The Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad (UPMSP) held the Class 10 Sanskrit exam (Code 818-DU) in the designated session. The paper, conducted in Sanskrit, featured a mix of multiple-choice and descriptive questions. An answer key was provided for students to verify their responses and estimate scores.
UP Board Class 10 Sanskrit (Code 818 DU) Question Paper with Answer Key
UP Board Class 12 Sanskrit (Code 818 DU) Question Paper with Solutions PDF | Download PDF | Check Solutions |
उक्त गद्यांश का शीर्षक है --
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इस प्रश्न में गद्यांश का शीर्षक पूछा गया है। गद्यांश का शीर्षक उसके विषय, लेखक और उनके योगदान से संबंधित होता है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर (रवीन्द्रनाथ टैगोर), जिन्हें विश्वकवि कहा जाता है, भारतीय साहित्य में एक महान कवि, लेखक और संगीतकार थे। उनका साहित्य न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। उनके काव्य और साहित्यिक योगदान को ध्यान में रखते हुए, "विश्वकविः रवीन्द्रः" शीर्षक सही है क्योंकि रवीन्द्रनाथ टैगोर को साहित्यिक क्षेत्र में उनके योगदान के कारण यह उपाधि दी गई थी। इसलिए, गद्यांश का शीर्षक "विश्वकविः रवीन्द्रः" ही होना चाहिए। Quick Tip: गद्यांश का शीर्षक पहचानने के लिए उस लेख के लेखक, उनके कार्य और प्रभाव का अध्ययन करें।
नैतिकतायाः प्राणभूतं तत्वं किम् ?
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नैतिकता का अर्थ है सही और गलत का भेद जानना और उसे अपनाना। नैतिकता का मूल उद्देश्य केवल अपनी भलाई के बारे में नहीं होता, बल्कि यह समाज और दूसरों के भले के लिए काम करने के बारे में होता है। जब हम कहते हैं "नैतिकतायाः प्राणभूतं तत्वं परेषां हितम्", तो इसका अर्थ है कि नैतिकता का वास्तविक उद्देश्य दूसरों की भलाई करना है, न कि सिर्फ खुद के लिए लाभ प्राप्त करना। नैतिकता हमें यह सिखाती है कि हम अपनी खुशी और सफलता के लिए दूसरों की खुशी और सफलता को महत्व दें। यह सभी प्रकार की अच्छाई और सद्गुणों की नींव है।
उदाहरण के तौर पर, अगर एक व्यक्ति केवल अपने फायदे के लिए काम करता है, तो वह नैतिक नहीं है। लेकिन यदि वह अपने काम से दूसरों की मदद करता है और उनके भले के लिए कार्य करता है, तो वह नैतिक व्यक्ति कहलाएगा। Quick Tip: नैतिकता का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि व्यक्ति का कार्य समाज और दूसरों के भले के लिए होना चाहिए।
ज्योतिराबगोविन्दरावइत्याख्यस्य पत्त्याः किं नाम ?
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यह प्रश्न एक ऐतिहासिक व्यक्ति से संबंधित है। ज्योतिराब गोविन्दराव, जिन्हें ज्योतिबा बाई के नाम से भी जाना जाता है, एक महान समाज सुधारक थे। उनका योगदान विशेष रूप से शिक्षा और समाज में समानता लाने में था। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया। उनकी पूरी जिंदगी समाज के सुधार में समर्पित थी।
इसलिए, सही उत्तर "ज्योतिबा बाई" है, क्योंकि वह एक प्रमुख समाज सुधारक थे जिनका नाम उनके कार्यों और विचारों के कारण प्रसिद्ध है। Quick Tip: ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के नाम और उनके योगदान को पहचानने के लिए उनकी जीवनकथा और समाज पर प्रभाव का अध्ययन करें।
पार्थः किं न अपश्यत् ?
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यह प्रश्न महाभारत के एक महत्वपूर्ण प्रसंग से जुड़ा है, जब अर्जुन (पार्थ) को द्रोणाचार्य को मारने के आदेश दिए गए थे। महाभारत के युद्ध के दौरान, अर्जुन की दृष्टि कमजोर हो गई थी और वह पूरी तरह से भ्रमित हो गए थे। एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने द्रोणाचार्य को नहीं देखा था।
यह दृश्य अर्जुन के मानसिक स्थिति को दर्शाता है, क्योंकि वह अपनी गुरु को देखकर भी पहचान नहीं पा रहे थे। इसीलिए उत्तर "द्रोणम्" है, क्योंकि अर्जुन ने द्रोणाचार्य को युद्ध के मैदान में नहीं देखा। Quick Tip: महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन की मानसिक स्थिति कई बार युद्ध के परिणाम को प्रभावित करती है।
विविधबोधबुधैः का सेव्यते ?
