UP Board Class 12 Hindi General Question Paper with Answer Key Code 302 ZI is available for download. The exam was conducted by the Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad (UPMSP) on February 16, 2023 in Afternoon Session 2 PM to 5:15 PM. The medium of paper was Hindi. In terms of difficulty level, UP Board Class 12 Hindi General paper was Easy. The question paper comprised a total of 14 questions.
UP Board Class 12 Hindi General (Code 302 ZI) Question Paper with Answer Key (February 16)
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निम्नलिखित में से हजारीस्मात द्विवेदी की रचना है :
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Step 1: Understanding the options.
हजारीस्मात द्विवेदी हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक थे और उन्होंने 'हिंदी साहित्य की भूमिका' के नाम से एक महत्वपूर्ण रचना लिखी। इस रचना में उन्होंने हिंदी साहित्य की स्थिति और विकास पर विचार प्रस्तुत किया है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) विचार और वितर्क → यह गलत है, यह रचना हजारीस्मात द्विवेदी की नहीं है।
- (B) बिलसुर बकरीहा → यह भी गलत है, यह रचना द्विवेदी जी की नहीं है।
- (C) साहित्य का कर्म → यह गलत है, यह भी हजारीस्मात द्विवेदी की रचना नहीं है।
- (D) हिंदी साहित्य की भूमिका → सही उत्तर, यह रचना हजारीस्मात द्विवेदी द्वारा लिखी गई है।
इसलिए सही उत्तर है (D) हिंदी साहित्य की भूमिका।
Quick Tip: हजारीस्मात द्विवेदी की प्रसिद्ध रचनाओं में 'हिंदी साहित्य की भूमिका' प्रमुख है।
निम्नलिखित में से आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखा निबंध है :
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Step 1: Understanding the options.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक थे। 'राष्ट्र का स्वरूप' उनके प्रसिद्ध निबंधों में से एक है, जिसमें उन्होंने भारतीय राष्ट्र की परिभाषा और उद्देश्य पर प्रकाश डाला।
Step 2: Option Analysis.
- (A) तुम: चंदन हम पानी → यह गलत है, यह आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा नहीं लिखा गया।
- (B) राष्ट्र का स्वरूप → सही उत्तर, यह आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखा गया निबंध है।
- (C) अशोक के फूल → यह भी गलत है, यह शुक्ल जी द्वारा नहीं लिखा गया।
- (D) कविता क्या है? → यह भी गलत है, यह निबंध शुक्ल जी द्वारा नहीं लिखा गया।
इसलिए सही उत्तर है (B) राष्ट्र का स्वरूप।
Quick Tip: आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'राष्ट्र का स्वरूप' में भारतीय राष्ट्र की अवधारणा और उसका स्वरूप पर गहरा विचार प्रस्तुत किया।
'अजातशत्रु' रचना की विधा है :
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Step 1: Understanding 'अजातशत्रु'.
'अजातशत्रु' एक जीवनी पर आधारित रचना है, जो कि हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक बिपिन चंद्र पाल द्वारा लिखी गई है। इसे जीवनी साहित्य की एक प्रमुख कृति माना जाता है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) संर्मण → यह गलत है, क्योंकि संर्मण रचनाएँ व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित होती हैं।
- (B) आत्मकथा → यह भी गलत है, क्योंकि आत्मकथा में लेखक स्वयं के जीवन के अनुभवों का वर्णन करते हैं।
- (C) नाटक → यह भी गलत है, 'अजातशत्रु' नाटक नहीं है।
- (D) जीवनी → सही उत्तर, 'अजातशत्रु' जीवनी की एक कृति है।
इसलिए सही उत्तर है (D) जीवनी।
Quick Tip: 'अजातशत्रु' जीवनी साहित्य का महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसमें लेखक ने किसी ऐतिहासिक व्यक्ति के जीवन का वर्णन किया है।
'अंजेय' की रचना है :
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Step 1: Understanding 'अंजेय'.
'अंजेय' एक प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार थे, जिनकी प्रमुख रचनाओं में 'शेखर: एक जीवन' शामिल है। यह एक जीवंत और भावपूर्ण कृति है, जो जीवन के संघर्षों और उसके दर्शन पर आधारित है।
Step 2: Option Analysis.
- (A) मेरे विचार → यह गलत है, यह रचना 'अंजेय' की नहीं है।
- (B) पृथ्वी पुन: → यह गलत है, यह रचना 'अंजेय' की नहीं है।
- (C) विचार-प्रवाह → यह भी गलत है, यह रचना 'अंजेय' की नहीं है।
- (D) शेखर: एक जीवन → सही उत्तर, यह रचना 'अंजेय' द्वारा लिखी गई है।
इसलिए सही उत्तर है (D) शेखर: एक जीवन।
Quick Tip: 'शेखर: एक जीवन' अंजेय की सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है, जो जीवन के संघर्ष और व्यक्तित्व पर आधारित है।
'बहादुर' कहानी के लेखक हैं :
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Step 1: Understanding the Author.
'बहादुर' कहानी हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक अमरकांत द्वारा लिखी गई है। यह कहानी भारतीय समाज के संघर्षों और मानसिकताओं को दर्शाती है।
Step 2: Option Analysis.
(A) फणीश्वरनाथ 'रेणु' — यह लेखक 'मैला आंचल' जैसे उपन्यास के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन 'बहादुर' की रचना उनके द्वारा नहीं की गई।
(B) मुंशी प्रेमचंद — प्रेमचंद ने अनेक कहानियाँ लिखी हैं, लेकिन 'बहादुर' उनकी कृतियों में से नहीं है।
(C) जैनेन्द्र कुमार — जैनेन्द्र भी प्रमुख हिंदी लेखक हैं, पर 'बहादुर' उनकी रचनाओं में नहीं है।
(D) अमरकांत — यह सही उत्तर है, 'बहादुर' कहानी अमरकांत द्वारा लिखी गई है।
Quick Tip: अमरकांत हिंदी साहित्य में विशेष रूप से अपने यथार्थवादी दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनकी 'बहादुर' कहानी उनके जीवन संघर्षों का सशक्त चित्रण है।
रामधारी सिंह 'दिनकर' प्रमुख कवि हैं :
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Step 1: About Ramdhari Singh 'Dinkar'.
रामधारी सिंह 'दिनकर' हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित कवि हैं। उनकी रचनाओं में ओज, भावनात्मकता और राष्ट्रभक्ति की भावना प्रबल रूप से दिखाई देती है।
Step 2: Kavyadhara classification.
उनकी कविताएँ प्रगतिवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसमें सामाजिक अन्याय के विरुद्ध विद्रोह और क्रांति का स्वर मिलता है।
Step 3: Option elimination.
(A) प्रयोगवादी – यह कविता शैली नई कविता और प्रयोग की ओर केंद्रित होती है, जो दिनकर की शैली से मेल नहीं खाती।
(C) निर्गुण ज्ञानाश्रयी – यह भक्ति आंदोलन से जुड़ी है, जो दिनकर की विषयवस्तु नहीं है।
(D) सगुण काव्यधारा – यह भी भक्ति रचनाओं से संबंधित होती है।
Step 4: Conclusion.
रामधारी सिंह 'दिनकर' का नाम प्रगतिवादी काव्यधारा से जुड़ा है।
Quick Tip: प्रगतिवादी कविता समाज की वास्तविक समस्याओं को उजागर करती है और उसमें सुधार लाने के लिए प्रेरित करती है।
'बिहारी' की रचनाओं का छन्द है –
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Step 1: About Bihari.
बिहारी लाल एक प्रसिद्ध रीति कालीन कवि थे। उनकी रचना 'सतसई' में अधिकतर दोहों का प्रयोग हुआ है।
Step 2: Identification of metre.
'दोहा' छन्द दो पंक्तियों का होता है, जिसमें प्रत्येक पंक्ति में 13 और 11 मात्राएँ होती हैं। यही छन्द बिहारी ने अपनी रचनाओं में अपनाया है।
Step 3: Option analysis.
- (A) सवैया – यह श्रृंगार काव्य में प्रयुक्त होता है लेकिन बिहारी के दोहों में नहीं।
- (B) चौपाई – तुलसीदास की शैली है।
- (D) कुण्डलिया – एक विशेष शैली है लेकिन बिहारी की प्रमुख शैली नहीं।
Step 4: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है – (C) दोहा।
Quick Tip: बिहारी की 'सतसई' हिंदी साहित्य में दोहा छन्द की उत्कृष्ट कृति मानी जाती है।
'आँसू' रचना है –
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Step 1: About the composition.
'आँसू' एक काव्य रचना है जिसे जयशंकर प्रसाद ने लिखा था। यह उनकी आत्मा की पीड़ा और भावनात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
Step 2: Literary context.
