्रण किया गया है। उनकी कथा भारतीय संस्कृति में मातृ-पितृ भक्ति का आदर्श मानी जाती है।


Step 2: प्रमुख घटनाएँ।

- श्रवणकुमार अपने अंधे माता-पिता को कंधे पर बिठाकर तीर्थयात्रा पर निकले।

- मार्ग में वे माता-पिता की सेवा करते रहे और उनके लिए जल लाने गए।

- संयोगवश राजा दशरथ ने उन्हें मृग समझकर बाण चला दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

- मरते समय श्रवणकुमार ने अपने माता-पिता की सेवा करने की अंतिम इच्छा व्यक्त की।

- श्रवणकुमार के माता-पिता ने अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर प्राण त्याग दिए।


Step 3: महत्व।

यह प्रसंग मातृ-पितृ भक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है, जो भारतीय संस्कृति और साहित्य में अद्वितीय स्थान रखता है।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः ‘श्रवणकुमार’ खंडकाव्य की प्रमुख घटनाएँ उसकी भक्ति, सेवा और माता-पिता के प्रति समर्पण को दर्शाती हैं।
Quick Tip: घटना-आधारित प्रश्नों का उत्तर देते समय घटनाओं का क्रम और उनसे मिलने वाली शिक्षा दोनों अवश्य लिखें।


Question 41:

‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य में मानव-जीवन की स्वतंत्रता, संघर्ष और आदर्शवाद का चित्रण किया गया है। यह खण्डकाव्य प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद है।


Step 2: विशेषताएँ।

- त्याग और स्वतंत्रता की भावना का प्रभावी चित्रण।

- संघर्षशील जीवन और आत्मबल की महत्ता पर बल।

- भाषा सरल, भावपूर्ण और प्रवाहमयी।

- शैली शिक्षाप्रद, आदर्शवादी और प्रभावशाली।

- नायक का जीवन पाठकों को प्रेरणा प्रदान करता है।


Step 3: निष्कर्ष।

इस प्रकार ‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य आदर्श, त्याग और स्वतंत्रता का संदेश देने वाला एक महत्त्वपूर्ण काव्य है।
Quick Tip: विशेषताओं के उत्तर में भाषा, शैली, विषयवस्तु और भावप्रधानता का उल्लेख अवश्य करें।


Question 42:

‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य का नायक त्याग, साहस और स्वतंत्रता का प्रतीक रूप में चित्रित हुआ है। वह हर कठिन परिस्थिति में अपने आदर्शों पर अडिग रहता है।


Step 2: नायक का व्यक्तित्व।

नायक दृढ़ निश्चयी, साहसी और आत्मबल से सम्पन्न है। उसके जीवन में त्याग और संघर्ष प्रमुख हैं। वह व्यक्तिगत स्वार्थ की अपेक्षा समाज और मानवता के कल्याण को प्राथमिकता देता है।


Step 3: नायक के गुण।

- साहस और आत्मबल से परिपूर्ण।

- त्यागमयी और आदर्शवादी।

- समाज-हित में समर्पित।

- स्वतंत्रता और कर्तव्य का पालन करने वाला।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः ‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य का नायक एक आदर्श चरित्र है, जो पाठकों को त्याग, साहस और स्वतंत्रता का महत्व सिखाता है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय नायक के आदर्श, त्याग, संघर्ष और समाज-हित की भावना पर ध्यान दें।


Question 43:

‘सत्य की जीत’ खंडकाव्य के उद्देशय पर प्रकाश डालिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘सत्य की जीत’ खंडकाव्य का मुख्य उद्देश्य समाज में सत्य, धर्म और न्याय की स्थापना के महत्व को प्रस्तुत करना है।


Step 2: संदेश।

कवि ने इस खंडकाव्य के माध्यम से बताया है कि असत्य और अन्याय चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः उसकी पराजय निश्चित है।


Step 3: आदर्श।

इस काव्य में सत्य को सर्वोच्च आदर्श माना गया है और इसे ही वास्तविक विजय का मार्ग बताया गया है। कवि ने समाज को सत्य और धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया है।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः ‘सत्य की जीत’ खंडकाव्य का उद्देश्य है – मानव जीवन और समाज में सत्य की महत्ता को स्थापित करना और यह विश्वास दिलाना कि अंत में सत्य की ही विजय होती है।
Quick Tip: किसी काव्य के उद्देश्य को लिखते समय उसके केंद्रीय विचार, शिक्षा और संदेश पर ध्यान केंद्रित करें।


Question 44:

‘सत्य की जीत’ खंडकाव्य की नायिका का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘सत्य की जीत’ खंडकाव्य की नायिका सत्य, साहस और नारी-सम्मान की प्रतीक है। वह कठिन परिस्थितियों में भी न्याय और सत्य का साथ देती है।


Step 2: नायिका का व्यक्तित्व।

नायिका का चरित्र दृढ़, साहसी और निडर है। वह असत्य और अन्याय के आगे झुकती नहीं है। उसके भीतर आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की गहरी भावना है।


