UP Board Class 12 Hindi General Question Paper with Answer Key Code 302 ZM is available for download. The exam was conducted by the Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad (UPMSP) on February 16, 2023 in Afternoon Session 2 PM to 5:15 PM. The medium of paper was Hindi. In terms of difficulty level, UP Board Class 12 Hindi General paper was Easy. The question paper comprised a total of 14 questions.
UP Board Class 12 Hindi General (Code 302 ZM) Question Paper with Answer Key (February 16)
| UP Board Class 12 Hindi General (Code 302 ZM) Question Paper with Solutions PDF | Download PDF | Check Solutions |

भारतेंदु हरिशचन्द्र द्वारा संपादित पत्रिका है:
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Step 1: Understanding the context.
भारतेंदु हरिशचन्द्र ने 'हिंदी दीप' नामक पत्रिका का संपादन किया था। यह पत्रिका हिंदी साहित्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण थी।
Step 2: Option Analysis.
- (A) हिंदी दीप → सही उत्तर, यह पत्रिका भारतेंदु हरिशचन्द्र द्वारा संपादित की गई थी।
- (B) कवी वचन सुधा → यह गलत है, 'कवी वचन सुधा' भारतेंदु हरिशचन्द्र द्वारा संपादित नहीं थी।
- (C) आनंद कादम्बिनी → यह भी गलत है, 'आनंद कादम्बिनी' का संपादन अन्य विद्वानों ने किया।
- (D) ब्राह्मण → यह गलत है, 'ब्राह्मण' पत्रिका का संपादन भारतेंदु हरिशचन्द्र द्वारा नहीं हुआ।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'हिंदी दीप', क्योंकि यह पत्रिका भारतेंदु हरिशचन्द्र द्वारा संपादित थी।
Quick Tip: भारतेंदु हरिशचन्द्र को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, और 'हिंदी दीप' उनके संपादन कार्य का एक उदाहरण है।
'श्रद्धा-भक्ति' निबंध के लेखक हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'श्रद्धा-भक्ति' निबंध श्यामसुंदर दाम द्वारा लिखा गया था, जिसमें उन्होंने श्रद्धा और भक्ति के महत्व को स्पष्ट किया था।
Step 2: Option Analysis.
- (A) श्यामसुंदर दाम → सही उत्तर, श्यामसुंदर दाम ने 'श्रद्धा-भक्ति' निबंध लिखा था।
- (B) गुलाबराय → यह गलत है, गुलाबराय का इस निबंध से कोई संबंध नहीं है।
- (C) रामचंद्र शुक्ल → यह भी गलत है, रामचंद्र शुक्ल ने इस निबंध को नहीं लिखा।
- (D) विद्यानीवाश मिश्र → यह गलत है, विद्यानीवाश मिश्र का इस निबंध से कोई संबंध नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) श्यामसुंदर दाम, जिन्होंने 'श्रद्धा-भक्ति' निबंध लिखा।
Quick Tip: 'श्रद्धा-भक्ति' निबंध में श्यामसुंदर दाम ने भारतीय समाज में श्रद्धा और भक्ति के महत्व को दर्शाया।
'रंगभूमि' उपन्यास के लेखक हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'रंगभूमि' उपन्यास प्रेमचंद द्वारा लिखा गया है। यह उपन्यास सामाजिक मुद्दों और भारतीय जीवन के संघर्षों को उजागर करता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) वृंदावनलाल वर्मा → यह गलत है, 'रंगभूमि' उपन्यास के लेखक प्रेमचंद थे।
- (B) जयशंकर प्रसाद → यह गलत है, जयशंकर प्रसाद का 'रंगभूमि' से कोई संबंध नहीं है।
- (C) प्रेमचंद → सही उत्तर, प्रेमचंद ने 'रंगभूमि' उपन्यास लिखा था।
- (D) चतुरसेन शास्त्री → यह गलत है, चतुरसेन शास्त्री का 'रंगभूमि' से कोई संबंध नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) प्रेमचंद, जिन्होंने 'रंगभूमि' उपन्यास लिखा।
Quick Tip: 'रंगभूमि' उपन्यास में प्रेमचंद ने भारतीय समाज के भीतर व्याप्त असमानताओं और संघर्षों को बड़ी सशक्तता से प्रस्तुत किया है।
'कर्मनाथ की हार' कहानी के लेखक हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'कर्मनाथ की हार' कहानी जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखी गई है, जिसमें उन्होंने जीवन के यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का चित्रण किया है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) शिवप्रसाद सिंह → यह गलत है, शिवप्रसाद सिंह ने 'कर्मनाथ की हार' कहानी नहीं लिखी।
- (B) जैनेंद्र कुमार → सही उत्तर, जैनेंद्र कुमार ने 'कर्मनाथ की हार' कहानी लिखी थी।
- (C) यशपाल → यह गलत है, यशपाल का इस कहानी से कोई संबंध नहीं है।
- (D) काशीनाथ सिंह → यह भी गलत है, काशीनाथ सिंह का इस कहानी से कोई संबंध नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) जैनेंद्र कुमार, जिन्होंने 'कर्मनाथ की हार' कहानी लिखी थी।
Quick Tip: जैनेंद्र कुमार की कहानियों में जीवन के जटिल पहलुओं और सामाजिक विसंगतियों की सशक्त प्रस्तुति मिलती है।
'राष्ट्र का स्वरूप' निबंध वासुदेवशरण अग्रवाल के किस निबंध-संक्षेप से लिया गया है?
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Step 1: Understanding the context.
'राष्ट्र का स्वरूप' निबंध वासुदेवशरण अग्रवाल के 'भारत की एकता' निबंध से लिया गया है, जिसमें उन्होंने भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक एकता की महत्वपूर्ण चर्चा की थी।
Step 2: Option Analysis.
- (A) पृथ्वीपुत्र → यह गलत है, 'पृथ्वीपुत्र' निबंध से 'राष्ट्र का स्वरूप' का कोई संबंध नहीं है।
- (B) कल्पवृक्ष → यह गलत है, 'कल्पवृक्ष' निबंध से यह संदर्भ नहीं लिया गया।
- (C) भारत की एकता → सही उत्तर, 'राष्ट्र का स्वरूप' निबंध 'भारत की एकता' से लिया गया है।
- (D) कला और संस्कृति → यह भी गलत है, 'कला और संस्कृति' निबंध से यह संदर्भ नहीं लिया गया।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) 'भारत की एकता', क्योंकि 'राष्ट्र का स्वरूप' निबंध वासुदेवशरण अग्रवाल के 'भारत की एकता' निबंध से लिया गया है।
Quick Tip: 'भारत की एकता' निबंध में वासुदेवशरण अग्रवाल ने भारत की विविधताओं के बावजूद उसकी एकता को महत्वपूर्ण बताया था।
गिरिजाकुमार माथुर किस काल के कवि हैं?
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Step 1: Understanding the context.
गिरिजाकुमार माथुर रीतिकावादी कवि थे, जो मुख्य रूप से अपनी काव्य रचनाओं में भाव, रस, और अलंकारों का प्रभावशाली प्रयोग करते थे।
Step 2: Option Analysis.
- (A) आदिकाल → यह गलत है, गिरिजाकुमार माथुर आदिकाल के कवि नहीं थे।
- (B) भक्ति काल → यह भी गलत है, गिरिजाकुमार माथुर भक्ति काल के कवि नहीं थे।
- (C) रीतिकाल → सही उत्तर, गिरिजाकुमार माथुर रीतिकाल के कवि थे।
- (D) आधुनिककाल → यह गलत है, गिरिजाकुमार माथुर आधुनिक काल के कवि नहीं थे।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) रीतिकाल, क्योंकि गिरिजाकुमार माथुर रीतिकाल के कवि थे।
Quick Tip: रीतिकावाद में काव्य शास्त्र, अलंकार और रस की प्रधानता होती है, और गिरिजाकुमार माथुर ने इन्हीं विशेषताओं को अपनी कविताओं में प्रदर्शित किया।
'प्रगतिवादी काव्यधारा' के प्रमुख कवि हैं:
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Step 1: Understanding the context.
प्रगतिवादी काव्यधारा के प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल थे। उनका काव्य समाजिक जागरूकता और परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्ध था।
Step 2: Option Analysis.
- (A) केदारनाथ अग्रवाल → सही उत्तर, केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिवादी काव्यधारा के प्रमुख कवि थे।
- (B) सूरदास → यह गलत है, सूरदास भक्ति काल के कवि थे, न कि प्रगतिवादी काव्यधारा के।
- (C) तुलसीदास → यह गलत है, तुलसीदास भी भक्ति काल के कवि थे।
- (D) चंद्रबरदायी → यह भी गलत है, चंद्रबरदायी का प्रगतिवादी काव्यधारा से कोई संबंध नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) केदारनाथ अग्रवाल।
Quick Tip: प्रगतिवादी काव्यधारा में समाजिक मुद्दों, जागरूकता और परिवर्तन की ओर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
'लेहर' काव्यकृति के रचनाकार हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'लेहर' काव्यकृति के रचनाकार धर्मवीर भारती थे। यह काव्य रचना प्रेम, संघर्ष और समाज के प्रति प्रतिबद्धता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) महादेवी वर्मा → यह गलत है, महादेवी वर्मा ने 'संगठित' जैसी काव्यकृतियों की रचना की थी।
- (B) जयशंकर प्रसाद → यह भी गलत है, जयशंकर प्रसाद का काव्य-लेखन 'उर्वशी' और 'कान्यकुब्ज' जैसी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध है, न कि 'लेहर' के लिए।
- (C) धर्मवीर भारती → सही उत्तर, धर्मवीर भारती ने 'लेहर' काव्यकृति की रचना की थी।
- (D) 'अंजय' → यह गलत है, 'अंजय' ने 'लेहर' काव्यकृति नहीं लिखी।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) धर्मवीर भारती।
Quick Tip: धर्मवीर भारती की रचनाओं में समाज के प्रति गहरी सोच और सामाजिक उत्थान का संदेश होता है।
'उमिला का विरह वर्णन' साकेत के किस सर्ग में है?
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Step 1: Understanding the context.
'उमिला का विरह वर्णन' साकेत काव्य के प्रथम सर्ग में किया गया है, जिसमें उमिला का विरह और उसकी पीड़ा का चित्रण किया गया है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) प्रथम सर्ग → सही उत्तर, 'उमिला का विरह वर्णन' प्रथम सर्ग में किया गया है।
- (B) द्वितीय सर्ग → यह गलत है, क्योंकि 'उमिला का विरह वर्णन' द्वितीय सर्ग में नहीं है।
- (C) नवम सर्ग → यह भी गलत है, 'उमिला का विरह वर्णन' नवम सर्ग में नहीं है।
- (D) चतुर्थ सर्ग → यह भी गलत है, यह वर्णन चतुर्थ सर्ग में नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) प्रथम सर्ग।
Quick Tip: साकेत के काव्य में विरह का वर्णन प्रेमिका के दुःख और वेदना को उजागर करता है, विशेष रूप से पहले सर्ग में।
'परिवर्तन' किस कवी की रचना है?
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Step 1: Understanding the context.
'परिवर्तन' निबंध कवि 'निराला' की रचना है, जिसमें उन्होंने समाजिक बदलाव और व्यक्तित्व की समृद्धि पर विचार व्यक्त किए हैं।
Step 2: Option Analysis.
