UP Board Class 10 Hindi Question Paper 2024 PDF (Code 801 HA) is available for download here. The Hindi exam was conducted on February 22, 2024 in the Morning Shift from 8:30 AM to 11:45 AM. The total marks for the theory paper are 70. Students reported the paper to be easy to moderate.
UP Board Class 10 Hindi Question Paper 2024 (Code 801 HA) with Solutions
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शुक्ल युग के लेखक नहीं हैं।
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि दिए गए विकल्पों में से कौन से लेखक 'शुक्ल युग' के नहीं हैं।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
हिंदी साहित्य के आधुनिक काल को कई युगों में विभाजित किया गया है।
- जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, और रामचंद्र शुक्ल तीनों शुक्ल युग (लगभग 1919-1938) के प्रमुख साहित्यकार हैं। इस युग को 'छायावादी युग' के नाम से भी जाना जाता है। इस युग का नामकरण आचार्य रामचंद्र शुक्ल के नाम पर हुआ।
- भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक माना जाता है और वे भारतेंदु युग (लगभग 1868-1900) से संबंधित हैं, जो शुक्ल युग से पहले का समय है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
साहित्यिक काल विभाजन के आधार पर, भारतेंदु हरिश्चंद्र शुक्ल युग के लेखक नहीं हैं, वे भारतेंदु युग के प्रवर्तक हैं।
Quick Tip: ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए, हिंदी साहित्य के प्रमुख कालों (आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, आधुनिक काल) और आधुनिक काल के उप-विभागों (भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, शुक्ल/छायावादी युग आदि) के साथ-साथ उनके प्रमुख लेखकों के नाम याद रखना महत्वपूर्ण है।
'पूस की रात' कहानी के लेखक हैं।
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में हिंदी की प्रसिद्ध कहानी 'पूस की रात' के लेखक का नाम पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'पूस की रात' हिंदी साहित्य की सबसे प्रसिद्ध और मार्मिक कहानियों में से एक है।
यह कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई है।
इस कहानी में 'हल्कू' नामक एक गरीब किसान और उसके कुत्ते 'जबरा' के माध्यम से किसान जीवन की विवशता और गरीबी का यथार्थवादी चित्रण किया गया है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'पूस की रात' कहानी के लेखक प्रेमचंद हैं।
Quick Tip: प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा और निराला जैसे प्रमुख हिंदी लेखकों की प्रसिद्ध रचनाओं (कहानी, उपन्यास, कविता) से खुद को परिचित कराएं। किसी विशेष कृति के लेखक के बारे में सीधे पूछने वाले प्रश्न बहुत आम हैं।
'सिंदूर की होली' के नाटककार हैं :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में 'सिंदूर की होली' नाटक के नाटककार की पहचान करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'सिंदूर की होली' हिंदी नाटक साहित्य का एक महत्वपूर्ण नाटक है, जो अपनी सामाजिक समस्याओं के चित्रण और मनोवैज्ञानिक चरित्र-चित्रण के लिए जाना जाता है।
इस नाटक के नाटककार लक्ष्मीनारायण मिश्र हैं।
वे एक प्रमुख नाटककार थे जिन्होंने कई समस्यामूलक नाटक लिखे, जो जयशंकर प्रसाद जैसे अपने पूर्ववर्तियों के ऐतिहासिक और रोमांटिक नाटकों से अलग थे।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'सिंदूर की होली' के नाटककार लक्ष्मीनारायण मिश्र हैं।
Quick Tip: हिंदी साहित्य का अध्ययन करते समय, प्रमुख कवियों, उपन्यासकारों, कहानीकारों और नाटककारों के लिए उनकी 2-3 सबसे महत्वपूर्ण कृतियों के साथ अलग-अलग सूचियाँ बनाएँ। यह त्वरित पुनरीक्षण में मदद करता है और भ्रम से बचाता है।
'रूस में पच्चीस मास' यात्रावृत्त के लेखक हैं
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में 'रूस में पच्चीस मास' नामक यात्रावृत्त के लेखक का नाम पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
राहुल सांकृत्यायन को 'महापंडित' के रूप में जाना जाता है और उन्हें व्यापक रूप से हिंदी यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है।
उन्होंने दुनिया भर में बड़े पैमाने पर यात्रा की और कई यात्रावृत्तांत लिखे।
'रूस में पच्चीस मास' उनकी उल्लेखनीय कृतियों में से एक है, जो रूस में उनके प्रवास के दौरान उनके अनुभवों और अवलोकनों का दस्तावेजीकरण करती है।
उनके अन्य प्रसिद्ध यात्रावृत्तांतों में 'वोल्गा से गंगा' और 'मेरी लद्दाख यात्रा' शामिल हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'रूस में पच्चीस मास' यात्रावृत्त के लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं।
Quick Tip: राहुल सांकृत्यायन का नाम हिंदी में 'यात्रावृत्त' का पर्याय मानें। यदि आप किसी यात्रावृत्त के बारे में कोई प्रश्न देखते हैं और विकल्पों में उनका नाम है, तो उनके लेखक होने की उच्च संभावना है।
'माटी हो गयी सोना' संस्मरण के लेखक हैं।
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में 'माटी हो गयी सोना' शीर्षक वाले संस्मरण के लेखक की पहचान करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'माटी हो गयी सोना' हिंदी साहित्य की संस्मरण विधा की एक प्रसिद्ध कृति है।
यह कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' द्वारा लिखी गई थी।
वे एक प्रसिद्ध पत्रकार, निबंधकार और कहानीकार थे, और उनके संस्मरणों और रिपोर्ताजों को उनकी प्रभावोत्पादक शैली के लिए अत्यधिक माना जाता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'माटी हो गयी सोना' संस्मरण के लेखक कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' हैं।
Quick Tip: प्रश्न में उल्लिखित विधा (जैसे संस्मरण, यात्रावृत्त, नाटक) पर ध्यान दें। यह सही लेखक के लिए एक सुराग प्रदान कर सकता है, क्योंकि कुछ लेखक विशिष्ट विधाओं के विशेषज्ञ थे।
रीतिकाल को 'अलंकृत काल' किस विद्वान ने कहा है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि किस विद्वान ने हिंदी साहित्य के 'रीतिकाल' को 'अलंकृत काल' नाम दिया।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
हिंदी साहित्य के लगभग 1650 से 1850 ई. तक के काल को विभिन्न इतिहासकारों द्वारा विभिन्न नामों से जाना जाता है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे 'रीतिकाल' नाम दिया, और यह सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत नाम है।
- मिश्रबंधुओं (गणेश बिहारी मिश्र, श्याम बिहारी मिश्र और सुखदेव बिहारी मिश्र नामक तीन भाइयों की तिकड़ी) ने इस युग की कविता में अलंकारों के अत्यधिक प्रयोग के कारण इसे 'अलंकृत काल' नाम दिया।
- विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे 'श्रृंगार काल' कहा।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
मिश्रबंधुओं ने रीतिकाल को 'अलंकृत काल' कहा था।
Quick Tip: एक छोटी सी तालिका बनाएं जिसमें एक कॉलम में साहित्यिक कालों (जैसे रीतिकाल) के नाम और अन्य कॉलम में विभिन्न विद्वानों (रामचंद्र शुक्ल, मिश्रबंधु, आदि) द्वारा दिए गए विभिन्न नाम हों। यह एक बहुत बार पूछा जाने वाला विषय है।
निम्नलिखित में से कौन-सी कृति रीतिकालीन कवि देव की नहीं है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में उस कृति की पहचान करने के लिए कहा गया है जो रीतिकालीन कवि देव द्वारा नहीं लिखी गई है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- भाव विलास, भवानी विलास, और रस विलास सभी प्रसिद्ध रीतिकाल के कवि देव की रचनाएँ हैं। उन्होंने बड़ी संख्या में रचनाएँ लिखीं, जिनमें से कई के शीर्षकों में 'विलास' शब्द है।
- कविप्रिया काव्यशास्त्र पर एक मौलिक ग्रंथ है और यह रीतिकाल के एक अन्य प्रमुख कवि आचार्य केशवदास की सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। उनकी अन्य प्रसिद्ध कृति 'रसिकप्रिया' है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
चूंकि 'कविप्रिया' केशवदास द्वारा लिखी गई थी, इसलिए यह देव की कृति नहीं है।
Quick Tip: रीतिकाल के लिए, केशवदास, बिहारी, भूषण और देव जैसे प्रमुख कवियों पर ध्यान केंद्रित करें। प्रत्येक की कम से कम एक या दो प्रमुख कृतियों को जानना गलत विकल्पों को प्रभावी ढंग से समाप्त करने में मदद कर सकता है।
'भारतेंदु युग' की विशेषता (प्रवृत्ति) नहीं है :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में उस विकल्प की पहचान करने के लिए कहा गया है जो 'भारतेंदु युग' की एक विशिष्ट विशेषता नहीं है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
आइए भारतेंदु युग की विशेषताओं का विश्लेषण करें:
- (A) राष्ट्रीयता की भावना: यह एक मुख्य विशेषता थी। इस युग के लेखकों ने देशभक्ति और ब्रिटिश शासन के तहत देश की स्थिति के लिए चिंता व्यक्त की।
- (B) सामाजिक चेतना का विकास: लेखकों ने बाल विवाह, जातिगत भेदभाव जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ सक्रिय रूप से लिखा और महिला शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह की वकालत की।
- (D) काव्यभाषा के रूप में खड़ी बोली का प्रयोग: जबकि ब्रजभाषा अभी भी कविता में प्रमुख थी, गद्य के लिए खड़ी बोली का प्रयोग दृढ़ता से स्थापित हो गया था, और इस युग के दौरान कविता में इसका प्रयोग शुरू हुआ। यह एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति थी।
- (C) अंग्रेज़ी शिक्षा का विरोध: यह गलत है। जबकि भारतेंदु युग के लेखकों ने पश्चिमी संस्कृति और ब्रिटिश शासन के नकारात्मक पहलुओं की आलोचना की, वे आम तौर पर अंग्रेजी शिक्षा के खिलाफ नहीं थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र सहित कई लोगों ने इसे भारत की प्रगति और आधुनिकीकरण के साधन के रूप में देखा, बशर्ते यह भारतीय मूल्यों के साथ संतुलित हो।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अंग्रेजी शिक्षा का पूर्ण विरोध भारतेंदु युग की विशेषता नहीं थी।
Quick Tip: किसी साहित्यिक युग की विशेषताओं का विश्लेषण करते समय, सूक्ष्मताओं पर ध्यान दें। भारतेंदु और द्विवेदी युग के लेखक अक्सर सुधारवादी थे; उन्होंने सामाजिक बुराइयों और पश्चिम की दासतापूर्ण नकल का विरोध किया, लेकिन आधुनिक शिक्षा जैसे प्रगतिशील साधनों का नहीं।
1943 ई. में प्रकाशित 'तारसप्तक' का संपादन किसने किया ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में 1943 में प्रकाशित 'तार सप्तक' के संपादक के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'तारसप्तक' सात नए कवियों की कविताओं का एक अभूतपूर्व संकलन था।
1943 में इसका प्रकाशन हिंदी कविता में 'प्रयोगवाद' का आरंभ माना जाता है।
