UP Board Class 12 Hindi General Question Paper with Answer Key Code 302 ZL is available for download. The exam was conducted by the Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad (UPMSP) on February 16, 2023 in Afternoon Session 2 PM to 5:15 PM. The medium of paper was Hindi. In terms of difficulty level, UP Board Class 12 Hindi General paper was Easy. The question paper comprised a total of 14 questions.
UP Board Class 12 Hindi General (Code 302 ZL) Question Paper with Answer Key (February 16)
UP Board Class 12 Hindi General (Code 302 ZL) Question Paper with Solutions PDF | Download PDF | Check Solutions |
प्रतापनारायण मिश्र द्वारा संपादित पत्र का नाम है:
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Step 1: Understanding the context.
प्रतापनारायण मिश्र ने हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका संपादित पत्र 'सरस्वती' हिंदी गद्य साहित्य में मील का पत्थर था।
Step 2: About the publication.
'सरस्वती' पत्रिका हिंदी के सबसे प्रमुख साहित्यिक पत्रों में से एक मानी जाती है, जिसे प्रतापनारायण मिश्र ने 1900 के आसपास संपादित किया था।
Step 3: Option Analysis.
- (A) 'हिन्दी दीप' → यह गलत है, यह पत्रिका प्रतापनारायण मिश्र द्वारा संपादित नहीं की गई।
- (B) 'ब्राह्मण' → यह भी गलत है, 'ब्राह्मण' पत्रिका का संपादन किसी और ने किया था।
- (C) 'सरस्वती' → सही उत्तर, 'सरस्वती' पत्रिका का संपादन प्रतापनारायण मिश्र ने किया था।
- (D) 'मयदा' → यह भी गलत है, यह पत्रिका प्रतापनारायण मिश्र से सम्बंधित नहीं है।
Step 4: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) 'सरस्वती', क्योंकि यह पत्रिका प्रतापनारायण मिश्र द्वारा संपादित थी।
Quick Tip: 'सरस्वती' पत्रिका को हिंदी साहित्य की विकास यात्रा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह पत्रिका हिंदी के साहित्यिक विमर्श और विचारों के प्रसार में अहम भूमिका निभाती थी।
'बाणभट्ट की आत्मकथा' के लेखक हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'बाणभट्ट की आत्मकथा' बाणभट्ट द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण काव्यात्मक आत्मकथा है, जिसे हिंदी साहित्य में एक उत्कृष्ट कृति माना जाता है। इस कृति को डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने संपादित किया और इसका आलोचनात्मक अध्ययन किया।
Step 2: About the author.
डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के महान आचार्य और आलोचक थे। वे बाणभट्ट की कृतियों के प्रमुख विद्वान माने जाते हैं और उन्होंने 'बाणभट्ट की आत्मकथा' पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
Step 3: Option Analysis.
- (A) डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी → सही उत्तर, डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने 'बाणभट्ट की आत्मकथा' पर अपने विचार प्रस्तुत किए थे।
- (B) आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी → यह गलत है, आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने इस कृति पर कार्य नहीं किया।
- (C) रामचंद्र शुक्ल → यह गलत है, रामचंद्र शुक्ल ने बाणभट्ट की कृति पर काम किया था लेकिन 'आत्मकथा' पर नहीं।
- (D) प्रो. जी. सुंदर रेड्डी → यह भी गलत है, उन्होंने इस कृति पर कोई कार्य नहीं किया।
Step 4: Conclusion.
स्पष्ट है कि 'बाणभट्ट की आत्मकथा' पर डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी का योगदान महत्वपूर्ण था।
Quick Tip: हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने बाणभट्ट की कृतियों पर अनेक विचार दिए, जिससे हिंदी साहित्य में उनकी अहम भूमिका स्थापित हुई।
'अशोक के फूल' किस विधा की रचना है?
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Step 1: Understanding the context.
'अशोक के फूल' महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित संस्मरण है, जिसमें उनके विचारों और दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया गया है। यह एक आत्मकथात्मक रचना है, जिसमें लेखक ने गांधीजी के साथ अपने अनुभवों को साझा किया है।
Step 2: About the genre.
यह रचना संस्मरण के रूप में है, जिसमें लेखक ने अपनी यादों और घटनाओं को सहेजा है। संस्मरण साहित्य की एक विधा है जिसमें लेखक अपने जीवन के कुछ विशेष क्षणों और अनुभवों को प्रस्तुत करता है।
Step 3: Option Analysis.
- (A) कहानी → यह गलत है, 'अशोक के फूल' कहानी नहीं है।
- (B) संस्मरण → सही उत्तर, 'अशोक के फूल' संस्मरण है, जो गांधीजी के जीवन से संबंधित है।
- (C) उपन्यास → यह गलत है, यह रचना उपन्यास नहीं है।
- (D) निबंध → यह भी गलत है, यह निबंध नहीं है।
Step 4: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (B) 'संस्मरण', क्योंकि 'अशोक के फूल' एक संस्मरण है।
Quick Tip: संस्मरण साहित्य की वह विधा है जिसमें लेखक अपने जीवन के घटनाओं को याद करके लिखता है, जो उसकी व्यक्तिगत सच्चाई को प्रस्तुत करती है।
'भारत-दुर्दशा' नाटक के रचनाकार हैं:
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Step 1: Understanding the context.
'भारत-दुर्दशा' नाटक भारतेंदु हरिशचन्द्र द्वारा रचित है। यह नाटक भारत के सामाजिक और राजनीतिक संकटों को दर्शाता है।
Step 2: About the author.
भारतेंदु हरिशचन्द्र हिंदी साहित्य के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और 'भारत-दुर्दशा' जैसे नाटकों के माध्यम से समाज की बुराइयों और समस्याओं को उजागर किया।
Step 3: Option Analysis.
- (A) भारतेंदु हरिशचन्द्र → सही उत्तर, 'भारत-दुर्दशा' नाटक के रचनाकार भारतेंदु हरिशचन्द्र हैं।
- (B) बालकृष्ण भट्ट → यह गलत है, बालकृष्ण भट्ट ने इस नाटक को नहीं लिखा।
- (C) श्याम सुंदर दास → यह भी गलत है, उन्होंने यह नाटक नहीं लिखा।
- (D) प्रतापनारायण मिश्र → यह गलत है, प्रतापनारायण मिश्र ने 'भारत-दुर्दशा' नहीं लिखा।
Step 4: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) भारतेंदु हरिशचन्द्र, क्योंकि यह नाटक उनके द्वारा रचित है।
Quick Tip: भारतेंदु हरिशचन्द्र को 'हिंदी नाटक का पितामह' कहा जाता है, और उनका योगदान हिंदी साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण है।
इनमें से गद्य की किस विधा में काल्पनिक प्रसंगों का स्थान नहीं है?
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Step 1: Understanding the context.
आत्मकथा एक ऐसी विधा है जिसमें लेखक अपनी वास्तविक जीवन की घटनाओं और अनुभवों का विवरण करता है। इसमें काल्पनिकता का कोई स्थान नहीं होता।
Step 2: Analyzing the other options.
- (A) कहानी → कहानी में काल्पनिक और वास्तविक दोनों प्रकार के प्रसंग हो सकते हैं।
- (B) उपन्यास → उपन्यास भी काल्पनिक या वास्तविक घटनाओं पर आधारित हो सकता है।
- (C) नाटक → नाटक में भी काल्पनिक घटनाओं और पात्रों का प्रयोग किया जाता है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (D) आत्मकथा, क्योंकि इसमें काल्पनिक प्रसंगों का स्थान नहीं होता।
Quick Tip: आत्मकथा लेखन में लेखक अपनी असल जिंदगी के अनुभवों को ही प्रस्तुत करता है, जिससे इसमें कल्पना का स्थान नहीं होता।
हिंदी-साहित्य के आधुनिक काल की रचना है:
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Step 1: Understanding the context.
'पद्मावत' हिंदी साहित्य के प्रमुख काव्य-ग्रंथों में से एक है, जिसे आधुनिक काल में रचित माना जाता है। यह काव्य ग्रंथ सम्राट रतन सिंह और उनकी पत्नी पद्मिनी की वीरता पर आधारित है।
Step 2: Analyzing the other options.
- (A) 'पद्मावत' → सही उत्तर, यह रचना हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में रचित है।
- (B) 'सूरसागर' → यह पुरानी साहित्यिक रचनाओं में शामिल है, इसे हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में नहीं माना जाता।
- (C) 'रामचन्द्रकाव्य' → यह रचना भी आधुनिक काल की नहीं है।
- (D) 'चौद का मुँह टेका है' → यह एक प्राचीन रचना है, आधुनिक काल से संबंधित नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'पद्मावत', जो हिंदी साहित्य के आधुनिक काल की रचना है।
Quick Tip: 'पद्मावत' एक प्रमुख काव्य है जो हिंदी साहित्य के मध्यकाल और आधुनिक काल की सीमाओं को दर्शाता है।
'हरिशोद्ध' का पूरा नाम है:
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Step 1: Understanding the context.
'हरिशोद्ध' एक प्रसिद्ध लेखक का काव्य रचनात्मक नाम है, जिनका असली नाम नाथराम शर्मा था। वे हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि रहे हैं।
Step 2: Option Analysis.
- (A) जनन्नाथदास → यह गलत है, 'हरिशोद्ध' का नाम जनन्नाथदास नहीं था।
- (B) अयोध्याप्रसाद → यह गलत है, 'हरिशोद्ध' का नाम अयोध्याप्रसाद नहीं था।
- (C) नाथराम शर्मा → सही उत्तर, 'हरिशोद्ध' का असली नाम नाथराम शर्मा था।
- (D) अयोध्याशिंह उपाध्याय → यह भी गलत है, 'हरिशोद्ध' का नाम अयोध्याशिंह उपाध्याय नहीं था।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) नाथराम शर्मा, जिनका असली नाम 'हरिशोद्ध' था।
Quick Tip: 'हरिशोद्ध' हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि नाथराम शर्मा का प्रसिद्ध काव्य नाम था।
छायावाद की मुख्य विशेषता है:
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Step 1: Understanding the context.
छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण काव्य-प्रवृत्ति है, जिसमें प्रकृति, रहस्यवाद, और आत्मा की गहरी अभिव्यक्ति की जाती है। इसमें प्रकृति के चित्रण को अत्यधिक महत्व दिया जाता है।
Step 2: Analyzing the options.
- (A) प्रकृति-चित्रण → सही उत्तर, छायावाद की विशेषता प्रकृति का चित्रण है।
- (B) युद्ध-वर्णन → यह छायावाद की विशेषता नहीं है, क्योंकि छायावाद में युद्ध की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया।
- (C) यथार्थ चित्रण → यह भी गलत है, छायावाद में यथार्थवाद की बजाय प्रतीकवाद और रहस्यवाद का प्रयोग किया गया।
- (D) भक्तिपंथिता → यह भी गलत है, छायावाद में भक्तिपंथिता मुख्य विशेषता नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) प्रकृति-चित्रण, क्योंकि यह छायावाद की मुख्य विशेषता है।
Quick Tip: छायावाद में प्रकृति का चित्रण, रहस्यवाद, और अज्ञेय भावनाओं की प्रधानता होती है।
'प्रकृति का सुकुमार कवि' कहा गया है:
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Step 1: Understanding the context.