- (A) सुमित्रानंदन पंत → यह गलत है, 'परिवर्तन' निबंध सुमित्रानंदन पंत की रचना नहीं है।
- (B) 'निराला' → सही उत्तर, 'परिवर्तन' निबंध निराला की रचना है।
- (C) 'रतनाकर' → यह भी गलत है, रतनाकर का इस निबंध से कोई संबंध नहीं है।
- (D) 'धूमिल' → यह भी गलत है, 'धूमिल' ने 'परिवर्तन' निबंध नहीं लिखा।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'निराला', जिन्होंने 'परिवर्तन' निबंध लिखा।
Quick Tip: निराला की रचनाओं में समाज के प्रति गहरी सोच और परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता झलकती है।
दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
यह प्रणाम-भाव ही भूमि और जन का दाह-बन्धन है। इसी दहबन्धि पर राष्ट्र का भवन तैयार किया जाता है। इसी दहबन्धि पर राष्ट्र का चिर जीवन आश्रित रहता है। इसी मर्यादा को मानकर राष्ट्र के प्रति मनुष्यों के कर्तव्य और अधिकारों का उदय होता है। जो जन पृथ्वी के साथ माता और पुत्र के संबंध को स्वीकार करता है, उसे ही पृथ्वी के वरदानों में भाग पाने का अधिकार है। माता के प्रति अनुराग और सेवा भाव पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य है। वह एक निष्कलंक धर्म है। स्वार्थ के लिए पुत्र का माता के प्रति प्रेम, पुत्र के अध: पतन को सूचित करता है।
Question 11:
उपयुक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
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Step 1: गद्यांश का अध्ययन।
यह प्रश्न किसी दिए गए गद्यांश से जुड़ा है जिसमें हमें लेखक का नाम और गद्यांश का विवरण देना होता है। गद्यांश का उद्देश्य उस पर आधारित साहित्यिक विचार प्रस्तुत करना होता है।
Step 2: लेखक का नाम।
यह गद्यांश उस लेखक के द्वारा लिखा गया है जिसने इस विषय को गहरे से समझा और विस्तार से लिखा। लेखक का नाम (यहां उपयुक्त नाम दर्ज करें) है।
Step 3: गद्यांश का विश्लेषण।
गद्यांश में विचारों और भावनाओं की प्रस्तुति है जो समाज या किसी विशेष समस्या के बारे में गहरी जानकारी देती है।
Quick Tip: जब आपको गद्यांश का लेखक और उसका नाम बताने के लिए कहा जाए, तो पहले गद्यांश के विषय और उसके प्रमुख बिंदुओं को ध्यान से समझें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश की पहचान।
यह प्रश्न दिए गए अंश पर आधारित है, जिसमें विशेष शब्दों या वाक्यों का विश्लेषण किया जाता है।
Step 2: अंश की व्याख्या।
अंश का अर्थ और उसका भावार्थ समझते हुए, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि लेखक ने क्या संदेश दिया है। यहाँ लेखक ने गहरे भावों का इंद्रधनुषी रूप में चित्रण किया है।
Step 3: निष्कर्ष।
अंश की व्याख्या में यह निष्कर्ष निकलता है कि लेखक का उद्देश्य समाज की समस्याओं को उजागर करना और उसमें सुधार लाने के लिए प्रेरित करना है।
Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय, शब्दों के संदर्भ और उनके माध्यम से व्यक्त किए गए भावों पर विशेष ध्यान दें।
स्वार्थ के लिए पुत्र का माता के प्रति प्रेम क्या सूचित करता है?
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न उस पद्यांश से जुड़ा है, जिसमें बेटे के कर्तव्य और उसकी माता के प्रति प्रेम को दर्शाया गया है।
Step 2: पद्यांश की व्याख्या।
इस पद्यांश में यह स्पष्ट किया गया है कि स्वार्थ के लिए पुत्र अपने कर्तव्यों का पालन करता है, लेकिन उसे माता के प्रति भी प्रेम और सम्मान की भावना रहती है।
इससे यह सूचित होता है कि पुत्र अपने स्वार्थ को पूर्ण करने के साथ-साथ अपने कर्तव्यों और माता के प्रति अपने प्रेम का भी पालन करता है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यह सूचित होता है कि पुत्र का स्वार्थ के लिए माता के प्रति प्रेम कर्तव्य और स्वार्थ का संगम है।
Quick Tip: जब किसी रिश्ते का विश्लेषण किया जाए तो उसमें न केवल भावनाओं बल्कि कर्तव्यों का भी ध्यान रखना चाहिए।
भूमि और जन का हृद-बंधन क्या है?
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न भूमि और जन के बीच के रिश्ते को दर्शाता है, जो उनके अस्तित्व के संबंध से जुड़ा हुआ है।
Step 2: पद्यांश की व्याख्या।
यहाँ पर यह बताया गया है कि भूमि और जन का हृद-बंधन उनके जीवन और अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। भूमि का अस्तित्व जन के बिना अधूरा है और जन का अस्तित्व भूमि के बिना असंभव है।
इस रिश्ते को गहरा और स्थायी माना जाता है। भूमि और जन दोनों एक-दूसरे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः भूमि और जन का हृद-बंधन उनके अस्तित्व और जीवन के मूल कारणों से जुड़ा हुआ है।
Quick Tip: भूमि और जन के बीच के रिश्ते में पारस्परिक निर्भरता को समझने की आवश्यकता है।
'दृढ़बिति' और 'निर्वारण' शब्दों का अर्थ लिखिए।
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Step 1: प्रश्न का विश्लेषण।
यह प्रश्न दो महत्वपूर्ण शब्दों - 'दृढ़बिति' और 'निर्वारण' का अर्थ जानने के लिए है।
Step 2: शब्दों का अर्थ।
'दृढ़बिति' शब्द का अर्थ है किसी कार्य में दृढ़ता और स्थिरता बनाए रखना। यह शब्द जीवन में अपने उद्देश्य के प्रति अविचल रहने और कभी न डगमगाने का संकेत करता है।
'निर्वारण' शब्द का अर्थ है किसी का उन्मोचन या छुटकारा प्राप्त करना। यह शब्द किसी बुराई, दोष या कष्ट से मुक्त होने की प्रक्रिया को दर्शाता है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'दृढ़बिति' का अर्थ है दृढ़ता और स्थिरता बनाए रखना, जबकि 'निर्वारण' का अर्थ है कष्टों और बुराइयों से मुक्ति प्राप्त करना।
Quick Tip: शब्दों के अर्थ को समझने के लिए उनके प्रयोग के संदर्भ को भी ध्यान में रखना चाहिए।
अथवा
अशोक का वृक्ष जितना भी मनोहर हो, जितना भी रहस्यमय हो, जितना भी अलंकारमय हो, परन्तु है वह उस विशाल सामन्त सभ्यता की परिष्कृत रुचि का ही प्रतीक है जो साधारण प्रजा के परिश्रमों पर पली थी, उसके रक्त के संस्कारणों को खाकर बड़ी हुई थी और लाखों करोड़ों की अपेक्षा से जो समृद्ध हुई थी। वे सामन्त उखड़ गए, समाज दह गए और मदनोत्सव की धूमधाम भी मिट गई।
Question 16:
पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।
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Step 1: पाठ का शीर्षक।
इस पाठ का शीर्षक "अशोक का वृक्ष" है। यह शीर्षक अशोक के वृक्ष की महत्वता और उसके प्रतीकात्मक अर्थ को दर्शाता है।
Step 2: लेखक का नाम।
इस पाठ के लेखक रवीन्द्रनाथ ठाकुर (रवीन्द्रनाथ ठाकुर उर्फ रवीन्द्रनाथ ठाकुर "Tagore") हैं।
Quick Tip: पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम हमेशा स्पष्ट और संक्षेप में लिखें।
अशोक का वृक्ष किसका प्रतीक है?
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Step 1: प्रतीकात्मक अर्थ।
अशोक का वृक्ष शांति और शौर्य का प्रतीक है। यह वृक्ष रवीन्द्रनाथ ठाकुर के दृष्टिकोण में समाज में बदलाव और धार्मिक समन्वय का प्रतिनिधित्व करता है। अशोक के वृक्ष को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से शांति और समृद्धि से जोड़ा जाता है।
Step 2: प्रतीक के रूप में अशोक।
अशोक का वृक्ष उन ऐतिहासिक सम्राट अशोक की विजय और उनके द्वारा फैलाए गए बौद्ध धर्म के संदेश का प्रतीक है। यह वृक्ष उन संस्कारों और विचारों का प्रतीक है जो अशोक ने अपने शासनकाल में फैलाए थे।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः अशोक का वृक्ष शांति, समृद्धि और सामाजिक समन्वय का प्रतीक है। यह न केवल बौद्ध धर्म के प्रसार का प्रतीक है, बल्कि यह सम्राट अशोक के द्वारा किए गए ऐतिहासिक कार्यों का भी प्रतिनिधित्व करता है।
Quick Tip: प्रतीकात्मकता के लिए किसी भी वस्तु या तत्व का अर्थ और इतिहास को समझना आवश्यक होता है।
लाखों करोड़ों की उपेक्षा से कौन समृद्ध हुआ था?
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Step 1: उपेक्षा और समृद्धि का संबंध।
लाखों करोड़ों की उपेक्षा से अशोक का वृक्ष समृद्ध हुआ था। जब समाज ने उसे नकारा था और उसकी उपेक्षा की थी, तब ही उसने खुद को परिष्कृत किया और वह अपनी उच्चता के प्रतीक के रूप में उभरा।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः लाखों करोड़ों की उपेक्षा के कारण अशोक का वृक्ष समृद्ध हुआ और उसे एक नया जीवन मिला।
Quick Tip: समृद्धि की प्रक्रिया में किसी तत्व की उपेक्षा से उसके भीतर की शक्ति उभरकर सामने आती है।
कौन उखड़ और ढह गया है?
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Step 1: उखड़ और ढहने का संदर्भ।
समाज उखड़ और ढह गया है। जब समाज ने अपने आदर्शों से समझौता किया, तो वह अपनी बुराईयों के कारण उखड़ने और ढहने लगा। उसकी नींव असत्य, असंवेदनशीलता और अन्याय पर आधारित थी।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः समाज की गिरावट और ढहने का कारण उसकी गलत नींव और आदर्शों की उपेक्षा है।
Quick Tip: समाज की स्थिरता और प्रगति उसके सही आदर्शों और मूल्यों पर आधारित होती है।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश की पहचान।
रेखांकित अंश में समाज और उसकी गलत आदतों की व्याख्या की गई है। यह अंश यह दर्शाता है कि जब समाज ने अपने नैतिक और सत्य के आदर्शों से समझौता किया, तो वह अपनी नींव को खो बैठा।
Step 2: भावार्थ।
इस अंश का संदेश यह है कि समाज का गिरना और ढहना उसकी कमजोर नींव और गलत आदर्शों के कारण हुआ है। यदि समाज अपने मूल्यों और आदर्शों पर टिके रहता, तो वह मजबूत और स्थिर रहता।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यह अंश हमें समाज की गलतियों और उसकी स्थिति को सुधारने का संदेश देता है। समाज की नींव को मजबूत और न्यायपूर्ण बनाना आवश्यक है।
Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय ध्यान रखें कि उसके संदर्भ और संदेश को सही ढंग से प्रस्तुत करें।
दिये गए पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
इस धारा-सा ही जन का क्रम, शाश्वत इस जीवन का उद्गम
शाश्वत है गति, शाश्वत संगम !
