Bihar Board Class 10 Sanskrit Question Paper 2025 PDF (Code 105 Set-B) is available for download here. The Sanskrit exam was conducted on February 24, 2025 in the Morning Shift from 9:30 AM to 12:15 PM and in the Evening Shift from 2:00 PM to 5:15 PM. The total marks for the theory paper are 100. Students reported the paper to be easy to moderate.
Bihar Board Class 10 Sanskrit Question Paper 2025 (Code 105 Set-B) with Solutions
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पण्डिता क्षमाराव ने किस पुस्तक की रचना की ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
इस प्रश्न में दिए गए विकल्पों में से पंडिता क्षमाराव द्वारा रचित पुस्तक की पहचान करने के लिए कहा गया है। इसके लिए संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध लेखकों और उनकी कृतियों का ज्ञान आवश्यक है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
आइए विकल्पों का विश्लेषण करें:
(A) मधुराविजयम्: इस ऐतिहासिक महाकाव्य की रचना विजयनगर साम्राज्य के राजकुमार कुमार कम्पन की रानी गंगादेवी ने की थी।
(B) ग्रामज्योति: यह भी पंडिता क्षमाराव की एक रचना है, लेकिन 'शंकरचरितम्' को उनका सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य माना जाता है। बहुविकल्पीय प्रश्नों में, अक्सर सबसे प्रमुख कृति ही अभीष्ट उत्तर होती है।
(C) शंकरचरितम्: यह आदि शंकराचार्य की प्रसिद्ध जीवनी है, जिसे पंडिता क्षमाराव ने एक महाकाव्य के रूप में लिखा था। यह उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है।
(D) वरदाम्बिकापरिणय: इस कृति की रचना विजयनगर के राजा अच्युत देव राय के दरबार की एक कवयित्री तिरुमलाम्बा देवी ने की थी।
इस विश्लेषण के आधार पर, 'शंकरचरितम्' पंडिता क्षमाराव की एक निश्चित और प्रमुख कृति है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सही विकल्प (C) है क्योंकि पंडिता क्षमाराव 'शंकरचरितम्' की लेखिका हैं।
Quick Tip: साहित्य-आधारित प्रश्नों के लिए, महत्वपूर्ण लेखकों और उनकी प्रमुख कृतियों की एक सूची बनाएं। संस्कृत साहित्य में पंडिता क्षमाराव, गंगादेवी और तिरुमलाम्बा देवी जैसी महिला लेखिकाओं पर विशेष ध्यान दें, क्योंकि उनके बारे में अक्सर पूछा जाता है।
याज्ञवल्क्य ने आत्मतत्त्व की शिक्षा किसे दिया ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न उपनिषदों के एक प्रसिद्ध दार्शनिक संवाद के बारे में है। इसमें पूछा गया है कि ऋषि याज्ञवल्क्य ने आत्मतत्त्व का ज्ञान किसे प्रदान किया था।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
याज्ञवल्क्य और उनकी पत्नी मैत्रेयी के बीच का संवाद बृहदारण्यक उपनिषद् का एक केंद्रीय विषय है।
जब याज्ञवल्क्य ने सांसारिक जीवन का त्याग करने का निश्चय किया, तो उन्होंने अपनी संपत्ति को अपनी दो पत्नियों, मैत्रेयी और कात्यायनी के बीच विभाजित करने की इच्छा व्यक्त की।
मैत्रेयी, हालांकि, भौतिक धन की तुलना में आध्यात्मिक ज्ञान में अधिक रुचि रखती थीं। उन्होंने याज्ञवल्क्य से पूछा कि क्या धन उन्हें अमरता प्रदान कर सकता है।
याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि यह संभव नहीं है, और उनके अनुरोध पर, उन्होंने उन्हें आत्मा (आत्मतत्त्व) और ब्रह्म (परम सत्य) का गहन ज्ञान सिखाया।
गार्गी वाचक्नवी एक अन्य महान दार्शनिक थीं जिन्होंने राजा जनक की सभा में याज्ञवल्क्य को प्रश्नों से चुनौती दी थी, लेकिन इस संदर्भ में 'आत्मतत्त्व' की विशिष्ट शिक्षा प्रसिद्ध रूप से मैत्रेयी से जुड़ी है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
इस प्रकार, याज्ञवल्क्य ने आत्मतत्त्व की शिक्षा अपनी पत्नी मैत्रेयी को दी।
Quick Tip: बृहदारण्यक और छान्दोग्य जैसे प्रमुख उपनिषदों के प्रमुख पात्रों और संवादों से खुद को परिचित करें। याज्ञवल्क्य-मैत्रेयी और याज्ञवल्क्य-गार्गी संवाद परीक्षा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
'अ + इ' के मेल से कौन-सा नया वर्ण बनेगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न संस्कृत व्याकरण में स्वरों के संयोजन (वर्ण संयोग) के परिणाम के बारे में है, जो सन्धि के नियमों के अंतर्गत आता है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
यहाँ लागू होने वाला विशिष्ट नियम गुण सन्धि से है। नियम "आद्गुणः" सूत्र द्वारा परिभाषित किया गया है।
इस नियम के अनुसार:
यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'इ' या 'ई' आता है, तो परिणाम 'ए' होता है।
यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'उ' या 'ऊ' आता है, तो परिणाम 'ओ' होता है।
यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'ऋ' या 'ॠ' आता है, तो परिणाम 'अर्' होता है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न में 'अ' + 'इ' का मेल पूछा गया है।
गुण सन्धि का नियम लागू करने पर: \( अ + इ \rightarrow ए \)।
उदाहरण के लिए: नर (अ) + इन्द्र (इ) = नरेन्द्र (ए)।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
इसलिए, 'अ' और 'इ' के मेल से नया वर्ण 'ए' बनेगा।
Quick Tip: प्रमुख सन्धियों के मूल नियमों को याद करें: दीर्घ, गुण, वृद्धि और यण्। इन चार स्वर सन्धियों को समझना अधिकांश सन्धि-संबंधी प्रश्नों को हल करने के लिए महत्वपूर्ण है।
'पूर्वरूप संधि' का उदाहरण कौन-सा है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में दिए गए विकल्पों में से पूर्वरूप संधि का उदाहरण पहचानने के लिए कहा गया है। पूर्वरूप संधि एक प्रकार की स्वर संधि है जिसमें दूसरे शब्द का प्रारंभिक 'अ' पहले शब्द के पूर्ववर्ती 'ए' या 'ओ' में विलीन हो जाता है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
पूर्वरूप संधि का नियम है:
जब 'ए' या 'ओ' में समाप्त होने वाले किसी पद के बाद 'अ' से शुरू होने वाला कोई पद आता है, तो 'अ' पूर्ववर्ती स्वर ('ए' या 'ओ') में विलीन हो जाता है।
'अ' के लोप को इंगित करने के लिए अवग्रह चिह्न ('ऽ') का उपयोग किया जाता है।
सूत्र:
\( ए + अ \rightarrow एऽ \)
\( ओ + अ \rightarrow ओऽ \)
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
आइए विकल्पों का सन्धि-विच्छेद करके विश्लेषण करें:
(A) एकैक: इसका विच्छेद \( एक + एक \) है। यहाँ, \( अ + ए \rightarrow ऐ \) होता है। यह वृद्धि सन्धि का उदाहरण है।
(B) हरेऽव: इसका विच्छेद \( हरे + अव \) है। यहाँ, 'हरे' पद 'ए' के साथ समाप्त होता है और उसके बाद 'अव' आता है जो 'अ' से शुरू होता है। 'अ' का 'ए' में विलय हो जाता है, और उसके स्थान पर एक अवग्रह ('ऽ') का उपयोग किया जाता है। यह पूर्वरूप संधि के नियम से पूरी तरह मेल खाता है।
(C) रावणः: यह एक एकल शब्द (एक संज्ञा) है और इस रूप में सन्धि का उदाहरण नहीं है।
(D) रमेन्द्रः: इसका विच्छेद \( रमा + इन्द्रः \) है। यहाँ, \( आ + इ \rightarrow ए \) होता है। यह गुण सन्धि का उदाहरण है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
विश्लेषण के आधार पर, 'हरेऽव' पूर्वरूप संधि का सही उदाहरण है।
Quick Tip: पूर्वरूप संधि को पहचानने का सबसे आसान तरीका अवग्रह चिह्न ('ऽ') को खोजना है। यह चिह्न लगभग हमेशा यह इंगित करता है कि पूर्वरूप संधि हुई है।
'खगेशः' का सन्धि-विच्छेद क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'खगेशः' शब्द का सन्धि-विच्छेद करने की आवश्यकता है। इसमें घटक शब्दों और लागू सन्धि नियम की पहचान करना शामिल है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
'खगेशः' शब्द में संधि स्थल पर 'ए' स्वर है। सन्धि में 'ए' ध्वनि आमतौर पर गुण सन्धि के नियमों द्वारा बनती है।
नियम है: \( अ/आ + इ/ई \rightarrow ए \)।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
'खगेशः' का अर्थ है "पक्षियों का स्वामी" (गरुड़ का एक विशेषण)। यह दो सार्थक शब्दों से बना है:
1. खग = पक्षी (शाब्दिक अर्थ, 'आकाश में विचरण करने वाला')। यह शब्द 'अ' के साथ समाप्त होता है।
2. ईशः = स्वामी, भगवान। यह शब्द 'ई' से शुरू होता है। 'इशः' शब्द 'स्वामी' के लिए मानक नहीं है।
आइए विकल्पों पर गुण सन्धि का नियम लागू करें:
(A) खग + एशः: \( अ + ए \) का परिणाम 'ऐ' (वृद्धि सन्धि) होगा, जिससे 'खगैशः' बनेगा, जो गलत है।
(B) खग + ईशः: \( अ + ई \) का परिणाम 'ए' होता है। तो, \( खग + ईशः \rightarrow खगेशः \)। दोनों शब्द सार्थक हैं और सन्धि का नियम सही ढंग से लागू किया गया है। यह सही विकल्प है।
(C) खग + इशः: \( अ + इ \) का परिणाम भी 'ए' होता है, लेकिन 'इशः' 'स्वामी' के लिए सही शब्द नहीं है; सही शब्द 'ईशः' है।
(D) खगे + शः: यह 'खगेशः' बनाने के लिए एक वैध सन्धि संयोजन नहीं है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
'खगेशः' का सही सन्धि-विच्छेद 'खग + ईशः' है।
Quick Tip: सन्धि-विच्छेद करते समय, हमेशा यह सुनिश्चित करें कि परिणामी शब्द सार्थक और सही वर्तनी वाले हों। इस मामले में, यह जानना कि 'स्वामी' के लिए शब्द 'ईशः' (दीर्घ 'ई' के साथ) है, सही विकल्प चुनने की कुंजी है।
'व्याकरणम्' में कौन-सा उपसर्ग है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'व्याकरणम्' शब्द में उपसर्ग की पहचान करने के लिए कहा गया है। उपसर्ग वह शब्दांश है जो किसी शब्द के आरंभ में जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन ला देता है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
उपसर्ग खोजने के लिए, हमें शब्द को उसके घटक भागों में तोड़ना होगा: उपसर्ग, धातु, और प्रत्यय।
'व्याकरणम्' शब्द इस प्रकार बनता है:
\( वि + आ + कृ + ल्युट् \)
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
आइए 'व्याकरणम्' शब्द का विच्छेद करें:
वि और आ दो उपसर्ग हैं।
कृ धातु है, जिसका अर्थ है 'करना'।
ल्युट् प्रत्यय है, जिसके परिणामस्वरूप नपुंसकलिंग संज्ञा रूप 'अनम्' बनता है।
इनको मिलाने पर: \( वि + आ + करणम् \)।
यहाँ, \( वि + आ \) में यण् सन्धि होती है: \( इ + आ \rightarrow य् + आ \rightarrow या \)।
तो, \( वि + आ \rightarrow व्या \)।
इस प्रकार, शब्द \( व्या + करणम् = व्याकरणम् \) बन जाता है।
दिए गए विकल्पों में (A) वि, (B) व्यां, (C) अव, (D) णम् हैं।
हमारे विश्लेषण से, 'वि' शब्द में मौजूद उपसर्गों में से एक है। 'व्यां' कोई उपसर्ग नहीं है, 'अव' मौजूद नहीं है, और 'णम्' प्रत्यय के प्रभाव का हिस्सा है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
अतः, 'व्याकरणम्' शब्द में 'वि' सही उपसर्ग है।
Quick Tip: उपसर्गों की पहचान करते समय, मानसिक रूप से सन्धि नियमों को उलट दें। यदि आप 'व्य', 'त्य', 'न्व' आदि देखते हैं, तो यह अक्सर यण् सन्धि की ओर इशारा करता है, जो यह दर्शाता है कि मूल रूप में 'वि', 'प्रति', 'अनु' जैसा कोई उपसर्ग मौजूद था।
'पित्रा' किस विभक्ति का रूप है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न संस्कृत में संज्ञा के शब्द-रूप के ज्ञान का परीक्षण करता है। इसमें 'पित्रा' शब्द की विभक्ति की पहचान करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'पित्रा' शब्द 'पितृ' (अर्थात् 'पिता') संज्ञा का एक रूप है। 'पितृ' एक ऋ-कारान्त पुल्लिंग शब्द है।
आइए 'पितृ' शब्द के एकवचन के रूप देखें:
प्रथमा: पिता
द्वितीया: पितरम्
तृतीया: पित्रा
चतुर्थी: पित्रे
पञ्चमी: पितुः
षष्ठी: पितुः
सप्तमी: पितरि
सम्बोधन: हे पितः
शब्द-रूप तालिका से, हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि 'पित्रा' तृतीया विभक्ति, एकवचन का रूप है। तृतीया विभक्ति आम तौर पर करण या कर्ता ('पिता द्वारा' या 'पिता के साथ') को इंगित करती है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'पित्रा' तृतीया विभक्ति का एक रूप है।
Quick Tip: पितृ (पिता), मातृ (माता), गुरु (शिक्षक), और लता (बेल) जैसी सामान्य और महत्वपूर्ण संज्ञाओं के पूर्ण शब्द-रूपों को याद करना आवश्यक है। अनियमित रूपों पर विशेष ध्यान दें। पितृ और मातृ जैसे ऋ-कारान्त शब्दों के रूप अद्वितीय होते हैं।
'दातृणाम्' का मूल शब्द क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'दातृणाम्' शब्द के मूल शब्द (प्रातिपदिक) के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'दातृणाम्' शब्द एक विभक्ति-युक्त रूप है। आइए इसका विश्लेषण करें:
अंत में 'णाम्' षष्ठी विभक्ति, बहुवचन के लिए एक विशिष्ट प्रत्यय है। यह कारक संबंध ('का', 'के', 'की') को इंगित करता है।
वह मूल शब्द जो इन विभक्ति प्रत्ययों को लेता है, प्रातिपदिक कहलाता है।
'दातृ' शब्द का अर्थ है 'देने वाला' या 'दाता'। यह एक ऋ-कारान्त (ऋ में समाप्त होने वाला) संज्ञा शब्द है।
षष्ठी बहुवचन में 'दातृ' का रूप 'दातृणाम्' (देने वालों का) होता है।
अब विकल्पों का परीक्षण करें:
(A) दाता: यह 'दातृ' का प्रथमा एकवचन का रूप है।
(B) दातु: यह एक मानक मूल रूप नहीं है।
(C) दातृ: यह सही प्रातिपदिक या मूल शब्द है।
(D) दात्री: यह मूल शब्द का स्त्रीलिंग रूप है, जिसका अर्थ है 'देने वाली'। 'दातृणाम्' रूप पुल्लिंग/नपुंसकलिंग मूल 'दातृ' से आता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'दातृणाम्' का मूल शब्द 'दातृ' है।
Quick Tip: मूल शब्द खोजने के लिए, विभक्ति प्रत्यय को हटा दें। '-णाम्' या '-नाम्' का अंत षष्ठी बहुवचन का एक मजबूत संकेतक है। मूल शब्द वह है जो विभक्ति प्रक्रिया शुरू होने से पहले रहता है।