'प्रकृति का सुकुमार कवि' की उपाधि सुमित्रानंदन पंत को दी गई है। उनकी काव्य रचनाओं में प्रकृति का अत्यधिक और सुंदर चित्रण मिलता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) रामधारी सिंह 'दिनकर' → यह गलत है, दिनकर को प्रकृति का सुकुमार कवि नहीं कहा गया।
- (B) जयशंकर प्रसाद → यह भी गलत है, हालांकि वे प्रकृति के कवि थे, लेकिन उन्हें सुकुमार कवि की उपाधि नहीं दी गई।
- (C) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' → यह भी गलत है, निराला को यह उपाधि नहीं दी गई।
- (D) सुमित्रानंदन पंत → सही उत्तर, सुमित्रानंदन पंत को 'प्रकृति का सुकुमार कवि' कहा गया है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (D) सुमित्रानंदन पंत, जिन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि कहा गया है।
Quick Tip: सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी कविताओं में प्रकृति का अत्यधिक सुंदर और भावनात्मक चित्रण मिलता है।
दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
यदि यह नवनीकरण सिर्फ कुछ पंडितों की व आचार्य की दिमागी कस्रत ही बनी रहे तो भाषा परिवर्तन नहीं होती। भाषा का सीधा संबंध प्रयोग से है और जनता से है। यदि नए शब्द अपने उद्गम स्थान में ही अड़े रहें और कहीं भी उनका प्रयोग किया नहीं जाए तो उनके पीछे के उददेश्य पर ही कुण्ठायित होगा।
Question 10:
उपयुक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
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पाठ: यह गद्यांश भाषा के नवनीकरण और उसके उपयोग के विषय में है, जो यह बताता है कि यदि भाषा में गतिशीलता और परिवर्तन नहीं होगा तो वह समाज में प्रभावी नहीं हो सकती। भाषा का विकास तभी संभव है जब वह समाज के प्रयोग से जुड़े और जनतंत्र का हिस्सा बने।
लेखक का नाम: यह गद्यांश हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक ‘राजेंद्र यादव’ के काव्य या गद्य का हिस्सा हो सकता है। Quick Tip: गद्यांश के लेखक का नाम पहचानते समय उनकी लेखन शैली और विषय पर ध्यान दें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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रेखांकित अंश: "यदि नए शब्द अपने उद्गम स्थान में ही अड़े रहें और कहीं भी उनका प्रयोग किया नहीं जाता तो उसके पीछे के उद्देश्य पर ही कुण्ठा होगी।"
व्याख्या:
इस वाक्य में लेखक यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि किसी भी भाषा के नवनीकरण के लिए यह आवश्यक है कि नए शब्दों का समाज में प्रयोग किया जाए, ताकि वे उस भाषा का हिस्सा बन सकें। यदि शब्दों का प्रयोग न किया जाए तो उनका अस्तित्व और उद्देश्य समाप्त हो जाएगा। Quick Tip: किसी भी रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय उसके भावार्थ और प्रभाव को संक्षेप में स्पष्ट करें।
‘कुण्ठा’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
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कुण्ठा का अर्थ:
कुण्ठा का अर्थ है असंतोष या किसी काम में विफलता के कारण उत्पन्न हुई निराशा और हताशा। यह वह स्थिति है, जब किसी व्यक्ति का उद्देश्य पूरा नहीं होता और वह उस विषय या कार्य को लेकर निराश होता है। Quick Tip: "कुण्ठा" शब्द का उपयोग किसी व्यक्ति की निराशा, हताशा और आत्मविश्वास की कमी के संदर्भ में किया जाता है।
भाषा का सीधा संबंध किससे है?
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भाषा का सीधा संबंध समाज से है। समाज एक ऐसी संरचना है जिसमें भाषा का जन्म और विकास होता है। समाज के विभिन्न पहलुओं जैसे संस्कृति, शिक्षा, राजनीति, और आर्थिक स्थिति से भाषा का गहरा संबंध होता है। जब समाज में कोई परिवर्तन होता है तो भाषा भी उन परिवर्तनों का संकेत देती है। उदाहरण के लिए, समाज में नए विचारों और सोच के आने से नए शब्दों का निर्माण होता है, जो भाषा की संप्रेषण क्षमता को बढ़ाते हैं।
भाषा का समाज के साथ गहरा नाता है क्योंकि यह समाज के विचारों, भावनाओं, और दृष्टिकोणों को व्यक्त करने का सबसे प्रभावी माध्यम है। जब समाज में कोई बदलाव आता है, तो वह बदलाव भाषा में भी परिलक्षित होता है। अगर समाज में कोई विचार, विचारधारा या प्रथा बदलती है, तो भाषा भी उसी के अनुरूप नए शब्दों और वाक्य संरचनाओं को अपनाती है।
इस प्रकार, भाषा केवल एक शब्दों का संग्रह नहीं होती, बल्कि वह समाज के संस्कार, रीति-रिवाज, और बदलावों का एक आईना होती है। इसके बिना, समाज के विचार और संस्कृतियाँ व्यक्त नहीं हो सकतीं। Quick Tip: भाषा केवल संवाद का एक साधन नहीं है, बल्कि यह समाज की सोच, संस्कृति, और विचारधाराओं का दर्पण भी है।
लेखक के अनुसार नए शब्दों के प्रयोग न किए जाने पर क्या परिणाम होगा?
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लेखक के अनुसार यदि समाज में नए शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाएगा, तो इसका परिणाम यह होगा कि भाषा का विकास रुक जाएगा और वह अपनी गतिशीलता को खो देगी। जब नए शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता, तो भाषा एक सीमित दायरे में ही रह जाती है, और इसके विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है।
भाषा का मुख्य कार्य समाज में विचारों, संवेदनाओं और सूचनाओं का आदान-प्रदान करना है। यदि यह नए शब्दों के माध्यम से समाज के बदलते दृष्टिकोण और विचारों को व्यक्त नहीं कर पाती, तो वह अपनी भूमिका में असफल हो जाती है। उदाहरण के लिए, नए वैज्ञानिक, तकनीकी या सामाजिक शब्दों का न आना या पुराने शब्दों का प्रयोग करना, भाषा को एक गतिहीन स्थिति में डाल सकता है। इसके परिणामस्वरूप समाज के लोग अपने विचारों को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते और समाज में संवाद की कमी हो सकती है।
यदि भाषा गतिशील नहीं रहती और उसमें समय के साथ नए शब्द और प्रयोग शामिल नहीं होते, तो यह समाज के विकास में रुकावट डाल सकती है। इसके अलावा, यह भी संभव है कि पुराने शब्दों और उनके अर्थों के बीच भ्रम उत्पन्न हो, जिससे सही संचार की प्रक्रिया प्रभावित हो। Quick Tip: भाषा का विकास उसके उपयोग और नए शब्दों के प्रयोग से ही संभव होता है। इसके बिना, भाषा अपने वास्तविक उद्देश्य में सफल नहीं हो सकती।
अथवा
मातृभूमि पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंश हैं। पृथ्वी हो और मनुष्य न की कल्पना असम्भव है। पृथ्वी और जन दोनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का स्वरूप सम्पादित होता है। जन के कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र है।
Question 15:
उपयुक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
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पाठ:
"मातृभूमि पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंग हैं। पृथ्वी हो और मनुष्य न की कल्पना असंभव है। पृथ्वी और जन दोनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का स्वच्छ सम्पूर्णता होता है। जन के कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र है।"
यह गद्यांश हमें यह सिखाता है कि पृथ्वी और मनुष्य के बीच एक गहरा संबंध है। मनुष्य के बिना पृथ्वी का अस्तित्व अधूरा सा प्रतीत होता है। इस गद्यांश में यह विचार व्यक्त किया गया है कि एक राष्ट्र तब ही संपूर्ण होता है जब उसका जन और उसकी मातृभूमि आपस में जुड़े रहते हैं। यह संप्रदाय, संस्कृति और समाज की स्थिरता की ओर भी संकेत करता है।
इस गद्यांश में हमें बताया गया है कि पृथ्वी और मनुष्य एक दूसरे के पूरक हैं। जब दोनों के बीच संतुलन होता है, तभी समाज और राष्ट्र की संपूर्णता स्थापित होती है। इस विचार में यह भी बताया गया है कि पृथ्वी के बिना मनुष्य का अस्तित्व संभव नहीं है और मनुष्य के बिना पृथ्वी भी व्यर्थ प्रतीत होती है। यह गद्यांश समाज में सामूहिकता, एकता और राष्ट्रभक्ति के महत्व को भी रेखांकित करता है।
लेखक का नाम:
यह गद्यांश प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार 'रामधारी सिंह दिनकर' का है। दिनकर जी ने अपनी रचनाओं में राष्ट्रवाद, समाजवाद और मानवता की महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत की हैं। उनके काव्य और गद्य में समाज के प्रति एक गहरी समझ और राष्ट्र के प्रति प्रेम झलकता है। उनका लेखन हमारे देश की संस्कृति और समाज की समस्याओं को प्रकट करता है। Quick Tip: गद्यांश की व्याख्या करते समय लेखक की भावना और संदेश को समझना ज़रूरी होता है। विशेषकर जब वह राष्ट्र और समाज से संबंधित हो, तो हमें उसके सामाजिक प्रभाव पर भी ध्यान देना चाहिए।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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रेखांकित अंश:
"पृथ्वी हो और मनुष्य न की कल्पना असंभव है। पृथ्वी और जन दोनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का स्वच्छ सम्पूर्णता होता है। जन के कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र है।"
व्याख्या:
इस रेखांकित अंश में लेखक यह स्पष्ट करते हैं कि पृथ्वी और मनुष्य के बीच का संबंध अपरिहार्य और अटूट है। पृथ्वी का अस्तित्व मनुष्य के कारण ही संभव है, और मनुष्य का अस्तित्व पृथ्वी के बिना अधूरा है। इसका सीधा अर्थ है कि पृथ्वी और मनुष्य दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और उनका आपस में संतुलन स्थापित होना चाहिए।
यह अंश समाज और राष्ट्र की स्थिरता के लिए आवश्यक सामूहिकता को भी उजागर करता है, जिसमें हर व्यक्ति और उसकी मातृभूमि के बीच एक गहरा संबंध होता है। लेखक ने यह दिखाया है कि मनुष्य और पृथ्वी के साथ-साथ राष्ट्र भी एक पूरी इकाई बनते हैं। Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय यह ज़रूरी है कि आप उसके मूल विचार और लेखक के संदेश को पूरी तरह समझें।
लेखक के अनुसार राष्ट्र की कल्पना कब असंभव है?
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उत्तर:
लेखक के अनुसार, राष्ट्र की कल्पना तब असंभव है जब पृथ्वी और मनुष्य के बीच संतुलन नहीं होता। जब मनुष्य का अस्तित्व पृथ्वी से जुड़ा हुआ नहीं होता, या जब पृथ्वी और मनुष्य के बीच कोई संबंध स्थापित नहीं होता, तो राष्ट्र की कल्पना अधूरी और असंभव हो जाती है।
यह विचार हमें यह सिखाता है कि राष्ट्र का गठन केवल भौतिक सीमाओं से नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति से भी होता है। मनुष्य ही अपने कर्मों और सोच के माध्यम से राष्ट्र के निर्माण में योगदान देता है। यदि वह अपनी मातृभूमि से कट जाए तो राष्ट्र का अस्तित्व असंभव हो जाता है। Quick Tip: राष्ट्र की कल्पना के लिए समाज, संस्कृति और व्यक्ति का आपसी संबंध महत्वपूर्ण है।
पृथ्वी और जन मिलकर किसकी रचना करते हैं?
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पृथ्वी और जन मिलकर राष्ट्र की रचना करते हैं। यह गद्यांश हमें यह बताता है कि पृथ्वी और जन दोनों के बिना राष्ट्र की कल्पना करना असंभव है। जब पृथ्वी और जन दोनों मिलकर एक साथ काम करते हैं, तब ही राष्ट्र का गठन और उसका अस्तित्व संभव हो पाता है। Quick Tip: राष्ट्र की रचना के लिए पृथ्वी और जन का समान रूप से जुड़ा होना जरूरी है, जिससे राष्ट्र का सम्पूर्ण अस्तित्व और प्रगति संभव हो सके।
पृथ्वी किसके कारण मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है?