शाश्वत नम का नीला का विकास, शाश्वत राशि का यह रत्न हास,
शाश्वत लघु लहरों का विकास !
हे जनजीवन के कर्णधार ! चिरजनम मरण के आर-पार
शाश्वत जीवन नौका बिहार !
मैं भूल गया अस्तित्व ज्ञान, जीवन का यह शाश्वत प्रमाण
करता मुंझको अमरत्वदान !
Question 21:
उपयुक्त पद्यांश के कवि एवं शीर्षक का नाम लिखिए।
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Step 1: कवि एवं शीर्षक का नाम।
उपयुक्त पद्यांश के कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर (रवीन्द्रनाथ ठाकुर उर्फ रवीन्द्रनाथ ठाकुर "Tagore") हैं और इस रचना का शीर्षक "शाश्वत संग्राम" है। यह रचना जीवन के निरंतर संघर्ष और अस्तित्व के महत्व को व्यक्त करती है। कवि ने जीवन को एक शाश्वत संग्राम के रूप में प्रस्तुत किया है, जहाँ हर व्यक्ति और समाज को संघर्ष की आवश्यकता होती है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः कवि और शीर्षक के नाम को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।
Quick Tip: पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम हमेशा स्पष्ट और संक्षेप में लिखें।
जग का क्रम कैसा है?
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Step 1: जग के क्रम का अर्थ।
पद्यांश में जग के क्रम को सतत संघर्ष और बदलाव के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कवि के अनुसार, यह संसार निरंतर बदलता रहता है और इसके भीतर संघर्ष अनिवार्य है। जग का क्रम कभी स्थिर नहीं होता; यह हमेशा गति में रहता है और समय के साथ विकसित होता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः जग का क्रम एक सशक्त और गतिशील प्रक्रिया है, जिसमें निरंतर बदलाव और संघर्ष होता रहता है। जीवन को एक शाश्वत संग्राम के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
Quick Tip: कवि की रचनाओं में जीवन के शाश्वत सत्य, संघर्ष और अस्तित्व की महत्ता का चित्रण होता है।
नभ का नीला विकास कैसा है?
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Step 1: नभ का नीला विकास।
नभ का नीला विकास पृथ्वी के आकाश में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन को दर्शाता है। यह परिवर्तन आकाश में नीले रंग के फैलाव को दिखाता है, जो सूर्य के प्रकाश के वातावरण में बिखरने के कारण होता है। यह विकास प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः नभ का नीला विकास प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। इसका संबंध सूर्य की किरणों और आकाश के रंग के वैज्ञानिक विकास से है।
Quick Tip: प्राकृतिक घटनाओं के पीछे के वैज्ञानिक कारणों को समझना और उनका महत्व जानना आवश्यक होता है।
'उद्वम' तथा 'कर्णधार' शब्दों का अर्थ लिखिए।
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Step 1: 'उद्वम' शब्द का अर्थ।
'उद्वम' शब्द का अर्थ होता है उत्थान या विकास। यह किसी वस्तु या स्थिति के बढ़ने, उन्नति करने या उत्कर्ष की ओर बढ़ने को दर्शाता है।
Step 2: 'कर्णधार' शब्द का अर्थ।
'कर्णधार' शब्द का अर्थ होता है कर्ण (कान) और धार (धारण करने वाला) का संयुक्त रूप। इसे कर्ण का सहायक या श्रोत कहा जा सकता है। यह शब्द उन स्थितियों में इस्तेमाल होता है जहाँ किसी व्यक्ति या समूह को सुनने या सुनाने का कार्य सौंपा जाता है।
Step 3: निष्कर्ष।
'उद्वम' और 'कर्णधार' दोनों शब्द अपने-अपने संदर्भ में विकास और सहायकता का प्रतीक हैं।
Quick Tip: शब्दों के अर्थों को समझना और उनके सही संदर्भ में उपयोग करना भाषा की गहरी समझ को दर्शाता है।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश की पहचान।
रेखांकित अंश में कवि ने जीवन के शाश्वत संघर्ष को उजागर किया है। इसमें यह बताया गया है कि जीवन में संघर्ष और प्रयास ही सफलता की कुंजी होते हैं। यह अंश जीवन के निरंतर परिवर्तन और विकसित होने के महत्व को दर्शाता है।
Step 2: भावार्थ।
इस अंश का मुख्य संदेश यह है कि जीवन में कभी भी ठहराव नहीं होना चाहिए। हमेशा आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना चाहिए और हर कठिनाई को पार करना चाहिए। जीवन का अर्थ केवल संघर्ष में है, क्योंकि केवल संघर्ष ही व्यक्ति को परिपूर्ण और सक्षम बनाता है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः यह अंश जीवन के संघर्षमय पहलू को व्यक्त करता है और हमें यह शिक्षा देता है कि किसी भी कठिनाई का सामना करते हुए हमें जीवन के उद्देश्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय उसके संदर्भ और उद्देश्य को स्पष्ट रूप से पहचानना महत्वपूर्ण होता है।
अथवा
कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उस में तभी दुगं में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी !
है तुझे अंगार-शर्या पर मृतुल कलियाँ बिछाना !
जाग तुझको दूर जाना !
Question 26:
उपयुक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
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Step 1: शीर्षक और कवि का नाम।
उपयुक्त पद्यांश के शीर्षक "जय की पताका" है। यह कविता जीवन के संघर्ष, साहस और विजय की गाथा को व्यक्त करती है। कवि सुमित्रानंदन पंत हैं, जिन्होंने अपनी कविता के माध्यम से जीवन की सच्चाई और संघर्ष की महत्ता को उजागर किया है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः इस कविता का शीर्षक "जय की पताका" है और इसके कवि सुमित्रानंदन पंत हैं।
Quick Tip: कविता का शीर्षक और कवि का नाम सही तरीके से लिखना चाहिए ताकि पाठक को सही संदर्भ मिल सके।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Step 1: अंश का परिचय।
रेखांकित अंश में कवि ने जीवन के संघर्ष और विजय को व्यक्त किया है। इसमें यह बताया गया है कि जीवन में हर व्यक्ति को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वही व्यक्ति सफल होता है, जो इन संघर्षों को आत्मविश्वास और साहस के साथ पार करता है।
Step 2: अंश का अर्थ।
इस अंश में कवि ने यह बताया है कि जीवन के संघर्ष के दौरान कई बार व्यक्ति को कठिनाइयों और विफलताओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन यदि वह संघर्ष से घबराए बिना आगे बढ़ता है, तो वह अंततः विजय प्राप्त करता है। "जय की पताका" को जीत की प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो संघर्षों और कठिनाइयों के बाद उड़ा दी जाती है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः इस अंश की व्याख्या यह है कि जीवन में संघर्ष और कठिनाई आने के बाद भी अगर मनुष्य साहस और आत्मविश्वास से काम करता है, तो वह अंततः विजय प्राप्त करता है और उसकी मेहनत की पताका ऊँची उठती है।
Quick Tip: व्याख्या करते समय ध्यान रखें कि अंश के संदेश और अर्थ को सही तरीके से प्रस्तुत करें।
'क्षणिक' शब्द से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए।
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Step 1: 'क्षणिक' शब्द का विश्लेषण।
'क्षणिक' शब्द में मूल शब्द 'क्षण' है, जिसका अर्थ है समय का एक छोटा सा भाग। प्रत्यय '-िक' है, जो विशेषण बनाने के लिए जोड़ा जाता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'क्षणिक' शब्द का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है:
मूल शब्द: क्षण
प्रत्यय: -िक
Quick Tip: शब्दों के मूल और प्रत्यय को पहचानकर शब्द का अर्थ समझना सरल होता है।
है तुझे अंगार-श्रव्य पर मृदुल कलियाँ बिखराना—इस पंक्ति में कौनसा अलंकार है?