इस संग्रह की कल्पना और संपादन सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने किया था।
अन्य तीन विकल्प—रामविलास शर्मा, प्रभाकर माचवे, और गिरिजा कुमार माथुर—पहले 'तार सप्तक' में शामिल कवि थे, लेकिन 'अज्ञेय' संपादक थे।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'तारसप्तक' के संपादक 'अज्ञेय' थे।
Quick Tip: पहले 'तार सप्तक' के लिए वर्ष (1943) और संपादक ('अज्ञेय') को याद रखें। यह आधुनिक हिंदी कविता में एक ऐतिहासिक घटना है। 'अज्ञेय' ने बाद में तीन और 'सप्तकों' का भी संपादन किया।
'राम की शक्तिपूजा' किसकी रचना है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में 'राम की शक्ति पूजा' कविता के लेखक की पहचान करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'राम की शक्तिपूजा' हिंदी साहित्य की एक युगांतरकारी लंबी कथात्मक कविता है।
इसकी रचना छायावादी आंदोलन के चार स्तंभों में से एक सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने की थी।
यह कविता रामायण की उस कथा की पुनर्व्याख्या करती है जहाँ राम रावण के साथ अपने अंतिम युद्ध से पहले देवी शक्ति की पूजा करते हैं। यह अपनी शक्तिशाली भाषा, जटिल कल्पना और गहन दार्शनिक गहराई के लिए प्रसिद्ध है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'राम की शक्तिपूजा' 'निराला' की एक रचना है।
Quick Tip: छायावाद के "चार स्तंभों" के साथ प्रमुख कृतियों को जोड़ें: प्रसाद ('कामायनी'), पंत ('पल्लव'), निराला ('राम की शक्ति पूजा', 'सरोज स्मृति'), और महादेवी वर्मा ('यामा')। यह परीक्षाओं के लिए एक उच्च-उपज वाला विषय है।
"हाथी जैसी देह है, गैंडे जैसी खाल।
तरबूजे-सी खोपड़ी, खरबूजे से गाल।।"
उपर्युक्त पंक्तियों में कौन-सा रस है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में दी गई पंक्तियों में 'रस' की पहचान करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
हास्य रस: इस रस की उत्पत्ति किसी की विचित्र या विकृत आकृति, वेशभूषा, वाणी या चेष्टाओं को देखने या सुनने से होती है। इसका स्थायी भाव 'हास' (हँसी) है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
दी गई पंक्तियाँ किसी व्यक्ति की शारीरिक बनावट का अत्यधिक अतिरंजित और विचित्र तरीके से वर्णन करती हैं:
- शरीर हाथी जैसा (हाथी जैसी देह)
- त्वचा गैंडे जैसी (गैंडे जैसी खाल)
- सिर तरबूज जैसा (तरबूजे-सी खोपड़ी)
- गाल खरबूजे जैसे (खरबूजे से गाल)
यह अजीब और असंगत वर्णन (विकृत आकार) हास्य पैदा करने और हँसी लाने के उद्देश्य से किया गया है। इसलिए, प्रमुख रस हास्य रस है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
पंक्तियाँ अपने हास्यपूर्ण वर्णन के माध्यम से हँसी उत्पन्न करती हैं, इसलिए उनमें हास्य रस है।
Quick Tip: 'रस' की पहचान करने के लिए, उस प्रमुख भावना को देखें जिसे पंक्तियाँ जगाने की कोशिश कर रही हैं। वीरता से संबंधित शब्द 'वीर रस', उदासी 'करुण रस', और अजीब या हास्यपूर्ण वर्णन 'हास्य रस' को जगाते हैं।
"उस काल मारे क्रोध के, तन काँपने उनका लगा।
मानो हवा के वेग से, सोता हुआ सागर जगा।।"
उपर्युक्त रेखांकित पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में दोहे की दूसरी पंक्ति में 'अलंकार' की पहचान करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
उत्प्रेक्षा अलंकार: यह अलंकार तब होता है जब 'उपमेय' (जिसकी तुलना की जा रही है) को 'उपमान' (जिससे तुलना की जा रही है) होने की कल्पना या संभावना व्यक्त की जाती है। इसकी पहचान मानो, मनु, मनहुँ, जानो, जनु, जनहुँ आदि जैसे शब्दों से होती है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
पंक्ति है: "मानो हवा के वेग से, सोता हुआ सागर जगा।"
यहाँ, कांपते हुए शरीर (तन काँपने लगा - उपमेय) की तुलना जागते हुए सागर (सोता हुआ सागर जगा - उपमान) से की जा रही है।
शब्द 'मानो' स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि यह एक कल्पना या संभावना है, न कि तथ्य का सीधा कथन।
'मानो' का यह प्रयोग उत्प्रेक्षा अलंकार का निश्चित संकेत है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
वाचक शब्द 'मानो' की उपस्थिति पुष्टि करती है कि यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
Quick Tip: सामान्य अलंकारों के लिए वाचक शब्दों को याद करें। उपमा के लिए, 'सा', 'सी', 'सम', 'सरिस' देखें। उत्प्रेक्षा के लिए, 'मानो', 'जानो', 'मनु', 'जनु' देखें। रूपक में, किसी भी वाचक शब्द के बिना उपमेय पर उपमान का सीधा आरोप होता है।
"जो सुमिरत सिधि होइ, गननायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।"
उपर्युक्त पंक्तियों में प्रयुक्त छंद है :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में दी गई पंक्तियों में 'छंद' की पहचान करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
सोरठा: यह एक अर्धसम मात्रिक छंद है। यह दोहे का उल्टा होता है।
- इसमें 4 चरण होते हैं।
- पहले और तीसरे चरण (विषम चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
- दूसरे और चौथे चरण (सम चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
- तुक आमतौर पर पहले और तीसरे चरण में होती है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या (मात्रा गणना):
आइए मात्राओं की गणना करें (S गुरु/दीर्घ स्वर=2 के लिए, I लघु/ह्रस्व स्वर=1 के लिए)।
पंक्ति 1:
- प्रथम चरण: जो(S) सु(I)मि(I)रत(III) सि(I)धि(I) हो(S)इ(I) = 2+1+1+1+1+1+1+2+1 = 11 मात्राएँ।
- द्वितीय चरण: ग(I)न(I)ना(S)य(I)क(I) क(I)रि(I)ब(I)र(I) ब(I)द(I)न(I) = 1+1+2+1+1+1+1+1+1+1+1+1 = 13 मात्राएँ।
पंक्ति 2:
- तृतीय चरण: क(I)र(I)उ(I) अ(I)नु(I)ग्र(S)ह(I) सो(S)इ(I) = 1+1+1+1+1+2+1+2+1 = 11 मात्राएँ।
- चतुर्थ चरण: बु(I)द्धि(I) रा(S)सि(I) सु(I)भ(I) गु(I)न(I) स(I)द(I)न(I) = 1+1+2+1+1+1+1+1+1+1+1+1 = 13 मात्राएँ।
पैटर्न 11-13, 11-13 है, जो एक सोरठा की परिभाषा है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
मात्रा गणना पुष्टि करती है कि छंद सोरठा है।
Quick Tip: मात्रा गणना का अभ्यास करें। नियमों को याद रखें: ह्रस्व स्वर (अ, इ, उ, ऋ) लघु (1 मात्रा) होते हैं। दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ), अनुस्वार (अं) या विसर्ग (अः) वाले स्वर, और संयुक्त व्यंजन से पहले का लघु स्वर गुरु (2 मात्राएँ) होते हैं।
निम्नलिखित में से किस शब्द में 'अनु' उपसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में उस शब्द को खोजने के लिए कहा गया है जो 'अनु' उपसर्ग का उपयोग करके नहीं बनाया गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
उपसर्ग एक शब्दांश है जिसे किसी शब्द के अर्थ को बदलने के लिए उसके आरंभ में जोड़ा जाता है। हमें उपसर्ग को मूल शब्द से अलग करने की आवश्यकता है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
आइए प्रत्येक शब्द का विच्छेद करें:
- (A) अनुकरण = अनु + करण। ('अनु' का अर्थ है 'पीछे' या 'अनुसार')।
- (B) अनुशासन = अनु + शासन। ('अनु' का अर्थ है 'पीछे' या 'अनुसार')।
- (C) अनुत्तीर्ण = अन् + उत्तीर्ण। यहाँ, उपसर्ग 'अन्' (हलंत के साथ) है, जिसका अर्थ है 'नहीं'। मूल शब्द 'उत्तीर्ण' है। तो, अनुत्तीर्ण का अर्थ है 'जो उत्तीर्ण न हो' या 'असफल'। 'अन्' के 'न्' और 'उत्तीर्ण' के 'उ' के मेल से 'नु' बनता है।
- (D) अनुवाद = अनु + वाद। ('अनु' का अर्थ 'पीछे' है, जिससे अनुवाद का अर्थ निकलता है)।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
'अनुत्तीर्ण' शब्द 'अन्' उपसर्ग से बना है, 'अनु' से नहीं।
Quick Tip: उपसर्गों से निपटते समय, हमेशा एक सार्थक मूल शब्द की पहचान करने का प्रयास करें। 'अनुत्तीर्ण' में, मूल शब्द 'उत्तीर्ण' है। शेष भाग 'अन्' है, जो संस्कृत/हिंदी में एक सामान्य नकारात्मक उपसर्ग है (जैसे, अनादर = अन् + आदर)।
'नीलकण्ठ' समस्तपद में प्रयुक्त समास है :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में 'नीलकण्ठ' शब्द में समास का प्रकार पूछा गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
बहुव्रीहि समास: इस प्रकार के समास में, न तो पहला पद (पूर्वपद) और न ही दूसरा पद (उत्तरपद) प्रधान होता है। इसके बजाय, पूरा समस्तपद किसी तीसरे व्यक्ति या वस्तु को संदर्भित करता है। समास का विग्रह करने पर अक्सर 'जिसका', 'जिसकी', 'वाला' जैसे शब्दों का प्रयोग होता है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
'नीलकण्ठ' शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'नीला गला'।
इसका विग्रह है: नीला है कण्ठ जिसका, अर्थात् शिव।
यहाँ, शब्द का अर्थ केवल नीले रंग का गला नहीं है। यह एक विशिष्ट तीसरे व्यक्ति, भगवान शिव की ओर इशारा करता है, जिन्हें नीलकंठ के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने विष का सेवन किया था जिससे उनका गला नीला हो गया था।
चूंकि समस्तपद एक तीसरे अर्थ को संदर्भित करता है, यह एक बहुव्रीहि समास है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
'नीलकण्ठ' में बहुव्रीहि समास है।
Quick Tip: देवी-देवताओं को संदर्भित करने वाले कई सामासिक शब्द बहुव्रीहि समास होते हैं (जैसे, लम्बोदर - भगवान गणेश, दशानन - रावण, चक्रपाणि - भगवान विष्णु)। यदि किसी सामासिक शब्द का कोई प्रसिद्ध पौराणिक या विशेष अर्थ है, तो यह संभवतः एक बहुव्रीहि समास है।
'बादल' का पर्यायवाची शब्द नहीं है :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में उस शब्द की पहचान करने के लिए कहा गया है जो 'बादल' का पर्यायवाची नहीं है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
हिंदी में कई पर्यायवाची मूल शब्दों को मिलाकर बनते हैं। जल से संबंधित शब्दों के लिए:
- जल का पर्यायवाची + द ('देने वाला') का अर्थ अक्सर बादल होता है।
- जल का पर्यायवाची + ज ('जन्म लेने वाला') का अर्थ अक्सर कमल होता है।
- जल का पर्यायवाची + धि ('धारण करने वाला') का अर्थ अक्सर समुद्र होता है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
आइए इस अवधारणा के आधार पर विकल्पों का विश्लेषण करें:
- (A) नीरद = नीर (जल) + द (देने वाला) = जल देने वाला = बादल।
- (B) अंबुद = अंबु (जल) + द (देने वाला) = जल देने वाला = बादल।
- (C) जलद = जल (जल) + द (देने वाला) = जल देने वाला = बादल।
- (D) जलज = जल (जल) + ज (जन्म लेने वाला) = जल में जन्म लेने वाला = कमल।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
'जलज' कमल का पर्यायवाची है, बादल का नहीं।
Quick Tip: जल से संबंधित पर्यायवाची शब्दों से निपटते समय '-द' (देने वाला -> बादल), '-ज' (जन्म लेने वाला -> कमल), और '-धि' (धारण करने वाला -> समुद्र) प्रत्ययों को याद रखें। यह ट्रिक आपको कई पर्यायवाची प्रश्नों को जल्दी हल करने में मदद कर सकती है।
