UP Board Class 12 Hindi General Question Paper with Answer Key Code 302 ZN is available for download. The exam was conducted by the Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad (UPMSP) on February 16, 2023 in Afternoon Session 2 PM to 5:15 PM. The medium of paper was Hindi. In terms of difficulty level, UP Board Class 12 Hindi General paper was Easy. The question paper comprised a total of 14 questions.
UP Board Class 12 Hindi General (Code 302 ZN) Question Paper with Answer Key (February 16)
| UP Board Class 12 Hindi General (Code 302 ZN) Question Paper with Solutions PDF | Download PDF | Check Solutions |

'अष्टयाम' कृति के लेखक हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'अष्टयाम' कृति के लेखक गोकुलनाथ हैं। यह काव्य रचना भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानी जाती है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) गोकुलनाथ → सही उत्तर, गोकुलनाथ ने 'अष्टयाम' कृति लिखी।
- (B) वितठलनाथ → यह गलत है, वितठलनाथ ने इस कृति को नहीं लिखा।
- (C) नामदास → यह गलत है, नामदास का इस कृति से कोई संबंध नहीं है।
- (D) प्रियदास → यह भी गलत है, प्रियदास ने 'अष्टयाम' कृति को नहीं लिखा।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) गोकुलनाथ।
Quick Tip: 'अष्टयाम' काव्य की रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण के साथ जुड़े भक्ति भाव को प्रमुख रूप से व्यक्त किया गया है।
धर्मवीर भारती द्वारा लिखित उपन्यास है:
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Step 1: Understanding the context.
धर्मवीर भारती का प्रसिद्ध उपन्यास 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' है, जो सामाजिक और मानसिक संघर्षों का चित्रण करता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'परंतु' → यह गलत है, 'परंतु' धर्मवीर भारती का उपन्यास नहीं है।
- (B) 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' → सही उत्तर, यह उपन्यास धर्मवीर भारती का है।
- (C) 'मुक्तिबोध' → यह गलत है, 'मुक्तिबोध' एक कवि और लेखक थे, इस उपन्यास से उनका कोई संबंध नहीं है।
- (D) 'नदी के दीप' → यह भी गलत है, 'नदी के दीप' धर्मवीर भारती का उपन्यास नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'सूरज का सातवाँ घोड़ा'।
Quick Tip: 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' उपन्यास में धर्मवीर भारती ने मानसिक और सामाजिक संघर्षों को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया है।
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित नाटक नहीं है:
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Step 1: Understanding the context.
जयशंकर प्रसाद ने 'करणालय', 'कल्याणी परिणय', और 'सजनन' जैसे नाटक लिखे हैं, लेकिन 'भारत सौभाग्य' उनके द्वारा लिखित नाटक नहीं है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'करणालय' → यह सही है, यह जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखा गया नाटक है।
- (B) 'कल्याणी परिणय' → यह भी सही है, यह जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखा गया नाटक है।
- (C) 'सजनन' → यह भी सही है, यह नाटक भी जयशंकर प्रसाद का है।
- (D) 'भारत सौभाग्य' → सही उत्तर, यह नाटक जयशंकर प्रसाद द्वारा नहीं लिखा गया है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (D) 'भारत सौभाग्य'।
Quick Tip: जयशंकर प्रसाद हिंदी नाटक के महान लेखक हैं, जिन्होंने 'करणालय', 'कल्याणी परिणय' और 'सजनन' जैसे प्रसिद्ध नाटक लिखे हैं।
इनमें से 'आत्मकथा' विधा की रचना है:
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Step 1: Understanding the context.
'अजय की डायरी' एक आत्मकथा विधा की रचना है, जिसमें लेखक ने अपनी व्यक्तिगत यात्रा और अनुभवों को लिखा है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'अर्थदर्शन' → यह गलत है, 'अर्थदर्शन' कोई आत्मकथा नहीं है।
- (B) 'पर्ति परिक्षा' → यह भी गलत है, यह आत्मकथा विधा से संबंधित नहीं है।
- (C) 'आवारा मसीहा' → यह गलत है, यह भी आत्मकथा नहीं है।
- (D) 'अजय की डायरी' → सही उत्तर, यह एक आत्मकथा है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (D) 'अजय की डायरी'।
Quick Tip: आत्मकथा वह रचना होती है जिसमें लेखक अपनी जीवन यात्रा और अनुभवों का विवरण देता है।
यात्रावृत-संबंधी काव्यकृति 'अरे यात्री! रहेगा याद' के लेखक हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'अरे यात्री! रहेगा याद' काव्यकृति के लेखक हरिशंकर परसाई हैं, जो यात्रा और समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करते हैं।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'केदारनाथ अग्रवाल' → यह गलत है, केदारनाथ अग्रवाल का इस काव्यकृति से कोई संबंध नहीं है।
- (B) 'मोहन राकेश' → यह गलत है, मोहन राकेश का इस काव्यकृति से कोई संबंध नहीं है।
- (C) 'सत्यनारायण हीरानंद वात्स्यायन 'अजन्य'' → यह गलत है, यह काव्यकृति 'अरे यात्री! रहेगा याद' से संबंधित नहीं है।
- (D) 'हरिशंकर परसाई' → सही उत्तर, हरिशंकर परसाई ने 'अरे यात्री! रहेगा याद' काव्यकृति लिखी है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (D) 'हरिशंकर परसाई'।
Quick Tip: हरिशंकर परसाई ने यात्रा और समाज के विभिन्न पहलुओं पर अपनी काव्य रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।
इनमें से किस काव्यकृति पर 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार मिला है?
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Step 1: Understanding the context.
'कितनी नावों में कितनी बार' काव्यकृति पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है, यह काव्य रचना हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'लोकायतन' → यह गलत है, इस काव्यकृति पर ज्ञानपीठ पुरस्कार नहीं मिला।
- (B) 'अणिनेखा' → यह गलत है, इस काव्यकृति को ज्ञानपीठ पुरस्कार नहीं मिला।
- (C) 'कितनी नावों में कितनी बार' → सही उत्तर, इस काव्यकृति को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है।
- (D) 'रत्नावली' → यह गलत है, 'रत्नावली' को ज्ञानपीठ पुरस्कार नहीं मिला।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) 'कितनी नावों में कितनी बार'।
Quick Tip: ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक है, जो प्रत्येक वर्ष एक उत्कृष्ट साहित्यकार को प्रदान किया जाता है।
'तीसरा सप्तक' का प्रकाशन वर्ष है:
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Step 1: Understanding the context.
'तीसरा सप्तक' काव्यकृति का प्रकाशन वर्ष 1959 है। यह काव्य भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण काव्य संग्रह के रूप में माना जाता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) सन 1957 → यह गलत है, 'तीसरा सप्तक' 1957 में प्रकाशित नहीं हुआ था।
- (B) सन 1959 → सही उत्तर, 'तीसरा सप्तक' 1959 में प्रकाशित हुआ।
- (C) सन 1960 → यह गलत है, इस काव्यकृति का प्रकाशन वर्ष 1960 नहीं था।
- (D) सन 1961 → यह गलत है, 'तीसरा सप्तक' का प्रकाशन 1961 में नहीं हुआ था।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) सन 1959।
Quick Tip: 'तीसरा सप्तक' कविता के आधुनिक कवियों की प्रतिनिधि काव्यकृति मानी जाती है।
'कला और बूढ़ा चाँद' काव्यकृति के रचयिता हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'कला और बूढ़ा चाँद' काव्यकृति के रचयिता शिवमंगल सिंह 'सुमन' हैं। यह काव्य रचना हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) सुमित्रानंदन पंत → यह गलत है, 'कला और बूढ़ा चाँद' का रचनाकार सुमित्रानंदन पंत नहीं हैं।
- (B) शिवमंगल सिंह 'सुमन' → सही उत्तर, 'कला और बूढ़ा चाँद' के रचनाकार शिवमंगल सिंह 'सुमन' हैं।
- (C) सुदामा प्रसाद पांडेय 'धूमिल' → यह गलत है, 'धूमिल' का इस काव्यकृति से कोई संबंध नहीं है।
- (D) रामधारी सिंह 'दिनकर' → यह भी गलत है, रामधारी सिंह 'दिनकर' ने यह काव्य रचना नहीं की।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) शिवमंगल सिंह 'सुमन'।
Quick Tip: 'कला और बूढ़ा चाँद' काव्यकृति में शिवमंगल सिंह 'सुमन' ने समाज और संस्कृति की गहरी समीक्षा की है।
किस महाकाव्यात्मक कृति में बारह सरग हैं?
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Step 1: Understanding the context.
'कामायनी' महाकाव्य में बारह सरग होते हैं। यह काव्य रचनात्मक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'कामायनी' → सही उत्तर, इसमें बारह सरग होते हैं।
- (B) 'प्रियप्रवास' → यह गलत है, इसमें बारह सरग नहीं होते।
- (C) 'साकेत' → यह गलत है, इसमें भी बारह सरग नहीं होते।
- (D) 'वेदही वनवास' → यह गलत है, इस काव्य में बारह सरग नहीं होते।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'कामायनी'।
Quick Tip: 'कामायनी' महाकाव्य में मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का दर्शन कराया गया है, जिसमें बारह सरगों का विशेष स्थान है।
'छायावाद' की प्रमुख विशेषता है:
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Step 1: Understanding the context.
'छायावाद' साहित्य में शृंगार रस की प्रधानता होती है। यह प्रवृत्ति भावनाओं, कल्पनाओं, और सौंदर्य के प्रति गहरी अभिव्यक्ति की तलाश करती है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'इतिवृतात्मकता' → यह गलत है, छायावाद का मुख्य उद्देश्य इतिवृतात्मकता नहीं था।
- (B) 'शृंगार रस की प्रधानता' → सही उत्तर, छायावाद में शृंगार रस प्रमुख होता है।
- (C) 'युद्धों का सजीव वर्णन' → यह गलत है, छायावाद में युद्धों का वर्णन मुख्य नहीं होता।
- (D) 'स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह' → यह भी गलत है, छायावाद के मुख्य गुण में सूक्ष्म विद्रोह नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'शृंगार रस की प्रधानता'।
Quick Tip: 'छायावाद' में शृंगार रस का उपयोग विशेष रूप से प्रकृति, प्रेम और सौंदर्य के संदर्भ में किया जाता है।
दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
अशोक वृक्ष की पूजा इन्हीं गणधर्वों और ऋषियों की देन है। प्राचीन साहित्य में इस वृक्ष की पूजा के उत्सवों का बड़ा सरस वर्णन मिलता है। असल पूजा अशोक की नहीं, बल्कि उसके अधिष्ठाता कंदर्प-देवता की होती थी। इसे 'मदनोत्सव' कहते थे। महाराज भोज के 'सरस्वती कंठभरण' से जान पड़ता है कि यह उत्सव त्रयोदशी के दिन होता था। 'मालविकाग्निमि' और 'रत्नावली' में इस उत्सव का बड़ा सरस मनोरम वर्णन मिलता है। मैं जब अशोक के लाल स्तकों को देखता हूँ तो मुझे वह पुराना वातावरण स्पष्ट दिखाई दे जाता है। राजधाराओं में साधारणता: रानी ही अपने सन्नुपर चरणों के आधार से इस रहस्यमय वृक्ष को पुंष्टि किया करती थी।
Question 11:
उपयुक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
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Step 1: गद्यांश की पहचान।
इस गद्यांश में अशोक के वृक्ष की पूजा का उल्लेख करते हुए सभ्यता और संस्कृति के विकास तथा उनके पतन का वर्णन किया गया है।
यहाँ यह बताया गया है कि किसी भी सभ्यता की चमक-दमक और वैभव सामान्य प्रजा के श्रम और बलिदान पर आधारित होती है।
लेकिन समय के साथ उसका वैभव नष्ट हो जाता है और इतिहास की धूमधाम मिट जाती है।
Step 2: पाठ की पहचान।
यह गद्यांश 'अशोक वृक्ष की पूजा' नामक पाठ से लिया गया है।
इसमें सभ्यता, संस्कृति और जन-जीवन के आपसी संबंधों पर प्रकाश डाला गया है।
Step 3: लेखक की पहचान।
इस पाठ के लेखक 'महादेवी वर्मा' हैं।
वे हिंदी साहित्य की प्रमुख लेखिका और छायावादी युग की स्तंभ कवयित्री मानी जाती हैं।
उन्होंने गद्य और पद्य दोनों में भारतीय संस्कृति और समाज की गहरी व्याख्या की है।
Step 4: निष्कर्ष।
अतः इस गद्यांश का पाठ 'अशोक वृक्ष की पूजा' है और इसके लेखक 'महादेवी वर्मा' हैं।
Quick Tip: लेखक की पहचान करने के लिए गद्यांश की विषयवस्तु (जैसे सभ्यता, संस्कृति, श्रम, वैभव और पतन) पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
अशोक वृक्ष की पूजा किसकी दिन है?