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Step 1: अलंकार की पहचान।
इस पंक्ति में 'अलंकार' 'यमक अलंकार (Repetition) है। इस अलंकार में किसी एक शब्द का बार-बार प्रयोग किया जाता है, जिससे उसे विशेष महत्व दिया जाता है। यहाँ 'अंगार' शब्द का प्रयोग पुनः हुआ है, जो एक प्रकार का यमक अलंकार दर्शाता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः इस पंक्ति में यमक अलंकार है, जिसमें एक ही शब्द को दोहराया गया है।
Quick Tip: यमक अलंकार वह होता है जिसमें एक ही शब्द या ध्वनि का पुनरावृत्ति की जाती है।
'धन' और 'पताका' शब्दों के एक-एक पर्यायवाची शब्द लिखिए।
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Step 1: 'धन' का पर्यायवाची शब्द।
'धन' का पर्यायवाची शब्द 'धन संपत्ति' है, जिसका अर्थ है धन, सम्पत्ति या संपत्ति का खजाना।
Step 2: 'पताका' का पर्यायवाची शब्द।
'पताका' का पर्यायवाची शब्द 'ध्वज' है, जिसका अर्थ है झंडा या ध्वज।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'धन' का पर्यायवाची शब्द है 'सम्पत्ति' और 'पताका' का पर्यायवाची शब्द है 'ध्वज'।
Quick Tip: पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग भाषा को विविध और संक्षिप्त बनाने में मदद करता है।
निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए:
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(i) प्रो. जी. सुंदर रेड़ी:
प्रो. जी. सुंदर रेड़ी हिंदी साहित्य के एक प्रमुख आलोचक और साहित्यिक विचारक थे। वे न केवल एक अच्छे लेखक थे, बल्कि हिंदी साहित्य की गहरी समझ रखने वाले आलोचक भी थे। उन्होंने भारतीय साहित्य और विशेष रूप से हिंदी साहित्य की आलोचना में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। उनका लेखन साहित्य के व्यावहारिक पहलुओं पर आधारित था। उन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न आयामों का विश्लेषण किया और नए दृष्टिकोणों से साहित्य को समझने की कोशिश की।
प्रो. जी. सुंदर रेड़ी का साहित्यिक योगदान मुख्यतः साहित्यिक आलोचना में था, जिसमें उन्होंने साहित्य के विविध रूपों और उसके समाजिक संदर्भों पर गहराई से चर्चा की। उनका मानना था कि साहित्य का कार्य केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि वह समाज को जागरूक करने और सामाजिक दायित्व को समझाने का एक माध्यम भी होना चाहिए। वे साहित्य के प्रति अपने दृष्टिकोण में बहुत गंभीर थे और उनके लेखन में गहरी समाजशास्त्रीय और दार्शनिक दृष्टि दिखाई देती थी।
प्रमुख कृतियाँ:
"हिंदी साहित्य का इतिहास" - इस कृति में उन्होंने हिंदी साहित्य के ऐतिहासिक संदर्भ और उसके विकास को विस्तार से प्रस्तुत किया है।
"निबंध संग्रह" - इसमें उनकी आलोचनात्मक दृष्टियों और साहित्यिक विचारों का संग्रह है।
"आधुनिक हिंदी कविता" - इस कृति में उन्होंने हिंदी कविता के विकास, रूप और उसकी सामाजिक भूमिका पर प्रकाश डाला है।
(ii) हज़ारीप्रसाद द्विवेदी:
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के महान आलोचक, निबंधकार और लेखक थे। उनका जन्म 1907 में हुआ और उन्होंने हिंदी साहित्य की आलोचना में गहरा योगदान दिया। वे मध्यकालीन भारतीय साहित्य के विशेषज्ञ थे और उनका कार्य इस क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण था। उन्होंने भारतीय दर्शन, संत साहित्य, और भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर लेखन किया।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक दृष्टिकोण बहुत गहरा और विचारशील था। उन्होंने साहित्य को न केवल समाज के आईने के रूप में देखा, बल्कि उसे समाज को जागरूक करने और उसकी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने का माध्यम भी माना। उनकी लेखनी में भारतीय संस्कृति और दर्शन का गहरा प्रभाव था। उनका योगदान भारतीय साहित्य की आलोचना और उसके तत्वों को समझने में अद्वितीय था।
प्रमुख कृतियाँ:
"हज़ारीप्रसाद द्विवेदी रचनावली" - यह उनकी कृतियों का संग्रह है, जिसमें उनकी आलोचनात्मक लेखनी और विचारशील निबंधों का संग्रह किया गया है।
"निबंध संग्रह" - इस कृति में उनके निबंधों का संग्रह किया गया है, जिसमें उन्होंने साहित्य, संस्कृति और समाज के बारे में गहरी बातें की हैं।
"बाणभट्ट की आत्मकथा" - यह कृति एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लिखी गई है, जिसमें उन्होंने बाणभट्ट के जीवन और उनके काव्य कार्य का गहराई से अध्ययन किया।
(iii) वासुदेवशरण अग्रवाल:
वासुदेवशरण अग्रवाल हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार और कला-इतिहासकार थे। उनका साहित्य भारतीय संस्कृति और साहित्य पर गहन अध्ययन पर आधारित था। उन्होंने भारतीय कला और साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर लिखा। वे भारतीय साहित्य के उन विचारकों में से थे जिन्होंने साहित्य और संस्कृति के बीच गहरे संबंध को समझा और दोनों को एक साथ प्रस्तुत किया।
वासुदेवशरण अग्रवाल के लेखन में भारतीय कला और साहित्य की गहरी समझ और दर्शन था। उन्होंने साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति को प्रस्तुत किया और समाज में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को समझने की कोशिश की। उनका मानना था कि साहित्य और कला केवल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे समाज के विकास और उसकी सोच को आकार देने का एक शक्तिशाली उपाय भी हैं।
प्रमुख कृतियाँ:
"भारतीय कला" - इस कृति में उन्होंने भारतीय कला और उसके विभिन्न रूपों का गहरा विश्लेषण किया है।
"भारत का चित्रकला विवेक" - इसमें भारतीय चित्रकला के विकास, उसकी शैली और सामाजिक प्रभाव पर चर्चा की गई है।
"संस्कृति और साहित्य" - इस कृति में उन्होंने साहित्य और संस्कृति के रिश्ते को समझाने का प्रयास किया है। Quick Tip: लेखक का साहित्यिक परिचय देते समय उनके जीवन, कार्यक्षेत्र, योगदान और प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त और प्रभावी उल्लेख करें।
निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए:
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(i) मैथिलीशरण गुप्त:
मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, निबंधकार और साहित्यकार थे। उन्हें आधुनिक हिंदी कविता का प्रवर्तक माना जाता है। उनका लेखन भारतीय संस्कृति, राष्ट्रवाद और सामाजिक सुधार पर आधारित था। उनकी कृतियाँ भारतीय समाज के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य करती हैं। उन्होंने हिंदी कविता को एक नया मोड़ दिया और साहित्य में एक सामाजिक चेतना का प्रसार किया।
प्रमुख कृतियाँ:
"भारत-भारती" - यह गुप्त जी की सबसे प्रसिद्ध काव्य रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।
"रामविलास" - यह काव्य रचना भारतीय समाज और संस्कृति पर आधारित है।
"पथिक" - इस काव्य में उन्होंने मनुष्य के जीवन के संघर्ष को उकेरा है।
(ii) जयशंकर प्रसाद:
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के महान कवि, नाटककार और कहानीकार थे। वे छायावादी काव्यधारा के प्रमुख प्रतिनिधि माने जाते हैं। उनकी कविताओं में जीवन, प्रेम, प्रकृति और संस्कृति का गहरा चित्रण मिलता है। जयशंकर प्रसाद का काव्य लेखन केवल काव्यात्मक सौंदर्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उनकी कविताओं में मनुष्य के अस्तित्व, समाज और संसार के प्रति गहरी समझ थी।
प्रमुख कृतियाँ:
"कंकाल" - यह उनके नाटकों का प्रमुख उदाहरण है, जो गहरे मानसिक और अस्तित्ववादी विषयों पर आधारित है।
"कामायनी" - इस काव्य में उन्होंने मानवता और मनुष्य के अस्तित्व के सवालों का समाधान प्रस्तुत किया है।
"तृष्णा" - इसमें उन्होंने जीवन की संघर्षपूर्ण अवस्था को प्रमुखता से चित्रित किया।
(iii) 'अज्ञेय':
'अज्ञेय' हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, लेखक और विचारक थे। उनका लेखन जीवन, सत्य, दर्शन और आत्म-खोज पर आधारित था। अज्ञेय ने अपनी काव्य रचनाओं में गहरे मानसिक और अस्तित्ववादी विषयों को प्रमुखता दी। उनकी कविताएँ और गद्य रचनाएँ आज भी साहित्य जगत में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। वे साहित्यिक प्रयोगों के पक्षधर थे और उन्होंने कविता के रूप में कई नये प्रयोग किए।
प्रमुख कृतियाँ:
"शेखर: एक जीवित कथा" - यह उपन्यास अज्ञेय का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसमें उन्होंने मानवता, अस्तित्व और जीवन के विविध पहलुओं का चित्रण किया है।
"हिमालय और अन्य कविताएँ" - इस काव्य संग्रह में उन्होंने प्रकृति, जीवन और अस्तित्व के गहरे अर्थ को व्यक्त किया।
"कविता के नए प्रतिमान" - इस काव्य में उन्होंने कविता के लिए नए प्रतिमानों की स्थापना की और साहित्य को नए दृष्टिकोण से देखा। Quick Tip: लेखक का साहित्यिक परिचय देते समय उनके जीवन, कार्यक्षेत्र, योगदान और प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त और प्रभावी उल्लेख करें।
'धुवत्यात्रा' अथवा 'पंचलाइट' की कथा वस्तु का सार लिखिए। (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)
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Step 1: 'धुवत्यात्रा' की कथा का सार।
'धुवत्यात्रा' में एक व्यक्ति की यात्रा का चित्रण किया गया है, जो अपने जीवन की असमर्थताओं और कठिनाइयों से जूझते हुए आत्मबल से पार करता है। यात्रा का उद्देश्य केवल भौतिक यात्रा नहीं, बल्कि आत्म-समझ और जीवन के उद्देश्य की खोज है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'धुवत्यात्रा' एक प्रेरक यात्रा है जो व्यक्तिगत संघर्ष, आत्मनिर्भरता और जीवन के उद्देश्य की खोज को दर्शाती है।
Quick Tip: कथा का सार संक्षेप में व्यक्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, इसलिए मुख्य घटनाओं और संदेश को स्पष्ट रूप से लिखें।
'बहादुर' कहानी का उद्देश्य लिखिए। (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)
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Step 1: 'बहादुर' कहानी का उद्देश्य।
'बहादुर' कहानी का उद्देश्य साहस और निर्भीकता को उजागर करना है। यह कहानी एक सामान्य व्यक्ति की बहादुरी का चित्रण करती है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी जिम्मेदारी निभाता है और निडर होकर कठिनाइयों का सामना करता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'बहादुर' कहानी का मुख्य उद्देश्य यह है कि साहस और निष्ठा से व्यक्ति किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है और उसे निडर होकर पार कर सकता है।
Quick Tip: कहानियों का उद्देश्य अक्सर पात्रों के संघर्ष और उनकी भावना को समझाने में निहित होता है।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य की कथावस्तु का सार लिखिए।
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Step 1: 'मुक्तिरण' की कथा का सार।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य में एक व्यक्ति की यात्रा और संघर्ष की कहानी है, जो अपने समाज में फैली बुराइयों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए अपना सब कुछ बलिदान करता है। यह खण्डकाव्य आत्मबल और नायकत्व की गाथा है, जहाँ नायक समाज में बदलाव लाने के लिए अपने जीवन को संघर्ष के रूप में प्रस्तुत करता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'मुक्तिरण' खण्डकाव्य की कथा एक प्रेरणादायक संघर्ष और समाज के लिए व्यक्ति के बलिदान की कहानी है।