'युष्मद्' (तुम) सर्वनाम शब्द का तृतीया एकवचन रूप है :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में 'युष्मद्' (तुम) सर्वनाम के तृतीया विभक्ति, एकवचन रूप के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
इसके लिए संस्कृत सर्वनाम 'युष्मद्' के शब्द रूप का ज्ञान आवश्यक है।
एकवचन में पहले कुछ विभक्तियों के रूप इस प्रकार हैं:
- प्रथमा: त्वम् (तुम)
- द्वितीया: त्वाम् (तुमको)
- तृतीया: त्वया (तुमसे/तुम्हारे द्वारा)
- चतुर्थी: तुभ्यम् (तुम्हारे लिए)
- पञ्चमी: त्वत् (तुमसे)
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
शब्द रूप तालिका के आधार पर:
- (A) युवाम् प्रथमा और द्वितीया विभक्ति का द्विवचन रूप है।
- (B) त्वया तृतीया विभक्ति का एकवचन रूप है।
- (C) त्वत् पञ्चमी विभक्ति का एकवचन रूप है।
- (D) तुभ्यम् चतुर्थी विभक्ति का एकवचन रूप है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
'युष्मद्' का सही तृतीया एकवचन रूप 'त्वया' है।
Quick Tip: 'अस्मद्' (मैं), 'युष्मद्' (तुम), और 'तत्' (वह) जैसे सामान्य सर्वनामों के शब्द रूप को याद करना हिंदी परीक्षाओं के संस्कृत व्याकरण खंड में अंक प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।
'आँधी आयी और हम घर भागने लगे।' रचना के आधार पर इस वाक्य का प्रकार है :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में वाक्य की संरचना के आधार पर उसके प्रकार की पहचान करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
- सरल वाक्य: इसमें एक उद्देश्य और एक विधेय होता है।
- संयुक्त वाक्य: इसमें दो या दो से अधिक स्वतंत्र (मुख्य) उपवाक्य होते हैं जो एक संयोजक अव्यय (जैसे: और, एवं, तथा, या, अथवा, इसलिए, अतः, फिर भी, तो, नहीं तो, किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर आदि) द्वारा जुड़े होते हैं।
- मिश्र वाक्य: इसमें एक मुख्य उपवाक्य और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
दिया गया वाक्य है: 'आँधी आयी और हम घर भागने लगे।'
आइए इसे विभाजित करें:
- उपवाक्य 1: आँधी आयी। यह अपने आप में एक पूर्ण वाक्य है। यह एक स्वतंत्र उपवाक्य है।
- उपवाक्य 2: हम घर भागने लगे। यह भी अपने आप में एक पूर्ण वाक्य है। यह एक स्वतंत्र उपवाक्य है।
ये दो स्वतंत्र उपवाक्य संयोजक 'और' द्वारा जुड़े हुए हैं।
एक संयोजक द्वारा दो या दो से अधिक स्वतंत्र उपवाक्यों को जोड़कर बनाया गया वाक्य एक संयुक्त वाक्य कहलाता है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
यह वाक्य एक संयुक्त वाक्य है।
Quick Tip: संयुक्त और मिश्र वाक्यों के बीच अंतर करने के लिए, जांचें कि क्या उपवाक्य अकेले पूर्ण वाक्यों के रूप में खड़े हो सकते हैं। यदि दोनों हो सकते हैं, तो यह एक संयुक्त वाक्य है। यदि एक अपने पूर्ण अर्थ के लिए दूसरे पर निर्भर करता है, तो यह एक मिश्र वाक्य है।
'महात्मा बुद्ध ने विश्व को शांति का संदेश दिया।' इस वाक्य का वाच्य बताइए :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में दिए गए वाक्य का 'वाच्य' (voice) पहचानने के लिए कहा गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
- कर्तृवाच्य (Active Voice): कर्ता प्रमुख होता है और क्रिया कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होती है। कर्ता क्रिया का करने वाला होता है।
- कर्मवाच्य (Passive Voice): कर्म प्रमुख होता है, और क्रिया कर्म के अनुसार होती है। इसमें अक्सर 'के द्वारा' का प्रयोग होता है।
- भाववाच्य (Impersonal Voice): भाव या क्रिया ही प्रमुख होती है। क्रिया हमेशा अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन में होती है। इसका प्रयोग अक्सर असमर्थता व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
वाक्य है: 'महात्मा बुद्ध ने विश्व को शांति का संदेश दिया।'
- कर्ता: महात्मा बुद्ध ने
- क्रिया: दिया
क्रिया 'दिया' सीधे कर्ता 'महात्मा बुद्ध' से जुड़ी है, जो क्रिया के कर्ता हैं। क्रिया कर्ता के अनुसार है। सकर्मक क्रिया वाले भूतकाल के वाक्यों में कर्ता के साथ 'ने' परसर्ग का प्रयोग कर्तृवाच्य का एक मजबूत संकेतक है।
इसका कर्मवाच्य रूप होगा: 'महात्मा बुद्ध के द्वारा विश्व को शांति का संदेश दिया गया।'
चरण 4: अंतिम उत्तर:
चूंकि कर्ता क्रिया का करने वाला है और प्रमुख है, इसलिए वाक्य कर्तृवाच्य में है।
Quick Tip: वाच्य पहचानने का एक त्वरित तरीका: यदि कर्ता के बाद 'ने' (भूतकाल में) लगा हो या कोई परसर्ग न हो (वर्तमान/भविष्य काल में), और वह क्रिया कर रहा हो, तो यह सबसे अधिक संभावना कर्तृवाच्य है। यदि 'के द्वारा' का प्रयोग किया जाता है या कर्म पर ध्यान केंद्रित होता है, तो यह संभवतः कर्मवाच्य है।
'वह अचानक चला गया।' वाक्य में प्रयुक्त 'अचानक' पद का व्याकरणिक परिचय है :
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में वाक्य में 'अचानक' शब्द का व्याकरणिक परिचय पूछा गया है।
चरण 2: मुख्य अवधारणा:
- संज्ञा: किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु या विचार का नाम।
- सर्वनाम: संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाला शब्द।
- क्रिया: किसी कार्य या होने की स्थिति को दर्शाने वाला शब्द।
- क्रिया-विशेषण: वह शब्द जो किसी क्रिया, विशेषण या अन्य क्रिया-विशेषण की विशेषता बताता है। यह बताता है कि कोई क्रिया कैसे, कब, कहाँ या किस हद तक की जाती है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
वाक्य है: 'वह अचानक चला गया।'
- वह एक सर्वनाम है।
- चला गया क्रिया है।
शब्द 'अचानक' यह बताता है कि 'चला गया' की क्रिया *कैसे* हुई। यह क्रिया की विशेषता बता रहा है।
जो शब्द क्रिया की रीति, समय, स्थान या परिमाण का वर्णन करते हैं, वे क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
विशेष रूप से, 'अचानक' एक रीतिवाचक क्रिया-विशेषण है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
चूंकि 'अचानक' क्रिया 'चला गया' की विशेषता बता रहा है, इसलिए इसकी व्याकरणिक श्रेणी क्रिया-विशेषण है।
Quick Tip: क्रिया-विशेषण की पहचान के लिए, क्रिया से "कैसे?", "कब?", "कहाँ?" या "कितना?" प्रश्न पूछें। इस वाक्य में, "वह कैसे चला गया?" -> "अचानक"। "कैसे?" का उत्तर रीतिवाचक क्रिया-विशेषण होता है।
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्न का उत्तर दीजिए :
कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सवृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी, तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर ले जाएगी।
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
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चरण 1: गद्यांश को समझना:
यह प्रश्न दिए गए गद्यांश के स्रोत की पहचान करने के लिए कह रहा है, अर्थात इसके पाठ और लेखक का नाम बताने के लिए।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- संदर्भ: प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिंदी' के गद्य-खंड में संकलित आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित 'मित्रता' नामक निबंध से अवतरित है।
- गद्यांश की भाषा, शैली और विषय-वस्तु से यह स्पष्ट होता है कि यह विचारात्मक निबंध शैली में लिखा गया है।
- गद्यांश में 'कुसंग' (बुरी संगति) और 'सुसंगति' (अच्छी संगति) के प्रभावों का वर्णन किया गया है, जो 'मित्रता' के विषय से गहरा संबंध रखता है।
- हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक और निबंधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'मित्रता' विषय पर एक प्रसिद्ध निबंध लिखा है, जो हाई स्कूल के पाठ्यक्रम में निर्धारित है।
- अतः, दिए गए तथ्यों के आधार पर, यह गद्यांश आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित 'मित्रता' नामक निबंध से लिया गया है।
Quick Tip: परीक्षा के लिए गद्य और पद्य खंड के सभी पाठों के लेखक/कवि और पाठ का नाम अच्छी तरह से याद कर लें। संदर्भ लिखना अनिवार्य होता है और इसके लिए अंक निर्धारित होते हैं।
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्न का उत्तर दीजिए :
कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सवृत्ति
का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी, तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर ले जाएगी।
गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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चरण 1: रेखांकित अंश को समझना:
रेखांकित अंश "कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सवृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है।" की व्याख्या करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- व्याख्या: लेखक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी कहते हैं कि मानव जीवन पर संगति का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। उन्होंने बुरी संगति को एक 'भयानक ज्वर' (बुखार) की उपमा दी है। जिस प्रकार भयानक ज्वर व्यक्ति के शरीर और स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार बुरी संगति व्यक्ति के नैतिक और बौद्धिक गुणों को नष्ट कर देती है।
- बुरी संगति के प्रभाव से व्यक्ति की 'नीति' (सही-गलत का निर्णय) और 'सद्वृत्ति' (अच्छा आचरण) समाप्त हो जाती है।
- इसका प्रभाव केवल आचरण तक ही सीमित नहीं रहता, यह व्यक्ति की 'बुद्धि का भी क्षय' करती है, अर्थात उसकी सोचने-समझने की शक्ति, विवेक और निर्णय क्षमता को भी क्षीण कर देती है। इसके कारण व्यक्ति सही और गलत में भेद नहीं कर पाता और पतन की ओर बढ़ता जाता है।
Quick Tip: व्याख्या करते समय, मूल भाव को अपने शब्दों में स्पष्ट करें। उपमाओं और रूपकों (जैसे 'ज्वर') का अर्थ समझाते हुए लिखें ताकि व्याख्या प्रभावशाली बने।
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्न का उत्तर दीजिए :
कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सवृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी, तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर ले जाएगी।
कुसंग की तुलना किससे की गयी है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में यह पूछा गया है कि गद्यांश में बुरी संगति (कुसंग) की तुलना किस वस्तु से की गई है।
चरण 2: गद्यांश से उत्तर खोजना:
- गद्यांश में कुसंग (बुरी संगति) की तुलना पैरों में बँधी चक्की से की गयी है।
- गद्यांश की तीसरी पंक्ति में स्पष्ट रूप से लिखा है: "किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी, तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-दिन अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी..."