'युष्मद्' शब्द का रूप प्रथमा विभक्ति, एकवचन में क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'युष्मद्' (अर्थात् 'तुम' या 'आप') सर्वनाम के विशिष्ट रूप के बारे में पूछा गया है। इसके लिए प्रथमा विभक्ति, एकवचन का रूप आवश्यक है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'युष्मद्' द्वितीय-पुरुष सर्वनाम है। आइए इसके शब्द-रूप देखें:
प्रथमा (कर्ता कारक): त्वम् (तुम - एकवचन), युवाम् (तुम दोनों - द्विवचन), यूयम् (तुम सब - बहुवचन)
षष्ठी (संबंध कारक): तव (तुम्हारा/तुम्हारी - एकवचन)
चतुर्थी (संप्रदान कारक): तुभ्यम् (तुम्हारे लिए - एकवचन)
प्रश्न विशेष रूप से प्रथमा विभक्ति, एकवचन का रूप पूछता है।
शब्द-रूप तालिका के आधार पर, यह रूप 'त्वम्' है।
विकल्पों का विश्लेषण:
(A) त्वम्: प्रथमा, एकवचन। सही।
(B) तव: षष्ठी, एकवचन। गलत।
(C) तुभ्यम्: चतुर्थी, एकवचन। गलत।
(D) यूयम्: प्रथमा, बहुवचन। गलत।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'युष्मद्' का प्रथमा विभक्ति एकवचन रूप 'त्वम्' है।
Quick Tip: 'अस्मद्' (मैं, हम) और 'युष्मद्' (तुम, आप) सर्वनामों के रूप अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और अक्सर पूछे जाते हैं। उनकी पूरी तालिकाओं को याद कर लें क्योंकि वे वाक्य निर्माण के लिए मौलिक हैं।
'लिख्' धातु का रूप लृट् लकार में क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न संस्कृत में क्रिया के धातु-रूप के ज्ञान का परीक्षण करता है। इसमें 'लिख्' (लिखना) धातु का रूप लृट् लकार में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
लृट् लकार का प्रयोग सामान्य भविष्यत् काल को दर्शाने के लिए किया जाता है।
'लिख्' धातु छठे गण (तुदादि गण) की है। लृट् लकार में रूप बनाते समय, धातु के स्वर में अक्सर गुण या वृद्धि हो जाती है। 'लिख्' के लिए, 'इ' का 'ए' (गुण) हो जाता है, और भविष्यत् काल के प्रत्यय जोड़ने से पहले रूप 'लेखिष्' बन जाता है।
प्रथम पुरुष, एकवचन के लिए प्रत्यय 'यति' है।
तो, रूप बनता है: \( लेखिष् + यति = लेखिष्यति \), जिसका अर्थ है 'वह लिखेगा/लिखेगी'।
आइए दिए गए विकल्पों का विश्लेषण करें:
(A) लिखतु: यह लोट् लकार (आज्ञार्थक) का रूप है, प्रथम पुरुष, एकवचन ('वह लिखे')।
(B) लेखिष्यति: यह लृट् लकार (भविष्यत् काल) का रूप है, प्रथम पुरुष, एकवचन ('वह लिखेगा')। यह सही उत्तर है।
(C) लिखेत्: यह विधिलिङ् लकार (चाहिए के अर्थ में) का रूप है, प्रथम पुरुष, एकवचन ('उसे लिखना चाहिए')।
(D) लिख: यह लोट् लकार (आज्ञार्थक) का रूप है, मध्यम पुरुष, एकवचन ('(तुम) लिखो')।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
'लिख्' धातु का लृट् लकार में रूप 'लेखिष्यति' है।
Quick Tip: लृट् लकार (भविष्यत् काल) को '-स्यति' या '-ष्यति' के मध्य में आने वाले अंश से आसानी से पहचाना जा सकता है। याद रखें कि कई धातुओं का स्वर (गुण/वृद्धि) इस अंश को जोड़ने से पहले बदल जाता है, जैसे 'लिख्' का 'लेखिष्-' हो जाना।
'बृहत्संहिता' के रचनाकार कौन हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'बृहत्संहिता' ग्रंथ के लेखक की पहचान करने के लिए कहा गया है। इसके लिए प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों, दार्शनिकों और उनकी कृतियों का ज्ञान आवश्यक है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
आइए विकल्पों का विश्लेषण करें:
(A) वराहमिहिर: वे उज्जैन में रहने वाले एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और ज्योतिषी थे। उन्होंने पंचसिद्धान्तिका, बृहज्जातक और विश्वकोशीय बृहत्संहिता सहित कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। बृहत्संहिता में ज्योतिष, ग्रहों की गति, ग्रहण, वास्तुकला आदि जैसे विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है।
(B) आर्यभट: वे भारतीय गणित और खगोल विज्ञान के शास्त्रीय युग के एक प्रमुख गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। उनकी प्रमुख कृति \textit{आर्यभटीय है।
(C) बादरायण: वे एक दार्शनिक थे जिन्हें \textit{ब्रह्म सूत्र लिखने का श्रेय दिया जाता है, जो हिंदू दर्शन के वेदान्त स्कूल का एक आधारभूत ग्रन्थ है।
(D) कणाद: वे एक प्राचीन भारतीय प्राकृतिक वैज्ञानिक और दार्शनिक थे जिन्होंने हिंदू दर्शन के वैशेषिक स्कूल की स्थापना की और उन्हें परमाणु सिद्धांत विकसित करने का श्रेय दिया जाता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
ऐतिहासिक अभिलेखों के आधार पर, 'बृहत्संहिता' की रचना वराहमिहिर ने की थी।
Quick Tip: प्राचीन भारतीय विद्वानों, उनके क्षेत्रों (जैसे, खगोल विज्ञान, गणित, दर्शन) और उनकी प्रमुख कृतियों की एक तालिका बनाएं। आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त जैसे विद्वान और कणाद और बादरायण जैसे दार्शनिक संस्थापक सामान्य ज्ञान और भारतविद्या अनुभागों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
वेदरूपी शास्त्र कैसा होता है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न वेदों की मौलिक प्रकृति के बारे में पूछता है, जिन्हें हिंदू धर्म में सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है। यह भारतीय दर्शन, विशेष रूप से मीमांसा और वेदांत दर्शन से संबंधित एक प्रश्न है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
रूढ़िवादी हिंदू परंपराओं में, वेदों को 'अपौरुषेय' बताया गया है, जिसका अर्थ है कि वे मानव मूल के नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि वे शाश्वत रहस्योद्घाटन हैं जिन्हें प्राचीन ऋषियों ने गहरे ध्यान के दौरान सुना था।
आइए इस समझ के आधार पर विकल्पों का विश्लेषण करें:
(A) अनित्य: इसका अर्थ है 'अस्थायी' या 'क्षणिक'। यह वेदों के पारंपरिक दृष्टिकोण के विपरीत है।
(B) नित्य: इसका अर्थ है 'शाश्वत', 'स्थायी', और 'सनातन'। यह इस अवधारणा से पूरी तरह मेल खाता है कि वेद कालातीत हैं और किसी विशिष्ट समय पर नहीं बनाए गए हैं।
(C) कृतक: इसका अर्थ है 'रचित', 'कृत्रिम', या 'मानव निर्मित'। यह वेदों की 'अपौरुषेय' प्रकृति का खंडन करता है।
(D) कृत्य: इसका अर्थ है 'जो किया जाना है', एक 'कार्य' या 'कर्म'। यद्यपि वेदों में क्या किया जाना है (कार्य) पर आदेश शामिल हैं, यह शब्द स्वयं शास्त्र की प्रकृति का वर्णन नहीं करता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, वेदरूपी शास्त्र 'नित्य' (शाश्वत) माना जाता है।
Quick Tip: भारतीय दर्शन में वेदों का वर्णन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले दो प्रमुख शब्दों को याद रखें: 'अपौरुषेय' (मानव द्वारा रचित नहीं) और 'नित्य' (शाश्वत)। ये अवधारणाएं हिंदू धर्म के अधिकांश रूढ़िवादी स्कूलों में वेदों के अधिकार के लिए मौलिक हैं।
गौतम ने किस दर्शन की रचना की ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भारतीय दर्शन के षड्दर्शन (छह प्रमुख दर्शन) और उनके संस्थापकों के ज्ञान पर आधारित है। प्रश्न में गौतम ऋषि द्वारा रचित दर्शन के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
आइए षड्दर्शन और उनके प्रणेताओं को देखें:
सांख्य दर्शन: इसके प्रणेता महर्षि कपिल हैं।
योग दर्शन: इसके प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं।
न्याय दर्शन: इसके प्रणेता महर्षि गौतम (अक्षपाद गौतम) हैं। यह दर्शन तर्कशास्त्र और प्रमाण पर आधारित है।
वैशेषिक दर्शन: इसके प्रणेता महर्षि कणाद हैं।
मीमांसा दर्शन (पूर्व मीमांसा): इसके प्रणेता महर्षि जैमिनि हैं।
वेदान्त दर्शन (उत्तर मीमांसा): इसके प्रणेता महर्षि बादरायण हैं।
इस जानकारी के आधार पर, गौतम ने न्याय दर्शन की रचना की।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सही विकल्प (C) न्याय दर्शन है।
Quick Tip: षड्दर्शन और उनके संस्थापकों की एक सूची बनाकर याद कर लें। यह भारतीय संस्कृति और दर्शन से संबंधित परीक्षाओं में एक बहुत ही सामान्य प्रश्न है। (जैसे - सांख्य-कपिल, योग-पतंजलि, न्याय-गौतम)।
प्राचीन संस्कृति की पहचान किससे होती है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न पूछता है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति का मुख्य पहचान चिह्न क्या है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
प्राचीन भारतीय संस्कृति में, 'संस्कार' जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों पर किए जाने वाले अनुष्ठान हैं जो व्यक्ति के जीवन को परिष्कृत और पवित्र करते हैं। ये संस्कार जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग थे और वे ही उस संस्कृति की विशिष्ट पहचान थे। धर्म, कर्म और आचार सभी संस्कृति के अंग हैं, लेकिन 'संस्कार' वे विशिष्ट कृत्य हैं जो सांस्कृतिक पहचान को सबसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं। भारतीय परंपरा में षोडश संस्कारों (सोलह संस्कार) का विशेष महत्व है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
इसलिए, प्राचीन संस्कृति की पहचान मुख्य रूप से संस्कारों से होती है।
Quick Tip: संस्कृति से संबंधित प्रश्नों में, सबसे व्यापक और विशिष्ट उत्तर चुनें। संस्कार जीवन के हर पहलू को छूते थे, जिससे वे प्राचीन संस्कृति की पहचान का एक मजबूत आधार बनते हैं। षोडश संस्कारों के नाम और उद्देश्य को समझना भी सहायक हो सकता है।
साहित्य ग्रन्थों में केशान्त संस्कार का नामान्तर क्या है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में षोडश संस्कारों में से एक 'केशान्त संस्कार' का दूसरा नाम पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
केशान्त संस्कार: यह सोलह संस्कारों में से एक है। यह संस्कार लगभग सोलह वर्ष की आयु में होता था, जब शिष्य गुरुकुल में पहली बार अपनी दाढ़ी और मूंछें मुंडवाता था।
इस संस्कार के अंत में, शिष्य अपने गुरु को एक गाय दान (गो-दान) में देता था। इसी कारण से, केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार के नाम से भी जाना जाता है।
उपनयन: यज्ञोपवीत धारण करने का संस्कार।
कर्णवेध: कान छेदने का संस्कार।
समावर्त्तन: गुरुकुल में शिक्षा पूरी होने के बाद घर लौटने का संस्कार।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, केशान्त संस्कार का दूसरा नाम गोदान है।
Quick Tip: प्रमुख सोलह संस्कारों और उनके उद्देश्यों की एक सूची बना लें। कुछ संस्कारों के वैकल्पिक नाम होते हैं, जैसे केशान्त का गोदान, इन्हें विशेष रूप से नोट करें।
स्वामी दयानन्द का परिवार किसका उपासक था ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न स्वामी दयानन्द सरस्वती के पारिवारिक धार्मिक पृष्ठभूमि के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म का नाम मूलशंकर तिवारी था। उनका जन्म गुजरात के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका परिवार भगवान शिव का परम भक्त और उपासक था। उनके जीवन की प्रसिद्ध घटना, जिसमें उन्होंने शिवरात्रि के व्रत के दौरान शिवलिंग पर एक चूहे को प्रसाद खाते हुए देखा था, इसी पारिवारिक पृष्ठभूमि का परिणाम है। इस घटना ने उन्हें मूर्ति पूजा पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, स्वामी दयानन्द का परिवार शिव का उपासक था।
Quick Tip: स्वामी दयानन्द और स्वामी विवेकानन्द जैसे प्रमुख समाज सुधारकों की जीवनियों को पढ़ें। उनके प्रारंभिक जीवन की घटनाएँ अक्सर उनके दार्शनिक विचारों के निर्माण को समझने में मदद करती हैं और परीक्षाओं में पूछी जाती हैं।
स्वामी दयानन्द का निधन कब हुआ ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न स्वामी दयानन्द सरस्वती की मृत्यु की तिथि से संबंधित एक तथ्यात्मक प्रश्न है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
स्वामी दयानन्द सरस्वती (1824-1883) आर्य समाज के संस्थापक और एक महान समाज सुधारक थे। उनका निधन 30 अक्टूबर, 1883 को अजमेर, राजस्थान में दीपावली के दिन हुआ था। उन्हें जोधपुर के महाराजा के रसोइए द्वारा विष दिए जाने का संदेह है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, स्वामी दयानन्द का निधन 1883 ईस्वी में हुआ।
Quick Tip: महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्तियों के लिए एक समय-रेखा (timeline) बनाएं, जिसमें उनके जन्म, मृत्यु और प्रमुख उपलब्धियों (जैसे आर्य समाज की स्थापना - 1875) की तिथियां शामिल हों।
कौन प्रसाद को खा रहा था ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न स्वामी दयानन्द सरस्वती के बचपन की एक प्रसिद्ध घटना से संबंधित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
अपने बचपन में, मूलशंकर (स्वामी दयानन्द) ने अपने पिता के साथ शिवरात्रि का व्रत रखा था। रात में जागते समय, उन्होंने देखा कि एक चूहा शिवलिंग पर चढ़ गया और भगवान को चढ़ाए गए प्रसाद को खा रहा था। उन्होंने सोचा कि जो भगवान अपनी रक्षा एक चूहे से नहीं कर सकता, वह दुनिया की रक्षा कैसे करेगा। इस घटना ने उनके मन में मूर्ति पूजा के प्रति संदेह पैदा कर दिया और उन्हें सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, प्रसाद को चूहा खा रहा था।
Quick Tip: पाठ्यपुस्तकों में दिए गए दृष्टांतों और कहानियों पर ध्यान दें, क्योंकि अक्सर तथ्यात्मक प्रश्न उन्हीं पर आधारित होते हैं। यह कहानी स्वामी दयानन्द के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी।
समाज और शिक्षा के उद्धारक कौन थे ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में उस महान व्यक्ति की पहचान करने के लिए कहा गया है जिसे समाज और शिक्षा के उद्धारक के रूप में जाना जाता है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
स्वामी दयानन्द सरस्वती 19वीं सदी के एक प्रमुख समाज और शिक्षा सुधारक थे।