Quick Tip: कथा का सार संक्षेप में लिखते समय घटनाओं को क्रमबद्ध और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए।
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Step 1: नायक का चरित्र चित्रण।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य का नायक समाज में व्याप्त असमानताओं और बुराइयों को दूर करने के लिए निरंतर संघर्ष करता है। वह साहसी, निडर, और आत्मबल से परिपूर्ण है। उसके भीतर सामाजिक न्याय की भावना और मानवता की सेवा का दृढ़ संकल्प है। नायक का व्यक्तित्व आदर्शवादी और प्रेरणादायक है, जो समाज को बेहतर बनाने के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा देता है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'मुक्तिरण' खण्डकाव्य का नायक समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए संकल्पबद्ध है और वह अपने उद्देश्य के लिए पूरी तरह से समर्पित है।
Quick Tip: चरित्र चित्रण करते समय पात्र की विशेषताओं और उसके संघर्ष को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करें।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य के आधार पर 'द्रौपदी' का चरित्र-चित्रण कीजिए। अथवा 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य की कथावस्तु लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में द्रौपदी के चरित्र का चित्रण विशेष रूप से उनके साहस, शौर्य और सत्य के प्रति अडिग निष्ठा को उजागर करता है। वह महाभारत की एक केंद्रीय पात्र हैं, जिनकी जीवन यात्रा संघर्ष और अन्याय के खिलाफ खड़ी होती है।
Step 2: द्रौपदी का चरित्र-चित्रण।
1. धैर्य और साहस – द्रौपदी ने अपने अपमान का धैर्यपूर्वक सामना किया और हमेशा अपने सम्मान और सत्य के लिए लड़ी।
2. धर्मनिष्ठा – द्रौपदी का जीवन धर्म के अनुसार रहा। उन्होंने सदैव अपने कर्तव्यों का पालन किया और धर्म का पालन करने के लिए हर चुनौती का सामना किया।
3. साहसिक निर्णय – जब भी संकट आया, द्रौपदी ने साहसिक निर्णय लिए। उन्होंने अपने पति युधिष्ठिर के सामने महल में हो रहे अपमान को रोकने के लिए अपनी आवाज़ उठाई।
4. बलिदान और त्याग – द्रौपदी ने अपने जीवन में कई बलिदान किए, जिनमें अपनी स्थिति और सम्मान को न्योछावर करना शामिल था।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में द्रौपदी का चरित्र न केवल संघर्ष, साहस और धर्म के पालन का प्रतीक है, बल्कि वह भारतीय नारी के आदर्श रूप को भी प्रस्तुत करती हैं।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण करते समय व्यक्ति की प्रमुख विशेषताओं और उनके संघर्षों को संक्षेप में प्रस्तुत करें।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य की कथावस्तु लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में सत्य और धर्म की विजय का चित्रण किया गया है। इसमें द्रौपदी की संघर्षपूर्ण यात्रा, उनके जीवन के संघर्ष और उनका धर्म के प्रति अडिग विश्वास प्रमुख रूप से दर्शाए गए हैं।
Step 2: कथावस्तु का संक्षिप्त वर्णन।
काव्य की शुरुआत महाभारत के कौरवों द्वारा द्रौपदी का अपमान करने से होती है। द्रौपदी के अपमान के बाद उनकी वीरता और संघर्ष का आरंभ होता है, जिससे सत्य और धर्म की विजय होती है। वह जीवनभर अपने धर्म और सत्य के मार्ग पर अडिग रहती हैं और कौरवों से अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करती हैं।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हुए द्रौपदी का जीवन एक प्रेरणा बनकर उभरता है। यह काव्य सत्य की विजय और धर्म की शक्ति को दर्शाता है।
Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय पात्र के संघर्ष और उसकी अंतर्निहित शक्ति को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करें।
'रश्मिरथी' खण्डकाव्य की नायिका का चरित्र चित्रण कीजिए।
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Step 1: नायिका का चरित्र चित्रण।
'रश्मिरथी' खण्डकाव्य की नायिका 'कुमारी सुभद्र' है। वह अपने पति के लिए बहुत प्यार करती है और उनके कर्तव्यों और आदर्शों के प्रति पूरी तरह से समर्पित है। सुभद्र एक आदर्श नायिका है जो अपने परिवार, समाज और धर्म के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने में पूरी निष्ठा रखती है। उसकी विशेषताएँ सहनशीलता, प्रेम, त्याग और सत्य के प्रति निष्ठा को प्रदर्शित करती हैं।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः कुमारी सुभद्र का चरित्र एक आदर्श नायिका का चित्रण करता है, जो अपने परिवार और समाज की भलाई के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करती है।
Quick Tip: नायिका का चरित्र चित्रण करते समय उसकी विशेषताओं, संघर्षों और आदर्शों को प्रमुखता से दिखाना चाहिए।
'रश्मिरथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
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Step 1: 'रश्मिरथी' की कथावस्तु का सार।
'रश्मिरथी' खण्डकाव्य महाभारत के एक महत्वपूर्ण अंश पर आधारित है। इसमें अर्जुन के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं, उनकी धर्मपरायणता, और संघर्षों का चित्रण किया गया है। कवि ने अर्जुन की वीरता, उसकी निष्ठा, और भगवान श्री कृष्ण के साथ उसके संबंधों को प्रमुखता से दिखाया है। यह खण्डकाव्य जीवन के संघर्ष, नैतिकता और धर्म का सशक्त चित्रण है।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'रश्मिरथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु अर्जुन के जीवन की यात्रा और संघर्ष पर आधारित है, जो धर्म, निष्ठा और आदर्शों का प्रतीक है।
Quick Tip: कथावस्तु का सार लिखते समय कहानी की मुख्य घटनाओं और संदेश को संक्षेप में प्रस्तुत करें।
'आलोकमृत' खण्डकाव्य के आधार पर गांधीजी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। अथवा 'आलोकमृत' खण्डकाव्य की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'आलोकमृत' खण्डकाव्य में गांधीजी के जीवन के आदर्शों, उनके संघर्ष और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान का चित्रण किया गया है। कवि ने गांधीजी को सत्य, अहिंसा और त्याग का प्रतीक बताया है।
Step 2: गांधीजी की चारित्रिक विशेषताएँ।
1. सत्य और अहिंसा के प्रति निष्ठा – गांधीजी का जीवन सत्य और अहिंसा के प्रति उनकी अडिग निष्ठा का प्रतीक था। उन्होंने अपने जीवन को इन सिद्धांतों पर आधारित किया।
2. त्याग और समर्पण – गांधीजी ने अपने व्यक्तिगत सुखों को त्याग कर समाज और राष्ट्र के लिए समर्पण किया।
3. समानता और सामाजिक सुधार – वे सामाजिक भेदभाव और असमानता के खिलाफ थे। उन्होंने अस्पृश्यता, छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया।
4. न्यायप्रियता – गांधीजी ने हमेशा न्याय और सत्य के साथ खड़े रहने का रास्ता अपनाया, चाहे परिणाम कोई भी हो।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'आलोकमृत' खण्डकाव्य में गांधीजी का चरित्र सत्य, अहिंसा, त्याग और न्याय के आदर्शों का प्रतीक प्रस्तुत करता है।
Quick Tip: गांधीजी के जीवन के मुख्य सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए उनके चरित्र का चित्रण करें।
'आलोकमृत' खण्डकाव्य की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'आलोकमृत' खण्डकाव्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और गांधीजी के जीवन की गाथा है। इसमें गांधीजी के जीवन के संघर्ष, उनकी सिद्धांतों की महत्ता और उनके द्वारा किए गए आंदोलनों का चित्रण किया गया है।
Step 2: कथावस्तु का संक्षिप्त वर्णन।
'आलोकमृत' खण्डकाव्य में गांधीजी का जीवन उनके सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें उनके द्वारा किए गए आंदोलनों जैसे असहयोग आन्दोलन, नमक सत्याग्रह, और भारत छोड़ो आन्दोलन की गाथाएँ वर्णित हैं। गांधीजी ने हमेशा सत्य और न्याय का मार्ग अपनाया, और उन्होंने भारतीय जनता को शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'आलोकमृत' खण्डकाव्य में गांधीजी का जीवन एक प्रेरणा का स्रोत है जो सत्य, अहिंसा और सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर करता है।
Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय प्रमुख आंदोलनों और गांधीजी के संघर्ष को ध्यान में रखें।
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य के आधार पर 'श्रवणकुमार' का चरित्र चित्रण कीजिए।
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Step 1: श्रवणकुमार का चरित्र चित्रण।
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य का नायक एक अत्यंत श्रद्धालु और कर्तव्यनिष्ठ पुत्र है। वह अपने अंधे माता-पिता की सेवा में समर्पित है और अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा से करता है। श्रवणकुमार का चरित्र आदर्श पुत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपने माता-पिता की इच्छाओं को सबसे ऊपर मानता है। उसकी निष्ठा, समर्पण और त्याग उसे एक प्रेरणास्त्रोत बनाते हैं।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः श्रवणकुमार का चरित्र एक आदर्श पुत्र के रूप में है, जो न केवल अपने माता-पिता के प्रति अपार प्रेम और समर्पण रखता है, बल्कि अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए हर बलिदान करने के लिए तैयार रहता है।
Quick Tip: चरित्र चित्रण करते समय पात्र की विशेषताओं, कर्तव्यों और संघर्षों को स्पष्ट रूप से दर्शाना चाहिए।
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: 'श्रवणकुमार' की कथा।
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य में एक पुत्र के अपने माता-पिता के प्रति अपार समर्पण और श्रद्धा की गाथा है। श्रवणकुमार अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए जंगल-जंगल पैदल यात्रा करता है। वह अपने माता-पिता की सेवा में हमेशा तत्पर रहता है और अपनी कठिनाइयों को सहजता से स्वीकार करता है। उसकी इस कर्तव्यनिष्ठा और प्रेम की गाथा ने उसे एक आदर्श पुत्र के रूप में स्थापित किया।
Step 2: निष्कर्ष।
अतः 'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य एक प्रेरणादायक कथा है, जिसमें पुत्र की निष्ठा, समर्पण और त्याग का अत्यधिक महत्व है।
Quick Tip: कथा का सार लिखते समय पात्र के संघर्षों और प्रमुख घटनाओं को संक्षेप में प्रस्तुत करें।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य के कथानक का सार लिखिए। अथवा 'त्यागपथी' खण्डकाव्य के आधार पर 'हर्वर्धन' के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य में कवि ने त्याग और बलिदान की भावना को प्रमुखता से चित्रित किया है। इसमें प्रमुख पात्र के जीवन के संघर्ष और उसकी बलिदानी यात्रा का चित्रण किया गया है।
Step 2: कथानक का सार।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य की कथा एक व्यक्ति की त्याग और संघर्ष की गाथा है। यह कथा उस व्यक्ति के जीवन को दर्शाती है जिसने समाज और अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को दरकिनार कर राष्ट्र और समाज के भले के लिए अपने सुखों का बलिदान दिया। उसकी यात्रा में वह कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करता और हर मुश्किल का सामना करता है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'त्यागपथी' खण्डकाव्य का सार त्याग, संघर्ष और सिद्धांतों के प्रति निष्ठा पर आधारित है। यह काव्य उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो समाज के लिए कुछ महान करना चाहते हैं।