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Step 1: गद्यांश में उल्लेख।
इस गद्यांश में उल्लेख है कि अशोक वृक्ष की पूजा प्राचीन काल में विशेष दिन पर की जाती थी, जिसे 'मदनोत्सव' कहा जाता था।
यह दिन राजा भोज के 'सप्तमी' के रूप में मनाया जाता था।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः अशोक वृक्ष की पूजा राजा भोज के 'सप्तमी' के दिन की जाती थी।
Quick Tip: गद्यांश में दिए गए ऐतिहासिक संदर्भों को पहचानने के लिए, उस समय की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं पर ध्यान देना चाहिए।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश की पहचान।
रेखांकित अंश में अशोक वृक्ष की पूजा और उसके सामाजिक और धार्मिक महत्व पर चर्चा की गई है।
इस अंश में यह बताया गया है कि यह पूजा किसी विशेष दिन होती थी और यह अत्यधिक धार्मिकता और सम्मान से जुड़ी हुई थी।
Step 2: निष्कर्ष।
इस अंश की व्याख्या से यह स्पष्ट होता है कि अशोक वृक्ष की पूजा प्राचीन भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण धार्मिक कृत्य था।
Quick Tip: गद्यांश की व्याख्या करते समय, शब्दों के भीतर निहित ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों पर ध्यान देना चाहिए।
अशोक वृक्ष को कौन पुष्पित किया करती थी?
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Step 1: गद्यांश में उल्लेख।
इस गद्यांश में यह उल्लेख किया गया है कि अशोक वृक्ष को पुष्पित करने का कार्य राजा भोज की पत्नी 'मालविकि' करती थी।
उनका यह कार्य सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः अशोक वृक्ष को पुष्पित करने का कार्य राजा भोज की पत्नी 'मालविकि' करती थी।
Quick Tip: गद्यांश में दिए गए पात्रों और उनके कार्यों को पहचानने के लिए, उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ पर ध्यान दें।
'अधिष्ठाता' और 'स्तुतक' शब्दों का अर्थ लिखिए।
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Step 1: शब्दों का अर्थ।
- 'अधिष्ठाता' शब्द का अर्थ होता है 'शासन करने वाला' या 'प्रभारी'। यह किसी भी कार्य, स्थान, या क्षेत्र के नियंत्रण और प्रबंधन को दर्शाता है।
- 'स्तुतक' शब्द का अर्थ होता है 'प्रशंसा करने वाला' या 'सराहना करने वाला'। यह किसी की अच्छाई या गुणों की सराहना करने के लिए उपयोग किया जाता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'अधिष्ठाता' का अर्थ है 'प्रभारी' और 'स्तुतक' का अर्थ है 'प्रशंसा करने वाला'।
Quick Tip: शब्दों के अर्थ को समझते समय, उनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
अथवा
नये शब्द, नये मुहावरे एवं नयी रीतिों के प्रयोगों से युक्त भाषा को व्यावहारिकता प्रदान करना ही भाषा में आधुनिकता लाना है। दूसरे शब्दों में केवल आधुनिक युगीन विचारधाराओं के अनुरूप नये शब्दों के जोड़ने मात्र से ही भाषा का विकास नहीं होता; वरन नये पारिभाषिक शब्दों की एवं नूतन शैलि-प्रणालियों के व्यवहार में लाना ही भाषा को आधुनिकता प्रदान करना है; क्योंकि व्यावहारिकता ही भाषा का प्राणतत्व है। नये शब्द और नये प्रयोगों को पाठ्यपुस्तकों से लेकर साहित्यिक पुस्तकों तक एवं शिक्षित व्यक्तियों से लेकर अशिक्षित व्यक्तियों तक के सभी कार्यकलापों में प्रयोगित होना आवश्यक है। इस प्रकार हम अपनी भाषा को अपने जीवन की सभी आवश्यकताओं के लिए जब प्रयुक्त कर सकेंगे तब भाषा में अपनी आधुनिकता आ जाएगी।
Question 16:
उपयुक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
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Step 1: गद्यांश की पहचान।
इस गद्यांश में आधुनिक भाषा के विकास और उसके प्रयोगों का वर्णन किया गया है।
यहाँ यह बताया गया है कि भाषा का विकास तभी संभव है जब उसमें नये शब्द और नये प्रयोग जोड़े जाएं।
नये शब्द और नये प्रयोग किसी भी भाषा को आधुनिक बनाने में मदद करते हैं।
Step 2: पाठ की पहचान।
यह गद्यांश 'आधुनिक भाषा' नामक पाठ से लिया गया है।
इसमें भाषा के विकास और उसके प्रयोगों पर चर्चा की गई है।
Step 3: लेखक की पहचान।
इस पाठ के लेखक 'महादेवी वर्मा' हैं।
वे हिंदी साहित्य की प्रमुख लेखिका और छायावादी युग की स्तंभ कवयित्री मानी जाती हैं।
उन्होंने गद्य और पद्य दोनों में भारतीय संस्कृति और समाज की गहरी व्याख्या की है।
Step 4: निष्कर्ष।
अतः इस गद्यांश का पाठ 'आधुनिक भाषा' है और इसके लेखक 'महादेवी वर्मा' हैं।
Quick Tip: लेखक की पहचान करने के लिए गद्यांश की विषयवस्तु (जैसे नये शब्द, आधुनिकता, भाषा का विकास) पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
भाषा में आधुनिकता कैसे आती है?
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Step 1: भाषा में आधुनिकता का महत्व।
भाषा में आधुनिकता तब आती है जब उसमें नये शब्द, नये प्रयोग और नए विचार जुड़ते हैं।
जब भाषा किसी समाज के विकास, विज्ञान, तकनीकी और सांस्कृतिक बदलाव को व्यक्त करती है, तो वह आधुनिक होती है।
Step 2: नये शब्द और प्रयोग।
नये शब्दों का प्रयोग और पुराने शब्दों का नये अर्थ में प्रयोग भाषा को अद्यतन और जीवंत बनाता है।
नये प्रयोगों और शब्दों का समावेश भाषा के विकास को सुनिश्चित करता है।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार, जब कोई भाषा समाज के विकास से जुड़ी रहती है और उसमें नये शब्दों और प्रयोगों का समावेश होता है, तो वह आधुनिक बन जाती है।
Quick Tip: भाषा में आधुनिकता लाने के लिए उसके उपयोग में नये शब्दों और प्रयोगों को शामिल करना आवश्यक है।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश का अध्ययन।
रेखांकित अंश में भाषा के विकास की बात की गई है, जिसमें नये शब्दों और प्रयोगों के समावेश से भाषा को अद्यतन और आधुनिक बनाया जाता है।
Step 2: व्याख्या।
इस अंश में यह स्पष्ट किया गया है कि जब एक भाषा में नये शब्द और नये प्रयोग जोड़े जाते हैं, तो वह भाषा विकसित होती है और समाज के साथ प्रगति करती है।
यह विचार दर्शाता है कि भाषा का संबंध केवल शब्दों से नहीं, बल्कि समाज के विकास और उसकी आवश्यकताओं से भी है।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार, रेखांकित अंश में यह दर्शाया गया है कि भाषा का विकास समाज के साथ होता है और उसमें समय-समय पर बदलाव आवश्यक होते हैं।
Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय अंश के मुख्य विचारों को समझना और उसे व्यापक संदर्भ में देखना जरूरी है।
भाषा का प्राणत्त्व क्या है?
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Step 1: प्राणत्त्व की परिभाषा।
भाषा का प्राणत्त्व उसके जीवंतता में होता है। जब भाषा समाज के विचारों, भावनाओं, और अनुभवों को व्यक्त करती है, तो वह जीवित रहती है।
प्राणत्त्व से अभिप्राय है कि भाषा समय के साथ बदलती है और समाज की आवश्यकताओं के अनुसार उसमें नये शब्द और प्रयोग जुड़ते हैं।
Step 2: प्राणत्त्व के लक्षण।
भाषा तभी प्राणवान होती है जब उसमें नयापन, सक्रियता और समाज के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध होते हैं।
जब कोई भाषा प्रयोग में रहती है और समाज के संवाद की मुख्य कड़ी बनती है, तो उसका प्राणत्त्व कायम रहता है।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार, भाषा का प्राणत्त्व तभी होता है जब वह समाज की सोच और अनुभवों का सही रूप से संप्रेषण करती है।
Quick Tip: भाषा का प्राणत्त्व उसके द्वारा व्यक्त किए जाने वाले विचारों और संवेदनाओं में है।
'नूतन' तथा 'कार्यकलाप' शब्दों का अर्थ लिखिए।
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Step 1: 'नूतन' शब्द का अर्थ।
'नूतन' का अर्थ है नया, जो पहले न हो, जो नया रूप या नया विचार लेकर आता हो।
यह शब्द किसी चीज़, वस्तु या विचार के नवीनता को व्यक्त करता है।
Step 2: 'कार्यकलाप' शब्द का अर्थ।
'कार्यकलाप' का अर्थ है कार्यों का संचालन या क्रियाकलाप। यह शब्द किसी विशेष कार्य या क्रिया के पूरे करने के प्रक्रिया को व्यक्त करता है।
'कार्यकलाप' में किसी कार्य को अंजाम देने के सभी कदम और कार्यशीलता शामिल होती है।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार, 'नूतन' का अर्थ नया और 'कार्यकलाप' का अर्थ कार्यों के आयोजन और संचालन से है।
Quick Tip: 'नूतन' और 'कार्यकलाप' शब्दों का अर्थ समझने के लिए उनके संदर्भ पर ध्यान देना आवश्यक है।
दिये गये पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
'कौन हो तुम वसंत के दूत
बिरस पद्मझड़ में अति सुकुमार;
धन तिमिर में चपला की रेख
तपन में शीतल मनद् बयार!'