समाज सुधार: उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की और जातिवाद, बाल विवाह, मूर्ति पूजा और अन्य सामाजिक कुरीतियों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
शिक्षा सुधार: उन्होंने वैदिक ज्ञान के पुनरुत्थान पर जोर दिया और 'वेदों की ओर लौटो' का नारा दिया। उन्होंने स्त्री शिक्षा और आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ वैदिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए डी.ए.वी. (दयानन्द एंग्लो-वैदिक) स्कूलों की स्थापना को प्रेरित किया।
जबकि स्वामी विवेकानन्द भी एक महान विचारक थे, स्वामी दयानन्द को विशेष रूप से उनके संगठित सामाजिक और शैक्षिक सुधार आंदोलनों के लिए जाना जाता है। विरजानन्द, स्वामी दयानन्द के गुरु थे।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, दिए गए विकल्पों में से, स्वामी दयानन्द को समाज और शिक्षा का उद्धारक माना जाता है।
Quick Tip: विभिन्न समाज सुधारकों के विशिष्ट योगदानों को समझें ताकि आप उनके बीच अंतर कर सकें। उदाहरण के लिए, राजा राम मोहन राय सती प्रथा के उन्मूलन के लिए जाने जाते हैं, जबकि स्वामी दयानन्द आर्य समाज और डी.ए.वी. आंदोलन के लिए।
"वैरेण वैरस्य शमनम् असम्भवम्" यह किसकी उक्ति है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में एक प्रसिद्ध सूक्ति दी गई है और पूछा गया है कि यह किसने कही है। सूक्ति का अर्थ है: "वैर से वैर का शमन (अंत) असंभव है।"
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
यह प्रसिद्ध उक्ति महात्मा बुद्ध की है। यह उनके उपदेशों का एक मूल सिद्धांत है, जो बौद्ध ग्रंथ 'धम्मपद' में पाया जाता है। धम्मपद के यमकवग्ग का पाँचवाँ श्लोक है:
"न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो॥"
अर्थात्, इस संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होता। अवैर (प्रेम और मैत्री) से ही वैर शांत होता है, यही सनातन धर्म है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यह उक्ति महात्मा बुद्ध की है।
Quick Tip: धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों से प्रसिद्ध सूक्तियों और उनके स्रोतों को याद रखें। बुद्ध, महावीर, और भगवद्गीता की उक्तियाँ अक्सर परीक्षाओं में पूछी जाती हैं।
'चार्थे द्वन्द्वः' सूत्र का उदाहरण कौन-सा है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न 'चार्थे द्वन्द्वः' सूत्र का उदाहरण पूछ रहा है। यह सूत्र द्वन्द्व समास को परिभाषित करता है। इसका अर्थ है कि 'च' (और) के अर्थ में द्वन्द्व समास होता है, जहाँ दो या दो से अधिक समान महत्व वाले पद जुड़ते हैं।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
आइए विकल्पों का विग्रह करके विश्लेषण करें:
(A) जीवनचरितम्: इसका विग्रह है 'जीवनस्य चरितम्' (जीवन का चरित्र)। यह षष्ठी तत्पुरुष समास है।
(B) पञ्चामृतम्: इसका विग्रह है 'पञ्चानाम् अमृतानाम् समाहारः' (पाँच अमृतों का समूह)। यहाँ पहला पद संख्यावाचक है, अतः यह द्विगु समास है।
(C) प्राचीनकालः: इसका विग्रह है 'प्राचीनः कालः' (प्राचीन काल)। यह कर्मधारय समास है क्योंकि इसमें विशेषण-विशेष्य का संबंध है।
(D) धर्मार्थकामाः: इसका विग्रह है 'धर्मः च अर्थः च कामः च' (धर्म, और अर्थ, और काम)। यहाँ 'च' के द्वारा तीन पदों को जोड़ा गया है, जो द्वन्द्व समास का स्पष्ट उदाहरण है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'धर्मार्थकामाः' 'चार्थे द्वन्द्वः' सूत्र का सही उदाहरण है।
Quick Tip: द्वन्द्व समास को पहचानने की कुंजी उसके विग्रह में 'च' (और) का प्रयोग है। यदि किसी समस्त पद में दो या दो से अधिक संज्ञाएँ जुड़ी हुई प्रतीत हों, तो वह प्रायः द्वन्द्व समास होता है।
'सचिवानाम् आलयः' का समस्त पद क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न एक विग्रह वाक्य ('सचिवानाम् आलयः') से समस्त पद (समासयुक्त पद) बनाने के लिए कह रहा है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
यह षष्ठी तत्पुरुष समास का उदाहरण है। नियम के अनुसार, समस्त पद बनाते समय, पूर्वपद (पहले पद) की विभक्ति का लोप हो जाता है और वह अपने मूल शब्द (प्रातिपदिक) रूप में उत्तरपद (बाद के पद) से जुड़ जाता है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
विग्रह वाक्य: 'सचिवानाम् आलयः' (सचिवों का आलय/घर)।
पूर्वपद 'सचिवानाम्' में षष्ठी विभक्ति, बहुवचन है। इसका मूल शब्द 'सचिव' है।
समस्त पद बनाने के लिए, 'सचिवानाम्' से विभक्ति ('आनाम्') का लोप करेंगे, जिससे 'सचिव' बचेगा।
अब 'सचिव' को 'आलयः' से जोड़ेंगे: सचिव + आलयः।
यहाँ पर दीर्घ सन्धि (अ + आ = आ) होगी: सचिव् + अ + आलयः = सचिवालयः।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
अतः, 'सचिवानाम् आलयः' का समस्त पद 'सचिवालयः' होगा।
Quick Tip: तत्पुरुष समास में समस्त पद बनाते समय, पहले पद की विभक्ति हटा दें और फिर देखें कि क्या दोनों पदों के बीच कोई सन्धि नियम लागू हो रहा है।
'मातापितरौ' कौन-सा समास होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'मातापितरौ' शब्द का समास पहचानने के लिए कहा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'मातापितरौ' शब्द का विग्रह 'माता च पिता च' (माता और पिता) होता है।
द्वन्द्व समास: जब दो या दो से अधिक संज्ञाओं को, जिनका समान महत्व होता है, 'च' (और) से जोड़ा जाता है, तो वहाँ द्वन्द्व समास होता है। 'मातापितरौ' में माता और पिता दोनों पद प्रधान हैं।
पद के अंत में 'औ' की मात्रा द्विवचन को दर्शाती है, जो यह इंगित करता है कि यहाँ दो व्यक्तियों (माता और पिता) की बात हो रही है। यह इतरेतर द्वन्द्व समास का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
अन्य विकल्प गलत हैं क्योंकि: द्विगु में पहला पद संख्यावाचक होता है, अव्ययीभाव में पहला पद अव्यय होता है, और बहुव्रीहि में कोई अन्य पद प्रधान होता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'मातापितरौ' में द्वन्द्व समास है।
Quick Tip: द्वन्द्व समास में अक्सर द्विवचन (जैसे -औ) या बहुवचन (जैसे -आः) के प्रत्यय लगे होते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि कितने पद जोड़े गए हैं। यह समास पहचानने में एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है।
'युष्माकम्' का मूल शब्द क्या है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'युष्माकम्' शब्द का मूल शब्द (प्रातिपदिक) पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'युष्माकम्' एक सर्वनाम रूप है। यह 'तुम लोगों का/के/की' या 'आपका/के/की' (बहुवचन में) का अर्थ देता है। यह द्वितीय पुरुष (Second Person) सर्वनाम का रूप है।
इसका मूल शब्द 'युष्मद्' है।
'युष्माकम्' शब्द 'युष्मद्' के षष्ठी विभक्ति, बहुवचन का रूप है।
अस्मद् का अर्थ 'मैं/हम' है।
एतत् का अर्थ 'यह' है।
तत् का अर्थ 'वह' है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'युष्माकम्' का मूल शब्द 'युष्मद्' है।
Quick Tip: 'अस्मद्' (मैं/हम) और 'युष्मद्' (तुम/आप) के शब्द रूपों को पूरी तरह से याद कर लें। ये संस्कृत व्याकरण के सबसे महत्वपूर्ण सर्वनाम हैं।
'चत्वारः' का मूल शब्द क्या है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में संख्यावाचक शब्द 'चत्वारः' का मूल शब्द (प्रातिपदिक) पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
संस्कृत में 1 से 4 तक की संख्याएं तीनों लिंगों में अलग-अलग रूप धारण करती हैं।
संख्या 'चार' का मूल शब्द 'चतुर्' है। इसके रूप इस प्रकार हैं:
पुल्लिंग: चत्वारः (जैसे चत्वारः पुरुषाः)
स्त्रीलिंग: चतस्रः (जैसे चतस्रः महिलाः)
नपुंसकलिंग: चत्वारि (जैसे चत्वारि फलानि)
प्रश्न में दिया गया शब्द 'चत्वारः' पुल्लिंग का रूप है, और इसका मूल शब्द 'चतुर्' है।
विकल्प (A) और (B) भी 'चार' के ही रूप हैं, लेकिन वे क्रमशः स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग के हैं, मूल शब्द नहीं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'चत्वारः' का मूल शब्द 'चतुर्' है।
Quick Tip: संख्या 1 (एक), 2 (द्वि), 3 (त्रि), और 4 (चतुर्) के तीनों लिंगों में रूपों को याद करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे विशेषण के रूप में संज्ञा के लिंग के अनुसार बदलते हैं।
'अस्' धातु लोट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन रूप क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'अस्' (होना) धातु का लोट् लकार (आज्ञार्थक), प्रथम पुरुष (Third Person), बहुवचन (Plural) का रूप पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'अस्' धातु के लोट् लकार के रूप इस प्रकार हैं:
\begin{tabular{|l|l|l|l|
\hline
पुरुष & एकवचन & द्विवचन & बहुवचन
\hline
प्रथम पुरुष & अस्तु & स्ताम् & सन्तु
\hline
मध्यम पुरुष & एधि & स्तम् & स्त
\hline
उत्तम पुरुष & असानि & असाव & असाम
\hline
\end{tabular
तालिका के अनुसार, प्रथम पुरुष, बहुवचन का रूप 'सन्तु' है। (अर्थ: वे सब हों)।
आइए अन्य विकल्पों को देखें:
(A) असि: लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन है।
(B) अस्तु: लोट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन है।
(D) एधि: लोट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सही रूप 'सन्तु' है।
Quick Tip: 'अस्' (होना) और 'भू' (होना) धातु संस्कृत में सबसे मौलिक क्रियाएं हैं। इनके रूप थोड़े अनियमित होते हैं, इसलिए पांच प्रमुख लकारों (लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ्, लृट्) में इनके रूपों को कंठस्थ कर लेना चाहिए।
'पठेयम्' पद में कौन-सी धातु है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'पठेयम्' पद का मूल धातु (क्रिया का मूल रूप) पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'पठेयम्' एक क्रियापद है। यह 'पठ्' धातु का रूप है।
धातु: पठ् (अर्थ - पढ़ना)
लकार: विधिलिङ् लकार (चाहिए के अर्थ में)
पुरुष: उत्तम पुरुष (First Person)
वचन: एकवचन (Singular)
'पठेयम्' का अर्थ है 'मुझे पढ़ना चाहिए'। इसका मूल धातु 'पठ्' है। अन्य विकल्प क्रिया के विभिन्न रूप हैं, मूल धातु नहीं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'पठेयम्' पद में 'पठ्' धातु है।
Quick Tip: किसी भी क्रियापद का मूल रूप पहचानने के लिए, उसके लकार, पुरुष और वचन को हटाकर देखें। 'पठ्' से ही 'पठति', 'अपठत्', 'पठिष्यति', 'पठेयम्' आदि रूप बनते हैं।
'वि + ज्ञा + ल्यप्' के मेल से कौन-सा पद बनेगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न उपसर्ग, धातु और प्रत्यय के संयोजन से बनने वाले शब्द के बारे में है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
यहाँ ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग हुआ है। 'ल्यप्' प्रत्यय का प्रयोग 'क्त्वा' (करके) के अर्थ में तब होता है जब धातु से पहले कोई उपसर्ग लगा हो।
नियम:
उपसर्ग: वि
धातु: ज्ञा (जानना)
प्रत्यय: ल्यप्
'ल्यप्' प्रत्यय में से 'ल्' और 'प्' का लोप हो जाता है और केवल 'य' शेष रहता है, जो धातु के अंत में जुड़ता है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
वि + ज्ञा + ल्यप्
= वि + ज्ञा + य
= विज्ञाय (अर्थ - जानकर)
चरण 4: अंतिम उत्तर:
अतः, सही पद 'विज्ञाय' बनेगा।
Quick Tip: याद रखें, यदि धातु से पहले उपसर्ग है और 'करके' का अर्थ चाहिए, तो 'क्त्वा' के स्थान पर 'ल्यप्' प्रत्यय का प्रयोग होता है। जैसे - आ + गम् + ल्यप् = आगत्य (आकर)।
'रोगः' में कौन-सा प्रत्यय है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'रोगः' शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय की पहचान करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'रोगः' शब्द 'रुज्' धातु से बना है, जिसका अर्थ है 'तोड़ना' या 'बीमार होना'।
इसमें घञ् प्रत्यय लगा है, जिसका प्रयोग भाववाचक पुल्लिंग संज्ञा बनाने के लिए होता है।
निर्माण प्रक्रिया:
धातु: रुज्
प्रत्यय: घञ्
घञ् में से 'अ' शेष बचता है।
यह धातु के आदि स्वर की वृद्धि करता है (उ → ओ)।
धातु के अंतिम 'ज्' को 'ग्' हो जाता है।
रुज् + घञ् → र् + ओ + ग् + अ → रोग
पुल्लिंग प्रथमा एकवचन में 'रोगः' रूप बनता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'रोगः' में 'घञ्' प्रत्यय है।
Quick Tip: घञ् प्रत्यय से बने शब्द प्रायः पुल्लिंग होते हैं और उनमें धातु के पहले स्वर की वृद्धि (अ→आ, इ/ई→ऐ, उ/ऊ→औ, ऋ→आर्) होती है। जैसे - पठ् + घञ् → पाठः।
'कृ + क्तवतु' के योग से कौन-सा पद बनेगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न 'कृ' धातु और 'क्तवतु' प्रत्यय के योग से बनने वाले पद के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'क्तवतु' प्रत्यय का प्रयोग भूतकाल में कर्ता (active voice) को दर्शाने के लिए होता है।
धातु: कृ (करना)
प्रत्यय: क्तवतु
इनके योग से मूल शब्द 'कृतवत्' बनता है। इसके रूप तीनों लिंगों में चलते हैं:
पुल्लिंग: कृतवान् (उसने किया)
स्त्रीलिंग: कृतवती (उसने किया)
नपुंसकलिंग: कृतवत्
दिए गए विकल्पों में से 'कृतवती' स्त्रीलिंग रूप है, जो 'कृ + क्तवतु' के योग से बना है।
अन्य विकल्प:
कर्त्तव्यः (कृ + तव्यत्)
कृतम् (कृ + क्त)
करणीयः (कृ + अनीयर्)
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सही पद 'कृतवती' है।
Quick Tip: 'क्त' प्रत्यय (कर्मवाच्य/भाववाच्य) और 'क्तवतु' प्रत्यय (कर्तृवाच्य) के बीच के अंतर को समझें। 'क्त' का रूप 'गतः' (वह गया) और 'क्तवतु' का रूप 'गतवान्' (वह गया) होता है।