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पृथ्वी जन के कारण मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। यह गद्यांश यह स्पष्ट करता है कि मनुष्य और पृथ्वी के बीच का संबंध बहुत गहरा होता है। मनुष्य ही पृथ्वी को मातृभूमि का दर्जा देता है, क्योंकि वह पृथ्वी के माध्यम से जीवन की प्राप्ति करता है। बिना जन के पृथ्वी एक निर्जीव स्थान होगा, लेकिन मनुष्य के कारण ही पृथ्वी को एक मातृभूमि का सम्मान मिलता है। Quick Tip: पृथ्वी को मातृभूमि का दर्जा जन के माध्यम से ही मिलता है, क्योंकि जन के बिना पृथ्वी का अस्तित्व अधूरा रहता है।
दिये गये पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
लजाशील पक्षी महिला जो कहीं ठिठक आये
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को
जो थोड़ी-सी श्रमित वह हो गोद ले शान्ति खोजना
होते ही औं कमल-मुख की मननाएँ मिटाना
कोई बलाता कुपक-ललना खेत में जो दिकावे
धीरे-धीरे परस उसकी कलांतियों को मिटाना
जाता कोई जल्द यदि हो व्याम में तो उसे
छाया द्वारा स्मृतिक करना, तप्त भ्रमणाओं को
Question 20:
उपयुक्त कविता का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
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यह कविता प्रसिद्ध हिंदी कवि मैथिली शरण गुप्त द्वारा रचित है। कविता का शीर्षक 'लक्ष्मी' है।
कवि ने इस कविता में एक पतिव्रता महिला के अदम्य साहस और संघर्ष को व्यक्त किया है। उन्होंने यह दर्शाया है कि कठिन परिस्थितियों में भी एक स्त्री अपने कर्तव्यों को निष्ठा से निभाती है और समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाती है। Quick Tip: कविता की पहचान करते समय लेखक की शैली और विषय की समझ महत्वपूर्ण है, विशेषकर जब वह सामाजिक मुद्दों और संघर्षों से जुड़ी हो।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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व्याख्या:
इस अंश में कवि ने एक सशक्त स्त्री का चित्रण किया है, जो किसी भी कठिन परिस्थिति में अपने कर्तव्यों का पालन करती है। वह शांति की खोज में रहती है और समाज की हर कठिनाई का सामना करती है। कवि ने महिला के शारीरिक और मानसिक संघर्ष को सहजता से व्यक्त किया है। वह कहता है कि कठिन कार्यों के बावजूद, महिला में विनम्रता और सामर्थ्य है।
इस अंश में यह भी दिखाया गया है कि यदि कोई स्त्री कड़ी मेहनत से अपने कर्तव्यों को निभाती है तो वह जल्द ही सफलता की ओर बढ़ती है और समाज में उसकी स्थिति मजबूत होती है। इस विचार में स्त्री शक्ति और दृढ़ नायकत्व की महत्वपूर्ण चर्चा की गई है। Quick Tip: कविता की व्याख्या करते समय यह ज़रूरी है कि आप उसके भावार्थ को समाज और व्यक्ति की स्थिति से जोड़कर समझें।
उपयुक्त पद्यांश किस महाकाव्य का अंश है?
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यह उपयुक्त पद्यांश प्रसिद्ध हिंदी महाकाव्य 'स्मृति' का अंश है। यह कविता हमें संघर्ष, समाज, और स्त्री शक्ति के महत्व को समझाने का प्रयास करती है। Quick Tip: महाकाव्य का अंश पहचानते समय उसका केंद्रीय विचार और कथावस्तु समझना महत्वपूर्ण है।
'कृपक-ललना' और 'भूतांगा' शब्दों का अर्थ लिखिए।
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'कृपक-ललना':
इस शब्द का अर्थ है कोई ऐसा व्यक्ति जो दयालु और संवेदनशील हो, जो कठिन परिस्थिति में दूसरों की मदद करता है। इस संदर्भ में यह शब्द स्त्री के शारीरिक और मानसिक संघर्ष को दर्शाता है।
'भूतांगा':
इस शब्द का अर्थ होता है किसी पुराने और कठिन समय से जुड़े व्यक्ति या किसी ऐसी स्थिति से, जो अब अप्रासंगिक या समाप्त हो चुकी हो। इसे हम मुसीबतों या दुष्कर्षों के प्रतीक के रूप में देख सकते हैं। Quick Tip: शब्दों के अर्थ को समझने के लिए उनका संदर्भ और उपयोग जानना जरूरी है, जिससे उनका सही रूप से उपयोग किया जा सके।
नदिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति आक्रोश उत्पन्न करने के लिए कहती है?
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नदी का पवन से आक्रोश इस बात को दर्शाता है कि अगर किसी महिला को बिना किसी कारण के उसकी स्थिति को कमजोर और लज्जाशील माना जाता है, तो यह समाज की कमी को दर्शाता है। महिला का संघर्ष और कर्तव्य केवल उसके समाज और संस्कृति से जुड़ा होता है, उसे अन्यायपूर्ण दृष्टिकोण से देखना गलत है।
इस संदर्भ में नदी का पवन से आक्रोश यह प्रकट करता है कि एक महिला को उसकी शारीरिक और मानसिक ताकत के लिए सम्मान दिया जाना चाहिए। Quick Tip: महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और सम्मान की भावना को मजबूत करना जरूरी है, ताकि समाज में समानता और न्याय स्थापित किया जा सके।
अथवा
समर्पण लो सेवा का सार सजल संस्कृति का यह पव्वार;
आज से यह जीवन उत्तसर्ग इसी पद तल में विगत विकास।
बनो संस्कृति के मूल रहस्य तुम्ही से फैलेगी वह बेल;
विश्वभर सौष्ठव से भर जाय सुमन के खेले सुंदर खेल।
Question 25:
उपयुक्त पद्यांश का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
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यह पद्यांश प्रसिद्ध हिंदी कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित है। कविता का शीर्षक 'समर्पण' है। इस कविता में कवि ने भारतीय संस्कृति की महत्ता और उसके लिए सेवा की आवश्यकता को बताया है। वह समाज के हर व्यक्ति से अपील करते हैं कि वह अपने देश की सेवा में पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ कार्य करें। Quick Tip: कविता का शीर्षक और उसका संदेश जानने के लिए कविता की भावनाओं और शब्दों का सही विश्लेषण करें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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रेखांकित अंश:
"समर्पण लो सेवा का सार सजल संस्कृति का यह पर्वार;
आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद में विगत विकार।
बनो संस्कृति के मूल रहस्य तुम्ही से फैलोगी वह बेल;
विश्वभर सौष्ठव से भर जाए सुमन के खेलों सुंदर खेल।"
व्याख्या:
कवि रामधारी सिंह दिनकर इस अंश में संस्कृति के महत्व को दर्शाते हैं। उनका कहना है कि यदि हम अपने कर्तव्यों को निष्ठा से निभाते हैं और समाज के उत्थान में अपनी सेवा देते हैं, तो संस्कृति को फैलाना संभव है। वह यह भी कहते हैं कि यह सेवा ही संस्कृति के मूल रहस्य को उजागर करती है, और जब हम इसे समझते हैं, तो हम पूरे विश्व में सुख और सुंदरता का प्रसार कर सकते हैं।
यह कविता एक प्रेरणा है, जो समाज में समर्पण, संस्कृति, और सेवा के महत्व को उजागर करती है। Quick Tip: व्याख्या करते समय यह ध्यान रखें कि कविता में जो संदेश दिया गया है, वह समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है।
यह पद्यांश किस महाकाव्य का अंश है?
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यह उपयुक्त पद्यांश प्रसिद्ध हिंदी महाकाव्य 'स्मृति' का अंश है। यह कविता हमें संघर्ष, समाज, और स्त्री शक्ति के महत्व को समझाने का प्रयास करती है। वह समाज के हर व्यक्ति से अपील करते हैं कि वह अपने देश की सेवा में पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ कार्य करें। Quick Tip: महाकाव्य का अंश पहचानते समय उसका केंद्रीय विचार और कथावस्तु समझना महत्वपूर्ण है।
'समर्पण लो सेवा का सार सजल संस्कृति में कौन-सा अलंकार है?