लगा कहने आगन्तुक व्यक्तिः
मिटाता ऊँचंता सविश;
दे रहा हो कोलिकल सानन्द
सुमन को ज्यो मध्यम सन्देश -
Question 21:
उपयुक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए।
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Step 1: पद्यांश की पहचान।
यह पद्यांश किसी प्रकृति चित्रण के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं का सुंदर रूप में वर्णन किया गया है।
इसमें प्रकृति के शीतल, तप्त, और चंचल रूपों को दर्शाया गया है।
Step 2: संदर्भ का विवरण।
यह पद्यांश प्रकृति की विविधता और उसके प्रभावों को दिखाता है, जैसे गर्मी, शीतलता और फिजा का परिवर्तनशील स्वभाव।
साथ ही इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं की सुंदरता और लय को व्यक्त किया गया है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यह पद्यांश प्रकृति की विविधता को दर्शाने वाला है, जिसमें जीवन की घटनाओं और भावनाओं को सामंजस्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
Quick Tip: पद्यांश में प्रकृति का चित्रण करते समय, उसके विभिन्न रूपों (जैसे तपन, शीतलता, चंचलता) को ध्यान में रखते हुए उनकी वास्तविकता को समझने की कोशिश करें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश का संदर्भ।
इस अंश में प्रकृति के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है, जिसमें ताप, शीतलता और चंचलता के प्रभाव को दिखाया गया है।
यह अंश जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को दर्शाता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः रेखांकित अंश का उद्देश्य प्रकृति की विविधता और उसके प्रभावों को व्यक्त करना है।
Quick Tip: पद्यांश की व्याख्या करते समय, प्रकृति के विभिन्न रूपों का ध्यानपूर्वक विश्लेषण करें।
इस पद्यांश में किस-किस के बीच संवाद हो रहा है?
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Step 1: संवाद की पहचान।
इस पद्यांश में प्रकृति के विभिन्न रूपों के बीच संवाद हो रहा है, जैसे तपन और शीतलता, तथा चंचलता और स्थिरता के बीच।
यह संवाद इन विभिन्न तत्वों की आपसी प्रतिक्रिया और संबंध को दर्शाता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः इस पद्यांश में संवाद प्रकृति के विभिन्न तत्वों के बीच हो रहा है।
Quick Tip: पद्यांश में संवाद की पहचान करते समय, उन तत्वों को देखें जो आपस में किसी प्रकार की प्रतिक्रिया या संवाद में सम्मिलित होते हैं।
'चपल' तथा 'उत्कंठा' शब्दों का अर्थ लिखिए।
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Step 1: शब्दों का अर्थ।
- 'चपल' शब्द का अर्थ होता है 'चंचल' या 'हल्का और अप्रत्याशित'। यह किसी चीज या व्यक्ति की गतिशीलता या तीव्रता को दर्शाता है।
- 'उत्कंठा' शब्द का अर्थ होता है 'व्यग्रता' या 'उत्तेजना'। यह किसी स्थिति या व्यक्ति की तीव्र इच्छा या उम्मीद को व्यक्त करता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'चपल' का अर्थ है 'चंचल' और 'उत्कंठा' का अर्थ है 'व्यग्रता'।
Quick Tip: शब्दों के अर्थ को पहचानने के लिए, उनके संदर्भ और उनकी प्रयुक्ति पर ध्यान देना चाहिए।
'आगंतुक व्यक्तित्व' से किसी और संकेत किया गया है?
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Step 1: आगंतुक व्यक्तित्व का विश्लेषण।
'आगंतुक व्यक्तित्व' से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो किसी अन्य व्यक्ति या स्थिति के प्रति संवेदनशीलता और तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।
यह कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो अचानक किसी स्थिति में आकर उसे प्रभावित करता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'आगंतुक व्यक्तित्व' से किसी अप्रत्याशित या बाहरी व्यक्ति के संकेत किया गया है।
Quick Tip: 'आगंतुक व्यक्तित्व' शब्द का उपयोग किसी बाहरी प्रभाव या अप्रत्याशित परिवर्तन के लिए किया जा सकता है।
अथवा
छायाएँ मानव-जन की दिशाहीन
सब और पड़ी - वह सूरज
नहीं उगा था पूर्व में,
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के;
काल- सूर्य के रथ के
पाहियों के ज्यो अरे टूटकर
बिखर गये हों दसो दिशा में!
कुछ क्षण का वह उदय अस्त!
केवल एक प्रतिबिंब क्षण की
इष्ट सोच लेनेवाली टोपीरी।
Question 26:
उपयुक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए।
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Step 1: पद्यांश की पहचान।
यह पद्यांश किसी कविता का अंश है जिसमें प्रकृति, समय और जीवन के कुछ गहरे पहलुओं का चित्रण किया गया है।
यहां जीवन के निरर्थक प्रयासों और प्रकृति के अवसादपूर्ण प्रभावों को व्यक्त किया गया है।
Step 2: संदर्भ का विवरण।
यह पद्यांश जीवन के व्यर्थ संघर्षों और अंतहीन प्रयासों को दिखाता है। यहाँ सूरज के उगने और अस्त होने की प्रक्रिया को एक चक्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो जीवन के अनवरत संघर्षों को प्रतीकित करता है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यह पद्यांश जीवन की निरंतरता और उसके संघर्ष को दर्शाने वाला है।
Quick Tip: पद्यांश का संदर्भ समझते समय, जीवन के संघर्षों और समय के चक्र को पहचानने की कोशिश करें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश का अर्थ।
इस अंश में समय, जीवन, और प्रकृति के अस्तित्व के विविध पहलुओं का चित्रण किया गया है। यह जीवन के निरंतर संघर्ष, समय के चक्र, और प्रकृति के प्रभाव को दर्शाता है।
यहाँ सूर्य के उगने और अस्त होने को जीवन की निरंतरता और संघर्ष के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः रेखांकित अंश का उद्देश्य जीवन के निरंतर संघर्ष और समय के चक्र को व्यक्त करना है।
Quick Tip: पद्यांश की व्याख्या करते समय, जीवन और समय के चक्र के साथ प्रकृति के प्रभावों को समझना आवश्यक है।
'काल- सूर्य के रथ के इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
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Step 1: अलंकार की पहचान।
इस पंक्ति में 'काल- सूर्य के रथ' शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो 'रथ' को सूर्य के प्रतीक के रूप में दिखाता है। यह एक 'रूपक अलंकार' है।
यहाँ सूर्य को एक रथ पर सवार होने के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो समय के प्रवाह को प्रतीकित करता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः इस पंक्ति में 'रूपक अलंकार' का प्रयोग किया गया है।
Quick Tip: रूपक अलंकार का प्रयोग किसी वस्तु या विचार को दूसरे वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है।
दस दिशाएँ कौन-कौन सी हैं?
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Step 1: दिशाओं की पहचान।
इस पंक्ति में 'दस दिशाएँ' शब्द का प्रयोग किया गया है, जो 10 दिशा-प्रवाह को दर्शाता है। यह सामान्यतः उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और उनकी मध्यवर्ती दिशाओं (उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम) को दर्शाता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः दस दिशाएँ उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम, आकाश और पृथ्वी हैं।
Quick Tip: दस दिशाएँ वह हैं जो सामान्यतः चार मुख्य दिशाओं और उनके मध्यवर्ती बिंदुओं के रूप में मानी जाती हैं।
वह 'सूरज' किस दिशा में उगित हुआ था?
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Step 1: सूरज के उगने की दिशा।
'सूरज' सामान्यतः पूर्व दिशा से उगता है, और यहाँ इस संदर्भ में सूरज के उगने को जीवन की शुरुआत और नवीनीकरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः सूरज पूर्व दिशा में उगता है।
Quick Tip: सूरज का उगना पूर्व दिशा से होता है, जो नए दिन और जीवन के आरंभ का प्रतीक है।
(क) निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए: (अधिकतम शब्द सीमा: 80 शब्द)
(i) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
(ii) वासुदेवशरण अग्रवाल
(iii) हजारीसाद द्विवेदी
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(i) डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
साहित्यिक परिचय:
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम भारत के महान वैज्ञानिक और देश के 11वें राष्ट्रपति थे। उन्हें 'मिसाइल मैन' के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने भारत के अंतरिक्ष और रक्षा प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी साहित्यिक यात्रा एक प्रेरणा है, जहां उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों, सपनों, और विचारों को साझा किया। 'विंग्स ऑफ फायर' उनकी आत्मकथा है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन की संघर्षों और सफलता की यात्रा का विस्तृत विवरण दिया है। इसके अलावा 'इंडिया 2020' और 'इंशा अल्लाह' जैसी किताबों के माध्यम से उन्होंने भारत के भविष्य और सामाजिक समस्याओं पर गहरे विचार प्रस्तुत किए। उनकी कृतियाँ प्रेरणादायक हैं और हर भारतीय को अपने देश की सेवा में योगदान देने की प्रेरणा देती हैं।
प्रमुख कृतियाँ:
1. विंग्स ऑफ फायर (Wings of Fire) - यह किताब उनकी आत्मकथा है, जो भारत के महान वैज्ञानिक और राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के जीवन और कार्यों की कहानी है। यह पुस्तक न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में बताती है, बल्कि वह कैसे भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इस पर भी प्रकाश डालती है।
2. इंडिया 2020 (India 2020) - इस किताब में डॉ. कलाम ने भारत के लिए भविष्य की दिशा और तकनीकी विकास के रास्ते पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
3. इंशा अल्लाह (Insha Allah) - इस पुस्तक में डॉ. कलाम ने भारत में धर्म, संस्कृति और समाज के महत्व को समझाया है।
(ii) वासुदेवशरण अग्रवाल
साहित्यिक परिचय:
वासुदेवशरण अग्रवाल हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, और पत्रकार थे। उनका जन्म 1883 में हुआ था, और वे हिंदी कविता और लेखन के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माने जाते हैं। उनका साहित्यिक कार्य भारत के समाज, राजनीति और संस्कृति की गहरी पड़ताल करता है। उन्होंने न केवल कविता में योगदान किया, बल्कि हिंदी साहित्य को एक नई दिशा देने के लिए कई महत्वपूर्ण लेख लिखे। उनकी काव्य रचनाएँ समाज की सामाजिक समस्याओं, संघर्षों और असमानताओं को दर्शाती हैं। उनके लेखन में मानवाधिकार, शांति और समानता के विचार प्रमुख हैं। उन्होंने कई काव्य संग्रह लिखे, जिनमें सामाजिक परिवर्तनों का बखूबी चित्रण किया गया है।