यह रचना छायावाद युग की प्रमुख रचना मानी जाती है और प्रसाद जी की विशिष्ट शैली को प्रकट करती है।
Step 3: Option clarification.
- (A) निराला – वे छायावादी कवि हैं लेकिन 'आँसू' उनकी रचना नहीं है।
- (B) दिनकर – वे प्रगतिवादी कवि हैं।
- (D) महादेवी वर्मा – छायावादी कवयित्री हैं पर 'आँसू' उनकी रचना नहीं।
Step 4: Conclusion.
इसलिए सही उत्तर है – (C) जयशंकर प्रसाद।
Quick Tip: 'आँसू' जयशंकर प्रसाद की प्रमुख आत्मानुभूति प्रधान रचना है।
'छायावाद' "स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है" कथन है
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Step 1: Understanding 'छायावाद'.
छायावाद एक साहित्यिक आंदोलन था जो 20वीं सदी के प्रारंभ में भारतीय साहित्य में उभरा। इसका मुख्य उद्देश्य भावनाओं, आध्यात्मिकता और व्यक्तिगत विचारों की अभिव्यक्ति करना था। यह 'स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह' का प्रतीक माना गया क्योंकि छायावाद ने तत्कालीन यथार्थवाद और यांत्रिकता से विद्रोह किया।
Step 2: Context of the statement.
यह कथन डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के विचारों से जुड़ा है, जिन्होंने छायावाद को साहित्यिक रूप में स्थापित किया और इसके सिद्धांतों का समर्थन किया।
Step 3: Option analysis.
- (A) डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी – यह कथन उनके साहित्यिक विचारों से मेल खाता है।
- (B) गुलाब राय – वे साहित्य के अन्य क्षेत्रों में प्रसिद्ध थे, लेकिन छायावाद के संदर्भ में उनका योगदान नहीं था।
- (C) डॉ. धीरेंद्र वर्मा – उनका भी छायावाद से कोई विशेष संबंध नहीं है।
- (D) डॉ. नगेन्द्र – उनका योगदान छायावाद में प्रमुख नहीं था।
Step 4: Conclusion.
सही उत्तर है – (A) डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी का।
Quick Tip: छायावाद साहित्य में मानसिकता, अनुभूति, और आत्मा के सूक्ष्म पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने वाला आंदोलन था।
'दूसरा सप्तक' का प्रकाशन कब हुआ?
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Step 1: About 'दूसरा सप्तक'.
'दूसरा सप्तक' भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण काव्य-संग्रहों में से एक है, जो 1943 में प्रकाशित हुआ। यह संग्रह उन कवियों की रचनाओं का संग्रह था, जिन्होंने भारतीय साहित्य में छायावाद की अगली पीढ़ी की नींव रखी।
Step 2: Context and historical importance.
यह संग्रह महादेवी वर्मा, नरेन्द्र शर्मा, एवं अज्ञेय जैसे प्रमुख कवियों की कविताओं से सजा था। इसका प्रकाशन छायावाद से आगे की कविताओं के लिए एक मोड़ था।
Step 3: Option analysis.
- (A) सन 1940 – यह तारीख गलत है, क्योंकि 'दूसरा सप्तक' 1943 में प्रकाशित हुआ था।
- (C) सन 1951 – यह भी गलत है, क्योंकि यह तारीख 'तीसरा सप्तक' के प्रकाशन की है।
- (D) सन 1960 – यह भी गलत है, यह समय था जब भारतीय साहित्य में कुछ और बदलाव आए थे।
Step 4: Conclusion.
सही उत्तर है – (B) सन 1943।
Quick Tip: 'दूसरा सप्तक' भारतीय साहित्य में यथार्थवादी काव्य प्रवृत्तियों की शुरुआत करता है।
दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इसी प्रकार पृथ्वी पर बसने वाले जन बराबर हैं। उनमें ऊँच और नीच का भाव नहीं है। जो मातृभूमि के साथ जुड़ा हुआ है, वह समान अधिकार का भागी है। पृथ्वी पर निवास करने वाले जिनों का विस्तार अनंत है। नगर और जनपद, पुर और गाँव, जंगल और पर्वत नाना प्रकार के जनों से भरे हुए हैं। ये जन अनेक प्रकार की भाषाएँ बोलने वाले और अपने धर्म के मानने वाले हैं; फिर भी ये मातृभूमि के पुत्र हैं और इस कारण उनका सौहार्द भाव अभ्यस्त है। सभ्यता और रहने-सहने की धटी से जन एक दूसरे से आगे-पीछे हो सकते हैं। किंतु इस कारण से मातृभूमि के साथ उनका कोई संबंध नहीं हो सकता। पृथ्वी के विशाल प्रांगण में सब जातियों के लिये समान क्षेत्र है। समुद्र के मार्ग से भरपूर प्रवति और उन्हें करने के सबको एक जैसा अधिकार है। किसी जन को पीछे छोड़कर रुपे नहीं बढ़ सकता। अथरात राष्ट्र को भी यही नियम लागू होगा।
Question 11:
उपयुक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
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पाठ का नाम:
भारत माता
लेखक का नाम:
पं० श्रीनारायण चतुर्वेदी Quick Tip: लेखक और पाठ का नाम याद करते समय विषय-वस्तु की केंद्रीय भावना और शैली को ध्यान में रखें। यह पहचानने में मदद करता है कि गद्यांश किस लेखक की शैली से मेल खाता है।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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व्याख्या:
रेखांकित अंश — "पृथ्वी पर निवास करने वाले जनों का विस्तार अनंत है। नगर और जनपद, पुर और गाँव, जंगल और पर्वत नाना प्रकार के जनों से भरे हुए हैं।"
इस अंश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोग अलग-अलग क्षेत्रों, परिवेशों और प्राकृतिक परिस्थितियों में रहते हैं। कोई नगरों में तो कोई गाँवों में, कोई जंगलों में तो कोई पर्वतों में निवास करता है। इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्यों की उपस्थिति हर जगह है और वे विविधता में एकता का उदाहरण हैं।
यह अंश विविधता और समावेशिता का प्रतीक है, जहाँ सभी स्थानों और समाजों के लोग समान रूप से पृथ्वी के निवासी हैं और उन्हें एकसमान दृष्टि से देखा जाना चाहिए। Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय उसका न केवल शब्दार्थ, बल्कि लेखक द्वारा दी गई भावनात्मक और सामाजिक अभिव्यक्ति को भी स्पष्ट करें।
समान अधिकार का भागी कौन है?
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उत्तर:
जो व्यक्ति मातृभूमि से जुड़ा हुआ है, वही समान अधिकार का भागी है। उसके लिए ऊँच-नीच, जात-पात या किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता। वह मातृभूमि के संसाधनों और सम्मान का उतना ही अधिकारी है जितना अन्य कोई। Quick Tip: उत्तर लिखते समय गद्यांश से सीधा संबंध बनाए रखें और लेखक द्वारा दी गई भावना को यथार्थ रूप में प्रस्तुत करें।
पृथ्वी पर किसका विस्तार अनन्त है?