- यहाँ 'वह' सर्वनाम 'बुरी संगति' के लिए प्रयुक्त हुआ है और उसकी तुलना 'पैरों में बंधी चक्की' से की गई है।
- जिस प्रकार पैर में बंधी चक्की व्यक्ति को आगे नहीं बढ़ने देती और उसे नीचे की ओर खींचती है, उसी प्रकार बुरी संगति व्यक्ति को उन्नति नहीं करने देती और उसे पतन की ओर ले जाती है।
Quick Tip: गद्यांश पर आधारित प्रश्नों का उत्तर हमेशा गद्यांश में ही निहित होता है। उत्तर देने से पहले संबंधित पंक्ति को ध्यान से पढ़ें और सुनिश्चित करें कि आपका उत्तर सीधे गद्यांश पर आधारित है।
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्न का उत्तर दीजिए :
ईर्ष्या की बड़ी बेटी का नाम निंदा है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी होता है। दूसरों की निंदा वह इसलिए करता है कि इस प्रकार दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों की आँखों से गिर जाएँगे और तब जो स्थान रिक्त होगा, उस पर अनायास मैं ही बैठा दिया जाऊँगा।
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
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चरण 1: गद्यांश को समझना:
यह प्रश्न दिए गए गद्यांश के लेखक और पाठ का नाम पूछ रहा है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- संदर्भ: प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिंदी' के गद्य-खंड में संकलित श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा लिखित 'ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से' नामक निबंध से उद्धृत है।
- प्रस्तुत गद्यांश में 'ईर्ष्या' और 'निंदा' जैसे मनोभावों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।
- गद्यांश की शैली और विषय-वस्तु प्रसिद्ध राष्ट्रकवि और निबंधकार रामधारी सिंह 'दिनकर' के लेखन से मेल खाती है।
- 'ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से' उनके द्वारा रचित एक प्रसिद्ध निबंध है जिसमें उन्होंने ईर्ष्या के स्वरूप और उसके दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला है।
- अतः, यह गद्यांश रामधारी सिंह 'दिनकर' के निबंध 'ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से' से लिया गया है।
Quick Tip: प्रमुख गद्य लेखकों जैसे आचार्य शुक्ल, प्रेमचंद, दिनकर, महादेवी वर्मा आदि की लेखन शैली की कुछ प्रमुख विशेषताओं को ध्यान में रखने से संदर्भ पहचानने में मदद मिलती है।
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्न का उत्तर दीजिए :
ईर्ष्या की बड़ी बेटी का नाम निंदा है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी होता है। दूसरों की निंदा वह इसलिए करता है कि इस प्रकार दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों की आँखों से गिर जाएँगे और तब जो स्थान रिक्त होगा, उस पर अनायास मैं ही बैठा दिया जाऊँगा।
गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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चरण 1: रेखांकित अंश को समझना:
रेखांकित अंश "ईर्ष्या की बड़ी बेटी का नाम निंदा है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी होता है।" की व्याख्या करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- व्याख्या: लेखक रामधारी सिंह 'दिनकर' जी ने ईर्ष्या और निंदा के बीच के गहरे संबंध को एक रूपक के माध्यम से व्यक्त किया है। वह कहते हैं कि 'निंदा', 'ईर्ष्या' की बड़ी बेटी है। इसका तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति के मन में ईर्ष्या का भाव जन्म लेता है, उसके मन में निंदा का भाव भी स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है।
- जो व्यक्ति दूसरों की उन्नति या गुणों से जलता है (ईर्ष्यालु होता है), वही उनकी कमियों को ढूंढता है और दूसरों के सामने उनकी बुराई करता है (निंदक होता है)।
- वास्तव में, निंदा वह हथियार है जिसका प्रयोग ईर्ष्यालु व्यक्ति अपने मन की जलन को शांत करने और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए करता है। इसलिए, हर ईर्ष्यालु व्यक्ति अनिवार्य रूप से एक निंदक भी होता है।
Quick Tip: व्याख्या करते समय लेखक द्वारा प्रयोग किए गए प्रतीकात्मक संबंधों (जैसे- बेटी) को स्पष्ट करें। यह आपके उत्तर को अधिक गहरा और सटीक बनाता है।
निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्न का उत्तर दीजिए :
ईर्ष्या की बड़ी बेटी का नाम निंदा है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी होता है। दूसरों की निंदा वह इसलिए करता है कि इस प्रकार दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों की आँखों से गिर जाएँगे और तब जो स्थान रिक्त होगा, उस पर अनायास मैं ही बैठा दिया जाऊँगा।
ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की निंदा क्यों करता है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में ईर्ष्यालु व्यक्ति द्वारा दूसरों की निंदा करने का कारण पूछा गया है।
चरण 2: गद्यांश से उत्तर खोजना:
- गद्यांश के अनुसार, ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की निंदा इसलिए करता है ताकि वे लोग दूसरों की नजरों में गिर जाएँ और उनके सम्मान का रिक्त स्थान उसे मिल जाए।
- गद्यांश की तीसरी पंक्ति में इसका कारण स्पष्ट रूप से बताया गया है: "दूसरों की निंदा वह इसलिए करता है कि इस प्रकार दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों की आँखों से गिर जाएँगे और तब जो स्थान रिक्त होगा, उस पर अनायास मैं ही बैठा दिया जाऊँगा।"
- इसका अर्थ है कि ईर्ष्यालु व्यक्ति यह सोचता है कि यदि वह किसी की बुराई करेगा, तो समाज या मित्रों के बीच उस व्यक्ति का सम्मान कम हो जाएगा।
- जब उस व्यक्ति का सम्मान और महत्व कम हो जाएगा, तो उसका स्थान खाली हो जाएगा, और ईर्ष्यालु व्यक्ति को लगता है कि उस खाली स्थान पर उसे बैठा दिया जाएगा, अर्थात उसे वह सम्मान और महत्व मिल जाएगा।
Quick Tip: हमेशा प्रश्न के सटीक उत्तर को गद्यांश से ढूंढकर लिखें। अपने मन से अनुमान लगाने के बजाय गद्यांश में दिए गए तर्क को ही आधार बनाएं।
निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
ऊधौ जाहु तुमहिं हम जाने।
स्याम तुमहिं ह्याँ कौ नहिं पठयौ, तुम हौ बीच भुलाने।।
ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने।
बड़े लोग न विवेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने।।
...
सूर स्याम जब तुमहि पठायौ, तब नैकहुँ मुसकाने।।
उपर्युक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए।
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चरण 1: पद्यांश को समझना:
प्रश्न में दिए गए पद्य का संदर्भ पूछा गया है, जिसमें कवि और काव्य-ग्रंथ का उल्लेख करना है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- संदर्भ: यह पद्यांश महाकवि सूरदास द्वारा रचित 'सूरसागर' महाकाव्य के 'भ्रमरगीत' प्रसंग से लिया गया है। यह हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिंदी' के काव्य-खंड में 'पद' शीर्षक के अंतर्गत संकलित है।
- पद्यांश की भाषा ब्रजभाषा है और इसमें 'ऊधौ' (उद्धव), 'स्याम' (श्रीकृष्ण) और 'ब्रज नारिनि' (गोपियाँ) का उल्लेख है।
- यह प्रसंग उद्धव और गोपियों के बीच संवाद का है, जहाँ गोपियाँ उद्धव के निर्गुण ज्ञान और योग के उपदेश का खंडन कर रही हैं।
- हिंदी साहित्य में यह प्रसिद्ध प्रसंग 'भ्रमरगीत' के नाम से जाना जाता है, जिसके सर्वश्रेष्ठ प्रस्तोता महाकवि सूरदास हैं।
Quick Tip: पद्य का संदर्भ लिखते समय कवि का नाम, कविता का शीर्षक, और यदि संभव हो तो मूल काव्य-ग्रंथ का नाम अवश्य लिखें। इससे उत्तर पूर्ण और प्रभावशाली बनता है।
निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
ऊधौ जाहु तुमहिं हम जाने।
स्याम तुमहिं ह्याँ कौ नहिं पठयौ, तुम हौ बीच भुलाने।।
ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने।
बड़े लोग न विवेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने।।
...
पद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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चरण 1: रेखांकित अंश को समझना:
रेखांकित पंक्तियाँ हैं: "ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने। बड़े लोग न विवेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने।।" इसकी व्याख्या करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- व्याख्या: गोपियाँ उद्धव पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि तुम हम ब्रज की स्त्रियों को योग का उपदेश दे रहे हो, तुम्हें ऐसी बातें कहते हुए लज्जा भी नहीं आती। तुम भले ही ज्ञानी हो, पर ऐसा लगता है कि तुम्हारे पास विवेक नहीं है और तुम बिल्कुल अज्ञानियों जैसा व्यवहार कर रहे हो।
- 'ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने।' - गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! तुम हम ब्रज की भोली-भाली स्त्रियों से, जो प्रेम-मार्ग पर चलती हैं, योग-साधना की नीरस बातें कर रहे हो। क्या तुम्हें ऐसा अनुपयुक्त उपदेश देते हुए थोड़ी भी लज्जा नहीं आ रही?
- 'बड़े लोग न विवेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने।।' - वे आगे व्यंग्य करती हैं कि सुना है तुम बड़े ज्ञानी हो, परन्तु तुम्हारी बातें सुनकर लगता है कि तुम्हारे अंदर विवेक (भले-बुरे या उचित-अनुचित का ज्ञान) बिल्कुल भी नहीं है। तुम ऐसे अज्ञानी और नासमझ बन गए हो कि तुम्हें यह भी नहीं पता कि किससे क्या बात करनी चाहिए।
Quick Tip: पद्य की व्याख्या करते समय पंक्तियों के शाब्दिक अर्थ के साथ-साथ उनके पीछे छिपे भाव, व्यंग्य और अलंकार को भी स्पष्ट करना चाहिए।
निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
ऊधौ जाहु तुमहिं हम जाने।
स्याम तुमहिं ह्याँ कौ नहिं पठयौ, तुम हौ बीच भुलाने।।
ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने।
...
'ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने।' से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पंक्ति "ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौं, बात कहत न लजाने।" का भाव स्पष्ट करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि गोपियाँ उद्धव को उलाहना दे रही हैं कि उनका हम प्रेममार्गी स्त्रियों को ज्ञान और योग का उपदेश देना सर्वथा अनुचित और लज्जास्पद कार्य है।
- गोपियों का कहना है कि हम ब्रज की नारियाँ हैं, जिन्होंने अपना सब कुछ श्रीकृष्ण के सगुण, साकार रूप पर न्योछावर कर दिया है। हमारा मार्ग प्रेम और भक्ति का है।
- दूसरी ओर, उद्धव उन्हें 'जोग' अर्थात निर्गुण ब्रह्म की उपासना और योग-साधना का उपदेश दे रहे हैं, जो प्रेम-मार्ग के बिल्कुल विपरीत, नीरस और कठिन है।
- गोपियों का मानना है कि प्रेम में मग्न स्त्रियों को वैराग्य और योग का उपदेश देना न केवल अनुपयुक्त है, बल्कि यह एक निर्लज्जतापूर्ण कार्य है। उद्धव को यह समझना चाहिए कि पात्र के अनुसार ही उपदेश दिया जाता है।
- अतः, इस पंक्ति का तात्पर्य उद्धव की अयोग्यता और उनके उपदेश की अनुपयुक्तता पर करारा व्यंग्य करना है।
Quick Tip: किसी पंक्ति का तात्पर्य या भाव स्पष्ट करते समय, उसके संदर्भ (किससे, क्यों और किस परिस्थिति में कहा गया) को ध्यान में रखकर व्याख्या करें।
निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ में देना तुम फेंक |
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक ।
उपर्युक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए।
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चरण 1: पद्यांश को समझना:
प्रश्न में दिए गए पद्य का संदर्भ पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- संदर्भ: प्रस्तुत पद्यांश श्री माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित 'पुष्प की अभिलाषा' नामक कविता से उद्धृत है। यह हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिंदी' के काव्य-खंड में संकलित है।
- यह पद्यांश हिंदी की एक अत्यंत प्रसिद्ध कविता है, जिसमें एक पुष्प अपनी इच्छा व्यक्त कर रहा है।
- कविता का भाव देशभक्ति और आत्म-बलिदान का है, जो राष्ट्रीय काव्य धारा के प्रमुख कवि माखनलाल चतुर्वेदी की लेखन शैली की विशेषता है।
- उन्हें 'एक भारतीय आत्मा' के उपनाम से भी जाना जाता है।
Quick Tip: प्रसिद्ध कविताओं की प्रारंभिक पंक्तियों को याद रखना संदर्भ लिखने में बहुत सहायक होता है। 'पुष्प की अभिलाषा' एक ऐसी ही प्रसिद्ध कविता है।
निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
...
