UP Board Class 10 Hindi Question Paper 2025 (Code 801 BF) with Answer Key and Solutions PDF is Available to Download

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Shivam Yadav

Updated on - Nov 25, 2025

UP Board Class 10 Hindi Question Paper 2025 PDF (Code 801 BF) with Answer Key and Solutions PDF is available for download here. UP Board Class 10 exams were conducted between February 24th to March 12th 2025. The total marks for the theory paper were 70. Students reported the paper to be easy to moderate.

UP Board Class 10 Hindi Question Paper 2025 (Code 801 BF) with Solutions

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UP Board Class 10 Hindi Question Paper 2025 (Code 801 BF) with Solutions

Question 1:

‘रानी केतकी की कहानी’ के रचनाकार हैं :

  • (A) सदल मिश्र
  • (B) इंशा अल्ला ख़ाँ
  • (C) सदा सुख लाल
  • (D) लल्लू लाल
Correct Answer: (B) इंशा अल्ला ख़ाँ
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Step 1: About the work

‘रानी केतकी की कहानी’ हिंदी गद्य लेखन की प्रारंभिक रचनाओं में से एक मानी जाती है। यह एक गद्य रचना है जो कथा शैली में लिखी गई है।


Step 2: Author identification

इस गद्य रचना के रचयिता इंशा अल्ला ख़ाँ हैं। यह कहानी हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा में लिखी गई है और इसे हिंदी गद्य के विकास का आरंभिक उदाहरण माना जाता है। इंशा अल्ला ख़ाँ उर्दू के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे, जिन्होंने कथा लेखन की एक नई दिशा दी।


Step 3: Eliminating options

- (A) सदल मिश्र → कवि थे लेकिन इस रचना से संबंधित नहीं।

- (B) इंशा अल्ला ख़ाँ → सही उत्तर, ‘रानी केतकी की कहानी’ के रचनाकार।

- (C) सदा सुख लाल → इस रचना से संबंध नहीं।

- (D) लल्लू लाल → हिंदी गद्य के अन्य लेखकों में प्रमुख हैं, परंतु यह रचना उनकी नहीं है।


So, the correct option is (B) इंशा अल्ला ख़ाँ। Quick Tip: ‘रानी केतकी की कहानी’ को प्रारंभिक हिंदी गद्य का उदाहरण माना जाता है, और इसके रचनाकार इंशा अल्ला ख़ाँ थे।


Question 2:

‘अजातशत्रु’ नाटक के रचनाकार हैं :

  • (A) जयशंकर प्रसाद
  • (B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
  • (C) रामचन्द्र शुक्ल
  • (D) रामकुमार वर्मा
Correct Answer: (A) जयशंकर प्रसाद
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Step 1: Understanding the play

‘अजातशत्रु’ एक ऐतिहासिक नाटक है जिसे प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने लिखा है। यह नाटक बौद्धकालीन राजा अजातशत्रु के जीवन पर आधारित है और इसमें उनके जीवन की राजनीतिक व दार्शनिक उलझनों को दर्शाया गया है।


Step 2: About the author

जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी युग के प्रमुख लेखक थे। उन्होंने नाटक, कविता और कहानी में अद्वितीय योगदान दिया है। ‘अजातशत्रु’ उनके ऐतिहासिक नाटकों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।


Step 3: Option analysis

- (A) जयशंकर प्रसाद → सही उत्तर, ‘अजातशत्रु’ नाटक के रचनाकार।

- (B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद → भारत के प्रथम राष्ट्रपति, साहित्यिक रचना से संबंधित नहीं।

- (C) रामचन्द्र शुक्ल → आलोचक थे, नाटककार नहीं।

- (D) रामकुमार वर्मा → नाटककार थे, परंतु ‘अजातशत्रु’ उनके द्वारा नहीं लिखा गया।


So, the correct option is (A) जयशंकर प्रसाद। Quick Tip: ‘अजातशत्रु’ जयशंकर प्रसाद के ऐतिहासिक नाटकों में से एक है, जिसमें राजनैतिक और बौद्धिक द्वंद्व का सुंदर चित्रण है।


Question 3:

शुक्ल-युग के ‘आलोचना’ विधा के प्रमुख लेखक हैं :

  • (A) प्रेमचन्द
  • (B) प्रतापनारायण मिश्र
  • (C) रामचन्द्र शुक्ल
  • (D) इनमें से कोई नहीं
Correct Answer: (C) रामचन्द्र शुक्ल
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Step 1: Understanding the 'Shukla-Yug'

शुक्ल युग हिंदी गद्य साहित्य का वह कालखंड है जिसमें आलोचना को एक साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित किया गया।


Step 2: Identify the critic of this period

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिंदी साहित्य में 'आलोचना' विधा के जनक माने जाते हैं। उन्होंने 'हिंदी साहित्य का इतिहास', 'काव्य में लोक मंगल' आदि रचनाएँ दीं, जो आलोचना साहित्य की आधारशिला मानी जाती हैं।


Step 3: Evaluating other options

- (A) प्रेमचन्द → यद्यपि प्रेमचन्द एक महान साहित्यकार थे, लेकिन आलोचना विधा में उनका योगदान सीमित रहा।

- (B) प्रतापनारायण मिश्र → यह भारतेंदु युग के लेखक थे, आलोचना में उनकी पहचान नहीं रही।

- (C) रामचन्द्र शुक्ल → हिंदी आलोचना के स्थापक और शुक्ल-युग के प्रमुख आलोचक। सही उत्तर।

- (D) इनमें से कोई नहीं → गलत विकल्प क्योंकि (C) सही है।


Step 4: Conclusion

रामचन्द्र शुक्ल शुक्ल युग के प्रमुख आलोचक हैं। अतः सही उत्तर है विकल्प (C)।
Quick Tip: शुक्ल-युग में आलोचना विधा को गंभीरता से स्थापित किया गया और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को इसका मुख्य स्तंभ माना जाता है।


Question 4:

शुक्लोत्तर युग की समयावधि है :

  • (A) सन् 1900 से 1918 ई० तक
  • (B) सन् 1938 से 1947 ई०
  • (C) सन् 1947 से अब तक
  • (D) सन् 1918 से 1938 ई०
Correct Answer: (C) सन् 1947 से अब तक
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Step 1: Understanding 'शुक्लोत्तर युग'

'शुक्लोत्तर युग' हिंदी साहित्य में वह काल है जो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के बाद प्रारंभ होता है। यह काल स्वतंत्रता के बाद की विचारधाराओं, नई चेतनाओं और परिवर्तनों को दर्शाता है।


Step 2: Historical timeline

रामचन्द्र शुक्ल की मृत्यु 1941 में हुई थी, लेकिन साहित्यिक रूप में उनके प्रभाव को 1947 तक माना जाता है। इसके पश्चात जो युग आरंभ होता है, उसे 'शुक्लोत्तर युग' कहा जाता है।


Step 3: Analyzing the options

- (A) 1900 से 1918 → यह भारतेंदु युग से द्विवेदी युग का समय था, शुक्लोत्तर नहीं।

- (B) 1938 से 1947 → यह समय शुक्ल युग की समाप्ति की ओर था, शुक्लोत्तर नहीं।

- (C) 1947 से अब तक → यही शुक्लोत्तर युग का काल माना जाता है।

- (D) 1918 से 1938 → यह द्विवेदी युग के बाद शुक्ल युग की समयावधि थी।


Step 4: Conclusion

शुक्लोत्तर युग की समयावधि 1947 से अब तक मानी जाती है। इसलिए सही उत्तर है विकल्प (C)।
Quick Tip: शुक्लोत्तर युग में आधुनिकता, प्रयोगवाद, नई कविता, नारी विमर्श, दलित साहित्य जैसे विषयों को साहित्य में प्रमुखता मिली।


Question 5:

‘अनन्त आकाश’ के रचनाकार हैं :

  • (A) जयप्रकाश भारती
  • (B) धर्मवीर भारती
  • (C) बाबू गुलाब राय
  • (D) उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
Correct Answer: (B) धर्मवीर भारती
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Step 1: Understanding the book

‘अनन्त आकाश’ एक प्रसिद्ध हिंदी साहित्यिक कृति है, जिसकी रचना डॉ. धर्मवीर भारती ने की थी। यह काव्य संग्रह उनकी चिंतनशीलता और संवेदनशीलता को दर्शाता है।


Step 2: Author Background

धर्मवीर भारती हिंदी के प्रसिद्ध कवि, लेखक और पत्रकार रहे हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में 'अंधायुग', 'गुनाहों का देवता', और 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' जैसे कालजयी कृतियाँ शामिल हैं। 'अनन्त आकाश' भी उनके काव्य संग्रहों में से एक है।


Step 3: Option Elimination

- (A) जयप्रकाश भारती → कोई विशेष साहित्यिक रचना नहीं जुड़ी।

- (B) धर्मवीर भारती → सही उत्तर, 'अनन्त आकाश' के रचनाकार।

- (C) बाबू गुलाब राय → आलोचक रहे हैं, यह कृति उनकी नहीं है।

- (D) उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ → उपन्यास व नाटक लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं, यह रचना उनकी नहीं है।


So, the correct option is (B) धर्मवीर भारती। Quick Tip: धर्मवीर भारती का साहित्य सामाजिक, दार्शनिक और मानवीय मूल्यों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम रहा है।


Question 6:

प्रयोगवादी काव्य की विशेषता है :

  • (A) रस पर आधारित ग्रंथ
  • (B) आश्रयदाताओं की प्रशंसा
  • (C) नवीन उपमानों का प्रयोग
  • (D) इनमें से कोई नहीं
Correct Answer: (C) नवीन उपमानों का प्रयोग
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Step 1: Understanding प्रयोगवाद

प्रयोगवाद हिंदी काव्य की एक धारा है जो छायावाद के बाद उभरी। इसका मुख्य उद्देश्य नई भाषा-शैली, नई संवेदना और नवीन प्रतीकों द्वारा काव्य में नवीनता लाना था।


Step 2: Core Feature

प्रयोगवादी काव्य की सबसे प्रमुख विशेषता है — नवीन उपमानों और प्रतीकों का प्रयोग, जो परंपरागत भावबोध से भिन्न होता है। इसमें कवि अपनी अनुभूतियों को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है।


Step 3: Option Analysis

- (A) रस पर आधारित ग्रंथ → यह छायावाद या रीति काल की विशेषता हो सकती है, प्रयोगवाद की नहीं।

- (B) आश्रयदाताओं की प्रशंसा → यह प्राचीनकाल के दरबारी कवियों की विशेषता थी।

- (C) नवीन उपमानों का प्रयोग → यह प्रयोगवाद की मूल पहचान है।

- (D) इनमें से कोई नहीं → यह विकल्प असत्य है क्योंकि (C) सही है।


So, the correct option is (C) नवीन उपमानों का प्रयोग। Quick Tip: प्रयोगवादी कविता का उद्देश्य परंपरा को तोड़कर आधुनिक सोच और प्रयोगशीलता को अपनाना था।


Question 7:

रीतिकाल की समयावधि है :

  • (A) सन् 1643 से 1656 ई०
  • (B) सन् 1643 से 1843 ई०
  • (C) सन् 1643 से 1943 ई०
  • (D) सन् 1643 से 1800 ई०
Correct Answer: (D) सन् 1643 से 1800 ई०
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Step 1: Understanding 'रीतिकाल'

रीतिकाल हिंदी कविता का वह युग है जिसमें शृंगारिकता और रीति (नीति, रस, अलंकार आदि) प्रधान काव्य की रचना हुई। यह युग मुख्यतः दरबारी कवियों का युग माना जाता है।


Step 2: Time period of रीतिकाल

साहित्य के इतिहासकारों के अनुसार रीतिकाल की समयावधि सामान्यतः सन् 1643 ई० से 1800 ई० तक मानी जाती है। इस काल में केशवदास, बिहारी, भूषण, चिंतामणि त्रिपाठी जैसे कवियों ने रचनाएँ कीं।


Step 3: Analyzing the options

- (A) 1643 से 1656 → बहुत ही सीमित अवधि, जो रीतिकाल को समेट नहीं सकती।

- (B) 1643 से 1843 → यह अवधि अधिक लंबी है और द्विवेदी युग की शुरुआत तक पहुँच जाती है।

- (C) 1643 से 1943 → यह आधुनिक युग तक पहुँच जाती है, जो गलत है।

- (D) 1643 से 1800 → यह सही है, क्योंकि यह अवधि रीतिकाल के कवियों की रचनात्मकता को समाहित करती है।


Step 4: Conclusion

इस प्रकार रीतिकाल की मान्य समयावधि 1643 से 1800 ई० तक मानी जाती है। अतः सही उत्तर विकल्प (D) है।
Quick Tip: रीतिकाल की कविताएँ शृंगार रस पर आधारित होती हैं और इनमें नायिका-नायक की भावनाओं का सुंदर चित्रण मिलता है।


Question 8:

आधुनिक युग की ‘मीरा’ कही जाती हैं :

  • (A) मीराबाई
  • (B) सुभद्राकुमारी चौहान
  • (C) महादेवी वर्मा
  • (D) इनमें से कोई नहीं
Correct Answer: (C) महादेवी वर्मा
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Step 1: Understanding the title ‘आधुनिक मीरा’

महादेवी वर्मा को उनके काव्य में भक्ति, करुणा, और आत्मनिष्ठ भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए 'आधुनिक युग की मीरा' कहा जाता है। उनकी कविता में प्रेम, त्याग, और आध्यात्मिक भावनाएँ मीराबाई की तरह ही प्रबल हैं।


Step 2: Analyzing the options

- (A) मीराबाई → वे भक्ति काल की संत कवयित्री थीं, न कि आधुनिक युग की।

- (B) सुभद्राकुमारी चौहान → ये राष्ट्रभक्ति और वीर रस की कवयित्री थीं, 'मीरा' जैसे भक्ति भावों से संबद्ध नहीं हैं।

- (C) महादेवी वर्मा → इन्हें 'आधुनिक मीरा' की उपाधि प्राप्त है क्योंकि इनकी कविता में गहन आत्मानुभूति और आध्यात्मिक प्रेम की झलक मिलती है।

- (D) इनमें से कोई नहीं → गलत, क्योंकि (C) सही उत्तर है।


Step 3: Conclusion

महादेवी वर्मा को ‘आधुनिक युग की मीरा’ कहा जाता है। अतः सही उत्तर है (C)।
Quick Tip: महादेवी वर्मा की कविता 'नीहार', 'रश्मि', 'दीपशिखा' आदि में गहरी करुणा और साधना की भावना दिखाई देती है।


Question 9:

‘मैथिलीशरण गुप्त’ की रचना है :

  • (A) परिवर्तन
  • (B) भारत-भारती
  • (C) नीरजा
  • (D) कामायनी
Correct Answer: (B) भारत-भारती
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Step 1: About मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त को हिंदी खड़ी बोली काव्य के पितामह कहा जाता है। वे राष्ट्रवादी विचारों और देशभक्ति से परिपूर्ण काव्य के लिए प्रसिद्ध हैं।


Step 2: भारत-भारती का परिचय

‘भारत-भारती’ मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध काव्य कृति है, जो स्वतंत्रता आंदोलन के समय लिखी गई थी। इसमें भारतीय संस्कृति, गौरव, और स्वतंत्रता की भावना को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया गया है।


Step 3: Option Analysis

- (A) परिवर्तन → अन्य रचनाकार की रचना है।

- (B) भारत-भारती → सही उत्तर; मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख देशभक्ति काव्य रचना।

- (C) नीरजा → जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित काव्य है।

- (D) कामायनी → यह रचना जयशंकर प्रसाद की है।


So, the correct option is (B) भारत-भारती। Quick Tip: मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत-भारती’ ने हिंदी काव्य को राष्ट्रीय चेतना और खड़ी बोली की दिशा में अग्रसर किया।


Question 10:

केदारनाथ सिंह किस ‘समसक’ के कवि हैं ?