Step 3: गुण।

- सत्यनिष्ठा उसकी सबसे बड़ी विशेषता है।

- वह समाज में स्त्री के आदर्श रूप को प्रस्तुत करती है।

- वह अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने से पीछे नहीं हटती।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः ‘सत्य की जीत’ खंडकाव्य की नायिका का चरित्र समाज के लिए प्रेरणा-स्रोत है, जो बताता है कि कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय पात्र के व्यक्तित्व, गुणों और सामाजिक महत्व का वर्णन अवश्य करें।


Question 45:

‘आलोककृत’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘आलोककृत’ खण्डकाव्य में जीवन के आदर्श, संघर्ष और समाज-हित की भावनाओं का गहन चित्रण किया गया है। यह खण्डकाव्य पाठकों को प्रेरणा और उत्साह प्रदान करता है।


Step 2: विशेषताएँ।

- समाज और मानवता की सेवा का संदेश।

- संघर्ष और त्याग का प्रभावी चित्रण।

- भाषा सरल, भावपूर्ण और प्रेरणादायक।

- आदर्शवादी और शिक्षाप्रद शैली।

- पात्रों का सजीव और यथार्थ चित्रण।


Step 3: निष्कर्ष।

इस प्रकार ‘आलोककृत’ खण्डकाव्य अपनी आदर्शवादी विषयवस्तु और प्रेरणादायक भावों के कारण साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
Quick Tip: विशेषताओं वाले उत्तर लिखते समय भाषा, शैली, विषयवस्तु और संदेश पर अवश्य ध्यान दें।


Question 46:

‘आलोककृत’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्रांकन कीजिए।

Correct Answer:
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Step 1: भूमिका।

‘आलोककृत’ खण्डकाव्य का नायक त्याग, साहस और समाज-सेवा की भावना का मूर्त रूप है। वह अपने जीवन को उच्च आदर्शों के लिए समर्पित करता है।


Step 2: नायक का व्यक्तित्व।

नायक का व्यक्तित्व आदर्शवादी और प्रेरणादायक है। वह कठिनाइयों का सामना धैर्य और साहस से करता है। उसमें मानवता और समाज-हित की भावना प्रबल है।


Step 3: नायक के गुण।

- साहसी और त्यागमयी।

- समाज-हित में समर्पित।

- संघर्षशील और दृढ़ निश्चयी।

- प्रेरणादायक और आदर्शवादी।


Step 4: निष्कर्ष।

अतः ‘आलोककृत’ का नायक समाज-सेवा और त्याग का प्रतीक है, जो पाठकों को जीवन में आदर्श अपनाने की प्रेरणा देता है।
Quick Tip: चरित्रांकन लिखते समय नायक के आदर्श, गुण और समाज-हित की भावना पर विशेष ध्यान दें।


Question 47:

निम्नलिखित संस्कृत गद्यांश का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए :

धन्योऽयं भारतदेशः यत्र समुल्लसति जनमानसपावनी भव्यभावोद्बोधिनी शब्द-सन्दोह-प्रसविनी सुरभारती। विद्यमानेषु निखिलेष्वपि वाङ्मयेषु अस्या: वाङ्मयं सर्वोत्तं सुसम्पन्नं च वर्तते। इयमेव भाषा संस्कृतनाम्नापि लोके प्रतिष्ठिता अस्ति। अस्माकं रामायण-महाभारताद्यैतिहासिकग्रन्थाः, चत्वारो वेदाः, सर्वाः उपनिषदः, अष्टादशपुराणानि अन्यानि च महाकाव्यानि चादीनि अस्यामेव भाषायां लिखितानि सन्ति। इयमेव भाषा सर्वासामाधिभाषाणां जननीति मन्यते भाषातत्त्वविद्भिः। संस्कृतस्य गौरवं बहुविधज्ञानाश्रयत्वं व्यापकत्वं च न कस्यापि इष्टेऽत्र विषयः॥

Correct Answer:
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Step 1: सन्दर्भ।

प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत भाषा की महिमा और महत्व को प्रकट करता है। इसमें बताया गया है कि संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति और ज्ञान की आधारशिला है।


Step 2: अनुवाद।

धन्य है यह भारतदेश, जहाँ ऐसी भाषा संस्कृत का उदय हुआ। यह जनमानस को पवित्र करने वाली, उच्च विचारों को जगाने वाली, और भावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। इसमें शब्द-संभार की प्रचुरता है और यह सभी भाषाओं में श्रेष्ठ मानी जाती है।


संस्कृत भाषा में ही वेद, उपनिषद, अठारह पुराण, रामायण, महाभारत और अनेक ऐतिहासिक गाथाएँ तथा महाकाव्य लिखे गए हैं। इस भाषा की विशेषता यह है कि यह सर्वसामान्य की भाषा होने के साथ-साथ जननीति और धर्मनीति की भी भाषा है। संस्कृत के द्वारा अनेकों प्रकार के ज्ञान का प्रसार हुआ है और इसका गौरव सर्वत्र स्वीकार किया गया है।


