UPMSP conducted the Class 10 Sanskrit examination (Code 818-DT) as part of the board exams. The question paper was in Sanskrit and comprised both objective and descriptive formats. The answer key was released to enable students to review their performance.
UP Board Class 10 Sanskrit (Code 818 DT) Question Paper with Answer Key
UP Board Class 12 Sanskrit (Code 818 DT) Question Paper with Solutions PDF | Download PDF | Check Solutions |
उक्त गद्यांश का शीर्षक है :
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चरण 1: गद्यांश के संदर्भ को समझना।
यह गद्यांश रवींद्रनाथ ठाकुर (रवीन्द्रनाथ ठाकुर), जिन्हें हम 'विश्वकवि' के नाम से भी जानते हैं, के जीवन या उनके कार्यों के बारे में हो सकता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) विश्वकविः रवीन्द्रः: सही। यह शीर्षक रवींद्रनाथ ठाकुर के कार्यों के संदर्भ में उपयुक्त है।
- (B) आदिशङ्कराचार्यः: यह एक महान दार्शनिक और धार्मिक गुरु थे, लेकिन इस संदर्भ से मेल नहीं खाता।
- (C) मदानमोहनमालवीयः: यह एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक थे, लेकिन इस गद्यांश का विषय नहीं हैं।
- (D) दीनबन्धुः ज्योतिबाफुले: सामाजिक सुधारक थे, लेकिन इस गद्यांश से मेल नहीं खाते।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) विश्वकविः रवीन्द्रः, क्योंकि गद्यांश रवींद्रनाथ ठाकुर के योगदान और उनके वैश्विक प्रभाव के बारे में हो सकता है।
Quick Tip: रवींद्रनाथ ठाकुर को 'विश्वकवि' के नाम से जाना जाता है, क्योंकि उनकी कविता और साहित्य ने वैश्विक स्तर पर बहुत प्रभाव डाला।
शङ्करः कस्मिन् प्रदेशे जन्म लेभे ?
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चरण 1: शंकराचार्य के जन्म का स्थान समझना।
आदि शंकराचार्य, जो भारतीय अद्वैत वेदांत के महान आचार्य थे, का जन्म केरल राज्य में हुआ था।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) मध्य प्रदेश: गलत। शंकराचार्य का जन्म मध्यप्रदेश में नहीं हुआ था।
- (B) केरल प्रदेश: सही। शंकराचार्य का जन्म केरल के कालीदी नामक स्थान पर हुआ था।
- (C) उत्तर प्रदेश: गलत। शंकराचार्य का जन्म उत्तर प्रदेश में नहीं हुआ था।
- (D) उत्तराखण्ड: गलत। उनका जन्म उत्तराखंड में नहीं हुआ था।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (B) केरल प्रदेशे, जहां शंकराचार्य का जन्म हुआ था।
Quick Tip: आदि शंकराचार्य का जन्म केरल राज्य में कालीदी नामक स्थान पर हुआ था और वे अद्वैत वेदांत के महान आचार्य थे।
कालिदासस्य सर्वश्रेष्ठा नाट्यकृतिरस्ति :
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चरण 1: कालिदास के नाटक को समझना।
कालिदास का सबसे प्रसिद्ध और श्रेष्ठ नाटक अभिज्ञानशाकुन्तलम् है, जिसे भारतीय साहित्य में एक महान काव्यात्मक नाटक माना जाता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) रघुवंशम्: यह कालिदास का एक महाकाव्य है, नाटक नहीं।
- (B) अभिज्ञानशाकुन्तलम्: सही। यह कालिदास का सबसे प्रसिद्ध नाटक है, जिसमें शाकुन्तला और दुष्यंत की कहानी प्रस्तुत की गई है।
- (C) कुमारसंभवम्: यह कालिदास का एक महाकाव्य है, नाटक नहीं।
- (D) ऋतुसंहारम्: यह कालिदास का काव्य है, नाटक नहीं।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (B) अभिज्ञानशाकुन्तलम्, जो कालिदास का सर्वोत्तम नाटक है।
Quick Tip: अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास का सबसे प्रसिद्ध नाटक है, जो शाकुन्तला की कथा को रोमांटिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है।
'हिन्दुस्तान' पत्रस्य सम्पादकः कोऽस्ति आङ्गलशासने ?
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चरण 1: 'हिन्दुस्तान' पत्र के सम्पादक को समझना।
लोकमान्य तिलक ने आंग्लशासन के खिलाफ 'हिन्दुस्तान' पत्र का संपादन किया और यह पत्र स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) लोकमान्य तिलक: सही। लोकमान्य तिलक ने 'हिन्दुस्तान' पत्र का संपादन किया और इसका उपयोग राष्ट्रीय आंदोलन को प्रोत्साहित करने के लिए किया।
- (B) मदानमोहनमालवीयः: एक महान स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक, लेकिन वे इस पत्र के संपादक नहीं थे।
- (C) विश्वकविः रवीन्द्रः: रवींद्रनाथ ठाकुर इस पत्र से संबंधित नहीं थे।
- (D) दीनबन्धुः ज्योतिबाफुले: एक समाज सुधारक थे, लेकिन वे इस पत्र के संपादक नहीं थे।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) लोकमान्य तिलक, जिन्होंने 'हिन्दुस्तान' पत्र का संपादन किया।
Quick Tip: लोकमान्य तिलक ने 'हिन्दुस्तान' पत्र के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
धीमतां कालः कथं गच्छति ?