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यह प्रश्न भारतीय संस्कृति से संबंधित है, जिसमें देवी सरस्वती का उल्लेख किया गया है। 'विविधबोधबुधैः' का तात्पर्य है, वह ज्ञान और बुद्धिमत्ता जो विभिन्न प्रकार से अर्जित की जाती है। यह ज्ञान और बुद्धिमत्ता सरस्वती देवी से प्राप्त होती है। सरस्वती देवी, जो कि कला, संगीत, और ज्ञान की देवी मानी जाती हैं, उन्हें 'विविधबोधबुधैः' का स्रोत माना जाता है।
इसलिए, सही उत्तर 'सरस्वती' है, क्योंकि वह विद्या, कला और संगीत की देवी हैं और ज्ञान प्राप्ति के प्रतीक हैं। Quick Tip: भारत में सरस्वती देवी का सम्मान ज्ञान और विद्या के प्रतीक के रूप में किया जाता है।
सदाचारवान्नरः कति वर्षाणि जीवति ?
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इस प्रश्न में सदाचार और दीर्घायु के बारे में पूछा गया है। भारतीय संस्कृति में यह विश्वास है कि जो व्यक्ति सदाचार का पालन करता है, उसकी आयु लंबी होती है। सदाचार से तात्पर्य अच्छे आचरण, सत्य बोलना, दूसरों का आदर करना और समाज के लिए अच्छा काम करना है।
सदाचार के पालन से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं, जिससे व्यक्ति अधिक समय तक जीवन यापन कर सकता है। शतायु, अर्थात 100 वर्षों तक जीवित रहना, भारतीय संस्कृति में आदर्श माना जाता है। इस प्रकार, सही उत्तर "शतम्" है। Quick Tip: सदाचार का पालन करने से न केवल मानसिक संतुलन बनता है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है, जिससे लंबी उम्र मिलती है।
ज्ञानं लब्ध्वा काम् अधिगच्छति मानवः ?
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यह प्रश्न ज्ञान के प्रभाव और उसके परिणाम के बारे में है। जब मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है, तो उसका उद्देश्य जीवन में शांति और संतोष प्राप्त करना होता है।
ज्ञान का वास्तविक अर्थ है आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान, जो मनुष्य को जीवन के रहस्यों को समझने और शांति प्राप्त करने में मदद करता है। इस प्रकार, ज्ञान से शांति और संतुलन आता है। शांति का अनुभव करने के लिए व्यक्ति को बाहरी संसार के तनावों से परे होकर अपने अंदर की शांति को पहचानना होता है। इसलिए, सही उत्तर "शान्तिम्" है। Quick Tip: ज्ञान केवल बाहरी दुनिया को समझने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह मन की शांति और संतुलन का भी साधन है।
गान्धिनः पितुः किं नाम ?
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महात्मा गांधी का वास्तविक नाम "मोहनदास करमचन्द गांधी" था। उनके पिताजी का नाम "करमचन्द गांधी" था। यह सवाल गांधी जी के पिताजी का नाम पूछता है, जो एक न्यायप्रिय और ईमानदार व्यक्ति थे। गांधी जी के पिता का जीवन बहुत ही साधारण था, लेकिन उनके सिद्धांतों और कर्मों ने गांधी जी पर गहरा प्रभाव डाला, जो उन्हें एक महान नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बना।
इसलिए, सही उत्तर "करमचन्दगान्धी" है। Quick Tip: महात्मा गांधी का पूरा नाम "मोहनदास करमचन्द गांधी" था, जो उनके पिता करमचन्द गांधी से प्रभावित थे।
नागानन्दनाटकरचना केन कृता ?
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'नागानन्द' एक प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसे सम्राट हर्षवर्धन ने रचा था। हर्षवर्धन के शासनकाल में साहित्य और कला का बहुत महत्व था, और उन्होंने कई नाटक और काव्य रचनाएं कीं। 'नागानन्द' नाटक भारतीय संस्कृति और धर्म पर आधारित है, और इसमें भगवान शिव की पूजा का प्रसंग है।
इसलिए, सही उत्तर "हर्षवर्धनेन/हर्षेण" है। Quick Tip: साहित्यिक रचनाओं को उनके लेखक से जोड़कर याद रखें, खासकर जब वह ऐतिहासिक व्यक्तित्व हों।
रक्तदानं किं ददाति ?