Step 3: निष्कर्ष।

अतः संस्कृत भाषा केवल भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की अमूल्य धरोहर है।
Quick Tip: संस्कृत गद्यांश का अनुवाद करते समय सबसे पहले सन्दर्भ दें, फिर अर्थ स्पष्ट रूप से लिखें और अंत में उसकी शिक्षा या महत्व अवश्य बताएँ।


Question 48:

निम्नलिखित संस्कृत गद्यांश का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए :

अतीतो प्रथमकल्पे चतुष्पदाः सिंहः राजानमकुर्वन्। मत्तया आनन्दमत्तया शकुनकः सुवर्णहंसः। तत्कः पुनः सुवर्णराजहंसस्य दुहिता हंसपोतिका अतीव रूपवती आसीत्। स तस्यै वरं ददात् यत् सा आत्मनः शिवतरोचितं स्वामिनं वृणुयात् इति। हंसराजः तस्यै वरं दत्वा हिमवति शकुनिनस्सङ्गे संन्यपतत्। नानाप्रकाराः हंसमयूखाः शकुनिगणाः समागताः एकस्मिन् महति पाषाणतले संन्यपतन्। हंसराजः आत्मनः चिरचिन्तितं स्वामिकम् आगत्य वृणुयात् इति दुहितरमादिशत्। सा शकुनिनस्सङ्गे अवलोकयन्ती मणिपर्वतीयं चित्रवेषणं मयूरं इच्छत्वा ‘अयं मे स्वामिको भवतु’ इत्यभाषत।

Correct Answer:
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Step 1: सन्दर्भ।

प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत कथा-साहित्य से लिया गया है, जिसमें पशु-पक्षियों और राजकन्याओं का संवाद एवं घटनाएँ वर्णित हैं। यह गद्यांश नीतिकथा के रूप में भी महत्वपूर्ण है।


Step 2: हिन्दी अनुवाद।

बहुत समय पहले प्रथम कल्प में सिंहों का राजा मृकवन कहलाता था। मछलियों का राजा आनंदमत्स्य था और पक्षियों का राजा शुक था। सुवर्णहंस का एक पुत्र था। सुवर्णहंस की एक अत्यंत रूपवती पुत्री भी थी। वह पुत्री अपने लिए योग्य पति का चयन करना चाहती थी।


जब हंसराज ने वर मांगने को कहा, तब उसने हिमालय पर स्थित शुकनिस ऋषि के पास जाकर अपनी इच्छा प्रकट की। वहाँ अनेक प्रकार के हंस और मयूर उपस्थित थे। सभी ने मिलकर उसका वर चुनने का प्रयत्न किया। हंसराज ने अपनी पुत्री से कहा—“तुम स्वयं योग्य वर का चयन करो।”


उस कन्या ने चारों ओर दृष्टि डाली और मणियों के रंगों से विभूषित एक सुंदर मयूर को देखा। उसे देखकर उसने कहा—“अयम् मे स्वामिको भवतु” अर्थात् ‘यह मेरा पति हो।’


Step 3: निष्कर्ष।

इस गद्यांश से शिक्षा मिलती है कि जीवन में उचित चुनाव करना आवश्यक है और व्यक्ति को अपनी रुचि व विवेक से ही निर्णय लेना चाहिए।
Quick Tip: संस्कृत गद्यांश का अनुवाद करते समय पहले सन्दर्भ दें, फिर घटनाओं का क्रमवार विवरण और अंत में शिक्षा या संदेश अवश्य लिखें।


Question 49:

निम्नलिखित संस्कृत पद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए :

अनाक्रष्टस्य विषयेऽर्थविद्यानां पारदर्शनः।
तस्य धर्मस्तेरसीद् वृद्धत्वं जरसा विना॥

Correct Answer:
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Step 1: सन्दर्भ।

प्रस्तुत पद्यांश महर्षि भरतमुनि के ग्रंथ से लिया गया है। इसमें धर्मतेर नामक व्यक्ति का वर्णन किया गया है, जो विष, औषधि और विद्याओं का पारंगत था।


Step 2: हिन्दी अनुवाद।

धर्मतेर विष और विभिन्न औषधियों का ज्ञाता था। वह कठिन साधनाओं को पार करने वाला था। उसके भीतर अद्भुत सहनशक्ति थी। उसका वृद्धावस्था बिना जरा (बुढ़ापे की कमजोरी) के ही आती थी। अर्थात वह ऐसा था कि आयु तो बढ़ती थी, परंतु उसमें जरा या दुर्बलता का प्रभाव नहीं दिखता था।


Step 3: निष्कर्ष।

इस पद्यांश से यह शिक्षा मिलती है कि विद्या और तप से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। ज्ञान और साधना से जीवन में शक्ति और दीर्घायु प्राप्त होती है।
Quick Tip: संस्कृत पद्यांश का अनुवाद करते समय प्रत्येक पंक्ति का क्रमवार अर्थ लिखें और फिर उसका भावार्थ प्रस्तुत करें।


Question 50:

निम्नलिखित संस्कृत पद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए :

कामान् दुःखे विप्रकर्षत्यलक्ष्मी
कीर्तिं स्तुते दुर्गतं या हिनस्ति।

शुद्धां शान्तां मातरं मङ्गलानां
धेनुं धीराः सूनुतां वाचमाहुः॥

Correct Answer:
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Step 1: सन्दर्भ।

प्रस्तुत पद्यांश संस्कृत साहित्य से लिया गया है। इसमें ‘वाणी’ (वाणी-लक्ष्मी) की महत्ता और उसके गुण-दोष का वर्णन किया गया है। कवि ने बताया है कि वाणी मनुष्य के लिए वरदान भी हो सकती है और अभिशाप भी।


Step 2: हिन्दी अनुवाद।

वाणी कामनाओं को दुहने वाली गाय के समान है। यह मनुष्य के लिए यश उत्पन्न करती है और कभी-कभी उसके लिए अपयश भी लाती है। वाणी शुद्ध और शांत होकर माता के समान हितकारी होती है। किंतु यदि यह दूषित हो जाए तो यह विनाश का कारण बनती है। इसलिए बुद्धिमान लोग वाणी को ‘धन’ मानते हैं।


Step 3: निष्कर्ष।

इस पद्यांश से यह शिक्षा मिलती है कि वाणी का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए। यह यश, शांति और कल्याण का स्रोत भी है और अपयश व विनाश का कारण भी बन सकती है।
Quick Tip: संस्कृत पद्यांश का अनुवाद करते समय विशेष रूप से मुख्य उपमानों (जैसे यहाँ वाणी = कामधेनु) पर ध्यान दें और उनका भाव स्पष्ट करें।


Question 51:

निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए: 

(क) कविकुलगुरुः कः कथ्यते ?
(ख) दिलीपः कस्मिन् प्रदेशस्य राजा आसीत् ?
(ग) मूलशङ्करः गृहम् कदा अत्यजत् ?
(घ) विद्याधनः किम् त्यजेत् ?

Correct Answer:
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(क) कविकुलगुरुः कः कथ्यते ?

कविकुलगुरुः कालिदासः कथ्यते।


(ख) दिलीपः कस्मिन् प्रदेशस्य राजा आसीत् ?

दिलीपः अयोध्यायाः प्रदेशस्य राजा आसीत्।


(ग) मूलशङ्करः गृहम् कदा अत्यजत् ?

मूलशङ्करः गृहम् बाल्यकाले अत्यजत्।


(घ) विद्याधनः किम् त्यजेत् ?

विद्याधनः सर्वत्र गच्छन् अपि न त्यजेत्। Quick Tip: संस्कृत प्रश्नों के उत्तर देते समय सरल, स्पष्ट और शुद्ध संस्कृत वाक्यों का प्रयोग करें।


Question 52:

‘रोद्र’ रस अथवा ‘करुण’ रस की परिभाषा लिखकर उसका एक उदाहरण दीजिए।

Correct Answer:
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रोद्र रस की परिभाषा :

जब मनुष्य क्रोध, आक्रोश और प्रतिशोध से भर जाता है, तब उस स्थिति को ‘रोद्र रस’ कहते हैं।


उदाहरण :
महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह को देखकर अर्जुन के मन में जो तीव्र क्रोध उत्पन्न हुआ, वह रोद्र रस का उदाहरण है।


करुण रस की परिभाषा :

जहाँ दुख, करुणा, शोक और विषाद की भावना प्रकट होती है, वहाँ ‘करुण रस’ होता है।


उदाहरण :
सीता-हरण के बाद राम का विलाप करुण रस का श्रेष्ठ उदाहरण है।
Quick Tip: रस की पहचान भावनाओं से होती है — क्रोध में रोद्र और शोक में करुण रस।


Question 53:

‘अनुप्रास’ अथवा ‘उत्प्रेक्षा’ अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।

Correct Answer:
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अनुप्रास अलंकार की परिभाषा :

जब किसी वाक्य या पद्य में एक ही अक्षर या वर्ण बार-बार आए, तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।


उदाहरण :
“पानी-पानी करती पनघट की पनिहारिन।”


उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा :

जहाँ किसी वस्तु की तुलना दूसरी वस्तु से सम्भावना के रूप में की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।


उदाहरण :
“वह ऐसे चल रहा है मानो सिंह हो।”
Quick Tip: अनुप्रास = ध्वनि की पुनरावृत्ति, उत्प्रेक्षा = सम्भावना के रूप में उपमा।


Question 54:

‘चौपाई’ अथवा ‘रोला’ छन्द को परिभाषित करते हुए उसका एक उदाहरण लिखिए।

Correct Answer:
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चौपाई छन्द की परिभाषा :

चौपाई छन्द में प्रत्येक पंक्ति में 16-16 मात्राएँ होती हैं और चार पंक्तियों का एक चरण होता है।


उदाहरण :
“मनुष्य यदि ठाने मन में, कर सकता है सब काम।
साहस-बल से बढ़कर, जग में नहीं दूसरा धाम।। ”


रोला छन्द की परिभाषा :

रोला छन्द में 24 मात्राएँ होती हैं — पहली पंक्ति में 11 मात्राएँ और दूसरी में 13 मात्राएँ।