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चरण 1: प्रश्न के संदर्भ को समझना।
यह प्रश्न उन व्यक्तियों के बारे में है जिनके लिए समय बुद्धिमानी से जीवन जीने में आनंद से बीतता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) काव्यशास्त्रविनोदेन: सही। योग्य लोग समय का सदुपयोग करते हैं, विशेष रूप से साहित्य और कला में, जिससे उनका समय आनंदपूर्ण और सार्थक बीतता है।
- (B) व्यसनेन: गलत। व्यसन में समय बर्बाद करना, यह बुद्धिमान नहीं है।
- (C) निद्रया: गलत। अधिक निद्रा समय का सदुपयोग नहीं है।
- (D) कलहेन: गलत। झगड़े में समय बर्बाद करना बुद्धिमान नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) काव्यशास्त्रविनोदेन, क्योंकि बुद्धिमान लोग साहित्य और कलाओं में समय व्यतीत करते हैं, जिससे उनका जीवन समृद्ध होता है।
Quick Tip: बुद्धिमान व्यक्ति समय का सदुपयोग करते हैं, विशेष रूप से रचनात्मक और सांस्कृतिक गतिविधियों में।
'भाषासु मुख्या मधुरा गीर्वाणभारती' के रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए ।
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चरण 1: संदर्भ समझना।
यह वाक्य गीर्वाणभारती (वाणी या सरस्वती) के बारे में है, जो सभी भाषाओं की प्रमुख और मधुर मानी जाती हैं।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) सौम्या: यह शब्द मेल नहीं खाता, क्योंकि वाणी को मधुर और दिव्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
- (B) दिव्या: सही। वाणी को दिव्य, पवित्र और आशीर्वाद देने वाली माना जाता है।
- (C) प्रौढा: यह शब्द सही नहीं है, क्योंकि प्रौढ़ता का अर्थ वृद्ध या परिपक्व होना है, जो इस संदर्भ में उचित नहीं है।
- (D) न्यूना: यह शब्द कमजोर या कमतर को दर्शाता है, जो यहां उपयुक्त नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (B) दिव्या, क्योंकि वाणी को दिव्य और पवित्र रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
Quick Tip: वाणी को दिव्य और सबका कल्याण करने वाली माना जाता है, इसलिए इस संदर्भ में 'दिव्या' शब्द सर्वोत्तम है।
'सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्' सूक्ति किस पाठ से उधृत है ?
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चरण 1: सूक्ति के स्रोत को पहचानना।
यह सूक्ति जीवन के सुख और दुख की प्रकृति के बारे में है, जो सूक्ति-सुधा से ली गई है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) लक्ष्य-वेध-परीक्षा: यह विकल्प सही नहीं है, क्योंकि यह सूक्ति उस पाठ से संबंधित नहीं है।
- (B) सूक्ति-सुधा: सही। यह सूक्ति सूक्ति-सुधा से ली गई है, जो जीवन के अर्थ और मूल्य के बारे में महत्वपूर्ण बातें सिखाती है।
- (C) विद्यार्थिचर्या: यह भी सही नहीं है, क्योंकि यह पाठ विद्यार्थियों के आचार-व्यवहार पर आधारित है।
- (D) गीतामृतम्: यह भी गलत है, क्योंकि यह सूक्ति इस पाठ से संबंधित नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (B) सूक्ति-सुधा, जो इस सूक्ति का स्रोत है।
Quick Tip: 'सूक्ति-सुधा' संस्कृत साहित्य में प्रसिद्ध पाठ है, जो जीवन के सुख-दुःख और उनके कारणों पर चर्चा करता है।
गुरुनानकदेवस्य मातुर्नाम का ?
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चरण 1: गुरुनानकदेव के माता-पिता के बारे में जानना।
गुरुनानकदेव जी की माता का नाम तृप्ता देवी था, और उनके पिता का नाम मेहताजी था।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) तृप्ता देवी: सही। यह गुरु नानक देव जी की माता का नाम था।
- (B) सुभद्रा: यह नाम गलत है, क्योंकि यह किसी अन्य धार्मिक पात्र का नाम हो सकता है।
- (C) कल्याणी: यह भी गलत है, क्योंकि गुरु नानक की माता का नाम नहीं था।
- (D) छविमति देवी: यह भी गलत है, क्योंकि यह नाम गुरु नानक देव की माता से संबंधित नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) तृप्ता देवी, जो गुरु नानक देव जी की माता थीं।
Quick Tip: गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता देवी था, जो एक महान संत और गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए।
सिखधर्मस्य संस्थापकः कः आसीत् ?