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उत्तर:
गद्यांश के अनुसार, पृथ्वी पर निवास करने वाले जनों का विस्तार अनन्त है। इसमें नगर, जनपद, गाँव, जंगल और पर्वत जैसे स्थानों में रहने वाले सभी प्रकार के लोग सम्मिलित हैं। यह सभी जन पृथ्वी के विविध भू-भागों में फैले हुए हैं और उनके विस्तार की कोई सीमा नहीं है। Quick Tip: प्रश्न का उत्तर गद्यांश के मुख्य विचार से जोड़कर लिखें, जिससे लेखक की भावना स्पष्ट हो सके।
'अनन्त' और 'जनपद' शब्द का अर्थ लिखिए।
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1. अनन्त:
जिसका कोई अंत न हो, जो असीमित हो। गद्यांश में 'अनन्त' शब्द का प्रयोग जनों के असीम विस्तार के लिए किया गया है।
2. जनपद:
जन + पद = जहाँ जन निवास करते हैं अर्थात् एक क्षेत्र या प्रदेश। 'जनपद' का अर्थ है वह भू-भाग जहाँ लोग रहते हैं। Quick Tip: शब्दार्थ लिखते समय शब्द की मूल संधि और गद्यांश में प्रयुक्त अर्थ को साथ जोड़ें।
अथवा
यदि यह नवीनिकरण सिर्फ कुछ पंडितों व आचार्यों की दिमागी कसरत ही बनी रहे,
तो भाषा गतिशील नहीं होती। भाषा का सीधा संबंध प्रयोग से है और जनता से है।
यदि नये शब्द अपने उद्गम स्थान पर ही अड़े रहें और कहीं भी उनका प्रयोग किया नहीं जाये
तो उसके पीछे के उद्देश्य पर ही कुठाराघात होगा।
इसके लिये यूरोपीय देशों में प्रेरण के कई माध्यम हैं;
श्रव्य दृश्य विधान, वैज्ञानिक कथा साहित्य आदि।
हमारी भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक कथा साहित्य प्रायः नहीं के बराबर है।
किसी भी नये विधान की सफलता जनता की सम्मति व असम्मति के आधार पर निर्भर करती है,
और जनता में इस चेतना को उजागर करने का उत्तरदायित्व शिक्षित समुदाय एवं सरकार का होना चाहिए।
Question 16:
उपयुक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
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पाठ का नाम:
'भाषा का महत्व और उसकी प्रगति'
लेखक का नाम:
'रवींद्रनाथ ठाकुर' (रवींद्रनाथ ठाकुर, जिन्हें रवींद्रनाथ ठाकुर के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय साहित्य के प्रमुख लेखक थे।) Quick Tip: गद्यांश का नाम और लेखक का नाम समझते समय, उनके योगदान और साहित्यिक प्रभाव को ध्यान में रखें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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व्याख्या:
गद्यांश में रेखांकित अंश में लेखक यह स्पष्ट कर रहे हैं कि यदि भाषा में गतिशीलता और बदलाव नहीं होता तो वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाती। नया शब्द तभी प्रभावी हो सकता है, जब उसे समाज के द्वारा स्वीकार किया जाए। यह अंश यह भी दर्शाता है कि जब तक कोई शब्द आम जन के बीच न पहुंचे और वह शब्द उनके व्यवहार का हिस्सा न बने, तब तक उसका प्रभाव नहीं होता।
इसके अलावा, लेखक ने यह भी कहा कि अगर भाषाओं में बदलाव और विकास नहीं होता, तो वे कहीं भी अपना प्रभाव स्थापित नहीं कर सकतीं। इसका तात्पर्य यह है कि समाज में जागरूकता और शिक्षा का प्रसार आवश्यक है ताकि भाषा अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सके। Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय, विचार करें कि लेखक ने किस सामाजिक संदर्भ में यह शब्द प्रयोग किया है।
भाषा का सीधा संबंध किससे है?
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उत्तर:
भाषा का सीधा संबंध समाज से है। भाषा तभी प्रभावी होती है जब उसे समाज द्वारा स्वीकार किया जाता है और वह समाज के बीच संवाद का मुख्य माध्यम बनती है। बिना समाज के उपयोग और समझ के, कोई भी भाषा अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकती। Quick Tip: भाषा का प्रभाव समाज और शिक्षा से होता है। शब्दों का वास्तविक प्रभाव तभी संभव है जब वे समाज में प्रचलित हों।
यूरोपीय देशों में शब्द प्रेरण के माध्यम कौन-कौन से हैं?
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उत्तर:
गद्यांश में लेखक ने यूरोपीय देशों में शब्द प्रेरण के विभिन्न माध्यमों का उल्लेख किया है। ये माध्यम मुख्य रूप से पुस्तकें, वैज्ञानिक कार्य, साहित्य, और मीडिया हैं। इन माध्यमों के माध्यम से नए शब्द समाज में फैलते हैं और अपनी पहचान बनाते हैं। विशेष रूप से, यूरोपीय देशों में पुस्तकें और साहित्य की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो नए शब्दों के विकास और प्रचार में सहायक होते हैं। Quick Tip: प्रेरण के माध्यमों के बारे में चर्चा करते समय, उन स्रोतों का नाम और उनका प्रभाव समझें जो भाषा के प्रसार में सहायक होते हैं।
'कुनराधात' और 'प्रेक्षण' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
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1. कुनराधात:
'कुनराधात' का अर्थ है, किसी कार्य या गतिविधि की पुनरावृत्ति या लगातार चलना। यह शब्द विशेष रूप से किसी प्रक्रिया के निरंतर होने का संकेत देता है। यह किसी कार्य के स्थायित्व और निरंतरता को दर्शाता है।
2. प्रेक्षण:
'प्रेक्षण' का अर्थ है देखना या अवलोकन करना। यह शब्द विशेष रूप से किसी चीज़ को ध्यान से देखने और उसका मूल्यांकन करने की प्रक्रिया को दर्शाता है। यह किसी घटना या स्थिति को विश्लेषित करने का कार्य होता है। Quick Tip: शब्दों के अर्थ लिखते समय उनका वास्तविक संदर्भ और उपयोग समझने की कोशिश करें ताकि आप सही अर्थ दे सकें।
दिये गये पद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
``निज जनम-जनम में सुने जीव यह मेरा
धिक्कार उसे था महास्वार्थ ने घेरा -''
``सौ बार धन्य वह एक लाल की माँई
जिस जननी ने है जना भारत-सा भाई''
पांगल सी प्रभु के साथ सभी चिल्लाई
``सौ बार धन्य वह एक लाल की माँई''
Question 21:
उपयुक्त पद्यांश का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
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पद्यांश का शीर्षक:
'दीन हीन की सहायता'
कवि का नाम:
'मैथिली शरण गुप्त' Quick Tip: कवि और उनके काव्य का नाम याद करते समय, उस कविता के भाव, शैली और सामाजिक संदर्भ पर ध्यान दें। यह आपके उत्तर को सटीक और प्रभावी बनाएगा।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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रेखांकित अंश:
"निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा
धिक्कार उसे था महास्वार्थी ने घेरा।"
व्याख्या:
यह पंक्तियाँ कैकेयी के आत्मग्लानि और पश्चाताप को दर्शाती हैं। वह कहती है कि उसने जीवन भर जिस 'मेरा' भाव को अपनाया, वह केवल स्वार्थ था। उस स्वार्थ ने उसे घेर लिया और उसी ने उसे पतन की ओर धकेला। वह अपने अहंकार और मोह में इतने बड़े निर्णय ले बैठी, जिसका परिणाम न केवल राम के वनवास के रूप में सामने आया, बल्कि स्वयं उसे भी आत्मिक रूप से तोड़ गया। अब वह स्वयं को बार-बार धिक्कारती है और अपनी गलती स्वीकार करती है। Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय उस पात्र की मानसिक अवस्था और उस समय के संदर्भ को अवश्य स्पष्ट करें।
कैकेयी स्वयं को धिक्कारती हुई क्या कहती हैं?
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उत्तर:
कैकेयी स्वयं को धिक्कारती हुई कहती है कि उसने अपने जीवन में केवल 'मैं' और 'मेरा' का ही ध्यान रखा और उसी स्वार्थ ने उसे घेर लिया। वह कहती है—"धिक्कार उसे था महास्वार्थी ने घेरा"। यह वाक्य उसके पछतावे और आत्मग्लानि को प्रकट करता है। Quick Tip: प्रश्न के उत्तर में पात्र के कथन को उद्धृत करें और उसका भाव स्पष्ट करें — इससे उत्तर अधिक प्रभावी बनता है।
कैकेयी के प्रायश्चित के बाद श्रीराम उनसे क्या कहते हैं?
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प्रायश्चित के बाद श्रीराम कैकेयी से यह कहते हैं कि तुम्हारा प्रायश्चित और पछतावा व्यर्थ नहीं जाएगा, लेकिन राम का वनवास और राजा का दायित्व वह निभाएंगे, चाहे तुम्हारे दुखों का कोई अंत न हो। श्रीराम का यह कथन उसे मानसिक शांति और सांत्वना देता है, और वह यह समझते हैं कि हर कार्य का परिणाम आता है, लेकिन असत्य के कारण उसका दुख कभी समाप्त नहीं होता। Quick Tip: प्रश्न के उत्तर में राम के उदार चरित्र को उजागर करने के लिए उनके शब्दों का सही भावार्थ प्रस्तुत करें।
प्रभु राम के साथ कैकेयी के अपराध का अपमान करती हुई सभा क्या चिल्ला उठी?
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कैकेयी के अपराध का अपमान करते हुए सभा चिल्ला उठी और कहा कि राम का वनवास और उनके परिवार को इस कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराना अस्वीकार्य है। सभा ने कैकेयी के कदम को असंवेदनशील और अत्याचारी बताया, क्योंकि उन्होंने अपने पुत्र को इस कठिन यात्रा में भेजा था, जबकि उनके लिए यह असंभव था कि वे राम को इस अपमानजनक स्थिति में डाल सकें। Quick Tip: सभा के शब्दों और भावनाओं को बयान करते हुए उनका गहरी आलोचना के साथ विश्लेषण करें।
अथवा
``कौन तुम? संस्कृति - जलनिधि तीर
तरंगों से फेंकी मणि एक।
कर रहे निज जन का चुपचाप।
प्रभा की धारा से अभिषेक ?
मधुर विषाण और एकान्त -
जगत का सुलझा हुआ रहस्य
एक कर्णामय सुंदर मौन
और चंचल मन का आलस्य''
Question 26:
उपयुक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
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पद्यांश का शीर्षक:
'कौन तुम?'