'नमति' किस लकार का रूप है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'नमति' क्रियापद के लकार की पहचान करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'नमति' शब्द 'नम्' धातु (झुकना) से बना है।
इसका रूप है:
धातु: नम्
पुरुष: प्रथम पुरुष (Third Person)
वचन: एकवचन (Singular)
क्रिया के अंत में 'ति' प्रत्यय वर्तमान काल को इंगित करता है। संस्कृत में वर्तमान काल के लिए लट् लकार का प्रयोग होता है। 'नमति' का अर्थ है 'वह झुकता है'।
अन्य लकार:
लोट् (आज्ञा): नमतु
लृट् (भविष्य): नंस्यति
लङ् (भूतकाल): अनमत्
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'नमति' लट् लकार का रूप है।
Quick Tip: क्रियापदों के अंत में लगने वाले प्रत्ययों (ति, तः, अन्ति; सि, थः, थ; मि, वः, मः) को याद रखें। ये प्रत्यय लकार और पुरुष/वचन की पहचान करने में मदद करते हैं। 'ति' प्रत्यय लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन की पहचान है।
'भू' धातु का लोट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप कौन-सा होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'भू' (होना) धातु का एक विशिष्ट रूप पूछा गया है: लोट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'भू' धातु का रूप कई लकारों में 'भव' हो जाता है। लोट् लकार (आज्ञार्थक) में इसके रूप इस प्रकार हैं:
\begin{tabular{|l|l|l|l|
\hline
पुरुष & एकवचन & द्विवचन & बहुवचन
\hline
प्रथम पुरुष & भवतु & भवताम् & भवन्तु
\hline
मध्यम पुरुष & भव & भवतम् & भवत
\hline
उत्तम पुरुष & भवानि & भवाव & भवाम
\hline
\end{tabular
तालिका के अनुसार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप 'भव' है। इसका अर्थ है '(तुम) हो' या '(तुम) बनो'।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सही रूप 'भव' है।
Quick Tip: लोट् लकार के मध्यम पुरुष एकवचन में प्रायः कोई प्रत्यय नहीं लगता और केवल धातु का परिवर्तित रूप (जैसे पठ, गच्छ, भव) ही होता है। यह इसे पहचानने का एक सरल तरीका है।
'शान्तिः' पद में कौन-सा प्रत्यय है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'शान्तिः' शब्द में लगे प्रत्यय को पहचानना है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'शान्तिः' शब्द 'शम्' धातु (शांत होना) से बना है।
इसमें क्तिन् प्रत्यय लगा है, जिसका प्रयोग भाववाचक स्त्रीलिंग संज्ञा बनाने के लिए किया जाता है।
निर्माण प्रक्रिया:
धातु: शम्
प्रत्यय: क्तिन्
'क्तिन्' में से 'ति' शेष रहता है।
शम् + ति → शान्ति (अनुनासिक सन्धि नियम से 'म्' का 'न्' हो जाता है)।
प्रथमा एकवचन में 'शान्तिः' रूप बनता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'शान्तिः' पद में 'क्तिन्' प्रत्यय है।
Quick Tip: 'क्तिन्' प्रत्यय से बनने वाले शब्द हमेशा स्त्रीलिंग होते हैं और अक्सर '-तिः' या '-धिः' में समाप्त होते हैं। जैसे - गम्+क्तिन्→गतिः, कृ+क्तिन्→कृतिः, बुध्+क्तिन्→बुद्धिः।
'गम् + तुमुन्' के योग से कौन-सा अव्यय बनेगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'गम्' धातु और 'तुमुन्' प्रत्यय के योग से बनने वाले अव्यय पद के बारे में है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
'तुमुन्' प्रत्यय का प्रयोग 'के लिए' (infinitive of purpose) के अर्थ में होता है। इससे बने शब्द अव्यय होते हैं (अर्थात उनके रूप नहीं बदलते)।
नियम:
'तुमुन्' में से 'तुम्' शेष रहता है।
'गम्' जैसी मकारान्त धातुओं के साथ जुड़ने पर 'म्' का 'न्' हो जाता है।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
गम् + तुमुन्
= गन् + तुम्
= गन्तुम् (अर्थ - जाने के लिए)
चरण 4: अंतिम उत्तर:
अतः, सही अव्यय 'गन्तुम्' बनेगा।
Quick Tip: 'तुमुन्' प्रत्यय से बने शब्दों के अंत में हमेशा 'तुम्' ध्वनि आती है, जैसे - पठितुम् (पढ़ने के लिए), खादितुम् (खाने के लिए), गन्तुम् (जाने के लिए)।
'पठनम्' पद में कौन-सा प्रत्यय है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'पठनम्' शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय की पहचान करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'पठनम्' (पढ़ना, a reading) एक भाववाचक संज्ञा है, जो 'पठ्' धातु से बनी है।
इसमें ल्युट् प्रत्यय लगा है।
निर्माण प्रक्रिया:
धातु: पठ्
प्रत्यय: ल्युट्
'ल्युट्' प्रत्यय में से 'यु' शेष रहता है, जिसे 'युवोरनाकौ' सूत्र से 'अन' आदेश हो जाता है।
पठ् + अन = पठन
'ल्युट्' प्रत्यय से बने शब्द नपुंसकलिंग होते हैं, अतः प्रथमा एकवचन में 'पठनम्' रूप बनता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'पठनम्' में 'ल्युट्' प्रत्यय है।
Quick Tip: 'ल्युट्' प्रत्यय से बने शब्द हमेशा नपुंसकलिंग होते हैं और उनके अंत में '-अनम्' आता है। जैसे - लिख्+ल्युट्→लेखनम्, गम्+ल्युट्→गमनम्।
राम 'मन्दाकिनी' की शोभा किसे दिखा रहे हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न वाल्मीकि रामायण के 'मन्दाकिनी वर्णनम्' प्रसंग पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
वनवास के दौरान चित्रकूट पर्वत पर निवास करते समय, भगवान राम मन्दाकिनी नदी की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हैं। वे इस अद्भुत दृश्य की शोभा अपनी पत्नी सीता को दिखाते हैं और उन्हें 'विशालाक्षि', 'प्रिये' जैसे संबोधनों से पुकारते हुए नदी की सुंदरता का बखान करते हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, राम मन्दाकिनी की शोभा सीता को दिखा रहे हैं।
Quick Tip: पाठ्यक्रम में शामिल साहित्यिक अंशों के मुख्य पात्रों और उनके बीच के संवादों पर विशेष ध्यान दें। इससे संदर्भ-आधारित प्रश्नों का उत्तर देना आसान हो जाता है।
'रघुवंश' महाकाव्य के रचनाकार कौन हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में प्रसिद्ध संस्कृत महाकाव्य 'रघुवंश' के रचयिता का नाम पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'रघुवंशम्' संस्कृत साहित्य के सर्वश्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक है। इसकी रचना महाकवि कालिदास ने की थी। इस महाकाव्य में उन्होंने सूर्यवंशी राजाओं की वंशावली का वर्णन किया है, जिसमें राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक के राजाओं का चरित्र-चित्रण है, जिसमें भगवान राम का वंश भी शामिल है।
अन्य विकल्प:
वाल्मीकि: रामायण के रचनाकार।
तुलसीदास: रामचरितमानस के रचनाकार।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'रघुवंश' महाकाव्य के रचनाकार कालिदास हैं।
Quick Tip: संस्कृत के प्रमुख कवियों जैसे कालिदास, भास, भवभूति, भारवि, माघ और उनकी प्रमुख कृतियों की एक सूची बनाकर याद करें। यह परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
विशाल नेत्रोंवाली कौन हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भी 'मन्दाकिनी वर्णनम्' प्रसंग से संबंधित है, जिसमें एक पात्र के विशेषण का उल्लेख है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
मन्दाकिनी नदी का वर्णन करते समय, राम सीता को 'विशालाक्षि' (हे विशाल नेत्रोंवाली) कहकर संबोधित करते हैं। यह सीता के लिए प्रयुक्त एक प्रेमपूर्ण और सम्मानजनक विशेषण है। इस प्रसंग में विशाल नेत्रोंवाली सीता ही हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, विशाल नेत्रोंवाली सीता हैं।
Quick Tip: साहित्यिक पाठों में पात्रों के लिए प्रयुक्त विशेषणों और उपनामों पर ध्यान दें, क्योंकि वे अक्सर प्रश्न का आधार बनते हैं।
'हंस-सारस' द्वारा सेवित नदी कौन-सी है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न रामायण के 'मन्दाकिनी वर्णनम्' में वर्णित नदी की एक विशेषता पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
भगवान राम सीता को मन्दाकिनी नदी की सुंदरता दिखाते हुए कहते हैं कि यह नदी हंस और सारस जैसे सुंदर पक्षियों से सुशोभित है और वे इसके निर्मल जल में विहार करते हैं। इस प्रकार, हंस और सारस द्वारा सेवित नदी मन्दाकिनी है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सही उत्तर मन्दाकिनी है।
Quick Tip: किसी भी साहित्यिक वर्णन में, प्राकृतिक तत्वों (नदी, पर्वत, वृक्ष, पशु-पक्षी) के उल्लेख को ध्यान से पढ़ें, क्योंकि वे अक्सर कथा के स्थान और वातावरण को परिभाषित करते हैं।
कौन नृत्य कर रहा है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भी 'मन्दाकिनी वर्णनम्' प्रसंग से लिया गया एक काव्यात्मक वर्णन है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
मन्दाकिनी नदी का वर्णन करते हुए, राम कहते हैं कि हवा के झोंकों से हिलती हुई पर्वत की चोटियाँ ऐसी प्रतीत हो रही हैं मानो वे नृत्य कर रही हों ("नृत्यत इव पर्वतः")। यह एक काव्यात्मक कल्पना है जिसमें प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में वृक्षों के भी झूमने का वर्णन है, लेकिन पर्वत के नृत्य करने का स्पष्ट उल्लेख है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, पर्वत नृत्य करता हुआ प्रतीत हो रहा है।
Quick Tip: संस्कृत काव्य में अलंकारों, विशेष रूप से मानवीकरण (personification) और उत्प्रेक्षा (poetic fancy) पर ध्यान दें, जहाँ निर्जीव वस्तुओं को सजीव क्रियाएं करते हुए दर्शाया जाता है।
'सत्य' से किसका मार्ग प्रशस्त होता हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न मुण्डकोपनिषद् के एक प्रसिद्ध श्लोक पर आधारित है, जिसमें सत्य के महत्व को बताया गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
मुण्डकोपनिषद् में कहा गया है:
"सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।"
इसका अर्थ है: "सत्य की ही विजय होती है, असत्य की नहीं। सत्य से ही देवलोक का मार्ग प्रशस्त (विस्तृत) होता है।"
इस श्लोक के अनुसार, ऋषिगण सत्य का पालन करके ही देवलोक को प्राप्त करते हैं, जहाँ सत्य का परम धाम है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'सत्य' से देवलोक का मार्ग प्रशस्त होता है।
Quick Tip: उपनिषदों के प्रसिद्ध श्लोकों जैसे "सत्यमेव जयते..." और "ईशा वास्यमिदं सर्वं..." को उनके स्रोत और अर्थ के साथ याद रखें। ये अक्सर सीधे प्रश्न के रूप में आते हैं।
'हिरण्मयेन पात्रेण ......... दृष्टये ।।' मंत्र किस उपनिषद् से संकलित है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में एक मंत्र का अंश देकर उसके स्रोत उपनिषद् का नाम पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
पूरा मंत्र इस प्रकार है:
"हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।
तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये॥"
यह मंत्र ईशावास्योपनिषद् का 15वाँ मंत्र है। इस मंत्र में साधक सूर्य देव (पूषन्) से प्रार्थना करता है कि वे सत्य के मुख को ढके हुए सुनहरे पात्र (सूर्य के तेज) को हटा दें, ताकि वह सत्य (ब्रह्म) का दर्शन कर सके।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यह मंत्र ईशावास्योपनिषद् से संकलित है।
Quick Tip: प्रमुख उपनिषदों के नाम और उनकी एक-एक मुख्य शिक्षा या प्रसिद्ध मंत्र को याद कर लें। ईशावास्योपनिषद् अपने 'हिरण्मयेन पात्रेण' मंत्र के लिए प्रसिद्ध है।
'अपावृणु' पद का क्या अर्थ है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'अपावृणु' पद का अर्थ पूछा गया है, जो पिछले प्रश्न के मंत्र का ही एक हिस्सा है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'अपावृणु' क्रियापद 'अप + वृ' धातु से बना है। यह लोट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप है।
'अप' उपसर्ग का अर्थ है 'दूर'।
'वृ' धातु का अर्थ है 'ढकना' या 'चुनना'।
'अपावृणु' का शाब्दिक अर्थ है 'आवरण को दूर कर दो' या 'हटा दें'।
ईशावास्योपनिषद् के मंत्र "तत्त्वं पूषन्नपावृणु" में साधक सूर्य से प्रार्थना करता है कि "हे पूषन्! उस (आवरण) को हटा दें।"
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'अपावृणु' पद का अर्थ 'हटा दें' है।
Quick Tip: श्लोकों या मंत्रों को पढ़ते समय, उनके क्रियापदों और उनके अर्थों पर विशेष ध्यान दें। अक्सर उन्हीं से अर्थ-संबंधी प्रश्न बनते हैं।
'अरे वाचाल ! कितना बोलते हो ?' किस पुरुष का कथन है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न विद्यापति द्वारा रचित 'अलसकथा' पाठ से लिया गया है, जिसमें चार आलसी पुरुषों का संवाद है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
जब आलसशाला में आग लगा दी जाती है, तो चार आलसी पुरुषों के बीच निम्नलिखित संवाद होता है:
प्रथम पुरुष: "अहो कथमयं कोलाहलः?" (अरे, यह कैसा शोर है?)
द्वितीय पुरुष: "तर्क्यते यदस्मिन् गृहे अग्निः लग्नोऽस्ति।" (लगता है कि इस घर में आग लग गई है।)
तृतीय पुरुष: "कोऽपि तथा धार्मिको नास्ति य इदानीं जलाद्रैः वासोभिः कटैर्वास्मान् प्रावृणोति।" (कोई ऐसा धार्मिक नहीं है जो इस समय पानी से भीगे वस्त्रों या चटाई से हमें ढक दे।)
चतुर्थ पुरुष: "अये वाचालाः! कति वचनानि वक्तुं शक्नुथ? तूष्णीं कथं न तिष्ठथ?" (अरे वाचालो! कितना बोलते हो? चुप क्यों नहीं रहते?) Quick Tip: 'अलसकथा' जैसे कथा-आधारित पाठों में, पात्रों के संवादों को क्रम से याद रखें। यह पहचानने में मदद करेगा कि कौन सा कथन किस पात्र ने कहा है।
'अलसकथा' पाठ में 'अहो कथमयं कोलाहलः ?' किसकी उक्ति है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भी 'अलसकथा' पाठ के संवादों पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
जब आलसशाला में आग लगने पर शोर होने लगता है, तो सबसे पहले जो आलसी पुरुष बोलता है, वह है पहला आलसी। वह मुँह पर कपड़ा ढके हुए कहता है:
"अहो कथमयं कोलाहलः ?"