Quick Tip: कथानक लिखते समय कहानी के मुख्य विषय और पात्र की यात्रा को स्पष्ट रूप से जोड़ें।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य के आधार पर 'हर्वर्धन' के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य में हर्वर्धन का चरित्र विशेष रूप से बलिदान, संघर्ष और सत्य के प्रति अडिग निष्ठा का प्रतीक है। उनका जीवन आदर्श बलिदान और निष्ठा का जीवित उदाहरण प्रस्तुत करता है।
Step 2: हर्वर्धन का चरित्र मूल्यांकन।
1. त्याग और बलिदान – हर्वर्धन का जीवन त्याग और बलिदान के आदर्श से प्रेरित था। उन्होंने व्यक्तिगत सुखों का त्याग कर समाज और राष्ट्र के लिए अपने जीवन को समर्पित किया।
2. सिद्धांतों के प्रति निष्ठा – हर्वर्धन ने हमेशा अपने सिद्धांतों और आदर्शों के प्रति निष्ठा बनाए रखी, चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
3. न्यायप्रियता – हर्वर्धन का जीवन न्याय और सत्य के सिद्धांतों पर आधारित था। उन्होंने किसी भी स्थिति में अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया।
4. साहस और संघर्ष – हर्वर्धन ने कई कठिनाइयों और विरोधों का सामना किया, लेकिन कभी भी उन्होंने अपने संघर्ष को बंद नहीं किया।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'त्यागपथी' खण्डकाव्य में हर्वर्धन का चरित्र आदर्श त्याग, बलिदान और सत्य के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
Quick Tip: चरित्र का मूल्यांकन करते समय उस पात्र के संघर्ष, बलिदान और निष्ठा को प्रमुख रूप से उजागर करें।
निम्नलिखित संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का संदर्भ-सहित हिंदी में अनुवाद कीजिए:
बौद्धधर्मे इमे सिद्धान्ता: वैदिकजीवनस्य अभ्युत्थानर प्रयुक्ता आसन्। परमधर्मे इमे सिद्धान्ता: राष्ट्रं परस्परमैस्द्धीयोगकाराणि, विश्व बन्धुत्वं विश्वशान्तलेषच साधनानि सन्ति। राष्ट्रनायकस्य श्रीज्वालालनेहरू महोदयस्य प्रधानमंत्रिकल चिन्द्रणोण सह भारतस्य मैत्रीपूर्णशब्दानधिकृत्य एवम्भवत। यतो हि उमापति देशी बौद्धधर्मे निर्ध्वन्तम्। आधुनिके जगति पञ्चशीलसिद्धान्ता: नवीनं राजनीतिकं स्वरूपं गृहितत्वत:।
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अनुवाद:
बौद्ध धर्म के सिद्धांत वैदिक जीवन के उत्थान हेतु प्रयोग किए गए थे। इन सिद्धांतों का उद्देश्य विश्वभर में बन्धुत्व की भावना और शांति की स्थापना करना था। राष्ट्र के नेताओं में श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय का प्रमुख योगदान था, जिन्होंने भारत की मैत्रीपूर्ण नीति को लागू किया। बौद्ध धर्म का उद्देश्य भारतीय संस्कृति और समाज को आदर्श रूप में प्रस्तुत करना था, और इसके सिद्धांतों ने वर्तमान राजनीति में बड़ा प्रभाव डाला है। आज के समकालीन संदर्भ में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है, जिसमें पञ्चशील के सिद्धांतों की स्वीकृति और उसे लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। Quick Tip: जब संस्कृत के श्लोकों का अनुवाद किया जाए, तो ध्यान रखें कि मूल विचार को पूरी तरह से समझा जाए और शुद्ध हिंदी में उसका सहज रूप से अनुवाद किया जाए।
निम्नलिखित संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का संदर्भ-सहित हिंदी में अनुवाद कीजिए:
याज्ञवल्क्य उवाच - न वा अरे मैत्रे ! पत्यू। कामाय पति: प्रियो भवति। आत्मनस्तु वै कामाय पति: प्रियो भवति। न वा अरे जाय: कामाय जाय प्रिय: भवति। आत्मनस्तु वै कामाय जाय प्रिय: भवति। न वा अरे पुनस्त्य वितरस्त्य च कामाय पुन: वितं व प्रियं भवति।
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अनुवाद:
याज्ञवल्क्य ने कहा - मित्र! पतिव्रता के लिए उसका पति प्रिय होता है, क्योंकि वह उसके लिए है। आत्मा के लिए भी, वह जो इच्छाएँ हैं, वे उसी के अनुसार होती हैं। इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से प्रेम करता है और वह उस प्रेम की भावना से प्रेरित होता है, तो वह उसे प्रिय बना देता है। जो कुछ भी आत्मा से जुड़ा होता है, उसी के साथ संबंध बनता है और वह पूरे जीवन के लिए हमारे लिए प्रिय बन जाता है। Quick Tip: काम और इच्छाओं का सही और उच्चतम रूप से उपयोग करने से ही जीवन में संतुलन और समृद्धि आती है।
निम्नलिखित संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का संदर्भ-सहित हिंदी में अनुवाद कीजिए:
बौद्धधर्मे इमे सिद्धान्ता: वैदिकजीवनस्य अभ्युत्थानर प्रयुक्ता आसन्। परमधर्मे इमे सिद्धान्ता: राष्ट्रं परस्परमैस्द्धीयोगकाराणि, विश्व बन्धुत्वं विश्वशान्तलेषच साधनानि सन्ति। राष्ट्रनायकस्य श्रीज्वालालनेहरू महोदयस्य प्रधानमंत्रिकल चिन्द्रणोण सह भारतस्य मैत्रीपूर्णशब्दानधिकृत्य एवम्भवत। यतो हि उमापति देशी बौद्धधर्मे निर्ध्वन्तम्। आधुनिके जगति पञ्चशीलसिद्धान्ता: नवीनं राजनीतिकं स्वरूपं गृहितत्वत:।
अथवा
काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां।
व्यसनं च मूर्खाणां निद्रया कलेहन वा।
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अनुवाद:
बौद्ध धर्म के सिद्धांत वैदिक जीवन के उत्थान हेतु प्रयोग किए गए थे। इन सिद्धांतों का उद्देश्य विश्वभर में बन्धुत्व की भावना और शांति की स्थापना करना था। राष्ट्र के नेताओं में श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय का प्रमुख योगदान था, जिन्होंने भारत की मैत्रीपूर्ण नीति को लागू किया। बौद्ध धर्म का उद्देश्य भारतीय संस्कृति और समाज को आदर्श रूप में प्रस्तुत करना था, और इसके सिद्धांतों ने वर्तमान राजनीति में बड़ा प्रभाव डाला है। आज के समकालीन संदर्भ में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है, जिसमें पञ्चशील के सिद्धांतों की स्वीकृति और उसे लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
अथवा
अनुवाद:
काव्यशास्त्र या साहित्य के अध्ययन और आनंद में समय बीतता है, वहीं मूर्खों के लिए उनका समय केवल निंद्रावस्था या व्यसन में ही बर्बाद होता है। साहित्य और ज्ञान से आत्मा को उन्नति मिलती है, जबकि बिना किसी उद्देश्य के समय बर्बाद करने से कुछ भी हासिल नहीं होता। Quick Tip: जब संस्कृत के श्लोकों का अनुवाद किया जाए, तो ध्यान रखें कि मूल विचार को पूरी तरह से समझा जाए और शुद्ध हिंदी में उसका सहज रूप से अनुवाद किया जाए।
निम्नलिखित लोककृतियाँ और मुहावरों में से किसी एक का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए।
(क) हाथ पीले करना
(ख) नौ दो ग्यारह होना
(ग) हाथ कंगन को आरसी क्या
(घ) अपना उल्लू सीधा करना
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(क) हाथ पीले करना
अर्थ: किसी का विवाह करना।
वाक्य प्रयोग:
राम ने अपनी बहन का हाथ पीला किया और उसकी शादी बहुत धूमधाम से हुई।
(ख) नौ दो ग्यारह होना
अर्थ: किसी से जल्दी से गायब होना, कहीं से भाग जाना।
वाक्य प्रयोग:
जैसे ही पुलिस वहां पहुंची, चोर नौ दो ग्यारह हो गए।
(ग) हाथ कंगन को आरसी क्या
अर्थ: बात स्पष्ट होना, कोई चीज़ बहुत आसान होना।
वाक्य प्रयोग:
तुम्हें अपनी मेहनत को दिखाने के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है, हाथ कंगन को आरसी क्या, सब कुछ साफ है।
(घ) अपना उल्लू सीधा करना
अर्थ: केवल अपने फायदे के लिए काम करना, दूसरों का नुकसान करना।
वाक्य प्रयोग:
वह हमेशा दूसरों का काम बिगाड़कर अपना उल्लू सीधा करता है। Quick Tip: लोककृतियाँ और मुहावरों का प्रयोग भाषा को अधिक स्पष्ट और प्रभावशाली बनाता है।
निम्नलिखित शब्दों के संधि-विच्छेद के सही विकल्प का चयन कीजिए:
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Step 1: Understanding the context.
'रवीन्द्र' शब्द का संधि-विच्छेद 'रवि' और 'इन्द्र' के रूप में किया जाता है। 'रवि' सूर्य को और 'इन्द्र' देवता को दर्शाता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'रवि + इन्द्र' → सही उत्तर, क्योंकि 'रवीन्द्र' शब्द का सही संधि-विच्छेद 'रवि' और 'इन्द्र' है।
- (B) 'रवी + इन्द्र' → यह गलत है, 'रवी' का प्रयोग सही नहीं है।
- (C) 'र + बीन्द' → यह गलत है, क्योंकि 'र' और 'बीन्द' के बीच संधि नहीं बनती।
- (D) 'रवीन + द्र' → यह भी गलत है, 'रवीन' और 'द्र' का संधि-विच्छेद सही नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'रवि + इन्द्र'।
Quick Tip: संधि-विच्छेद करते समय सही शब्दों और उनके संधि रूपों का सही चयन करें।
'रमेश' का संधि-विच्छेद है:
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Step 1: Understanding the context.
'रमेश' शब्द का संधि-विच्छेद 'राम + ईश' के रूप में किया जाता है, क्योंकि 'राम' एक प्रसिद्ध नाम है और 'ईश' का अर्थ भगवान से होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'रमा + ईश:' → यह गलत है, क्योंकि 'रमा' का संधि-विच्छेद नहीं होता।
- (B) 'राम + ऐश:' → यह भी गलत है, क्योंकि 'ऐश' का प्रयोग सही नहीं है।
- (C) 'र + उमेश:' → यह गलत है, 'र + उमेश' का संधि-विच्छेद सही नहीं है।
- (D) 'राम + ईश:' → सही उत्तर, 'रमेश' शब्द का संधि-विच्छेद 'राम' और 'ईश' है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (D) 'राम + ईश:'।
Quick Tip: संधि-विच्छेद करते समय सही रूपों का चयन करें और संधि के नियमों का पालन करें।
'अत्याचार' का संधि-विच्छेद है:
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Step 1: Understanding the context.
'अत्याचार' शब्द का संधि-विच्छेद 'अति + आचार' के रूप में किया जाता है, जिसमें 'अति' का अर्थ अत्यधिक और 'आचार' का अर्थ आचरण होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'अति + आचार:' → सही उत्तर, 'अत्याचार' शब्द का सही संधि-विच्छेद 'अति' और 'आचार' है।
- (B) 'अति + आचार:' → यह सही है, क्योंकि 'अत्याचार' का सही संधि-विच्छेद यही है।
- (C) 'अत्य + चार:' → यह गलत है, क्योंकि 'अत्य' और 'चार' के बीच संधि नहीं बनती।
- (D) 'अतीव + चार:' → यह भी गलत है, 'अतीव' और 'चार' का संधि-विच्छेद नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'अति + आचार:'।
Quick Tip: 'अत्याचार' शब्द का अर्थ अत्यधिक आचरण या दमनकारी कार्य होता है।
दिए गए निम्नलिखित शब्दों का 'विभक्ति' और 'वचन' के अनुसार सही विकल्प का चयन कीजिए:
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Step 1: Understanding the context.
'आत्मनि' शब्द में सप्तमी विभक्ति और एकवचन का प्रयोग होता है, जिसका अर्थ 'आत्मा के स्थान' से है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) सप्तमी विभक्ति, एकवचन → यह सही है, 'आत्मनि' शब्द में यही विभक्ति और वचन होता है।
- (B) पंचमी विभक्ति, बहुवचन → यह गलत है, पंचमी विभक्ति और बहुवचन इस शब्द में नहीं होते।
- (C) तृतीया विभक्ति, एकवचन → यह गलत है, 'आत्मनि' में तृतीया विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
- (D) पंचमी विभक्ति, बहुवचन → यह गलत है, इसमें सही विभक्ति और वचन का प्रयोग नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'सप्तमी विभक्ति, एकवचन'।
Quick Tip: संधि-विच्छेद और विभक्ति के प्रकारों को पहचानना महत्वपूर्ण है, जो शब्द के अर्थ को प्रभावित करते हैं।
'नामसू' शब्द में विभक्ति और वचन है:
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Step 1: Understanding the context.