कवि का नाम:
'रामधारी सिंह 'दिनकर'' Quick Tip: कवि और कविता का नाम याद करते समय, कविता के भाव और कविता की केंद्रीय विचारधारा को ध्यान में रखें।
रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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"कौन तुम? संस्कृति - जलनिधि तीर
तरंगों से फेंकी मणि एक।"
इस रेखांकित अंश में कवि दिनकर 'संस्कृति' को एक रहस्यमयी, बहुमूल्य और समुद्र द्वारा उछाली गई मणि के रूप में चित्रित करते हैं। यह प्रश्नात्मक शैली में है, जहाँ कवि 'संस्कृति' से उसका परिचय पूछ रहे हैं — जैसे कोई अनजानी, किंतु आकर्षक वस्तु सामने आई हो। समुद्र के तट से फेंकी गई मणि के रूपक द्वारा यह बताया गया है कि संस्कृति गहराई से उत्पन्न हुई एक दुर्लभ और मूल्यवान वस्तु है, जो किसी विशेष उद्देश्य से संसार में आई है। कवि इसका रहस्य जानना चाहते हैं। Quick Tip: व्याख्या करते समय यह समझना ज़रूरी है कि कवि किस प्रतीक या रूपक के माध्यम से किस विचार को व्यक्त कर रहे हैं।
उपयुक्त पंक्तियों में कौन किसका परिचय पूछ रहा है?
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पद्यांश में कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' स्वयं 'संस्कृति' से उसका परिचय पूछ रहे हैं। वे संस्कृति को एक रहस्यमय, मौन, करुणामय और सुंदर सत्ता के रूप में अनुभव करते हैं और प्रश्न करते हैं कि — “कौन तुम?”। इसका उद्देश्य संस्कृति के स्वरूप, उद्गम और उद्देश्य को समझना है। इस प्रकार यह परिचयात्मक संवाद एक गहन चिंतन का प्रतीक है। Quick Tip: ‘कौन’ जैसे प्रश्नवाचक शब्द कविता में तब प्रयुक्त होते हैं जब कवि किसी जटिल विचार या तत्व की पहचान या व्याख्या चाहता है।
कौन अपनी कान्ति से वीराने को शोभायमान कर रहा है?
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इस पंक्ति में कवि संस्कृति का वर्णन कर रहे हैं और उसे एक ऐसी शक्ति के रूप में चित्रित कर रहे हैं, जो अपनी कान्ति (प्रकाश) से वीरान (निरजन) स्थान को शोभायमान कर रही है। यहाँ पर 'कान्ति' से अभिप्राय है - वह आत्मिक और मानसिक ऊर्जा जो किसी निराकार या शून्य स्थान को भी अपनी उपस्थिति से जीवंत बना देती है।
कवि यह कहना चाहते हैं कि जैसे कोई प्रकाश से अंधकार को दूर करता है, वैसे ही संस्कृति अपने प्रभाव से हर स्थान को जीवन और अर्थ देती है। संस्कृति का यह उजाला न केवल भौतिक स्थान को प्रकाशित करता है, बल्कि यह मानसिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक नई दिशा प्रदान करता है।
इस प्रकार, संस्कृति को एक प्रकाश के रूप में देखा गया है जो जहां-जहां मौजूद होती है, वहां-वहां यह शांति और सुंदरता का संचार करती है। यह एक रूपक है, जो संस्कृति के प्रभाव को दृश्य रूप में प्रस्तुत करता है। Quick Tip: संस्कृति के प्रभाव को समझते समय ध्यान रखें कि यह केवल भौतिक चीज़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक, आत्मिक और सामाजिक परिवर्तनों का भी कारण बनती है।
‘प्रभा की धारा से अभिषेक’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
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इस पंक्ति में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है। यहाँ ‘प्रभा’ (जो कि एक प्रकार की रोशनी या आभा है) और ‘धारा’ (जो कि बहती हुई जलधारा का प्रतीक है) का प्रयोग किया गया है।
रूपक अलंकार का अर्थ होता है, किसी एक वस्तु का दुसरी वस्तु से उदाहरण के रूप में चित्रण करना, यानि एक वस्तु को दूसरी वस्तु के रूप में स्थापित करना।
यहां ‘प्रभा’ (जो कि सामान्यतः सूर्य या आकाश से उत्पन्न होती है) को ‘धारा’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है, ताकि उसका प्रभाव और व्यापकता दर्शाया जा सके। कवि के अनुसार, प्रभा की धारा से अभिषेक होने से यह संकेत मिलता है कि संस्कृति या जीवन का अभिषेक वही होता है, जो आभा के रूप में समाज या विश्व को परिवर्तित कर सके।
इसमें ‘धारा’ का उपयोग इसलिए किया गया है क्योंकि धारा निरंतर बहने वाली, निरंतर फैलने वाली होती है। यही तत्व संस्कृति के फैलाव और निरंतरता को व्यक्त करता है। Quick Tip: रूपक अलंकार में किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह अलंकार कविता में गहरे अर्थों को समझाने में मदद करता है।
निम्नलिखित में से किसी एक लेखक का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए: (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)
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(i) वासुदेव शरण अग्रवाल:
वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 1904 में हुआ। वे हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार और कला-इतिहासकार थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति और साहित्य पर गहन अध्ययन किया।
प्रमुख रचनाएँ:
उनकी रचनाओं में "भारतीय कला", "भारत का चित्रकला विवेक" और "संस्कृति और साहित्य" प्रमुख हैं।
(ii) प्रो. जी. सुंदर रेड्डी:
प्रो. जी. सुंदर रेड्डी हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक, आलोचक और शोधकर्ता रहे हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य की आलोचना और शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रमुख रचनाएँ:
उनकी प्रमुख रचनाओं में "हिंदी साहित्य का इतिहास", "निबंध संग्रह", और "आधुनिक हिंदी कविता" शामिल हैं।
(iii) डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी:
डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1907 में हुआ। वे हिंदी साहित्य के महान आलोचक, निबंधकार और लेखक थे। उन्होंने संत साहित्य, मध्यकालीन काव्य और भारतीय दर्शन पर महत्वपूर्ण कार्य किया।
प्रमुख रचनाएँ:
उनकी प्रमुख रचनाएँ "हजारिप्रसाद द्विवेदी रचनावली", "निबंध संग्रह" और "बाणभट्ट की आत्मकथा" हैं। Quick Tip: लेखक के जीवन-परिचय में उनके जन्म, योगदान और रचनाओं का उल्लेख अवश्य करें।
निम्नलिखित में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियाँ पर प्रकाश डालिए: (अधिकतम शब्द-सीमा 80 शब्द)
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(i) महादेवी वर्मा:
महादेवी वर्मा का जन्म 1907 में हुआ। वे हिंदी साहित्य की प्रमुख कवि और साहित्यकार थीं। उनका लेखन प्रेम, सौंदर्य और जीवन के दुख-सुख के गहरे भावों को प्रस्तुत करता है।
प्रमुख कृतियाँ:
उनकी प्रमुख रचनाएँ "संवेदना", "नीरजा", "शृंगार और शृंगारी", और "यामा" हैं।
(ii) रामधारी सिंह 'दिनकर':
रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 1908 में हुआ। वे हिंदी के महान कवि, निबंधकार और साहित्यकार थे। उनका काव्य भारतीय वीरता, राष्ट्रीयता और समाजिक चेतना से भरपूर था।
प्रमुख कृतियाँ:
उनकी प्रमुख रचनाएँ "रश्मिरथी", "उर्वशी", "हिमालय", और "संघर्ष" हैं।
(iii) सुमित्रानंदन पंत:
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 1900 में हुआ। वे छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनकी रचनाओं में प्रकृति-सौंदर्य, मानवीय करुणा और आदर्श जीवन की अभिव्यक्ति होती है।
प्रमुख कृतियाँ:
उनकी प्रमुख रचनाएँ "पल्लव", "युगान्तर", "नदी", और "चिदम्बर" हैं। Quick Tip: लेखक के जीवन-परिचय में उनके जन्म, योगदान, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख करें।
'पंचलाइट' अथवा 'बहादुर' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)
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कहानी 'पंचलाइट' एक गांव की कहानी है, जहाँ गाँववाले एक नई चीज़, पंचलाइट, को लेकर उत्सुक होते हैं। गाँव के लोग यह तय नहीं कर पाते कि उसे किसे जलाने का अधिकार दिया जाए। कहानी में लेखक ने समाज की मानसिकता और परंपराओं को प्रदर्शित किया है। Quick Tip: कहानी का सारांश लिखते समय उसके मुख्य संघर्ष और पात्रों की भूमिका पर ध्यान दें।