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इस अंश में उत्कृष्ट अलंकार का प्रयोग किया गया है। यहाँ पर "समर्पण लो" और "सार सजल संस्कृति" जैसी अभिव्यक्तियाँ एक गहरी छवि बनाती हैं, जो संस्कृतियों की सुंदरता और सेवा के महत्व को व्यक्त करती हैं। यहाँ पर विशेष प्रकार का व्यक्तित्व अलंकार है, जो अपने कर्तव्यों में समर्पण का संदेश देता है। Quick Tip: कविता में अलंकारों को समझने के लिए शब्दों की गहराई और उसके संदर्भ को जानना जरूरी है।
'संस्कृति' तथा 'उत्सर्ग' शब्दों का अर्थ लिखिए।
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'संस्कृति':
संस्कृति शब्द का अर्थ है एक समुदाय या समाज की धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक धरोहर, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आती है। यह शब्द जीवन के मूल्य, परंपराएँ, और शिष्टाचार को भी दर्शाता है।
'उत्सर्ग':
उत्सर्ग का अर्थ है किसी उच्च उद्देश्य के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों और इच्छाओं का त्याग करना। यह शब्द सेवा और निस्वार्थता की भावना को व्यक्त करता है, जो समाज की भलाई के लिए महत्वपूर्ण होती है। Quick Tip: शब्दार्थ की व्याख्या करते समय उनके संदर्भ में उनके गहरे अर्थ को समझना आवश्यक है।
निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों के नाम लिखिए:
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(i) डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी:
जन्म एवं परिचय:
डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1907 में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के महान आलोचक, निबंधकार और संत साहित्य के महत्वपूर्ण विचारक थे। उनका लेखन साहित्य, संस्कृति, और समाज के गहरे रिश्तों को उजागर करता है। वे एक उत्कृष्ट शिक्षक और साहित्यिक आलोचक थे, जिन्होंने साहित्य और संस्कृति की ऐतिहासिक परंपराओं को समझने का प्रयास किया। उनका दृष्टिकोण गहन था, जिसमें वे साहित्य को समाज और संस्कृति के दायरे में सशक्त रूप से प्रस्तुत करते थे।
साहित्यिक योगदान:
डॉ. द्विवेदी ने साहित्यिक आलोचना में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनका योगदान विशेष रूप से संत साहित्य और हिंदी उपन्यास लेखन में था। उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास और संस्कृति को पुनः परिभाषित किया और भारतीय साहित्य को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया। वे भारतीय संस्कृति और साहित्य के संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
प्रमुख कृतियाँ:
उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:
"बाणभट्ट की आत्मकथा"
"चारु चंद्रलेख"
"अशोक के फूल"
"अनामदास का पोथी"
"हज़ारी प्रसाद द्विवेदी रचनावली"
उपसंहार:
डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक योगदान अनमोल है। उन्होंने हिंदी साहित्य को गहराई और दृष्टिकोण की नई दिशा दी। उनका लेखन आज भी साहित्यिक जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
(ii) वासुदेवशरण अग्रवाल:
जन्म एवं परिचय:
वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म 1904 में हुआ। वे हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार और कला-इतिहासकार थे। वे भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला के विशेषज्ञ थे और उनका कार्य भारतीय संस्कृति के मर्म को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे एक प्रख्यात विचारक थे और उनका साहित्यिक दृष्टिकोण भारतीयता और आधुनिकता का संगम था।
साहित्यिक योगदान:
वासुदेवशरण अग्रवाल ने भारतीय कला और संस्कृति पर गहन विचार किए। उनके साहित्य में परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत सामंजस्य था। वे भारतीय कला और साहित्य के सशक्त आलोचक थे और उन्होंने भारतीय काव्यशास्त्र को नया आयाम दिया। वे भारतीय कला और साहित्य के बीच गहरी संबद्धता को उजागर करते थे।
प्रमुख कृतियाँ:
उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:
"भारतीय कला"
"भारत का चित्रकला विवेक"
"संस्कृति और साहित्य"
"निबंध संग्रह"
उपसंहार:
वासुदेवशरण अग्रवाल का कार्य साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में अमूल्य है। उनका लेखन आज भी भारतीय साहित्यिक परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
(iii) प्रो. जी. सुंदर रेड्डी:
जन्म एवं परिचय:
प्रो. जी. सुंदर रेड्डी हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक, आलोचक और शोधकर्ता रहे हैं। उनका लेखन विशेष रूप से आधुनिक हिंदी कविता और आलोचना पर केंद्रित था। वे हिंदी साहित्य के विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले व्यक्तित्व थे। प्रो. रेड्डी ने साहित्य को नए आयाम दिए और उसे वैश्विक संदर्भ में प्रस्तुत किया। वे विशेष रूप से हिंदी कविता के आलोचक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
साहित्यिक योगदान:
प्रो. जी. सुंदर रेड्डी का योगदान विशेष रूप से हिंदी साहित्य के आलोचनात्मक क्षेत्र में रहा है। उन्होंने हिंदी कविता और साहित्य की आलोचना में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनकी आलोचना ने साहित्य की समझ और विवेचन में नयापन लाया। उन्होंने साहित्य को सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ में जोड़ा।
प्रमुख कृतियाँ:
उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:
"हिंदी साहित्य का इतिहास"
"निबंध संग्रह"
"आधुनिक हिंदी कविता"
उपसंहार:
प्रो. जी. सुंदर रेड्डी का कार्य आधुनिक हिंदी साहित्य और आलोचना के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने साहित्य को नए दृष्टिकोण से देखा और उसे समाज और संस्कृति के संदर्भ में व्याख्यायित किया। Quick Tip: लेखक का परिचय देते समय उनके जीवन, कार्यक्षेत्र, योगदान और रचनाओं को विस्तार से समझाएँ। इस प्रक्रिया से पाठक को लेखक के विचार और साहित्यिक दृष्टिकोण की गहरी समझ प्राप्त होती है।
निम्नलिखित में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए:
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(i) रामधारी सिंह 'दिनकर':
जन्म एवं परिचय:
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 1908 में हुआ। वे हिंदी साहित्य के वीर रस के कवि थे। उनके काव्य में राष्ट्रभक्ति, ओज और वीरता के गुण थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को अपनी कविताओं में प्रमुख स्थान दिया।
प्रमुख रचनाएँ:
"रश्मिरथी", "हुंकार", "उर्वशी", "कुरुक्षेत्र"।
(ii) मैथिलीशरण गुप्त:
जन्म एवं परिचय:
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 1886 में हुआ। वे हिंदी के प्रसिद्ध कवि थे और उन्हें 'राष्ट्रकवि' के रूप में जाना जाता है। उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता का चित्रण होता है।
प्रमुख रचनाएँ:
"भारत-भारती", "साकेत", "पंचवटी", "यशोधरा"।
(iii) सुमित्रानन्दन पंत:
जन्म एवं परिचय:
सुमित्रानन्दन पंत का जन्म 1900 में हुआ। वे हिंदी के प्रमुख छायावादी कवि थे। उनकी कविताओं में प्रकृति, प्रेम और सौंदर्यबोध को विशेष स्थान प्राप्त है।
प्रमुख रचनाएँ:
"पल्लव", "गुंजन", "युगांत", "ग्राम्या"। Quick Tip: कवि का परिचय लिखते समय उनके जीवन, कार्यक्षेत्र, योगदान और प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त परंतु प्रभावी उल्लेख करें।
'धुव स्वाँनी' अथवा 'पंचलाइट' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
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'धुव स्वाँनी' और 'पंचलाइट' दो ऐसी कहानियाँ हैं जिनमें समाज में व्याप्त असमानता, संघर्ष, और व्यक्ति के अधिकारों के लिए संघर्ष को प्रमुख रूप से दर्शाया गया है।
'धुव स्वाँनी':
यह कहानी एक संघर्षशील महिला के बारे में है, जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती है। वह समाज में अपनी स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए अपने समाज के खिलाफ खड़ी होती है। इस कहानी में महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष, समानता, और महिला सशक्तिकरण की बात की गई है। कहानी का मुख्य उद्देश्य यह है कि समाज में महिलाओं को समान दर्जा मिले और उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की स्वतंत्रता मिले।
महिला नायक को समाज के भेदभावपूर्ण रवैये का सामना करना पड़ता है, लेकिन वह हार मानने वाली नहीं होती। उसका संघर्ष ही उसे उसके हक दिलाने का एकमात्र रास्ता बन जाता है।
'पंचलाइट':
यह कहानी भी समाज में परिवर्तन की कहानी है, लेकिन इसमें नायक अपने आस-पास के लोगों की स्थिति को सुधारने के लिए प्रयास करता है। 'पंचलाइट' कहानी में नायक का संघर्ष सामाजिक कुरीतियों और परंपराओं के खिलाफ है। नायक अपने जीवन के उद्देश्यों को समझते हुए समाज में व्याप्त दुराचार और अन्याय को चुनौती देता है। कहानी का संदेश यह है कि समाज में जब तक व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए नहीं खड़ा होता, तब तक कोई बड़ा बदलाव नहीं हो सकता।
इस प्रकार, दोनों कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि किसी भी असमानता और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करना ही समाज में बदलाव लाने का एकमात्र तरीका है। Quick Tip: कहानी का सारांश लिखते समय पात्रों के संघर्षों और उनके द्वारा सामना की गई परिस्थितियों पर ध्यान दें। साथ ही, कहानी के केंद्रीय विचार को समझने की कोशिश करें।
'बहादुर' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
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'बहादुर' कहानी का उद्देश्य समाज में असमानता, कठिनाइयों का सामना करते हुए एक व्यक्ति का साहस और संघर्ष दिखाना है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि वास्तविक बहादुरी केवल शारीरिक शक्ति या युद्ध में नहीं, बल्कि जीवन के हर संघर्ष में निडरता और साहस से काम लेने में होती है।
कहानी का नायक एक साधारण व्यक्ति है, जो अपनी सामान्य स्थिति से बाहर जाकर समाज में फैली असमानताओं, भेदभावों और अन्याय के खिलाफ खड़ा हो जाता है। कहानी में यह दिखाया गया है कि वह किस प्रकार अपने समाज के दमनकारी और भेदभावपूर्ण नियमों के खिलाफ खड़ा होता है। समाज की सामान्यत: चली आ रही परंपराओं को चुनौती देता है और समाज के लिए एक उदाहरण पेश करता है।
इस कहानी में, नायक का संघर्ष केवल समाज से नहीं है, बल्कि अपने स्वयं के भय और संकोच से भी है। वह अपनी कायरता को जीतता है और साहसिक निर्णय लेकर बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाता है। वह व्यक्ति जो पहले भय और संकोच का शिकार था, अब वह समाज में बदलाव लाने के लिए संघर्ष करता है। इस प्रकार, कहानी हमें यह सिखाती है कि अपनी संकोच और डर को पार करना ही सबसे बड़ा साहस है।
कहानी का उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपनी शक्ति और साहस का उपयोग करके समाज में व्याप्त असमानता और अन्याय के खिलाफ खड़ा हो और इसे समाप्त करने के लिए प्रयास करें। यह कहानी प्रेरणा देती है कि संघर्ष के बिना कोई बदलाव नहीं हो सकता। Quick Tip: किसी भी साहित्यिक कहानी के उद्देश्य को समझते समय यह जानना महत्वपूर्ण है कि लेखक क्या संदेश देना चाहता है और कहानी में कौन से प्रमुख विषय या संघर्ष हैं।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा 'मुक्तिरण' खण्डकाव्य की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: नायक की चारित्रिक विशेषताएँ।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य का नायक एक महान और आदर्श व्यक्तित्व का प्रतीक है। वह साहसी, ईमानदार, सत्यवादी और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाला है। उसके भीतर अपार धैर्य, नैतिक बल और आत्मविश्वास है। नायक का व्यक्तित्व सत्य, न्याय और मानवीय मूल्यों का आदर्श है। वह समाज में फैली बुराईयों को समाप्त करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए भी तैयार रहता है।
Step 2: नायक का संघर्ष।