उदाहरण :
“राम सिया राम सिया राम जय जय राम।”
Quick Tip: चौपाई = 16-16 मात्राएँ, रोला = 11+13 मात्राएँ।


Question 55:

निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबंध लिखिए:

(क) बेरोजगारी की समस्या और समाधान के उपाय
(ख) गोस्वामी तुलसीदास
(ग) वन-संरक्षण का महत्व
(घ) भारतीय लोकतंत्र का भविष्य
(ङ) देशप्रेम

Correct Answer:
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(क) बेरोजगारी की समस्या और समाधान के उपाय


प्रस्तावना:

बेरोजगारी आज भारत की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। यह केवल आर्थिक ही नहीं, सामाजिक और मानसिक समस्या भी है।


मुख्य समस्या:

जनसंख्या वृद्धि, शिक्षा प्रणाली की खामियाँ, उद्योगों का अभाव और ग्रामीण क्षेत्रों में अवसरों की कमी इसके प्रमुख कारण हैं। युवा वर्ग में निराशा और अपराध की प्रवृत्तियाँ भी इसी से उत्पन्न होती हैं।


समाधान:

तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना, लघु और कुटीर उद्योगों का विकास करना तथा स्वरोजगार योजनाओं को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। स्टार्टअप और डिजिटल उद्यमिता भी समाधान का मार्ग खोल सकते हैं।


उपसंहार:

यदि शिक्षा, उद्योग और तकनीक का संतुलित विकास हो, तो बेरोजगारी की समस्या को दूर किया जा सकता है और भारत आत्मनिर्भर बन सकता है।



(ख) गोस्वामी तुलसीदास


प्रस्तावना:

गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के महान कवि और भक्त थे। उनका जन्म 16वीं शताब्दी में हुआ और उन्होंने अपना जीवन भगवान राम की भक्ति में अर्पित कर दिया।


साहित्यिक योगदान:

उन्होंने सरल और भक्तिपूर्ण भाषा में रचनाएँ कीं, जिनमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र प्रस्तुत है। उनकी रचनाएँ समाज में नैतिक मूल्यों और आस्था का संचार करती हैं।


प्रमुख कृतियाँ:

“रामचरितमानस”, “विनयपत्रिका”, “कवितावली”, और “गीतावली” उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।


उपसंहार:

तुलसीदास का साहित्य आज भी भक्ति, आस्था और जीवन-निर्देशन का आधार है। वे लोकभाषा और जन-आस्था के कवि हैं।



(ग) वन-संरक्षण का महत्व


प्रस्तावना:

वन मानव जीवन का आधार हैं। ये हमें ऑक्सीजन, जल, औषधि, लकड़ी और पर्यावरणीय संतुलन प्रदान करते हैं।


महत्व:

वन वर्षा लाते हैं, मिट्टी का क्षरण रोकते हैं और जैव विविधता को सुरक्षित रखते हैं। मानव और पशु जीवन का सीधा संबंध वनों से है।


समस्या:

अत्यधिक कटाई, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण वनों का क्षेत्रफल तेजी से घट रहा है। इसका परिणाम जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण है।


समाधान:

अधिकाधिक वृक्षारोपण करना, वनों की अवैध कटाई रोकना और जन-जागरूकता फैलाना जरूरी है। सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा।


उपसंहार:

वनों का संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है। यदि हम आज सावधान नहीं हुए, तो भविष्य संकटमय होगा।



(घ) भारतीय लोकतंत्र का भविष्य


प्रस्तावना:

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार है। लोकतंत्र की सफलता जनता की जागरूकता पर निर्भर करती है।


वर्तमान स्थिति:

भारत में लोकतंत्र ने शिक्षा, विज्ञान, उद्योग और राजनीति में प्रगति की है। लेकिन भ्रष्टाचार, जातिवाद और अशिक्षा जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं।


भविष्य की दिशा:

लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए शिक्षा का प्रसार, पारदर्शिता, ईमानदार नेतृत्व और युवा शक्ति का योगदान आवश्यक है। सूचना तकनीक लोकतंत्र को और सशक्त बना सकती है।


उपसंहार:

यदि जनता और सरकार मिलकर कार्य करें, तो भारतीय लोकतंत्र का भविष्य उज्ज्वल और आदर्श बन सकता है।



(ङ) देशप्रेम


प्रस्तावना:

देशप्रेम प्रत्येक नागरिक का परम कर्तव्य है। यह भावना व्यक्ति को अपने देश के प्रति समर्पित करती है।


महत्व:

देशप्रेम से ही स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया और भारत आजाद हुआ। यह समाज में एकता, बलिदान और सेवा-भावना को प्रेरित करता है।


प्रदर्शन:

देशप्रेम केवल युद्ध तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वच्छता, शिक्षा, ईमानदारी और समाजसेवा में भी इसका प्रदर्शन होता है।


उपसंहार:

देशप्रेम से ही राष्ट्र सशक्त बनता है। यदि हर नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करे, तो भारत विश्व में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर सकता है। Quick Tip: निबंध लिखते समय चार भाग अवश्य रखें – प्रस्तावना, मुख्य भाग/समस्या, समाधान/योगदान/महत्व और उपसंहार।


Question 56:

'उपोषित' का सन्धि-विच्छेद है :

  • (A) उप + औषति
  • (B) उप + ओषति
  • (C) उ + पोषति
  • (D) उपो + ओषति
Correct Answer: (B) उप + ओषति
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Step 1: Understanding the word 'उपोषित'.