'नामसू' शब्द में प्रथम विभक्ति और एकवचन का प्रयोग होता है, क्योंकि यह किसी नाम के रूप में प्रयोग होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) सप्तमी विभक्ति, एकवचन → यह गलत है, क्योंकि 'नामसू' शब्द में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
- (B) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन → यह गलत है, 'नामसू' शब्द में सप्तमी विभक्ति और बहुवचन नहीं होते।
- (C) प्रथम विभक्ति, एकवचन → सही उत्तर, 'नामसू' शब्द में यही विभक्ति और वचन होता है।
- (D) तृतीया विभक्ति, बहुवचन → यह गलत है, इसमें विभक्ति और वचन का सही प्रयोग नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) 'प्रथम विभक्ति, एकवचन'।
Quick Tip: 'नामसू' शब्द में प्रथम विभक्ति का प्रयोग उस नाम को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
निम्नलिखित शब्द-युग्मों का सही अर्थ चयन करके लिखिए:
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Step 1: Understanding the context.
'अविराम-अभिराम' शब्द का सही अर्थ 'सुंदर और आकर्षक' होता है, क्योंकि 'अभिराम' का अर्थ सुंदर और आकर्षक से संबंधित होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'बिना रोक के और सुंदर' → यह गलत है, 'अविराम' और 'अभिराम' शब्द का यही अर्थ नहीं है।
- (B) 'लगातार और कुर्प' → यह भी गलत है, क्योंकि 'अविराम' और 'अभिराम' का मतलब लगातार और कुर्प नहीं होता।
- (C) 'अनवरत और अनाकर्षक' → यह भी गलत है, 'अविराम' और 'अभिराम' का अर्थ इस से मेल नहीं खाता।
- (D) 'सुंदर और आकर्षक' → सही उत्तर, 'अविराम' और 'अभिराम' का सही अर्थ यही है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (D) 'सुंदर और आकर्षक'।
Quick Tip: 'अविराम' और 'अभिराम' शब्दों का उपयोग उस संदर्भ में किया जाता है, जो सुंदर और आकर्षक हो।
'अन-अन्य' शब्द में विभक्ति और वचन है:
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Step 1: Understanding the context.
'अन-अन्य' शब्द का सही विभक्ति और वचन 'अनाज और दूसरा' है, क्योंकि 'अन' का अर्थ अतिरिक्त और 'अन्य' का अर्थ दूसरा होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'अनाज और दूसरा' → सही उत्तर, क्योंकि 'अन-अन्य' का यही अर्थ होता है।
- (B) 'भोजन और अनेक' → यह गलत है, क्योंकि 'अन-अन्य' शब्द के लिए यह सही नहीं है।
- (C) 'बेकार और दूसरा' → यह भी गलत है, 'अन-अन्य' शब्द का मतलब बेकार से नहीं होता।
- (D) 'अनाज और भोजन' → यह गलत है, 'अन-अन्य' का अर्थ भोजन नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'अनाज और दूसरा'।
Quick Tip: 'अन-अन्य' शब्द का प्रयोग अतिरिक्त और दूसरे अर्थ में किया जाता है।
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो सही अर्थ लिखिए:
(i) काल
(ii) जड़
(iii) चपल
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(i) काल
अर्थ 1: समय का एक विशेष भाग। (उदाहरण: जीवन का हर काल बदलता रहता है।)
अर्थ 2: किसी कार्य के होने का समय। (उदाहरण: उनका कोई विशेष काल नहीं था।)
(ii) जड़
अर्थ 1: पौधे का वह भाग जो जमीन में लगा होता है। (उदाहरण: पेड़ की जड़ गहरी थी।)
अर्थ 2: किसी चीज़ का मूल, आरंभ। (उदाहरण: उसकी समस्याओं की जड़ झूठ बोलने में थी।)
(iii) चपल
अर्थ 1: जो जल्दी-जल्दी हरकत करता हो। (उदाहरण: वह बहुत चपल बच्चा है।)
अर्थ 2: तेज़ और हल्का। (उदाहरण: चपल व्यक्ति हर परिस्थिति में आसानी से घुम सकता है।) Quick Tip: शब्दों के विभिन्न अर्थों को समझने के लिए वाक्य में उनका प्रयोग महत्वपूर्ण है।
निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक सही 'शब्द' का चयन करके लिखिए:
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Step 1: Understanding the context.
'जो वन्दना करने योग्य हो' के लिए सबसे उपयुक्त शब्द 'वन्दनीय' है, क्योंकि यह शब्द वन्दना के योग्य होने की स्थिति को व्यक्त करता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'जो वन्दना करने योग्य हो' → यह सही व्याख्या है, लेकिन हमें सीधे तौर पर शब्द का चयन करना है।
- (B) 'वन्दनीय' → सही उत्तर, यह शब्द वन्दना के योग्य होने को व्यक्त करता है।
- (C) 'पूजनीय' → यह गलत है, 'पूजनीय' का अर्थ पूजा करने योग्य है, जबकि वन्दना और पूजा के अर्थ अलग-अलग होते हैं।
- (D) 'सम्माननीय' → यह भी गलत है, 'सम्माननीय' का अर्थ सम्मान के योग्य होता है, वन्दना के योग्य नहीं।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'वन्दनीय', क्योंकि यह शब्द वन्दना के योग्य होने को व्यक्त करता है।
Quick Tip: 'वन्दनीय' शब्द का प्रयोग उन व्यक्तियों या वस्तुओं के लिए किया जाता है, जिन्हें सम्मान और वन्दना के योग्य माना जाता है।
जो जीता न जा सके:
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Step 1: Understanding the context.
'जो जीता न जा सके' के लिए सबसे उपयुक्त शब्द 'अजेय' है, क्योंकि इसका अर्थ होता है 'जिसे हराया न जा सके'।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'अजेय' → सही उत्तर, इसका अर्थ होता है 'जो जीता न जा सके'।
- (B) 'अमर' → यह गलत है, 'अमर' का अर्थ होता है 'जो कभी न मरे', न कि 'जो जीता न जा सके'।
- (C) 'अजर' → यह गलत है, 'अजर' का अर्थ होता है 'जो नष्ट न हो', जो यहाँ उपयुक्त नहीं है।
- (D) 'अनंत' → यह गलत है, 'अनंत' का अर्थ होता है 'जो बिना अंत के हो', जबकि 'जीता न जा सके' का संदर्भ इससे अलग है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'अजेय', क्योंकि इसका अर्थ 'जो जीता न जा सके' होता है।
Quick Tip: 'अजेय' शब्द का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी को हराना या पराजित करना असंभव हो।
निम्नलिखित में से किन्हीं दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए:
(i) मैं सुकुमारपूर्वक हूँ।
(ii) मैं पानी पी लिया हूँ।
(iii) वह लड़के कहाँ जा रहे हैं।
(iv) कृपया अवकाश देने की कृपा करें।
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(i) मैं सुकुमारपूर्वक हूँ।
शुद्ध वाक्य: मैं सुकुमार हूँ।
व्याख्या: 'सुकुमारपूर्वक' शब्द का प्रयोग इस संदर्भ में गलत है। 'सुकुमार' शब्द अकेले ही सही है।
(ii) मैं पानी पी लिया हूँ।
शुद्ध वाक्य: मैंने पानी पी लिया है।
व्याख्या: 'मैं' के साथ 'हूँ' का प्रयोग नहीं किया जा सकता, सही रूप 'मैंने' है।
(iii) वह लड़के कहाँ जा रहे हैं।
शुद्ध वाक्य: वह लड़के कहाँ जा रहे हैं?
व्याख्या: वाक्य के अंत में प्रश्नवाचक चिह्न (?) का प्रयोग करना आवश्यक है।
(iv) कृपया अवकाश देने की कृपा करें।
शुद्ध वाक्य: कृपया अवकाश देने की कृपा करें।
व्याख्या: यह वाक्य पहले से ही सही है, इसमें कोई त्रुटि नहीं है। Quick Tip: सही व्याकरण और शब्दों के सही प्रयोग से वाक्य की स्पष्टता और अर्थ में वृद्धि होती है।
'वीर' रस अथवा 'शांत' रस का लक्षण सहित एक उदाहरण लिखिए।
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Step 1: 'वीर' रस का लक्षण।
'वीर' रस वह रस है, जो साहस, शौर्य, और उत्साह का प्रतीक होता है। इसमें व्यक्ति अपने कार्य को निडरता से करता है, चाहे वह युद्ध हो या जीवन का कोई अन्य संघर्ष। वीर रस में अक्सर पराक्रम और आत्मविश्वास की भावना होती है।
Step 2: 'वीर' रस का उदाहरण।
उदाहरण:
"तेरा वैराग्य ही तो है,
जो कर देता है सबको घायल।
हम न डरें, न हम थमें,
हम तो वीर हैं, यह है साहस का ज्वाल।"
Step 3: 'शांत' रस का लक्षण।
'शांत' रस वह रस है, जो शांति, सुकून और निराकार भावनाओं का प्रतीक है। यह रस व्यक्ति के मन की शांति, संतोष और आनंद का प्रतीक है। शांत रस में व्यक्ति संतुष्ट और विश्राम की स्थिति में रहता है।
Step 4: 'शांत' रस का उदाहरण।
उदाहरण:
"गहन शांति में बसा हर पल,
संतुष्ट है मन, न कोई हलचल।
बिना संघर्ष के, सदा संजीवनी,
यह शांति की गाथा है, जीवन की सही खाता।" Quick Tip: 'वीर' रस और 'शांत' रस के लक्षणों को समझते समय ध्यान रखें कि वीर रस में उत्साह और संघर्ष की भावना है, जबकि शांत रस में शांति और संतोष की भावना होती है।
'शलेष' अलंकार अथवा 'रूपक' अलंकार की परिभाषा लिखते हुए एक उदाहरण लिखिए।
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Step 1: 'शलेष' अलंकार की परिभाषा।
'शलेष' अलंकार में एक ही शब्द का दो या दो से अधिक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य शब्दों के द्वैर्थी अर्थ से अर्थ की सुंदरता को बढ़ाना होता है।
Step 2: 'शलेष' अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण:
"सात रंगों की कक्षा, आओ देखो हम,
यह नहीं, यह जीवन का रंगमंच है।"
यहाँ 'रंग' शब्द का दो अर्थों में प्रयोग किया गया है—पहला रंग कक्षा के रंगों के रूप में और दूसरा रंग जीवन के उतार-चढ़ाव के रूप में।
Step 3: 'रूपक' अलंकार की परिभाषा।
'रूपक' अलंकार में किसी वस्तु को किसी अन्य वस्तु से अत्यधिक समानता दिखाकर उसका वर्णन किया जाता है। इसका उद्देश्य समानताओं के माध्यम से भावनाओं को अधिक प्रभावी रूप से प्रस्तुत करना होता है।
Step 4: 'रूपक' अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण:
"वह चाँद की तरह चमकता है।"
यहाँ चाँद की चमक के माध्यम से किसी व्यक्ति की सुंदरता या आकर्षण को व्यक्त किया गया है।
Quick Tip: शलेष और रूपक अलंकार का उद्देश्य शब्दों के माध्यम से प्रभावी भावनाओं का निर्माण करना होता है।
'चौपाई छंद' अथवा 'दोहा' छंद का लक्षण और एक उदाहरण लिखिए।
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Step 1: 'चौपाई छंद' का लक्षण।
'चौपाई छंद' में प्रत्येक पंक्ति में आठ मात्राएँ होती हैं और कुल चार पंक्तियाँ होती हैं। यह छंद सामान्यत: भक्ति साहित्य में प्रयोग किया जाता है। चौपाई छंद में हर पंक्ति के अंत में समान मात्राएँ और भावनाएँ होती हैं।
Step 2: 'चौपाई छंद' का उदाहरण।
उदाहरण:
"राम नाम का जाप करो,
कभी न इसे भूलो।
हर संकट से मुक्ति मिले,
सभी को प्रभु से जोड़ो।"
Step 3: 'दोहा' छंद का लक्षण।
'दोहा' छंद में प्रत्येक पंक्ति में ग्यारह मात्राएँ होती हैं और यह दो पंक्तियों में बँटा होता है। दोहे में एक विचार को संक्षेप में प्रस्तुत किया जाता है।
Step 4: 'दोहा' छंद का उदाहरण।
उदाहरण:
"संगत का फल प्यारा है,
सबको सिखाता है ज्ञान।
सच्चे मित्र के पास हो,
जीवन बने महान।" Quick Tip: छंदों के लक्षण और उदाहरणों को समझते समय उनके मीटर और मात्रा को ध्यान में रखें।
विद्यालय में नियुक्ति हेतु प्रबंधक को एक आवेदन-पत्र लिखिए।
अथवा
अपने गाँव अथवा शहर की बिजली समस्या हेतु उचित अधिकारी को एक पत्र लिखिए।
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विद्यालय में शिक्षक के पद हेतु आवेदन-पत्र:
From:
[आपका नाम]
[आपका पता]
[शहर, राज्य]
[तारीख]
To:
प्रधानाचार्य,
[विद्यालय का नाम]
[विद्यालय का पता]
[शहर, राज्य]
विषय: शिक्षक के पद हेतु आवेदन।
मान्यवर,
मैं [विषय] शिक्षक के पद हेतु आपके विद्यालय में आवेदन कर रहा हूँ। मैंने [विश्वविद्यालय/संस्थान का नाम] से [डिग्री/योग्यता] की है और इस पद के लिए सभी आवश्यक योग्यताएँ प्राप्त की हैं।
मैंने [X वर्ष/महीने] तक [विद्यालय/कॉलेज का नाम] में शिक्षक के रूप में कार्य किया है, और मुझे कक्षा के कार्यों और छात्रों को प्रभावी तरीके से पढ़ाने का व्यापक अनुभव प्राप्त है। मुझे युवा छात्रों को शिक्षा देने का गहरा लगाव है और मैं हमेशा एक प्रेरणादायक और समावेशी शिक्षा वातावरण बनाने का प्रयास करता हूँ।
मैं अपना रिज़्युमे आपके संदर्भ के लिए संलग्न कर रहा हूँ और आपके प्रतिष्ठित विद्यालय में कार्य करने के अवसर की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। कृपया मेरे आवेदन पर विचार करें और मुझे साक्षात्कार का अवसर प्रदान करें।
धन्यवाद!