जिसका अर्थ है, "अरे, यह कैसा शोरगुल है?"
यह संवाद का आरंभिक बिंदु है, जिसके बाद अन्य आलसी अपनी-अपनी प्रतिक्रिया देते हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यह उक्ति पहले आलसी की है।
Quick Tip: कहानियों में घटनाओं के क्रम और पात्रों की पहली प्रतिक्रिया पर विशेष ध्यान दें। अक्सर पहला संवाद या पहली घटना सीधे प्रश्न का विषय बनती है।
सबसे बड़ा शत्रु कौन है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न नीतिश्लोकों और सामान्य ज्ञान पर आधारित है, जिसमें मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
नीतिशास्त्र में मनुष्य के शरीर में स्थित शत्रुओं का वर्णन किया गया है। भर्तृहरि के नीतिशतक और अन्य ग्रंथों में कहा गया है:
"आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।"
अर्थात्, "आलस्य ही मनुष्यों के शरीर में स्थित सबसे बड़ा शत्रु है।"
आलस्य व्यक्ति को कर्म करने से रोकता है और उसकी प्रगति में सबसे बड़ी बाधा डालता है। क्रोध और लोभ भी शत्रु हैं, लेकिन आलस्य को सबसे प्रमुख शत्रु माना गया है क्योंकि यह व्यक्ति को निष्क्रिय बना देता है। क्षमा एक गुण है, शत्रु नहीं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है।
Quick Tip: प्रमुख नीतिश्लोकों और सूक्तियों को याद करें। "आलस्यं हि मनुष्याणां..." जैसे श्लोक अक्सर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।
'भवन्तमहमेष नमस्करोमि' किसका कथन है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भास द्वारा रचित नाटक 'कर्णभारम्' से लिया गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
नाटक में, इन्द्र (शक्र) एक ब्राह्मण का वेश धारण करके कर्ण के पास भिक्षा मांगने आते हैं। जब कर्ण उन्हें देखते हैं, तो वे अत्यंत सम्मान के साथ उनका अभिवादन करते हुए कहते हैं:
"भवन्तम् अहम् एषः नमस्करोमि।"
अर्थात्, "मैं, यह (कर्ण), आपको नमस्कार करता हूँ।"
यह कथन कर्ण का है जो उन्होंने ब्राह्मण वेशधारी शक्र (इन्द्र) से कहा था।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यह कथन कर्ण का है।
Quick Tip: पाठ्यक्रम में शामिल नाटकों के प्रमुख पात्रों और उनके महत्वपूर्ण संवादों को याद रखें। 'कर्णभारम्' में कर्ण और शक्र के बीच का संवाद परीक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
'महत्तरां भिक्षां याचे' यह उक्ति किसकी है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भी 'कर्णभारम्' नाटक के संवाद पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
जब कर्ण ब्राह्मण वेशधारी इन्द्र को गाय, घोड़े, हाथी और सोना देने का प्रस्ताव देते हैं, तो इन्द्र उन सभी को अस्वीकार कर देते हैं। तब वे कहते हैं:
"महत्तरां भिक्षां याचे।"
अर्थात्, "मैं बहुत बड़ी भिक्षा मांगता हूँ।"
यह उक्ति शक्र (इन्द्र) की है, जिसके बाद वे कर्ण से उनके जन्मजात कवच और कुण्डल दान में मांगते हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यह उक्ति शक्र की है।
Quick Tip: संवाद-आधारित प्रश्नों में, यह ध्यान रखें कि कौन बोल रहा है (वक्ता) और किससे बोल रहा है (श्रोता)। 'महत्तरां भिक्षां याचे' में वक्ता शक्र हैं और श्रोता कर्ण।
इन्द्र ने कर्ण से छल क्यों किया ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न महाभारत के एक प्रमुख प्रसंग के पीछे के कारण के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
इन्द्र देवताओं के राजा और अर्जुन के पिता थे। वे जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसके जन्मजात कवच और कुण्डल हैं, तब तक उसे कोई भी युद्ध में पराजित नहीं कर सकता। महाभारत के युद्ध में अपने पुत्र अर्जुन की विजय सुनिश्चित करने और उसकी सहायता करने के लिए, इन्द्र ने छल से ब्राह्मण का वेश बनाकर कर्ण से उसके कवच और कुण्डल दान में मांग लिए, ताकि कर्ण युद्ध में कमजोर पड़ जाए।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, इन्द्र ने कर्ण से छल अर्जुन की सहायता के लिए किया।
Quick Tip: महाभारत और रामायण की कहानियों के पात्रों के आपसी संबंधों (जैसे पिता-पुत्र, मित्र-शत्रु) और उनके उद्देश्यों को समझें। इससे उनके कार्यों के पीछे के कारणों को जानना आसान हो जाता है।
'कौमुदी महोत्सव' जैसा दृश्य किस अवसर पर दिखाई पड़ता है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न प्राचीन भारत के एक उत्सव 'कौमुदी महोत्सव' की तुलना आधुनिक त्योहारों से करने के लिए कह रहा है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'कौमुदी महोत्सव' पाटलिपुत्र (पटना) में शरद् काल में मनाया जाने वाला एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध उत्सव था, जिसका उल्लेख कई साहित्यिक ग्रंथों में मिलता है। इस उत्सव में नगर को विशेष रूप से सजाया जाता था, लोग नए वस्त्र पहनते थे और चारों ओर आनंद का वातावरण होता था। यह उत्सव कई दिनों तक चलता था। आधुनिक समय में, इस प्रकार का भव्य और आनंदमय दृश्य विशेष रूप से दुर्गापूजा के अवसर पर दिखाई देता है, खासकर बंगाल और बिहार के क्षेत्रों में, जहाँ पंडाल, सजावट और उत्सव का माहौल कई दिनों तक बना रहता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'कौमुदी महोत्सव' जैसा दृश्य दुर्गापूजा के अवसर पर दिखाई पड़ता है।
Quick Tip: प्राचीन भारतीय संस्कृति और त्योहारों के बारे में पढ़ें। कौमुदी महोत्सव जैसे ऐतिहासिक उत्सवों की तुलना वर्तमान त्योहारों से करने पर आधारित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
"यह मेरा है, यह तुम्हारा है ।" ऐसी भावना कौन रखते हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न एक प्रसिद्ध नीति श्लोक पर आधारित है जो संकीर्ण और उदार दृष्टिकोण के बीच अंतर बताता है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
हितोपदेश में यह प्रसिद्ध श्लोक है:
"अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥"
अर्थात्: "यह मेरा है, यह पराया है, ऐसी गणना (सोच) छोटी बुद्धि वाले (लघुचेतसाम्) लोग करते हैं। उदार चरित्र वालों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही परिवार है।"
इस श्लोक के अनुसार, जो लोग भेद-भाव और अपने-पराए की भावना रखते हैं, वे संकीर्ण या छोटी बुद्धि वाले होते हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, ऐसी भावना छोटी बुद्धिवाला व्यक्ति रखता है।
Quick Tip: "वसुधैव कुटुम्बकम्" जैसे प्रसिद्ध सूक्तियों और उनसे जुड़े पूरे श्लोक को याद करें। इससे आपको श्लोक के दोनों भागों (लघुचेतसाम् और उदारचरितानाम्) से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देने में मदद मिलेगी।
'हितोपदेश' की कहानियाँ किससे सम्बन्धित हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'हितोपदेश' ग्रंथ की कहानियों के मुख्य पात्रों के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'हितोपदेश' नारायण पण्डित द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कथा-ग्रंथ है, जो पंचतंत्र पर आधारित है। इसका मुख्य उद्देश्य कहानियों के माध्यम से नीति और व्यवहार-ज्ञान सिखाना है। इन कहानियों के अधिकांश पात्र पशु-पक्षी हैं, जो मनुष्यों की तरह बात करते हैं और व्यवहार करते हैं। इन पशु-पक्षियों के माध्यम से ही मित्रता, शत्रुता, विवेक और मूर्खता जैसी मानवीय प्रवृत्तियों पर शिक्षा दी जाती है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'हितोपदेश' की कहानियाँ पशु-पक्षियों से सम्बन्धित हैं।
Quick Tip: भारत के प्रमुख कथा-ग्रंथों जैसे पंचतंत्र और हितोपदेश की विशेषताओं को जानें। यह जानना महत्वपूर्ण है कि ये ग्रंथ 'पशु कथा' (animal fables) की श्रेणी में आते हैं।
कौन कीचड़ में फँस गया ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न हितोपदेश की प्रसिद्ध कथा 'व्याघ्रपथिककथा' (बाघ और राहगीर की कहानी) पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
कथा के अनुसार, एक बूढ़ा बाघ सोने का कंगन दिखाकर एक लालची पथिक (राहगीर) को अपनी ओर आकर्षित करता है। बाघ पथिक से कंगन लेने से पहले पास के तालाब में स्नान करने को कहता है। जैसे ही पथिक तालाब में प्रवेश करता है, वह गहरे कीचड़ में फँस जाता है और बाहर नहीं निकल पाता। इसके बाद बाघ उसे आसानी से मारकर खा जाता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, कीचड़ में पथिक फँस गया था।
Quick Tip: हितोपदेश और पंचतंत्र की कहानियों के मुख्य पात्रों और कहानी के नैतिक उपदेश को याद रखें। ये कहानियाँ अक्सर परीक्षाओं में पूछी जाती हैं।
"......... भारः क्रियां विना ।" रिक्त स्थान में उचित विकल्प क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न एक प्रसिद्ध संस्कृत सूक्ति को पूरा करने के लिए है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
यह एक बहुत ही प्रसिद्ध नीति वचन है, जो इस प्रकार है:
"ज्ञानं भारः क्रियां विना।"
इसका अर्थ है, "क्रिया (या व्यवहार) के बिना ज्ञान एक बोझ के समान है।" यह सूक्ति इस बात पर जोर देती है कि ज्ञान तभी सार्थक है जब उसे व्यवहार में लाया जाए, अन्यथा वह व्यर्थ है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, रिक्त स्थान में 'ज्ञानम्' शब्द आएगा।
Quick Tip: महत्वपूर्ण सूक्तियों और नीति श्लोकों को कंठस्थ कर लें। ये अक्सर रिक्त स्थान की पूर्ति या अर्थ बताने वाले प्रश्नों के रूप में आते हैं।
'पवित्रम्' किस संधि का उदाहरण है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'पवित्रम्' शब्द की संधि पहचाननी है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
अयादि संधि का सूत्र 'एचोऽयवायावः' है। इसके नियम हैं:
ए + स्वर → अय् + स्वर
ऐ + स्वर → आय् + स्वर
ओ + स्वर → अव् + स्वर
औ + स्वर → आव् + स्वर
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
'पवित्रम्' शब्द का विच्छेद करने पर हमें 'प् + अव् + इत्रम्' ध्वनि मिलती है। इसमें 'अव्' ध्वनि मौजूद है, जो अयादि संधि की पहचान है।
इसका सन्धि-विच्छेद है: पो + इत्रम्
यहाँ 'पो' के 'ओ' के बाद 'इ' स्वर आने पर 'ओ' का 'अव्' हो गया:
\( पो + इत्रम् \rightarrow प् + ओ + इत्रम् \rightarrow प् + अव् + इत्रम् \rightarrow पवित्रम् \)
चरण 4: अंतिम उत्तर:
अतः, 'पवित्रम्' अयादि संधि का उदाहरण है।
Quick Tip: अयादि संधि को पहचानने के लिए शब्द के बीच में अय्, आय्, अव्, या आव् की ध्वनि खोजें। जैसे - नयनम् (ने+अनम्), पावकः (पौ+अकः)।
'सत्येषा' का सही विच्छेद क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'सत्येषा' शब्द का सही सन्धि-विच्छेद चुनना है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
शब्द 'सत्येषा' के मध्य में 'ए' की मात्रा है। 'ए' की ध्वनि गुण संधि से बनती है, जिसका नियम है: \( अ/आ + इ/ई \rightarrow ए \)।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
आइए विकल्पों का विश्लेषण करें:
(A) सति + इषा: \( इ + इ \) से 'ई' (दीर्घ संधि) बनता, 'सतीषा' होता।
(B) सत्य + इषा: यहाँ 'सत्य' के अंत में 'अ' है और 'इषा' के आरंभ में 'इ' है। गुण संधि के नियम \( अ + इ = ए \) के अनुसार, यह 'सत्येषा' बनेगा। दोनों शब्द ('सत्य' और 'इषा' अर्थात इच्छा) सार्थक हैं।
(C) सती + एषा: यह सही संधि रूप नहीं बनाएगा।
(D) सत्य + एषा: \( अ + ए \) से 'ऐ' (वृद्धि संधि) बनता, 'सत्यैषा' होता।
अतः, व्याकरण और अर्थ की दृष्टि से 'सत्य + इषा' ही सही विच्छेद है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
'सत्येषा' का सही विच्छेद 'सत्य + इषा' है।
Quick Tip: सन्धि-विच्छेद करते समय, न केवल संधि के नियमों का पालन करें, बल्कि यह भी सुनिश्चित करें कि विच्छेद से बनने वाले दोनों शब्द सार्थक हों।
'भुवः प्रभवः' का उदाहरण है
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न पाणिनि के व्याकरण सूत्र "भुवः प्रभवः" (1.4.31) के अनुप्रयोग पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
सूत्र "भुवः प्रभवः" का अर्थ है कि 'भू' धातु (अर्थात् उत्पन्न होना) के कर्ता का जो 'प्रभव' (उत्पत्ति-स्थान या स्रोत) होता है, उसकी अपादान संज्ञा होती है, और अपादान में पञ्चमी विभक्ति लगती है। सरल शब्दों में, जहाँ से कोई वस्तु उत्पन्न होती है, उस स्थान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
आइए विकल्पों को देखें:
(A) हिमालयात् गङ्गा प्रभवति । (गंगा हिमालय से निकलती है)। यहाँ गंगा के उत्पन्न होने का स्रोत 'हिमालय' है, अतः 'हिमालयात्' में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग इस सूत्र का सटीक उदाहरण है।
(B) सीता रामेण सह वनं गतवती । (सीता राम के साथ वन गई)। यहाँ 'सह' के योग में 'रामेण' में तृतीया विभक्ति है।
(C) सा हर्षात् हसति । (वह खुशी से हँसती है)। यहाँ हँसने के 'हेतु' (कारण) में पञ्चमी विभक्ति है।
(D) नेतारः पदाय स्पृह्यन्ति । (नेता पद के लिए इच्छा करते हैं)। यहाँ 'स्पृह' धातु के योग में 'पदाय' में चतुर्थी विभक्ति है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'हिमालयात् गङ्गा प्रभवति' इस सूत्र का सही उदाहरण है।
Quick Tip: कारक प्रकरण के प्रमुख सूत्रों (जैसे कर्तृ, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान) और उनके एक-एक उदाहरण को अच्छी तरह समझ लें। 'भुवः प्रभवः' अपादान कारक का एक महत्वपूर्ण सूत्र है।
'हेतु' शब्द के अर्थ में कौन-सी विभक्ति होती है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि 'हेतु' (कारण) के अर्थ को प्रकट करने के लिए किस विभक्ति का प्रयोग होता है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
व्याकरण के सूत्र "हेतौ" (2.3.23) के अनुसार, किसी क्रिया के होने के 'हेतु' या कारण को बताने वाले शब्द में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
उदाहरण के लिए:
सः हर्षेण नृत्यति। (वह खुशी के कारण नाचता है।)
पुण्येन हरिः दृष्टः। (पुण्य के कारण हरि के दर्शन हुए।)
यद्यपि कुछ विशेष परिस्थितियों में पंचमी और षष्ठी का भी प्रयोग होता है, लेकिन 'हेतु' के अर्थ के लिए मुख्य विभक्ति तृतीया ही है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'हेतु' के अर्थ में तृतीया विभक्ति होती है।