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रक्तदान एक अत्यधिक पुण्यकारी कार्य है, जो किसी के जीवन को बचा सकता है। जब एक व्यक्ति रक्तदान करता है, तो वह दूसरे व्यक्ति के जीवन को बचाने में मदद करता है। रक्तदान से केवल शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार नहीं होता, बल्कि यह समाज में मानवता और करुणा का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
इसलिए, रक्तदान जीवन देने के समान है, और सही उत्तर "जीवनम्" है। Quick Tip: रक्तदान एक दयालुता और सेवा का कार्य है, जो किसी की जिंदगी बचा सकता है।
"यण्" प्रत्याहार के वर्ण हैं-
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"यण्" प्रत्याहार संस्कृत व्याकरण में एक विशेष प्रत्याहार है, जिसमें केवल कुछ विशेष वर्णों को शामिल किया जाता है। प्रत्याहार का अर्थ है किसी विशेष वर्ण समूह को संक्षेप में व्यक्त करना। "यण्" प्रत्याहार के अंतर्गत वे सभी वर्ण आते हैं जो व और ल से संबंधित होते हैं।
इसलिए, सही उत्तर "व्ल्" है, क्योंकि यह प्रत्याहार में सम्मिलित वर्णों का समूह है। Quick Tip: प्रत्याहार का उद्देश्य वर्णों को संक्षेपित रूप में रखना होता है, जो संपूर्ण वर्णमाला का प्रतिनिधित्व करते हैं।
"घ्" का उच्चारण स्थान है -
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"घ्" का उच्चारण कंठ से होता है। संस्कृत में वर्णों का उच्चारण विभिन्न स्थानों पर होता है, जैसे ओष्ठ (होंठ), तालु (तालु), कंठ (गला), और मूर्धा (सिर)। "घ्" ध्वनि को गले (कंठ) से उच्चारित किया जाता है, यही कारण है कि सही उत्तर कंठ है। Quick Tip: संस्कृत के वर्णों के उच्चारण स्थानों को समझना व्याकरण की मूलभूत समझ के लिए जरूरी है।
"अहं गच्छामि" में सन्धि है -
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"अहं गच्छामि" में सन्धि की प्रक्रिया परसवर्ण सन्धि की होती है। इस सन्धि में एक शब्द के अंतिम वर्ण और अगले शब्द के पहले वर्ण के बीच ध्वन्यात्मक परिवर्तन होता है। यहाँ "अहं" और "गच्छामि" के बीच "अं" और "ग" के मिलन से परसवर्ण सन्धि होती है। Quick Tip: सन्धि में वर्णों का मिलन होता है, जिससे ध्वन्यात्मक परिवर्तन होते हैं, जैसे कि परसवर्ण सन्धि में।
"छात्रश्चलति" का सन्धि विच्छेद है --
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"छात्रश्चलति" शब्द में सन्धि विच्छेद किया जाता है। संस्कृत में जब "श्" ध्वनि "च" ध्वनि के साथ मिलती है, तो उसे "छ" के रूप में उच्चारित किया जाता है। "छात्र" और "चलति" के बीच सन्धि में यही परिवर्तन हुआ है। इस प्रकार, सन्धि विच्छेद "छात्रश् + चलति" होगा। Quick Tip: सन्धि विच्छेद करते समय ध्वन्यात्मक परिवर्तनों पर ध्यान देना आवश्यक होता है।
"राजधि पद किस विभक्ति एवं वचन का रूप है ?
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"राजधि" शब्द संस्कृत में तृतीया विभक्ति (अर्थात् "के लिए") और एकवचन में प्रयोग होता है। तृतीया विभक्ति के प्रयोग में किसी क्रिया के कारण लाभ या उद्देश्य को व्यक्त किया जाता है, और एकवचन में इसका अर्थ होता है "राज्य के लिए"। Quick Tip: विभक्तियों के प्रयोग को समझने के लिए उनके अर्थ और संदर्भ का सही तरीके से अध्ययन करें।
"नदी" पद का सप्तमी विभक्ति बहुवचन का रूप है-
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"नदी" शब्द का सप्तमी विभक्ति बहुवचन में रूप "नदीषु" होता है। सप्तमी विभक्ति का प्रयोग स्थान, कारण या उपकरण को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। जब हम बहुवचन में नदी के बारे में बात करते हैं, तो "नदीषु" रूप का प्रयोग करते हैं। Quick Tip: सप्तमी विभक्ति के बहुवचन रूपों को पहचानने के लिए शब्दों के रूपों का सही अध्ययन करें।
"स्थास्यति" रूप है-
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"स्थास्यति" रूप संस्कृत में लट् लकार (वर्तमान काल) का रूप है, जो उत्तम पुरुष (हम) और बहुवचन में प्रयोग होता है। यह रूप किसी क्रिया के होने का संकेत करता है। Quick Tip: लट् लकार का प्रयोग वर्तमान काल में क्रिया के रूप में किया जाता है।
"वसेत् रूप किस लकार का है ?"