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चरण 1: सिख धर्म के संस्थापक को पहचानना।
सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानकदेव जी थे, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में सिख धर्म की नींव रखी।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) गुरुनानकदेवः: सही। गुरुनानकदेव जी ने सिख धर्म की शुरुआत की और समाज में समानता, भाईचारे और सेवा का संदेश दिया।
- (B) गुरुगोविन्दसिंहः: गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें गुरु थे, लेकिन धर्म की शुरुआत गुरु नानक देव जी ने की थी।
- (C) गुरुतेगबहादुरः: गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे।
- (D) ऊधमसिंहः: ऊधम सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे, न कि सिख धर्म के संस्थापक।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) गुरुनानकदेवः, जिन्होंने सिख धर्म की स्थापना की।
Quick Tip: सिख धर्म की शुरुआत गुरुनानकदेव जी ने की थी, और उन्होंने समाज में समानता, सत्य और सेवा के सिद्धांतों का प्रचार किया।
किं नाटकं दृष्ट्वा गान्धिनः हृदयं परिवर्तितम् ?
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चरण 1: गांधीजी के हृदय परिवर्तन की कथा को समझना।
महात्मा गांधी जी ने 'हरिश्चन्द्र' नाटक को देखकर अपने दिल में गहरी संवेदनाओं और विचारों में परिवर्तन अनुभव किया।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) विक्रमोर्वशीयम्: यह कालिदास का प्रसिद्ध नाटक है, लेकिन गांधीजी ने इसे नहीं देखा।
- (B) हरिश्चन्द्रः: सही। यह नाटक महात्मा गांधी को प्रभावित करने वाला था, क्योंकि इसमें सत्य और नैतिकता की महत्वपूर्ण बातें हैं।
- (C) मालविकाग्निमित्रम्: यह कालिदास का नाटक है, जो गांधीजी के दिल में परिवर्तन का कारण नहीं था।
- (D) प्रतिमानाटकम्: यह नाटक गांधीजी द्वारा देखा गया नहीं था।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (B) हरिश्चन्द्रः, जो गांधीजी को सत्य और नैतिकता के प्रति प्रेरित करने वाला था।
Quick Tip: महात्मा गांधी जी ने 'हरिश्चन्द्र' नाटक को देखकर सत्य और नैतिकता के महत्व को महसूस किया और उनके दिल में बदलाव आया।
यण् प्रत्याहार के वर्ण हैं :
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चरण 1: प्रत्याहार के वर्णों को समझना।
प्रत्याहार वह नियम है जिसमें वर्णों का संयोजन और उच्चारण विशेष रूप से किसी व्याकरणिक शास्त्र में किया जाता है। इन वर्णों का उपयोग संस्कृत ध्वनि विज्ञान में होता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) य्, व्, इ, ल्: यह संयोजन प्रत्याहार के वर्णों के लिए सही नहीं है।
- (B) य्, व, र, ल, ह: सही। यह प्रत्याहार के वर्ण हैं, जिनका उपयोग विशेष रूप से संस्कृत में होता है।
- (C) इ, उ, य्, व्, इ, ल्: यह संयोजन गलत है, क्योंकि यह प्रत्याहार वर्णों के संयोजन के अंतर्गत नहीं आता।
- (D) ऋ, य्, व्, र, ल, ह: यह भी सही नहीं है, क्योंकि इनमें से कुछ वर्ण प्रत्याहार के लिए नहीं हैं।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (B) य्, व, र, ल, ह, ये प्रत्याहार के वर्ण हैं।
Quick Tip: प्रत्याहार में संस्कृत वर्णों का संयोजन किया जाता है जो उच्चारण और व्याकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
'ख' का उच्चारण स्थान है :
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चरण 1: 'ख' के उच्चारण स्थान को समझना।
'ख' एक कंठ्य ध्वनि है, जो कण्ठ से उच्चारित होती है। संस्कृत में कुछ ध्वनियाँ कण्ठ्य, तालव्य, या दंत्य होती हैं।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) कण्ठ: सही। 'ख' का उच्चारण कण्ठ से होता है, जो कंठ्य ध्वनियाँ हैं।
- (B) मूर्धा: यह ध्वनि का उच्चारण स्थान नहीं है।
- (C) दंत: यह भी सही नहीं है, क्योंकि 'ख' का उच्चारण दांतों से नहीं होता।
- (D) तालू: यह भी गलत है, क्योंकि 'ख' का उच्चारण तालू से नहीं होता।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) कण्ठ, क्योंकि 'ख' का उच्चारण कण्ठ से होता है।
Quick Tip: 'ख' वर्ण कण्ठ्य ध्वनि है और इसका उच्चारण कण्ठ से होता है।
'अहं गच्छामि' में सन्धि है :
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चरण 1: 'अहं गच्छामि' वाक्य का सन्धि-विच्छेद करना।