'ध्वन्याना' अथवा 'बहादुर' कहानी के उद्धरण पर प्रकाश डालिए। (अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द)
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'ध्वन्याना' कहानी में लेखक ने श्रमिक वर्ग के संघर्ष और उनकी ईमानदारी को प्रमुखता दी है। 'बहादुर' कहानी में नायक की साहसिकता और संघर्षशीलता को दिखाया गया है, जो समाज में बदलाव लाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाता है। Quick Tip: कहानी के उद्धरण पर प्रकाश डालते समय पात्रों के गुण, संघर्ष और उनके उद्देश्य को स्पष्ट करें।
‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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Step 1: भूमिका।
‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य में नायक एक आदर्शवादी और संघर्षशील पात्र के रूप में चित्रित किया गया है। वह समाज के लिए समर्पित है और अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को ताक पर रखकर दूसरों की भलाई के लिए संघर्ष करता है।
Step 2: नायक का व्यक्तित्व।
नायक का व्यक्तित्व बहादुर, सत्यनिष्ठ और प्रेरणादायक है। वह हमेशा सत्य और न्याय की रक्षा के लिए खड़ा रहता है। वह किसी भी परिस्थिति में अपने आदर्शों से समझौता नहीं करता।
Step 3: नायक के गुण।
- सत्य, अहिंसा और न्याय के प्रति अडिग विश्वास।
- समाज और मानवता के लिए समर्पण।
- साहस और संघर्ष की भावना से ओत-प्रोत।
- कर्तव्यनिष्ठ और आदर्शवादी।
Step 4: निष्कर्ष।
अतः ‘मुक्तिरण’ का नायक समाज में बदलाव लाने और आदर्शों की रक्षा करने वाला एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण में नायक के शारीरिक, मानसिक और नैतिक गुणों का स्पष्ट रूप से उल्लेख करें।
‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘द्वितीय विश्वयुद्ध’ की घटनाएँ लिखिए।
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Step 1: भूमिका।
‘मुक्तिरण’ खण्डकाव्य का आधार द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं पर आधारित है। यह खण्डकाव्य युद्ध के दर्दनाक परिणामों और संघर्षों को दर्शाता है।
Step 2: द्वितीय विश्वयुद्ध का विवरण।
- द्वितीय विश्वयुद्ध में विभिन्न देशों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें लाखों लोगों की जानें गईं।
- युद्ध ने मानवता की कठिनाइयों और नफरत की स्थिति को जन्म दिया, और इसके परिणामस्वरूप समाज में उथल-पुथल मच गई।
- नायक और अन्य पात्रों ने युद्ध के भयंकर प्रभावों को महसूस किया और इसे समाप्त करने के लिए प्रयास किए।
Step 3: निष्कर्ष।
यह घटना द्वितीय विश्वयुद्ध की भयावहता और उसके प्रभावों को प्रकट करती है, जो नायक और अन्य पात्रों के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है।
Quick Tip: घटनाओं के उत्तर में पृष्ठभूमि, घटना का विवरण और उसका महत्व अवश्य लिखें।
'सत्य की जीत' खंडकाव्य का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।
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'सत्य की जीत' खंडकाव्य में सत्य और असत्य के बीच संघर्ष को प्रमुख रूप से दर्शाया गया है। यह काव्य सत्य की विजय को ही सर्वोपरि मानता है। इस काव्य में नायक के रूप में सत्य का प्रतिनिधित्व किया गया है, जो असत्य के विरोध में खड़ा होता है। काव्य के अंत में सत्य की विजय होती है, जिससे यह संदेश मिलता है कि सत्य के मार्ग पर चलने से हमेशा सफलता मिलती है। Quick Tip: काव्य का कथानक लिखते समय उसके मुख्य संघर्ष, नायक और उसके उद्देश्य को स्पष्ट करें।
'सत्य की जीत' खंडकाव्य के आधार पर दुर्योधन का चरित्रांकन कीजिए।
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'सत्य की जीत' खंडकाव्य में दुर्योधन को एक ऐसा पात्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो हमेशा असत्य और छल के मार्ग पर चलता है। दुर्योधन ने सत्य का विरोध करते हुए कई अन्यायपूर्ण कार्य किए, जिससे वह अपने उद्देश्य में विफल हो जाता है। काव्य में दुर्योधन के स्वार्थी और अहंकारी स्वभाव को स्पष्ट रूप से चित्रित किया गया है, जो अंततः उसकी हार का कारण बनता है। Quick Tip: किसी पात्र का चरित्रांकन करते समय, उसके गुण और दोष दोनों का समावेश करें और यह बताएं कि वह कैसे अपने संघर्ष में पराजित होता है।
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘कृष्ण’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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Step 1: भूमिका।
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य में कृष्ण का चित्रण नायक और मार्गदर्शक के रूप में किया गया है। वह पांडवों के लिए एक मित्र, मार्गदर्शक और भगवान दोनों ही रूप में कार्य करते हैं।
Step 2: कृष्ण का व्यक्तित्व।
कृष्ण का व्यक्तित्व अत्यधिक बहुआयामी है। वह न केवल युद्ध के कुशल रणनीतिकार थे, बल्कि धर्म और नीति के रक्षक भी थे। उनका जीवन सत्य, धर्म, और पराक्रम का प्रतीक है।
Step 3: कृष्ण के गुण।
- नीति और धर्म के प्रति अडिग विश्वास।
- युद्ध के लिए गहरी रणनीतिक समझ।
- मित्रवत और मार्गदर्शक।
- अपनी कूटनीतिक योजनाओं से पांडवों की विजय में सहायक।
Step 4: निष्कर्ष।
‘रश्मिरथी’ में कृष्ण का चरित्र एक पूर्ण और महान व्यक्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो धर्म, नीति और संघर्ष में हर कदम पर मार्गदर्शन प्रदान करता है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण में नायक के शारीरिक, मानसिक और नैतिक गुणों का स्पष्ट रूप से उल्लेख करें।
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के ‘पंचम सर्ग’ की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: पृष्ठभूमि।
‘रश्मिरथी’ के पंचम सर्ग में कर्ण और अर्जुन के बीच संघर्ष और उनके मध्य का द्वंद्व वर्णित है। यह सर्ग महाभारत युद्ध के एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ को दर्शाता है।
Step 2: पंचम सर्ग की कथा।
- पंचम सर्ग में कर्ण और अर्जुन युद्ध भूमि पर आमने-सामने होते हैं।
- कर्ण के पास ब्रह्मास्त्र और अन्य शक्तिशाली अस्त्र होते हैं, लेकिन अर्जुन की विजय निश्चित होती है।
- श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी के रूप में उसे युद्ध में उचित मार्गदर्शन देते हैं।
- अंततः कर्ण का रथ का पहिया धरती में धँस जाता है और अर्जुन इसे युद्ध का सही अवसर मानकर कर्ण का वध कर देता है।
Step 3: निष्कर्ष।
पंचम सर्ग में कर्ण और अर्जुन के संघर्ष का वृतांत एक निर्णायक युद्ध को दर्शाता है, जिसमें कर्ण के नाश से कौरवों की हार तय हो जाती है।
Quick Tip: घटनाओं के उत्तर में पृष्ठभूमि, घटना का विवरण और उसका महत्व अवश्य लिखें।
'आलोक-वृत' खंडकाव्य के 'सप्तम सर्ग' की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
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'आलोक-वृत' खंडकाव्य का सप्तम सर्ग मुख्य रूप से सत्य और धर्म की विजय पर आधारित है। इसमें आलोक के व्यक्तित्व की गहराई और उसकी मानसिकता की उन्नति को दर्शाया गया है। सप्तम सर्ग में आलोक के संघर्ष और उसकी आध्यात्मिक यात्रा की प्रक्रिया को रेखांकित किया गया है। इस सर्ग में आलोक के जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ और उसका आंतरिक उन्नयन दिखाया गया है, जो अंततः उसे शांति और आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करता है। Quick Tip: काव्य के सर्ग की कथावस्तु लिखते समय, उसमें पात्रों की मानसिक स्थिति और संघर्ष को स्पष्ट करना चाहिए।
'आलोक-वृत' खंडकाव्य के आधार पर 'गांधीजी' का चरित्रांकन कीजिए।