  • (A) ‘तार समसक’ के
  • (B) ‘दूसरा समसक’ के
  • (C) ‘तीसरा समसक’ के
  • (D) ‘चौथा समसक’ के
Correct Answer: (C) ‘तीसरा समसक’ के
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Step 1: समसक का अर्थ

‘समसक’ शब्द का प्रयोग कवियों की पीढ़ियों या काव्य प्रवृत्तियों को दर्शाने के लिए किया जाता है। ‘तीसरा समसक’ उन कवियों को कहा जाता है जिन्होंने प्रयोगवाद और नई कविता के बाद एक नया मार्ग अपनाया।


Step 2: केदारनाथ सिंह का योगदान

केदारनाथ सिंह ‘तीसरा समसक’ के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वे भाषा की सांद्रता, प्रतीकात्मकता और यथार्थ की नई दृष्टि के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी कविताएं आम जनजीवन से जुड़ी होती हैं।


Step 3: Option Verification

- (A) ‘तार समसक’ → कोई प्रचलित श्रेणी नहीं है।

- (B) ‘दूसरा समसक’ → प्रयोगवाद और नई कविता के कवि इसमें आते हैं।

- (C) ‘तीसरा समसक’ → सही उत्तर; केदारनाथ सिंह इसी पीढ़ी से संबद्ध हैं।

- (D) ‘चौथा समसक’ → यह नई कविता के बाद की एक और पीढ़ी हो सकती है लेकिन केदारनाथ सिंह इससे पहले के कवि हैं।


So, the correct option is (C) ‘तीसरा समसक’ के। Quick Tip: ‘तीसरा समसक’ के कवियों ने कविता को जनजीवन और सामाजिक यथार्थ से जोड़ने का कार्य किया, जिसमें केदारनाथ सिंह प्रमुख हैं।


Question 11:

जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति सी छाई।

द्रुतिचित में आँसू बनकर, वह आज बरसने आयी॥

उपयुक्त पंक्तियों में रस है:

  • (A) वीर रस
  • (B) करुण रस
  • (C) हास्य रस
  • (D) शांत रस
Correct Answer: (B) करुण रस
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Step 1: Understand the emotion conveyed

पंक्तियों में 'घनीभूत पीड़ा', 'स्मृति', 'आँसू', और 'बरसने आयी' जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है, जो गहरे दुःख और संवेदना की अभिव्यक्ति करते हैं। यह पीड़ा किसी स्मृति के रूप में मस्तिष्क में समाई हुई थी और अब आँसू बनकर बह रही है।


Step 2: Identify the रस (aesthetic sentiment)

ऐसी अभिव्यक्ति जहाँ दुःख, पीड़ा, स्मरण और आँसुओं का वर्णन हो — वहाँ ‘करुण रस’ की प्रधानता होती है। यह रस शोक, पीड़ा या करुणा के भावों को उजागर करता है।


Step 3: Eliminate other options

- (A) वीर रस → इसमें शौर्य, उत्साह होता है, जो यहाँ नहीं है।

- (C) हास्य रस → यह हास्य व विनोद से संबंधित है, जो इन पंक्तियों में नहीं है।

- (D) शांत रस → यह वैराग्य एवं अध्यात्मिक शांति से जुड़ा होता है, लेकिन यहाँ भावुकता और करुणा है।


Conclusion:

इसलिए, उपयुक्त रस है करुण रस। सही उत्तर (B) है।
Quick Tip: जब काव्य पंक्तियों में दुःख, आँसू, पीड़ा और स्मृति की अभिव्यक्ति हो — वहाँ करुण रस की उपस्थिति मानी जाती है।


Question 12:

रूपक अलंकार होता है :

  • (A) उपमेय-उपमान की समानता में
  • (B) उपमेय-उपमान के अभेद में
  • (C) उपमेय से उपमान की विशिष्टता में
  • (D) उपमेय से उपमान की हीनता में
Correct Answer: (B) उपमेय-उपमान के अभेद में
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Step 1: Definition of रूपक अलंकार

रूपक अलंकार वह अलंकार है जिसमें उपमेय और उपमान में इतना अधिक अभेद दिखाया जाता है कि वे दोनों एक ही समझे जाते हैं। वहाँ पर 'जैसे', 'प्रायः', 'तुल्य', आदि शब्दों का प्रयोग नहीं होता।


Step 2: उदाहरण द्वारा स्पष्टता

उदाहरण: “चाँद सा मुखड़ा” में उपमेय 'मुखड़ा' है और उपमान 'चाँद', परंतु जब हम कहते हैं “मुखड़ा चाँद है” — तो यह रूपक अलंकार बनता है। इसमें दोनों को एक माना गया है।


Step 3: विकल्पों का विश्लेषण

- (A) समानता में → यह उपमा अलंकार का लक्षण है।

- (B) अभेद में → यही रूपक अलंकार की पहचान है, जहाँ उपमेय-उपमान में भेद नहीं रहता।

- (C) विशिष्टता में → यह दृष्टांत आदि अलंकार से संबंधित हो सकता है।

- (D) हीनता में → यह उपेक्षा सूचक अलंकारों से जुड़ा हो सकता है।


Conclusion:

रूपक अलंकार का मूल आधार है उपमेय-उपमान के अभेद में, इसलिए सही उत्तर है विकल्प (B)।
Quick Tip: जब किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के रूप में प्रत्यक्ष प्रस्तुत किया जाए और उनके बीच कोई तुलना शब्द न हो — तब रूपक अलंकार होता है।


Question 13:

किस छन्द के प्रत्येक चरण में 11–13 के विराम से 24 मात्राएँ होती हैं ?

  • (A) दोहा
  • (B) रोला
  • (C) चौपाई
  • (D) बर्वे
Correct Answer: (C) चौपाई
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Step 1: Understanding the structure of छन्द (Chhand)

हिंदी कविता में छन्दों का विशेष स्थान होता है। प्रत्येक छन्द में निश्चित मात्राओं और विरामों की व्यवस्था होती है। चौपाई एक प्रसिद्ध छन्द है जिसमें प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।


Step 2: Structure of चौपाई

चौपाई छन्द के प्रत्येक चरण में कुल 24 मात्राएँ होती हैं, जिसमें 11–13 मात्रा पर यथासंभव विराम होता है। यह तुलसीदास की रामचरितमानस जैसी रचनाओं में बहुतायत में देखने को मिलता है।


Step 3: Eliminating the options

- (A) दोहा → इसमें 13+11 मात्राओं का विन्यास होता है, कुल 24 पर चरण विभाजन भिन्न होता है।

- (B) रोला → इसमें 24 मात्राएँ नहीं होतीं, इसकी संरचना अलग है।

- (C) चौपाई → सही उत्तर; प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।

- (D) बर्वे → यह भी अन्य प्रकार का छन्द है पर इसमें 24 मात्राओं की व्यवस्था नहीं होती।


So, the correct option is (C) चौपाई। Quick Tip: चौपाई छन्द तुलसीदास और कबीर जैसे कवियों की प्रमुख शैली है, जिसमें चार चरण और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।


Question 14:

‘परिपूर्ण’ शब्द में उपसर्ग है :

  • (A) प
  • (B) परि
  • (C) पूर्ण
  • (D) पर
Correct Answer: (B) परि
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Step 1: Understanding उपसर्ग (prefix)

हिंदी व्याकरण में उपसर्ग वे शब्दांश होते हैं जो मूल शब्द से पहले जुड़कर उसका अर्थ परिवर्तित करते हैं। जैसे 'अ', 'प्रति', 'वि', 'परि' आदि।


Step 2: Breaking the word ‘परिपूर्ण’

‘परिपूर्ण’ = परि (उपसर्ग) + पूर्ण (मूल शब्द)

यहाँ 'परि' उपसर्ग है जो किसी वस्तु की सम्पूर्णता या चारों ओर व्याप्त होने का बोध कराता है।


Step 3: Option Analysis

- (A) प → कोई स्वतंत्र उपसर्ग नहीं है।

- (B) परि → सही उत्तर; ‘परिपूर्ण’ शब्द में यही उपसर्ग है।

- (C) पूर्ण → यह मूल शब्द है, उपसर्ग नहीं।

- (D) पर → यह भी स्वतंत्र उपसर्ग हो सकता है, लेकिन यहाँ उपयुक्त नहीं।


So, the correct option is (B) परि। Quick Tip: ‘परि’ उपसर्ग का प्रयोग ऐसे शब्दों में होता है जो व्यापकता या परिपूर्णता को दर्शाते हैं, जैसे – परिकल्पना, परिनिर्माण, परिपूर्ण आदि।


Question 15:

‘माता-पिता’ में समास है :

  • (A) अव्ययीभाव समास
  • (B) द्वंद्व समास
  • (C) द्रव्य समास
  • (D) कर्मधारय समास
Correct Answer: (B) द्वंद्व समास
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Step 1: Understanding the compound

'माता-पिता' शब्द में दो अलग-अलग व्यक्तियों का योग है — 'माता' और 'पिता'। दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और किसी एक को प्रधान नहीं माना गया है।


Step 2: Identifying the समास

जब दो या दो से अधिक पदों में समानता हो और उनका योग करके एक शब्द बने, तथा दोनों पदों का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहे, तो वह द्वंद्व समास कहलाता है।


Step 3: Analyzing other options

- (A) अव्ययीभाव समास → जब पूरा समास एक अव्यय के रूप में प्रयुक्त हो, जैसे ‘दिनभर’।

- (C) द्रव्य समास → यह विकल्प भाषा-विज्ञान की दृष्टि से प्रचलित नहीं है; यह यहाँ अप्रासंगिक है।

- (D) कर्मधारय समास → जब विशेष्य और विशेषण एक साथ जुड़ते हैं, जैसे "नीलकमल"। यह यहाँ लागू नहीं होता।


Step 4: Conclusion

‘माता-पिता’ में दोनों पद समान महत्व रखते हैं और मिलकर एक संयुक्त रूप बनाते हैं, इसलिए यह द्वंद्व समास है।
Quick Tip: जब दोनों पदों को जोड़कर एक नया शब्द बने और दोनों का स्वतंत्र महत्व हो — तब द्वंद्व समास होता है।


Question 16:

‘धीरज’ शब्द का तत्सम-रूप कौन-सा है ?

  • (A) धैर्य
  • (B) धारण
  • (C) शांति
  • (D) सहन करना
Correct Answer: (A) धैर्य
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Step 1: Understand the शब्द रूपांतरण

‘धीरज’ एक तद्भव शब्द है जिसका प्रयोग सामान्य बोलचाल में होता है। तद्भव शब्द वे होते हैं जो संस्कृत शब्दों से अपभ्रंश होकर बने होते हैं।


Step 2: Find the तत्सम रूप

'धीरज' शब्द का मूल तत्सम रूप है धैर्य। यह संस्कृत शब्द है और व्याकरणिक रूप से परिपूर्ण तथा शुद्ध है।


Step 3: Evaluate the other options

- (B) धारण → यह एक अलग क्रिया रूप है, अर्थ संबंधित हो सकता है पर तत्सम रूप नहीं है।

- (C) शांति → यह एक स्वतंत्र शब्द है, ‘धीरज’ का पर्याय हो सकता है, पर तत्सम नहीं।

- (D) सहन करना → यह तो क्रियात्मक अर्थ है, न कि तत्सम संज्ञा रूप।


Step 4: Conclusion

इसलिए ‘धीरज’ का तत्सम रूप धैर्य है। सही उत्तर है विकल्प (A)।
Quick Tip: संस्कृत से जैसे के तैसे आए शब्द ‘तत्सम’ होते हैं; धैर्य → धीरज एक आम तद्भव उदाहरण है।


Question 17:

‘तस्य’ शब्द में विभक्ति और वचन है :

  • (A) द्वितीया, एकवचन
  • (B) चतुर्थी, एकवचन
  • (C) षष्ठी, एकवचन
  • (D) प्रथमा, एकवचन
Correct Answer: (C) षष्ठी, एकवचन
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Step 1: Understanding the word 'तस्य'

‘तस्य’ संस्कृत शब्द है, जो ‘सः’ (अर्थात् 'वह') शब्द का एक रूप है। यह किसी व्यक्ति या वस्तु के संबंध को दर्शाने के लिए प्रयोग होता है, जैसे — “तस्य नाम रामः” (उसका नाम राम है)।


Step 2: Determining विभक्ति and वचन

‘तस्य’ में प्रयोग हुई विभक्ति है षष्ठी (छठी विभक्ति), जो संबंधवाचक (possessive) अर्थ प्रदान करती है।

यह शब्द एकवचन है क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति/वस्तु के लिए प्रयोग किया गया है।


Step 3: Option Analysis

- (A) द्वितीया, एकवचन → द्वितीया विभक्ति कर्म कारक दर्शाती है, जो यहाँ नहीं है।

- (B) चतुर्थी, एकवचन → चतुर्थी दान या हेतु कारक में प्रयुक्त होती है।

- (C) षष्ठी, एकवचन → सही उत्तर, क्योंकि ‘तस्य’ संबंधवाचक रूप है।

- (D) प्रथमा, एकवचन → प्रथमा कर्ता को दर्शाती है, लेकिन ‘तस्य’ कर्ता नहीं है।


So, the correct option is (C) षष्ठी, एकवचन। Quick Tip: षष्ठी विभक्ति का प्रयोग प्रायः संबंध दर्शाने के लिए होता है, जैसे — 'तस्य', 'रामस्य', 'गुरोः' आदि।


Question 18:

जिस वाक्य में क्रिया की प्रधानता हो, वह वाच्य है :

  • (A) कर्तृवाच्य
  • (B) कर्मवाच्य
  • (C) भाववाच्य
  • (D) इनमें से कोई नहीं
Correct Answer: (C) भाववाच्य
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Step 1: वाच्य का अर्थ

वाच्य का अर्थ है — वाक्य में किस पक्ष को प्रमुखता दी गई है। हिंदी में तीन वाच्य होते हैं:

- कर्तृवाच्य (कर्ता प्रधान)

- कर्मवाच्य (कर्म प्रधान)

- भाववाच्य (क्रिया प्रधान)


Step 2: What is भाववाच्य?