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"वसेत्" रूप संस्कृत के लङ् लकार (past tense) का रूप है। लङ् लकार का उपयोग क्रियाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है, जो किसी निश्चित समय में पूरी हुई होती हैं। "वसेत्" का अर्थ है "वह रहता है" या "वह निवास करता है", जो क्रिया के समाप्त होने या निवास करने के भाव को व्यक्त करता है। Quick Tip: लकार का चयन करते समय, यह देखना जरूरी है कि क्रिया वर्तमान, भूतकाल या भविष्यकाल में है।
"उपगङ्गम्" में समास है-
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"उपगङ्गम्" शब्द में अव्ययीभाव समास है। अव्ययीभाव समास वह समास है जिसमें अव्यय (जो नहीं बदलता है, जैसे, "उप") और संज्ञा या क्रिया शब्द मिलकर नया अर्थ बनाते हैं। "उप" (जो एक उपसर्ग है) और "गङ्ग" (जो एक संज्ञा है) का मिलकर "उपगङ्गम्" बनता है, जिसका अर्थ है "गंगा के पास" या "गंगा से संबंधित"। Quick Tip: अव्ययीभाव समास में, अव्यय शब्द किसी संज्ञा या क्रिया के साथ जुड़कर नया अर्थ देता है।
"त्रिभुवनम्" का समास विग्रह है-
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"त्रिभुवनम्" शब्द का समास विग्रह "त्रयाणां भुवनानां समाहारः" है। यह शब्द "त्रय" (तीन) और "भुवन" (लोक) के मिलन से बना है, जिसका अर्थ है "तीन लोकों का समाहार" या "तीनों दुनिया का संग्रह"। यह समास त्रय (तीन) और भुवन (लोक) के मिलकर त्रयाणां भुवनानां (तीनों लोकों) के समाहार (संग्रह) को व्यक्त करता है। Quick Tip: समास विग्रह करते समय, शब्दों के अर्थ और उनकी संयुक्त संरचना पर ध्यान दें।
निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
(क) एतामलौकिकी वाचमुपश्रुत्य गोविन्दपादः तमसाधारणं जने मन्वा तस्यै संन्यासदीक्षां ददौ । गुरोः गोविन्दपादादेव वेदान्ततत्वं विधिवदधीत्य स तत्वज्ञो बभूव । सृष्टिरहस्यमधिगम्य गुरोराज्ञया स वैदिक-धमर्मोद्धरणार्थ दिग्विजयाय प्रस्थितः । ग्रामाद प्रामं नगरान्नगरमटन् विद्वद्भिश्च सह शास्त्रचर्चा कुर्वन् स काशीं प्राप्तः ।
(ख) पिता तस्य तद्वृत्त सश्रुत्य खिद्यमानः भूश चुकोप । तदानीमेव नानकस्य भगिनीपतिः जयराम आगतः । तमखिलमुदन्त ज्ञात्वा तं स्वनगर सुलतानपुरमनयत् । तत्रत्यः शासकः नवाबदौलतखाँ युवकनानकस्य व्यवहारकौशलेन शीलेन मधुरया वाचा सन्तुष्टः सन् तं स्वान्नभाण्डागारे नियुक्तवान् ।
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अनुवाद प्रक्रिया
गद्यांश क का अनुवाद:
इस गद्यांश में एक धार्मिक व्यक्ति, गोविन्दपाद, की कहानी है। इसे हिन्दी में अनुवादित करते समय हमें निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:
1. संस्कृत वाक्य का अर्थ: "एतामलौकिकी वाचमुपश्रुत्य" का अर्थ है "यह लौकिक वाक्य सुनकर"।
2. धार्मिक संदर्भ का अनुवाद: "गोविन्दपादः तमसाधारणं जने मन्वा तस्यै संन्यासदीक्षां ददौ" का अर्थ है "गोविन्दपाद ने सामान्य व्यक्ति को देख कर उसे संन्यास दीक्षा दी"।
3. विधि का पालन: "गुरोः गोविन्दपादादेव वेदान्ततत्वं विधिवदधीत्य स तत्वज्ञो बभूव" का अर्थ है "गोविन्दपाद से वेदान्त के तत्व को विधिपूर्वक अध्ययन कर वह तत्वज्ञानी हो गया"।
4. साधन व साधक की यात्रा: "सृष्टिरहस्यमधिगम्य गुरोराज्ञया स वैदिक-धमर्मोद्धरणार्थ दिग्विजयाय प्रस्थितः" का अनुवाद है "सृष्टि के रहस्यों को जानकर, गुरु की आज्ञा से वह वैदिक धर्म के उद्धारण के लिए यात्रा पर निकला"।
गद्यांश ख का अनुवाद:
गद्यांश ख में नानक की कहानी दी गई है, जिसमें उनके पिता और नानक के व्यवहार के कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग हैं:
1. भावनाओं का अनुवाद: "पिता तस्य तद्वृत्त सश्रुत्य खिद्यमानः भूश चुकोप" का अर्थ है "उसकी घटना को सुनकर उसके पिता दुखी हो गए और क्रोधित हो गए"।
2. घटनाक्रम का वर्णन: "तदानीमेव नानकस्य भगिनीपतिः जयराम आगतः" का अनुवाद है "तब नानक की बहन के पति जयराम आये"।
3. व्यक्तित्व के पहलू: "नवाबदौलतखाँ युवकनानकस्य व्यवहारकौशलेन शीलेन मधुरया वाचा सन्तुष्टः सन्" का अर्थ है "नवाब दाऊलतखाँ नानक के व्यवहार, गुण और मधुर वचन से प्रसन्न हुए"।