'अहं गच्छामि' में 'अहं' और 'गच्छामि' शब्दों के बीच परसवर्ण सन्धि होती है, जो एक विशेष प्रकार की सन्धि है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) परसवर्ण सन्धि: सही। यहाँ 'अहं' और 'गच्छामि' शब्दों के बीच 'हं' और 'ग' ध्वनियों का मेल होता है।
- (B) अनुस्वार सन्धि: यह सही नहीं है, क्योंकि यहाँ अनुस्वार का प्रयोग नहीं हुआ है।
- (C) हल् सन्धि: यह भी गलत है, क्योंकि हल् सन्धि का प्रयोग नहीं हुआ है।
- (D) टुत्व सन्धि: यह भी गलत है, क्योंकि टुत्व सन्धि का कोई संबंध यहाँ नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) परसवर्ण सन्धि।
Quick Tip: 'अहं गच्छामि' में परसवर्ण सन्धि होती है, जो ध्वनियों के मेल से उत्पन्न होती है।
'मुनिस्तपति' का सन्धि-विच्छेद है :
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चरण 1: सन्धि-विच्छेद को समझना।
मुनिस्तपति शब्द में सन्धि है। यह सन्धि मुनिः + तपति के रूप में होती है। 'मुनि' का उच्चारण 'मुनिः' होता है, और 'तपति' में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) मुनिः + तपति: सही। यह शब्द सही सन्धि-विच्छेद है।
- (B) मुनिश् + तपति: गलत। 'मुनिश्' रूप संस्कृत में नहीं है।
- (C) मुनिष् + तपति: यह भी गलत है।
- (D) मुनिर् + तपति: यह भी गलत है, क्योंकि 'मुनिर्' सन्धि नहीं होती।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) मुनिः + तपति।
Quick Tip: सन्धि-विच्छेद में शब्दों का सही मेल और उनका उच्चारण महत्वपूर्ण होता है, जैसा कि मुनिः + तपति में हुआ है।
'राज्ञा' पद किस विभक्ति एवं वचन का रूप है?
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चरण 1: 'राज्ञा' शब्द का विभक्ति और वचन का रूप समझना।
'राज्ञा' शब्द द्वितीया विभक्ति, एकवचन का रूप है, जो राजा के लिए या राजा से संबंधित होने का संकेत करता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) द्वितीया विभक्ति, एकवचन: सही। 'राज्ञा' शब्द द्वितीया विभक्ति में एकवचन रूप में होता है।
- (B) तृतीया विभक्ति, एकवचन: यह गलत है, क्योंकि तृतीया विभक्ति का रूप अलग होता है।
- (C) पंचमी विभक्ति, एकवचन: गलत। पंचमी विभक्ति के लिए अन्य रूप होते हैं।
- (D) चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन: गलत। यह रूप इस शब्द के लिए उपयुक्त नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) द्वितीया विभक्ति, एकवचन।
Quick Tip: 'राज्ञा' शब्द द्वितीया विभक्ति, एकवचन का रूप है, जिसका अर्थ होता है "राजा के द्वारा" या "राजा के लिए"।
'वारि' पद का षष्ठी, एकवचन का रूप है:
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चरण 1: 'वारि' शब्द का षष्ठी रूप समझना।
वारि (पानी) का षष्ठी विभक्ति, एकवचन रूप वारिणा होता है, जो 'पानी का' या 'पानी के द्वारा' के रूप में प्रयोग होता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) वारिणा: सही। यह शब्द षष्ठी विभक्ति, एकवचन का रूप है।
- (B) वारीणि: यह गलत है, क्योंकि यह रूप प्रायः बहुवचन के लिए होता है।
- (C) वारिणः: यह भी गलत है, क्योंकि यह बहुवचन का रूप है।
- (D) वारिणे: यह गलत है, क्योंकि यह रूप सही नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) वारिणा, जो षष्ठी विभक्ति का एकवचन रूप है।
Quick Tip: वारि का षष्ठी विभक्ति, एकवचन रूप वारिणा है, जो 'पानी के' या 'पानी से' के अर्थ में प्रयोग होता है।
'अभवत्' रूप है :
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चरण 1: 'अभवत्' रूप का विश्लेषण करना।
अभवत् शब्द लङ् लकार के प्रथम पुरुष, एकवचन रूप में है, जिसका अर्थ होता है 'वह हुआ'। यह रूप क्रिया के भूतकाल में होता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन: गलत। 'अभवत्' लट् लकार में नहीं, बल्कि लङ् लकार में है।
- (B) लङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन: सही। यह रूप भूतकाल के 'हुआ' का रूप है।
- (C) लङ् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन: यह गलत है, क्योंकि यह रूप एकवचन के लिए है।
- (D) लोट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन: यह भी गलत है, क्योंकि 'अभवत्' लोट् लकार में नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (B) लङ् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
Quick Tip: अभवत् शब्द लङ् लकार के प्रथम पुरुष, एकवचन का रूप है, जो भूतकाल की क्रिया को व्यक्त करता है।
'वसेयुः' रूप किस लकार का है ?