जब किसी वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों स्पष्ट नहीं होते और केवल क्रिया ही प्रमुख रूप से व्यक्त होती है, तो उसे भाववाच्य कहते हैं। जैसे — “यहाँ नाचना मना है।”


Step 3: Option Analysis

- (A) कर्तृवाच्य → इसमें कर्ता प्रमुख होता है।

- (B) कर्मवाच्य → इसमें कर्म प्रमुख होता है।

- (C) भाववाच्य → सही उत्तर; क्रिया की प्रधानता को दर्शाता है।

- (D) इनमें से कोई नहीं → गलत, क्योंकि (C) सही है।


So, the correct option is (C) भाववाच्य। Quick Tip: जब वाक्य में 'नाचना', 'गाना', 'पढ़ना' जैसे केवल कार्य या क्रिया को महत्व मिले, तो वह भाववाच्य होता है।


Question 19:

विकारी पद (शब्द) कितने प्रकार के होते हैं ?

  • (A) 2
  • (B) 4
  • (C) 3
  • (D) 6
Correct Answer: (B) 4
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Step 1: Understanding 'विकारी पद'

विकारी पद वे शब्द होते हैं जो लिंग, वचन, कारक, काल, पुरुष आदि के अनुसार रूप बदल सकते हैं।


Step 2: Types of Vikaarī pad (inflected words)

हिंदी में चार प्रकार के विकारी पद माने जाते हैं:
1. संज्ञा

2. सर्वनाम

3. विशेषण

4. क्रिया


इन सभी में किसी न किसी प्रकार का विकार (रूप परिवर्तन) होता है, जैसे क्रिया काल और पुरुष अनुसार बदलती है, संज्ञा-विशेषण लिंग और वचन अनुसार।


Step 3: Conclusion

अतः विकारी पद कुल 4 प्रकार के होते हैं। सही उत्तर (B) है।
Quick Tip: जो शब्द अपने रूप में परिवर्तन करते हैं — वे विकारी शब्द कहलाते हैं। हिंदी में 4 विकारी पद होते हैं: संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, और क्रिया।


Question 20:

जातिवाचक ‘संज्ञा’ शब्द है :

  • (A) शिक्षक
  • (B) दरबार
  • (C) अँधेरा
  • (D) कोमल
Correct Answer: (A) शिक्षक
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Step 1: Understanding 'जातिवाचक संज्ञा'

जातिवाचक संज्ञा वह होती है जो किसी वर्ग, जाति, या समूह का बोध कराए — जैसे 'लड़का', 'कुत्ता', 'पक्षी', 'शिक्षक' इत्यादि। यह किसी व्यक्ति विशेष को न बताकर उसके वर्ग या श्रेणी को सूचित करता है।


Step 2: Option Analysis

- (A) शिक्षक → यह एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक श्रेणी का बोध कराता है। अतः यह जातिवाचक संज्ञा है।

- (B) दरबार → यह भाववाचक या स्थानवाचक संज्ञा के अंतर्गत आ सकता है, जातिवाचक नहीं।

- (C) अँधेरा → यह भाववाचक संज्ञा है।

- (D) कोमल → यह विशेषण है, न कि संज्ञा।


Step 3: Conclusion

‘शिक्षक’ शब्द जातिवाचक संज्ञा का उदाहरण है। इसलिए सही उत्तर (A) है।
Quick Tip: जो शब्द किसी वर्ग या समूह को दर्शाएँ — जैसे 'चिकित्सक', 'पक्षी', 'वृक्ष' — वे जातिवाचक संज्ञा होते हैं।


Question 21:

उपयुक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

Correct Answer:
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संदर्भ:
यह गद्यांश एक नाटकीय और भावनात्मक संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो नैतिकता, कर्तव्य और आदर्शों के संघर्ष को उजागर करता है। इसमें ममता, जो एक ब्राह्मणी है, अतिथि सत्कार जैसे धर्म-सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए दया भाव प्रकट करना चाहती है। वहीं दूसरी ओर शूल नामक पात्र अपनी आत्म-सम्मान, कर्तव्यबोध और वंश की गरिमा की रक्षा करते हुए छल का विरोध करता है। यह संवाद उस परिस्थिति को चित्रित करता है जब व्यक्ति को धर्म और व्यावहारिकता के बीच कठिन निर्णय लेना पड़ता है। ममता जहाँ ‘अतिथि देवो भव’ की भावना से प्रेरित है, वहीं शूल ‘धर्म और मर्यादा की रक्षा’ को सर्वोपरि मानता है।

इस गद्यांश का सन्दर्भ उस स्थिति में है जब ममता असमंजस की स्थिति में होती है, परन्तु अंततः शूल के दृढ़ और स्पष्ट वक्तव्य से स्थिति स्पष्ट होती है कि वह किसी भी स्थिति में छल का सहारा नहीं लेगा, चाहे परिणाम कुछ भी हो। यह संवाद पाठकों को यह संदेश देता है कि सच्चे धर्म का पालन केवल रीति-रिवाजों से नहीं, बल्कि नैतिक साहस और आत्मसम्मान से होता है। Quick Tip: सन्दर्भ लिखते समय यह अवश्य बताएं कि गद्यांश किन पात्रों के संवाद पर आधारित है, कौन-सी स्थिति में कहा गया है, और इसका उद्देश्य क्या है। इससे उत्तर अधिक प्रभावशाली बनता है।


Question 22:

ममता ने किस उपासना का पालन किया?

Correct Answer:
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उत्तर:
ममता ने अपने धर्म के अनुरूप ‘अतिथि देवो भव’ की उपासना का पालन किया। उसने यह महसूस किया कि एक ब्राह्मणी होने के नाते, उसे प्रत्येक अतिथि के प्रति आदर और सेवा का भाव रखना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या विचारधारा का क्यों न हो। अतिथि को देवता के समान मानकर उसकी सेवा करना भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है, और ममता इसी भावना से प्रेरित थी।

हालांकि, वह इस विचारधारा के साथ संघर्ष करती दिखती है क्योंकि जिस अतिथि को वह दया देना चाहती है, वह ‘विधर्मी’ है — यानि भिन्न मत या विचार का व्यक्ति। इसके बावजूद ममता का अंतर्मन उसे दया दिखाने के लिए प्रेरित करता है। यहाँ ‘अतिथि उपासना’ केवल सांस्कृतिक परंपरा नहीं, बल्कि एक मानवीय मूल्य के रूप में प्रस्तुत होती है, जिसमें हर जीव के प्रति सहानुभूति और सेवा की भावना निहित है।

इस प्रकार ममता की उपासना, केवल धार्मिक नियमों का पालन नहीं, बल्कि एक गहरी मानवीय संवेदना को दर्शाती है — जो समाज की सच्ची नैतिकता की पहचान है। Quick Tip: यदि प्रश्न में 'उपासना' शब्द दिया गया हो, तो उत्तर में धार्मिक/नैतिक आस्था का स्पष्ट उल्लेख करना आवश्यक है, ताकि उत्तर मूल भावना से जुड़ा रहे।


Question 23:

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

Correct Answer:
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व्याख्या:
“छल! नहीं, तब नहीं सही! जाता हूँ, तैमूर का वंशधर छी से छल करेगा? जाता हूँ!” — यह पंक्तियाँ शूल के आत्मबल, आदर्शवाद और उसकी नैतिक दृढ़ता को दर्शाती हैं। इस पंक्ति में शूल एक निर्णायक स्वर में बोलता है, जब उसे ममता द्वारा छद्म और कपट का मार्ग अपनाने का सुझाव दिया जाता है। शूल उस सुझाव को न केवल अस्वीकार करता है, बल्कि क्रोध और आत्मगौरव से भरकर कहता है कि वह तैमूर का वंशधर होते हुए कभी छल नहीं करेगा।

यह पंक्तियाँ उस व्यक्ति की आंतरिक दृढ़ता को उजागर करती हैं जो भले ही संकट में हो, परन्तु अपने सिद्धांतों से नहीं डिगता। वह सत्य, न्याय और ईमानदारी को सर्वोच्च मानता है और यह स्वीकार करने से भी नहीं डरता कि यदि परिस्थितियाँ विपरीत हैं तो वह मरना पसंद करेगा, पर छल नहीं करेगा।

यह कथन एक प्रेरणादायक विचार बन जाता है — कि मनुष्य को अपने मूल्य, अपने आदर्श, और अपनी आत्म-संस्कृति से कभी समझौता नहीं करना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। शूल के ये शब्द हमें आत्मसम्मान, साहस और नैतिक निष्ठा की शिक्षा देते हैं। Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या करते समय केवल शब्दों का अर्थ न लिखें, बल्कि उसमें छिपी भावना, विचार और पात्र के चरित्र की व्याख्या करना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।


Question 24:

उपयुक्त गद्यांश के पाठ का नाम और लेखक का नाम लिखिए।

Correct Answer:
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पाठ का नाम: गत्यात्मक पृथ्वी

लेखक का नाम: जयंत विष्णु नारळीकर


यह गद्यांश विज्ञान विषय पर आधारित पाठ ‘गत्यात्मक पृथ्वी’ से लिया गया है, जिसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक और विज्ञान लेखक जयंत विष्णु नारळीकर ने लिखा है। लेखक एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री रहे हैं और उन्होंने विज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत करने का अद्वितीय कार्य किया है। इस पाठ में उन्होंने पृथ्वी, चंद्रमा और अन्य ग्रहों से संबंधित वैज्ञानिक शोध, अंतरिक्ष यात्राएँ, और मानव की भविष्य की संभावनाओं पर विचार प्रस्तुत किए हैं।


गद्यांश में बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य चंद्रमा और अन्य ग्रहों की ओर अग्रसर हो रहा है। लेखक यह बताना चाहते हैं कि अब मनुष्य केवल पृथ्वी तक सीमित नहीं रह सकता — उसकी जिज्ञासा, विज्ञान में प्रगति और अज्ञात की खोज की प्रवृत्ति उसे निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। यह विचार ‘गत्यात्मक पृथ्वी’ नामक पाठ की मूल भावना से मेल खाता है, जिसमें मानव सभ्यता की वैज्ञानिक उन्नति को उजागर किया गया है। Quick Tip: किसी भी गद्यांश से संबंधित पाठ का नाम और लेखक बताने के लिए उसकी विषयवस्तु, शैली, और शब्दावली को ध्यान से पढ़ें। यदि उसमें विज्ञान, खोज या अंतरिक्ष से संबंधित बातें हों, तो ‘गत्यात्मक पृथ्वी’ जैसे पाठ की पहचान की जा सकती है।


Question 25:

अंतरिक्ष में स्टेशन बन जाने से मानव को किसमें सहायता मिलेगी?

Correct Answer:
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अंतरिक्ष में स्टेशन बनने से मानव को ब्रह्मांड के रहस्यों की गहराई तक पहुँचने में सहायता मिलेगी। इस गद्यांश में यह विचार प्रमुख रूप से व्यक्त किया गया है कि मानव अब चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले स्टेशन स्थापित करने के प्रयास में जुट गया है। ऐसे स्टेशनों की स्थापना से वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड का अधिक सूक्ष्म और व्यापक अध्ययन करने का अवसर मिलेगा।


इस प्रकार के स्टेशन से वैज्ञानिकों को निम्नलिखित प्रकार की सहायता प्राप्त हो सकेगी —

1. ब्रह्मांड के रहस्यों की खोज: अंतरिक्ष में स्थितियों का अवलोकन करना आसान होगा जिससे ग्रहों, तारों, और आकाशगंगाओं की संरचना को समझा जा सकेगा।
2. अंतरिक्ष से पृथ्वी का अध्ययन: पृथ्वी के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और अन्य भौगोलिक घटनाओं का विश्लेषण करना संभव होगा।
3. दीर्घकालिक अंतरिक्ष यात्राओं की योजना: ऐसे स्टेशन अगली पीढ़ी की ग्रहों की यात्राओं के लिए प्रक्षेपण स्थल के रूप में कार्य कर सकते हैं।
4. अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावना की खोज: वैज्ञानिक इन स्टेशनों से अंतरिक्ष में अधिक दूर तक जाकर जीवन की संभावनाओं को खोज सकेंगे।


इस प्रकार, इन स्टेशनों की सहायता से मानव केवल पृथ्वी पर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड को समझने की दिशा में अग्रसर हो सकेगा। Quick Tip: उत्तर को विस्तार से देने के लिए मुख्य वाक्यांशों को केंद्र में रखें, जैसे ‘ब्रह्मांड के रहस्यों की परतें खोलने में सहायता’, और फिर उसे उप-विषयों में विभाजित कर स्पष्ट करें।


Question 26:

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए — "यह पृथ्वी मानव के लिये पालने के हमेशा-हमेशा के लिए इसकी परिधि में बँधा हुआ नहीं रह सकता।"

Correct Answer:
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व्याख्या:
इस पंक्ति में लेखक यह स्पष्ट कर रहे हैं कि मनुष्य केवल पृथ्वी तक सीमित नहीं रह सकता। वह जन्म से पृथ्वी का वासी जरूर है, लेकिन उसका मस्तिष्क, उसकी कल्पना और उसकी वैज्ञानिक जिज्ञासा उसे इस ग्रह की सीमा से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करती है। लेखक ने ‘पृथ्वी को पालना’ कहा है — इसका आशय है कि जैसे शिशु जन्म के बाद पालने में सुरक्षित रहता है, वैसे ही मानव भी प्रारंभिक अवस्था में पृथ्वी तक सीमित था।


लेकिन जैसे ही शिशु बड़ा होता है, वह पालने की सीमाओं को तोड़कर बाहर की दुनिया में कदम रखता है — ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी अब अपनी जिज्ञासा और उन्नति के बल पर अंतरिक्ष, ग्रहों और तारों की ओर अग्रसर हो रहा है।


इस पंक्ति में यह विचार व्यक्त किया गया है कि मानव एक सीमित जीवन के लिए नहीं बना है। वह अनंत संभावनाओं को खोजना चाहता है। उसकी वैज्ञानिक सोच उसे कभी भी स्थिर नहीं रहने देती। वह अनिश्चितता और अज्ञात की खोज को अपना उद्देश्य बनाता है।


यह पंक्ति मानव सभ्यता की उस प्रवृत्ति को दर्शाती है, जो उसे सदा आगे बढ़ने, नये आयामों को छूने और सत्य की खोज के लिए प्रयासरत बनाए रखती है। लेखक का संकेत है कि जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति करेगा, मानव पृथ्वी की सीमाओं को पार करके अंतहीन ब्रह्मांड में स्वयं को स्थापित करेगा। Quick Tip: रेखांकित अंशों की व्याख्या करते समय उस विचारधारा और प्रतीकात्मकता को स्पष्ट करें जो लेखक ने शब्दों के पीछे छिपाई है। 'पालना' और 'परिधि' जैसे शब्दों को प्रतीक रूप में समझें।


Question 27:

उपयुक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

Correct Answer:
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संदर्भ:
यह पद्यांश हिंदी साहित्य के भक्ति काल के प्रसिद्ध कवि सूरदास की रचना से लिया गया है, जो कि श्रीकृष्ण भक्ति पर केंद्रित है। सूरदास अपनी रचनाओं में भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप, बाललीलाओं, सौंदर्य और मधुर भावनाओं का अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्रण करते हैं।

इस पद्यांश में उन्होंने बालकृष्ण के रूप-सौंदर्य का अत्यंत मोहक वर्णन किया है। श्रीकृष्ण को नीलमणि के समान श्याम वर्ण का बताया गया है, जो रजत (चाँदी) के समान उज्ज्वल वातावरण में और भी अधिक आकर्षक प्रतीत हो रहे हैं। ब्रज की प्राकृतिक छटा, मयूर-पंख, चंद्रिका (चाँदनी), नीले पर्वत, पीत वस्त्र, और प्रभातकालीन वातावरण — इन सभी का संयोजन इस पद्यांश को अत्यंत प्रभावशाली बनाता है।

यह पद्यांश बालकृष्ण के उस सौंदर्य का चित्र प्रस्तुत करता है जिसे देखकर मनुष्य ही नहीं, प्रकृति भी आकर्षित हो उठती है। यह संदर्भ कृष्ण के अलौकिक सौंदर्य और ब्रज की सांस्कृतिक समृद्धि का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करता है। Quick Tip: संदर्भ में हमेशा यह स्पष्ट करें कि यह पद्यांश किस कवि/रचना से लिया गया है, किस प्रसंग में कहा गया है, और इसका केंद्रीय भाव क्या है।


Question 28:

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए — “मनो नीलमणि-शैल पर आतपु परयो प्रभात।”

Correct Answer:
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शाब्दिक अर्थ:
इस पंक्ति में कवि कहता है कि जैसे नीले रंग के मणिशिला (नीलमणि जैसे पर्वत) पर जब प्रातःकालीन सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो वह पर्वत अत्यंत चमकदार और तेजस्वी हो जाता है — ठीक उसी प्रकार बालक श्रीकृष्ण का शरीर श्यामवर्ण होते हुए भी सूर्य की किरणों के प्रभाव से अद्वितीय रूप से दीप्तिमान हो उठता है।

भावार्थ:
कवि श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य की तुलना नीलमणि के पर्वत से कर रहा है। कृष्ण का श्याम वर्ण उनके शरीर को गहराई देता है, और जब प्रभात का प्रकाश उस पर पड़ता है, तो वह अद्भुत सौंदर्य से युक्त दिखाई देता है। यहाँ रूप की तुलना केवल भौतिक नहीं है, बल्कि उसमें दिव्यता, तेजस्विता और आध्यात्मिक आभा भी समाहित है। यह वर्णन केवल बाह्य रूप का चित्रण नहीं करता, बल्कि कृष्ण की आंतरिक दिव्यता को भी प्रकाशित करता है।

सौंदर्य पक्ष:
यह पंक्ति उपमा और रूपक के माध्यम से अत्यंत भावनात्मक और दृश्यात्मक सौंदर्य प्रस्तुत करती है। सूर्योदय, नीलमणि, और प्रभात का संयोजन एक ऐसा चित्र रचता है जो पाठक के मन में एक शांत, पवित्र और दिव्य दृश्य उत्पन्न करता है। श्रीकृष्ण का यह रूप दर्शक के हृदय को मंत्रमुग्ध कर देता है। Quick Tip: व्याख्या करते समय तीन मुख्य बातों का ध्यान रखें: शाब्दिक अर्थ, भावार्थ (आंतरिक अर्थ), और कविता की सौंदर्यात्मक विशेषता।


Question 29:

पद्यांश में प्रयुक्त अलंकारों को पहचानकर उनके नाम लिखिए।

Correct Answer:
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पद्यांश में निम्नलिखित अलंकारों का प्रयोग किया गया है:


रूपक अलंकार:
जब किसी वस्तु की उपमा न देकर उसे उसी वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है। उदाहरण:

“मनो नीलमणि-शैल पर आतपु परयो प्रभात।” — यहाँ श्रीकृष्ण के शरीर को सीधे रूप में नीलमणि पर्वत कहा गया है, जो कि रूपक अलंकार का उदाहरण है।

उपमा अलंकार:
जहाँ किसी वस्तु की तुलना स्पष्ट रूप से “जैसे”, “मानो”, “तुल्य” आदि शब्दों से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।

उदाहरण: “मनु ससि सेखर की अकस, किये सेखर सत चंद” — इस पंक्ति में बालकृष्ण की शोभा की तुलना चंद्रमा से की गई है, जो उपमा अलंकार दर्शाता है।

अनुप्रास अलंकार:
जब किसी पद्य में एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति मधुर ध्वनि के लिए की जाए, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण:

“नंद नंद” — न वर्ण की पुनरावृत्ति।
“सेखर सत चंद” — स और च की पुनरावृत्ति।
“पीतु पट, स्याम सलौने गात” — प और स वर्णों की पुनरावृत्ति।

इन सभी में अनुप्रास अलंकार स्पष्ट रूप से विद्यमान है।

चित्र अलंकार:
“मो‍र-मुकुट की चंद्रिकनु” — मोर मुकुट में चंद्रिका के प्रतिबिंब का वर्णन बहुत सुंदर चित्र खींचता है। इस दृश्यात्मकता के कारण यहाँ चित्र अलंकार भी परिलक्षित होता है। Quick Tip: किसी पद्यांश में अलंकार पहचानने के लिए यह देखें कि उसमें कोई तुलना (उपमा/रूपक), ध्वनि की पुनरावृत्ति (अनुप्रास), या दृश्य-चित्रण (चित्र अलंकार) तो नहीं है।


Question 30:

उपयुक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

Correct Answer:
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संदर्भ:
यह पद्यांश प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता से लिया गया है, जिसमें हिमालय पर्वत की महिमा, उसकी पवित्रता, और उसकी शाश्वतता का वर्णन किया गया है। कवि ने हिमालय को न केवल भारत की भौगोलिक पहचान के रूप में देखा है, बल्कि उसे भारतीय आत्मा, सांस्कृतिक गौरव और आध्यात्मिक शांति का प्रतीक माना है। यह पद्यांश उस भावना को प्रकट करता है जहाँ कवि हिमालय की ऊँचाई, उसकी निर्मलता, उसकी रंगीनता, और उसमें छिपे सौंदर्य को प्रस्तुत करते हैं।

कवि हिमालय की चिर स्थायी महत्ता को ‘चिर महान’ कहकर संबोधित करते हैं। उसके शिखरों पर बर्फ के सफेद आवरण को ‘स्वर्ण किरणें’ चूमती हैं और उस पर इंद्रधनुष भी सजीव हो उठता है। यह पद्यांश हिमालय की भव्यता और पावनता को दर्शाता है। इसका सन्दर्भ भारत की सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक परंपराओं से भी जुड़ा हुआ है, जहाँ हिमालय को देवताओं का निवास स्थान माना गया है। Quick Tip: सन्दर्भ लिखते समय कवि का नाम, कविता का भावार्थ और उस पंक्ति की भूमिका अवश्य लिखें जिससे उत्तर की गहराई बढ़ती है।


Question 31:

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

(पंक्ति: ‘‘पर रागहीन तू हिम निधन !’’)

Correct Answer:
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व्याख्या:
‘पर रागहीन तू हिम निधन !’ — इस पंक्ति में कवि हिमालय के बारे में एक विशेष अंतर्विरोध की ओर संकेत करता है। एक ओर हिमालय अत्यंत सुंदर, रंगीन, आकर्षक और विविध रंगों से सुसज्जित दिखाई देता है — इंद्रधनुष, धवल बर्फ, स्वर्णिम किरणें, परिमल बहता बतास; परंतु दूसरी ओर वह रंगों की अनुभूति से रहित है, यानि ‘रागहीन’ है।

‘रागहीन’ का अर्थ यहाँ केवल रंगहीन नहीं है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी शांत, स्थिर और निर्विकार है। हिमालय बर्फ की चादर ओढ़े हुए एक ‘हिम निधन’ — अर्थात् बर्फ का भंडार है। यह स्थिरता, धैर्य, और निस्पृहता का प्रतीक बन जाता है। कवि मानो कहना चाहते हैं कि हिमालय की आत्मा अत्यंत शांत है, जो किसी मोह, लोभ, या भोग से प्रभावित नहीं होती।

यहाँ 'रागहीन' शब्द का प्रयोग विशेष अर्थ में हुआ है — वह नकारात्मक नहीं, बल्कि हिमालय की उच्चता और निर्विकार भाव को दर्शाता है। यह पंक्ति पाठक को हिमालय की निर्लिप्तता, वैराग्य और पवित्रता से जोड़ती है। Quick Tip: रेखांकित अंश की व्याख्या में शब्दों के प्रतीकात्मक अर्थ, भावनात्मक गहराई और काव्य सौंदर्य को स्पष्ट करें।


Question 32:

‘परिमल मल मल जाता बतास’ इस पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए।

Correct Answer:
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उत्तर:
‘परिमल मल मल जाता बतास’ — इस पंक्ति में मानवकरण अलंकार (Personification) प्रयुक्त हुआ है।

विश्लेषण:
इस पंक्ति में ‘बतास’ (हवा) को ‘परिमल मलने’ वाला जीवंत प्राणी माना गया है, जैसे वह किसी के शरीर पर इत्र मल रहा हो। यानि निर्जीव वस्तु को सजीव की भाँति क्रियाशील मानकर उसके द्वारा ‘मलने’ जैसे मानवीय क्रिया का उल्लेख किया गया है। यह कल्पना केवल भावविभोर करने वाली नहीं, बल्कि दृश्यात्मक सौंदर्य भी उत्पन्न करती है।

यह अलंकार कविता में न केवल सौंदर्यवर्धन करता है, बल्कि पाठक को दृश्य के साथ भाव के स्तर पर भी जोड़ता है। इस प्रकार, मानवकरण अलंकार ने इस कविता की कल्पनाशीलता और चित्रात्मकता को और प्रभावशाली बना दिया है। Quick Tip: जब निर्जीव वस्तुओं को मानवीय गुण या क्रिया दी जाए, तो वहाँ \textbf{मानवकरण अलंकार} की पहचान करें।


Question 33:

निम्नलिखित संस्कृत गद्यांश का संदर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए:


% संस्कृत गद्यांश
गद्यांश:


आरक्षकः — श्रीमान्! अयम् अस्ति चन्द्रशेखरः।

अयं राजद्रोही। गतदिने अनेनैव असहयोगिनी सभायाम् एकस्य आरक्षकस्य दुर्जय सिंहस्य मस्तके प्रहरः कृतः येन दुर्जय सिंहः आहतः।

न्यायाधीशः — (तं बालकं विस्मयेन विलोकयन्) रे बालक! तव किं नाम?

Correct Answer:
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संदर्भ:
यह गद्यांश ‘पञ्चतन्त्र’ की आधुनिक शैली में लिखित किसी नाटक या संवाद प्रधान पाठ से लिया गया है, जिसमें एक युवक चन्द्रशेखर को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है। यह संवाद आरक्षक (सैनिक या पुलिस अधिकारी) और न्यायाधीश के बीच हो रहा है।


प्रसंग:
गद्यांश में आरक्षक न्यायाधीश के समक्ष एक युवक को प्रस्तुत करता है और उसे राजद्रोही (राज्य के विरुद्ध कार्य करने वाला) बताता है। वह यह भी कहता है कि युवक ने एक असहयोग सभा के दौरान आरक्षक दुर्जय सिंह के मस्तक (सिर) पर प्रहार किया था, जिससे वह घायल हो गया। यह सब सुनकर न्यायाधीश विस्मय (आश्चर्य) से उस बालक की ओर देखते हैं और उसका नाम पूछते हैं।


हिन्दी अनुवाद (शब्दशः):

आरक्षक — श्रीमान्! यह चन्द्रशेखर है।

यह राजद्रोही है। गत दिवस इसने ही असहयोगिनी सभा में हमारे आरक्षक दुर्जय सिंह के मस्तक पर प्रहार किया था, जिससे दुर्जय सिंह घायल हुआ।
न्यायाधीश — (उस बालक को आश्चर्य से देखते हुए) अरे बालक! तुम्हारा क्या नाम है? Quick Tip: अनुवाद करते समय प्रत्येक संस्कृत वाक्य का शुद्ध हिन्दी अर्थ देने के साथ-साथ उस दृश्य की पृष्ठभूमि और पात्रों के भावों का उल्लेख करें।


Question 34:

निम्नलिखित संस्कृत गद्यांश का संदर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए:


% संस्कृत गद्यांश
गद्यांश:


अस्माकं संस्कृति: सदा गतिशीला वर्तते। मानव-जीवनं संस्कुर्वन् एषा यथासमयं नवां नवां विचारधारां स्वीकुर्वति, नवां शक्तिं च प्राप्नोति।

अत्र दुराग्रहः नास्ति, यत्तु युक्ति युक्तं कल्याणकारी च तद् सहर्षं गृहीतं भवति।

एतस्या: गतिशीलताया: रहस्यं मानव-जीवनस्य शाश्वतमूल्येषु निहितम्, तद् यथा सत्यस्य प्रतिष्ठा, सर्वभूतेषु समभावः, विचारेषु औदार्यम्, आचारे दृढता चेति।

Correct Answer:
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संदर्भ:
यह गद्यांश भारतीय संस्कृति की गतिशीलता और उसकी सार्वकालिक प्रासंगिकता पर आधारित है। यह विचार इस बात पर प्रकाश डालता है कि हमारी संस्कृति केवल परंपराओं की पुनरावृत्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि वह समयानुकूल परिवर्तन को स्वीकार करने की क्षमता भी रखती है।


प्रसंग:
लेखक यह स्पष्ट करता है कि भारतीय संस्कृति कोई स्थिर या जड़ परंपरा नहीं है, बल्कि वह एक गतिशील शक्ति है जो समय और परिस्थितियों के अनुरूप अपने स्वरूप को ढालती है। यह संस्कृति नित नए विचारों और शक्तियों को अपनाकर उन्हें आत्मसात करती है, और इस प्रक्रिया में वह मानव जीवन को कल्याणकारी दिशा प्रदान करती है। इस गद्यांश में यह भी बताया गया है कि संस्कृति की यह गतिशीलता उसकी जड़ों से जुड़ी हुई है — जैसे सत्य, समभाव, उदारता और आचरण की दृढ़ता।


हिन्दी अनुवाद (विस्तृत):


हमारी संस्कृति सदैव गतिशील रही है। यह मानव जीवन को संस्कारित करते हुए समय-समय पर नई-नई विचारधाराओं को स्वीकार करती है और नवीन शक्ति प्राप्त करती है। इसमें किसी प्रकार का आडंबर या अंधविश्वास नहीं है, अपितु जो भी युक्तिसंगत और कल्याणकारी होता है, उसे यह सहर्ष स्वीकार कर लेती है।


इसकी गतिशीलता का गूढ़ रहस्य यह है कि यह संस्कृति मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों पर आधारित है — जैसे सत्य की प्रतिष्ठा, सभी प्राणियों में समान दृष्टिकोण, विचारों में उदारता, और आचरण में दृढ़ता।


अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति परंपराओं को जड़ रूप में नहीं अपनाती, बल्कि उनमें समयानुसार नवीनीकरण करते हुए उन्हें जीवनमूल्य से जोड़कर जीवित और गतिशील बनाए रखती है। Quick Tip: ऐसे गद्यांशों का अनुवाद करते समय केवल शब्दों का नहीं, बल्कि उनके भावों और दर्शन का भी स्पष्ट चित्रण करना आवश्यक होता है। "गतिशीलता", "शाश्वत मूल्य", "युक्ति युक्त कल्याणकारी" — जैसे शब्दों को विशेष ध्यान से समझें।


Question 35:

निम्नलिखित संस्कृत श्लोकों में से किसी एक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए:

मण्डलं मरणं यत्र विभूतिर्यत्र भूषणम्।

कौपीनं यत्र कोशोऽपि तेन काशी केन मीयते॥

Correct Answer:
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सन्दर्भ:
यह श्लोक भारतीय संस्कृति के वैराग्य और साधु-संतों के जीवन दर्शन को प्रकट करता है। इसमें संसार के अस्थायी स्वरूप तथा साधु के लिए काशी जैसे तीर्थ की अनिवार्यता पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है। श्लोक हमें यह सिखाता है कि जब साधक अपने जीवन में त्याग और वैराग्य को धारण कर लेता है, तो उसे किसी बाहरी तीर्थ की आवश्यकता नहीं रह जाती।


हिन्दी अनुवाद:
जहाँ मृत्यु ही मण्डल (लोक) है, जहाँ विभूति (भस्म) ही भूषण (आभूषण) है, और जहाँ कौपीन (लँगोटी) ही धन-संपत्ति (कोष) है — ऐसे साधक के लिए फिर काशी जाने की क्या आवश्यकता है?