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ में देना तुम फेंक |
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक ।
पद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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चरण 1: रेखांकित अंश को समझना:
रेखांकित पंक्तियाँ हैं: "मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ में देना तुम फेंक | मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक ।" इसकी व्याख्या करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
- व्याख्या: पुष्प माली से निवेदन करता है कि हे वनमाली, तुम मुझे तोड़कर उस रास्ते पर फेंक देना, जिस रास्ते से होकर अनेक वीर सैनिक अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने जा रहे हों।
- इन पंक्तियों में कवि ने पुष्प के माध्यम से अपनी उत्कृष्ट देशभक्ति की भावना को व्यक्त किया है।
- पुष्प सांसारिक मान-सम्मान और सौंदर्य के उपयोग को तुच्छ समझता है। उसकी एकमात्र और सर्वोच्च अभिलाषा देश के लिए समर्पित होना है।
- वह वनमाली से प्रार्थना करता है कि उसे तोड़कर उस मार्ग पर बिखेर दिया जाए, जिस मार्ग पर चलकर भारत माता के वीर सपूत ('वीर अनेक') मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना 'शीश चढ़ाने' अर्थात अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए जा रहे हों।
- पुष्प उन वीरों के पैरों के नीचे आकर, उनके महान बलिदान का एक छोटा-सा हिस्सा बनकर स्वयं को धन्य समझना चाहता है। यह आत्म-त्याग और देश-प्रेम की पराकाष्ठा है।
Quick Tip: व्याख्या करते समय कविता के केंद्रीय भाव (यहाँ, देशभक्ति और आत्म-बलिदान) को उजागर करें। यह दिखाएगा कि आपने कविता के मर्म को समझ लिया है।
निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
...
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ में देना तुम फेंक |
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक ।
पुष्प वनमाली के समक्ष अपनी कौन-सी इच्छा (चाह) प्रकट करता है ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि पुष्प वनमाली से अपनी क्या इच्छा व्यक्त करता है।
चरण 2: पद्यांश से उत्तर खोजना:
- पद्यांश के अनुसार, पुष्प वनमाली के समक्ष यह इच्छा प्रकट करता है कि उसे तोड़कर उस रास्ते पर फेंक दिया जाए जिस पर देश के वीर सैनिक मातृभूमि के लिए बलिदान देने जाते हैं।
- पद्यांश में पुष्प पहले अपनी अनेक 'चाह नहीं' (क्या नहीं चाहता) बताता है, जैसे - वह देवकन्या का आभूषण, प्रेमी की माला, सम्राटों के शव पर श्रद्धांजलि या देवताओं पर चढ़ाया जाने वाला प्रसाद नहीं बनना चाहता।
- उसकी वास्तविक इच्छा पद्यांश के अंतिम चार पंक्तियों में व्यक्त होती है: "मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ में देना तुम फेंक | मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।"
- अतः, पुष्प की एकमात्र और अंतिम इच्छा यही है कि वह देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीरों के मार्ग में बिछकर उनके महान कार्य में सहभागी बने। यही उसका सर्वोच्च सम्मान है।
Quick Tip: उत्तर लिखते समय, प्रश्न के अनुसार केवल वही जानकारी दें जो पूछी गई है। यहाँ पुष्प क्या नहीं चाहता, यह बताना आवश्यक नहीं है, केवल उसकी वास्तविक इच्छा (क्या चाहता है) बताना ही पर्याप्त है।
निम्नलिखित संस्कृत गद्यांश का संदर्भ-सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
वाराणस्यां प्राचीनकालादेव गेहे-गेहे विद्यायाः दिव्यं ज्योतिः द्योतते। अधुनाऽपि अत्र संस्कृतवाग्धारा सततं प्रवहति, जनानां ज्ञानञ्च वर्धयति। अत्र अनेके आचार्याः मूर्धन्याः विद्वांसः वैदिकवाङ्मयस्य अध्ययने अध्यापने च इदानीं निरताः। न केवलं भारतीयाः अपितु वैदेशिकाः गीर्वाणवाण्याः अध्ययनाय अत्र आगच्छन्ति निःशुल्कं च विद्यां गृह्णन्ति।
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चरण 1: संदर्भ की पहचान:
प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत भाषा में वाराणसी के शैक्षिक और सांस्कृतिक महत्व का वर्णन कर रहा है। यह संस्कृत पाठ्य-पुस्तक के एक प्रसिद्ध अध्याय से है।
चरण 2: संदर्भ लेखन:
संदर्भ: प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के संस्कृत खण्ड के 'वाराणसी' नामक पाठ से उद्धृत है।
चरण 3: हिन्दी अनुवाद:
अनुवाद: वाराणसी में प्राचीन काल से ही घर-घर में विद्या का दिव्य प्रकाश चमकता है। आज भी यहाँ संस्कृत वाणी की धारा लगातार बहती है और लोगों का ज्ञान बढ़ाती है। यहाँ अनेक आचार्य, उच्च कोटि के विद्वान्, वैदिक साहित्य के अध्ययन और अध्यापन में इस समय लगे हुए हैं। केवल भारतीय ही नहीं, बल्कि विदेशी भी देववाणी (संस्कृत) के अध्ययन के लिए यहाँ आते हैं और निःशुल्क विद्या ग्रहण करते हैं।
Quick Tip: संस्कृत गद्यांश का अनुवाद करते समय शब्दों के सही अर्थ और विभक्ति पर ध्यान दें। वाक्य रचना को हिन्दी के अनुसार सहज और पठनीय बनाने का प्रयास करें।
निम्नलिखित संस्कृत गद्यांश का संदर्भ-सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
एकदा बहवः जनाः धूमयानम् (रेल) आरुह्य नगरं प्रति गच्छन्ति स्म। तेषु केचित् ग्रामीणाः केचिच्च नागरिकाः आसन्। मौनं स्थितेषु तेषु एकः नागरिकः ग्रामीणान् उपहसन् अकथयत् “ग्रामीणा : अद्यापि पूर्ववत् अशिक्षिताः अज्ञाश्च सन्ति। न तेषां विकासः अभवत् न च भवितुं शक्नोति।" तस्य तादृशं जल्पनं श्रुत्वा कोऽपि चतुरः ग्रामीणः अब्रवीत् “भद्र नागरिक ! भवान् एव किञ्चित् ब्रवीतु यतो हि भवान् शिक्षितः बहुज्ञः च अस्ति।' इदम् आकर्ण्य स नागरिकः सदर्प ग्रीवाम् उन्नमय्य अकथयत्, “कथयिष्यामि, परं पूर्व समयः विधातव्यः। "
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चरण 1: संदर्भ की पहचान:
प्रस्तुत गद्यांश एक ग्रामीण और एक शहरी नागरिक के बीच रेलगाड़ी में हुए संवाद का वर्णन करता है, जो संस्कृत के एक रोचक कथा-पाठ से लिया गया है।
चरण 2: संदर्भ लेखन:
संदर्भ: प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के संस्कृत खण्ड के 'प्रबुद्धो ग्रामीणः' (बुद्धिमान ग्रामीण) नामक पाठ से उद्धृत है।
चरण 3: हिन्दी अनुवाद:
अनुवाद: एक बार बहुत से लोग रेलगाड़ी पर चढ़कर नगर की ओर जा रहे थे। उनमें कुछ ग्रामीण थे और कुछ शहरी नागरिक थे। उनके चुपचाप बैठे होने पर एक शहरी नागरिक ने ग्रामीणों का उपहास करते हुए कहा, "ग्रामीण आज भी पहले की तरह अशिक्षित और अज्ञानी हैं। न उनका विकास हुआ है और न हो सकता है।" उसकी ऐसी बकवास सुनकर किसी चतुर ग्रामीण ने कहा, "हे श्रेष्ठ नागरिक! आप ही कुछ कहें क्योंकि आप शिक्षित और बहुत ज्ञानी हैं।" यह सुनकर उस नागरिक ने घमंड से गर्दन को ऊँचा उठाकर कहा, "कहूँगा, परन्तु पहले शर्त लगा लेनी चाहिए।"
Quick Tip: अनुवाद करते समय पात्रों के मनोभावों (जैसे- नागरिक का घमंड, ग्रामीण की चतुराई) को अपने शब्दों में व्यक्त करने का प्रयास करें, इससे अनुवाद अधिक सजीव लगता है।
निम्नलिखित संस्कृत पद्यांश का संदर्भ-सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
सार्थ : प्रवसतो मित्रं किंस्विन् मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन् मित्रं मरिष्यतः।।
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चरण 1: संदर्भ की पहचान:
यह पद्यांश यक्ष और युधिष्ठिर के बीच हुए संवाद का एक अंश है, जिसमें जीवन के गूढ़ रहस्यों से संबंधित प्रश्न पूछे गए हैं।
चरण 2: संदर्भ लेखन:
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के संस्कृत खण्ड के 'जीवन सूत्रणि' (जीवन के सूत्र) नामक पाठ से उद्धृत है।
चरण 3: हिन्दी अनुवाद:
अनुवाद: (यक्ष पूछते हैं-) प्रवास में रहने वाले का मित्र कौन है? घर में रहने वाले का मित्र कौन है? रोगी का मित्र कौन है? और मरने वाले का मित्र कौन है?