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चरण 1: 'वसेयुः' रूप को समझना।
वसेयुः शब्द लृट् लकार का रूप है, जिसका अर्थ है 'वह रहेगा' या 'वह निवास करेगा'। यह भविष्यतकाल के लिए प्रयोग होता है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) लट् लकार का: यह गलत है, क्योंकि लट् लकार का रूप वर्तमान काल में होता है।
- (B) लोट् लकार का: यह गलत है, क्योंकि लोट् लकार की क्रिया आदेश देने वाली होती है।
- (C) लृट् लकार का: सही। यह रूप भविष्यतकाल के लिए होता है, जो 'वह रहेगा' या 'वह करेगा' के अर्थ में आता है।
- (D) विधिलिङ्ग लकार का: यह भी गलत है, क्योंकि विधिलिङ्ग लकार का उपयोग इच्छाशक्ति और आदेशों के लिए होता है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (C) लृट् लकार का।
Quick Tip: वसेयुः शब्द लृट् लकार के रूप में है, जो भविष्यतकाल की क्रिया को व्यक्त करता है।
'यशोधनः' में समास है :
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चरण 1: 'यशोधनः' शब्द का समास पहचानना।
यशोधनः में बहुव्रीहि समास है, क्योंकि यह 'यश' (सत्ता) और 'धन' (धन) के जोड़ से बना है।
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) कर्मधारय समास: यह गलत है, क्योंकि यह समास कर्म और धारणा को दर्शाता है।
- (B) बहुव्रीहि समास: सही। इसमें उपयुक्त विशेषण और संज्ञा के बीच संबंध है, जैसा कि 'यश' और 'धन' में है।
- (C) द्विगु समास: यह गलत है, क्योंकि द्विगु समास में दो संज्ञाओं का संयोजन होता है, यह बहुव्रीहि नहीं है।
- (D) अव्ययीभाव समास: यह भी गलत है, क्योंकि यह समास में कोई उपयुक्त उदाहरण नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (B) बहुव्रीहि समास।
Quick Tip: बहुव्रीहि समास वह समास है जिसमें शब्दों का जोड़ किसी विशेषता का संकेत करता है, जैसे 'यश' और 'धन' में।
पीताम्बरः पद का समास विग्रह है :
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चरण 1: 'पीताम्बरः' शब्द का समास विग्रह करना।
पीताम्बरः का समास विग्रह पीतं अम्बरं यस्य सः होता है, जिसका अर्थ है "जिसके शरीर पर पीला वस्त्र हो।"
चरण 2: विकल्पों का विश्लेषण।
- (A) पीतं अम्बरं यस्य सः: सही। यह समास विग्रह है।
- (B) पीतः अम्बरः: यह रूप ठीक नहीं है, क्योंकि इसका अर्थ सही नहीं निकलता।
- (C) पीतम् अम्बरः: यह भी गलत है, क्योंकि यहाँ विभक्ति का प्रयोग ठीक से नहीं हुआ।
- (D) पीतम् अम्बरम्: यह गलत है, क्योंकि समास में कोई आवश्यक विभक्ति नहीं है।
चरण 3: निष्कर्ष।
सही उत्तर है (A) पीतं अम्बरं यस्य सः।
Quick Tip: पीताम्बरः का समास विग्रह है पीतं अम्बरं यस्य सः, जिसका अर्थ है "जिसके शरीर पर पीला वस्त्र हो।"
निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
गद्यांश क:
गुरुनानकः स्वपित्रोरेक एव पुत्र आसीत् । अतः तस्य जन्मनाऽऽह्लादातिशयं तानुभवन्तौ स्नेहातिशयेन तस्य लालनं पालनं च कृतवन्तौ । बाल्यकालादेव तस्मिन् बालके लोकोत्तराः गुणाः प्रकटिता अभवन् । रहसि एकाकी एवोपविश्य नेत्रेऽअर्थोन्मील्य किञ्चिद् ध्यातुमिव दृश्यते स्म ।
गद्यांश ख:
संस्कृतभाषा पुराकाले सर्वसाधारणजनानां वाग्व्यवहारभाषा चासीत् । तत्रेदं श्रूयते यत् पुरा कोऽपि नरः काष्ठभारं स्वशिरसि निधाय काष्ठं विक्रेतुमापणं गच्छति स्म । मार्गे नृपः तेनामिलदपृच्छच्च, भो भारं बाधति ? काष्ठभारवाहको नृपं तत् प्रश्नोत्तरस्य प्रसङ्गेऽवदत्, भारं न बाधते राजन् ! यथा बाधति बाधते । अनेनेदं सुतरामायाति यत्प्राचीनकाले भारतवर्षे संस्कृतभाषा साधारणजनानां भाषा आसीदिति ।
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चरण 1: अनुवाद प्रक्रिया को समझना।
जब हम गद्यांश का अनुवाद करते हैं, तो हमें मूल गद्यांश के अर्थ को सही ढंग से समझकर उसे दूसरी भाषा में उतारना होता है। यह कार्य भाषा की गहरी समझ और संदर्भ का सही उपयोग करके किया जाता है।