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'आलोक-वृत' खंडकाव्य में गांधीजी का चरित्र एक सत्य के पुजारी के रूप में चित्रित किया गया है। उनका जीवन अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों पर आधारित था। उनका चरित्र सत्य, प्रेम और संघर्ष का प्रतीक है। काव्य में गांधीजी की महानता को दर्शाते हुए उनके जीवन की घटनाओं और उनके निर्णयों को महत्वपूर्ण माना गया है। उनके संघर्ष और उनके विचारों ने देश की दिशा बदल दी और उन्होंने जनमानस को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का आह्वान किया। Quick Tip: किसी महान व्यक्ति का चरित्रांकन करते समय, उसके विचारधारा, कार्यों और जीवन के प्रमुख मोड़ को ध्यान में रखें।
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘राज्यश्री’ का चरित्र चित्रण कीजिए।
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Step 1: भूमिका।
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में राज्यश्री का चरित्र एक आदर्श और संघर्षशील व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। वह अपने राज्य और प्रजा के हित में सच्चाई और न्याय का पालन करता है।
Step 2: राज्यश्री का व्यक्तित्व।
राज्यश्री का व्यक्तित्व त्याग, साहस और कर्तव्यनिष्ठा से परिपूर्ण है। वह अपनी प्रजा के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों का त्याग करता है और समाज के लिए सर्वोत्तम निर्णय लेने का प्रयास करता है।
Step 3: राज्यश्री के गुण।
- कर्तव्यनिष्ठ और न्यायप्रिय।
- आदर्श शासक और प्रजा के प्रति समर्पित।
- सच्चाई और नैतिकता के प्रति अडिग।
- साहस और धैर्य से भरा हुआ।
Step 4: निष्कर्ष।
‘त्यागपथी’ में राज्यश्री का चरित्र एक आदर्श शासक का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो न केवल अपनी प्रजा के लिए बल्कि समाज की भलाई के लिए कार्य करता है।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण में नायक के शारीरिक, मानसिक और नैतिक गुणों का स्पष्ट रूप से उल्लेख करें।
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के ‘पंचम सर्ग’ की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
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Step 1: पृष्ठभूमि।
‘त्यागपथी’ के पंचम सर्ग में नायक के संघर्ष और उसकी निष्कलंक निष्ठा का चित्रण किया गया है। यह सर्ग नायक के द्वारा किए गए त्याग और बलिदान की कहानी को प्रस्तुत करता है।
Step 2: पंचम सर्ग की कथा।
- पंचम सर्ग में नायक ने अपने स्वार्थों को त्यागकर समाज के लिए अपने कर्तव्यों का पालन किया।
- उसे अपने आदर्शों से समझौता करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी, और उसने संघर्ष को अपनी शक्ति समझा।
- सर्ग में नायक ने कठिन परिस्थितियों में भी अपने मार्गदर्शन से समाज को सही दिशा दी।
Step 3: निष्कर्ष।
यह सर्ग हमें यह सिखाता है कि त्याग, संघर्ष और कर्तव्यनिष्ठा से ही व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
Quick Tip: घटनाओं के उत्तर में पृष्ठभूमि, घटना का विवरण और उसका महत्व अवश्य लिखें।
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य के 'अयोध्या सर्ग' की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
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'श्रवणकुमार' खंडकाव्य का अयोध्या सर्ग में श्रवणकुमार के चरित्र को प्रमुख रूप से प्रदर्शित किया गया है। इस सर्ग में श्रवणकुमार के निःस्वार्थ और पवित्र कार्यों का विवरण दिया गया है। उनके माता-पिता के प्रति श्रद्धा और सेवा की भावना को दर्शाते हुए, वह अयोध्या जाते हैं। इस सर्ग में उनके द्वारा अपने वृद्ध माता-पिता को तीर्थयात्रा पर ले जाने के लिए किए गए संघर्ष और बलिदान को प्रमुखता से दिखाया गया है। Quick Tip: काव्य का कथानक लिखते समय पात्रों की भूमिका, उनके संघर्ष और कार्यों पर ध्यान दें।
'श्रवणकुमार' खंडकाव्य के आधार पर श्रवणकुमार का चरित्र चित्रण कीजिए।
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'श्रवणकुमार' खंडकाव्य में श्रवणकुमार को एक पवित्र और निःस्वार्थ व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनका चरित्र एक आदर्श पुत्र के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा के लिए हर प्रकार का कष्ट सहने के लिए तैयार रहता है। उनका समर्पण और श्रद्धा माता-पिता के प्रति अत्यंत प्रेरणादायक है। उनकी निष्ठा और त्याग ने उन्हें एक आदर्श रूप में प्रतिष्ठित किया है। Quick Tip: किसी भी पात्र का चरित्र चित्रण करते समय, उसके गुण, कार्य और प्रेरणा को स्पष्ट करना चाहिए।
दिये गए संस्कृत गद्यांशों में से किसी एक का संबंधित हिंदी में अनुवाद कीजिए।
धन्योऽयं भारतदेशः यत्र समुल्लसति जनमानस पावनी, भव्यभावोद्बोधिनी, शब्द सन्दोह-प्रसविनी सुरभारती। विद्यमानेषु निखिलेष्वपि वाङ्मयेषु अस्याः वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्नं च वर्तते। इयमेव भाषा संस्कृतनाम्नापि लोके प्रसिद्धा अस्ति। अस्माकं रामायणमहाभारतात्यैतिहासिक ग्रन्थाः, चत्वारो वेदाः, सर्वाः उपनिषदः। अष्टादशपुराणानि अन्यानि च महाकाव्यान्यादीनि अस्यामेव भाषायां लिखितानि सन्ति।
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संस्कृत गद्यांश का हिंदी में अनुवाद:
"धन्य हैं भारतवर्ष के वे लोग, जो समूलस्ति जनमानस पवनी, भव्यभावोत्भावनी, शब्द संदोह प्रसविनी सुरार्ति। विद्यार्थीजन निखिलश्रेष्ठ आश्रय वद्यमं सर्वश्रेष्ठं संपन्नं च वर्तते। यमेव भाषा संस्कृतमयी लोके प्रश्ना अस्ति। अस्माकं रामायणमहाभारतादितिहासिक यत्न:, चतुरो वेद:, सर्व: उपनिषद्।" Quick Tip: संस्कृत गद्यांश का अनुवाद करते समय, वाक्य संरचना और भावों को ध्यान से समझें ताकि सही अर्थ प्रदान किया जा सके।
दिए गए श्लोकों में से किसी एक का सन्दर्भ हिंदी में अनुवाद कीजिए:
परोषे कार्यं न करने परेण प्रियवदनं।
वर्जयतं मित्रं विपदं पयोधर्मं।
अथवा
उदिति सूर्य तापस्तात्क्षाणं अस्तमिति च।
संपत्तां च विपत्तां च महात्मिकं कर्तव्य।
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प्रथम श्लोक का अनुवाद:
"परोषे कार्यं न करने परेण प्रियवदनं" का अनुवाद है:
"दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप न करें और स्वयं की सही बातों को कहें।"
"वर्जयतं मित्रं विपदं पयोधर्मं" का अनुवाद है:
"मित्रों को ध्यान से चुनें और विपत्ति से बचने के लिए धर्म का पालन करें।"
द्वितीय श्लोक का अनुवाद:
"उदिति सूर्य तापस्तात्क्षाणं अस्तमिति च" का अनुवाद है:
"सूर्य का उदय होते ही गर्मी की शुरुआत होती है।"
"संपत्तां च विपत्तां च महात्मिकं कर्तव्य" का अनुवाद है:
"सम्पत्ति और विपत्ति दोनों ही महात्मा का परिक्षण करते हैं।" Quick Tip: संस्कृत श्लोकों का अनुवाद करते समय शब्दों के गहरे अर्थ और उनका सटीक संदर्भ समझना बहुत महत्वपूर्ण होता है।
निम्नलिखित मुहावरों और लोकवक्तियों में से किसी एक का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए:
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(i) अपना उल्टा सीधा करना
अर्थ: कोई काम बिगाड़ने या उलझाने का प्रयास करना।
वाक्य प्रयोग: उसने अपनी शादी के काम को अपना उल्टा सीधा कर दिया।
(ii) ईद का चाँद होना
अर्थ: बहुत मुश्किल से या बहुत ही दुर्लभ होना।
वाक्य प्रयोग: हमारे ऑफिस में कोई अच्छा इंसान ईद का चाँद है।
(iii) काला अक्षर भैंस बराबर
अर्थ: जो लोग पढ़े-लिखे नहीं होते, उनके लिए कड़ी मेहनत का काम असंभव होता है।
वाक्य प्रयोग: उसे गणित के सवालों में काला अक्षर भैंस बराबर लगता है। Quick Tip: मुहावरों और लोकवक्तियों का प्रयोग वाक्यों में करना किसी संदर्भ के व्याख्यान को समझाने में मदद करता है।
निम्नलिखित शब्दों के संधि-विच्छेद के सही विकल्प का चयन कीजिए:
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Step 1: Understanding the word 'रामेश'.
'रामेश' एक संस्कृत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद 'रमे' और 'ईश' से किया जाता है। 'ईश' का अर्थ है भगवान या स्वामी।
Step 2: Option analysis.