नायक का संघर्ष एक महान उद्देश्य के लिए है – समाज में न्याय और समानता की स्थापना। उसने असत्य और अन्याय के खिलाफ मोर्चा खोला और जनता को जागरूक करने का कार्य किया। नायक की ईमानदारी और साहस ने उसे समाज का हीरो बना दिया।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'मुक्तिरण' खण्डकाव्य का नायक हमारे समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ हमें सत्य, न्याय और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।
Quick Tip: नायक के चारित्रिक गुणों को लिखते समय उसकी आंतरिक और बाहरी विशेषताओं दोनों को ध्यान में रखना चाहिए।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: कथावस्तु का सार।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य का कथानक असत्य और अन्याय के खिलाफ सत्य के संघर्ष पर आधारित है। इसमें नायक सत्य और न्याय के प्रतीक के रूप में उभरता है, जो समाज में फैली बुराईयों और शोषण के खिलाफ अपनी आवाज उठाता है।
Step 2: नायक का संघर्ष।
नायक अपने संघर्ष में अकेला नहीं होता, वह जनता को जागरूक करता है और उन्हें अपने साथ जोड़ता है। वह असत्य और अन्याय के खिलाफ लड़ता है, और अंततः सत्य की विजय होती है। खण्डकाव्य के अन्त में यह संदेश दिया जाता है कि असत्य और बुराई चाहे कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, सत्य और अच्छाई की हमेशा विजय होती है।
Step 3: निष्कर्ष।
'मुक्तिरण' खण्डकाव्य एक प्रेरणादायक रचना है, जो हमें सत्य, न्याय और मानवता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यह खण्डकाव्य हमें बताता है कि किसी भी कठिनाई का सामना सत्य और धैर्य के साथ किया जाना चाहिए।
Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय घटनाओं को सटीक और क्रमवार तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि पाठक को स्पष्ट समझ हो सके।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य के कथनक पर प्रकाश डालिए। अथवा 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य के आधार पर युधिष्ठिर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में कवि ने सत्य, धर्म और नायकत्व के महत्व को रेखांकित किया है। इसमें युधिष्ठिर के चरित्र का आदर्श चित्रण किया गया है, जो सत्य के मार्ग पर चलने का प्रतीक है।
Step 2: कथनक का प्रकाशन।
'सत्य की जीत' में सत्य और धर्म की विजय का संदेश दिया गया है। इसमें युद्ध की स्थितियों और मानवीय संघर्षों के बीच सत्य की अंततः जीत होती है। कवि ने यह दर्शाया है कि जीवन के प्रत्येक मोड़ पर सत्य का पालन करने से मनुष्य को सफलता और संतोष मिलता है।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में सत्य और धर्म के महत्व को उजागर किया गया है, जिसमें अंततः सत्य की ही विजय होती है।
Quick Tip: कथनक लिखते समय मुख्य विचार, संदेश और उनकी प्रभावशाली घटनाओं को ध्यान से उल्लेखित करें।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य के आधार पर युधिष्ठिर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में युधिष्ठिर के चरित्र का चित्रण विशेष रूप से सत्य, धर्म और निष्कलंक नायकत्व का प्रतीक के रूप में किया गया है। युधिष्ठिर का जीवन सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
Step 2: युधिष्ठिर का चरित्र-चित्रण।
1. सत्यनिष्ठा – युधिष्ठिर सत्य के मार्ग पर अडिग रहे, चाहे परिणाम कुछ भी हो। उन्होंने कभी भी झूठ नहीं बोला।
2. धर्मप्रिय – वे धर्म के पालन के लिए हमेशा तत्पर रहे। उनका निर्णय और व्यवहार धर्म के अनुसार ही होता था।
3. निष्कलंक और आदर्श राजा – युधिष्ठिर का जीवन आदर्श था। वे राज्य का संचालन निष्कलंक रूप से करते थे।
4. त्याग और समर्पण – युधिष्ठिर ने कभी भी निजी स्वार्थ को राष्ट्र के हित से ऊपर नहीं रखा। उनका जीवन समर्पण और त्याग का प्रतीक था।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'सत्य की जीत' खण्डकाव्य में युधिष्ठिर का चरित्र सत्य, धर्म और त्याग की सर्वोत्तम मिसाल प्रस्तुत करता है, जो आदर्श राजा और आदर्श मनुष्य का रूप है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण करते समय उस पात्र की सकारात्मक और नकारात्मक विशेषताओं का संतुलन बनाए रखें।
'रश्मर्षी' खंडकाव्य के आधार पर 'श्रीकृष्ण' का चरित्रांकन कीजिए।
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'रश्मर्षी' खंडकाव्य में श्रीकृष्ण का चरित्रांकन:
'रश्मर्षी' खंडकाव्य में श्रीकृष्ण के चरित्र का चित्रण विशेष रूप से उनके दिव्य गुणों, नेतृत्व क्षमता, और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है। श्रीकृष्ण का चित्रण एक आदर्श पुरुष के रूप में किया गया है, जो अपने कर्तव्यों और धर्म का पालन करने के लिए प्रत्येक परिस्थिति में नायक बन कर उभरते हैं।
श्रीकृष्ण को महाभारत में कर्तव्य, साहस और नायकत्व का प्रतीक माना जाता है। उनका व्यक्तित्व न केवल एक योद्धा का होता है, बल्कि वे एक नायक, गुरू, और भक्त के रूप में भी जाने जाते हैं। 'रश्मर्षी' खंडकाव्य में उनके संवादों, कार्यों और शरणागत वत्सलता की गाथाएं देखने को मिलती हैं।
इस काव्य में श्रीकृष्ण के रूप में एक ईश्वर का दर्शन किया जाता है, जो न केवल युद्ध में अपितु जीवन के अन्य पहलुओं में भी श्रेष्ठता का प्रतीक होते हैं। वे अपने भक्तों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं, और उनका यह कर्तव्यबद्ध और न्यायपूर्ण व्यक्तित्व आदर्श बन जाता है।
इस काव्य में श्रीकृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व को रेखांकित किया गया है, जिसमें उनका गुरूत्व, उनकी मित्रता, उनका सामर्थ्य और उनके भगवान रूप को सम्मानित किया गया है। उनके चरित्र में जटिलताओं के बावजूद एक सरलता और धार्मिकता का गहरा संदेश निहित है। Quick Tip: जब आप किसी काव्य की कथा वस्तु लिखते हैं, तो उसके मुख्य पात्रों के संवादों और उनके निर्णयों पर विशेष ध्यान दें, जो कहानी के संदेश को स्पष्ट करते हैं।
'रश्मर्षी' खंडकाव्य के 'द्वितीय सर्ग' की कथा वस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
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'रश्मर्षी' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा वस्तु:
'रश्मर्षी' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग में मुख्य रूप से श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवादों को केंद्रित किया गया है। इस सर्ग में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्धभूमि में अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। यह सर्ग श्रीकृष्ण के उपदेशों का मुख्य केंद्र है, जहां वे धर्म, कर्म और जीवन के उद्देश्य पर बात करते हैं।
काव्य के इस भाग में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना सच्चा रूप दिखाया और उसे समझाया कि जीवन में आस्थाएँ और कर्तव्य सर्वोपरि होते हैं। द्वितीय सर्ग में विशेष रूप से युद्ध के दौरान जो मानसिक और भावनात्मक संघर्ष अर्जुन को झेलना पड़ता है, उसे बहुत गहराई से प्रस्तुत किया गया है।
इस सर्ग में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह सिखाया कि जीवन में परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और निस्वार्थ भाव से कार्य करना चाहिए। युद्ध के कर्म में एक नायक के रूप में अपनी भूमिका को निभाने की प्रेरणा दी जाती है।
द्वितीय सर्ग का उद्देश्य यही है कि व्यक्ति अपने मानसिक संघर्षों को पहचानें और उन्हें पार करने के लिए अपनी मानसिकता में सुधार करें, क्योंकि जीवन में शांति और सफलता केवल आत्मनियंत्रण और सही मार्गदर्शन से ही मिल सकती है। Quick Tip: जब आप किसी काव्य की कथा वस्तु लिखते हैं, तो उसके मुख्य पात्रों के संवादों और उनके निर्णयों पर विशेष ध्यान दें, जो कहानी के संदेश को स्पष्ट करते हैं।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य के 'तीरथी सर्म' की कथा अपने शब्दों में लिखिए। अथवा 'त्यागपथी' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए।
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Step 1: 'तीरथी सर्म' की कथा का सार।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य में तीरथी सर्म की कथा त्याग, तपस्या और सत्य के प्रति समर्पण की गाथा है। यह कथा हमें बताती है कि तीरथी सर्म ने अपनी निजी इच्छाओं और सुखों को त्यागकर समाज के भले के लिए जीवन जिया। उसकी संघर्ष की कहानी, उसे अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रखने और अपने आदर्शों से समझौता न करने की प्रेरणा देती है।
Step 2: कथा का प्रमुख संदेश।
कथा का प्रमुख संदेश यह है कि सच्चा त्याग और समर्पण केवल अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज की भलाई के लिए होना चाहिए। तीरथी सर्म की तरह, हमें भी अपने आदर्शों और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है, चाहे उसके लिए हमें व्यक्तिगत सुखों का त्याग ही क्यों न करना पड़े।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'त्यागपथी' खण्डकाव्य के 'तीरथी सर्म' की कथा हमें सिखाती है कि समाज के प्रति समर्पण और सत्य के मार्ग पर अडिग रहना ही सच्चा त्याग है। यह कहानी जीवन के उच्च आदर्शों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देती है।
Quick Tip: कथा लिखते समय मुख्य पात्र के संघर्ष, उद्देश्य और संदेश को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए।
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Step 1: नायक का चरित्र चित्रण।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य का नायक एक आदर्श व्यक्ति है, जो सत्य, न्याय और समाज के भले के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों का त्याग करता है। वह समाज में फैली बुराईयों और असमानता के खिलाफ खड़ा होता है। नायक का व्यक्तित्व साहस, ईमानदारी, और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने की शक्ति से भरा हुआ है।
Step 2: नायक की विशेषताएँ।
नायक में आत्मबल, निष्ठा और दृढ़ संकल्प हैं। वह हर कठिनाई का सामना करता है, लेकिन अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं करता। उसकी प्रेरणादायक विशेषताओं में सत्य और न्याय की रक्षा, समाज की सेवा और मानवता के प्रति समर्पण प्रमुख हैं।
Step 3: नायक का संघर्ष।
नायक का संघर्ष अपने समाज और लोगों के लिए बेहतर जीवन की स्थापना करने का है। वह अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं और विरोधों को अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए चुनौती मानता है। उसका जीवन समाज को जागरूक करने और अच्छे आदर्शों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।
Step 4: निष्कर्ष।
अतः 'त्यागपथी' खण्डकाव्य का नायक एक आदर्श व्यक्ति है, जो हमें जीवन के उच्च आदर्शों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। उसका जीवन सत्य, न्याय और त्याग के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
Quick Tip: चरित्र चित्रण में पात्र के गुण, संघर्ष और उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना चाहिए।
'आलोककृत' खण्डकाव्य के 'पठ सरि' (नमक सत्याग्रह) की कथा अपने शब्दों में लिखिए। अथवा 'आलोककृत' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'आलोककृत' खण्डकाव्य में कवि ने भारतीय समाज के तत्कालीन राजनैतिक और सामाजिक परिस्थितियों को चित्रित किया है। इसमें नमक सत्याग्रह का वर्णन तथा उसके नायक की संघर्षशील जीवनशैली का विस्तार से चित्रण किया गया है।
Step 2: 'पठ सरि' (नमक सत्याग्रह) की कथा।
नमक सत्याग्रह का प्रमुख उद्देश्य अंग्रेज़ी शासन द्वारा नमक पर लगाए गए कर के खिलाफ था। कवि ने इसे 'पठ सरि' के रूप में चित्रित किया, जिसमें नायक ने अपने समाज को अंग्रेज़ी शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष किया। नायक ने नमक कानून का उल्लंघन किया और अपने साथियों को भी इसी राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप जनता में एक नई जागरूकता और साहस का संचार हुआ।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'आलोककृत' खण्डकाव्य में कवि ने नमक सत्याग्रह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण भाग और नायक के संघर्ष को भारतीय समाज के जागरण का प्रतीक प्रस्तुत किया है।