Quick Tip: 'किंस्वित्' शब्द का अर्थ 'कौन है?' या 'क्या है?' होता है। यह एक प्रश्नवाचक शब्द है। इस पाठ के श्लोकों का अनुवाद प्रश्न और उत्तर की शैली में होता है, यद्यपि यहाँ केवल प्रश्न दिया गया है।
निम्नलिखित संस्कृत पद्यांश का संदर्भ-सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
बन्धनं मरणं वापि जयो वापि पराजयः।
उभयत्र समो वीरः वीर भावो हि वीरता।।
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चरण 1: संदर्भ की पहचान:
यह श्लोक वीर पुरुष के लक्षणों को परिभाषित करता है और यह उस संवाद का हिस्सा है जहाँ वीरता की प्रकृति पर चर्चा हो रही है।
चरण 2: संदर्भ लेखन:
संदर्भ: प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक 'हिन्दी' के संस्कृत खण्ड के 'वीरः वीरेण पूज्यते' (वीर के द्वारा वीर पूजा जाता है) नामक पाठ से उद्धृत है।
चरण 3: हिन्दी अनुवाद:
अनुवाद: बन्धन हो अथवा मरण हो, जीत हो अथवा हार हो, (इन) दोनों ही अवस्थाओं में वीर पुरुष समान रहता है। वीर के इसी भाव को ही वीरता कहते हैं।
Quick Tip: इस श्लोक में 'उभयत्र' का अर्थ 'दोनों ही जगह' या 'दोनों ही अवस्थाओं में' है। 'समो' का अर्थ 'समान' है। यह श्लोक गीता के समत्व-योग के सिद्धांत से प्रेरित है।
'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के आधार पर महात्मा गाँधी का चरित्र चित्रण कीजिए।
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डॉ. राजेन्द्र मिश्र द्वारा रचित 'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के नायक महात्मा गाँधी हैं। कवि ने उन्हें युग-पुरुष और अवतार के रूप में चित्रित किया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. अलौकिक पुरुष: कवि ने गाँधीजी को ईश्वर का अवतार बताया है जो भारत को परतंत्रता से मुक्त कराने के लिए अवतरित हुए। वे एक सामान्य मनुष्य न होकर दिव्य शक्तियों से युक्त महापुरुष हैं।
2. महान देशभक्त: गाँधीजी के मन में देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
3. हरिजनोद्धारक: गाँधीजी समाज में दलितों और पिछड़ों की दयनीय दशा से अत्यंत दुःखी थे। वे उन्हें 'हरिजन' कहकर सम्मान देते थे और उनके उद्धार के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे।
4. अहिंसा के पुजारी: अहिंसा गाँधीजी का सबसे बड़ा शस्त्र था। वे किसी भी परिस्थिति में हिंसा का समर्थन नहीं करते थे। उन्होंने अपने अहिंसक आन्दोलनों से ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी।
5. हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक: गाँधीजी भारत की उन्नति के लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता को अनिवार्य मानते थे। वे दोनों सम्प्रदायों को एक ही भारत माता की दो आँखें समझते थे और सदैव उनमें प्रेम स्थापित करने का प्रयास करते रहे।
संक्षेप में, 'मुक्तिदूत' के नायक गाँधीजी एक दिव्य, देशभक्त, मानवतावादी और दृढ़-निश्चयी युग-पुरुष हैं।
Quick Tip: चरित्र-चित्रण करते समय उत्तर को शीर्षकों में विभाजित करें। प्रत्येक शीर्षक के अंतर्गत खण्डकाव्य की घटनाओं का उदाहरण देकर अपने कथन की पुष्टि करें।
'ज्योति जवाहर' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
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श्री देवीप्रसाद शुक्ल 'राही' द्वारा रचित खण्डकाव्य 'ज्योति जवाहर' की कथावस्तु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के विराट व्यक्तित्व पर आधारित है। इसमें किसी विशेष कथा का वर्णन न होकर नेहरूजी के जीवन, उनके विचारों और उनके कार्यों को प्रेरणास्पद रूप में प्रस्तुत किया गया है।
कवि ने नेहरूजी को एक लोकनायक के रूप में चित्रित किया है, जिनके व्यक्तित्व में अद्भुत आकर्षण है। वे शक्ति और सौंदर्य के प्रतीक हैं। खण्डकाव्य के आरंभ में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे इस महानायक का चरित्र लिखने की शक्ति प्रदान करे।
कथावस्तु के अनुसार, नेहरूजी का संघर्ष केवल भारत की स्वतन्त्रता तक ही सीमित नहीं था, बल्कि वे विश्व-शांति के अग्रदूत भी थे। उन्होंने भारत के नवनिर्माण का स्वप्न देखा और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से उसे साकार करने का प्रयास किया।
कवि ने उन्हें 'ज्योति जवाहर' इसलिए कहा है क्योंकि वे पराधीन भारत के अंधकार में आशा की ज्योति बनकर आए और अपने प्रकाश से पूरे राष्ट्र को आलोकित किया। उन्होंने सत्य, अहिंसा, शांति, प्रेम और मानवता जैसे मूल्यों को अपने जीवन में उतारा।
इस प्रकार, 'ज्योति जवाहर' की कथावस्तु किसी एक घटना पर आधारित न होकर नायक नेहरू के सम्पूर्ण जीवन-दर्शन, उनके कृतित्व और व्यक्तित्व का एक भावात्मक काव्य है।
Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय घटनाओं को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करें। यदि काव्य घटना-प्रधान न होकर भाव-प्रधान है, तो उसके केंद्रीय भाव और नायक के गुणों पर ध्यान केंद्रित करें।
'अग्रपूजा' खण्डकाव्य के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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श्री रामबहोरी शुक्ल द्वारा रचित 'अग्रपूजा' खण्डकाव्य के नायक श्रीकृष्ण हैं। यह खण्डकाव्य महाभारत की उस घटना पर आधारित है जब युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण को अग्रपूजा (सर्वप्रथम पूजा) का सम्मान दिया जाता है। श्रीकृष्ण की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. अलौकिक शक्ति-संपन्न: श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना गया है। वे अनेक अलौकिक शक्तियों से संपन्न हैं, फिर भी वे एक सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार करते हैं।
2. परम राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ: श्रीकृष्ण एक कुशल राजनीतिज्ञ हैं। वे पाण्डवों को हर संकट से उबारने के लिए अपनी नीति-कुशलता का प्रयोग करते हैं। शिशुपाल के वध की घटना उनकी राजनीतिक दूरदर्शिता का प्रमाण है।
3. धर्म, सत्य और न्याय के पक्षधर: वे सदैव धर्म और न्याय का पक्ष लेते हैं। राजसूय यज्ञ में वे युधिष्ठिर का साथ देते हैं क्योंकि युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक हैं।
4. पाण्डवों के सच्चे हितैषी: श्रीकृष्ण पाण्डवों के परम मित्र और हितैषी हैं। वे हर पग पर उनका मार्गदर्शन करते हैं और संकट के समय उनकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
5. विनम्र और निरभिमानी: अपार शक्तियों के स्वामी होते हुए भी श्रीकृष्ण में अहंकार लेशमात्र भी नहीं है। वे यज्ञ में ब्राह्मणों के पैर धोने जैसा कार्य भी सहजता से करते हैं, जो उनकी विनम्रता को दर्शाता है।
इस प्रकार, 'अग्रपूजा' के नायक श्रीकृष्ण एक आदर्श लोकनायक, कुशल राजनीतिज्ञ और धर्म के रक्षक हैं।
Quick Tip: खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण करते समय, काव्य के नाम ('अग्रपूजा') से संबंधित घटना को विशेष रूप से उल्लेखित करें, क्योंकि वही कथा का केंद्र बिंदु होती है।
'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग 'लक्ष्मी' का सारांश लिखिए।
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गंगा रत्न पाण्डेय द्वारा रचित 'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का शीर्षक 'लक्ष्मी' है। यह सर्ग महाराणा प्रताप की पत्नी रानी लक्ष्मी के चरित्र और उनकी मनोदशा पर केंद्रित है।
इस सर्ग का आरंभ अरावली पर्वत की गोद में एक कुटिया के दृश्य से होता है। रानी लक्ष्मी अपनी पुत्री को गोद में लिए हुए चिंतित अवस्था में बैठी हैं। वे मेवाड़ के अतीत के गौरवशाली दिनों का स्मरण करती हैं और वर्तमान की कठिनाइयों को देखकर उनका हृदय व्यथित हो जाता है। उन्हें याद आता है कि कैसे वे महलों में रहती थीं और आज उन्हें वन-वन भटकना पड़ रहा है।
वे सोचती हैं कि उनके पति महाराणा प्रताप ने देश की स्वतंत्रता के लिए राजसी सुखों का त्याग कर दिया। उन्हें अपने पति के त्याग और दृढ़ निश्चय पर गर्व है, परन्तु एक माँ का हृदय अपनी संतान के कष्ट को देखकर व्याकुल हो उठता है। उनकी बेटी घास की रोटियों पर जीवन निर्वाह कर रही है, यह सोचकर उनकी आँखें भर आती हैं।
इसी बीच, उनकी पुत्री शत्रु की कोई आहट सुनकर भयभीत हो जाती है। लक्ष्मी उसे अपनी छाती से चिपका लेती हैं और उसके भविष्य को लेकर और भी चिंतित हो जाती हैं।
इस प्रकार, यह सर्ग रानी लक्ष्मी के माध्यम से एक वीरांगना, एक पत्नी और एक माँ के हृदय के अंतर्द्वंद्व को बड़ी ही मार्मिकता से प्रस्तुत करता है।
Quick Tip: किसी सर्ग का सारांश लिखते समय, उस सर्ग के मुख्य पात्र और उसकी केंद्रीय भावना पर ध्यान केंद्रित करें। घटनाओं का संक्षिप्त और क्रमबद्ध वर्णन करें।
'जय सुभाष' खण्डकाव्य के आधार पर उसके नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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श्री विनोदचंद्र पाण्डेय 'विनोद' द्वारा रचित 'जय सुभाष' खण्डकाव्य के नायक नेताजी सुभाषचन्द्र बोस हैं। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. महान् देशभक्त और स्वतंत्रता-प्रेमी: सुभाषचन्द्र बोस एक महान् देशभक्त थे। भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था। वे कहते थे, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।"
2. वीर, साहसी और निर्भीक: नेताजी में वीरता और साहस कूट-कूट कर भरा था। वे अंग्रेजों के अत्याचार से कभी नहीं डरे। उन्होंने कठिन से कठिन परिस्थितियों का भी डटकर सामना किया, जैसे- अंग्रेजों की कैद से वेष बदलकर निकल भागना।
3. कुशल संगठनकर्ता: सुभाषचन्द्र बोस एक महान संगठनकर्ता थे। उन्होंने विदेश जाकर 'आजाद हिन्द फौज' का गठन किया, जो उनकी संगठनात्मक क्षमता का अद्भुत प्रमाण है।
4. त्यागी और तपस्वी: उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए आई.सी.एस. जैसी प्रतिष्ठित नौकरी और समस्त पारिवारिक सुखों का त्याग कर दिया। उनका जीवन एक तपस्वी के समान था।
5. ओजस्वी वक्ता: नेताजी एक प्रभावशाली वक्ता थे। उनके भाषणों में ऐसा ओज और प्रेरणा होती थी कि लाखों युवक उनके एक आह्वान पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हो जाते थे।
अतः, 'जय सुभाष' के नायक सुभाषचन्द्र बोस त्याग, साहस और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति हैं।
Quick Tip: नायक के चरित्र-चित्रण में उन पंक्तियों या नारों का उल्लेख करें जो खण्डकाव्य में दिए गए हों और नायक के व्यक्तित्व को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करते हों।
'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के आधार पर कैकेयी का चरित्र चित्रण कीजिए।
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श्री लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक' द्वारा रचित 'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य में कैकेयी एक प्रमुख पात्र हैं। कवि ने उनके चरित्र को परम्परागत खलनायिका के रूप से भिन्न, एक मानवीय और पश्चाताप से युक्त नारी के रूप में चित्रित किया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. सरल हृदया एवं स्नेहमयी माँ: प्रारम्भ में कैकेयी एक सरल हृदय वाली रानी और राम से असीम स्नेह करने वाली माँ हैं। वे राम को भरत से भी अधिक प्रेम करती हैं।
2. कुचक्र की शिकार: वे अपनी दासी मंथरा के कुचक्र और बहकावे में आ जाती हैं। मंथरा उनके मन में भविष्य की आशंकाओं और ईर्ष्या का विष घोल देती है, जिसके प्रभाव में आकर वे दशरथ से वरदान माँग लेती हैं।
3. पश्चाताप की अग्नि में जलती हुई नारी: अपने कृत्य के भयंकर परिणामों, विशेषकर राजा दशरथ की मृत्यु से, उन्हें अपनी भूल का गहरा एहसास होता है। वे पश्चाताप की आग में जलने लगती हैं। चित्रकूट की सभा में उनका पश्चाताप चरम पर पहुँच जाता है, जहाँ वे स्वयं को दोषी मानती हैं।