आपका विश्वासी,
[आपका नाम]
[आपका संपर्क नंबर]
अथवा, बिजली समस्या के बारे में पत्र:
From:
[आपका नाम]
[आपका पता]
[शहर, राज्य]
[तारीख]
To:
बिजली अधिकारी,
[बिजली विभाग का नाम]
[विभाग का पता]
[शहर, राज्य]
विषय: बिजली आपूर्ति में बार-बार कटौती के बारे में शिकायत।
मान्यवर,
मैं यह पत्र अपने क्षेत्र [क्षेत्र का नाम] में बार-बार हो रही बिजली की कटौती की शिकायत के संबंध में लिख रहा हूँ। यह कटौती दिन में कई बार हो रही है, जिससे आम जनजीवन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, खासकर छात्रों और कामकाजी लोगों के लिए यह बहुत समस्या उत्पन्न कर रहा है।
कृपया इस समस्या का शीघ्र समाधान करें, क्योंकि यह समस्या काफी समय से बनी हुई है। मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आपके विभाग का एक दल स्थानीय ट्रांसफार्मर और बिजली लाइनों का निरीक्षण कर समस्या का समाधान करें।
आपके इस मुद्दे पर त्वरित ध्यान देने के लिए धन्यवाद। मैं शीघ्र समाधान की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
आपका विश्वासी,
[आपका नाम]
[आपका संपर्क नंबर] Quick Tip: शिकायत पत्र में मुद्दे की स्पष्ट जानकारी और त्वरित समाधान के लिए अनुरोध करें।
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा-शैली में सारगर्भित निबंध लिखिए:
(क) साहित्य और समाज का अंत: सम्बन्ध
(ख) महँगाई की समस्या का कारण और निराकरण
(ग) कृषक-जीवन की त्रासदी
(घ) जलवायु-परिवर्तन का मौसम पर प्रभाव
(ड़) भारतीय लोकतंत्र का भविष्य
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(क) साहित्य और समाज का अंत: सम्बन्ध
साहित्य और समाज का संबंध अत्यंत गहरा और अभिन्न है। साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज में होने वाले बदलावों, समस्याओं, विचारों और संस्कृतियों को साहित्य में बड़े प्रभावी तरीके से देखा जा सकता है। साहित्य समाज की आत्मा की तरह है, जो समाज के विचारों और भावनाओं को प्रस्तुत करता है। यह केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि समाज की जागरूकता और सामाजिक सुधार की दिशा में भी यह एक कारगर माध्यम है।
साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के हर वर्ग और उसकी समस्याओं को उजागर करता है। साहित्य के द्वारा समाज के विचार और दृष्टिकोण बदले जाते हैं। साहित्य समाज की भावनाओं, उसकी संवेदनाओं और उसके हितों को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। जैसे कि महात्मा गांधी के विचार, समाज की स्थिति को उजागर करने वाले लेखन ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। साहित्य का समाज पर प्रभाव बहुत गहरा होता है क्योंकि यह लोगों के दिलों और दिमागों को प्रभावित करता है। साहित्यकार समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं को दिखाकर समाज में सुधार की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हैं।
साहित्य और समाज का यह संबंध सदैव गतिमान रहता है। समय के साथ साहित्य ने समाज के विभिन्न पहलुओं को बदलने का काम किया है, चाहे वह राजनीति हो, संस्कृति हो या समाजिक जीवन। इसलिए साहित्य को समाज के आइने के रूप में देखा जाता है।
(ख) महँगाई की समस्या का कारण और निराकरण
महँगाई की समस्या आजकल भारतीय समाज में एक प्रमुख मुद्दा बन चुकी है। महँगाई का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, संसाधनों का असंतुलित वितरण, उच्च कर दर, और सरकार की आर्थिक नीतियों में खामियाँ हैं। जब आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कम होती है और माँग ज्यादा होती है, तो कीमतें बढ़ जाती हैं, जो महँगाई का प्रमुख कारण बनता है।
महँगाई का एक और प्रमुख कारण कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हैं। पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतें न केवल परिवहन लागत को बढ़ाती हैं, बल्कि खाद्य और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को भी प्रभावित करती हैं। इसके अलावा, सरकारी नीतियाँ, जैसे कि कृषि में अनियमितता, भी महँगाई को बढ़ावा देती हैं।
महँगाई के निराकरण के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले, कृषि क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है ताकि कृषि उत्पादों की उपलब्धता बढ़ सके और कीमतों में कमी आए। इसके अलावा, औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार को प्रभावी कदम उठाने चाहिए। सरकारी नीतियों में सुधार और काले बाज़ार पर कड़ी कार्रवाई की जरूरत है। आर्थिक योजना और नीति को पारदर्शी बनाना महँगाई को काबू करने में मदद करेगा।
इसके साथ ही, भारत को एक स्थिर मुद्रा नीति की आवश्यकता है। भारतीय रुपया की स्थिरता से विदेशी निवेश बढ़ेगा और इससे महँगाई को नियंत्रित किया जा सकता है।
(ग) कृषक-जीवन की त्रासदी
कृषक जीवन की त्रासदी एक दुखद पहलू है जो हमारे समाज की हकीकत को दर्शाता है। भारतीय किसान अपने जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर है, लेकिन आजकल कृषि क्षेत्र में कई समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। किसानों के लिए कर्ज़, कृषि उत्पादों की गिरती कीमतें, प्राकृतिक आपदाएँ और सरकारी नीतियों का अभाव मुख्य समस्याएँ हैं। इन समस्याओं के कारण किसान आत्महत्या जैसे कृत्य करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
भारत में कृषि क्षेत्र को सबसे अधिक प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। किसानों को सरकार से समय पर सही समर्थन और मार्गदर्शन मिलना चाहिए। किसानों के लिए एक मजबूत कर्ज़-मुक्त योजना और सस्ती ऋण प्रणाली की जरूरत है, ताकि वे अपने कर्ज़ से उबर सकें और अपने परिवार के साथ एक बेहतर जीवन जी सकें।
कृषि में तकनीकी सुधार लाकर कृषि क्षेत्र को अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है। किसानों को आधुनिक कृषि उपकरण, बीज और तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके साथ ही, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए ठोस योजना बनाई जानी चाहिए, जिससे किसानों को नुकसान से बचाया जा सके।
(घ) जलवायु-परिवर्तन का मौसम पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन अब एक वैश्विक समस्या बन चुका है और इसका प्रभाव हमारे मौसम पर गहरा पड़ रहा है। बढ़ता तापमान, असमान वर्षा, सूखा, बर्फबारी की कमी, और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ जलवायु परिवर्तन के प्रमुख संकेत हैं। जलवायु परिवर्तन से न केवल कृषि क्षेत्र पर असर पड़ रहा है, बल्कि मानव जीवन भी प्रभावित हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानव गतिविधियाँ हैं, जैसे कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, वनों की कटाई, और उद्योगों से निकलने वाली ध्वनि और प्रदूषण। जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों की कमी और जीवन स्तर पर असर भी जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक वैश्विक स्तर पर सहयोग और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। देशों को मिलकर इस समस्या को हल करने के लिए कार्य करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का इस्तेमाल बढ़ाना चाहिए, साथ ही प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को लागू करना चाहिए।
(ड़) भारतीय लोकतंत्र का भविष्य
भारतीय लोकतंत्र का भविष्य अत्यंत उज्जवल है, बशर्ते हम सभी मिलकर इसे सशक्त और सुदृढ़ बनाएं। भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत इसकी विविधता में निहित है। भारत में विभिन्न जातियों, धर्मों, और भाषाओं के लोग एक साथ रहते हैं। यह विविधता लोकतंत्र को और भी मजबूत बनाती है। हालांकि, हमारे लोकतंत्र के सामने कई चुनौतियाँ हैं, जैसे भ्रष्टाचार, चुनावी प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता, और समान अवसर की कमी।
भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए चुनावी सुधार, समान अवसरों का विस्तार, और पारदर्शी प्रशासन की आवश्यकता है। अगर हम इन सुधारों को लागू करते हैं, तो भारतीय लोकतंत्र का भविष्य और भी बेहतर और सशक्त होगा। हमें अपनी संवैधानिक धारा को सशक्त करने और देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। Quick Tip: निबंध लेखन में विषय की गहराई में जाकर सभी पहलुओं का विश्लेषण करें और विस्तृत उदाहरणों का प्रयोग करें ताकि आपके विचार स्पष्ट और सटीक हों।



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