गद्यांश क का अनुवाद:
1. गुरुनानक की माता-पिता से संबंधित जानकारी: यह गद्यांश गुरुनानक के जन्म और उनके पालन-पोषण से जुड़ी जानकारी देता है। हम पहले 'स्वपित्रोरेक एव पुत्र' को अनुवादित करते हैं जिसका अर्थ है 'गुरुनानक अपने माता-पिता के अकेले पुत्र थे'।
2. बाल्यकाल में गुणों का प्रकट होना: 'बाल्यकालादेव तस्मिन् बालके लोकोत्तराः गुणाः प्रकटिता अभवन्' का अर्थ है कि बचपन से ही उनके अंदर अद्वितीय गुण प्रकट होने लगे थे।
3. आध्यात्मिक ध्यान: 'रहसि एकाकी एवोपविश्य नेत्रेऽअर्थोन्मील्य' का अनुवाद 'वह अकेले बैठकर ध्यान करते हुए अपने नेत्रों से कुछ गहरे अर्थों का मंथन करते थे' होगा।
गद्यांश ख का अनुवाद:
1. संस्कृत का सामान्य भाषा के रूप में उपयोग: इस गद्यांश में संस्कृत भाषा का सामान्य जनता के बीच प्रयोग वर्णित है। 'संस्कृतभाषा पुराकाले सर्वसाधारणजनानां वाग्व्यवहारभाषा चासीत्' का अर्थ है कि प्राचीन समय में संस्कृत सर्वसाधारण जनों के बीच संवाद की भाषा थी।
2. प्राचीन संवाद का उदाहरण: 'कोऽपि नरः काष्ठभारं स्वशिरसि निधाय काष्ठं विक्रेतुमापणं गच्छति स्म' का अर्थ है 'एक व्यक्ति अपने सिर पर लकड़ी का बोझ रखकर बाजार जाने के लिए निकल पड़ा था।'
3. राजा और व्यापारी के बीच संवाद: 'नृपः तेनामिलदपृच्छच्च' का अर्थ है 'राजा ने व्यापारी से पूछा कि क्या तुम्हारा भार भारी है?' और व्यापारी का उत्तर 'नहीं, राजन, यह भार मुझे कोई कठिनाई नहीं देता' है।
4. संस्कृत की सामान्य भाषा के रूप में उपयोग का संकेत: 'प्राचीनकाले भारतवर्षे संस्कृतभाषा साधारणजनानां भाषा आसीदिति' का अर्थ है कि पहले संस्कृत सामान्य जनों के बीच अधिक प्रचलित थी।
चरण 2: निष्कर्ष।
अंततः, गद्यांशों के अनुवाद में शब्दों और अर्थों को सही तरीके से प्रस्तुत करने के लिए संदर्भ का सही उपयोग करना आवश्यक है। दोनों गद्यांशों का अनुवाद करते समय हमें भाषा की गहरी समझ और संप्रेषण की दृष्टि से उचित शब्दों का चयन करना चाहिए।
Quick Tip: जब भी संस्कृत से हिंदी या अन्य भाषाओं में अनुवाद करें, तो सुनिश्चित करें कि आप शब्दों का सही रूप और अर्थ का ध्यान रखें, ताकि भावार्थ का सही रूप प्रस्तुत हो सके।
निम्नलिखित पाठों में से किसी एक पाठ का सारांश हिन्दी भाषा में लिखिए:
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चरण 1: पाठ का चयन और समझना।
पहले हमें दिए गए पाठों में से एक पाठ का चयन करना होगा। चयनित पाठ को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उसमें दी गई मुख्य जानकारी, घटनाएँ और विचारों को संक्षेप में समझें।
यदि आपने "संस्कृतभाषायाः गौरवम्" का चयन किया है, तो इसे संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है कि संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति और धर्म का अभिन्न हिस्सा है, जिसे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है।
यदि आपने "कविकुलगुरुः कालिदासः" का चयन किया है, तो कालिदास के साहित्यिक योगदान और उनकी काव्य रचनाओं पर ध्यान केंद्रित करें, जैसे कि 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्'।
यदि आपने "मदानमोहन मालवीयः" का चयन किया है, तो इस पाठ में स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान, शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्यों पर चर्चा करें।
चरण 2: सारांश लिखना।
चयनित पाठ का सारांश हिन्दी में संक्षेप में लिखें, जिसमें उस पाठ का मुख्य विचार और उद्देश्य स्पष्ट रूप से व्यक्त हो।
Quick Tip: पाठ का सारांश लिखते समय मुख्य विचारों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करें, ताकि पाठक को पाठ का समग्र अर्थ समझ में आ सके।
निम्नलिखित श्लोकों में से किसी एक श्लोक की हिन्दी में व्याख्या कीजिए:
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चरण 1: श्लोक का चयन और समझना।
आपको दिए गए श्लोकों में से एक का चयन करना होगा। इस श्लोक का अर्थ समझने के बाद उसे स्पष्ट रूप से व्याख्यायित करें।
- श्लोक (क) का अर्थ है: जो व्यक्ति न आनंदित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है और न ही किसी वस्तु की इच्छा करता है, वह भक्तिमान है और भगवान को प्रिय है।
- श्लोक (ख) का अर्थ है: जो व्यक्ति स्नान न करता हो, भोजन के बाद न पाता हो, जो रोगी हो और रात में न सोता हो, या जो बिना किसी कारण के जलाशयों में नहीं जाता हो, वह धार्मिक कार्यों का पालन नहीं करता।
चरण 2: व्याख्या लिखना।
चयनित श्लोक की व्याख्या करते हुए श्लोक के गहरे अर्थ को सरल भाषा में व्यक्त करें।
Quick Tip: व्याख्या करते समय श्लोक के शब्दों और भावार्थ को समझें और उसे स्पष्ट रूप से सरल भाषा में व्यक्त करें।
निम्नलिखित सूक्तियों में से किसी एक सूक्ति की हिन्दी में व्याख्या कीजिए:
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चरण 1: सूक्ति का चयन और अर्थ समझना।
आपको दिए गए सूक्तियों में से किसी एक का चयन करना होगा।
- सूक्ति (क): इसका अर्थ है "यह जान लें कि समास के माध्यम से सुख और दुःख के लक्षण को व्यक्त किया जाता है।"
- सूक्ति (ख): इसका अर्थ है "जो शब्दों में सुंदरता और प्रभावशालीता लाता है, वही असली आभूषण है।"
- सूक्ति (ग): इसका अर्थ है "मूर्तियों और पत्थरों के टुकड़ों में भी रत्नों का मूल्य होता है, उसी प्रकार प्रत्येक वस्तु में गुण होते हैं।"
चरण 2: व्याख्या लिखना।
चयनित सूक्ति की व्याख्या करते हुए उसके गहरे अर्थ को सरल रूप में व्यक्त करें।
Quick Tip: सूक्तियों की व्याख्या करते समय उनकी गहराई को समझने की कोशिश करें और उसे प्रासंगिक उदाहरणों के माध्यम से समझाएं।
निम्नलिखित में से किसी एक श्लोक का संस्कृत में अर्थ लिखिए :
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चरण 1: श्लोक का चयन और अर्थ समझना।
इसमें दिए गए श्लोकों में से किसी एक का चयन करें।
- श्लोक (क) का अर्थ है: "जो व्यक्ति नित्य वृद्धों की सेवा करता है और अभिवादन में विनम्र रहता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं।"
- श्लोक (ख) का अर्थ है: "तुम्हें अपने कार्य को नियत रूप से करना चाहिए, क्योंकि निष्क्रियता से कोई लाभ नहीं होता, यही कर्म का श्रेष्ठ रूप है।"
चरण 2: अर्थ लिखना।
चयनित श्लोक का अर्थ स्पष्ट रूप से संस्कृत में लिखें।
Quick Tip: जब श्लोक का अर्थ लिखें, तो शब्दों का सही अर्थ और उनकी व्याकरणिक स्थिति पर ध्यान दें, ताकि अर्थ सही ढंग से व्यक्त हो।
(क) निम्नलिखित में से किसी एक पात्र का चरित्र-चित्रण हिन्दी में कीजिए:
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क: पात्र का चयन और चरित्र चित्रण।
- यदि आपने ज्योतिबा फूले का चयन किया है, तो आप उनके समाज सुधारक रूप, उनके द्वारा किए गए कार्य, और महिलाओं के अधिकारों के लिए उनके संघर्ष को चित्रित करेंगे।
- यदि आपने रमानाथ का चयन किया है, तो यह उस पात्र के गुण, उनका व्यक्तित्व और उनके द्वारा किए गए योगदान को व्यक्त करेगा।
- यदि आपने गरुड़ का चयन किया है, तो यह उसके साहसिक कार्यों और उसके द्वारा किए गए महान कार्यों का चित्रण होगा।
ख: संस्कृत में उत्तर देना।
आपको दिए गए प्रश्नों का उत्तर संस्कृत में देना होगा, जैसे:
(i) शङ्करः कुत्र जन्म लेभे ? – केरल प्रदेशे।
(ii) जीमूतवाहनस्य पितुर्नाम किम् ? – जीमूतवाहनस्य पितुर्नाम वयस्स।
(iii) मदनमोहनमालवीयस्य जनकः कः आसीत् ? – मदनमोहनमालवीयस्य जनकः पण्डित रामनारायण मालवीयः आसीत्।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण करते समय पात्र के प्रमुख गुणों और उनके योगदान को प्रमुखता से व्यक्त करें, ताकि पाठक को उसका व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से समझ में आए।