'उपोषित' शब्द संस्कृत से लिया गया है। इसका सामान्य अर्थ है — उपवास किया हुआ।


Step 2: Applying Sandhi rules.

यह शब्द 'उप' + 'ओषति' के संयोग से बना है।

यहाँ 'उप' + 'ओषति' में 'प' और 'ओ' के मिलने से 'पोष' रूप आता है। इसलिए 'उप' + 'ओषति' → 'उपोषित'।


Step 3: Option Analysis.

- (A) उप + औषति → गलत, यहाँ 'औ' प्रयोग नहीं है।

- (B) उप + ओषति → सही उत्तर, यही वास्तविक सन्धि-विच्छेद है।

- (C) उ + पोषति → गलत, यह कृत्रिम रूप है।

- (D) उपो + ओषति → गलत, 'उपो' रूप नहीं बनता।


इसलिए सही उत्तर है (B) उप + ओषति।
Quick Tip: संस्कृत शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते समय स्वर-संधि नियमों को ध्यान में रखना आवश्यक है। 'उप' + 'ओषति' से 'उपोषित' बनता है।


Question 57:

'लब्धः' का सन्धि-विच्छेद है :

  • (A) लभ + धः
  • (B) लब् + धः
  • (C) लभ + धः
  • (D) लभ + अधः
Correct Answer: (C) लभ + धः
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Step 1: Understanding the word 'लब्धः'.

'लब्धः' का अर्थ है — प्राप्त किया हुआ। यह 'लभ' धातु से बना है।


Step 2: Applying Sandhi rules.

'लभ' धातु में 'क्त' प्रत्यय जुड़ने पर 'लभ्तः' रूप बनता है, जो संधि के कारण 'लब्धः' हो जाता है।


Step 3: Option Analysis.

- (A) लभ + धः → अपूर्ण रूप।

- (B) लब् + धः → गलत रूप।

- (C) लभ + धः → सही उत्तर।

- (D) लभ + अधः → गलत।


इसलिए सही उत्तर है (C) लभ + धः।
Quick Tip: 'लब्धः' धातु 'लभ' से बना है, जिसका अर्थ है 'प्राप्त किया हुआ'।


Question 58:

'नमस्ते' का सन्धि-विच्छेद है :

  • (A) नमु + अस्ते
  • (B) नम + अस्ते
  • (C) नमः + ते
  • (D) नमः + अस्ते
Correct Answer: (C) नमः + ते
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Step 1: Understanding the word 'नमस्ते'.

'नमस्ते' संस्कृत का सामान्य अभिवादन है, जिसका अर्थ है — 'आपको नमस्कार'।


Step 2: Applying Sandhi rules.

यह शब्द 'नमः' + 'ते' के संयोग से बना है।

'नमः' का अर्थ है 'नमस्कार' और 'ते' का अर्थ है 'आपको'।

संधि के कारण 'नमः + ते' = 'नमस्ते'।


Step 3: Option Analysis.

- (A) नमु + अस्ते → गलत रूप।

- (B) नम + अस्ते → गलत रूप।

- (C) नमः + ते → सही उत्तर।

- (D) नमः + अस्ते → यह भी गलत है।


इसलिए सही उत्तर है (C) नमः + ते।
Quick Tip: 'नमस्ते' का शाब्दिक अर्थ है 'आपको नमस्कार' — यह 'नमः' और 'ते' से बना है।


Question 59:

'प्रत्येकः' में समास है :

  • (A) तत्पुरुष
  • (B) कर्मधारय
  • (C) द्वन्द्व
  • (D) अव्ययीभाव
Correct Answer: (D) अव्ययीभाव
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Step 1: Understanding the word 'प्रत्येकः'.

'प्रत्येकः' शब्द का अर्थ है — 'हर एक' या 'प्रत्येक व्यक्ति'। यह शब्द अव्ययीभाव समास से बना है।


Step 2: Rule of अव्ययीभाव समास.

जब अव्यय शब्द प्रधान होता है और उसके साथ संज्ञा या अन्य पद जुड़कर नया अर्थ प्रकट करता है, तब अव्ययीभाव समास बनता है।

यहाँ 'प्रति' (अव्यय) + 'एकः' → 'प्रत्येकः' हुआ।


Step 3: Option Analysis.