4. व्यवसायिक कार्य: "स्वान्नभाण्डागारे नियुक्तवान्" का अनुवाद है "उन्हें अपनी रसोई में नियुक्त किया"।
Quick Tip: जब भी गद्यांश का अनुवाद करें, तो केवल शब्दों का अनुवाद न करें, बल्कि उनके भाव और सांस्कृतिक संदर्भों को समझकर अनुवाद करें।
निम्नलिखित पाठों में से किसी एक पाठ का सारांश हिन्दी में लिखिए :
(क) नैतिकमूल्यानि
(ख) आदिशङ्कराचार्यः
(ग) गुरुनानकदेवः
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यह प्रश्न पाठ का सारांश देने के लिए है। सारांश लिखते समय यह ध्यान में रखें कि पाठ का मुख्य संदेश और उसके प्रमुख बिंदु स्पष्ट रूप से प्रस्तुत हों।
पाठ (क) "नैतिकमूल्यानि" का सारांश:
इस पाठ में नैतिक मूल्यों की चर्चा की गई है, जो समाज और व्यक्तित्व निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। नैतिकता का मूल उद्देश्य अच्छाई और सत्य के मार्ग पर चलना है, जिससे समाज में शांति और सामंजस्य बना रहता है। इस पाठ में यह बताया गया है कि नैतिक मूल्य न केवल व्यक्तिगत जीवन, बल्कि समाज और राष्ट्र की समृद्धि के लिए भी आवश्यक होते हैं।
पाठ (ख) "आदिशङ्कराचार्यः" का सारांश:
आदिशङ्कराचार्य भारतीय संत और वेदांत के महान आचार्य थे। उनका जीवन एक आदर्श जीवन था, जिसमें उन्होंने न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक सुधारों के माध्यम से भी भारत को जागरूक किया। उन्होंने सम्पूर्ण भारत में धार्मिक एकता और आत्मज्ञान का प्रचार किया और अनेक मठों की स्थापना की। उनके अद्भुत ज्ञान और साधना ने उन्हें भारतीय दर्शन में एक महान स्थान दिलवाया।
पाठ (ग) "गुरुनानकदेवः" का सारांश:
गुरुनानकदेव जी सिख धर्म के संस्थापक थे। उनका जीवन सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों से प्रेरित था। उन्होंने समाज में समानता, धार्मिक सहिष्णुता और मानवाधिकारों का प्रचार किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को नकारात्मकता से दूर रहने और ईश्वर की भक्ति में पूर्ण विश्वास रखने की शिक्षा दी। उनका योगदान भारतीय समाज के लिए अमूल्य है।
Quick Tip: सारांश लिखते समय मुख्य विचारों को संक्षेप में और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करें, ताकि पाठ का सार और उद्देश्य समझ में आ सके।
निम्नलिखित श्लोकों में से किसी एक श्लोक की हिन्दी में व्याख्या कीजिए:
(क) पश्याम्येकं भासमिति द्रोणं पार्थोऽभ्यभाषत ।
न तु वृक्षं भवन्तं वा पश्यामीति च भारत ।।
(ख) एकाकी चिन्तयेन्नित्यं, विविक्ते हितमात्मनः ।
एकाकी चिन्तयानो हि परं श्रेयोऽधिगच्छति ।।
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व्याख्या प्रक्रिया:
श्लोक (क) की व्याख्या:
यह श्लोक महाभारत के भीष्म पर्व से है। इसमें अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि उसने द्रोणाचार्य को देखा है, परन्तु वह वृक्षों और भवनों को नहीं देख पा रहा है। यहाँ अर्जुन की मानसिक स्थिति का उल्लेख है। वह युद्ध में भ्रमित और तनावग्रस्त है, और यही कारण है कि वह द्रोणाचार्य को पहचानने में असमर्थ है। यह श्लोक अर्जुन के मानसिक संघर्ष को दर्शाता है।
श्लोक (ख) की व्याख्या:
यह श्लोक योग और ध्यान के महत्व को बताता है। इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति अकेले में अपने आत्महित के बारे में निरंतर विचार करता है, वह जीवन में उच्चतम लाभ प्राप्त करता है। इसका अर्थ है कि अकेले में चिंतन करने से व्यक्ति को अपने आत्मज्ञान में वृद्धि होती है, और वह उच्चतम स्तर की शांति और आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर होता है।
Quick Tip: व्याख्या करते समय श्लोक के भावार्थ और संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उसे सरल भाषा में प्रस्तुत करें।
निम्नलिखित सूक्तियों में से किसी एक सूक्ति की हिन्दी में व्याख्या कीजिए:
(क) क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ।
(ख) विद्या न याऽप्यच्युतभक्तिकारिणी ।