Quick Tip: कथा लिखते समय उसके प्रमुख घटनाक्रमों और नायक के संघर्ष को विस्तार से वर्णित करें।
'आलोककृत' खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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Step 1: प्रस्तावना।
'आलोककृत' खण्डकाव्य में नायक का चरित्र संघर्ष, दृढ़ता और आदर्शों का प्रतीक है। वह एक व्यक्ति नहीं, बल्कि समाज का आदर्श बनता है, जो अपनी मेहनत, संघर्ष और सत्य के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करता है।
Step 2: नायक का चरित्र-चित्रण।
1. संघर्षशीलता – नायक ने सच्चाई और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उसने अपने जीवन में किसी भी प्रकार के अन्याय का विरोध किया।
2. धैर्य और साहस – वह हमेशा शांतिपूर्ण तरीके से अपने उद्देश्यों के लिए लड़ा और कभी भी हार मानने का नाम नहीं लिया।
3. समाज के प्रति उत्तरदायित्व – नायक ने हमेशा समाज की भलाई के लिए काम किया और उसे जागरूक किया।
4. न्यायप्रियता – उसका जीवन सच्चाई और न्याय का आदर्श था। उसने किसी भी दबाव के आगे अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
Step 3: निष्कर्ष।
अतः 'आलोककृत' खण्डकाव्य का नायक संघर्ष, सत्य, और समाज के प्रति जिम्मेदारी का प्रतीक है। उसका चरित्र हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण करते समय नायक की संघर्षशीलता, साहस और समाज के प्रति योगदान को प्रमुखता से दर्शाएं।
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य के आधार पर 'दर्शन' का चरित्रांकन कीजिए।
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'श्रवणकुमार' खंडकाव्य में 'दर्शन' का चरित्रांकन:
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य में 'दर्शन' एक महत्वपूर्ण पात्र है, जो अपने माता-पिता के प्रति अपनी श्रद्धा और कर्तव्यबद्धता का प्रतीक बनता है। दर्शन एक ऐसा पात्र है जो भगवान के आदेश को आत्मसात करता है और अपने माता-पिता के लिए तपस्वी जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
इस काव्य में दर्शन का चित्रण एक आदर्श पुत्र के रूप में किया गया है, जो अपने पितृधर्म को सर्वोपरि मानते हुए अपने माता-पिता की सेवा करता है। उनके चरित्र में निष्ठा, भक्ति और कर्तव्य की भावना प्रबल रूप से दिखायी देती है। दर्शन का चरित्र जीवन में संघर्षों के बावजूद अपने कर्तव्यों का पालन करने के महत्व को दर्शाता है।
उनका चरित्र इस बात का भी प्रतीक है कि किसी भी व्यक्ति को अपने माता-पिता या परिवार के प्रति कर्तव्यों को निभाना चाहिए, क्योंकि यह कर्तव्य ही जीवन के उच्चतम उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करता है। दर्शन का चरित्र विशेष रूप से श्रद्धा और सेवा की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देता है। Quick Tip: किसी भी काव्य में पात्रों के चरित्र को समझते समय, उनके कृत्य और संवादों के माध्यम से उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करना अत्यंत आवश्यक होता है।
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य के किसी मार्मिक प्रसंग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
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'श्रवणकुमार' खंडकाव्य का मार्मिक प्रसंग:
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य में एक अत्यंत मार्मिक प्रसंग है, जब श्रवणकुमार अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए कंधे पर बिठाकर यात्रा पर निकलता है। यह दृश्य काव्य में एक अद्वितीय महत्व रखता है, क्योंकि इसमें श्रद्धा, भक्ति, और सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलता है।
इस प्रसंग में श्रवणकुमार का दृढ़ निश्चय और अपने माता-पिता के प्रति अटूट प्रेम को दर्शाया गया है। वे अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए निस्वार्थ भाव से अपने माता-पिता की सेवा करते हैं, भले ही इसमें उन्हें कठिनाइयाँ और संघर्षों का सामना करना पड़े।
श्रवणकुमार का यह प्रसंग दर्शाता है कि अपने परिवार के प्रति कर्तव्य और सम्मान को सर्वोपरि रखना चाहिए, क्योंकि यही जीवन का सच्चा मार्ग है। यह प्रसंग न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह हमें अपने परिवार और समाज के प्रति कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा भी देता है। Quick Tip: काव्य में मार्मिक प्रसंगों का चयन करते समय, यह ध्यान रखें कि पात्रों के कृत्य और उनके संवाद भावनात्मक स्तर पर पाठकों से जुड़ने के लिए प्रभावी होते हैं।
दिए गए संस्कृत गद्यांश में से किसी एक का संदर्भ-सहित हिंदी में अनुवाद कीजिए:
अस्य निर्माणं यः जनान् आयाचत् जनश्च महत्यामिनं ज्ञानरे प्रमूतं धर्मंस्थं प्रयत्नात्, तेन निष्क्रीयं विवादं विश्ववद्व्यायाः भारतिं दानशीलतायाः श्रीमान्वीरस्य चरणं प्राप्तं। च प्रतिनिष्ठितिर्विभान्ति। साधारणस्थितिपि जनमहात्सोहन मनसीद्वा पोषणं च असाधारणं कार्यं कृते क्षमा:। इतरदर्शरुत मनिबिभूष्य: मालवीय:।
अथवा
हंसराजः आत्मनं चित्रितं स्वामिकं आगत्य वृणुयात् इति दुरितरमादिदेश। सा शकुनिसङ्घ्ये अवलोकयन्ती मणिपर्वणीतां चित्रश्रेणां मयूरीं दृष्ट्वा 'अयं मे स्वामिको भवतु' इत्यभाषत। मयूरः 'अद्यापि तावन्मे बलं न पर्याप्तम्' इति अतिगर्वेण लज्जाम् त्यक्त्वा तामवहत। शकुनिसङ्घ्यस्य मध्ये पक्षी प्रसारं नीतुमारब्धवान।
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(1) सन्दर्भ:
यह गद्यांश संस्कृत भाषा की महानता और उसकी महत्ता को स्पष्ट करता है। इसमें संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी और ज्ञान-विज्ञान की मूल भाषा बताया गया है।
अनुवाद/भावार्थ:
हमारे रामायण, महाभारत जैसे ऐतिहासिक ग्रन्थ, चारों वेद, सभी उपनिषद, अठारह पुराण और अन्य महाकाव्य तथा उपन्यास आदि सभी संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं। इसीलिए विद्वानों ने संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी कहा है। संस्कृत का गौरव, उसका बहुविध ज्ञान और व्यापकता किसी से छिपी नहीं है।
(2) सन्दर्भ:
यह गद्यांश हंस और मयूर से संबंधित कथा का अंश है। इसमें मयूर की अहंकारी प्रवृत्ति और हंसराज का उल्लेख मिलता है।
अनुवाद/भावार्थ:
हंसराज ने अपने चित्रचिह्नित स्वामी को बुलाने का आदेश दिया। उस पक्षियों की सभा में मणि-जटित पंखों वाली मयूरी को देखकर उसने कहा— "यह मेरी स्वामिनी हो।" मयूर ने गर्व से कहा— "अभी मुझमें इतनी शक्ति नहीं कि तुझे स्वीकार कर सकूँ।" यह कहकर उसने लज्जा त्याग दी और पक्षियों के समूह के बीच अपने पंख फैलाकर नृत्य करना आरम्भ कर दिया। Quick Tip: संस्कृत गद्यांश का अनुवाद करते समय पहले सन्दर्भ लिखें और फिर उसका भावार्थ सरल, स्पष्ट और क्रमबद्ध हिन्दी में प्रस्तुत करें।
दिए गए श्लोकों में से किसी एक का संदर्भ-सहित हिंदी में अनुवाद कीजिए:
व्यतिक्रान्ति पदार्थानन्तर: कोपि हेतु:
न खलु बहिष्पाधीन प्रीत्य: संश्रयन्ते।
विकसति हि पतङ्गरयोदये पुनरीकं।
अथवा
द्विती च हिमरस्मवद्रुथे: चन्द्रकान्तं।
वज्रदपी कणोरणि मृत्युं कुसुमादिपि।
लोकोतरणं चेतांसि को न विधातुंहि।
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(1) संदर्भ:
यह श्लोक जीवन के उत्थान और पतन के बारे में है। इसमें जीवन के रूपों और प्रगति के बारे में संदेश दिया गया है। इसमें व्यक्त किया गया है कि किसी भी प्रगति के लिए सही मार्गदर्शन और मेहनत की आवश्यकता है।
अनुवाद/भावार्थ:
कोई भी उद्देश्य तभी सफल होता है जब सही मार्गदर्शन और प्रयास मिले। जैसे पतंगे सूरज के प्रकाश की ओर बढ़ते हैं, वैसे ही व्यक्ति को अपने लक्ष्य की ओर प्रयासरत रहना चाहिए। हालांकि जो लक्ष्य के मार्ग में अवरोध डालते हैं, उनसे दूरी बनानी चाहिए। इसी तरह जब हम अपने उद्देश्य के प्रति अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगाते हैं, तब ही हम सफलता की ओर बढ़ सकते हैं।
(2) संदर्भ:
यह श्लोक संघर्ष, कार्यों की पहचान और जीवन के वास्तविक उद्देश्य पर आधारित है। इसमें कर्म और सफलता के संबंध को उजागर किया गया है।
अनुवाद/भावार्थ:
हिम के बीच चांदी के जैसा चमकता हुआ सूरज अंततः अपनी चमक खो देता है, क्योंकि वह वस्तु वास्तविक रूप से कुछ भी नहीं होती। उसी तरह जो अपने कर्मों और कार्यों को सच्चे उद्देश्य के लिए नहीं करता, वह अंततः कुछ भी प्राप्त नहीं करता। अतः, कार्य करने का तरीका और उद्देश्य की दिशा हमेशा शुद्ध होनी चाहिए। Quick Tip: संस्कृत श्लोक का अनुवाद करते समय उनका भावार्थ सरल और स्पष्ट रूप से व्यक्त करना आवश्यक है, ताकि पाठक उस श्लोक का गहराई से अर्थ समझ सके।
निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से किसी एक का अर्थ लिखकर अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए:
(क) भीगी बिल्ली बनना
(ख) हाथ पीले करना
(ग) दूध का दूध और पानी का पानी करना
(घ) आँख का अंधा नाम नयनसुख
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(क) भीगी बिल्ली बनना
अर्थ: डर के कारण कुछ नहीं कह पाना या बेज़ुबान हो जाना।
वाक्य प्रयोग: उसने जब सच्चाई का सामना किया, तो वह भीगी बिल्ली बनकर चुप हो गया।
(ख) हाथ पीले करना
अर्थ: शादी करना।
वाक्य प्रयोग: उसके घर में अब शादी की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी के हाथ पीले करने का निर्णय लिया।
(ग) दूध का दूध और पानी का पानी करना
अर्थ: सत्य को स्पष्ट रूप से उजागर करना।
वाक्य प्रयोग: अदालत में उसने सारी सच्चाई उजागर की और दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।
(घ) आँख का अंधा नाम नयनसुख
अर्थ: किसी की कमी को छिपाने के लिए उसका बढ़ा-चढ़ाकर नाम रखना।
वाक्य प्रयोग: उसने अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए अपने दोस्त को आँख का अंधा नाम नयनसुख रख दिया। Quick Tip: मुहावरे और लोकोक्तियाँ किसी विशेष स्थिति या भाव को व्यक्त करने के लिए होते हैं, इसलिए इन्हें सही संदर्भ में प्रयोग करना चाहिए।
निम्नलिखित शब्दों के संधि-विच्छेद के सही विकल्प का चयन कीजिए:
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Step 1: Understanding the context.
'रमेश' शब्द का संधि-विच्छेद 'राम + ईश्वर' के रूप में किया जाएगा, क्योंकि 'रमा' के साथ 'ईश्वर' का संधि-विच्छेद नहीं हो सकता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'राम + ईश्वर' → सही उत्तर, यह संधि-विच्छेद सही है।
- (B) 'रमा + ईश्वर' → यह गलत है, 'रमा' और 'ईश्वर' का संधि-विच्छेद नहीं हो सकता।
- (C) 'रमा + ईश्वर' → यह भी गलत है, यही कारण है कि संधि-विच्छेद सही नहीं हो सकता।
- (D) 'राम + ईश्वर' → यह सही है, और इस विकल्प में कोई त्रुटि नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'राम + ईश्वर', क्योंकि 'रमेश' का सही संधि-विच्छेद यही है।
Quick Tip: संधि-विच्छेद में हमेशा सही शब्दों की पहचान और उनके सही संधि रूपों का उपयोग करें।
'इत्युक्तम' का सही संधि-विच्छेद है:
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Step 1: Understanding the context.
'इत्युक्तम' शब्द का संधि-विच्छेद 'इति + उक्तम्' के रूप में किया जाएगा, जिसमें 'इति' और 'उक्तम्' के बीच संधि होती है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'इति + उक्तम्' → सही उत्तर, यह सही संधि-विच्छेद है।
- (B) 'इत्य + उक्तम्' → यह गलत है, यह शब्द संधि-विच्छेद का सही रूप नहीं है।
- (C) 'इत्य + उक्तम्' → यह भी गलत है, क्योंकि 'इत्य' का प्रयोग संधि-विच्छेद में नहीं होता।
- (D) 'इति + उक्तम्' → यह सही है, और यह संधि-विच्छेद का सही रूप है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'इति + उक्तम्', क्योंकि यह सही संधि-विच्छेद है।
Quick Tip: संधि-विच्छेद करते समय शब्दों के सही रूप और उनके बीच की संधि का ठीक से अवलोकन करें।
'उमाविपि' का सही संधि-विच्छेद है:
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Step 1: Understanding the context.