प्रमुख कृतियाँ:
1. संग्राम (Sangram) - यह काव्य संग्रह वासुदेवशरण अग्रवाल की प्रमुख काव्य कृतियों में से एक है, जिसमें उन्होंने भारतीय समाज के संघर्षों और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।
2. यथार्थ (Yatharth) - इस काव्य संग्रह में अग्रवाल ने भारतीय समाज में व्याप्त भेदभाव और असमानताओं को उजागर किया है।
3. कवि और उनका समाज (Kavi Aur Uska Samaj) - यह पुस्तक समाज में कवि की भूमिका और उसके काव्य कार्यों के प्रभाव पर आधारित है।
(iii) हजारीसाद द्विवेदी
साहित्यिक परिचय:
हजारीसाद द्विवेदी हिंदी के प्रसिद्ध लेखक, कवि और आलोचक थे। उनका जन्म 1907 में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं। उनका लेखन मुख्य रूप से समाजिक मुद्दों, भारतीय संस्कृति, और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ था। उन्होंने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई और भारतीय संस्कृति की महत्ता को स्पष्ट किया। उनकी काव्य रचनाएँ भारतीय समाज के संघर्षों, धार्मिक भेदभाव और सांस्कृतिक संकटों के खिलाफ थीं। द्विवेदी जी के साहित्य में मानवता और समाजिक चेतना के विषय प्रमुख हैं।
प्रमुख कृतियाँ:
1. हजारद्वारी (Hazardwari) - यह एक ऐतिहासिक काव्य रचनाओं का संग्रह है जिसमें उन्होंने भारतीय समाज के संघर्षों और सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत किया है।
2. कवि रचनाएँ (Kavi Rachna) - इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय कविता और साहित्य के महत्व को दर्शाया है। इस काव्य संग्रह में समाज की जटिलताओं और विचारों का सुक्ष्म विश्लेषण किया गया है।
3. भारत: संस्कृति और समाज (Bharat: Sanskriti Aur Samaj) - इस पुस्तक में द्विवेदी जी ने भारतीय संस्कृति की जटिलताओं और उससे संबंधित मुद्दों को उठाया है। Quick Tip: लेखक के साहित्यिक परिचय में उनके जीवन, कार्य और उनकी प्रमुख कृतियों का विस्तृत रूप से उल्लेख करना चाहिए ताकि पाठक उनके साहित्यिक योगदान को अच्छे से समझ सके।
निम्नलिखित में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी काव्यकृतियों का उल्लेख कीजिए: (अधिकतम शब्द सीमा: 80 शब्द)
(i) सुमित्रानंदन पंत
(ii) महादेवी वर्मा
(iii) रामधारी सिंह 'दिनकर'
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(i) सुमित्रानंदन पंत
साहित्यिक परिचय:
सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे, जिनकी काव्य रचनाएँ भारतीय काव्यशास्त्र और साहित्य में एक मील का पत्थर मानी जाती हैं। वे छायावाद के प्रमुख कवि थे और उनकी कविताएँ प्रकृति, प्रेम, और जीवन के विविध पहलुओं को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत करती हैं। उनका साहित्य मानवीय संवेदनाओं, प्रकृति के सौंदर्य और आत्मा के गहरे विचारों से भरा हुआ है। उनकी कविता में आत्म-चेतना, विश्वास और भारतीय संस्कृति का भी गहरा प्रभाव देखने को मिलता है।
प्रमुख कृतियाँ:
1. पल्लव (Pallav) - यह काव्य संग्रह सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने जीवन के विविध पहलुओं को चित्रित किया है।
2. चिदंबरा (Chidambara) - इस काव्य में उन्होंने भारतीय संस्कृति और समाज के मूल्यों को उजागर किया है।
3. गीतिका (Geetika) - इस काव्य संग्रह में पंत ने न केवल प्रकृति की सुंदरता को व्यक्त किया, बल्कि जीवन के भव्य और गहरे अर्थों को भी उजागर किया।
(ii) महादेवी वर्मा
साहित्यिक परिचय:
महादेवी वर्मा हिंदी की प्रसिद्ध कवि, लेखिका और साहित्यकार थीं। उन्हें हिंदी साहित्य में छायावाद की एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उनके काव्य में भावनाओं की गहराई, मानवता की जटिलताओं और आत्ममंथन की अनूठी प्रस्तुति देखने को मिलती है। महादेवी वर्मा ने हिंदी साहित्य को काव्य रचनाओं से समृद्ध किया और उनके लेखन में भारतीय समाज की सच्चाइयों का चित्रण किया। उनका साहित्य भारतीय नारी के दुःख, संघर्ष और आत्मसम्मान को प्रदर्शित करता है।
प्रमुख कृतियाँ:
1. यमुनाजी की आरती (Yamunaji Ki Aarti) - इस काव्य में महादेवी वर्मा ने जीवन के आध्यात्मिक और भक्ति पहलुओं को व्यक्त किया है।
2. अंधेरी रात (Andheri Raat) - इस काव्य में उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अंधेरे और अव्यवस्थाओं पर विचार व्यक्त किए हैं।
3. स्मृतियाँ (Smritiyan) - महादेवी वर्मा की यह काव्य कृति उनके जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों और गहरी भावनाओं का प्रतिबिंब है।
(iii) रामधारी सिंह 'दिनकर'
साहित्यिक परिचय:
रामधारी सिंह 'दिनकर' हिंदी के महान कवि, लेखक और विचारक थे। वे हिंदी साहित्य के छायावाद और आधुनिक काव्य धारा के महत्वपूर्ण प्रतिनिधि माने जाते हैं। उनकी कविता में राष्ट्रीयता, वीरता, मानवता और समाजिकता की गहरी भावनाएँ छिपी हुई थीं। 'दिनकर' की रचनाएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, राष्ट्रवाद और सामाजिक उत्थान की दिशा में प्रेरणा देती हैं। वे युग प्रवर्तक कवि थे और उनकी कविताओं में एक अद्वितीय शक्ति, संघर्ष और आशा का संदेश था।
प्रमुख कृतियाँ:
1. रश्मिरथी (Rashmirathi) - यह महाकाव्य रामधारी सिंह 'दिनकर' की सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने कर्ण के जीवन को आधार बनाकर भारतीय महाकाव्य की गहरी व्याख्या की है।
2. कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) - इस कविता में दिनकर ने महाभारत के युद्ध और उसके महान आदर्शों का चित्रण किया है।
3. संस्कृति के चार अध्याय (Sanskriti Ke Char Adhyay) - इस पुस्तक में दिनकर ने भारतीय संस्कृति, उसकी महानता और वर्तमान स्थिति पर गहरे विचार व्यक्त किए हैं। Quick Tip: कवि का साहित्यिक परिचय देने से पहले उनकी काव्य रचनाओं के प्रभाव, उनके विषय, और उनके जीवन के संघर्षों का संदर्भ देना बहुत महत्वपूर्ण है।
'पंचलाइट' कहानी का सारांश लिखिए।
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Step 1: कहानी का परिचय।
'पंचलाइट' कहानी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई है। यह कहानी समाज के एक महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करती है, जिसमें कुछ पात्रों के माध्यम से ग्रामीण जीवन और उनकी सामाजिक स्थिति का चित्रण किया गया है।
Step 2: कहानी का सारांश।
कहानी 'पंचलाइट' एक छोटे से गाँव की कहानी है, जहाँ एक गाँववाले का मकान ढहने लगता है। वह गरीब व्यक्ति एक पंचलाइट के माध्यम से सहायता प्राप्त करने की कोशिश करता है, ताकि वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर सके।
इसमें लेखक ने सामाजिक असमानताओं, गरीबी, और इंसान की संघर्षपूर्ण जिंदगी का चित्रण किया है। कहानी के पात्र अपनी कठिनाइयों का सामना करते हुए भी साहस और संघर्ष की मिसाल पेश करते हैं।
Step 3: निष्कर्ष।
कहानी का मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी समस्याओं से जूझने में कभी हार नहीं माननी चाहिए और उसे हमेशा संघर्षरत रहना चाहिए।
Quick Tip: कहानियों का सारांश लिखते समय, उसके मुख्य पात्रों, घटनाओं और संदेश को संक्षेप में प्रस्तुत करना चाहिए।
'बहादुर' अथवा 'ध्रुवयात्रा' कहानी के उद्धरण पर प्रकाश डालिए।
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Step 1: कहानी का परिचय।
'बहादुर' और 'ध्रुवयात्रा' दोनों ही कहानियाँ हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। 'बहादुर' कहानी प्रेमचंद की समाजिक और आर्थिक मुद्दों पर आधारित है, जबकि 'ध्रुवयात्रा' एक धार्मिक और नैतिक यात्रा को दर्शाती है।
Step 2: 'बहादुर' कहानी का उद्धरण।
'बहादुर' कहानी में मुख्य पात्र एक गरीब किसान है, जो अपने जीवन की कठिनाइयों से जूझता है। कहानी में उसका साहस, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की भावना दिखाई गई है। उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत उसे उसकी परिस्थितियों से बाहर निकालने में मदद करती है।
यह उद्धरण हमें यह सिखाता है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी परिस्थितियों में हो, यदि उसमें संघर्ष और साहस हो तो वह अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है।
Step 3: 'ध्रुवयात्रा' कहानी का उद्धरण।
'ध्रुवयात्रा' कहानी एक छोटे से लड़के ध्रुव की यात्रा पर आधारित है, जो अपने पिता और सौतेली मां के व्यवहार से निराश होकर भगवान के दर्शन करने के लिए जंगल में निकल जाता है। उसकी यात्रा एक आत्मिक यात्रा है, जो उसे सत्य और भगवान के अस्तित्व से परिचित कराती है।
यह उद्धरण यह संदेश देता है कि सत्य की खोज और आत्मविश्वास से हम किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं।
Step 4: निष्कर्ष।
दोनों ही कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि अगर हम ठान लें, तो कोई भी समस्या बड़ी नहीं होती। संघर्ष, साहस और आत्मविश्वास ही हमें सफलता दिलाते हैं।
Quick Tip: कहानी का उद्धरण देते समय, उसके मुख्य पात्रों और उनके संघर्षों को समझना चाहिए।
'रश्मिरथी' खंडकाव्य के आधार पर 'कर्ण' का चरित्रांकन कीजिए।
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Step 1: रश्मिरथी का परिचय।
'रश्मिरथी' काव्य रचनाकार रामधारी सिंह 'दिनकर' की प्रसिद्ध काव्य रचनाओं में से एक है। इसमें महाभारत के पात्र कर्ण के जीवन का गहराई से चित्रण किया गया है। कर्ण का चरित्र समाज में एक महानायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
Step 2: कर्ण का चरित्रांकन।
कर्ण का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। वह सूर्यपुत्र होने के बावजूद अपनी माँ और समाज से उपेक्षित था। उसका जन्म और पालन-पोषण सत्य के बजाय झूठी पहचान में हुआ। कर्ण ने कभी अपनी परिस्थितियों को दोष नहीं दिया, बल्कि उसने सच्चाई और आत्मसम्मान के लिए संघर्ष किया।
कर्ण का प्रमुख गुण था उसका पराक्रम और साहस। उसने हमेशा अपनी कर्तव्यनिष्ठा को प्राथमिकता दी और अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उसके भीतर समर्पण, बलिदान और तात्कालिक समाज के प्रति निष्ठा की भावना मजबूत थी।
इस प्रकार, कर्ण का चरित्र महान है क्योंकि उसने हर परिस्थितियों में सत्य और न्याय के लिए संघर्ष किया।
Step 3: निष्कर्ष।
कर्ण की कहानी हमें यह सिखाती है कि एक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ जैसी भी हों।