Quick Tip: 'हेतु' (कारण), 'करण' (साधन) और 'सह' (साथ) - ये तीनों ही अर्थ तृतीया विभक्ति से जुड़े हैं। इनके बीच के सूक्ष्म अंतर को समझना महत्वपूर्ण है।
'सः मासेन व्याकरणम् अधीते ।' यह किस सूत्र का उदाहरण है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
वाक्य का अर्थ है "वह एक महीने में व्याकरण पढ़ लेता है।" प्रश्न इस वाक्य में प्रयुक्त व्याकरण सूत्र की पहचान करने के लिए है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
सूत्र "अपवर्गे तृतीया" (2.3.6) का अर्थ है कि जब 'अपवर्ग' अर्थात् फल की प्राप्ति या कार्य की समाप्ति का बोध हो, तो कालवाची (समय बताने वाले) और मार्गवाची (रास्ता बताने वाले) शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
इस वाक्य में 'मासेन' (एक महीने में) कालवाची शब्द है और 'अधीते' (पढ़ लेता है) क्रिया से कार्य की समाप्ति और फल की प्राप्ति का बोध हो रहा है। इसलिए 'मासेन' में "अपवर्गे तृतीया" सूत्र से तृतीया विभक्ति हुई है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यह 'अपवर्गे तृतीया' सूत्र का उदाहरण है।
Quick Tip: यदि कोई कार्य किसी निश्चित समय में पूरा हो जाए, तो उस समय को बताने वाले शब्द में तृतीया विभक्ति (अपवर्गे तृतीया) लगती है। यदि कार्य चल रहा हो, तो द्वितीया विभक्ति (कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे) लगती है।
'मह्यम् मिष्टान्नं रोचते' किस सूत्र का उदाहरण है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
वाक्य का अर्थ है "मुझे मिठाई अच्छी लगती है।" इसमें प्रयुक्त व्याकरण सूत्र को पहचानना है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
सूत्र "रुच्यर्थानां प्रीयमाणः" (1.4.33) के अनुसार, 'रुच्' (अच्छा लगना) तथा इसी अर्थ वाली अन्य धातुओं के प्रयोग में, जो 'प्रीयमाण' होता है (अर्थात् जिसे कोई वस्तु अच्छी लगती है), उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और उसमें चतुर्थी विभक्ति लगती है।
इस वाक्य में 'रुच्' धातु का रूप 'रोचते' प्रयुक्त हुआ है और मिठाई 'मह्यम्' (मुझको) अच्छी लग रही है। अतः 'मह्यम्' (अस्मद्, चतुर्थी एकवचन) प्रीयमाण होने के कारण सम्प्रदान कारक है और इसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग हुआ है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यह 'रुच्यर्थानां प्रीयमाणः' सूत्र का उदाहरण है।
Quick Tip: 'रुच्' (अच्छा लगना), 'क्रुध्' (क्रोध करना), 'नमः' (नमस्कार), 'दा' (देना) - इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है। इन विशेष नियमों को याद रखें।
'योगसूत्र' के रचनाकार कौन हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'योगसूत्र' नामक ग्रंथ के रचयिता का नाम पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'योगसूत्र' भारतीय दर्शन के षड्दर्शनों में से एक, योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। इसकी रचना महर्षि पतञ्जलि ने की थी। इस ग्रंथ में उन्होंने योग के माध्यम से चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित करने का मार्ग बताया है।
अन्य विकल्प:
पाणिनि: अष्टाध्यायी (व्याकरण ग्रंथ) के रचयिता।
कपिल: सांख्य दर्शन के प्रणेता।
कणाद: वैशेषिक दर्शन के प्रणेता।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'योगसूत्र' के रचनाकार पतञ्जलि हैं।
Quick Tip: षड्दर्शन (सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदान्त) और उनके प्रणेताओं के नाम अवश्य याद कर लें। यह दर्शनशास्त्र का एक आधारभूत प्रश्न है।
'कृषिविज्ञान' के रचयिता निम्न में से कौन हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में कृषि विज्ञान पर लिखे गए प्राचीन ग्रंथ के रचयिता के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
प्राचीन भारत में कृषि पर लिखे गए सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक 'कृषि-पराशर' है। इस ग्रंथ के रचयिता महर्षि पराशर माने जाते हैं। इसमें कृषि, मौसम विज्ञान, पशुपालन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से संबंधित विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, दिए गए विकल्पों में से 'कृषिविज्ञान' के रचयिता पराशर हैं।
Quick Tip: प्राचीन भारत के विभिन्न विज्ञानों (जैसे खगोल, गणित, आयुर्वेद, कृषि) और उनके प्रमुख आचार्यों (जैसे आर्यभट, चरक, सुश्रुत, पराशर) के बारे में जानकारी रखें।
'वसुधा' किसका पर्याय है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'वसुधा' शब्द का पर्यायवाची शब्द पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'वसुधा' संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ पृथ्वी या धरती होता है। यह 'वसु' (धन, रत्न) को धारण करने वाली मानी जाती है, इसलिए इसे वसुधा कहते हैं।
पृथ्वी के अन्य पर्यायवाची शब्द हैं: भूमि, धरा, धरित्री, अचला, मही।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'वसुधा' पृथ्वी का पर्याय है।
Quick Tip: प्रमुख संस्कृत शब्दों के पर्यायवाची और विलोम शब्दों का अभ्यास करें। आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु जैसे प्राकृतिक तत्वों के पर्यायवाची विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
'पटनदेवी' किस नगर में अवस्थित है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में पटनदेवी मंदिर के स्थान के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
पटनदेवी मंदिर, जिसे माँ पटनेश्वरी भी कहा जाता है, बिहार राज्य की राजधानी पटना शहर में स्थित एक प्राचीन और प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। ऐसा माना जाता है कि पटना शहर का नामकरण इसी देवी के नाम पर हुआ है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, पटनदेवी पटना नगर में अवस्थित है।
Quick Tip: अपने क्षेत्र के और भारत के प्रमुख ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के बारे में सामान्य ज्ञान रखें। यह अक्सर परीक्षाओं में पूछा जाता है।
यूनान का राजदूत कौन था ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में दिए गए विकल्पों में से यूनानी राजदूत की पहचान करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
मेगास्थनीज: वह सेल्यूकस निकेटर का एक यूनानी (Greek) राजदूत था, जो मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में पाटलिपुत्र आया था। उसने 'इंडिका' नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी जिसमें उसने भारत का वर्णन किया है।
ह्वेनसांग, फाह्यान, और इत्सिंग: ये तीनों प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु और यात्री थे जो बौद्ध धर्मग्रंथों का अध्ययन करने के लिए भारत आए थे। वे यूनान से नहीं थे।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यूनान का राजदूत मेगास्थनीज था।
Quick Tip: प्राचीन भारत में आए प्रमुख विदेशी यात्रियों (जैसे मेगास्थनीज, फाह्यान, ह्वेनसांग, अल-बरूनी) के नाम, उनके देश और वे किस भारतीय राजा के शासनकाल में आए थे, इसकी एक सूची बना लें।
'रावणः' पद का संधि-विच्छेद क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'रावणः' शब्द का सन्धि-विच्छेद करने के लिए कहा गया है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
'रावणः' शब्द में 'आव्' की ध्वनि आ रही है, जो अयादि संधि का संकेत है। अयादि संधि का नियम है: \( औ + (कोई स्वर) \rightarrow आव् + (कोई स्वर) \)।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
'रावणः' का विच्छेद करने पर: \( र् + आव् + अणः \)।
'आव्' की ध्वनि 'औ' से बनती है, तो पहला पद 'रौ' होगा।
शेष भाग 'अनः' है। तो विच्छेद होगा: रौ + अनः।
यह अयादि संधि का उदाहरण है: \( रौ + अनः \rightarrow र् + आव् + अनः \rightarrow रावनः \)।
इसके बाद 'णत्व विधान' के नियम (अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि) के अनुसार, शब्द में 'र्' होने के कारण 'न' का 'ण' हो जाता है, जिससे 'रावनः' से 'रावणः' बनता है।
सन्धि-विच्छेद में मूल शब्द ('अनः') को ही लिया जाता है, 'ण' में परिवर्तन तो बाद में होता है।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
अतः, सही सन्धि-विच्छेद 'रौ + अनः' है।
Quick Tip: सन्धि-विच्छेद करते समय पहले मुख्य संधि नियम (यहाँ अयादि) को पहचानें। 'णत्व विधान' जैसे नियम संधि के बाद लागू होते हैं, इसलिए विच्छेद में मूल 'न' का ही प्रयोग करना व्याकरण की दृष्टि से अधिक शुद्ध है।
'ऋ + अ' के मेल से कौन-सा नया वर्ण बनेगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न स्वर संधि के एक विशिष्ट नियम से संबंधित है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
यहाँ यण् संधि का नियम लागू होगा। सूत्र "इको यणचि" के अनुसार, यदि इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ॠ के बाद कोई असमान स्वर आता है, तो वे क्रमशः य्, व्, र् में बदल जाते हैं।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
यहाँ 'ऋ' के बाद असमान स्वर 'अ' आया है।
नियम के अनुसार, 'ऋ' का 'र्' (आधा र) हो जाएगा।
तो, \( ऋ + अ \rightarrow र् + अ \)।
'र्' और 'अ' मिलकर पूरा व्यंजन 'र' बनाते हैं।
उदाहरण: पितृ + आदेशः → पित् + र् + आदेशः → पित्रादेशः।
'अर्' और 'आर्' क्रमशः गुण और वृद्धि संधि में बनते हैं जब 'अ/आ' पहले आता है (जैसे देव+ऋषि=देवर्षि)।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
अतः, 'ऋ + अ' के मेल से 'र' वर्ण बनेगा।
Quick Tip: यण् संधि को अच्छी तरह समझें। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यण् संधि में इ/उ/ऋ का य्/व्/र् बनता है, जो बाद वाले स्वर के साथ मिलकर पूरा रूप लेता है।
'तस्य + इति' पद की संधि क्या होगी ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में दिए गए दो पदों का संधि-युक्त रूप बनाना है।
चरण 2: मुख्य सूत्र या दृष्टिकोण:
यहाँ गुण संधि का नियम लागू होगा। सूत्र "आद्गुणः" के अनुसार, यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'इ' या 'ई' आता है, तो दोनों मिलकर 'ए' बन जाते हैं।
चरण 3: विस्तृत व्याख्या:
प्रथम पद 'तस्य' का अंत 'अ' स्वर से हो रहा है।
द्वितीय पद 'इति' का आरंभ 'इ' स्वर से हो रहा है।
नियम के अनुसार: \( अ + इ \rightarrow ए \)।
तो, तस्य + इति → तस् + य् + (अ + इ) + ति → तस् + य् + ए + ति → तस्येति।
चरण 4: अंतिम उत्तर:
अतः, 'तस्य + इति' की संधि 'तस्येति' होगी।
Quick Tip: गुण संधि के तीन प्रमुख परिणाम याद रखें: अ/आ + इ/ई = ए; अ/आ + उ/ऊ = ओ; अ/आ + ऋ = अर्। ये संस्कृत में सबसे आम संधियों में से हैं।
किस पद में 'वि' उपसर्ग नहीं है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में उस शब्द को पहचानना है जिसमें 'वि' एक उपसर्ग (prefix) के रूप में प्रयुक्त नहीं हुआ है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
आइए प्रत्येक पद का विश्लेषण करें:
(A) विकासः = वि + कासः (यहाँ 'वि' उपसर्ग है)।
(B) वेदः: यह शब्द 'विद्' धातु (अर्थ - जानना) में 'घञ्' प्रत्यय लगाने से बना है। यहाँ 'वि' धातु का ही एक अभिन्न अंग है, यह अलग से लगाया गया उपसर्ग नहीं है।
(C) विनयः = वि + नयः (नी धातु से बना, यहाँ 'वि' उपसर्ग है)।
(D) व्यवहारः = वि + अव + हारः (यहाँ 'वि' और 'अव' दो उपसर्ग हैं)।
इस विश्लेषण से स्पष्ट है कि 'वेदः' शब्द में 'वि' उपसर्ग नहीं है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'वेदः' पद में 'वि' उपसर्ग नहीं है।
Quick Tip: उपसर्ग की पहचान करने के लिए, शब्द से उपसर्ग को हटाने के बाद बचे हुए हिस्से का सार्थक होना आवश्यक है। 'वेदः' से 'वि' हटाने पर 'दः' का कोई अर्थ नहीं निकलता, जिससे पता चलता है कि 'वि' उपसर्ग नहीं है।
'दुर्गमम्' पद में कौन-सा उपसर्ग है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'दुर्गमम्' पद में प्रयुक्त उपसर्ग को पहचानना है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'दुर्गमम्' शब्द का अर्थ है "जहाँ जाना कठिन हो"। यह दो भागों से मिलकर बना है:
उपसर्ग: दुर् (जिसका अर्थ होता है - बुरा, कठिन)
मूल शब्द: गमम् (अर्थ - जाना)
'दुस्' उपसर्ग का प्रयोग तब होता है जब आगे 'स्' या अघोष व्यंजन हो, लेकिन यहाँ 'ग' घोष व्यंजन है, इसलिए 'र्' वाला रूप 'दुर्' प्रयुक्त हुआ है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'दुर्गमम्' पद में 'दुर्' उपसर्ग है।
Quick Tip: 'दुर्' और 'दुस्' दोनों उपसर्ग 'बुरा' या 'कठिन' का अर्थ देते हैं। इनका प्रयोग आगे आने वाले व्यंजन के आधार पर होता है। यदि आगे घोष व्यंजन (ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, आदि) हो तो 'दुर्' का प्रयोग होता है।
कौन-सी भूमि पवित्र और ममतामयी है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'भारतमहिमा' पाठ पर आधारित है, जिसमें भारत की भूमि का गुणगान किया गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'भारतमहिमा' पाठ में भारत की भूमि को अत्यंत पवित्र (निर्मला), ममतामयी (वत्सला) और मातृभूमि कहा गया है। श्लोकों में यह वर्णन किया गया है कि देवता भी इस भूमि पर जन्म लेने के लिए तरसते हैं। यह भूमि अपने निवासियों का माँ की तरह पालन-पोषण करती है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, भारतभूमि पवित्र और ममतामयी है।
Quick Tip: पाठ्यक्रम के पाठों के केंद्रीय भाव और मुख्य संदेश को समझें। 'भारतमहिमा' पाठ का मुख्य उद्देश्य भारत की भूमि की महिमा का वर्णन करना है।
अयं निर्मला .... वहन्तो वसन्ति ।। श्लोकांश किस पाठ से उद्धृत है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में एक श्लोक का अंश देकर उसके पाठ का नाम पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
यह श्लोकांश "अयं निर्मला वत्सला मातृभूमिः..." का भाग है। यह एक आधुनिक श्लोक है जिसे भारतमहिमा पाठ में भारत की महिमा का वर्णन करने के लिए शामिल किया गया है। श्लोक का भाव है कि यह निर्मल और ममतामयी मातृभूमि भारत है, जहाँ विभिन्न धर्म और जाति के लोग एकता के भाव को धारण करते हुए निवास करते हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, यह श्लोकांश 'भारतमहिमा' पाठ से उद्धृत है।