(ग) समत्वं योग उच्यते ।
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व्याख्या प्रक्रिया:
सूक्ति (क) की व्याख्या:
इस सूक्ति का अर्थ है कि अन्य सभी आभूषण समय के साथ नष्ट हो जाते हैं, लेकिन वाक्पूषण (भाषा) हमेशा स्थायी रहता है। यह सूक्ति हमें यह सिखाती है कि अच्छे वचन और अच्छी भाषा सबसे सुंदर आभूषण हैं, जो कभी खत्म नहीं होते।
सूक्ति (ख) की व्याख्या:
इस सूक्ति का अर्थ है कि वह विद्या जो भगवान की भक्ति और सेवा में सहायक हो, वही सबसे उत्तम विद्या है। इसका तात्पर्य है कि ज्ञान का सर्वोत्तम रूप वह है, जो आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर के प्रति समर्पण को बढ़ावा दे।
सूक्ति (ग) की व्याख्या:
यह सूक्ति योग के उद्देश्य को स्पष्ट करती है। "समत्वं योग उच्यते" का अर्थ है कि योग वह अवस्था है, जिसमें व्यक्ति सभी स्थितियों में सम रहता है, न तो सुख में अत्यधिक खुश और न ही दुःख में अत्यधिक दुखी। योग का असली मतलब मानसिक और आत्मिक संतुलन प्राप्त करना है। Quick Tip: सूक्तियों की व्याख्या करते समय उनके शाब्दिक और भावार्थ दोनों पर ध्यान दें।
निम्नलिखित में से किसी एक श्लोक का अर्थ संस्कृत में लिखिए :
(क) वाच्यं श्रद्धासमेतस्य पृच्छतश्च विशेषतः ।
प्रोक्तं श्रद्धाविहीनस्याप्यरण्यरुदितोपमम् ।।
(ख) न पाणिपादचपलो, न नेत्रच्चपलोऽनृजुः ।
न स्याद्वाक्वपलश्चैव, न परद्रोहकर्मधीः ।।
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अर्थ प्रक्रिया:
श्लोक (क) का अर्थ:
यह श्लोक हमें श्रद्धा और विश्वास के महत्व को बताता है। इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ किसी वाक्य को स्वीकार करता है, उसका वह वाक्य सशक्त और प्रभावशाली होता है। वहीं, जो व्यक्ति श्रद्धाविहीन होता है, उसके शब्द शून्य होते हैं, जैसे जंगल में अकेले रोने की तरह।
श्लोक (ख) का अर्थ:
यह श्लोक सत्य और धर्म के पालन की महत्ता को बताता है। इसमें कहा गया है कि एक व्यक्ति के हाथ और पैर अगर अनैतिक कार्यों में व्यस्त होते हैं, तो उसकी आत्मा भी पापों में लिप्त होती है। इसके अतिरिक्त, जब कोई व्यक्ति परनिंदा और विश्वासघात करता है, तो वह अपने जीवन में नैतिकता की कमी महसूस करता है। Quick Tip: अर्थ करते समय श्लोक के संदेश और उसके सामाजिक या आध्यात्मिक संदर्भ पर ध्यान दें।
(क) निम्नलिखित में से किसी एक पात्र का चरित्र-चित्रण हिन्दी में लिखिए :
(i) "कारुणिको जीमूतवाहनः" पाठाधार पर "जीमूतवाहन" का
(ii) "यौतुकः पापसञ्चयः" पाठाधार पर "विनय" का
(iii) "वयं भारतीयाः" पाठाधार पर "अध्यापक" का
(ख) निम्नलिखित में से किसी एक प्रश्न का उत्तर संस्कृत में लिखिए:
(i) सुमेधा कस्य पुत्री आसीत् ?
(ii) महात्मागान्धिमहोदयस्य जन्म कुत्र अभवत् ?
(iii) जीमूतवाहनः कस्य पुत्रः आसीत् ?
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(क) चरित्र-चित्रण प्रक्रिया:
पात्र (i) "जीमूतवाहन" का चरित्र-चित्रण:
जीमूतवाहन भारतीय साहित्य के एक प्रमुख पात्र हैं, जो अपनी दया और करुणा के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका चरित्र न केवल साहसिक है, बल्कि यह आत्म-त्याग और परोपकार की उच्चतम मिसाल प्रस्तुत करता है। वह एक महान व्यक्ति थे जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किए बिना एक घायल पक्षी को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनका चरित्र सच्चे नायक का उदाहरण है, जो अपनी मृत्यु को स्वीकार करता है लेकिन किसी अन्य के जीवन को बचाने का कार्य करता है।
पात्र (ii) "विनय" का चरित्र-चित्रण:
विनय एक साधारण और शिष्ट व्यक्ति हैं। उनका चरित्र नम्रता और विनम्रता से भरपूर है। वह हमेशा दूसरों का आदर करते हैं और अपने कार्यों में ईमानदारी और परिश्रम का पालन करते हैं। उनकी सादगी और शालीनता उन्हें समाज में एक आदर्श व्यक्ति बनाती है। विनय का चरित्र हमें यह सिखाता है कि विनम्रता में महानता होती है।
पात्र (iii) "अध्यापक" का चरित्र-चित्रण:
अध्यापक समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। उनका कार्य केवल ज्ञान देना नहीं होता, बल्कि वह छात्रों के जीवन को दिशा और उद्देश्य प्रदान करते हैं। अध्यापक का चरित्र शिक्षाशक्ति, ज्ञानवर्धन और प्रेरणा का प्रतीक होता है। एक अच्छे अध्यापक के पास न केवल गहरा ज्ञान होता है, बल्कि छात्रों के प्रति एक जिम्मेदारी और सहानुभूति भी होती है, जिससे वह उन्हें जीवन के वास्तविक पाठ भी सिखाते हैं।
(ख) संस्कृत उत्तर प्रक्रिया:
प्रश्न (i) "सुमेधा कस्य पुत्री आसीत् ?" का उत्तर:
सुमेधा शंकराचार्यस्य पुत्री आसीत्।
प्रश्न (ii) "महात्मागान्धिमहोदयस्य जन्म कुत्र अभवत् ?" का उत्तर:
महात्मागान्धिमहोदयस्य जन्म पोरबन्दर नगरे अभवत्।
प्रश्न (iii) "जीमूतवाहनः कस्य पुत्रः आसीत् ?" का उत्तर:
जीमूतवाहनः राजा शंखचूड़स्य पुत्रः आसीत्। Quick Tip: चरित्र-चित्रण करते समय पात्र के गुण, उनके कार्य और उनके प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाना जरूरी होता है।
संस्कृत में उत्तर लिखते समय सही प्रत्ययों का प्रयोग और शुद्ध वाक्य संरचना का ध्यान रखें।
(क) निम्नलिखित रेखाङ्गित पदों में से किसी एक में निर्देशानुसार विभक्ति का नाम लिखिए :
(i) अहं नेत्राभ्यां पश्यामि ।
(ii) तस्मै कदलीफलानि रोचन्ते ।
(iii) किं त्वं वनात् आगच्छसि ?
(ख) निम्नलिखित में से किसी एक पद में प्रत्यय लिखिए :
(i) पीत्वा
(ii) पठितुम्
(iii) चलनीयः
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(क) विभक्ति पहचानने की प्रक्रिया:
पद (i) "नेत्राभ्यां" का विभक्ति:
"नेत्राभ्यां" शब्द में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग हुआ है, क्योंकि यह "नेत्र" के साथ क्रिया का संबंध स्थान या उपकरण के रूप में होता है।
पद (ii) "कदलीफलानि" का विभक्ति:
"कदलीफलानि" में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है, क्योंकि यह "कदलीफल" शब्द का कर्म के रूप में प्रयोग हो रहा है, जिसमें क्रिया का उद्देश्य और क्रियावाचक शब्द है।
पद (iii) "वनात्" का विभक्ति:
"वनात्" में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग हुआ है, क्योंकि यह एक स्थान या स्रोत के रूप में प्रकट हो रहा है।
(ख) प्रत्यय पहचानने की प्रक्रिया:
पद (i) "पीत्वा" में प्रत्यय:
"पीत्वा" में क्रिया प्रत्यय है, जो "पी" (पीने) क्रिया से बना है। यह "तृतीय विभक्ति" के आधार पर क्रियापद के रूप में आता है।
पद (ii) "पठितुम्" में प्रत्यय:
"पठितुम्" में क्रिया प्रत्यय है, जो "पठ" (पढ़ना) क्रिया से उत्पन्न हुआ है। यह "उद्देश्य" या "इच्छा" को दर्शाता है।
पद (iii) "चलनीयः" में प्रत्यय:
"चलनीयः" में विशेषण प्रत्यय है, जो "चल" (चलना) क्रिया से उत्पन्न हुआ है, और यह किसी विशेषण के रूप में कार्य करता है।
Quick Tip: विभक्तियों की पहचान के लिए शब्द के अर्थ, वाक्य में उसकी भूमिका, और उसके साथ जुड़ी क्रिया को समझना आवश्यक होता है।
प्रत्यय का पहचानने के लिए, उसके शब्द के अंत और वाक्य में उसके कार्य को समझना जरूरी होता है।
निम्नलिखित में से किसी एक का वाच्य परिवर्तन कीजिए :
(क) माता पत्र लिखति ।
(ख) रामेण गम्यते ।
(ग) करुणेशः पुस्तकं पठति ।
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वाच्य परिवर्तन प्रक्रिया:
(क) "माता पत्र लिखति" का वाच्य परिवर्तन:
यह वाक्य सक्रिय वाच्य में है। इसे निष्क्रिय वाच्य में बदलने पर "पत्र माता द्वारा लिखितं" होगा।
(ख) "रामेण गम्यते" का वाच्य परिवर्तन:
यह वाक्य निष्क्रिय वाच्य में है। इसे सक्रिय वाच्य में बदलने पर "रामः गच्छति" होगा।
(ग) "करुणेशः पुस्तकं पठति" का वाच्य परिवर्तन:
यह वाक्य सक्रिय वाच्य में है। इसे निष्क्रिय वाच्य में बदलने पर "पुस्तकं करुणेशेण पठितं" होगा। Quick Tip: वाच्य परिवर्तन में क्रिया का रूप बदलता है, और इस दौरान क्रियाविशेषण या कर्ता और कर्म के स्थान में परिवर्तन होता है।
निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं तीन बाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए :
(i) राम या कृष्ण पढ़ते हैं।
(ii) क्या मैं खाऊँ ?