Quick Tip: कर्ण के चरित्र को समझने के लिए, उसके संघर्ष, बलिदान और कर्तव्यनिष्ठा को प्रमुख रूप से समझें।
'रश्मिरथी' खंडकाव्य के अंतिम सर्ग की कथा पर प्रकाश डालिए।
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Step 1: अंतिम सर्ग का परिचय।
'रश्मिरथी' के अंतिम सर्ग में कर्ण के महान बलिदान और उसके जीवन के संघर्षों का चित्रण किया गया है। यह सर्ग कर्ण के चरित्र को सम्मान प्रदान करता है और उसकी मृत्यु के समय के घटनाक्रम को दर्शाता है।
Step 2: अंतिम सर्ग की कथा।
कर्ण के जीवन का यह सर्ग बहुत ही दुखद और प्रभावशाली है। इसमें कर्ण का अंतिम युद्ध और उसकी वीरगति का विवरण दिया गया है। कर्ण ने अपने जीवन में बहुत से संघर्षों का सामना किया, लेकिन अंतिम क्षणों में भी वह महान योद्धा बना रहा। इस सर्ग में कर्ण की मृत्यु के बाद उसके आत्मिक बलिदान और महानता को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।
कर्ण का जीवन और मृत्यु महाकाव्य में एक प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत की जाती है, जो हमें कर्तव्य, बलिदान और आत्मनिवेदन की महत्ता सिखाती है।
Step 3: निष्कर्ष।
अंतिम सर्ग कर्ण के जीवन के संघर्ष और आत्मसमर्पण को आदर्श रूप में प्रस्तुत करता है। उसकी मृत्यु के बाद भी उसकी महानता और बलिदान अमर रहते हैं।
Quick Tip: काव्य के अंतिम सर्ग में हमेशा पात्र की महानता और उसकी यात्रा का निष्कर्ष होता है, जो पाठक को एक गहरी सोच की ओर प्रेरित करता है।
'मुक्तियराज' खंडकाव्य के प्रमुख पात्र का चित्रण कीजिए।
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Step 1: मुक्तियराज का परिचय।
'मुक्तियराज' खंडकाव्य का प्रमुख पात्र एक वीर और न्यायप्रिय शासक है।
यह पात्र अपने साम्राज्य के प्रति अपनी निष्ठा और कर्तव्य को प्राथमिकता देता है।
Step 2: पात्र का चरित्र चित्रण।
मुक्तियराज एक दयालु, साहसी और सक्षम शासक के रूप में उभरता है।
उसका शासन न्याय और समृद्धि पर आधारित था, और वह अपने प्रजा के कल्याण के लिए निरंतर प्रयासरत रहता है।
उसकी वीरता, बुद्धिमत्ता, और निर्णय क्षमता उसे एक आदर्श शासक बनाती है।
Step 3: निष्कर्ष।
मुक्तियराज का चित्रण एक कर्तव्यनिष्ठ और महात्मा शासक के रूप में किया गया है, जो अपने साम्राज्य के उत्थान के लिए संघर्ष करता है।
Quick Tip: 'मुक्तियराज' के चरित्र का चित्रण करते समय उसकी प्रमुख विशेषताएँ जैसे साहस, न्यायप्रियता और नेतृत्व क्षमता पर ध्यान दें।
'मुक्तियराज' खंडकाव्य की कथा वस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: 'मुक्तियराज' खंडकाव्य का परिचय।
'मुक्तियराज' खंडकाव्य एक ऐतिहासिक काव्य है, जिसमें एक वीर शासक की कथा का वर्णन किया गया है।
इस काव्य में शासक की वीरता, कर्तव्यनिष्ठा और अपने साम्राज्य के प्रति निष्ठा की कहानी प्रस्तुत की गई है।
Step 2: कथा का सार।
'मुक्तियराज' की कथा उसके साम्राज्य की रक्षा और समाज के कल्याण के लिए उसके संघर्ष के बारे में है।
काव्य में राजा के आदर्श कार्यों, उसकी न्यायप्रियता, और उसकी रणनीतिक क्षमता का उल्लेख किया गया है।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार, 'मुक्तियराज' खंडकाव्य की कथा एक आदर्श शासक के जीवन के संघर्षों और कर्तव्यों का चित्रण करती है।
Quick Tip: काव्य की कथा वस्तु को समझते समय, पात्र की गुणों और कार्यों पर विशेष ध्यान दें।
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
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Step 1: 'आलोकवृत्त' का परिचय।
'आलोकवृत्त' रामधारी सिंह 'दिनकर' का एक प्रसिद्ध खंडकाव्य है। यह काव्य नायक के साहस, संघर्ष, और उसके जीवन के आदर्शों का चित्रण करता है। इसमें नायक के चारित्रिक गुणों को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।
Step 2: नायक की चारित्रिक विशेषताएँ।
नायक का मुख्य गुण था उसका साहस और संघर्ष की भावना। वह समाज के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करता था, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में हो। नायक में सत्य के प्रति अडिग निष्ठा और आत्मनिर्भरता की भावना थी।
उसकी विशेषताएँ उसे समाज में एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करती हैं। वह हर कठिनाई का सामना करता है, और अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं करता। नायक के ये गुण उसे सभी पात्रों से अलग और विशेष बनाते हैं।
Step 3: निष्कर्ष।
नायक का चरित्र संघर्ष, साहस, और सत्य के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। 'आलोकवृत्त' के नायक की चारित्रिक विशेषताएँ हमें जीवन में आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध रहने की प्रेरणा देती हैं।
Quick Tip: काव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का विश्लेषण करते समय, उसके साहस, कर्तव्य और सत्य के प्रति निष्ठा पर विशेष ध्यान दें।
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के कथानक पर प्रकाश डालिए।
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Step 1: कथानक का परिचय।
'आलोकवृत्त' खंडकाव्य का कथानक समाज के आदर्शों, संघर्षों, और व्यक्ति के आत्मबल का चित्रण करता है। यह कहानी नायक के साहस, आत्मविश्वास, और समाज के प्रति उसके कर्तव्यों पर आधारित है।
Step 2: कथानक का विवरण।
काव्य में नायक एक संघर्षशील व्यक्ति है जो समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है। उसका जीवन कर्तव्य और संघर्ष से भरा हुआ है। उसका मुख्य उद्देश्य समाज के लिए कार्य करना और अपने आदर्शों से जुड़ा रहना है।
काव्य के कथानक में नायक का संघर्ष उसके व्यक्तित्व को मजबूत करता है और वह अंततः समाज में अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल होता है।
Step 3: निष्कर्ष।
'आलोकवृत्त' का कथानक हमें यह सिखाता है कि व्यक्ति को अपने आदर्शों और कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
Quick Tip: काव्य के कथानक को समझते समय, नायक के संघर्ष, आदर्श और सामाजिक योगदान को समझना चाहिए।
'सत्य की जीत' खंडकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए।
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Step 1: नायक का परिचय।
'सत्य की जीत' खंडकाव्य का नायक एक सच्चा, न्यायप्रिय और आदर्श व्यक्ति है।
इस काव्य में नायक सत्य, धर्म और न्याय के पक्ष में खड़ा रहता है और हर कठिनाई का सामना करता है।
Step 2: नायक का चरित्र चित्रण।
नायक अपने कार्यों और विचारों से सत्य की ओर अग्रसर होता है। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है और समाज के अन्याय के खिलाफ संघर्ष करता है।
उसकी वीरता, साहस, और कर्तव्यनिष्ठा उसे आदर्श बनाती है।
Step 3: निष्कर्ष।
नायक का चित्रण एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में किया गया है, जो सत्य और न्याय के लिए जीवन भर संघर्ष करता है।
Quick Tip: नायक के चरित्र चित्रण में उसकी निष्ठा, वीरता, और सिद्धांतों पर जोर देना चाहिए।
'सत्य की जीत' खंडकाव्य की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: 'सत्य की जीत' खंडकाव्य का परिचय।
'सत्य की जीत' खंडकाव्य में सत्य, न्याय और धर्म की विजय की कहानी है।
यह काव्य उन संघर्षों की कहानी है जिनमें नायक ने सत्य और धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की।
Step 2: कथा का सार।
काव्य में नायक के संघर्षों, उसकी वीरता और सत्य के मार्ग पर चलने की उसकी दृढ़ता का वर्णन किया गया है।
काव्य में दिखाया गया है कि कैसे सत्य अंततः विजयी होता है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार, 'सत्य की जीत' खंडकाव्य की कथा सत्य, न्याय और धर्म के प्रति नायक की निष्ठा और संघर्ष का चित्रण करती है।
Quick Tip: काव्य की कथा वस्तु को समझते समय, उसके मुख्य संदेश जैसे सत्य की विजय और संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करें।
'त्वगर्पथि' खंडकाव्य के आधार पर 'हर्षवर्धन' का चरित्रांकन कीजिए।
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Step 1: 'त्वगर्पथि' का परिचय।
'त्वगर्पथि' रामधारी सिंह 'दिनकर' का एक महत्वपूर्ण खंडकाव्य है, जिसमें हर्षवर्धन के जीवन और उसके कर्तव्यों का विवरण किया गया है। इस काव्य में हर्षवर्धन के व्यक्तित्व का गहन चित्रण किया गया है, जो उसकी साहसिकता, वीरता और समाज के प्रति उसकी निष्ठा को दर्शाता है।
Step 2: हर्षवर्धन का चरित्रांकन।
हर्षवर्धन एक महान सम्राट था, जो अपनी वीरता, साहस और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध था। उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े और समाज में समानता लाने का प्रयास किया। हर्षवर्धन का चरित्र उसकी नेतृत्व क्षमता, दृढ़ इच्छाशक्ति और आदर्शों के प्रति निष्ठा को स्पष्ट करता है।
वह अपने कर्तव्यों से कभी नहीं हटा और अपने राज्य को महान बनाने के लिए निरंतर संघर्ष करता रहा। उसके जीवन का आदर्श समाज की सेवा और न्याय की स्थापना था।
Step 3: निष्कर्ष।
हर्षवर्धन का चरित्र हमें यह सिखाता है कि एक सम्राट या नेता को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, समाज के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए।
Quick Tip: काव्य में नायक के चरित्र का विश्लेषण करते समय उसके नेतृत्व गुण, संघर्ष और आदर्शों के प्रति निष्ठा को समझना चाहिए।
'त्वगर्पथि' की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
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Step 1: कथावस्तु का परिचय।
'त्वगर्पथि' खंडकाव्य की कथावस्तु में एक महान सम्राट हर्षवर्धन के जीवन और संघर्षों का चित्रण किया गया है। इस काव्य में उसके राज्य की स्थिति, युद्धों और समाज सुधार की दिशा में उसके प्रयासों का वर्णन है।
Step 2: कथावस्तु का विवरण।
काव्य में हर्षवर्धन का जीवन एक आदर्श नेता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उसकी वीरता, नायकत्व और समाज की सेवा के लिए किए गए संघर्षों को दर्शाते हुए, काव्य ने उसे एक आदर्श सम्राट के रूप में पेश किया है।
काव्य में हर्षवर्धन की नीतियों, उसके शासन और धार्मिक न्याय के प्रयासों को प्रमुखता से दिखाया गया है।
Step 3: निष्कर्ष।
'त्वगर्पथि' की कथावस्तु हमें यह सिखाती है कि एक सम्राट को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, समाज में सुधार और न्याय की स्थापना करनी चाहिए।