'उमाविपि' शब्द का संधि-विच्छेद 'उमौ + अपि' के रूप में किया जाएगा, जहां 'उम' और 'आविपि' की संधि होती है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'उमौ + अपि' → सही उत्तर, यह सही संधि-विच्छेद है।
- (B) 'उमा + विपि' → यह गलत है, 'उमा' और 'विपि' का संधि-विच्छेद नहीं हो सकता।
- (C) 'उमा + ओपि' → यह भी गलत है, क्योंकि 'उमा' और 'ओपि' के बीच संधि का कोई रूप नहीं है।
- (D) 'उष्म + ओपि' → यह गलत है, 'उष्म' और 'ओपि' का संधि-विच्छेद सही नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'उमौ + अपि', क्योंकि यह सही संधि-विच्छेद है।
Quick Tip: संधि-विच्छेद करते समय हमेशा शब्दों के सही रूप और संधि के सही तरीके का ध्यान रखें।
दिए गए निम्नलिखित शब्दों की 'विभक्ति' और 'वचन' के अनुसार सही विकल्प का चयन कीजिए:
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Step 1: Understanding the context.
'आत्मिन' शब्द में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है और इसका वचन द्विवचन होता है। 'आत्मिन' के साथ तृतीया विभक्ति और द्विवचन उपयुक्त हैं।
Step 2: Option Analysis.
- (A) तृतीया विभक्ति, द्विवचन → सही उत्तर, 'आत्मिन' शब्द में तृतीया विभक्ति और द्विवचन का प्रयोग होता है।
- (B) सप्तमी विभक्ति, एकवचन → यह गलत है, 'आत्मिन' शब्द में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
- (C) पञ्चमी विभक्ति, बहुवचन → यह भी गलत है, 'आत्मिन' में पञ्चमी विभक्ति और बहुवचन का प्रयोग नहीं होता।
- (D) पंचमी विभक्ति, बहुवचन → यह भी गलत है, 'आत्मिन' में इस संयोजन का प्रयोग नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) तृतीया विभक्ति, द्विवचन।
Quick Tip: संधि और विभक्ति के प्रयोग में वचन के अनुसार विभक्तियों का चयन महत्वपूर्ण होता है।
'नामिन' शब्द में विभक्ति और वचन है:
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Step 1: Understanding the context.
'नामिन' शब्द में सप्तमी विभक्ति और एकवचन का प्रयोग होता है, जो व्यक्तित्व की स्थिति या स्थान को दर्शाता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) सप्तमी विभक्ति, एकवचन → सही उत्तर, 'नामिन' शब्द में सप्तमी विभक्ति और एकवचन का प्रयोग होता है।
- (B) तृतीया विभक्ति, एकवचन → यह गलत है, 'नामिन' में तृतीया विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
- (C) पञ्चमी विभक्ति, एकवचन → यह भी गलत है, 'नामिन' में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
- (D) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन → यह गलत है, 'नामिन' में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) सप्तमी विभक्ति, एकवचन।
Quick Tip: सप्तमी विभक्ति का प्रयोग स्थान, कारण या उद्दीपन को दर्शाने के लिए होता है।
निम्नलिखित शब्द-युग्मों का सही अर्थ चयन करके लिखिए:
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Step 1: Understanding the context.
'द्रव्य' और 'दरव' के बीच में समान अर्थ की संधि होती है, जो दोनों का संबंध वस्तु और संपत्ति से होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) 'दरव' और 'द्रव्य' → सही उत्तर, दोनों शब्दों का अर्थ वस्तु और संपत्ति से संबंधित है।
- (B) 'धन और धन्य' → यह गलत है, क्योंकि 'धन्य' शब्द का अर्थ विशेष रूप से 'सम्पन्न' या 'प्रशंसा के योग्य' होता है।
- (C) 'दान और देने योग्य' → यह गलत है, हालांकि दोनों शब्द संबंधित हैं, लेकिन इनके अर्थ पूरी तरह से मेल नहीं खाते।
- (D) 'दवा और दया' → यह गलत है, दवा और दया अलग-अलग अर्थ रखते हैं। दवा शारीरिक उपचार से संबंधित होती है, जबकि दया मानसिक स्थिति है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'दरव' और 'द्रव्य', क्योंकि यह दोनों एक ही अर्थ का प्रतिनिधित्व करते हैं।
Quick Tip: शब्दों के अर्थ और उनके सही संदर्भ को समझना बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर जब उनका मेल होता है।
'हरि-हर' का सही अर्थ है:
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Step 1: Understanding the context.
'हरि-हर' शब्द का अर्थ विष्णु और शंकर से जुड़ा हुआ है। यह दो प्रमुख देवताओं का एक साथ उल्लेख है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) विष्णु और शंकर → सही उत्तर, 'हरि' का अर्थ विष्णु और 'हर' का अर्थ शंकर से लिया जाता है।
- (B) शिव और पार्वती → यह गलत है, 'हरि-हर' में 'शिव' और 'पार्वती' का संदर्भ नहीं होता।
- (C) भगवान और भक्त → यह गलत है, 'हरि-हर' का अर्थ देवताओं से संबंधित होता है, भक्तों से नहीं।
- (D) महादेव और हरण किया गया → यह भी गलत है, 'हरि-हर' का अर्थ महादेव और हरण से संबंधित नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) विष्णु और शंकर, क्योंकि 'हरि-हर' में दोनों देवताओं का उल्लेख होता है।
Quick Tip: 'हरि-हर' एक शाब्दिक युग्म है, जिसका अर्थ विष्णु और शंकर से लिया जाता है।
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो अर्थ लिखिए:
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(i) तात
अर्थ 1: पिता, पिताजी
वाक्य प्रयोग: तात, आप कैसे हैं?
अर्थ 2: तत्काल, शीघ्र
वाक्य प्रयोग: तात्क्षणिक रूप से समस्या का समाधान करें।
(ii) तीर
अर्थ 1: एक शस्त्र, जो धनुष से निकाला जाता है।
वाक्य प्रयोग: वह तीर से निशाने पर शिकार कर रहा था।
अर्थ 2: दिशा, रास्ता
वाक्य प्रयोग: तीर की दिशा उत्तर की ओर है।
(iii) कुल
अर्थ 1: परिवार, वंश
वाक्य प्रयोग: हमारे कुल में बड़े लोग हमेशा इज्जत से रहते हैं।
अर्थ 2: समूह, कुल मिलाकर
वाक्य प्रयोग: कुल मिलाकर हमें 50 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए।
Quick Tip: शब्दों के अर्थ को समझते समय, उनके विभिन्न संदर्भों में प्रयोग का ध्यान रखें।
निम्नलिखित वाक्यों के लिए एक सही 'शब्द' का चयन करके लिखिए:
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Step 1: Understanding the context.
'जिसके भीतर की हवा का तापमान सम स्थिति में रखा गया हो' के लिए 'समतापी' शब्द उपयुक्त है, क्योंकि यह शब्द समान तापमान को दर्शाता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) परिणामी → यह गलत है, 'परिणामी' का अर्थ प्रभावजनक होता है, जबकि हमें तापमान से संबंधित शब्द चाहिए।
- (B) अनंत: तापी → यह भी गलत है, 'अनंत' का अर्थ 'असीम' होता है, जो इस वाक्य के संदर्भ में नहीं आता।
- (C) समतापी → सही उत्तर, 'समतापी' का अर्थ समान तापमान होता है, जो इस वाक्य के लिए उपयुक्त है।
- (D) प्रतापी → यह गलत है, 'प्रतापी' का अर्थ प्रभावशाली या शक्तिशाली होता है, जो तापमान से संबंधित नहीं है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (C) समतापी, क्योंकि यह शब्द समान तापमान को व्यक्त करता है।
Quick Tip: समतापी शब्द का प्रयोग समान तापमान को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
पीने की इच्छा रखने वाला:
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Step 1: Understanding the context.
'पीने की इच्छा रखने वाला' का सही शब्द 'प्यासा' है, क्योंकि 'प्यासा' का अर्थ प्यासा होना, यानी पानी पीने की इच्छा होना होता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) प्यासा → सही उत्तर, 'प्यासा' शब्द का अर्थ पानी पीने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के लिए उपयुक्त है।
- (B) द्रुतित → यह गलत है, 'द्रुतित' का अर्थ तेज़ी से कुछ करने वाला होता है, जो यहां उपयुक्त नहीं है।
- (C) पिपासा → यह भी गलत है, 'पिपासा' का अर्थ भी प्यास होती है, लेकिन यह एक सामान्य रूप है, जबकि 'प्यासा' सही रूप में होता है।
- (D) पिपासु → यह गलत है, 'पिपासु' का अर्थ भी प्यासा होता है, लेकिन 'प्यासा' अधिक उपयुक्त है।
Step 3: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है (A) 'प्यासा', क्योंकि यह शब्द पीने की इच्छा रखने वाले को व्यक्त करता है।
Quick Tip: 'प्यासा' शब्द का प्रयोग तब होता है जब किसी व्यक्ति को प्यास लग रही हो और उसे पानी पीने की इच्छा हो।
निम्नलिखित में से किसी दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए:
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(i) शुद्ध वाक्य: आपकी पुत्री पद्मा बहुत बुद्धिमान है।
शुद्धि: वाक्य में कोई त्रुटि नहीं है। यह वाक्य सही है।
(ii) शुद्ध वाक्य: कृपया मेरे घर पधारिए।
शुद्धि: "कृपया करके" का प्रयोग अनावश्यक है। "कृपया" का प्रयोग ही पर्याप्त है।
(iii) शुद्ध वाक्य: तुम्हें मन लगाकर पढ़ाई करनी चाहिए।
शुद्धि: "करना" शब्द की जगह "करनी" होना चाहिए, क्योंकि यह शब्द स्त्रीलिंग वाक्य के लिए है।
(iv) शुद्ध वाक्य: कानपुर एक औद्योगिक नगर है।
शुद्धि: यह वाक्य सही है, इसमें कोई त्रुटि नहीं है। Quick Tip: शुद्ध वाक्य में किसी भी अनावश्यक शब्द या व्याकरण की गलती को सुधारें। वाक्य को सरल और संक्षिप्त रखें।
'थंगारस' रस अथवा 'कृष्ण' रस का स्थायिभाव बताते हुए उसका एक उदाहरण लिखिए।
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'थंगारस' रस अथवा 'कृष्ण' रस का स्थायिभाव:
'थंगारस' या 'कृष्ण' रस का स्थायिभाव 'करुणा' है। यह रस किसी भी काव्य में तब उत्पन्न होता है जब पात्रों की पीड़ा, दुःख, और विषाद को अत्यधिक रूप से व्यक्त किया जाता है। जब काव्य में नायक या अन्य पात्र दुःख भरे होते हैं, उनके संघर्षों को दर्शाया जाता है, तो पाठक या श्रोता करुणा रस का अनुभव करते हैं।
उदाहरण:
कृष्ण का बालकपन जिसमें वे मथुरा में अपनी माया और लीलाओं के साथ रहते हैं, यहाँ करुणा रस का प्रमुख उदाहरण है। जब वे गोकुल में नन्द बाबा और यशोदा के साथ रहते हैं, और उन्हें अपनी कथाओं के माध्यम से भगवान के रूप में चित्रित किया जाता है, तो इस समय करुणा रस उत्पन्न होता है। Quick Tip: 'करुणा रस' तब उत्पन्न होता है जब पात्रों की दर्दनाक और दुःखद स्थितियों को प्रभावशाली रूप से दर्शाया जाता है।
'अनुप्रास' अलंकार अथवा 'उमा' अलंकार का लक्षण एवं उदाहरण लिखिए।
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'अनुप्रास' अलंकार अथवा 'उमा' अलंकार का लक्षण:
'अनुप्रास' अलंकार तब होता है जब किसी कविता में किसी विशेष ध्वनि का पुनरावृत्ति होती है। यह अलंकार विशेष रूप से काव्य के रचनाकार की रचनात्मकता को दर्शाता है। 'उमा' अलंकार, जो कि विशेष रूप से रचनात्मक शैली का प्रतीक होता है, भी कवि के काव्य रूप को खास तरीके से प्रभावित करता है।