(क) निम्नलिखित वाक्यों में दिए गए रेखांकित पदों के किसी एक में विभक्ति का नाम लिखिए :
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(क) विभक्ति का नाम:
- (i) मोहनं - द्वितीया विभक्ति (कर्म के रूप में)।
- (ii) हिमालयात् - पंचमी विभक्ति (स्थान का सूचक)।
- (iii) विद्यालये - सप्तमी विभक्ति (स्थान या कर्तव्य का सूचक)।
(ख) प्रत्यय की पहचान:
- (i) श्रुत्वा - 'वा' प्रत्यय, जो कृदन्त प्रत्यय है, क्रिया विशेषण के रूप में कार्य करता है।
- (ii) गन्तुम् - 'तुम्' प्रत्यय, जो अवधारणार्थक प्रत्यय है, जिसका उपयोग उद्देश्य या उद्देश्य के लिए किया जाता है।
- (iii) पठनीयः - 'नीय' प्रत्यय, जो विशेषण प्रत्यय के रूप में काम करता है।
Quick Tip: प्रत्यय और विभक्ति को पहचानने में भाषा के व्याकरणिक तत्वों का सही विश्लेषण आवश्यक है, ताकि सही चयन किया जा सके।
निम्नलिखित में से किसी एक का वाच्य परिवर्तन कीजिए :
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वाच्य परिवर्तन:
- वाक्य (क): "कृषकः आपणं गच्छति" का कर्मवाच्य रूप:
'आणं गच्छते कृषकः'।
- वाक्य (ख): "विरहिणी पत्रं लिखति" का भाववाच्य रूप:
'पत्रं लिखते विरहिणी'।
- वाक्य (ग): "मया हस्यते" का कर्तृवाच्य रूप:
'हसते'।
Quick Tip: वाच्य परिवर्तन करते समय ध्यान दें कि क्रिया का कर्ता, कर्म और उस क्रिया के रूप में क्या बदलाव आया है।
निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं तीन वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए :
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चरण 1: संस्कृत में अनुवाद
- (क) 'छात्र लोग विद्यालय जाते हैं।' – 'विद्यायाः छात्रा विद्यालयं यान्ति।'
- (ख) 'राम, मोहन तथा सोहन जाते हैं।' – 'रामः मोहनः च सोहनः यान्ति।'
- (ग) 'सीता को पढ़ना चाहिए ।' – 'सीतायाः पठितव्या।'
चरण 2: निष्कर्ष।
सही अनुवाद:
- (क) विद्यायाः छात्रा विद्यालयं यान्ति।
- (ख) रामः मोहनः च सोहनः यान्ति।
- (ग) सीतायाः पठितव्या।
Quick Tip: संस्कृत में अनुवाद करते समय वाक्य की संरचना और अर्थ को ध्यान में रखते हुए सही रूप में अनुवाद करें।
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर संस्कृत में आठ वाक्यों में निबन्ध लिखिए :
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चरण 1: विषय का चयन और निबंध लिखना।
यदि आपने परोपकार विषय चुना है, तो आप निबंध में परोपकार के महत्व, उसके लाभ, और समाज में इसके प्रभाव पर चर्चा करेंगे।
- उदाहरण निबंध: "परोपकार समाज के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। परोपकार से न केवल दूसरों की मदद होती है, बल्कि आत्मसंतुष्टि भी मिलती है। यह समाज में प्रेम और सहानुभूति का प्रसार करता है।"
चरण 2: निष्कर्ष।
निबंध में परोपकार के महत्व पर आठ वाक्यों में विचार करें।
Quick Tip: निबंध में बिंदुवार तरीके से विचार प्रस्तुत करें, ताकि पाठक को विषय का सही रूप में समझ में आए।
निम्नलिखित पदों में से किन्हीं दो पदों का संस्कृत वाक्यों में प्रयोग कीजिए :
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चरण 1: संस्कृत वाक्यों में प्रयोग
- (क) अहं: 'अहं पठामि।' (I am reading.)
- (ख) वयम्: 'वयं विद्यालयं गच्छामः।' (We are going to school.)
- (ग) गणेशाय: 'गणेशाय नमः।' (Salutations to Lord Ganesha.)
- (घ) यूयम्: 'यूयम् पुस्तकं पठति।' (You all are reading a book.)
- (ङ) पठामः: 'वयं संस्कृतं पठामः।' (We are studying Sanskrit.)
चरण 2: निष्कर्ष।
सही वाक्य:
- (क) अहं पठामि।
- (ख) वयं विद्यालयं गच्छामः।
- (ग) गणेशाय नमः।
Quick Tip: संस्कृत वाक्य निर्माण करते समय सही विभक्ति और क्रिया का प्रयोग करें।
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