(iii) मैं पिताजी के साथ बाजार जाता हूँ।
(iv) अग्नि के लिए स्वाहा ।
(v) पुत्र पिता से रामायण पढ़ते हैं।
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संस्कृत अनुवाद प्रक्रिया:
(i) "राम या कृष्ण पढ़ते हैं।" का संस्कृत अनुवाद:
"रामः अथवा कृष्णः पठन्ति।"
(ii) "क्या मैं खाऊँ ?" का संस्कृत अनुवाद:
"किमहं खादेयम्?"
(iii) "मैं पिताजी के साथ बाजार जाता हूँ।" का संस्कृत अनुवाद:
"अहं पितरं सह बाजारं गच्छामि।"
(iv) "अग्नि के लिए स्वाहा।" का संस्कृत अनुवाद:
"अग्नये स्वाहा।"
(v) "पुत्र पिता से रामायण पढ़ते हैं।" का संस्कृत अनुवाद:
"पुत्राः पितरं सम्यक् रामायणं पठन्ति।"
Quick Tip: संस्कृत में अनुवाद करते समय वाक्य संरचना और शब्दों के सही रूपों का ध्यान रखें।
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर संस्कृत में आठ वाक्यों में निबन्ध लिखिए:
(i) सत्सङ्गतिः
(ii) उद्यमः
(iii) अस्माकं देशः
(iv) विद्या ज्ञानाय
(v) महाकविः बाल्मीकिः
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संस्कृत निबन्ध प्रक्रिया:
(i) "सत्सङ्गतिः" पर निबन्ध:
सत्सङ्गतिः एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। यह जीवन में सकारात्मकता और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। सत्सङ्ग से हमारा व्यक्तित्व निखरता है और हम समाज में अच्छे कार्य करते हैं। समाज में सुधार लाने के लिए सत्सङ्ग की आवश्यकता होती है।
(ii) "उद्यमः" पर निबन्ध:
उद्यमः मनुष्य को उसकी कठिनाइयों से उबरने की शक्ति प्रदान करता है। यह सफलता की कुंजी है। मेहनत और परिश्रम से व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। उद्यम से ही व्यक्ति अपने जीवन को सुधारता है और समाज में एक आदर्श प्रस्तुत करता है।
(iii) "अस्माकं देशः" पर निबन्ध:
अस्माकं देशः भारत एक प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का देश है। यहाँ की नदियाँ, पर्वत, और समृद्ध इतिहास इसे विशिष्ट बनाते हैं। हमारा देश अनेकता में एकता का प्रतीक है। हमें अपने देश की सेवा करनी चाहिए और इसके विकास में योगदान देना चाहिए।
(iv) "विद्या ज्ञानाय" पर निबन्ध:
विद्या केवल पुस्तकों से प्राप्त नहीं होती, बल्कि यह जीवन के अनुभवों से भी आती है। यह व्यक्ति के सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाती है। विद्या का असली उद्देश्य ज्ञान का प्रसार करना और समाज की भलाई के लिए काम करना है।
(v) "महाकविः बाल्मीकिः" पर निबन्ध:
महाकवि बाल्मीकि भारतीय साहित्य के महान कवि हैं। उन्होंने "रामायण" महाकाव्य की रचना की, जो विश्व के सबसे प्रसिद्ध काव्यग्रंथों में से एक है। उनके काव्य में धर्म, नीति, और जीवन के आदर्शों का सुंदर चित्रण किया गया है।
Quick Tip: निबन्ध लिखते समय, विषय के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए संरचित और स्पष्ट रूप में विचार प्रस्तुत करें।
निम्नलिखित पदों में से किन्हीं दो पदों का संस्कृत वाक्यों में प्रयोग कीजिए:
(i) सर्वदा
(ii) रक्षति
(iii) प्रतिदिनम्
(iv) आदाय
(v) पठन्
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संस्कृत वाक्य प्रयोग प्रक्रिया:
(i) "सर्वदा" का प्रयोग:
सर्वदा धर्मेण चल। (Always walk with righteousness.)
(ii) "रक्षति" का प्रयोग:
भगवानः सर्वेभ्यः जीवों रक्षति। (God protects all living beings.)
(iii) "प्रतिदिनम्" का प्रयोग:
प्रतिदिनम् अहं पुस्तकं पठामि। (Every day I read a book.)
(iv) "आदाय" का प्रयोग:
तस्य पुस्तकं आदाय अहं आगच्छामि। (I am coming after taking his book.)
(v) "पठन्" का प्रयोग:
बालकः पाठयित्वा पाठशाला गच्छति। (The boy goes to school after reading.)
Quick Tip: संस्कृत वाक्य प्रयोग करते समय, सही शब्दों और उनके रूपों का चयन करना आवश्यक होता है।
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