भावार्थ:
सच्चा साधक जब वैराग्य और त्याग को अपना लेता है, तो उसका जीवन ही तीर्थ बन जाता है। उसके लिए आडंबर या विशेष तीर्थ यात्रा का कोई महत्व नहीं रह जाता। ऐसे साधक के लिए समूचा संसार ही काशी है, क्योंकि उसका मन शुद्ध हो चुका है और वह आध्यात्मिक उपलब्धि प्राप्त कर चुका है। Quick Tip: अनुवाद करते समय पहले श्लोक का शाब्दिक अर्थ दें, फिर उसके \textbf{भावार्थ} और \textbf{दार्शनिक सन्देश} को अवश्य लिखें। इससे उत्तर अधिक सम्पूर्ण और उच्च स्तर का बनता है।


Question 36:

निम्नलिखित संस्कृत श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए:

माता गुरुतरा भूमेः खातु पितोच्चतरस्तथा।

मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात्॥

Correct Answer:
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सन्दर्भ:
यह श्लोक मानव जीवन की गहन सच्चाई को व्यक्त करता है। इसमें माता-पिता के महत्त्व और मनुष्य के मन तथा चिन्ता की प्रकृति का चित्रण है। यह श्लोक हमें जीवन में माता-पिता के प्रति कृतज्ञता और मन पर नियंत्रण रखने का उपदेश देता है।


हिन्दी अनुवाद:
माता पृथ्वी से भी अधिक गुरुतर (महान) है और पिता आकाश से भी अधिक ऊँचे (श्रेष्ठ) हैं। मन वायु से भी अधिक तेज़ गति वाला है और चिन्ता तृण (घास) से भी अधिक बहुतायत में पाई जाती है।


भावार्थ:
इस श्लोक में यह संदेश है कि माता-पिता का स्थान सृष्टि की सबसे महान शक्तियों — पृथ्वी और आकाश — से भी ऊँचा है। पृथ्वी सबको धारण करती है, आकाश सबको आच्छादित करता है, लेकिन माता-पिता दोनों मिलकर मानव जीवन का निर्माण और पोषण करते हैं। इसलिए उनका स्थान सर्वोपरि है। साथ ही यह भी बताया गया है कि मन की गति वायु से भी अधिक तीव्र है, वह पल भर में कहीं भी पहुँच सकता है। इसके साथ ही चिंता का वर्णन किया गया है, जो साधारण घास की तरह हर जगह फैली रहती है और मानव जीवन को व्यथित करती है।
इस प्रकार श्लोक हमें माता-पिता के महत्व, मन की अस्थिरता और चिंता से बचने की सीख प्रदान करता है। Quick Tip: श्लोकों के अनुवाद में केवल शब्दार्थ ही नहीं, बल्कि उनके दार्शनिक और नैतिक सन्देश को भी स्पष्ट करना चाहिए। इससे उत्तर अधिक प्रभावशाली बनता है।


Question 37:

‘मुक्तिदूत’ खंडकाव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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प्रमुख पात्र — ‘मुक्तिदूत’:
‘मुक्तिदूत’ नामक खंडकाव्य में प्रमुख पात्र नरकवासी एक आत्मा है, जो मृत्यु के उपरांत यमलोक में निवास कर रही है। यह आत्मा केवल अपने व्यक्तिगत मोक्ष के लिए लालायित नहीं है, बल्कि वह संपूर्ण मानवता की मुक्ति की आकांक्षा लेकर यमराज के पास पहुँचती है।

इस पात्र का चरित्र अत्यंत प्रेरणादायक, संवेदनशील, और सामाजिक चेतना से ओतप्रोत है। वह केवल स्वार्थी आत्मा नहीं है, बल्कि उसका दृष्टिकोण वैश्विक है। वह द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका, मानवता के पतन, शोषण, अन्याय, अत्याचार और युद्ध के विनाशकारी प्रभावों को देखकर पीड़ित होती है। इस पीड़ा से व्याकुल होकर वह यमराज से पृथ्वी पर जाकर शांति, प्रेम और करुणा का संदेश फैलाने की अनुमति माँगता है।

मुख्य विशेषताएँ:

आत्मदर्शी और विवेचनात्मक सोच रखने वाला पात्र
समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व की चिंता करने वाला
युद्ध-विरोधी और मानवीय मूल्यों में विश्वास रखने वाला
उच्च आदर्शों से प्रेरित
निर्भीकता से यमराज के सामने अपनी बात रखने वाला


निष्कर्ष:
‘मुक्तिदूत’ का चरित्र केवल एक काल्पनिक आत्मा नहीं है, बल्कि वह कवि के विचारों और मानवीय मूल्यों का प्रतीक बनकर पाठकों को शांति, अहिंसा और करुणा की प्रेरणा देता है। उसका संघर्ष, उसका मर्म और उसका संदेश आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भी अत्यंत प्रासंगिक है। Quick Tip: चरित्र-चित्रण में केवल गुणों की सूची न दें — बल्कि पात्र की भूमिका, सोच और काव्य के मूल उद्देश्य से उसके संबंध को भी स्पष्ट करें।


Question 38:

‘मुक्तिदूत’ खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए।

Correct Answer:
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द्वितीय सर्ग का कथानक:
‘मुक्तिदूत’ खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग में मुख्य रूप से आत्मा द्वारा पृथ्वी की स्थिति का वर्णन किया गया है। यह आत्मा यमलोक से पृथ्वी पर दृष्टिपात करती है और जो कुछ देखती है, वह अत्यंत भयावह और दुखद है।

इस सर्ग में द्वितीय विश्व युद्ध की भीषणता, युद्ध की विभीषिका, मानवता का पतन, हत्याएँ, बमवर्षा, और निर्दोषों का संहार — इन सभी को अत्यंत मार्मिक और चित्रात्मक भाषा में प्रस्तुत किया गया है।

मुख्य बिंदु:

पृथ्वी पर चल रहे युद्ध का वर्णन: विनाश, भय, असहायता
निर्दोष नागरिकों, स्त्रियों और बच्चों पर अत्याचार
मानव मूल्यों की क्षति और नैतिकता का पतन
विज्ञान का दुरुपयोग और मानवता का विनाश
आत्मा की गहरी पीड़ा और संवेदना


आत्मा यह देखती है कि विज्ञान ने प्रगति तो की है, लेकिन उस प्रगति का उपयोग शांति के लिए नहीं, बल्कि विनाश के लिए किया जा रहा है। परमाणु बमों से नगर मिटा दिए गए हैं, मनुष्य पाशविक बन चुका है। यह सब देखकर वह अत्यंत दुखी होती है और यह निष्कर्ष निकालती है कि केवल मुक्ति की नहीं, अब ‘संपूर्ण मानवता के उत्थान और जागरण’ की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:
द्वितीय सर्ग ‘मुक्तिदूत’ की आत्मा को संवेदना से ओतप्रोत, गहन दृष्टि से युक्त और सामाजिक रूप से जागरूक आत्मा के रूप में प्रस्तुत करता है। यह सर्ग केवल एक दृश्य नहीं, बल्कि मानवता के प्रति एक चेतावनी और करुण पुकार है। Quick Tip: कथानक लिखते समय सर्ग की प्रमुख घटनाओं, भावनाओं और उसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से समझाएँ। केवल क्रमबद्ध घटनाएँ नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे भाव को भी उजागर करें।


Question 39:

‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य के आधार पर आधुनिक भारत के निर्माता पं० जवाहरलाल नेहरू का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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चरित्र-चित्रण:
‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य में पं० जवाहरलाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता और राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक माना गया है। वे उच्च विचारों वाले, गहन चिंतनशील और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। उनका सम्पूर्ण जीवन भारत को स्वतंत्रता दिलाने और स्वतंत्र भारत के निर्माण में समर्पित रहा।


देशभक्त नेता: नेहरू ने अपने जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता को बनाया। वे महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और अनेक बार जेल गए।
आधुनिक भारत के निर्माता: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्होंने भारत को प्रगति और विकास की दिशा में अग्रसर किया। उन्होंने उद्योग, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और पंचवर्षीय योजनाओं की नींव रखी।
लोकतांत्रिक दृष्टिकोण: वे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
शांतिदूत: नेहरू ने विश्व शांति की स्थापना और ‘अहस्तक्षेप’ (Non-Alignment Movement) की नीति अपनाकर भारत की एक विशिष्ट पहचान बनाई।
मानवतावादी: उनका हृदय करुणा और संवेदना से भरा था। वे बच्चों से विशेष स्नेह रखते थे और उन्हें ‘चाचा नेहरू’ कहा जाता है।


इस प्रकार, पं० जवाहरलाल नेहरू दूरदर्शी, कर्मठ, आधुनिक विचारक और भारत को नये युग की ओर ले जाने वाले महान पुरुष थे। Quick Tip: चरित्र-चित्रण में व्यक्ति के \textbf{गुण, कार्य और योगदान} का उल्लेख करें। केवल जीवनवृत्त न लिखकर उनके आदर्श और व्यक्तित्व की विशेषताओं को उजागर करें।


Question 40:

‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।

Correct Answer:
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कथानक संक्षेप:
‘ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य पं० जवाहरलाल नेहरू के जीवन और उनके कार्यों पर आधारित है। इस काव्य में कवि ने उनके जन्म से लेकर भारत के प्रधानमंत्री बनने तक के संघर्ष, विचार और उपलब्धियों को काव्यात्मक रूप में चित्रित किया है।


नेहरू का जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ, किन्तु उन्होंने विलासिता का जीवन त्यागकर राष्ट्रसेवा को अपनाया।
वे विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारत लौटे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुए।
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में उन्होंने असहयोग और नमक सत्याग्रह आंदोलनों में भाग लिया और कई बार कारावास भोगा।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और भारत को औद्योगिक, वैज्ञानिक और आधुनिक राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।
उन्होंने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को भारत की नींव बनाया और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से आर्थिक प्रगति सुनिश्चित की।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रवर्तक बने और भारत को विश्व मानचित्र पर विशेष स्थान दिलाया।


अतः ‘ज्योति जवाहर’ का कथानक पं० नेहरू के व्यक्तित्व और कृतित्व का गौरवपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है। यह खण्डकाव्य आधुनिक भारत के निर्माता के जीवन का महाकाव्यात्मक स्वरूप है। Quick Tip: कथानक संक्षेप लिखते समय \textbf{प्रारम्भ, मध्य और अन्त} को क्रमबद्ध रूप में स्पष्ट करें, ताकि काव्य का सार आसानी से समझ में आए।


Question 41:

‘मेवाड़ मुकुट’ खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग ‘दौलत’ की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।

Correct Answer:
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कथावस्तु:
‘मेवाड़ मुकुट’ खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग ‘दौलत’ में राजस्थान की वीरता, त्याग और स्वाभिमान का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया गया है। इस सर्ग में मुख्यतः उस ऐतिहासिक घटना का वर्णन है जब मुगल आक्रांताओं ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और यहाँ के वीर योद्धाओं ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

कवि ने इस सर्ग में यह स्पष्ट किया है कि दौलत या ऐश्वर्य केवल धन-दौलत तक सीमित नहीं है, बल्कि वास्तविक दौलत राष्ट्र की स्वतंत्रता, स्वाभिमान और संस्कृति की रक्षा में निहित है।
महाराणा प्रताप और उनके वीर साथी इस विचारधारा के प्रतीक बनकर सामने आते हैं। उन्होंने कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने देश, धर्म और जनहित के प्रति समर्पण नहीं छोड़ा।

इस सर्ग में कवि ने युद्ध-भूमि के दृश्य, सैनिकों की वीरता, उनके त्यागपूर्ण जीवन और मातृभूमि के लिए बलिदान की भावना को हृदयस्पर्शी रूप से प्रस्तुत किया है। Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय पूरे प्रसंग का संक्षिप्त सार लिखें, लेकिन उसके मूल भाव को अवश्य बनाए रखें।


Question 42:

‘मेवाड़ मुकुट’ खंडकाव्य के किस पात्र ने आपको देशप्रेम के लिए प्रेरित किया है? उसकी विशेषताएँ लिखिए।

Correct Answer:
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प्रेरणादायक पात्र:
‘मेवाड़ मुकुट’ खंडकाव्य का सबसे प्रेरणादायक पात्र महाराणा प्रताप हैं। उनका जीवन राष्ट्रप्रेम, साहस और आत्मसम्मान का प्रतीक है।

विशेषताएँ:

अटूट देशभक्ति: महाराणा प्रताप ने कभी भी विदेशी सत्ता के आगे आत्मसमर्पण नहीं किया। उन्होंने घास की रोटियाँ खाकर भी मातृभूमि की स्वतंत्रता की रक्षा की।
त्याग और बलिदान: उन्होंने अपने जीवन की सुख-सुविधाएँ, राजमहल का वैभव, और परिवार की आरामदायक स्थिति सब कुछ त्याग दिया, परंतु देश की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया।
साहस और पराक्रम: हल्दीघाटी के युद्ध में उन्होंने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय दिया। उनका शौर्य आज भी वीरता की मिसाल है।
स्वाभिमान: उन्होंने यह स्पष्ट संदेश दिया कि दौलत केवल भौतिक वैभव नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता और आत्मसम्मान ही सच्ची दौलत है।
जनकल्याण की भावना: वे केवल राजा ही नहीं, बल्कि प्रजा के हितचिंतक भी थे। उनकी नीति न्याय और धर्म पर आधारित थी।