Quick Tip: पाठों के आरंभिक और अंतिम श्लोकों पर विशेष ध्यान दें, क्योंकि वे अक्सर पाठ के सार को प्रस्तुत करते हैं और प्रश्न के रूप में पूछे जा सकते हैं।
देवगण क्या गाते हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'भारतमहिमा' पाठ में विष्णु पुराण से लिए गए श्लोक पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
पाठ में विष्णु पुराण का श्लोक है:
"गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।"
इसका अर्थ है, "देवगण निश्चय ही गीत गाते हैं (कि) वे लोग धन्य हैं जो भारत भूमि में जन्मे हैं।"
इस श्लोक से स्पष्ट है कि देवगण भारत की महिमा में गीत गाते हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, देवगण गीत गाते हैं।
Quick Tip: श्लोकों के शब्दों के सीधे अर्थ पर ध्यान दें। यहाँ 'गीतकानि' शब्द का सीधा अर्थ 'गीत' है, जो सही उत्तर है।
विदुरनीति के रचनाकार कौन हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'विदुरनीति' नामक ग्रंथ के रचनाकार का नाम पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'विदुरनीति' महाभारत महाकाव्य का एक अंश है। यह हस्तिनापुर के महामंत्री महात्मा विदुर द्वारा राजा धृतराष्ट्र को दिए गए उपदेशों का संग्रह है। इसमें राजनीति, सदाचार और व्यवहार-ज्ञान से संबंधित श्लोक हैं। चूँकि ये उपदेश विदुर द्वारा दिए गए थे, इसलिए उन्हें ही इसका रचनाकार या प्रणेता माना जाता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, विदुरनीति के रचनाकार विदुर हैं।
Quick Tip: प्रमुख नीति ग्रंथों जैसे चाणक्यनीति, विदुरनीति, और भर्तृहरि के नीतिशतक के रचनाकारों के नाम याद रखें।
काम, क्रोध और लोभ किसके द्वार हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'नीतिश्लोकाः' पाठ में विदुरनीति से लिए गए एक श्लोक पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
विदुरनीति (और श्रीमद्भगवद्गीता) में कहा गया है:
"त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥"
अर्थात्, "काम, क्रोध और लोभ - ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन द्वार हैं। इसलिए इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।"
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, काम, क्रोध और लोभ नरक के द्वार हैं।
Quick Tip: भगवद्गीता और विदुरनीति के प्रमुख उपदेशों को समझें। नरक के तीन द्वार का यह उपदेश बहुत ही प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण है।
'सुखावहा' क्या है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भी 'नीतिश्लोकाः' पाठ के एक श्लोक पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
पाठ में एक श्लोक है:
"विद्यैका परमा तृप्तिः, अहिंसैका सुखावहा।"
इसका अर्थ है: "विद्या ही परम संतोष देने वाली है, और अहिंसा ही एकमात्र सुख देने वाली (सुखावहा) है।"
इस श्लोक के अनुसार, सुख प्रदान करने वाली वस्तु अहिंसा है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'सुखावहा' अहिंसा है।
Quick Tip: श्लोकों में दिए गए विशेषणों और वे किस संज्ञा के लिए प्रयुक्त हुए हैं, इस पर ध्यान दें। यहाँ 'सुखावहा' विशेषण 'अहिंसा' के लिए आया है।
शिक्षक दलित बालक को कहाँ ले गये ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'कर्मवीर कथा' पाठ से संबंधित है, जो रामप्रवेश राम के जीवन पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
कहानी के अनुसार, भीखनटोला गाँव में एक शिक्षक आते हैं। वे खेल में मग्न एक प्रतिभाशाली दलित बालक, रामप्रवेश राम को देखते हैं। उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर, शिक्षक उसे अपने साथ विद्यालय ले जाते हैं और उसे पढ़ाना शुरू करते हैं। यहीं से रामप्रवेश की शिक्षा और सफलता की यात्रा आरंभ होती है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, शिक्षक दलित बालक को विद्यालय ले गये।
Quick Tip: कथा-आधारित पाठों में कहानी के महत्वपूर्ण मोड़ों (turning points) को याद रखें। शिक्षक का रामप्रवेश को विद्यालय ले जाना उसकी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
रामप्रवेश राम ने किस परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'कर्मवीर कथा' पाठ से है और रामप्रवेश राम की शैक्षणिक उपलब्धियों के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'कर्मवीर कथा' के अनुसार, रामप्रवेश राम ने अपने कठिन परिश्रम और लगन के बल पर महाविद्यालय की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने स्नातक (Graduation) की परीक्षा में अपने विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया, जिससे उनके महाविद्यालय का और उनका स्वयं का सम्मान बढ़ा।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, रामप्रवेश राम ने स्नातक की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
Quick Tip: 'कर्मवीर कथा' जैसे प्रेरक पाठों में नायक की प्रमुख उपलब्धियों को क्रम से याद रखें, जैसे कि विद्यालय में प्रथम आना, महाविद्यालय में प्रथम आना, और अंत में केंद्रीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफलता प्राप्त करना।
दलित बालक का नाम क्या था ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'कर्मवीर कथा' पाठ के मुख्य पात्र के नाम के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'कर्मवीर कथा' का नायक, जो बिहार के भीखनटोला गाँव का एक दलित बालक था, उसका नाम रामप्रवेश राम था। उसने अपनी शिक्षा और परिश्रम से समाज में उच्च स्थान प्राप्त किया।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, दलित बालक का नाम रामप्रवेश राम था।
Quick Tip: कथा-आधारित पाठों में मुख्य पात्रों के नाम और उनके गाँव या स्थान के नाम को अच्छी तरह से याद रखें, क्योंकि ये सीधे तथ्यात्मक प्रश्न होते हैं।
मैत्रेयी कौन थी ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भारतीय दर्शन और उपनिषद् साहित्य के एक प्रमुख चरित्र के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
मैत्रेयी बृहदारण्यक उपनिषद् में वर्णित एक विदुषी (विद्वान महिला) थीं। वे महान ऋषि याज्ञवल्क्य की पत्नी थीं। याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी के बीच का संवाद आत्म-तत्त्व और ब्रह्म-ज्ञान पर आधारित है और यह भारतीय दर्शन के सबसे महत्वपूर्ण संवादों में से एक माना जाता है। मधुराविजयम् की लेखिका गंगादेवी थीं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, मैत्रेयी याज्ञवल्क्य की पत्नी थीं।
Quick Tip: उपनिषदों के प्रमुख पात्रों, जैसे याज्ञवल्क्य, मैत्रेयी, गार्गी, नचिकेता और सत्यकाम जाबाल, के बारे में जानकारी रखें। उनकी कहानियाँ और संवाद अक्सर पूछे जाते हैं।
'राधेयः' में कौन-सा प्रत्यय होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'राधेयः' शब्द में प्रयुक्त तद्धित प्रत्यय की पहचान करनी है। 'राधेयः' का अर्थ है 'राधा का पुत्र' (कर्ण)।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'राधेयः' शब्द 'राधा' शब्द से बना है और यह संतान या वंशज के अर्थ में है।
व्याकरण के अनुसार, 'राधा' जैसे स्त्रीलिंग शब्दों से संतान के अर्थ में 'ढक्' प्रत्यय लगता है ('स्त्रीभ्यो ढक्' सूत्र), जिससे 'एय' जुड़ता है: राधा + ढक् → राधेयः।
हालांकि, दिए गए विकल्पों में 'ढक्' नहीं है। 'अण्' प्रत्यय भी संतान के अर्थ में प्रयोग होता है ('तस्यापत्यम्' सूत्र) और यह आदि स्वर की वृद्धि करता है। यद्यपि 'राधेयः' के लिए 'ढक्' अधिक सटीक है, पर विकल्पों के अभाव में, संतान अर्थ वाला निकटतम और सामान्य प्रत्यय अण् है, जिसे कई बार इस संदर्भ में उत्तर मान लिया जाता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
दिए गए विकल्पों के आधार पर, सबसे उपयुक्त उत्तर 'अण्' प्रत्यय है।
Quick Tip: अपत्य (संतान) अर्थ वाले प्रमुख तद्धित प्रत्ययों जैसे अण्, ढक्, इञ्, यत् के प्रयोग को समझें। ध्यान दें कि कभी-कभी परीक्षाओं में विकल्प पूरी तरह से सटीक नहीं होते हैं, ऐसे में सबसे निकटतम सही विकल्प चुनना होता है।
'वद' किस लकार का रूप है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'वद' क्रियापद के लकार की पहचान करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'वद' पद 'वद्' धातु (अर्थ - बोलना) से बना है। यह लोट् लकार (आज्ञार्थक), मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप है।
लोट् लकार में 'वद्' धातु का रूप:
मध्यम पुरुष: वद (तुम बोलो), वदतम् (तुम दोनों बोलो), वदत (तुम सब बोलो)।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'वद' लोट् लकार का रूप है।
Quick Tip: लोट् लकार के मध्यम पुरुष एकवचन में प्रायः कोई प्रत्यय नहीं लगता और केवल धातु का मूल रूप (या परिवर्तित रूप जैसे गम् का गच्छ) ही होता है। यह इसे पहचानने का एक सरल तरीका है।
भारतीय संस्कृति में कितने संस्कार होते हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न भारतीय संस्कृति के प्रमुख संस्कारों की संख्या के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति में व्यक्ति के जीवन को परिष्कृत करने के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाने वाले प्रमुख अनुष्ठानों को संस्कार कहा जाता है। इन संस्कारों की कुल संख्या सोलह (षोडश) मानी गई है। इनमें गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, विवाह और अंत्येष्टि आदि शामिल हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कार होते हैं।
Quick Tip: 'षोडश संस्कार' यह एक बहुत ही सामान्य और महत्वपूर्ण वाक्यांश है। इसकी संख्या (16) और कुछ प्रमुख संस्कारों (जैसे उपनयन, विवाह) के नाम याद रखें।
जन्म से पूर्व कितने संस्कार होते हैं ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में जन्म से पहले किए जाने वाले संस्कारों की संख्या पूछी गई है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
षोडश संस्कारों में से, तीन संस्कार जन्म से पूर्व (प्रसव-पूर्व) किए जाते हैं। ये हैं:
गर्भाधान: गर्भाधारण के समय किया जाने वाला संस्कार।
पुंसवन: गर्भ के तीसरे महीने में पुत्र प्राप्ति की कामना से किया जाने वाला संस्कार।
सीमन्तोन्नयन: गर्भ के छठे या आठवें महीने में गर्भवती स्त्री को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए किया जाने वाला संस्कार।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, जन्म से पूर्व 3 संस्कार होते हैं।
Quick Tip: षोडश संस्कारों को जीवन के विभिन्न चरणों के अनुसार वर्गीकृत करके याद करें: जन्म-पूर्व (3), शैशवावस्था (6), शिक्षा-काल (4), और गृहस्थ/अंतिम (3)।
पथिक किसके द्वारा पकड़कर खाया गया ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'व्याघ्रपथिककथा' पाठ की घटना पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'व्याघ्रपथिककथा' में, एक बूढ़ा बाघ सोने के कंगन का लालच देकर एक पथिक को फँसाता है। जब पथिक कीचड़ में फँस जाता है, तो बाघ उसे पकड़ लेता है और खा जाता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, पथिक बाघ द्वारा पकड़कर खाया गया।
Quick Tip: कथाओं के शीर्षक को ही ध्यान से पढ़ें। 'व्याघ्रपथिककथा' का अर्थ ही है 'बाघ और पथिक की कहानी', जिससे मुख्य पात्रों का पता चल जाता है।
'व्याघ्रपथिक कथा' पाठ में अविश्वासी पात्र किसे कहा गया है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'व्याघ्रपथिक कथा' के एक पात्र की विशेषता के बारे में पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
इस कथा में, बाघ दुष्ट और अविश्वसनीय है (जिस पर विश्वास नहीं करना चाहिए)। लेकिन 'अविश्वासी पात्र' शब्द का प्रयोग कथा में उस पात्र के लिए किया गया है जो अविश्वास की स्थिति में होकर भी लालच के कारण विश्वास कर लेता है। पथिक पहले बाघ पर अविश्वास करता है ("हिंसक पशु पर कैसे विश्वास करूँ?"), लेकिन सोने के कंगन के लोभ में आकर वह अपनी शंकाओं को दरकिनार कर देता है और विश्वास कर लेता है, जिसका परिणाम उसकी मृत्यु होती है। कहानी का उपदेश पथिक जैसे पात्रों के लिए ही है कि अविश्वासनीय पर विश्वास न करें। इसलिए, कथा के संदर्भ में 'अविश्वासी पात्र' पथिक को कहा गया है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, अविश्वासी पात्र पथिक को कहा गया है।
Quick Tip: कहानी के नैतिक उपदेश को समझें। यह कहानी लालच के कारण सही निर्णय न ले पाने वाले व्यक्ति (पथिक) पर केंद्रित है, इसलिए कई विशेषण उसी के संदर्भ में प्रयुक्त होते हैं।
बाघ कैसा था ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'व्याघ्रपथिककथा' में वर्णित बाघ की विशेषताओं के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
कथा में बाघ स्वयं को इन रूपों में प्रस्तुत करता है और उसके कार्य भी इन्हें सिद्ध करते हैं:
बूढ़ा (A): वह बूढ़ा था, इसलिए शिकार करने में असमर्थ था और छल का सहारा ले रहा था।
दुराचारी (B): उसने स्वयं स्वीकार किया कि वह युवावस्था में बहुत दुराचारी था, जिसने कई गायों और मनुष्यों को मारा था।
वंशहीन (C): उसने कहा कि उसके पुत्र और पत्नी मर चुके हैं, इसलिए वह वंशहीन है और अब दान-पुण्य करना चाहता है।
चूंकि ये सभी विशेषताएँ बाघ पर लागू होती हैं, इसलिए सही उत्तर 'इनमें से सभी' है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सही विकल्प (D) इनमें से सभी है।
Quick Tip: जब "इनमें से सभी" या "All of the above" एक विकल्प हो, तो अन्य विकल्पों को ध्यान से जांचें। यदि एक से अधिक विकल्प सही लगते हैं, तो यह उत्तर होने की संभावना बढ़ जाती है।
सीता को 'विशालाक्षि' किसने संबोधित किया है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न 'मन्दाकिनी वर्णनम्' पाठ से है और एक संबोधन के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