- (A) तत्पुरुष → यहाँ कारक संबंध नहीं है।

- (B) कर्मधारय → विशेषण-विशेष्य भाव नहीं है।

- (C) द्वन्द्व → दो शब्दों का समान रूप से प्रयोग नहीं।

- (D) अव्ययीभाव → सही उत्तर।


इसलिए सही उत्तर है (D) अव्ययीभाव।
Quick Tip: 'प्रति + एकः' से बना 'प्रत्येकः' अव्ययीभाव समास का उदाहरण है।


Question 60:

'सज्जन' में समास है :

  • (A) अव्ययीभाव
  • (B) कर्मधारय
  • (C) बहुव्रीहि
  • (D) द्विगु
Correct Answer: (B) कर्मधारय
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Step 1: Understanding the word 'सज्जन'.

'सज्जन' शब्द का अर्थ है — 'भला आदमी' या 'सद्गुणों वाला व्यक्ति'।


Step 2: Rule of कर्मधारय समास.

कर्मधारय समास में विशेषण और संज्ञा मिलकर एक ही व्यक्ति या वस्तु का द्योतक होते हैं।

यहाँ 'सत्' (भला) + 'जन' (व्यक्ति) = 'सज्जन'।


Step 3: Option Analysis.

- (A) अव्ययीभाव → यहाँ अव्यय का प्रयोग नहीं।

- (B) कर्मधारय → सही उत्तर, 'सत्' विशेषण और 'जन' विशेष्य है।

- (C) बहुव्रीहि → यह किसी अन्य का बोध कराता है, यहाँ उपयुक्त नहीं।

- (D) द्विगु → यहाँ संख्यावाचक पद नहीं है।


इसलिए सही उत्तर है (B) कर्मधारय।
Quick Tip: 'सत् + जन = सज्जन' कर्मधारय समास का उदाहरण है, जिसमें विशेषण और विशेष्य का मेल होता है।


Question 61:

'आत्मनि' रूप है 'आत्मन्' शब्द का :

  • (A) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन
  • (B) चतुर्थी विभक्ति, द्विवचन
  • (C) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन
  • (D) सप्तमी विभक्ति, एकवचन
Correct Answer: (D) सप्तमी विभक्ति, एकवचन
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Step 1: Understanding the word 'आत्मनि'.

'आत्मनि' शब्द 'आत्मन्' (Self) का रूप है। इसका अर्थ होता है — 'आत्मा में'।


Step 2: Applying rules of declension.

'आत्मन्' शब्द पुल्लिंग है और 'न्' अंत शब्दों का सप्तमी एकवचन रूप 'नि' पर समाप्त होता है। इसीलिए 'आत्मन्' + सप्तमी एकवचन = 'आत्मनि'।


Step 3: Option Analysis.

- (A) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन → 'आत्मन्' का रूप 'आत्मानः' होगा।

- (B) चतुर्थी विभक्ति, द्विवचन → इसका रूप 'आत्मभ्याम्' होता है।

- (C) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन → इसका रूप 'आत्मसु' होता है।

- (D) सप्तमी विभक्ति, एकवचन → सही उत्तर, 'आत्मनि'।


इसलिए सही उत्तर है (D) सप्तमी विभक्ति, एकवचन।
Quick Tip: 'न्' अंत शब्दों का सप्तमी एकवचन रूप सामान्यतः 'नि' पर समाप्त होता है, जैसे — 'आत्मनि'।


Question 62:

'नाम्ने' रूप है 'नामन्' शब्द का :

  • (A) चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन
  • (B) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन
  • (C) पञ्चमी विभक्ति, बहुवचन
  • (D) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन
Correct Answer: (D) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन
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Step 1: Understanding the word 'नाम्ने'.

'नाम्ने' शब्द 'नामन्' (Name) का रूप है। इसका अर्थ होता है — 'नाम के लिए'।


Step 2: Applying rules of declension.

'न्' अंत शब्दों का चतुर्थी एकवचन रूप 'ने' पर समाप्त होता है। इसीलिए 'नामन्' + चतुर्थी एकवचन = 'नाम्ने'।


Step 3: Option Analysis.

- (A) चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन → 'नामभ्यः' होगा।

- (B) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन → 'नामनी' होगा।

- (C) पञ्चमी विभक्ति, बहुवचन → 'नामभ्यः' होगा।

- (D) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन → सही उत्तर, 'नाम्ने'।


इसलिए सही उत्तर है (D) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन।
Quick Tip: 'न्' अंत शब्दों का चतुर्थी एकवचन रूप 'ने' पर समाप्त होता है, जैसे — 'नाम्ने'।


Question 63:

‘तिष्ठेत्’ अथवा ‘नयतम्’ शब्द किस धातु, लकार, पुरुष एवं वचन का रूप है ?