4. आत्मग्लानि से परिपूर्ण: जब भरत उन्हें दोषी ठहराते हैं, तो वे मौन रहकर सब कुछ सहन करती हैं। उनकी आत्मग्लानि उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ देती है। वे राम से क्षमा याचना करती हैं।
इस प्रकार, इस खण्डकाव्य में कैकेयी एक ऐसी पात्र हैं जो परिस्थितियों के कारण भूल करती हैं, परन्तु बाद में सच्चे हृदय से पश्चाताप कर अपने चरित्र को निर्मल बना लेती हैं।
Quick Tip: किसी पात्र का चरित्र-चित्रण करते समय उसके मन के विभिन्न भावों और चरित्र में आए परिवर्तनों (जैसे कैकेयी का मंथरा के प्रभाव में आना और फिर पश्चाताप करना) को अवश्य दर्शाएँ।
'तुमुल' खण्डकाव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
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श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित 'तुमुल' खण्डकाव्य रामकथा के लंकाकाण्ड की एक महत्वपूर्ण घटना पर आधारित है। इसका कथानक लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध के आस-पास केंद्रित है।
खण्डकाव्य का प्रारम्भ लंका में रावण की चिंता से होता है, जब उसके अनेक वीर पुत्र और योद्धा राम-लक्ष्मण की सेना द्वारा मारे जा चुके हैं। तब रावण अपने अजेय पुत्र मेघनाद को युद्ध के लिए भेजता है। मेघनाद अपनी पत्नी सुलोचना से विदा लेकर भयंकर गर्जना करता हुआ युद्धभूमि में प्रवेश करता है।
राम-लक्ष्मण की सेना में मेघनाद के आगमन से हाहाकार मच जाता है। वह अपने पराक्रम और मायावी शक्तियों से वानर सेना को भारी क्षति पहुँचाता है। हनुमान और अंगद जैसे वीर भी उसके वेग को रोकने में कठिनाई अनुभव करते हैं।
तब श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण, मेघनाद का सामना करने के लिए आगे बढ़ते हैं। लक्ष्मण और मेघनाद के बीच अत्यंत भयंकर और 'तुमुल' (कोलाहलपूर्ण) युद्ध होता है। दोनों योद्धा अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करते हैं। मेघनाद अपनी माया का प्रयोग कर लक्ष्मण को भ्रमित करने का प्रयास करता है, परन्तु लक्ष्मण अडिग रहते हैं।
अंत में, विभीषण की सहायता से लक्ष्मण, मेघनाद की यज्ञ-स्थली को भंग कर देते हैं और एक निर्णायक युद्ध में उसका वध कर देते हैं। मेघनाद की मृत्यु से रावण की शक्ति का अंत हो जाता है और राम की सेना में विजय का उल्लास छा जाता है। इस प्रकार, यह खण्डकाव्य लक्ष्मण के शौर्य और पराक्रम की गाथा है।
Quick Tip: सारांश लिखते समय काव्य के शीर्षक ('तुमुल' अर्थात भयंकर कोलाहल या युद्ध) की सार्थकता को कथावस्तु से जोड़ने का प्रयास करें। मुख्य घटनाओं को संक्षेप में लिखें।
'मातृ-भूमि के लिए' खण्डकाव्य के नायक चन्द्रशेखर आज़ाद का चरित्र-चित्रण कीजिए।
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डॉ. जयशंकर त्रिपाठी द्वारा रचित 'मातृ-भूमि के लिए' खण्डकाव्य के नायक अमर बलिदानी चन्द्रशेखर आज़ाद हैं। उनके प्रेरणादायी चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. महान देशभक्त: आज़ाद के रोम-रोम में देशभक्ति की भावना व्याप्त थी। मातृभूमि को स्वतंत्र कराना ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था। वे बचपन से ही भारत माता की पराधीनता की पीड़ा से व्यथित थे।
2. वीर, साहसी और दृढ़-निश्चयी: चन्द्रशेखर आज़ाद का नाम वीरता और साहस का पर्याय है। उन्होंने बचपन में जज के सामने अपना नाम 'आज़ाद', पिता का नाम 'स्वाधीन' और घर 'जेलखाना' बताकर अपनी निर्भीकता का परिचय दिया था। उन्होंने 'आज़ाद ही रहने' की अपनी प्रतिज्ञा का जीवनपर्यंत पालन किया।
3. कुशल संगठनकर्ता और नेता: आज़ाद एक योग्य नेता और कुशल संगठनकर्ता थे। उन्होंने भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर एक शक्तिशाली संगठन बनाया और देश भर में क्रांतिकारी गतिविधियों का सफलतापूर्वक संचालन किया।
4. अमर बलिदानी: आज़ाद ने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों द्वारा घेर लिए जाने पर उन्होंने अंतिम गोली तक शत्रुओं का सामना किया और अंत में स्वयं को गोली मारकर अपनी 'आज़ाद' रहने की प्रतिज्ञा पूरी की।
इस प्रकार, चन्द्रशेखर आज़ाद भारतीय युवाओं के लिए वीरता, त्याग और देशभक्ति के अनुपम आदर्श हैं।
Quick Tip: नायक के जीवन की उन घटनाओं का विशेष उल्लेख करें जो उनके चरित्र को परिभाषित करती हैं, जैसे आज़ाद का जज के सामने दिया गया परिचय और अल्फ्रेड पार्क का बलिदान।
'कर्ण' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
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श्री केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' द्वारा रचित 'कर्ण' खण्डकाव्य महाभारत के महान योद्धा कर्ण के चरित्र पर आधारित है। इसकी कथावस्तु कर्ण के जीवन के संघर्षों, उसकी दानवीरता और उसके दुखद अंत को प्रस्तुत करती है।
कथा का प्रारम्भ कर्ण के जन्म की रहस्यमयी घटना से होता है। वह कुन्ती का पुत्र है, परन्तु लोक-लाज के भय से कुन्ती उसे नदी में बहा देती है। उसका पालन-पोषण एक सूत अधिरथ और उसकी पत्नी राधा द्वारा होता है, जिस कारण वह 'सूत-पुत्र' कहलाता है।
कर्ण बचपन से ही प्रतिभाशाली और वीर है। वह द्रोणाचार्य से शिक्षा प्राप्त करना चाहता है, परन्तु सूत-पुत्र होने के कारण उसे अपमानित किया जाता है। वह परशुराम से शिक्षा ग्रहण करता है, परन्तु श्राप का भागी बनता है।
रंगभूमि में जब अर्जुन अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहे होते हैं, तब कर्ण उन्हें चुनौती देता है। वहाँ भी उसे सूत-पुत्र कहकर अपमानित किया जाता है। ऐसे समय में दुर्योधन उसे अंग देश का राजा बनाकर सम्मान देता है, जिससे कर्ण उसका आजीवन मित्र बन जाता है।
खण्डकाव्य में कर्ण की दानवीरता के प्रसंग को प्रमुखता दी गई है, विशेषकर जब वह अपने जन्मजात कवच और कुण्डल भी इन्द्र को दान में दे देता है।
महाभारत के युद्ध में वह दुर्योधन के पक्ष से लड़ता है। श्रीकृष्ण और कुन्ती उसे पाण्डवों के पक्ष में लाने का प्रयास करते हैं, परन्तु वह मित्र-धर्म का पालन करते हुए मना कर देता है। अंत में, युद्धभूमि में निहत्थे अवस्था में अर्जुन के बाणों से उसका दुखद अंत होता है।
इस प्रकार, यह खण्डकाव्य कर्ण के शौर्य, दानवीरता, मित्र-धर्म और जातीय अपमान की पीड़ा की मार्मिक कथा है।
Quick Tip: कथावस्तु लिखते समय नायक के जीवन के प्रमुख मोड़ों (जन्म, अपमान, मित्रता, दान, मृत्यु) को क्रम से प्रस्तुत करें। इससे कथानक स्पष्ट और सुगठित लगता है।
दिए गए लेखकों में से किसी एक लेखक का जीवन-परिचय देते हुए उनकी एक प्रमुख रचना का उल्लेख कीजिए :
(i) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
(ii) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(iii) पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
(iv) रामधारी सिंह 'दिनकर'
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(i) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
जीवन-परिचय:
हिंदी साहित्य के मूर्धन्य आलोचक, श्रेष्ठ निबंधकार, महान विचारक एवं युग-प्रवर्तक साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ई. में बस्ती जिले (उत्तर प्रदेश) के अगोना नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. चंद्रबली शुक्ल था, जो मिर्जापुर में कानूनगो थे। शुक्ल जी ने हाई स्कूल की परीक्षा मिर्जापुर के मिशन स्कूल से उत्तीर्ण की। गणित में कमजोर होने के कारण ये इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर सके। बाद में इन्होंने मिर्जापुर के न्यायालय में नौकरी कर ली, परन्तु स्वाभिमानी स्वभाव के कारण नौकरी छोड़कर मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक हो गए।
यहीं पर इन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला आदि भाषाओं का गहन अध्ययन किया और साहित्य साधना में जुट गए। इनकी विद्वता से प्रभावित होकर 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' ने इन्हें 'हिंदी शब्द सागर' के सहायक संपादक का कार्यभार सौंपा। बाद में ये काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए और डॉ. श्यामसुंदर दास के अवकाश ग्रहण करने के बाद हिंदी-विभाग के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। सन् 1941 ई. में हृदय गति रुक जाने से इनका देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के कीर्ति-स्तंभ हैं। वे एक कुशल निबंधकार, निष्पक्ष आलोचक, श्रेष्ठ इतिहासकार और सफल अनुवादक थे। आलोचना के क्षेत्र में इनका स्थान सर्वोपरि है। निबंध के क्षेत्र में इनके मनोवैज्ञानिक निबंधों ने एक नई परंपरा का सूत्रपात किया। इन्होंने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' लिखकर साहित्य-इतिहास-लेखन की परंपरा का आरंभ किया।
प्रमुख रचना:
चिंतामणि: यह शुक्ल जी के मनोवैज्ञानिक और समीक्षात्मक निबंधों का विश्वप्रसिद्ध संग्रह है। इसके अतिरिक्त 'हिंदी साहित्य का इतिहास' इनकी एक अन्य महत्वपूर्ण कृति है।
Quick Tip: जीवन-परिचय लिखते समय जन्म, मृत्यु, स्थान, माता-पिता का नाम, शिक्षा और साहित्यिक सेवाओं को क्रमानुसार लिखें। अंत में प्रमुख रचनाओं का उल्लेख अवश्य करें।
दिए गए कवियों में से किसी एक कवि का जीवन-परिचय देते हुए उनकी एक प्रमुख रचना का उल्लेख कीजिए:
(i) महाकवि सूरदास
(ii) बिहारीलाल
(iii) मैथिलीशरण गुप्त
(iv) सुभद्रा कुमारी चौहान
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(i) महाकवि सूरदास
जीवन-परिचय:
हिंदी साहित्य के कृष्ण-भक्ति काव्य-धारा के श्रेष्ठतम कवि महाकवि सूरदास का जन्म सन् 1478 ई. के लगभग आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म-स्थान दिल्ली के निकट 'सीही' ग्राम को मानते हैं। ये सारस्वत ब्राह्मण थे और जन्मांध थे या नहीं, इस संबंध में विद्वानों में मतभेद है।
ये बचपन से ही विरक्त हो गए थे और गऊघाट पर रहकर विनय के पद गाया करते थे। एक बार इनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई। वल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया और श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन का भार सौंप दिया। वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने 'अष्टछाप' नाम से आठ कृष्णभक्त कवियों का जो संगठन किया था, सूरदास जी उसके सर्वश्रेष्ठ कवि थे। इनकी मृत्यु सन् 1583 ई. के लगभग गोवर्धन के पास पारसौली नामक ग्राम में हुई।
साहित्यिक परिचय:
सूरदास जी ने कृष्ण की बाल-लीलाओं और प्रेम-लीलाओं का जो मनोरम, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है, वह हिंदी साहित्य में अद्वितीय है। इन्होंने वात्सल्य और श्रृंगार रस को अपनी रचनाओं का मुख्य आधार बनाया। इनके पद गेय हैं और उनमें भाव-सौंदर्य तथा कला-सौंदर्य का अद्भुत समन्वय मिलता है।
प्रमुख रचना:
सूरसागर: यह सूरदास जी की कीर्ति का अक्षय भंडार है। इसमें सवा लाख पद होने की बात कही जाती है, किन्तु अब तक लगभग दस हजार पद ही प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त 'सूरसारावली' और 'साहित्य-लहरी' भी इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
Quick Tip: कवियों का जीवन-परिचय लिखते समय उनके काव्य की प्रमुख विशेषताओं, भाषा-शैली और रस-अलंकार के प्रयोग पर प्रकाश डालना उत्तर को और भी प्रभावी बनाता है।
अपनी पाठ्य-पुस्तक के संस्कृत खण्ड से कण्ठस्थ एक श्लोक लिखिए जो इस प्रश्न-पत्र में न आया हो।
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पाठ्य-पुस्तक से याद किया हुआ कोई एक संस्कृत श्लोक लिखने के लिए कहा गया है, लेकिन यह श्लोक इस प्रश्न-पत्र में पहले से दिए गए श्लोकों (प्रश्न 24 के) से भिन्न होना चाहिए।
चरण 2: श्लोक का चयन:
प्रश्न-पत्र में आए श्लोक हैं:
(क) सार्थ : प्रवसतो मित्रं...
(ख) बन्धनं मरणं वापि...