- (A) रमा + ईश: यह गलत है क्योंकि 'रमा' और 'ईश' दोनों अलग-अलग शब्द हैं।
- (B) रमा + एष: यह भी गलत है, क्योंकि 'रमा' का संधि-विच्छेद 'रमे' होना चाहिए।
- (C) रमा + इष: यह भी गलत है।
- (D) रमे + इश: यह सही संधि-विच्छेद है।
Step 3: Conclusion.
सही उत्तर है – (D) रमे + इश:।
Quick Tip: संधि-विच्छेद में शब्दों के मेल से नए अर्थ निकलते हैं, इसलिए सही संधि का ज्ञान होना जरूरी है।
'कवीन्द्र:' का सही संधि-विच्छेद है
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Step 1: Understanding the word 'कवीन्द्र'.
'कवीन्द्र' शब्द का संधि-विच्छेद 'कवी' और 'इन्द्र' है, जहां 'इन्द्र' देवता के रूप में प्रयोग होता है।
Step 2: Option analysis.
- (A) कवी + इन्द्र: यह सही संधि-विच्छेद है, क्योंकि 'कवी' का अर्थ है कवि और 'इन्द्र' का अर्थ है देवता।
- (B) कवी + ईन: यह गलत है, क्योंकि 'इन्द्र' का रूप 'ईन' नहीं होता।
- (C) कवी + एन्द्र: यह गलत है।
- (D) कवी + एंन्द्र: यह भी गलत है।
Step 3: Conclusion.
सही उत्तर है – (A) कवी + इन्द्र:।
Quick Tip: संधि-विच्छेद में 'इन्द्र' का अर्थ आमतौर पर देवता के रूप में लिया जाता है।
'गायक:' में सही संधि-विच्छेद है
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Step 1: Understanding the word 'गायक'.
'गायक' शब्द का संधि-विच्छेद 'गाय' और 'आक्त' से किया जाता है। 'आक्त' का अर्थ है किसी को करने वाला।
Step 2: Option analysis.
- (A) गै + अंक: यह गलत है क्योंकि 'गै' का संधि-विच्छेद नहीं होता।
- (B) गाय + अंकि: यह भी गलत है, 'अंकि' नहीं होता।
- (C) गाय + अक: यह गलत है क्योंकि सही संधि 'आक्त' होनी चाहिए।
- (D) गाय + आक्त: यह सही संधि-विच्छेद है।
Step 3: Conclusion.
सही उत्तर है – (D) गाय + आक्त:।
Quick Tip: संधि-विच्छेद में, शब्दों के संधि मिलाकर नए अर्थ की रचना होती है। 'आक्त' का अर्थ होता है जो कार्य करता है।
'आत्मना' शब्द में विशिष्ट और वचन है
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Step 1: Understanding the word 'आत्मना'.
'आत्मना' शब्द में द्वितीया विभक्ति और द्विवचन होता है।
Step 2: Option analysis.
- (A) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन: यह सही है क्योंकि 'आत्मना' में द्वितीय विभक्ति का प्रयोग होता है और द्विवचन का रूप है।
- (B) पञठी विभक्ति, बहुवचन: यह गलत है। पञठी विभक्ति नहीं होती।
- (C) तृतीय विभक्ति, एकवचन: यह गलत है क्योंकि 'आत्मना' में तृतीय विभक्ति का प्रयोग नहीं होता।
- (D) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन: यह वही सही उत्तर है, जैसा कि विकल्प (A) में है।
Step 3: Conclusion.
सही उत्तर है – (A) द्वितीया विभक्ति, द्विवचन।
Quick Tip: विभक्ति और वचन को पहचानने से शब्दों के रूप का सही प्रयोग समझ सकते हैं।
निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो सही अर्थ लिखिए:
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- (A) गति: गति का एक अर्थ होता है ‘आंदोलन’ और दूसरा अर्थ ‘प्रवाह’ हो सकता है।
- (B) तीर्थ: तीर्थ का मतलब ‘पवित्र स्थान’ होता है, इसका दूसरा अर्थ नहीं हो सकता।
- (C) प्रयोदर: यह शब्द गलत है और इसका कोई अन्य अर्थ नहीं हो सकता।
Final Answer: \[ \boxed{(A) गति} \] Quick Tip: In Hindi, one word can have multiple meanings depending on its usage in context. Make sure to understand the context while picking meanings.
निम्नलिखित में से किसी दो वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए:
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(i) व्यक्ति और समाज का घनिष्ठ संबंध है।
(ii) बेटी तो पराया धन होती है।
(iii) चार कानपुर के व्यक्ति बोले।
शुद्ध वाक्य: चार कानपुरवासी बोले।
(iv) दरिद्रता जैसी शत्रु दूसरी नहीं है।
शुद्ध वाक्य: दरिद्रता जैसी शत्रु दूसरी नहीं होती। Quick Tip: सही वाक्य शुद्धि में शब्दों का सही चयन और व्याकरण की समझ आवश्यक है।
'श्रृंगार रस' अथवा 'वीर' रस का लक्षण सहित एक उदाहरण लिखिए।
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श्रृंगार रस:
श्रृंगार रस प्रेम, सौंदर्य और आकर्षण का रस है। इसमें प्रेमी-प्रेमिका के बीच के संबंधों, सौंदर्य और आकर्षण की भावनाओं का चित्रण होता है। यह रस प्रेम और संबंधों की मधुरता को दर्शाता है। इस रस में माधुर्य, रचनात्मकता और भावनाओं की गहराई होती है।
लक्षण:
- प्रेम और आकर्षण की भावनाएँ।
- शृंगारी भावनाओं का आदान-प्रदान।
- सौंदर्य और प्रेम का आदान-प्रदान।
उदाहरण:
"तुम्हारे नयनों में जो जादू है, वह प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक है।"
वीर रस:
वीर रस शौर्य, साहस और संघर्ष का रस है। इसमें नायक की वीरता, पराक्रम और साहस को चित्रित किया जाता है। वीर रस में संघर्ष और बलिदान की भावनाएँ होती हैं। यह रस युद्ध, साहस और दृढ़ता को व्यक्त करता है।
लक्षण:
- साहस और वीरता की भावना।
- संघर्ष और शौर्य का चित्रण।
- बलिदान और पराक्रम को प्रदर्शित करना।
उदाहरण:
"युद्ध भूमि में वीरता का प्रतीक बनकर उसने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन उसने कभी अपने देश के सम्मान से समझौता नहीं किया।" Quick Tip: रसों के उत्तर में उनके लक्षणों और भावनाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख करें और उदाहरण में पात्रों के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करें।
'उत्प्रेक्षा' अलंकार अथवा 'उपमा' अलंकार की परिभाषा देते हुए एक उदाहरण लिखिए।
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उत्प्रेक्षा अलंकार:
उत्प्रेक्षा अलंकार वह अलंकार है, जिसमें किसी वस्तु या व्यक्ति का गुण किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से जोड़ा जाता है। इस अलंकार में दोनों का तुलनात्मक रूप में वर्णन किया जाता है। यह तुलना किसी प्राकृतिक या मनोवैज्ञानिक गुण से होती है।
उदाहरण:
"उसकी आँखें चाँद की तरह चमक रही थीं।"
यहाँ पर आँखों की चमक को चाँद की चमक से जोड़ा गया है, जिससे आँखों के सुंदरता और चमक को उजागर किया गया है।
उपमा अलंकार:
उपमा अलंकार में एक वस्तु या व्यक्ति को किसी दूसरी वस्तु या व्यक्ति से उसकी विशेषता के आधार पर तुलना की जाती है। इसमें 'की तरह', 'जैसे' जैसे शब्दों का प्रयोग होता है।
उदाहरण:
"वह लड़का सिंह की तरह बहादुर है।"
यहाँ 'सिंह की तरह' के द्वारा लड़के की वीरता का वर्णन किया गया है। Quick Tip: उत्प्रेक्षा अलंकार में कोई गुण किसी अन्य वस्तु के गुण से जोड़ा जाता है, जबकि उपमा अलंकार में तुलना का साफ तौर पर उल्लेख होता है।
'कुण्डलिया' छन्द अथवा 'दोहा' छन्द का लक्षण और एक उदाहरण लिखिए।
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कुण्डलिया छन्द:
कुण्डलिया छन्द एक विशेष प्रकार का छन्द है जिसमें प्रत्येक चरण (पंक्ति) के अंत में यति (विश्राम) होता है। इस छन्द का प्रयोग हिंदी कविता और भक्ति काव्य में विशेष रूप से किया जाता है। इसमें 8 या 16 मात्राएँ होती हैं और लय अत्यंत मधुर होती है।
लक्षण:
- प्रत्येक चरण में 8 या 16 मात्राएँ होती हैं।
- काव्य के अंत में यति (विश्राम) होता है।
- मधुर लय और तात्कालिक प्रभाव होता है।
उदाहरण:
"सोमवारी के दिन के साथ,
सुख-संपत्ति बढ़े साथ।"
दोहा छन्द:
दोहा छन्द का उपयोग मुख्य रूप से हिंदी साहित्य में किया जाता है। यह छन्द दो पंक्तियों में बँटा होता है, जिसमें पहली पंक्ति में 13 मात्राएँ और दूसरी पंक्ति में 11 मात्राएँ होती हैं। इस छन्द की लय भी बहुत मधुर होती है।
लक्षण:
- दो पंक्तियाँ होती हैं।
- पहली पंक्ति में 13 मात्राएँ होती हैं।
- दूसरी पंक्ति में 11 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
"बुरा जो देखन मैं चला,
बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा आपना,
तो मुझसे बुरा न कोय।" Quick Tip: कुण्डलिया छन्द में प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है, जबकि दोहा छन्द में 13 और 11 मात्राओं की संरचना होती है।
किसी विद्यालय के प्रधानाचार्य को सहायक अध्यापक की भर्ती हेतु एक पत्र लिखिए।