Correct Answer:
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1. ‘तिष्ठेत्’ शब्द का विश्लेषण :

- धातु : स्था धातु (√स्था — ठहरना, खड़ा होना)

- लकार : विधिलिङ् लकार (संभावना या आदेश का बोध कराता है)

- पुरुष : प्रथम पुरुष

- वचन : एकवचन

अर्थ : वह ठहरे / ठहर सकता है।



2. ‘नयतम्’ शब्द का विश्लेषण :

- धातु : नी धातु (√नी — ले जाना, संचालित करना)

- लकार : लोट् लकार (आदेश का बोध कराता है)

- पुरुष : मध्यम पुरुष

- वचन : द्विवचन

अर्थ : तुम दोनों ले जाओ।



निष्कर्ष :

‘तिष्ठेत्’ — √स्था धातु, विधिलिङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।

‘नयतम्’ — √नी धातु, लोट् लकार, मध्यम पुरुष, द्विवचन।
Quick Tip: संस्कृत रूपों की पहचान करते समय — पहले धातु (मूल क्रिया), फिर लकार (काल/भाव), उसके बाद पुरुष और वचन को क्रम से देखें।


Question 64:

'नीत्वा' शब्द में प्रत्यय है :

  • (A) क्त्वा
  • (B) क्ता
  • (C) त्व
  • (D) त्यत्
Correct Answer: (A) क्त्वा
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Step 1: Understanding the word 'नीत्वा'.

'नीत्वा' शब्द 'नी' धातु से बना है। इसका अर्थ होता है — 'ले जाकर'।


Step 2: Applying suffix rules.

'नी' धातु में 'क्त्वा' प्रत्यय लगाने से 'नीत्वा' रूप बनता है। यह तुंग-प्रत्यय (absolutive) कहलाता है।


Step 3: Option Analysis.

- (A) क्त्वा → सही उत्तर।

- (B) क्ता → इससे 'नीतः' जैसे रूप बनते हैं।

- (C) त्व → इससे 'लघुत्व' जैसे रूप बनते हैं।

- (D) त्यत् → यहाँ उपयुक्त नहीं।


इसलिए सही उत्तर है (A) क्त्वा।
Quick Tip: संस्कृत में 'क्त्वा' प्रत्यय धातु में लगकर 'करके' या 'के बाद' अर्थ देता है, जैसे — 'नीत्वा'।


Question 65:

'लघुत्वम्' शब्द में प्रत्यय है :

  • (A) त्व
  • (B) तल
  • (C) क्त्वा
  • (D) क्त
Correct Answer: (A) त्व
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Step 1: Understanding the word 'लघुत्वम्'.

'लघुत्वम्' शब्द 'लघु' (छोटा, हल्का) से बना है। इसका अर्थ होता है — 'लघुता' या 'हल्कापन'।


Step 2: Applying suffix rules.

'लघु' शब्द में 'त्व' प्रत्यय जोड़ने से 'लघुत्वम्' शब्द बनता है। यह भाववाचक संज्ञा है।


Step 3: Option Analysis.

- (A) त्व → सही उत्तर, क्योंकि 'लघु' + 'त्व' = 'लघुत्वम्'।

- (B) तल → यह तद्धित प्रत्यय है, पर यहाँ प्रयोग नहीं हुआ।

- (C) क्त्वा → यह 'नीत्वा' जैसे शब्दों में आता है, न कि 'लघुत्वम्' में।

- (D) क्त → इससे 'कृत' या 'गमित' जैसे रूप बनते हैं।


इसलिए सही उत्तर है (A) त्व।
Quick Tip: 'त्व' प्रत्यय संज्ञा शब्दों में लगकर भाववाचक संज्ञाएँ बनाता है, जैसे — 'लघुत्वम्', 'मृतत्वम्'।


Question 66:

रेखांकित पदों में से किसी एक पद में विभक्ति तथा सम्बन्धित नियम का उल्लेख कीजिए:

  • (i) पुत्री मात्रा सह आपणं गच्छति।
  • (ii) भिक्षुकः पादेन खञ्जः अस्ति।
  • (iii) नमः व्यासाय।
Correct Answer:
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(i) पुत्री:

विभक्ति – प्रथमा विभक्ति, एकवचन।

नियम – कर्ता को प्रथमा विभक्ति में प्रयोग किया जाता है। यहाँ “पुत्री” कर्ता है।


(ii) पादेन:

विभक्ति – तृतीया विभक्ति, एकवचन।

नियम – करण कारक के लिए तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। यहाँ “पादेन” से चलना सूचित है।


(iii) व्यासाय:

विभक्ति – चतुर्थी विभक्ति, एकवचन।

नियम – सम्प्रदान कारक के लिए चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है। यहाँ “व्यासाय” को नमस्कार अर्पित है। Quick Tip: संस्कृत वाक्यों में विभक्ति की पहचान कारक (कर्तृ, कर्म, करण, सम्प्रदान आदि) देखकर करें।


Question 67:

निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए:

(क) वे श्याम को पुस्तक देते हैं।
(ख) वह मोक्ष के लिए भगवान को भजता है।
(ग) हम दोनों विद्यालय जा रहे हैं।
(घ) राम श्याम के साथ घर जा रहा है।

Correct Answer:
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(क) ते श्यामाय पुस्तकम् ददति।


(ख) सः मोक्षाय भगवन्तम् भजति।


(ग) आवां विद्यालयं गच्छावः।


(घ) रामः श्यामेन सह गृहम् गच्छति। Quick Tip: संस्कृत अनुवाद करते समय कर्ता, कर्म और कारक के अनुसार सही विभक्ति और क्रिया का रूप लगाएँ।

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