अतः, इन दोनों को छोड़कर कोई अन्य श्लोक लिखना है। एक उपयुक्त श्लोक 'भारतीय संस्कृति' या 'जीवन सूत्रणि' पाठ से लिया जा सकता है।
चरण 3: श्लोक लेखन:
श्लोक:
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्।।
Quick Tip: परीक्षा के लिए कम से कम दो-तीन श्लोक अच्छी तरह याद कर लें, ताकि यदि कोई एक प्रश्न-पत्र में आ भी जाए, तो आप दूसरा लिख सकें। श्लोक लिखते समय मात्राओं और विसर्ग/हलंत की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
आपके विद्यालय के पुस्तकालय में हिन्दी की पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं का अभाव है। इन्हें मँगाने का अनुरोध करते हुए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखिए।
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सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाचार्य जी,
आदर्श इंटर कॉलेज,
लखनऊ।
विषय: पुस्तकालय हेतु हिन्दी की पुस्तकें एवं पत्रिकाएँ मँगाने के सम्बन्ध में।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मैं कक्षा १०-अ का छात्र हूँ। मैं आपका ध्यान विद्यालय के पुस्तकालय की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। हमारे पुस्तकालय में विज्ञान, अंग्रेजी और गणित आदि विषयों की तो पर्याप्त पुस्तकें हैं, परन्तु हिन्दी साहित्य की अच्छी पुस्तकों का सर्वथा अभाव है।
पुस्तकालय में मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा जैसे महान साहित्यकारों की महत्वपूर्ण रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, छात्रों के ज्ञानवर्धन हेतु 'प्रतियोगिता दर्पण', 'इंडिया टुडे' (हिन्दी) जैसी समसामयिक पत्रिकाएँ और 'बालहंस', 'नंदन' जैसी बाल-पत्रिकाएँ भी नहीं आती हैं। हिन्दी की अच्छी पुस्तकों और पत्रिकाओं के अभाव में हम छात्रों को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
अतः आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया पुस्तकालय में हिन्दी के प्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकें तथा ज्ञानवर्धक पत्र-पत्रिकाएँ शीघ्र मँगाने की कृपा करें, जिससे हम सभी छात्र-छात्राएँ लाभान्वित हो सकें।
आपकी इस कृपा के लिए हम आपके आभारी रहेंगे।
धन्यवाद!
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
क.ख.ग.
कक्षा: १०-अ
दिनांक: १७ अक्टूबर २०२५
Quick Tip: औपचारिक पत्र लिखते समय प्रारूप का विशेष ध्यान रखें। विषय स्पष्ट और संक्षिप्त होना चाहिए। भाषा विनम्र और शिष्ट हो। पत्र के अंत में अपना नाम न लिखकर 'क.ख.ग.' या 'य.र.ल.' लिखना चाहिए।
अखिल भारतीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता मित्र को एक बधाई-पत्र लिखिए।
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५/४२, विकास नगर,
कानपुर।
दिनांक: १७ अक्टूबर २०२५
प्रिय मित्र सुमित,
सस्नेह नमस्ते।
आज सुबह समाचार-पत्र में तुम्हारा नाम और तस्वीर देखकर मेरा हृदय प्रसन्नता से भर गया। अखिल भारतीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में तुम्हें प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है, यह जानकर मुझे कितनी खुशी हुई, इसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। मेरी ओर से इस शानदार सफलता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करो।
मुझे हमेशा से तुम्हारी वाक्-पटुता और तर्क-क्षमता पर विश्वास था। तुमने अपनी मेहनत और लगन से यह सिद्ध कर दिया है कि प्रतिभा किसी अवसर की मोहताज नहीं होती। तुमने न केवल अपना और अपने माता-पिता का, बल्कि अपने विद्यालय और हम सभी मित्रों का भी नाम रोशन किया है। मुझे तुम पर बहुत गर्व है।
आशा है कि तुम भविष्य में भी इसी प्रकार सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करते रहोगे। मेरी शुभकामनाएँ सदैव तुम्हारे साथ हैं। अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना।
तुम्हारा अभिन्न मित्र,
क.ख.ग.
Quick Tip: अनौपचारिक पत्र में भाषा आत्मीय और सरल होनी चाहिए। पत्र की शुरुआत में पते और दिनांक का उल्लेख करें। मित्र के लिए स्नेहपूर्ण संबोधन का प्रयोग करें और अंत में अपने संबंध का उल्लेख करते हुए पत्र समाप्त करें।
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए :
(i) चन्द्रशेखरः कः आसीत् ?
(ii) वीरः केन पूज्यते ?
(iii) वाराणसी नगरी कस्याः नद्याः कूले स्थिता ?
(iv) ज्ञानं कुत्र सम्भवति ?
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(i) चन्द्रशेखरः कः आसीत् ?
उत्तर: चन्द्रशेखरः एकः प्रसिद्धः क्रान्तिकारी देशभक्तः च आसीत्।
(अर्थ: चन्द्रशेखर एक प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और देशभक्त थे।)
(ii) वीरः केन पूज्यते ?
उत्तर: वीरः वीरेण पूज्यते।
(अर्थ: वीर की पूजा वीर के द्वारा की जाती है।)
(iii) वाराणसी नगरी कस्याः नद्याः कूले स्थिता ?
उत्तर: वाराणसी नगरी गङ्गायाः नद्याः कूले स्थिता।
(अर्थ: वाराणसी नगरी गंगा नदी के किनारे स्थित है।)
(iv) ज्ञानं कुत्र सम्भवति ?
उत्तर: ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति।
(अर्थ: ज्ञान सब जगह संभव है।)
Quick Tip: संस्कृत में प्रश्नों का उत्तर देते समय, प्रश्नवाचक शब्द (कः, केन, कस्याः, कुत्र) के स्थान पर उत्तरवाचक शब्द रखकर वाक्य को पूरा करें। विभक्ति और वचन का ध्यान रखना आवश्यक है।
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबंध लिखिए:
(i) जल है तो कल है
(ii) मेरे सपनों का भारत
(iii) सड़क सुरक्षा, जीवन-रक्षा
(iv) सांप्रदायिकता : एक अभिशाप
(v) जीवन में कम्प्यूटर का महत्त्व
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(i) जल है तो कल है
प्रस्तावना:
'क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, पंच रचित यह अधम सरीरा।' - इस पंक्ति से स्पष्ट है कि जल हमारे जीवन के पाँच मूल तत्वों में से एक है। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसीलिए कहा गया है, "जल ही जीवन है"। पृथ्वी पर समस्त प्राणियों, वनस्पतियों का जीवन जल पर ही निर्भर है। यदि जल है, तभी हमारा आने वाला कल सुरक्षित है।
जल का महत्व:
जल की आवश्यकता हमें पीने, भोजन पकाने, नहाने, कपड़े धोने से लेकर कृषि और उद्योगों तक में होती है। किसानों के लिए जल अमृत के समान है, क्योंकि जल के बिना फसलें नहीं उग सकतीं। बड़े-बड़े कल-कारखाने भी जल के बिना नहीं चल सकते। जल पृथ्वी के तापमान को भी संतुलित रखता है।
जल-संकट की समस्या:
आज विश्व जल-संकट की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिकीकरण और जल के अंधाधुंध दुरुपयोग ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। नदियों और तालाबों का प्रदूषण, भूमिगत जल स्तर का गिरना और वर्षा की कमी इसके प्रमुख कारण हैं। यदि हमने समय रहते जल संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया, तो वह दिन दूर नहीं जब हमें पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसना पड़ेगा।
जल-संरक्षण के उपाय:
'जल है तो कल है' की उक्ति को सार्थक करने के लिए हमें जल संरक्षण के प्रति जागरूक होना होगा। वर्षा-जल संचयन (Rainwater Harvesting) एक उत्तम उपाय है। हमें अपने घरों में पानी का दुरुपयोग रोकना चाहिए। कृषि में टपक-सिंचाई (Drip Irrigation) जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए। नदियों को प्रदूषित होने से बचाना हमारा परम कर्तव्य है।
उपसंहार:
जल प्रकृति का एक अनमोल वरदान है। इसका कोई विकल्प नहीं है। हमारा और हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य जल की उपलब्धता पर ही निर्भर करता है। अतः, यह हम सभी का सामूहिक उत्तरदायित्व है कि हम जल का संरक्षण करें और उसे व्यर्थ न करें, क्योंकि वास्तव में 'जल है तो ही कल है'।
(ii) मेरे सपनों का भारत
प्रस्तावना:
भारत एक प्राचीन और महान देश है, जिसका अतीत गौरवशाली रहा है। आज यह विकास के पथ पर अग्रसर है, फिर भी मेरे मन में एक ऐसे भारत की कल्पना है जो विश्व में सर्वश्रेठ हो। मेरे सपनों का भारत एक ऐसा राष्ट्र होगा जहाँ हर नागरिक सुखी, समृद्ध और सुरक्षित हो।
सामाजिक स्वरूप:
मेरे सपनों के भारत में जाति, धर्म, लिंग या रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। सभी को शिक्षा और स्वास्थ्य की समान सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। कोई भी बच्चा अशिक्षित और कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोएगा। महिलाएँ पूरी तरह से सुरक्षित और सशक्त होंगी और देश की प्रगति में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगी।
आर्थिक एवं तकनीकी स्वरूप:
मेरे सपनों का भारत आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से उन्नत होगा। यह 'मेक इन इंडिया' का एक साकार रूप होगा, जहाँ हर वस्तु का निर्माण देश में ही होगा। कृषि और उद्योग दोनों क्षेत्रों में भारत विश्व का नेतृत्व करेगा। गाँव-गाँव तक इंटरनेट और आधुनिक सुविधाएँ पहुँचेंगी, जिससे डिजिटल इंडिया का सपना साकार होगा।
राजनीतिक स्वरूप:
मेरे सपनों का भारत भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त होगा। राजनीति, सेवा का माध्यम होगी, स्वार्थ का नहीं। न्याय प्रणाली इतनी सुदृढ़ और तीव्र होगी कि हर व्यक्ति को समय पर न्याय मिलेगा। हमारा देश विश्व में शांति और सद्भाव का अग्रदूत बनेगा।
उपसंहार:
सपनों को हकीकत में बदलने के लिए केवल कल्पना करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसके लिए कर्म करना भी आवश्यक है। मैं एक जिम्मेदार नागरिक बनकर, अपने कर्तव्यों का पालन करके और शिक्षा प्राप्त करके अपने सपनों के भारत के निर्माण में अपना योगदान दूँगा। हम सब मिलकर प्रयास करेंगे, तो यह सपना अवश्य साकार होगा।
(v) जीवन में कम्प्यूटर का महत्त्व
प्रस्तावना:
आज का युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है। कम्प्यूटर इस युग का सबसे अद्भुत और शक्तिशाली आविष्कार है। इसने मानव जीवन के हर क्षेत्र में क्रांति ला दी है। आज जीवन में कम्प्यूटर का महत्त्व इतना बढ़ गया है कि इसके बिना आधुनिक जीवन की कल्पना करना भी कठिन है।
विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग:
कम्प्यूटर का उपयोग आज जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है:
1. शिक्षा: शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर एक वरदान है। ऑनलाइन कक्षाएँ, ई-पुस्तकें, और इंटरनेट पर उपलब्ध ज्ञान का भंडार छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
2. चिकित्सा: अस्पतालों में मरीजों का रिकॉर्ड रखने, रोगों का पता लगाने (जैसे- सीटी स्कैन, एमआरआई) और जटिल ऑपरेशन करने में कम्प्यूटर का उपयोग होता है।
3. संचार: ईमेल, सोशल मीडिया और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कम्प्यूटर ने दुनिया को एक वैश्विक गाँव में बदल दिया है।
4. मनोरंजन: संगीत सुनना, फिल्में देखना, गेम खेलना आदि मनोरंजन के लिए कम्प्यूटर एक प्रमुख साधन है।
5. व्यापार एवं बैंकिंग: कार्यालयों में हिसाब-किताब रखने, ई-कॉमर्स और ऑनलाइन बैंकिंग के कार्यों को कम्प्यूटर ने बहुत सरल और तीव्र बना दिया है।
लाभ और हानि:
कम्प्यूटर से जहाँ समय और श्रम की बचत होती है, वहीं इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हैं। इसके अत्यधिक प्रयोग से आँखों और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। साइबर अपराध, डेटा की चोरी और ऑनलाइन धोखाधड़ी इसकी प्रमुख हानियाँ हैं।
उपसंहार:
निष्कर्षतः, कम्प्यूटर आधुनिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। यह ज्ञान और सूचना का असीम भंडार है। हमें इसका उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए ताकि हम इसके लाभों का पूरा फायदा उठा सकें और इसकी हानियों से बच सकें। यह एक शक्तिशाली उपकरण है जो मानवता की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
Quick Tip: निबंध लिखते समय उसे प्रस्तावना, विषय-विस्तार (कई अनुच्छेदों में) और उपसंहार में विभाजित करें। विषय से संबंधित प्रसिद्ध सूक्तियों या कविताओं की पंक्तियों का प्रयोग करने से निबंध प्रभावशाली बनता है।






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