उदाहरण:
'अनुप्रास' अलंकार - "सपने के संग, सावन में बहने वाली हवाएँ।"
'उमा' अलंकार - "खेल लाओ, उम्मीद न हो जहां कोई।" Quick Tip: 'अनुप्रास' अलंकार तब होता है जब किसी विशेष ध्वनि या स्वर का दोहराव होता है।
'दोहे' छंद अथवा 'सोरठा' छंद का लक्षण एवं उदाहरण लिखिए।
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'दोहे' छंद अथवा 'सोरठा' छंद का लक्षण:
'दोहे' छंद एक प्रकार का काव्य छंद है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति में 13 मात्राएँ होती हैं। दोहे के प्रत्येक चरण में समान संख्या में शब्द होते हैं और यह विशेष रूप से संतुलन और सटीकता का प्रतीक होते हैं। 'सोरठा' छंद में दोहे की तरह लय और माप होता है, परंतु इसमें छंद का प्रयोजन और स्वर कुछ भिन्न होते हैं।
उदाहरण:
'दोहे' छंद - "बिना किये परिश्रम के कोई न जीत सके।"
'सोरठा' छंद - "मनुष्य की माया हमेशा अद्भुत होती है।" Quick Tip: 'दोहे' छंद में प्रत्येक पंक्ति में 13 मात्राएँ होती हैं, जबकि 'सोरठा' छंद में छंद के स्वर में एक विशेष गुण होता है।
किसी दैनिक समाचार-पत्र के संपादक के नाम एक पत्र लिखिए जिसमें अपने गाँव में फैल रही कोविड-19 संक्रमित बीमारी के प्रति मुख्य चिकित्सा अधिकारी का ध्यान आकर्षित किया गया हो।
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पत्र का प्रारूप:
दिनांक:___________
संपादक,
[समाचार-पत्र का नाम]
स्थान:___________
विषय: कोविड-19 संक्रमित बीमारी के प्रति मुख्य चिकित्सा अधिकारी का ध्यान आकर्षित करने हेतु पत्र।
मान्यवर,
सादर प्रणाम,
मैं [गाँव का नाम], [जिला/राज्य का नाम] का निवासी हूं। वर्तमान में हमारे गाँव में कोविड-19 संक्रमण के मामलों में अत्यधिक वृद्धि देखी जा रही है। गाँव में अधिकतर लोग संक्रमित हो रहे हैं, और हालात अब बहुत गंभीर हो चुके हैं। हमारी गाँव की चिकित्सा सुविधाएं भी सीमित हैं और वर्तमान में गाँव के अस्पताल में चिकित्सकों की भारी कमी है।
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप हमारे गाँव के मुख्य चिकित्सा अधिकारी से संपर्क कर उन्हें तत्काल सहायता प्रदान करने का प्रयास करें। हमें अतिरिक्त चिकित्सा उपकरणों और चिकित्सा स्टाफ की आवश्यकता है, ताकि हम इस महामारी से सही ढंग से निपट सकें।
मैं विश्वास करता हूँ कि आपके माध्यम से हमारी समस्या का समाधान जल्द होगा। आपकी सहायता की हम सब को अत्यधिक आवश्यकता है।
धन्यवाद।
आपका faithfully,
___________
[आपका नाम] Quick Tip: पत्र लेखन में हमेशा विषय की स्पष्टता रखें और अपनी समस्या को संक्षिप्त और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करें।
अपने विद्यालय में कंप्यूटर खराब होने की समस्या के निराकरण हेतु प्रधानाचार्य को एक पत्र लिखिए।
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पत्र का प्रारूप:
दिनांक:___________
प्रधानाचार्य,
[विद्यालय का नाम]
स्थान:___________
विषय: कंप्यूटर खराब होने की समस्या के निराकरण हेतु पत्र।
मान्यवर,
सादर प्रणाम,
मैं [कक्षा का नाम], [रोल नंबर] का छात्र/छात्रा हूँ। मैं आपको सूचित करना चाहता/चाहती हूँ कि हमारे विद्यालय के कंप्यूटर लैब में कुछ कंप्यूटर लंबे समय से खराब हैं। इससे हम छात्रों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से उन छात्रों को जिनको कंप्यूटर के माध्यम से परियोजना कार्य और शोध कार्य करना होता है।
मेरी आपसे विनम्र निवेदन है कि आप इस समस्या का शीघ्र समाधान करें और खराब कंप्यूटरों की मरम्मत करवा दें ताकि हम अपने अध्ययन में कोई कमी न महसूस करें।
धन्यवाद।
आपका faithfully,
___________
[आपका नाम] Quick Tip: कंप्यूटर खराब होने की स्थिति में पत्र लेखन में समस्या के कारणों को स्पष्ट रूप से बताते हुए समाधान का अनुरोध करें।
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा-शैली में निबंध लिखिए:
(क) राष्ट्रमंडल खेल - 2022 में भारत की उपलब्धियाँ
(ख) 'इंटरनेट' की शैक्षिक उपयोगिता
(ग) मेरा प्रिय साहित्यकार
(घ) जलवायु परिवर्तन के कारण और परिणाम
(ड़) भारत में कृषि क्रांति
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(क) राष्ट्रमंडल खेल - 2022 में भारत की उपलब्धियाँ
प्रस्तावना:
राष्ट्रमंडल खेल, जिसे सामान्यत: "कॉमनवेल्थ गेम्स" कहा जाता है, एक अंतरराष्ट्रीय बहु-खेल प्रतियोगिता है। यह खेल हर चार साल में आयोजित होते हैं, जिसमें राष्ट्रमंडल देशों के खिलाड़ी विभिन्न खेलों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। 2022 के राष्ट्रमंडल खेल बर्मिंघम, इंग्लैंड में हुए, और इस खेल में भारत ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया।
भारत की प्रदर्शन:
भारत ने 2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में कुल 61 पदक जीते, जिनमें 22 स्वर्ण, 16 रजत और 23 कांस्य पदक शामिल थे। यह भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। भारत ने कई प्रमुख खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जिनमें बैडमिंटन, मुक्केबाजी, कुश्ती, और हॉकी शामिल हैं। पीवी सिंधु, लक्ष्य सेन, नीरज चोपड़ा, और मीराबाई चानू जैसे खिलाड़ियों ने भारत का नाम रोशन किया।
निष्कर्ष:
2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की इस अद्वितीय उपलब्धि ने यह साबित कर दिया कि भारतीय खिलाड़ियों में अपार प्रतिभा और लगन है। भारत ने न केवल खेलों में पदक जीते, बल्कि इसने यह भी दिखा दिया कि भारतीय खिलाड़ी दुनिया के मंच पर शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं।
(ख) 'इंटरनेट' की शैक्षिक उपयोगिता
प्रस्तावना:
इंटरनेट आज के डिजिटल युग में दुनिया की सबसे बड़ी आविष्कारों में से एक है। इसकी मदद से दुनिया की सभी जानकारी हम तक पहुंच सकती है। शैक्षिक दृष्टिकोण से इंटरनेट ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। अब हम ऑनलाइन कोर्स, वीडियो लेक्चर, और शैक्षिक सामग्री का उपयोग करके शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
शैक्षिक उपयोगिता:
इंटरनेट का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह किसी भी स्थान और समय पर शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इससे छात्रों को नए विषयों और ज्ञान के क्षेत्र में बेहतर जानकारी प्राप्त हो सकती है। ऑनलाइन शिक्षण माध्यमों ने दूरदराज के क्षेत्रों के छात्रों को शिक्षा के समान अवसर दिए हैं। इसके अलावा, इंटरनेट के माध्यम से वेबिनार, वर्चुअल क्लासरूम, और इ-लर्निंग ने शिक्षा को और अधिक इंटरएक्टिव और सुलभ बना दिया है।
निष्कर्ष:
इंटरनेट के माध्यम से शिक्षा का स्तर और पहुँच दोनों में वृद्धि हुई है। यह समय के साथ और अधिक प्रभावी हो सकता है यदि इसके माध्यम से सही दिशा में शिक्षा प्रदान की जाए। डिजिटल शिक्षा ने दुनिया भर के छात्रों को एक समान अवसर प्रदान किए हैं।
(ग) मेरा प्रिय साहित्यकार
प्रस्तावना:
साहित्यकार वह होते हैं जो अपनी लेखनी से समाज और संस्कृति का चित्रण करते हैं। उनके द्वारा लिखी गई रचनाएँ हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती हैं। मेरे प्रिय साहित्यकार प्रेमचंद हैं, जिनकी रचनाओं में भारतीय समाज के विविध आयाम और समस्याओं का चित्रण किया गया है।
प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान:
प्रेमचंद हिंदी और उर्दू साहित्य के महान लेखक थे। उनका लेखन समाज के गरीब और पिछड़े वर्ग के संघर्ष को बयां करता है। उनकी कृतियाँ "गोदान", "नमक का दारोगा", "कर्मभूमि", और "सेवा सदन" जैसी रचनाएँ समाज के असमानताओं और कष्टों को उजागर करती हैं। उनके लेखन में सच्चाई, करुणा और मानवीय मूल्यों का बड़ा महत्व है।
निष्कर्ष:
प्रेमचंद का लेखन आज भी प्रासंगिक है। उनका साहित्य हमें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराता है। वे भारतीय साहित्य के स्तंभ माने जाते हैं, और उनका योगदान अनमोल रहेगा।
(घ) जलवायु परिवर्तन के कारण और परिणाम
प्रस्तावना:
जलवायु परिवर्तन आज के समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। यह पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित कर रहा है और इसके कारण मौसम में बदलाव, प्राकृतिक आपदाएँ, और कृषि संकट जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानव गतिविधियाँ हैं।
कारण:
जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण मानव द्वारा किए जाने वाले औद्योगिकीकरण, वनों की अंधाधुंध कटाई, जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग और बढ़ती जनसंख्या है। इन कारणों से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की अधिकता हो रही है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।
परिणाम:
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि, ग्लेशियरों का पिघलना, और मौसम में उतार-चढ़ाव आ रहे हैं। इसके अलावा, प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, सूखा, और चक्रवाती तूफान भी बढ़ रहे हैं। इससे कृषि और जल संसाधनों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने के लिए हमें नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना चाहिए, वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए और ऊर्जा की खपत को नियंत्रित करना चाहिए।
(ं) भारत में कृषि क्रांति
प्रस्तावना:
भारत में कृषि का क्षेत्र समाज की आधारशिला है, और कृषि क्रांति ने भारतीय कृषि को एक नई दिशा दी। 1960 के दशक में हरित क्रांति ने कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाए, जिससे देश में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई और भारतीय किसान अधिक आत्मनिर्भर बने।
कृषि क्रांति के तत्व:
कृषि क्रांति के तहत उन्नत किस्म के बीज, रासायनिक खाद, सिंचाई की बेहतर तकनीकें और कृषि मशीनरी का उपयोग बढ़ाया गया। इसके कारण किसानों ने अपनी उपज में वृद्धि की और कृषि में अत्याधुनिक पद्धतियों को अपनाया।
निष्कर्ष:
भारत में कृषि क्रांति ने देश को खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर बना दिया, लेकिन इसके साथ-साथ भूमि की उर्वरता और पर्यावरण के बारे में भी जागरूकता बढ़ानी जरूरी है। Quick Tip: निबंध लेखते समय हमेशा वाक्यों को स्पष्ट और क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करें। साथ ही अपने विचारों को मजबूत और तर्कपूर्ण बनाएं।
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