निष्कर्ष:
महाराणा प्रताप का चरित्र हमें यह शिक्षा देता है कि देश के लिए त्याग और बलिदान से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती। उनका जीवन प्रत्येक भारतीय के लिए प्रेरणास्रोत है और सच्चे राष्ट्रप्रेम का आदर्श प्रस्तुत करता है। Quick Tip: जब किसी पात्र की विशेषताओं का वर्णन करें, तो उसके जीवन से जुड़ी घटनाओं और मूल्यों को अवश्य जोड़ें। इससे उत्तर प्रभावशाली बनता है।


Question 43:

‘अप्रूजा’ खंडकाव्य के ‘आयोग्य सर्ग’ का कथानक संक्षेप में लिखिए।

Correct Answer:
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कथानक संक्षेप:
‘अप्रूजा’ खंडकाव्य के ‘आयोग्य सर्ग’ में युधिष्ठिर और पांडवों के स्वर्गारोहण प्रसंग का अत्यंत मार्मिक और गहन चित्रण मिलता है। यह सर्ग महाभारत की उस घटना से संबंधित है जिसमें धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रौपदी के साथ स्वर्गारोहण की यात्रा पर निकलते हैं।

इस यात्रा में एक-एक करके उनके भाई और द्रौपदी गिरते जाते हैं और अंततः केवल युधिष्ठिर ही जीवित बचते हैं। उनके साथ केवल एक वफादार कुत्ता चलता रहता है। जब युधिष्ठिर स्वर्ग के द्वार तक पहुँचते हैं, तब देवदूत उनसे कहते हैं कि यह कुत्ता उनके साथ स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता। युधिष्ठिर अपने उत्तर में स्पष्ट करते हैं कि यदि उनके साथ जीवन भर वफादारी निभाने वाला यह कुत्ता उनके साथ नहीं जा सकता, तो वे स्वयं भी स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेंगे।

यह प्रसंग उनके धर्मनिष्ठ, करुणामय और सहानुभूतिपूर्ण चरित्र को प्रकट करता है। अंततः यह कुत्ता धर्मदेव के रूप में प्रकट होता है और युधिष्ठिर की परीक्षा पूरी होती है। इस प्रकार ‘आयोग्य सर्ग’ न केवल युधिष्ठिर के तप, त्याग और धर्मप्रियता का परिचायक है, बल्कि यह उनके महान आदर्शों और मानवता के प्रति उनकी निष्ठा को भी स्पष्ट करता है।

निष्कर्ष:
‘आयोग्य सर्ग’ का मूल संदेश है कि सच्चा धर्म केवल शास्त्रों का पालन नहीं है, बल्कि करुणा, निष्ठा और दायित्वबोध ही सच्चे धर्म का स्वरूप है। Quick Tip: कथानक लिखते समय केवल घटनाएँ न लिखें, बल्कि पात्रों के आचरण और उस सर्ग की शिक्षा को भी जोड़ें। इससे उत्तर अधिक पूर्ण हो जाता है।


Question 44:

‘अप्रूजा’ खंडकाव्य के आधार पर ‘युधिष्ठिर’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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युधिष्ठिर का चरित्र-चित्रण:
‘अप्रूजा’ खंडकाव्य में युधिष्ठिर का चरित्र आदर्श, सत्य और धर्म के स्वरूप के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्हें धर्मराज कहा जाता है क्योंकि उन्होंने जीवन के प्रत्येक मोड़ पर सत्य, न्याय और धर्म का पालन किया।

मुख्य विशेषताएँ:

धर्मप्रियता: युधिष्ठिर ने हर स्थिति में धर्म का मार्ग अपनाया। उन्होंने कभी भी छल, कपट या अन्याय को स्वीकार नहीं किया।
सत्यनिष्ठा: वे अपने वचनों के पक्के थे। उनके लिए वचन और सत्य सर्वोपरि था।
त्याग और तप: स्वर्गारोहण के प्रसंग में उन्होंने दिखाया कि वे अपने भाइयों और द्रौपदी की मृत्यु पर शोकाकुल होते हुए भी धैर्य और तपस्वी भाव बनाए रखते हैं।
करुणा और निष्ठा: युधिष्ठिर ने स्वर्ग के द्वार पर यह कहकर अपने महान हृदय का परिचय दिया कि यदि कुत्ते को प्रवेश नहीं मिलेगा तो वे स्वयं भी स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेंगे।
आदर्श नेतृत्व: वे एक आदर्श शासक और मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत होते हैं, जिन्होंने केवल अपनी आत्मा की नहीं, बल्कि समस्त मानवता की चिंता की।


निष्कर्ष:
युधिष्ठिर का चरित्र हमें यह शिक्षा देता है कि धर्म, करुणा, सत्य और न्याय ही मानव जीवन के सर्वोच्च मूल्य हैं। वे भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष के रूप में प्रस्तुत होते हैं। Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय पात्र की विशेषताओं के साथ-साथ उसके आचरण, विचार और समाज के लिए दिए गए संदेश का उल्लेख अवश्य करें।


Question 45:

‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के नायक ‘सुभाषचन्द्र बोस’ की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

Correct Answer:
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सुभाषचन्द्र बोस का चरित्र-चित्रण:
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य में कवि ने सुभाषचन्द्र बोस को वीरता, त्याग, देशप्रेम और बलिदान का प्रतीक बताया है। उनका सम्पूर्ण जीवन मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए समर्पित था।


अद्वितीय देशभक्त: सुभाषचन्द्र बोस के लिए राष्ट्रधर्म सर्वोपरि था। वे अपने जीवन की हर कठिनाई और बलिदान को भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए सहर्ष स्वीकार करते थे।
वीर और साहसी नेता: उन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज का संगठन कर अंग्रेज़ों को सीधी चुनौती दी। उनका नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” आज भी प्रेरणा देता है।
त्यागी और बलिदानी: उन्होंने सुख-सुविधा और पारिवारिक जीवन का परित्याग कर देश की मुक्ति को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया।
प्रेरणास्रोत: उनका जीवन युवाओं के लिए आदर्श है। वे अनुशासन, परिश्रम और साहस के प्रतीक माने जाते हैं।


इस प्रकार सुभाषचन्द्र बोस का चरित्र वीरता, देशभक्ति और त्याग की मूर्ति के रूप में उजागर होता है। Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय व्यक्ति की \textbf{विशेषताएँ, योगदान और आदर्श} अवश्य लिखें, जिससे उत्तर अधिक प्रभावशाली लगे।


Question 46:

‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

Correct Answer:
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सर्ग का सारांश (उदाहरण):
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के एक सर्ग में कवि ने सुभाषचन्द्र बोस के संघर्षमय जीवन और स्वतंत्रता के लिए किए गए उनके महान प्रयासों का वर्णन किया है।


सर्ग में बताया गया है कि किस प्रकार सुभाषचन्द्र बोस ने भारतमाता की दासता से मुक्ति के लिए विदेशी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा।
उन्होंने विदेश जाकर आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया और देशभक्त सैनिकों को संगठित किया।
इस सर्ग में उनके ओजस्वी भाषणों, बलिदान की भावना और स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ निश्चय का चित्रण किया गया है।
कवि ने यह भी दिखाया है कि बोस का जीवन केवल संघर्ष ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकाश-पुंज भी था।


इस प्रकार सर्ग का सारांश यह है कि सुभाषचन्द्र बोस का जीवन स्वतंत्रता संग्राम का उज्ज्वल अध्याय है, जो हमें आज भी प्रेरणा देता है। Quick Tip: किसी भी सर्ग का सारांश लिखते समय \textbf{मुख्य घटनाएँ, भाव और संदेश} को क्रमबद्ध रूप में अवश्य लिखें।


Question 47:

‘कर्ण’ खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश लिखिए।

Correct Answer:
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सारांश:
‘कर्ण’ खंडकाव्य का द्वितीय सर्ग कर्ण के जीवन की प्रारंभिक घटनाओं तथा उसके व्यक्तित्व निर्माण पर केंद्रित है। इस सर्ग में कवि ने यह दिखाया है कि कर्ण का जन्म राजवंश में हुआ था, किन्तु उसे परिस्थितियोंवश एक सारथी (अधिरथ) के घर पलना पड़ा। इस कारण समाज ने उसे कभी भी राजकुमार के रूप में स्वीकार नहीं किया।

कवि ने अत्यंत मार्मिक शैली में कर्ण के अपमान, संघर्ष और आत्मसंघर्ष का चित्रण किया है। कर्ण के भीतर असीम प्रतिभा, अदम्य साहस और युद्ध कौशल था, किंतु जन्म की हीनता उसके जीवन की सबसे बड़ी विडंबना बनकर सामने आती रही।

द्वितीय सर्ग में कर्ण का अर्जुन से पहला सामना और उसकी वीरता का प्रमाण भी वर्णित है। धनुर्विद्या की प्रतियोगिता में कर्ण अर्जुन से श्रेष्ठ सिद्ध हुआ, परंतु जन्म की पहचान के कारण द्रोणाचार्य और भीष्म जैसे महापुरुषों ने उसे अपमानित किया। इस अन्यायपूर्ण व्यवहार से कर्ण का मन विद्रोह से भर उठा।

इसी अपमान ने कर्ण को दुर्योधन की ओर आकर्षित किया। दुर्योधन ने उसे अंगदेश का राजा बनाकर सम्मान दिया। यह घटना उसके जीवन की नाटकीय और निर्णायक मोड़ साबित हुई। इस सर्ग में कवि ने यह संदेश दिया है कि प्रतिभा को जन्म से नहीं, कर्म से आँकना चाहिए। Quick Tip: सारांश लिखते समय मूल कथा का संक्षिप्त रूप लिखें, किन्तु उसका भाव और मुख्य घटनाएँ अवश्य शामिल करें।


Question 48:

‘कर्ण’ खंडकाव्य के आधार पर कर्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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कर्ण का चरित्र-चित्रण:


वीर योद्धा: कर्ण धनुर्विद्या का महान ज्ञाता था। उसकी वीरता का लोहा अर्जुन और पांडवों ने भी माना। युद्धभूमि में उसकी वीरता अनुपम थी।
दानवीर: उसे ‘दानवीर कर्ण’ कहा जाता है क्योंकि वह कभी किसी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाता था। कवि ने इस गुण को कर्ण के सबसे ऊँचे आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया है।
संघर्षशील व्यक्तित्व: समाज में जन्म के कारण उसे बार-बार अपमान सहना पड़ा, किंतु उसने कभी हार नहीं मानी। विपरीत परिस्थितियों में भी उसने अपनी योग्यता और पराक्रम के बल पर स्थान बनाया।
मित्रवत स्वभाव: कर्ण ने दुर्योधन का साथ केवल इसलिए दिया क्योंकि उसने उसका अपमान मिटाकर सम्मान दिया था। यह कर्ण की मित्रता-निष्ठा और आभार की भावना को प्रकट करता है।
स्वाभिमानी: कर्ण ने कभी भी अपने अपमान को भूलकर समझौता नहीं किया। उसके व्यक्तित्व का यह पक्ष दर्शाता है कि वह स्वाभिमानी और दृढ़प्रतिज्ञ था।
विरोधाभासी जीवन: कर्ण का जीवन विरोधाभासों से भरा हुआ था। एक ओर वह महान योद्धा और दानवीर था, दूसरी ओर दुर्योधन की मित्रता ने उसे अधर्म की ओर खींच लिया। यही उसकी सबसे बड़ी त्रासदी रही।


निष्कर्ष:
कर्ण एक महान, वीर, दानशील और संघर्षशील योद्धा था। उसका चरित्र गौरव और करुणा दोनों का प्रतीक है। कवि ने उसे ऐसी विभूति के रूप में चित्रित किया है जो जन्म से नहीं, बल्कि अपने कर्म और आदर्शों से महान बनता है। कर्ण का जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि सच्ची प्रतिष्ठा व्यक्ति के कर्मों से होती है, जन्म से नहीं। Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय उस पात्र की विशेषताएँ, गुण-दोष, और जीवन से मिलने वाली शिक्षा — तीनों का उल्लेख करें।


Question 49:

‘कर्मवीर भरत’ के तृतीय सर्ग (कौशल्या–सुमित्रा मिलन) की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।

Correct Answer:
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कथावस्तु संक्षेप:
‘कर्मवीर भरत’ के तृतीय सर्ग में कौशल्या और सुमित्रा के मिलन का अत्यंत मार्मिक और भावनात्मक वर्णन किया गया है। यह सर्ग राम के वनगमन के पश्चात की पीड़ादायी परिस्थितियों को उजागर करता है।

कौशल्या अपने पुत्र राम के वियोग में अत्यंत दुखी हैं। राम के जाने से अयोध्या का वातावरण शोकमग्न हो गया है। कौशल्या की आँखों से आँसू रुकते नहीं और उनका हृदय पुत्र-वियोग की पीड़ा से भरा हुआ है। इसी समय सुमित्रा उनसे मिलने आती हैं।

सुमित्रा स्वयं भी दुखी हैं क्योंकि उनके पुत्र लक्ष्मण राम के साथ वन को गए हैं, लेकिन उनका दृष्टिकोण कौशल्या से भिन्न है। वे कौशल्या को सांत्वना देती हैं और उन्हें यह समझाती हैं कि यह सब धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए हुआ है। सुमित्रा का धैर्य, संतुलित दृष्टिकोण और धर्म के प्रति श्रद्धा इस सर्ग में स्पष्ट झलकती है।

कौशल्या और सुमित्रा का यह संवाद मातृभाव, करुणा और आदर्श नारी चरित्र का परिचायक है। कौशल्या का मातृ-हृदय जहाँ अपने पुत्र के वियोग से टूट रहा है, वहीं सुमित्रा अपने पुत्र के बलिदान पर गर्व महसूस करती हैं।

निष्कर्ष:
यह सर्ग केवल माताओं के संवाद का चित्रण नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में मातृत्व की महानता और धर्मनिष्ठा का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करता है। Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय पात्रों की भावनाओं और उनके दृष्टिकोण का उल्लेख करना न भूलें, तभी उत्तर संपूर्ण माना जाएगा।


Question 50:

‘कर्मवीर भरत’ खंडकाव्य के आधार पर ‘भरत’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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भरत का चरित्र-चित्रण:
‘कर्मवीर भरत’ खंडकाव्य का नायक भरत है। कवि ने भरत को भारतीय संस्कृति के आदर्श पुत्र, आदर्श भाई और आदर्श शासक के रूप में चित्रित किया है। उनका जीवन त्याग, सेवा, भाईचारा और धर्मपालन का अनुपम उदाहरण है।

मुख्य विशेषताएँ:

आदर्श भ्रातृ प्रेम: भरत का सबसे बड़ा गुण उनका भ्रातृ-प्रेम है। वे राम को ईश्वर के समान मानते हैं और स्वयं को उनका सेवक समझते हैं।
त्यागी और धर्मनिष्ठ: भरत ने राजसिंहासन को ठुकरा दिया और राम की खड़ाऊँ को सिंहासन पर रखकर स्वयं अयोध्या का शासन चलाया। यह त्याग उनकी धर्मनिष्ठा को दर्शाता है।
कर्तव्यनिष्ठ: भरत ने कभी भी व्यक्तिगत स्वार्थ को प्राथमिकता नहीं दी। वे सदैव राज्य, प्रजा और अपने भाइयों के हित के लिए तत्पर रहे।
नम्र और विनम्र स्वभाव: भरत के स्वभाव में अहंकार का कोई स्थान नहीं था। वे सदैव नम्रता और विनम्रता से युक्त रहे।
मातृभक्त और प्रजाभक्त: वे अपनी माताओं का सम्मान करते थे और प्रजा के कल्याण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे।


निष्कर्ष:
भरत का चरित्र भारतीय संस्कृति के त्याग, सेवा और कर्तव्य का प्रतीक है। वे हमें यह शिक्षा देते हैं कि सच्चा नायक वही है, जो व्यक्तिगत स्वार्थ त्यागकर समाज और परिवार के लिए समर्पित हो। Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय केवल गुण गिनाने से बचें — पात्र की घटनाओं और आचरण से जुड़े उदाहरण भी अवश्य दें।


Question 51:

‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग का सारांश लिखिए।

Correct Answer:
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सर्ग का सारांश (उदाहरण):
‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के एक सर्ग में कवि ने भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।


सर्ग की शुरुआत में कवि भारतमाता को दासता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ दिखाता है, जहाँ विदेशी शासन की कठोरता से जनता कराह रही है।
इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए अनेक वीर सपूत आगे आते हैं और मातृभूमि को आज़ाद कराने का प्रण लेते हैं।
इस सर्ग में क्रांतिकारियों के बलिदान, जेल-यात्राओं और कठिन संघर्षों का चित्रण किया गया है।
कवि ने स्पष्ट किया है कि मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए जीवन का प्रत्येक सुख, सुविधा और यहाँ तक कि प्राणों का भी बलिदान देना आवश्यक है।
अंत में यह संदेश मिलता है कि स्वतंत्रता केवल त्याग और बलिदान से ही प्राप्त होती है।


इस प्रकार सर्ग का सारांश यह है कि मातृभूमि की आज़ादी के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान करने वाले क्रांतिकारियों का जीवन भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। Quick Tip: सारांश लिखते समय मुख्य घटनाओं को क्रमबद्ध ढंग से लिखें और अंत में लेखक/कवि का संदेश अवश्य जोड़ें।


Question 52:

‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के नायक ‘चन्द्रशेखर आज़ाद’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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चन्द्रशेखर आज़ाद का चरित्र-चित्रण:
‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के नायक चन्द्रशेखर आज़ाद भारत की स्वतंत्रता के अमर क्रांतिकारी और अदम्य साहस के प्रतीक हैं।


देशभक्त: आज़ाद का जीवन राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत था। वे मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए हर समय तत्पर रहते थे।
वीर और साहसी: उन्होंने अंग्रेज़ी शासन को ललकारा और कभी पकड़े न जाने का संकल्प लिया। अंत में उन्होंने आत्मबलिदान करके इस संकल्प को निभाया।
अनुशासित क्रांतिकारी: वे अपने साथियों को अनुशासन और संगठन की शिक्षा देते थे। उनके नेतृत्व में क्रांतिकारी आंदोलनों ने नई शक्ति प्राप्त की।
त्याग और बलिदान के प्रतीक: उन्होंने व्यक्तिगत जीवन की सुख-सुविधाओं को त्यागकर केवल देशसेवा को अपना उद्देश्य बनाया।
प्रेरणास्रोत: उनका जीवन आज भी युवाओं को साहस, निडरता और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देता है।


इस प्रकार चन्द्रशेखर आज़ाद का चरित्र राष्ट्रप्रेम, वीरता और आत्मबलिदान का अनुपम उदाहरण है। वे सच्चे अर्थों में मातृभूमि के अमर सपूत थे। Quick Tip: चरित्र-चित्रण में व्यक्ति की \textbf{व्यक्तिगत विशेषताएँ, योगदान और आदर्श} अवश्य लिखें। अंत में यह बताना न भूलें कि उनका जीवन आज भी हमें प्रेरणा देता है।


Question 53:

‘तुमुल’ खंडकाव्य के नवम सर्ग (लक्ष्मण–मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्छा) की रूपरेखा संक्षेप में लिखिए।

Correct Answer:
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संक्षिप्त सार:
‘तुमुल’ खंडकाव्य का नवम सर्ग अत्यंत मार्मिक और वीरता से ओतप्रोत है। इसमें लक्ष्मण और मेघनाद के बीच का युद्ध वर्णित है, जो रामायण के सबसे रोमांचक और महत्वपूर्ण प्रसंगों में से एक है।

कवि ने युद्धभूमि का वर्णन अत्यंत जीवंत रूप से किया है। रणभूमि में चारों ओर शंख-घंटा, धनुष की टंकार, रथों की गर्जना और योद्धाओं की हुंकार सुनाई देती है। दोनों ओर से वीर योद्धा प्राणों की बाजी लगाकर लड़े।

इस सर्ग का मुख्य आकर्षण लक्ष्मण और मेघनाद का आमना-सामना है। मेघनाद, जो रावण का सबसे पराक्रमी पुत्र था, उसने लक्ष्मण पर प्रचंड अस्त्रों की वर्षा की। लक्ष्मण ने भी अपने धनुष से दिव्य बाणों की झड़ी लगाई। दोनों का युद्ध इतना भयंकर था कि देवगण भी भयभीत हो उठे।

युद्ध के दौरान मेघनाद ने अपने मायावी अस्त्रों का प्रयोग किया। उसकी शक्ति से लक्ष्मण गम्भीर रूप से घायल होकर मूर्छित हो गए। यह दृश्य देखकर सम्पूर्ण वानर सेना व्याकुल हो उठी। युद्धभूमि पर क्षणभर के लिए मौन और भय का वातावरण छा गया।

कवि ने इस प्रसंग में लक्ष्मण की वीरता, मेघनाद की युद्धकला और रणभूमि की भयावहता का अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया है। Quick Tip: सारांश लिखते समय युद्ध के दृश्य, मुख्य पात्रों की भूमिका और घटनाओं के क्रम को अवश्य शामिल करें।


Question 54:

‘तुमुल’ खंडकाव्य के आधार पर ‘मेघनाद’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Correct Answer:
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मेघनाद का चरित्र-चित्रण:


पराक्रमी योद्धा: मेघनाद रावण का सबसे शक्तिशाली पुत्र था। रणभूमि में उसकी वीरता अपूर्व थी। देवताओं तक को उसने युद्ध में परास्त किया था।
मायावी शक्ति का स्वामी: मेघनाद के पास असंख्य दिव्य अस्त्र-शस्त्र थे। वह मायावी शक्तियों का कुशल प्रयोग करता था। लक्ष्मण के साथ युद्ध में उसने इन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर उन्हें मूर्छित किया।
पिता का आज्ञाकारी पुत्र: वह सदैव रावण का आज्ञाकारी रहा और उसकी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए प्राणों की बाजी लगाने को तत्पर रहता था।
देशभक्त और कर्तव्यनिष्ठ: मेघनाद ने रावण की आज्ञा को अपना धर्म माना और लंका की रक्षा के लिए तन-मन से समर्पित रहा। उसके लिए मातृभूमि और पितृभक्ति सर्वोपरि थी।
वीरता और क्रूरता का मिश्रण: जहाँ एक ओर वह अपूर्व पराक्रमी था, वहीं दूसरी ओर युद्ध में वह प्रायः छल और माया का सहारा लेता था। यही उसके चरित्र की सबसे बड़ी कमजोरी भी थी।
करुण त्रासदी का पात्र: मेघनाद का जीवन यह सिखाता है कि केवल वीरता पर्याप्त नहीं, बल्कि धर्म और नीति भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। उसकी पराजय और मृत्यु इस तथ्य की पुष्टि करती है।


निष्कर्ष:
मेघनाद एक महान योद्धा, कर्तव्यनिष्ठ पुत्र और अपराजेय वीर था। किंतु उसका जीवन यह दर्शाता है कि यदि वीरता धर्म से विचलित हो जाए, तो उसका गौरव स्थायी नहीं रह सकता। कवि ने उसे वीरता, पराक्रम और करुण त्रासदी — तीनों का सम्मिलित रूप प्रस्तुत किया है। Quick Tip: चरित्र-चित्रण लिखते समय गुण, दोष, और जीवन से मिलने वाली शिक्षा — तीनों का उल्लेख अवश्य करें।


Question 55:

निम्नलिखित लेखकों में से किसी एक लेखक का जीवन-परिचय देते हुए उनकी एक प्रमुख कृति का उल्लेख कीजिए:
(i) रामचन्द्र शुक्ल

(ii) रामधारी सिंह ‘दिनकर’

(iii) भगवतशरण उपाध्याय

Correct Answer:
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(i) रामचन्द्र शुक्ल


जीवन-परिचय:
रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 4 अक्टूबर 1884 ई. को बस्ती ज़िले (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के महान आलोचक, निबंधकार और इतिहासकार थे। हिंदी साहित्य को व्यवस्थित रूप से आलोचना की दृष्टि से देखने का श्रेय शुक्ल जी को ही जाता है। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया और हिंदी साहित्य को शास्त्रीय आधार प्रदान किया।

साहित्यिक योगदान:
शुक्ल जी की भाषा गंभीर, तार्किक और प्रभावशाली है। उनकी रचनाओं में समाज के यथार्थ, इतिहास और साहित्यिक चेतना का समावेश है। उन्होंने हिंदी साहित्य को वैज्ञानिक पद्धति से प्रस्तुत किया।

प्रमुख कृति: ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’
उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कृति ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ है, जिसमें उन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न कालखंडों और प्रवृत्तियों का विस्तृत और आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया है।


(ii) रामधारी सिंह ‘दिनकर’


जीवन-परिचय:
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 23 सितम्बर 1908 ई. में बिहार के सिमरिया गाँव (मुँगेर ज़िला) में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि, निबंधकार और राष्ट्रकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनी कविताओं से जनता में उत्साह और जोश भर दिया। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1972 ई. में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्यिक योगदान:
दिनकर की कविताओं में वीर रस और ओज की प्रधानता है। वे ‘राष्ट्रकवि’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी भाषा सरल, सशक्त और प्रखर है।

प्रमुख कृति: ‘रश्मिरथी’
उनका खंडकाव्य ‘रश्मिरथी’ सबसे प्रसिद्ध है। इसमें महाभारत के नायक कर्ण का चरित्र चित्रित किया गया है। कर्ण की दानशीलता, संघर्ष और आत्मगौरव का अत्यंत प्रभावशाली वर्णन मिलता है।


(iii) भगवतशरण उपाध्याय


जीवन-परिचय:
भगवतशरण उपाध्याय का जन्म 1910 ई. में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के विद्वान लेखक, इतिहासकार और निबंधकार थे। भारतीय संस्कृति और इतिहास की गहरी समझ उन्हें प्राप्त थी। उनकी रचनाओं में सांस्कृतिक दृष्टि और ऐतिहासिक चेतना स्पष्ट झलकती है।

साहित्यिक योगदान:
उन्होंने प्राचीन भारतीय साहित्य, संस्कृति और इतिहास को अपनी रचनाओं में समाहित किया। उनकी भाषा विद्वत्तापूर्ण होने के साथ-साथ सरल और स्पष्ट है।

प्रमुख कृति: ‘कामायनी: एक पुनर्मूल्यांकन’
भगवतशरण उपाध्याय की प्रसिद्ध कृति ‘कामायनी: एक पुनर्मूल्यांकन’ है, जिसमें उन्होंने जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य ‘कामायनी’ का गहन विश्लेषण किया है। इसके अतिरिक्त ‘भारत का सांस्कृतिक इतिहास’ भी उनकी महत्वपूर्ण कृति है। Quick Tip: जीवन-परिचय लिखते समय जन्म-स्थान, साहित्यिक योगदान और एक प्रसिद्ध कृति का उल्लेख अवश्य करें।


Question 56:

सूरदास का जीवन-परिचय देते हुए उनकी एक प्रमुख रचना का उल्लेख कीजिए।

Correct Answer:
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जीवन-परिचय:
सूरदास का जन्म लगभग 1478 ई० में हुआ माना जाता है। जन्मस्थान के बारे में मतभेद है— कुछ विद्वानों के अनुसार रुनकता (आगरा के पास) और कुछ के अनुसार सीही गाँव, हरियाणा। सूरदास जन्म से नेत्रहीन थे। वे महान वैष्णव संत वल्लभाचार्य के शिष्य बने और उन्होंने पुष्टिमार्ग का प्रचार किया।
उनका पूरा जीवन भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में व्यतीत हुआ।

साहित्यिक योगदान:
सूरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवि और ‘अष्टछाप’ के कवियों में से एक थे। उन्होंने कृष्णभक्ति पर हजारों पदों की रचना की। उनके काव्य में वात्सल्य, शृंगार और भक्तिरस का अद्भुत समन्वय है।

प्रमुख रचना:
उनकी सर्वप्रसिद्ध कृति ‘सूरसागर’ है। इसके अतिरिक्त ‘साहित्य लहरी’ और ‘सूरसारावली’ भी उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। Quick Tip: सूरदास को ‘\textbf{वात्सल्य रस का सम्राट}’ कहा जाता है क्योंकि उनके काव्य में बालकृष्ण की अद्भुत झाँकियाँ मिलती हैं।


Question 57:

माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी एक प्रमुख रचना का उल्लेख कीजिए।

Correct Answer:
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जीवन-परिचय:
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 ई० को होशंगाबाद, मध्यप्रदेश में हुआ। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार और कवि थे। उन्हें ‘एक भारतीय आत्मा’ कहा जाता है।
उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लेखन और आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और कई बार जेल भी गए।

साहित्यिक योगदान:
वे छायावादी युग के प्रमुख कवि थे, जिनकी रचनाओं में देशभक्ति, त्याग और मानवीय संवेदनाएँ झलकती हैं। उनकी भाषा सरल, ओजस्वी और प्रेरणादायी है।

प्रमुख रचना:
उनकी सर्वप्रसिद्ध कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ है—
“चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ…”
इस कविता में कवि की देशभक्ति और बलिदानी भावना उजागर होती है।
उनकी प्रमुख कृतियाँ— ‘हिमतरंगिणी’, ‘संपूर्ण कविता’, ‘युगचेतना’ आदि हैं। Quick Tip: माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं में राष्ट्रप्रेम और त्याग की भावना विशेष रूप से प्रकट होती है।


Question 58:

सुभद्राकुमारी चौहान का जीवन-परिचय देते हुए उनकी एक प्रमुख रचना का उल्लेख कीजिए।

Correct Answer:
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जीवन-परिचय:
सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 ई० को निहालपुर गाँव, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। वे एक महान कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और कई बार जेल भी गईं।
वे हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध छायावादी कवयित्रियों में गिनी जाती हैं।

साहित्यिक योगदान:
उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, त्याग और स्त्री-शक्ति की अद्भुत झलक मिलती है। उनकी कविताएँ सहज, सरल और भावपूर्ण होती हैं, जो सीधे हृदय को प्रभावित करती हैं।

प्रमुख रचना:
उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता ‘झाँसी की रानी’ है—
“खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी।”
यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणादायी धरोहर है।
उनकी प्रमुख कृतियाँ— ‘मुकुल’, ‘त्रिधारा’, ‘झाँसी की रानी’। Quick Tip: सुभद्राकुमारी चौहान की कविताओं में स्त्री की वीरता और स्वतंत्रता की आकांक्षा का प्रबल स्वर मिलता है।


Question 59:

अपनी पाठ्यपुस्तक के संस्कृत खण्ड से कण्ठस्थ कोई एक श्लोक लिखिए, जो इस प्रश्नपत्र में न आया हो।

Correct Answer:
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श्लोक:
सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येन पन्था विततो देवयानः।

येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा, यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम्॥


भावार्थ:
सत्य की ही विजय होती है, असत्य की नहीं। सत्य के माध्यम से ही देवयान मार्ग की प्राप्ति होती है। जिन ऋषियों ने अपनी इच्छाओं को वश में कर लिया है, वे इसी मार्ग से परम सत्य के धाम तक पहुँचते हैं।

यह श्लोक हमें सत्य और नैतिकता के महत्व का बोध कराता है और जीवन में सदैव सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। Quick Tip: जब भी संस्कृत श्लोक पूछा जाए, तो उसे शुद्ध रूप से लिखें और साथ ही उसका भावार्थ भी स्पष्ट करें।


Question 60:

अपने जनपद में स्थित किसी धार्मिक अथवा ऐतिहासिक स्थल का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए।

Correct Answer:
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प्रिय मित्र के नाम पत्र:

मेरा स्नेहिल नमस्कार स्वीकार करना।


आशा है तुम स्वस्थ और प्रसन्न होगे। आज मैं तुम्हें अपने जनपद के एक ऐतिहासिक स्थल के विषय में लिख रहा हूँ। मेरे जनपद में [यहाँ छात्र अपने जनपद का नाम लिखे, जैसे "वाराणसी"] स्थित है। यह स्थान अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है।

यहाँ स्थित [स्थल का नाम – जैसे "काशी विश्वनाथ मंदिर"] लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। प्रतिदिन यहाँ दूर-दूर से यात्री दर्शन करने आते हैं। मंदिर की स्थापत्य कला, शिल्प और धार्मिक वातावरण अद्भुत है। इसके अतिरिक्त यहाँ [अन्य ऐतिहासिक धरोहर – जैसे "घाट, स्तूप, किला"] भी स्थित हैं, जो अतीत की गौरवगाथा सुनाते हैं।

इस स्थल का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं का भी प्रतीक है। जब भी तुम मेरे जनपद आओगे, मैं तुम्हें अवश्य यहाँ घुमाऊँगा।

अभी के लिए इतना ही। शेष भेंट पर।


तुम्हारा प्रिय मित्र
[अपना नाम लिखें] Quick Tip: पत्र लिखते समय भाषा सरल, भावनात्मक और औपचारिक होनी चाहिए। साथ ही स्थान की विशेषताओं का वर्णन अवश्य करें।


Question 61:

विश्वास: केन वधिते?

Correct Answer:
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उत्तर:
विश्वासे सर्वं शक्यं भवति। जो व्यक्ति विश्वास के साथ कार्य करता है, वही सफलता प्राप्त करता है। विश्वास के बिना किसी कार्य में सफलता की कोई संभावना नहीं रहती। Quick Tip: इस प्रश्न में विश्वास के महत्व को व्यक्त किया गया है। विश्वास वह शक्ति है जो किसी भी कार्य को पूरा करने में मदद करती है।


Question 62:

भारत विजय: न केवलं दुखं: असंभवोदीति क्रिया:?

Correct Answer:
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उत्तर:
भारत विजय केवल दु:ख का कारण नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, प्रेरणा और विजय की ओर बढ़ने की दिशा में एक कदम है। जब कोई राष्ट्र या व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करता है, तो यह दुख और कठिनाइयों का सामना करता है, लेकिन अंततः यही संघर्ष उसकी महानता और सफलता की ओर मार्ग प्रशस्त करता है। Quick Tip: भारत का संघर्ष केवल दुःख नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता का प्रतीक है। यह हमें संघर्ष करने की प्रेरणा देता है।


Question 63:

चन्द्रशेखर: स्व गृहं किम् अवदत्?

Correct Answer:
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उत्तर:
चन्द्रशेखर ने अपने घर के बारे में कहा था कि उनका असली घर भारत है, जो उनकी आत्मा और दिल में बसा हुआ है। उन्होंने कभी व्यक्तिगत सुखों की ओर ध्यान नहीं दिया, बल्कि भारत के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। Quick Tip: यह प्रश्न चन्द्रशेखर आज़ाद के आत्म-बलिदान और मातृभूमि के प्रति उनके अनमोल प्रेम को दर्शाता है।


Question 64:

क: मुग़ल युवराज: उपनिषदात् अनुवाद पारसीभाषायां कर्तात्?

Correct Answer:
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उत्तर:
मुगल युवराज ने उपनिषदों का पारसी भाषा में अनुवाद किया था, ताकि पारसी समुदाय भी भारतीय ज्ञान और दर्शन से परिचित हो सके। यह कार्य उनकी विद्वता और भारतीय संस्कृति के प्रति उनके सम्मान का प्रतीक था। Quick Tip: यह प्रश्न भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक विचारों के वैश्विक प्रसार को दर्शाता है।


Question 65:

नारी-शिक्षा पर निबंध लिखिए।

Correct Answer:
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नारी-शिक्षा:
नारी-शिक्षा एक समाजिक आवश्यकता है। हमारे देश की संस्कृति में नारी को हमेशा सम्मान की दृष्टि से देखा गया है, लेकिन समय के साथ-साथ नारी को अपने अधिकारों और शिक्षा से वंचित रखा गया। यही कारण है कि समाज में नारी की स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई। लेकिन अब समय बदल चुका है और नारी-शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है। यह न केवल समाज की बेहतरी के लिए आवश्यक है, बल्कि देश के सर्वांगीण विकास में भी इसकी अहम भूमिका है।

नारी और शिक्षा का महत्व:
शिक्षा न केवल किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को सशक्त बनाती है, बल्कि यह समाज में समानता, न्याय और सशक्तिकरण का मार्ग भी प्रशस्त करती है। एक शिक्षित नारी समाज में विकास और परिवर्तन लाने में सक्षम होती है। यह समाज को शांति, सौहार्द और समृद्धि की ओर अग्रसर करने में मदद करती है।

नारी-शिक्षा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
इतिहास में देखें तो नारी को बहुत समय तक शिक्षा से वंचित रखा गया था। भारतीय समाज में स्त्रियों के लिए शिक्षा का कोई उचित स्थान नहीं था। वे केवल गृहकार्य और परिवार की देखभाल तक सीमित थीं। लेकिन 19वीं शताब्दी के मध्य में महान सामाजिक सुधारक जैसे राममोहन राय, ज्योतिराव फुले, और ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने नारी-शिक्षा के महत्व को पहचाना और इसके लिए संघर्ष किया।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी-शिक्षा:
आज नारी-शिक्षा को लेकर काफी जागरूकता आई है। सरकार ने भी कई योजनाएँ बनाई हैं, जैसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, जिससे लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। आज शिक्षा के क्षेत्र में महिलाएँ पुरुषों के समान कार्य कर रही हैं। महिलाएँ अब केवल डॉक्टर, इंजीनियर, और वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि संसद और विधानसभाओं में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।

नारी-शिक्षा और समाज का सशक्तिकरण:
शिक्षित नारी अपनी समाज में बेहतर भूमिका निभाती है। वह परिवार, समाज और देश की बेहतरी के लिए काम करती है। नारी को शिक्षा देने से समाज में हर क्षेत्र में समानता आती है। यह उसके आत्मसम्मान को बढ़ाती है और उसे स्वतंत्रता का अहसास कराती है।

निष्कर्ष:
नारी-शिक्षा केवल एक अधिकार नहीं बल्कि समाज की सशक्तीकरण की दिशा में एक कदम है। एक शिक्षित नारी समाज के हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। इसके लिए जरूरी है कि हम समाज के हर कोने में नारी के अधिकारों और शिक्षा के महत्व को समझें और उसे समान अवसर प्रदान करें। Quick Tip: नारी-शिक्षा पर निबंध लिखते समय उसका ऐतिहासिक संदर्भ, वर्तमान स्थिति और सामाजिक महत्व को शामिल करें।


Question 66:

वनों के कटने से हानियाँ पर निबंध लिखिए।

Correct Answer:
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वृक्षों का महत्व:
वृक्षों का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। वे न केवल वातावरण को शुद्ध करते हैं, बल्कि यह जीवन के विभिन्न रूपों के लिए सहायक होते हैं। वृक्षों से हमें आक्सीजन मिलती है, जो जीवन के लिए अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, वृक्ष भूमि को समृद्ध करने, जलवायु को नियंत्रित करने और प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वृक्षों के कटने से होने वाली हानियाँ:
जब वृक्षों की अंधाधुंध कटाई होती है, तो इसके परिणामस्वरूप अनेक गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। सबसे पहली हानि यह है कि वातावरण में आक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे जीवन के लिए संकट पैदा होता है। दूसरी हानि यह है कि वृक्षों के कटने से मृदा अपरदन (soil erosion) की समस्या उत्पन्न होती है, जो भूमि की उर्वरकता को घटाती है।

वृक्षों की कटाई से जलवायु परिवर्तन की स्थिति भी उत्पन्न होती है। ग्लोबल वार्मिंग और मौसम की अनियमितता की समस्याएँ वृक्षों के अभाव में और अधिक गहरा जाती हैं। इसके अलावा, वृक्षों के कटने से वन्यजीवों का आवास भी समाप्त हो जाता है, जो जैव विविधता के लिए हानिकारक है।

निष्कर्ष:
वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से बचने के लिए हमें हर संभव कदम उठाना होगा। केवल सरकार ही नहीं, हर नागरिक को इस दिशा में जिम्मेदारी का एहसास कराना होगा ताकि हमारे आने वाले पीढ़ियाँ भी स्वच्छ वायु और स्वस्थ पर्यावरण का लाभ उठा सकें। Quick Tip: वृक्षों के महत्व और कटाई से होने वाली हानियों का स्पष्ट रूप से उल्लेख करें। साथ ही समाधान के उपाय भी सुझाएँ।


Question 67:

किसी एक त्योहार का वर्णन कीजिए।

Correct Answer:
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दिवाली का वर्णन:
दिवाली हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे विशेष रूप से भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की प्रतीक है और राम के अयोध्या लौटने के साथ जुड़ा हुआ है। दिवाली का पर्व पूरे देश में खुशी, उमंग और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

दिवाली के दिन घरों को सजाया जाता है, दीप जलाए जाते हैं और रंग-बिरंगे पटाखे फोड़ने की परंपरा होती है। लोग अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिलकर खुशियाँ मनाते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ और तोहफे देते हैं।

दिवाली की धार्मिक मान्यता:
दिवाली का धार्मिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है। इसे लक्ष्मी पूजा के रूप में मनाया जाता है, जहाँ घरों में लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है ताकि आने वाला वर्ष समृद्धि और सुख-शांति लेकर आए। यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।

निष्कर्ष:
दिवाली हमें अपने अंदर की अंधकारिता को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा को अपनाने की प्रेरणा देती है। यह एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिकता का प्रतीक है, बल्कि हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी प्रदर्शित करता है। Quick Tip: त्योहारों पर निबंध लिखते समय, उनके धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर ध्यान दें।


Question 68:

विज्ञान-दान या अभिषाप पर निबंध लिखिए।

Correct Answer:
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विज्ञान-दान या अभिषाप:
विज्ञान ने मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन इसे यदि गलत दिशा में प्रयोग किया जाए तो यह अभिषाप बन जाता है।

विज्ञान का दान:
विज्ञान ने चिकित्सा, कृषि, यातायात, संचार, ऊर्जा, आदि के क्षेत्र में विकास किया है। यह हमारे जीवन को सरल और आरामदायक बनाता है। आज हम जितनी सुविधाओं का आनंद ले रहे हैं, वे सभी विज्ञान के योगदान के कारण ही संभव हो पाई हैं।

विज्ञान का अभिषाप:
लेकिन यदि विज्ञान का उपयोग गलत तरीके से किया जाए, तो यह समाज के लिए अभिषाप बन सकता है। जैसे परमाणु बम का आविष्कार, प्रदूषण, और जैविक हथियार। इनका दुरुपयोग पूरे मानवता के लिए खतरे का कारण बन सकता है।

निष्कर्ष:
विज्ञान का उपयोग सद्भावना और समाज की भलाई के लिए होना चाहिए। यदि इसे गलत दिशा में मोड़ा जाता है, तो इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। Quick Tip: विज्ञान के लाभ और हानियों पर निबंध लिखते समय, दोनों पहलुओं पर संतुलित दृष्टिकोण रखें।


Question 69:

बेरोज़गारी की समस्या पर निबंध लिखिए।

Correct Answer:
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बेरोज़गारी की समस्या:
बेरोज़गारी, खासकर युवाओं के बीच, हमारे देश की एक बड़ी समस्या बन गई है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन पर असर डालती है, बल्कि समग्र समाज और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है।

बेरोज़गारी के कारण:
बेरोज़गारी के कई कारण हो सकते हैं:

शिक्षा की कमी: कई युवा अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भी योग्य नहीं होते, जिससे उन्हें रोजगार मिलने में कठिनाई होती है।
प्रौद्योगिकी में बदलाव: जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी में बदलाव हो रहा है, कई पारंपरिक रोजगार क्षेत्रों में कमी आ रही है।
आर्थिक अस्थिरता: वैश्विक आर्थिक संकट और महामारी जैसी परिस्थितियाँ बेरोज़गारी को बढ़ावा देती हैं।


समाधान:
इस समस्या का समाधान सरकारी नीतियों, शिक्षा प्रणाली में सुधार, और उद्यमिता को बढ़ावा देने से हो सकता है। स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम और स्व-रोजगार के अवसर युवाओं के लिए प्रभावी उपाय हो सकते हैं।

निष्कर्ष:
बेरोज़गारी की समस्या का समाधान करने के लिए सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा, ताकि हर युवा को एक स्थिर और सम्मानजनक रोजगार मिल सके। Quick Tip: बेरोज़गारी पर निबंध में समस्या के कारणों, प्रभावों और समाधान के उपायों पर विशेष ध्यान दें।

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