Quick Tip: काव्य की कथावस्तु में नायक के आदर्शों और समाज के प्रति उसके योगदान को समझना जरूरी है।
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य के आधार पर श्रवणकुमार का चरित्र चित्रण कीजिए।
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Step 1: श्रवणकुमार का परिचय।
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य का नायक एक परम श्रद्धेय, कर्तव्यनिष्ठ और मातृ-पितृ सेवा में समर्पित व्यक्ति है।
वह अपने अंधे माता-पिता के लिए वन में यात्रा करता है और उनके लिए जल लेकर आता है।
Step 2: श्रवणकुमार का चरित्र चित्रण।
श्रवणकुमार का चरित्र एक आदर्श पुत्र के रूप में उभरता है। उसकी निष्ठा और समर्पण उसे एक प्रेरणास्त्रोत बनाते हैं।
वह अपने माता-पिता की सेवा में संलग्न रहता है, और उनके आशीर्वाद के लिए किसी भी कष्ट को सहन करता है।
Step 3: निष्कर्ष।
श्रवणकुमार का चित्रण एक आदर्श पुत्र के रूप में किया गया है, जो अपने कर्तव्यों को निभाने में पूर्ण रूप से समर्पित है।
Quick Tip: श्रवणकुमार के चरित्र चित्रण में उसकी निष्ठा, समर्पण और माता-पिता के प्रति उसके प्रेम को प्रमुख रूप से दर्शाना चाहिए।
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: 'श्रवणकुमार' खंडकाव्य का परिचय।
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य एक धार्मिक और आदर्श काव्य है, जिसमें एक पुत्र की अपने माता-पिता के प्रति निष्ठा का वर्णन किया गया है।
काव्य में दिखाया गया है कि श्रवणकुमार अपने अंधे माता-पिता की सेवा में अपने जीवन का अधिकांश समय व्यतीत करता है।
Step 2: कथा का सार।
काव्य में श्रवणकुमार की यात्रा और उसके कर्तव्य को निभाने का चित्रण किया गया है। वह अपने माता-पिता के लिए जल लाता है, और उसके कर्तव्य के प्रति उसकी निष्ठा और प्रेम को दर्शाया गया है।
यह काव्य यह संदेश देता है कि जीवन में सेवा और निष्ठा सबसे महत्वपूर्ण हैं।
Step 3: निष्कर्ष।
इस प्रकार, 'श्रवणकुमार' खंडकाव्य की कथा एक आदर्श पुत्र के जीवन के संघर्षों और कर्तव्यों का चित्रण करती है।
Quick Tip: काव्य की कथा वस्तु को समझते समय, नायक की सेवा, निष्ठा और कर्तव्य के महत्व पर ध्यान केंद्रित करें।
दिए गए संस्कृत गद्य का संदर्भ हिंदी में अनुवाद कीजिए।
याज्ञवल्क्य उवाच - न वा अरे मैत्रिये ! पत्यु: कामाय पति: प्रियो भवति | आत्मनस्तु वै कामाय पति: प्रियो भवति | न वा अरे, जायाया: कामाय जाय: प्रियो भवति, आत्मनस्तु वै जाय: प्रियो भवति | न वा अरे, पुनरस्य विस्तार्य च कामाय पुत्रो वितं वा प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय सर्वं प्रियं भवति |
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Step 1: संस्कृत गद्य का चयन।
इस संस्कृत गद्य का चयन "याज्ञवल्क्य उवाच" से किया गया है। यह एक संस्कृत श्लोक है जिसमें याज्ञवल्क्य मुनि की पत्नी से प्रेम, परिवार, और आत्मिक संतुष्टि के बारे में बात कर रहे हैं।
Step 2: हिंदी अनुवाद।
"याज्ञवल्क्य उवाच - न वा अरे मैत्रेयी! पत्यु: कामाय पतिव: प्रियं भवति। आत्मनस्तु वै कामाय प्रिया भवति। न वा अरे, जायया: कामाय जायां प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय पुत्रों विंते वा प्रियं भवति। न वा अरे, सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति।"
हिंदी अनुवाद:
याज्ञवल्क्य ने कहा - "नहीं, ओ मैत्रेयी! पति की कामना से पत्नी को प्रियता होती है। आत्मा की कामना से ही वह प्रिय होती है। नहीं, ओ मैत्रेयी! पत्नी की कामना से वह प्रिय होती है। आत्मा की कामना से ही पुत्र प्रिय होते हैं। नहीं, ओ मैत्रेयी! सर्व के लिए कामना से सब कुछ प्रिय हो जाता है।"
Step 3: निष्कर्ष।
यह श्लोक यह बताता है कि एक व्यक्ति को उसके स्वार्थ और आत्मा की इच्छा से जुड़ा हुआ अनुभव होता है, जिसमें प्रेम और संबंधों की गहरी भूमिका होती है।
Quick Tip: जब संस्कृत गद्य का अनुवाद करें, तो न केवल शब्दों का अनुवाद करें, बल्कि भावनाओं और संदर्भ को भी सही तरीके से व्यक्त करें।
दिए गए संस्कृत गद्यों में से किसी एक का संदर्भ हिंदी में अनुवाद कीजिए।
अशोक: शकुनि: सर्वांं मध्यादर्शयपाणां प्रतिकृत् अश्राव्यत्। तत् एक: काक: उत्पत्तय 'निष्ठ तावत्, अस्र्य एतस्मिनं राज्याम्यभेकाले एवं रूपं मुंहं, कृद्रक्षय च कीर्षं भविष्यति ? अनने हि कृद्रधन अवलीकत: व्यं तप्तकाठे प्रमुखतितला: इव तव तैव धक्याम् | ईशेः राजा महीयन न रोचते' इत्याह्।
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Step 1: संस्कृत गद्य का चयन।
इस संस्कृत गद्य का चयन "अर्थशास्त्र" से किया गया है। यह एक महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोक है जो राजा की भूमिका और शासक की शक्तियों का वर्णन करता है।
Step 2: हिंदी अनुवाद।
"अर्थशास्त्र: शकुनि: सर्वां मध्यादायग्रहनार्थं त्रिकृत: अश्रावयत। तत: एक: काक: उथाय तिष्ठ तावत, अस्य एतस्मिन राज्या अभिषेकाले एवं रूपं मुखं, कृदधस्य च कीर्षं भविष्यति? अनेंन हि कृत्धन अवलोकिता: वहं तप्तकटाहे, प्रक्षिप्तास्तिला: इव तत्र तैवधक्ष्याम:। ईश्वर: राजा मह्यं न रोचते' इत्याह।"
हिंदी अनुवाद:
अर्थशास्त्र: शकुनि ने यह विचार किया कि सभी शासकों का ध्यान मध्य में होना चाहिए। तब एक कौआ उड़ा और कहा कि "राज्य के अभिषेक के समय, एक राजा का रूप और मुख कैसे बदलते हैं, और इस तरह के परिवर्तन से क्या होता है?" इस पर शासक ने कहा कि इस प्रकार के परिवर्तन को देखने से ही पता चलता है कि शासक का सम्मान कितना बढ़ता है। राजा के परिवर्तन में उसकी आत्मा और मन की भावनाएँ जुड़ी होती हैं।
Step 3: निष्कर्ष।
यह श्लोक यह बताता है कि शासक के जीवन में किसी भी समय और परिवर्तनों को एक मूल्य और उद्देश्य होना चाहिए।
Quick Tip: संस्कृत गद्य का अनुवाद करते समय, संदर्भ और भावनाओं का सही तरीके से अनुवाद करना महत्वपूर्ण है।
दिये गए संस्कृत पद्यांशों में से किसी एक का सन्दर्भ हिंदी में अनुवाद कीजिए:
काव्यशास्त्र - विनोदयेन कालो ग्रच्छति धीमता।
व्यसनें च मूर्खाणं निद्रया कल्हेन् वा
अथवा
वददापि कोठरोणि मुद्रिणि कुसुमादपि
लोकतराणं चेतसि को न विदातुमर्हति।
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अनुवाद 1:
साहित्यशास्त्र के अनुसार, बुद्धिमान व्यक्ति समय का सदुपयोग करके उसे नष्ट होने से बचाते हैं। वहीं मूर्ख लोग अपनी आलस्य और निंद्रा में समय को नष्ट कर देते हैं। यही कारण है कि उन्हें समय का सही मूल्य नहीं मिलता। इस प्रकार, हमें अपने जीवन में समय के महत्व को समझना चाहिए और इसका सही उपयोग करना चाहिए। समय का सबसे बड़ा उपयोग ज्ञानार्जन और समझ का निर्माण करना है।
अनुवाद 2:
यदि समय का सदुपयोग न किया जाए तो वह कष्टदायक होता है। जैसे सूखे समय का उपयोग न होने पर उसका कोई मूल्य नहीं रहता, वैसे ही जो व्यक्ति समय का सही उपयोग करता है वह जीवन में महानता प्राप्त करता है। इसी प्रकार से, जो मूर्ख समय को बिना किसी उद्देश्य के नष्ट करते हैं, वे जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। इसलिए, हमें समय की कद्र करनी चाहिए और उसका सही उपयोग करना चाहिए। Quick Tip: समय का सदुपयोग करने से जीवन में सफलता और संतोष प्राप्त होता है।
निम्नलिखित लोककृतियाँ/मुहावरों में से किसी एक का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए:
(i) ईद का चाँद होना
(ii) कागजी घोड़े दौड़ाना
(iii) ऊँट के मुँह में जीरा
(iv) का बरखा जब किसी सुहाने
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(i) ईद का चाँद होना
अर्थ: बहुत मुश्किल या दुर्लभ होना।
वाक्य प्रयोग:
उससे मिलने की उम्मीद ईद के चाँद की तरह थी, पर आजकल वो कहीं नजर नहीं आता।
(ii) कागजी घोड़े दौड़ाना
अर्थ: केवल बातों में बहुत बढ़-चढ़कर किसी चीज़ या कार्य को प्रस्तुत करना, लेकिन वास्तविकता में कुछ नहीं करना।
वाक्य प्रयोग:
वह हमेशा कागजी घोड़े दौड़ाता है, लेकिन कभी कोई कार्य पूरा नहीं करता।
(iii) ऊँट के मुँह में जीरा
अर्थ: बहुत छोटा या तुच्छ होना।
वाक्य प्रयोग:
उसकी बुद्धि ऊँट के मुँह में जीरे जैसी है, जब उसे मुश्किल काम सौंपा जाता है।
(iv) का बरखा जब किसी सुहाने
अर्थ: किसी नाज़ुक या खुशगवार स्थिति में क्या करें।
वाक्य प्रयोग:
जब वह अच्छा कर रहा था, तो उसके परिश्रम का बरखा भी संजीवनी के रूप में दिखा। Quick Tip: लोककृतियाँ और मुहावरों का उपयोग भाषा में सुंदरता और गहराई बढ़ाता है, और विचारों को अधिक प्रभावी रूप से व्यक्त करता है।
निम्नलिखित शब्दों के संधि-विच्छेद के सही विकल्प का चयन कीजिए:
'कविन्दुम' का संधि-विच्छेद है:
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Step 1: Understanding the context.
'कविन्दुम' शब्द में संधि के तहत 'कवि' और 'इन्दुम' के बीच संधि होती है। यह शब्द विशेष रूप से संस्कृत के काव्यशास्त्र से संबंधित है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) कवि + इन्दुम → सही उत्तर, संधि-विच्छेद यही है।
- (B) कविनु + दुम → यह गलत है, यह संधि-विच्छेद नहीं हो सकता।
- (C) कवि + इन्दुम → सही उत्तर, यह सही संधि-विच्छेद है।
- (D) क + बिन्दुम → यह गलत है, यह संधि-विच्छेद नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) 'कवि + इन्दुम'।
Quick Tip: काव्यशास्त्र में संधि के नियमों को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे शब्दों का सही अर्थ और व्याकरणिक संरचना समझी जा सकती है।
'पवित्रं' का संधि-विच्छेद है:
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Step 1: Understanding the context.
'पवित्रं' शब्द का संधि-विच्छेद 'पवि' और 'इत्रं' में होता है। यह शब्द संस्कृत और हिंदी दोनों में शुद्धता और पवित्रता के लिए उपयोग किया जाता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'पव + इत्रं' → यह गलत है, संधि में 'पव' का प्रयोग नहीं होता।
- (B) 'पवि + इत्रं' → सही उत्तर, यह सही संधि-विच्छेद है।
- (C) 'पवि + त्रं' → यह गलत है, यहाँ त्रं का प्रयोग नहीं होता।
- (D) 'पो + इत्रं' → यह गलत है, पो का प्रयोग नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'पवि + इत्रं'।
Quick Tip: संधि-विच्छेद में शब्दों को जोड़ने के नियमों को समझना महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इससे सही व्याकरण और अर्थ सुनिश्चित होते हैं।
दिये गए निम्नलिखित शब्दों की 'विभक्त' और 'वचन' के अनुसार सही विकल्प का चयन कीजिए:
'आत्मन्' शब्द में विभक्त और वचन है:
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Step 1: Understanding the context.