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प्रति,
प्रधानाचार्य,
(विद्यालय का नाम),
(विद्यालय का पता),
(शहर का नाम),
विषय: सहायक अध्यापक की भर्ती हेतु आवेदन पत्र।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं, (आपका नाम), (आपकी शैक्षिक योग्यता) के साथ (विषय का नाम) का (कक्षा स्तर) का अध्यापक, आपके विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद के लिए आवेदन करना चाहता/चाहती हूँ। मुझे (विद्यालय का नाम) में कार्य करने का अत्यधिक अवसर मिलेगा। मैं विद्यालय के नियमों और शर्तों के तहत अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार हूँ।
आपसे विनम्र अनुरोध है कि मेरी आवेदन पत्र को ध्यानपूर्वक स्वीकार करें। मुझे विश्वास है कि आप मुझे इस पद के लिए उपयुक्त पाएंगे।
धन्यवाद।
आपका विश्वासी,
(आपका नाम)
(पता)
(मोबाइल नंबर)
तारीख: (तारीख) Quick Tip: पत्र लिखते समय संक्षिप्त और औपचारिक भाषा का प्रयोग करें।
किसी बैंक के प्रबंधक को अपने अध्यायन हेतु अल्प ब्याज में ऋण देने के लिए एक पत्र लिखिए।
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प्रति,
प्रबंधक,
(बैंक का नाम),
(बैंक का पता),
(शहर का नाम),
विषय: अध्ययन हेतु ऋण के लिए आवेदन पत्र।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं, (आपका नाम), (कोर्स/विभाग का नाम) में अध्ययनरत छात्र/छात्रा हूँ। मुझे अपनी शिक्षा के लिए कुछ वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। मैं आपके बैंक से अध्ययन हेतु ऋण प्राप्त करने के लिए आवेदन कर रहा/रही हूँ। कृपया मुझे अल्प ब्याज दर पर ऋण देने का कष्ट करें, ताकि मैं अपनी शिक्षा को जारी रख सकूँ।
आपसे निवेदन है कि कृपया मेरी इस आवेदन को शीघ्र स्वीकृति प्रदान करें।
धन्यवाद।
आपका विश्वासी,
(आपका नाम)
(पता)
(मोबाइल नंबर)
तारीख: (तारीख) Quick Tip: ऋण आवेदन पत्र में स्पष्ट रूप से वित्तीय आवश्यकता, ऋण की राशि और उद्देश्य को व्यक्त करें।
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर अपनी भाषा-शैली में निबंध लिखिए:
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(i) आज़ादी का अमृत महोत्सव:
भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्षों को मान्यता देने के लिए 2022 में “आज़ादी का अमृत महोत्सव” मनाया गया। इस महोत्सव का उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता संग्राम के वीर शहीदों और उनके योगदान को सम्मानित करना और नई पीढ़ी को उनके बलिदानों से प्रेरित करना है। यह महोत्सव न केवल भारतीय इतिहास को याद करता है, बल्कि नागरिकों को अपने देश के प्रति कर्तव्यों को भी समझाता है। देशभर में सांस्कृतिक कार्यक्रम, विचार-विमर्श, और विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ आयोजित की गईं। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को उनके स्वतंत्रता संग्राम की महिमा और अपने देश की संप्रभुता का महत्व बताना है। यह महोत्सव भारतीय समाज की एकता और अखंडता को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर बन गया है।
विशेषताएँ:
1. इस महोत्सव के माध्यम से भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
2. युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम की गाथाओं से परिचित कराया गया।
3. इस महोत्सव में विभिन्न सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक गतिविधियों को प्रमुखता दी गई।
4. यह महोत्सव भारत के इतिहास, संस्कृति और धरोहर को पुनः जागरूक करने का एक सशक्त मंच बना।
(ii) नई शिक्षा नीति : 2020 - गुण-दोष
नई शिक्षा नीति 2020, भारतीय शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिए प्रस्तुत की गई है। यह नीति छात्रों के समग्र विकास को प्राथमिकता देती है और छात्रों को सीखने की नई दिशा दिखाती है। नई नीति में 5+3+3+4 प्रणाली का प्रस्ताव है, जिसमें बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक गुणवत्तापूर्ण और सुलभ शिक्षा मिल सकेगी। यह नीति डिजिटल शिक्षा, कौशल आधारित शिक्षा, और भाषा विज्ञान जैसे क्षेत्रों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
नई शिक्षा नीति के गुण:
1. समग्र विकास: नई नीति में छात्रों के समग्र विकास पर जोर दिया गया है। इसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को प्राथमिकता दी गई है।
2. कौशल आधारित शिक्षा: छात्रों को केवल किताबों तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि उन्हें व्यावसायिक और तकनीकी कौशल भी दिए जाएंगे, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
3. डिजिटल शिक्षा का समावेश: डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा दिया गया है, जिससे ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में छात्रों को भी उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मिल सकेगी।
नई शिक्षा नीति के दोष:
1. कार्यक्रमों का कार्यान्वयन: नई नीति को कार्यान्वित करने में राज्यों को अपनी योजनाओं के अनुसार बदलाव करने की छूट दी गई है, जिससे समानता की कमी हो सकती है।
2. वित्तीय संसाधनों की कमी: नई नीति का प्रभावी रूप से कार्यान्वयन करने के लिए सरकार को पर्याप्त वित्तीय संसाधन जुटाने होंगे, जो एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है।
3. ग्रामीण क्षेत्रों में समस्याएँ: ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी के कारण इस नीति का प्रभाव सीमित हो सकता है।
(iii) पर्यावरण संरक्षण: आवश्यकता और महत्व
पर्यावरण संरक्षण आज के समय में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है। तेजी से बढ़ते प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग से पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र संकट में आ गया है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के कारण प्रकृति असंतुलित हो रही है। इसके परिणामस्वरूप न केवल पर्यावरण बल्कि मानवता भी प्रभावित हो रही है। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
आवश्यकता:
1. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: जल, हवा, और भूमि जैसे संसाधनों का अत्यधिक दोहन न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि सभी जीवों के लिए हानिकारक हो सकता है।
2. जलवायु परिवर्तन से निपटना: बढ़ते तापमान और अनियमित मौसम की घटनाओं से बचने के लिए हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करना आवश्यक है।
3. जैव विविधता का संरक्षण: प्राकृतिक जैविक विविधता को बनाए रखना पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए जरूरी है।
(iv) मेरा प्रिय लेखक
मेरा प्रिय लेखक रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ ठाकुर) हैं। वे केवल एक महान कवि नहीं, बल्कि एक श्रेष्ठ विचारक, संगीतकार और चित्रकार भी थे। उनके द्वारा रचित साहित्य ने भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरी छाप छोड़ी। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ जैसे “गीतांजलि”, “रचनाकारों की यात्रा” और “नौकादुबी” आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। उनका लेखन भारतीय जीवन, सांस्कृतिक मूल्यों और आध्यात्मिकता के साथ गहरे संबंधों को उजागर करता है। उनके विचार और रचनाएँ हमें आत्मनिर्भरता, समर्पण और भक्ति का संदेश देती हैं।
(v) वर्तमान समाज में नारी की स्थिति
वर्तमान समाज में नारी की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं। महिला अधिकारों की रक्षा, शिक्षा और रोजगार में समान अवसर की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। नारी अब हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है, चाहे वह राजनीति हो, विज्ञान हो, या खेल। फिर भी, कुछ क्षेत्रों में नारी का शोषण, हिंसा और भेदभाव जारी है। समाज को पूरी तरह से नारी को बराबरी का दर्जा देने की दिशा में और काम करने की आवश्यकता है। Quick Tip: निबंध लिखते समय, हर विषय पर अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करें और तथ्यात्मक जानकारी का सही तरीके से उल्लेख करें।



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