'आत्मन्' शब्द में द्वितीया विभक्त और बहुवचन का प्रयोग होता है। यह संस्कृत व्याकरण के विभक्तियों से संबंधित है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) द्वितीया विभक्त, बहुवचन → सही उत्तर, 'आत्मन्' शब्द में द्वितीया विभक्त और बहुवचन है।
- (B) चतुर्थी विभक्त, एकवचन → यह गलत है, चतुर्थी विभक्त इस शब्द के लिए सही नहीं है।
- (C) सप्तमी विभक्त, एकवचन → यह गलत है, सप्तमी विभक्त का प्रयोग नहीं होता।
- (D) षष्ठी विभक्त, द्विवचन → यह भी गलत है, इस शब्द में षष्ठी विभक्त का प्रयोग नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'द्वितीया विभक्त, बहुवचन'।
Quick Tip: संस्कृत व्याकरण में विभक्तियों और वचनों का सही चयन करना महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इससे शब्दों का सही रूप और अर्थ स्पष्ट होता है।
'नामसम्' शब्द में विभक्त और वचन है:
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Step 1: Understanding the context.
'नामसम्' शब्द में तृतीय विभक्त और द्विवचन का प्रयोग होता है। यह शब्द संस्कृत के विभक्तियों से संबंधित है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) तृतीय विभक्त, द्विवचन → सही उत्तर, 'नामसम्' शब्द में तृतीय विभक्त और द्विवचन है।
- (B) चतुर्थी विभक्त, एकवचन → यह गलत है, चतुर्थी विभक्त का प्रयोग नहीं होता।
- (C) पंचमी विभक्त, बहुवचन → यह भी गलत है, पंचमी विभक्त का प्रयोग यहाँ नहीं है।
- (D) सप्तमी विभक्त, बहुवचन → यह भी गलत है, सप्तमी विभक्त का प्रयोग इस शब्द में नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'तृतीय विभक्त, द्विवचन'।
Quick Tip: विभक्तियों और वचनों का सही पहचानना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह व्याकरण को सही तरीके से समझने में मदद करता है।
दिये गए निम्नलिखित शब्द-युग्मों का सही अर्थ चयन करके लिखिए:
'अशक्त - आस्तत'
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Step 1: Understanding the context.
'अशक्त' का मतलब 'जिसमें शक्ति नहीं हो' और 'आस्तत' का मतलब 'जिसमें शक्ति हो'। इन दोनों शब्दों का संबंध असमर्थ और शक्तिमान से होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) असमर्थ - शक्तिमान → सही उत्तर, क्योंकि 'अशक्त' का अर्थ असमर्थ और 'आस्तत' का अर्थ शक्तिमान है।
- (B) शक्ति सम्पन्न - आकर्षक → यह गलत है, क्योंकि शक्ति सम्पन्न का अर्थ 'आस्तत' नहीं है।
- (C) शक्ति हीन - मोहित → यह गलत है, 'शक्ति हीन' और 'आस्तत' का मेल नहीं है।
- (D) समर्थ - कुंठित → यह गलत है, समर्थ का अर्थ और 'आस्तत' का मेल नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'असमर्थ - शक्तिमान'।
Quick Tip: शब्दों के सही अर्थ का चयन करने में व्याकरणिक समझ का होना महत्वपूर्ण है।
('भवन - भुवन'’)
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Step 1: Understanding the context.
'भवन' का अर्थ होता है घर और 'भुवन' का अर्थ होता है संसार। दोनों का मेल घर और संसार के अर्थों से होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) बिकेठन - जंगल → यह गलत है, इन शब्दों का कोई संबंध नहीं है।
- (B) घर - संसार → सही उत्तर, 'भवन' और 'भुवन' का यही अर्थ है।
- (C) घना जंगल - लोक → यह गलत है, इन शब्दों का अर्थ भिन्न है।
- (D) स्मृति - आयतन → यह गलत है, यह शब्द युग्म सही नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'घर - संसार'।
Quick Tip: शब्दों के सही अर्थ के मेल से हमें उनके सही चयन में मदद मिलती है।
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो अर्थ लिखिए:
(i) चपला
(ii) प्रयोधर
(iii) विधि
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(i) चपला
अर्थ 1: किसी का हरकतों में तेज या चपल होना।
वाक्य प्रयोग:
वह चपल बच्चा हर समय इधर-उधर दौड़ता रहता है।
अर्थ 2: अत्यधिक चंचल होना।
वाक्य प्रयोग:
उसकी चपलता के कारण उसे शांत बैठने में परेशानी होती है।
(ii) प्रयोधर
अर्थ 1: प्रयोग करने का साधन या उपकरण।
वाक्य प्रयोग:
किसी भी प्रयोग में प्रयोधर का सही उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है।
अर्थ 2: कर्म या कार्य को पूरा करने का तरीका।
वाक्य प्रयोग:
नवीन प्रयोगों के लिए आधुनिक प्रयोधर का प्रयोग करना चाहिए।
(iii) विधि
अर्थ 1: किसी कार्य को करने का तरीका।
वाक्य प्रयोग:
वह समस्या को हल करने की विधि समझाकर सबको समझा रहा था।
अर्थ 2: शास्त्र या विज्ञान से जुड़ा कोई नियम या प्रक्रिया।
वाक्य प्रयोग:
कंप्यूटर विज्ञान की विधि के अनुसार हम इस डेटा को संग्रहीत करते हैं। Quick Tip: शब्दों के विभिन्न अर्थों को समझकर उनका सही उपयोग करना भाषा को प्रभावी बनाता है।
निम्नलिखित वाक्यों के लिए एक 'सही' शब्द का चयन करके लिखिए:
बहुत कम बोलनेवाला -
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Step 1: Understanding the context.
'बहुत कम बोलनेवाला' के लिए 'वाचाल' शब्द उपयुक्त है। वाचाल का अर्थ होता है जो बहुत बोलने वाला हो।
Step 2: Option Analysis.
- (A) वाचाल → सही उत्तर, इसका अर्थ 'बहुत बोलनेवाला' होता है।
- (B) अमितभाशी → यह गलत है, इसका अर्थ होता है 'असीमित भाषी', जो यहाँ संदर्भित नहीं है।
- (C) मित्रभाशी → यह गलत है, इसका अर्थ होता है 'मित्रों की भाषा बोलने वाला', जो संदर्भ से मेल नहीं खाता।
- (D) बहुभाषी → यह गलत है, इसका अर्थ 'बहुत भाषाएँ बोलने वाला' है, जो 'बहुत कम बोलनेवाला' से मेल नहीं खाता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'वाचाल'।
Quick Tip: शब्दों का चयन सही अर्थ के लिए करना महत्वपूर्ण होता है, खासकर जब वाक्य के संदर्भ में सही शब्द का चयन किया जाता है।
जानने की इच्छा रखनेवाला -
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Step 1: Understanding the context.
'जानने की इच्छा रखनेवाला' के लिए 'जिज्ञासु' शब्द उपयुक्त है। जिज्ञासु वह व्यक्ति होता है जो जानने के लिए इच्छुक होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) जिज्ञासा → यह गलत है, यह 'इच्छा' का सूचक नहीं है, बल्कि 'जिज्ञासा' का अर्थ है 'अग्रहणीय इच्छा'।
- (B) जिज्ञासु → सही उत्तर, इसका अर्थ है 'जानने की इच्छा रखनेवाला'।
- (C) चिकिचुं → यह गलत है, यह शब्द किसी व्यक्ति के बारे में नहीं है।
- (D) इच्छुक → यह गलत है, यह केवल इच्छा रखनेवाले का संकेत देता है, लेकिन जिज्ञासु का मतलब विशेष रूप से ज्ञान की इच्छा रखनेवाला होता है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'जिज्ञासु'।
Quick Tip: सही शब्द का चयन करना आवश्यक है, क्योंकि इससे वाक्य का अर्थ और संदर्भ सही होता है।
निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए:
(i) वह अपनी ताकत के बल पर खड़ा है।
(ii) इसमें समस्त प्राणियों का कल्याण है।
(iii) आपके साथ उचित न्याय किया जायेगा।
(iv) जीवन और साहित्य का घोर संबंध है।
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(i) वह अपनी ताकत के बल पर खड़ा है।
शुद्ध वाक्य: वह अपनी ताकत के बल पर खड़ा है।
व्याख्या: यह वाक्य पहले से ही सही है, इसमें कोई त्रुटि नहीं है।
(ii) इसमें समस्त प्राणियों का कल्याण है।
शुद्ध वाक्य: इसमें समस्त प्राणियों का कल्याण है।
व्याख्या: यह वाक्य भी पहले से सही है। 'समस्त' का प्रयोग यहाँ उचित है, और 'कल्याण' का अर्थ है किसी का भला या सुख।
(iii) आपके साथ उचित न्याय किया जायेगा।
शुद्ध वाक्य: आपके साथ उचित न्याय किया जाएगा।
व्याख्या: 'किया जायेगा' में त्रुटि है। 'जाएगा' का प्रयोग सही है, क्योंकि यह भविष्यकाल का वचन है।
(iv) जीवन और साहित्य का घोर संबंध है।
शुद्ध वाक्य: जीवन और साहित्य का गहरा संबंध है।
व्याख्या: 'घोर' शब्द का प्रयोग यहाँ ठीक नहीं है। 'गहरा' शब्द का प्रयोग यहाँ अधिक उचित है क्योंकि यह संबंध की गहराई को दर्शाता है। Quick Tip: वाक्यों को शुद्ध करते समय व्याकरण, शब्द चयन, और वचन का सही प्रयोग सुनिश्चित करें।
(क) 'वीर' रस अथवा 'क्रोध' रस की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
अथवा
(ख) 'श्लेष' अथवा 'उत्प्रेक्षा' अलंकार का लक्षण लिखकर एक उदाहरण दीजिए।
अथवा
(ग) 'दोहे' अथवा 'कुण्डलियाँ' छंद का लक्षण एवं उदाहरण लिखिए।
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(क) 'वीर' रस अथवा 'क्रोध' रस की सोदाहरण परिभाषा:
1. वीर रस:
वीर रस को ‘शौर्य रस’ भी कहते हैं, जो शौर्य, साहस और उत्साह की भावना को प्रकट करता है। यह रस युद्ध, संघर्ष, बलिदान और विजय के संदर्भ में व्यक्त होता है। उदाहरण:
"जब तक न पाओ दुश्मन को मात, तब तक न रुकें, यह है वीरता की बात।"
2. क्रोध रस:
क्रोध रस उस अवस्था को व्यक्त करता है, जिसमें व्यक्ति को गुस्सा, नाराजगी और आक्रोश का अनुभव होता है। यह रस हिंसा और प्रतिरोध की भावनाओं से जुड़ा होता है। उदाहरण:
"वह गुस्से में उबल पड़ा, और उसने शत्रु को हराया।"
(ख) 'श्लेष' अथवा 'उत्प्रेक्षा' अलंकार का लक्षण और उदाहरण:
1. श्लेष अलंकार:
श्लेष अलंकार तब होता है, जब एक शब्द का एक से अधिक अर्थ लिया जाता है, जिससे उसका एक साथ दो या अधिक अर्थ निकलते हैं। उदाहरण:
"प्यारी सी चाँदनी रात, जो भी देखे, अपनी ही आँखों में बस जाए।"
यहाँ 'चाँदनी' का अर्थ रात और उसकी सुंदरता से लिया गया है, लेकिन दूसरे अर्थ में यह चाँदनी का एक रूप है।
2. उत्प्रेक्षा अलंकार:
उत्प्रेक्षा अलंकार में किसी वस्तु या घटना की तुलना अन्य वस्तु या घटना से की जाती है, जिससे उसका अभिप्राय स्पष्ट होता है। उदाहरण:
"वह उस पेड़ की तरह मजबूत है, जो कभी न गिरने का वादा करता है।"
यहाँ पेड़ और इंसान की तुलना की गई है, जो शक्ति और स्थिरता को व्यक्त करती है।
(ग) 'दोहे' अथवा 'कुण्डलियाँ' छंद का लक्षण एवं उदाहरण:
1. दोहे छंद:
दोहे छंद एक लोकप्रिय छंद है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति में 13 या 14 वर्ण होते हैं। इस छंद का एक प्रसिद्ध उदाहरण है:
"सपने में जो देखा मैंने, वही है हकीकत।
जो किया था कल, वही है आज की शुरुआत।"
यह उदाहरण दोहे छंद का है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति में 13-14 वर्ण होते हैं।
2. कुण्डलियाँ छंद:
कुण्डलियाँ छंद में प्रत्येक पंक्ति में 8-8 या 12-12 वर्ण होते हैं, और यह एक लोकप्रिय काव्य छंद है, जो प्रायः गीतों और कविताओं में उपयोग होता है। उदाहरण:
"वह ख़ुशियाँ हमें मिलें, ऐसी जब भी हो बात।
माँ के हाथों का स्वाद, दिल से मन में बात।"
अपने नगर की सफाई के लिए अध्यक्ष, नगर पंचायत को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।
अथवा
पुस्तक-व्यय के लिए ऋण प्राप्त करने हेतु अपने निकटस्थ किसी बैंक के शाखा-प्रबंधक को आवेदन-पत्र लिखिए।
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नगर पंचायत को प्रार्थना पत्र:
From:
[आपका नाम]
[आपका पता]
[शहर, राज्य]
[तारीख]
To:
अध्यक्ष,
नगर पंचायत,
[नगर पंचायत का नाम]
[नगर पंचायत का पता]
[शहर, राज्य]
विषय: नगर की सफाई के लिए प्रार्थना-पत्र।
मान्यवर,
सादर निवेदन है कि हमारे नगर में सफाई व्यवस्था अत्यधिक खराब हो गई है। गली-मोहल्लों में कूड़े के ढेर लगे रहते हैं, जिससे गंदगी और बीमारियाँ फैल रही हैं। नगरवासियों को कड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
आपसे निवेदन है कि नगर में सफाई की व्यवस्था में सुधार किया जाए और कूड़ा-करकट उठाने का नियमित अभियान चलाया जाए। यदि संभव हो तो सफाईकर्मियों की संख्या बढ़ाई जाए और उन्हें समय पर सफाई का कार्य सौंपा जाए।
आपकी ओर से इस पर त्वरित कार्रवाई की उम्मीद है।
आपका विश्वासी,
[आपका नाम]
[आपका संपर्क नंबर] Quick Tip: प्रार्थना पत्र लिखते समय समस्या को स्पष्ट रूप से और त्वरित समाधान की आवश्यकता का उल्लेख करें।
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा-शैली में निबंध लिखिए:
(i) भारतीय जीवन में व्याप्त कुरीतियाँ
(ii) बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
(iii) प्राकृतिक आपदाएँ: कारण और निवारण
(iv) विज्ञान वरदान है या अभिशाप
(v) पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता
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(i) भारतीय जीवन में व्याप्त कुरीतियाँ
निबंध:
भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहाँ विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं का संगम है। लेकिन इस विविधता के बावजूद हमारे समाज में कई कुरीतियाँ व्याप्त हैं जो न केवल हमारे समाज के विकास को रोकती हैं, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी समस्याओं का कारण बनती हैं। कुरीतियाँ समाज में कई तरह के सामाजिक और मानसिक दबाव उत्पन्न करती हैं। इन कुरीतियों के कारण लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और यह हमारे सामाजिक ढांचे को कमजोर कर देती हैं।
सबसे प्रमुख कुरीतियों में बाल विवाह, जातिवाद, दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न, और सती प्रथा जैसी कुरीतियाँ शामिल हैं। बाल विवाह भारतीय समाज में एक बहुत बड़ी समस्या है, जो लड़कियों के जीवन को प्रभावित करती है। यह कुरीति न केवल लड़कियों की शिक्षा को रोकती है, बल्कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास में भी बाधा डालती है।
दहेज प्रथा एक और कुरीति है जो भारतीय समाज में व्याप्त है। इस प्रथा के कारण महिलाओं को अक्सर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इससे समाज में असमानता बढ़ती है और महिलाओं की स्थिति और भी कमजोर हो जाती है। जातिवाद भी भारतीय समाज की एक बड़ी कुरीति है, जो समाज में असमानता और भेदभाव को जन्म देती है। इसके कारण लोगों के बीच सौहार्द और समरसता का निर्माण नहीं हो पाता।
इस प्रकार की कुरीतियों को समाप्त करने के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण कदम है। सरकार और समाज को मिलकर इन कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने चाहिए और लोगों को सही जानकारी देने चाहिए। इसके अलावा, समाज के हर वर्ग को एकजुट होकर इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
समाप्ति:
इन कुरीतियों का उन्मूलन तभी संभव है जब हम अपने सोचने और समझने के तरीके को बदलें। शिक्षा और जागरूकता के द्वारा हम समाज में सुधार ला सकते हैं। समाज के हर वर्ग का यह कर्तव्य है कि वह इन कुरीतियों के खिलाफ उठ खड़ा हो और एक स्वस्थ और सशक्त समाज की ओर कदम बढ़ाए।
(ii) बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
निबंध:
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' भारत सरकार द्वारा चलाया गया एक महत्वपूर्ण अभियान है, जिसका उद्देश्य बेटियों के प्रति समाज में व्याप्त भेदभाव और असमानता को समाप्त करना है। इस अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में की थी। इसका मुख्य उद्देश्य बेटी के जन्म को लेकर समाज में जो भ्रांतियाँ और मानसिकताएँ हैं, उन्हें समाप्त करना है। इसके अलावा, यह अभियान बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा देने का भी काम करता है।
भारतीय समाज में अब तक बेटों को प्राथमिकता दी जाती रही है, जबकि बेटियाँ कई प्रकार के भेदभाव और दुरुपयोग का शिकार होती आई हैं। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान का उद्देश्य समाज में लड़कियों की सुरक्षा, शिक्षा और समान अधिकारों को बढ़ावा देना है। यह अभियान विशेष रूप से उन क्षेत्रों में प्रभावी है जहाँ लड़कियों की शिक्षा को लेकर साक्षरता दर कम है और लिंग आधारित भेदभाव अधिक है।
इस अभियान के अंतर्गत सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं जैसे 'बालिका सम्मान योजना', 'कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए योजनाएँ', और 'सुकन्या समृद्धि योजना'। इन योजनाओं के माध्यम से लोगों को बेटियों के जन्म और शिक्षा के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
समाप्ति:
इस अभियान के माध्यम से हम समाज में लैंगिक असमानता को समाप्त करने में सफल हो सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि बेटियाँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितने बेटों का स्थान है। उनका योगदान किसी भी क्षेत्र में किसी भी लड़के से कम नहीं हो सकता। हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी और बेटियों को समान अवसर प्रदान करने होंगे।
(iii) प्राकृतिक आपदाएँ: कारण और निवारण
निबंध:
प्राकृतिक आपदाएँ वे घटनाएँ होती हैं, जो प्रकृति के किसी अव्यवस्थित या अचानक होने वाले परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती हैं। इन आपदाओं के कारण जन-धन की हानि होती है और समाज पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़, भूकंप, तूफान, सूखा, और बर्फबारी शामिल हैं। इन आपदाओं के कारण होने वाली हानि का प्रभाव विशेष रूप से विकासशील देशों में ज्यादा होता है।
प्राकृतिक आपदाओं के कारणों में मानवीय गतिविधियाँ और प्राकृतिक असंतुलन दोनों शामिल हैं। जैसे कि, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, अत्यधिक शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, और मानवीय कार्यों के कारण पर्यावरण असंतुलित हो जाता है। इसके अलावा, तकनीकी और वैज्ञानिक विकास की कमी के कारण हम प्राकृतिक आपदाओं का सही तरीके से सामना नहीं कर पाते।
निवारण:
इन आपदाओं को रोकने या उनका निवारण करने के लिए सबसे पहले हमें पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना होगा। वृक्षारोपण, जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण, और प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करके हम प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम कर सकते हैं। इसके अलावा, आपदा प्रबंधन योजनाओं को प्रभावी बनाना भी आवश्यक है।
समाप्ति:
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार को समुचित आपदा प्रबंधन प्रणाली विकसित करनी होगी और समाज को भी आपदा के समय सतर्क और तैयार रहना होगा। हमें अपनी प्रकृति और पर्यावरण का सही तरीके से संरक्षण करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इन आपदाओं से होने वाली हानि को कम किया जा सके।
(iv) विज्ञान वरदान है या अभिशाप
निबंध:
विज्ञान का विकास मानव जीवन के लिए वरदान साबित हुआ है। विज्ञान के माध्यम से हमने अपने जीवन को अधिक सुविधाजनक, सुरक्षित और आरामदायक बनाया है। चिकित्सा, संचार, परिवहन, कृषि, और अन्य कई क्षेत्रों में विज्ञान ने अविश्वसनीय प्रगति की है। वैज्ञानिक आविष्कारों ने मानव जीवन की गुणवत्ता को बेहतर किया है।
लेकिन, विज्ञान का दुरुपयोग भी कई समस्याओं का कारण बन सकता है। जैविक हथियारों का निर्माण, परमाणु युद्ध, और प्रदूषण जैसे उदाहरण हैं, जिनसे यह साबित होता है कि विज्ञान कभी-कभी अभिशाप भी बन सकता है। विज्ञान का गलत उपयोग यदि किसी हिंसक उद्देश्य के लिए किया जाए तो यह मानवता के लिए विनाशकारी हो सकता है।
समाप्ति:
इस प्रकार, यह कहना कि विज्ञान केवल वरदान है या अभिशाप, पूरी तरह से सही नहीं होगा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम विज्ञान का उपयोग किस उद्देश्य से करते हैं। यदि विज्ञान का उपयोग अच्छे उद्देश्य के लिए किया जाए, तो यह वरदान बन सकता है, लेकिन यदि इसका दुरुपयोग किया जाए, तो यह अभिशाप बन सकता है।
(v) पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता
निबंध:
वर्तमान समय में पर्यावरण की स्थिति अत्यधिक चिंताजनक हो गई है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और जैव विविधता की हानि के कारण हमारे पर्यावरण पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। इन समस्याओं के कारण पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ रहा है।
पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता इसलिए है ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद वातावरण बना सकें। इसके लिए हमें अपने जीवनशैली में बदलाव लाने होंगे। वृक्षारोपण, जल बचत, ऊर्जा बचत, और स्वच्छता को बढ़ावा देना पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
समाप्ति:
हम सभी को यह समझना होगा कि पर्यावरण ही हमारे अस्तित्व का आधार है। यदि हम इसका संरक्षण नहीं करेंगे तो न केवल हम, बल्कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसका खामियाजा भुगतेंगी। इसलिए, पर्यावरण संरक्षण हमारे लिए एक प्राथमिकता होनी चाहिए। Quick Tip: निबंध लेखन में विषय की गहरी समझ और तार्किक विचारों का होना आवश्यक है। निबंध को व्यावहारिक और उदाहरणों से सुसज्जित करने से उसका प्रभाव बढ़ता है।



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