वाल्मीकि रामायण के 'मन्दाकिनी वर्णनम्' प्रसंग में, भगवान राम चित्रकूट में मन्दाकिनी नदी की सुंदरता का वर्णन अपनी पत्नी सीता से कर रहे हैं। इस वर्णन के दौरान वे सीता को प्रेमपूर्वक 'विशालाक्षि' (हे विशाल नेत्रों वाली) कहकर संबोधित करते हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, सीता को 'विशालाक्षि' राम ने संबोधित किया है।
Quick Tip: साहित्यिक पाठों में पात्रों के बीच के संबोधनों को याद रखें। ये उनके आपसी संबंधों और भावनाओं को दर्शाते हैं और अक्सर परीक्षा में पूछे जाते हैं।
स्वामी दयानन्द के बचपन का नाम क्या था ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न समाज सुधारक स्वामी दयानन्द सरस्वती के प्रारंभिक जीवन से संबंधित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। संन्यास लेने से पहले और स्वामी दयानन्द के नाम से प्रसिद्ध होने से पूर्व, उनके बचपन का नाम मूलशंकर तिवारी था।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, स्वामी दयानन्द के बचपन का नाम मूलशंकर था।
Quick Tip: प्रमुख ऐतिहासिक और धार्मिक हस्तियों के मूल नाम और उनके द्वारा प्राप्त किए गए प्रसिद्ध नामों को जानना महत्वपूर्ण है।
महर्षि वाल्मीकि ने 'मन्दाकिनीवर्णनम्' पाठ में प्रकृति का वर्णन किस छन्द में किया है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में प्रयुक्त छंद के बारे में है, विशेष रूप से 'मन्दाकिनीवर्णनम्' प्रसंग में।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
महर्षि वाल्मीकि ने सम्पूर्ण रामायण की रचना मुख्य रूप से अनुष्टुप् छन्द में की है। इस छन्द को 'श्लोक' भी कहा जाता है। 'मन्दाकिनीवर्णनम्' रामायण का ही एक अंश है, इसलिए इसमें भी प्रकृति का वर्णन अनुष्टुप् छन्द में ही किया गया है। अनुष्टुप् एक सरल और गेय छन्द है, जिसमें चार पाद होते हैं और प्रत्येक पाद में आठ अक्षर होते हैं।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, महर्षि वाल्मीकि ने वर्णन अनुष्टुप् छन्द में किया है।
Quick Tip: संस्कृत के प्रमुख काव्यों और उनके प्रमुख छंदों को याद रखें। जैसे रामायण के लिए अनुष्टुप्, कालिदास के मेघदूत के लिए मन्दाक्रान्ता आदि। यह साहित्य संबंधी प्रश्नों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
'आदाय' अव्यय में कौन-सा उपसर्ग है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'आदाय' शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग की पहचान करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'आदाय' एक अव्यय है जिसका अर्थ है 'लेकर'। यह शब्द इस प्रकार बना है:
उपसर्ग + धातु + प्रत्यय
आङ् + दा + ल्यप्
यहाँ आङ् उपसर्ग है (जिसका केवल 'आ' प्रयोग में आता है), 'दा' धातु है और 'ल्यप्' प्रत्यय है। जब धातु से पहले उपसर्ग लगता है, तो 'क्त्वा' प्रत्यय के स्थान पर 'ल्यप्' प्रत्यय का प्रयोग होता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'आदाय' में 'आङ्' उपसर्ग है।
Quick Tip: संस्कृत में 22 उपसर्ग हैं। 'आङ्' उपसर्ग का प्रयोग में केवल 'आ' शेष रहता है। व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध उपसर्ग 'आङ्' ही है।
'बहिः' के योग में किस विभक्ति का प्रयोग होता है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न उपपद विभक्ति से संबंधित है, जिसमें कुछ अव्ययों के साथ एक निश्चित विभक्ति का प्रयोग होता है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
व्याकरण के नियम के अनुसार, 'बहिः' (बाहर) अव्यय के योग में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है। यह किसी स्थान से बाहर होने का भाव प्रकट करता है, जो अपादान कारक (अलग होने का भाव) से मिलता-जुलता है।
उदाहरण: ग्रामात् बहिः उद्यानम् अस्ति। (गाँव से बाहर बगीचा है।)
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'बहिः' के योग में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
Quick Tip: प्रमुख उपपद विभक्तियों को याद कर लें, जैसे - 'सह' के साथ तृतीया, 'नमः' के साथ चतुर्थी, 'प्रति' के साथ द्वितीया, और 'बहिः' के साथ पञ्चमी।
'सम्प्रदान कारक' में किस विभक्ति का प्रयोग किया जाता है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न कारक और विभक्ति के सीधे संबंध पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
संस्कृत व्याकरण का fundamental नियम है "चतुर्थी सम्प्रदाने"। इसका अर्थ है कि सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है। सम्प्रदान कारक वह होता है जिसके लिए कोई क्रिया की जाती है या जिसे कुछ दिया जाता है।
उदाहरण: बालकः मोदकाय रोदिति। (बालक लड्डू के लिए रोता है।) यहाँ 'मोदकाय' में चतुर्थी विभक्ति है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'सम्प्रदान कारक' में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
Quick Tip: सभी कारकों और उनकी संगत विभक्तियों को क्रम से याद करें: कर्ता-प्रथमा, कर्म-द्वितीया, करण-तृतीया, सम्प्रदान-चतुर्थी, अपादान-पञ्चमी, सम्बन्ध-षष्ठी, अधिकरण-सप्तमी।
'भवत्' शब्द का सप्तमी विभक्ति, बहुवचन का रूप कौन-सा है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'भवत्' (आप) शब्द का सप्तमी विभक्ति, बहुवचन का रूप पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'भवत्' शब्द के सप्तमी विभक्ति के रूप इस प्रकार हैं:
एकवचन: भवति
द्विवचन: भवतोः
बहुवचन: भवत्सु
'-सु' प्रत्यय सप्तमी विभक्ति, बहुवचन का एक सामान्य चिह्न है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'भवत्' शब्द का सप्तमी विभक्ति, बहुवचन का रूप 'भवत्सु' है।
Quick Tip: महत्वपूर्ण सर्वनामों जैसे अस्मद्, युष्मद्, तत्, किम् और भवत् के शब्दरूपों को अच्छी तरह याद कर लें। सप्तमी बहुवचन में अक्सर '-सु' या '-षु' का प्रयोग होता है।
किस समास का पहला पद अव्यय होता है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न समास के भेदों की परिभाषा पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
अव्ययीभाव समास की यह परिभाषा ही है कि इसका पहला पद (पूर्वपद) प्रधान होता है और वह एक अव्यय होता है। इस समास से बना समस्त पद भी अव्यय बन जाता है।
उदाहरण: यथाशक्ति (शक्ति के अनुसार)। यहाँ 'यथा' एक अव्यय है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, अव्ययीभाव समास का पहला पद अव्यय होता है।
Quick Tip: सभी समासों की मुख्य पहचान याद रखें: अव्ययीभाव (पूर्वपद अव्यय), तत्पुरुष (उत्तरपद प्रधान), द्वन्द्व (दोनों पद प्रधान), बहुव्रीहि (अन्य पद प्रधान)।
विग्रह करने में 'च' का प्रयोग किस समास में होता है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न समास के विग्रह (dissolution) की प्रक्रिया पर आधारित है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
द्वन्द्व समास में दो या दो से अधिक पद होते हैं, और सभी प्रधान होते हैं। जब इस समास का विग्रह किया जाता है, तो प्रत्येक पद के बाद 'च' (और) का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण: रामलक्ष्मणौ का विग्रह होगा - रामः च लक्ष्मणः च।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, विग्रह करने में 'च' का प्रयोग द्वन्द्व समास में होता है।
Quick Tip: 'चार्थे द्वन्द्वः' सूत्र को याद रखें, जिसका अर्थ ही है कि 'च' के अर्थ में द्वन्द्व समास होता है।
'विशेषणं विशेष्येण बहुलम्' सूत्र का उदाहरण क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
यह प्रश्न कर्मधारय समास के एक प्रमुख सूत्र के उदाहरण के बारे में है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
सूत्र "विशेषणं विशेष्येण बहुलम्" का अर्थ है कि विशेषण (adjective) का विशेष्य (noun) के साथ बहुलता से समास होता है। यह कर्मधारय समास को परिभाषित करता है।
आइए विकल्पों का विश्लेषण करें:
(A) नीलोत्पलम्: इसका विग्रह है 'नीलम् च तत् उत्पलम्' (नीला है जो कमल)। यहाँ 'नीलम्' विशेषण है और 'उत्पलम्' विशेष्य है। यह इस सूत्र का सटीक उदाहरण है।
(B) गजराजः: 'गजानां राजा' (हाथियों का राजा) - यह षष्ठी तत्पुरुष है।
(C) पशुपतिः: 'पशूनां पतिः' (पशुओं का स्वामी) - यह षष्ठी तत्पुरुष है।
(D) दम्पती: 'जाया च पतिः च' (पत्नी और पति) - यह द्वन्द्व समास है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'नीलोत्पलम्' इस सूत्र का सही उदाहरण है।
Quick Tip: कर्मधारय समास की पहचान विशेषण-विशेष्य (जैसे कृष्णसर्पः - काला साँप) या उपमान-उपमेय (जैसे घनश्यामः - बादल जैसा श्याम) के संबंध से होती है।
'मुनि' शब्द पञ्चमी विभक्ति, एकवचन में क्या होगा ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'मुनि' (इकारान्त पुल्लिंग) शब्द का पञ्चमी विभक्ति, एकवचन का रूप पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'मुनि' शब्द के एकवचन के रूप इस प्रकार हैं:
प्रथमा: मुनिः
द्वितीया: मुनिम्
तृतीया: मुनिना
चतुर्थी: मुनये
पञ्चमी: मुनेः
षष्ठी: मुनेः
सप्तमी: मुनौ
इस तालिका से स्पष्ट है कि पञ्चमी एकवचन का रूप 'मुनेः' होता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'मुनि' शब्द का पञ्चमी विभक्ति, एकवचन रूप 'मुनेः' है।
Quick Tip: 'मुनि', 'कवि', 'हरि' जैसे इकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप एक समान चलते हैं। किसी एक के रूप याद करने से बाकी के भी याद हो जाते हैं। ध्यान दें कि पञ्चमी और षष्ठी एकवचन के रूप समान ('मुनेः') होते हैं।
'राजसु' में कौन-सी विभक्ति है ?
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'राजसु' पद की विभक्ति की पहचान करनी है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'राजसु' पद 'राजन्' (राजा) शब्द का रूप है। संस्कृत में, '-सु' या '-षु' में समाप्त होने वाले पद सामान्यतः सप्तमी विभक्ति, बहुवचन के होते हैं। 'राजसु' का अर्थ है 'राजाओं में' या 'राजाओं पर'।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'राजसु' में सप्तमी विभक्ति है।
Quick Tip: शब्द रूपों में सप्तमी बहुवचन का प्रत्यय '-सु' या '-षु' एक बहुत ही विश्वसनीय पहचान चिह्न है। इसे देखते ही आप विभक्ति का अनुमान लगा सकते हैं।
'गंगायाम्' इस पद का मूल है
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चरण 1: अवधारणा को समझना:
प्रश्न में 'गंगायाम्' पद का मूल शब्द (प्रातिपदिक) पूछा गया है।
चरण 2: विस्तृत व्याख्या:
'गंगायाम्' एक विभक्ति-युक्त पद है। यह आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द का रूप है।
मूल शब्द (प्रातिपदिक): गंगा
विभक्ति: सप्तमी
वचन: एकवचन
'गंगा' शब्द के सप्तमी एकवचन में 'गंगायाम्' रूप बनता है (जैसे लता का लतायाम्)। अन्य विकल्प या तो गलत हैं या 'गंगा' शब्द के ही अन्य विभक्तियों के रूप हैं (जैसे गंगाम् - द्वितीया एकवचन)।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, 'गंगायाम्' पद का मूल 'गंगा' है।
Quick Tip: किसी भी विभक्ति-युक्त पद का मूल शब्द जानने के लिए, उसमें से विभक्ति प्रत्यय को हटा दें। 'गंगायाम्' से '-याम्' हटाने पर मूल शब्द 'गंगा' प्राप्त होता है।
अधोलिखित गद्यांशं ध्यानपूर्वकं पठित्वा तदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि निर्देशानुसारं दत्त ।
किं नाम संस्कृतिः ? चेतसः संस्करणं संस्कृतिः इति अभिधीयते । सा नाम संस्कृतिः या मनसः मलं अपनयति, चेतसः चाञ्चल्यं दूरीकरोति, आत्मनश्च अज्ञानावरणम् अपसारयति । एषा लोकस्य राष्ट्रस्य संसृतेश्च उपकरोति । अस्मिन् विश्वे सा एव संस्कृतिः उपादेया वर्तते यया सर्वेषां स्वान्तेषु विश्वहितं विश्वबन्धुत्वं च आदर्शत्वेन उररीक्रियते ।
कस्य संस्करणं संस्कृतिः ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि किसका संस्करण (परिष्कार) संस्कृति है।
चरण 2: गद्यांश में उत्तर खोजना:
गद्यांश की दूसरी पंक्ति है: "चेतसः संस्करणं संस्कृतिः इति अभिधीयते ।"
इस पंक्ति से स्पष्ट है कि चेतना (मन) का संस्करण ही संस्कृति है।
चरण 3: एक पद में उत्तर:
अतः, एक पद में उत्तर चेतसः है।
Quick Tip: एक पद वाले प्रश्नों के लिए, प्रश्न के मुख्य शब्दों (जैसे यहाँ 'संस्करणं') को गद्यांश में ढूंढें। उत्तर अक्सर उसी वाक्य में मिल जाता है।
का मनसः मलम् अपसारयति ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि मन के मैल को कौन दूर करता है।
चरण 2: गद्यांश में उत्तर खोजना:
गद्यांश की तीसरी पंक्ति है: "सा नाम संस्कृतिः या मनसः मलं अपनयति..."
इस पंक्ति से स्पष्ट है कि संस्कृति ही मन के मैल को दूर करती है।
चरण 3: एक पद में उत्तर:
अतः, एक पद में उत्तर संस्कृतिः है।
Quick Tip: प्रश्नवाचक शब्द ('का' - कौन) के स्थान पर गद्यांश से उचित संज्ञा शब्द को पहचानकर उत्तर दें।
संस्कृतिः केषाम् उपकरोति ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि संस्कृति किसका उपकार करती है।
चरण 2: गद्यांश में उत्तर खोजना:
गद्यांश की पंक्ति है: "एषा लोकस्य राष्ट्रस्य संसृतेश्च उपकरोति ।"
यहाँ 'एषा' संस्कृति के लिए आया है।
चरण 3: पूर्ण वाक्य में उत्तर:
अतः, पूर्ण वाक्य में उत्तर होगा: "संस्कृतिः लोकस्य, राष्ट्रस्य, संसृतेश्च उपकरोति ।"
Quick Tip: पूर्ण वाक्य वाले प्रश्नों के लिए, गद्यांश की संबंधित पंक्ति को ज्यों का त्यों लिखें या प्रश्न के शब्दों को मिलाकर एक व्याकरण की दृष्टि से सही वाक्य बनाएं।
अस्मिन् विश्वे का संस्कृतिः उपादेया ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि इस विश्व में कौन सी संस्कृति उपादेय (स्वीकार करने योग्य) है।
चरण 2: गद्यांश में उत्तर खोजना:
गद्यांश की अंतिम पंक्ति है: "अस्मिन् विश्वे सा एव संस्कृतिः उपादेया वर्तते यया सर्वेषां स्वान्तेषु विश्वहितं विश्वबन्धुत्वं च आदर्शत्वेन उररीक्रियते ।"
चरण 3: पूर्ण वाक्य में उत्तर:
अतः, पूर्ण वाक्य में उत्तर गद्यांश की अंतिम पंक्ति ही होगी: "अस्मिन् विश्वे सा संस्कृतिः उपादेया यया सर्वेषां स्वान्तेषु विश्वहितं विश्वबन्धुत्वं च आदर्शत्वेन उररीक्रियते ।"
Quick Tip: विशेषण संबंधी प्रश्नों (जैसे 'का संस्कृतिः' - कैसी संस्कृति) के उत्तर के लिए गद्यांश में 'यया', 'या', 'यत्' जैसे शब्दों से शुरू होने वाले व्याख्यात्मक वाक्यांशों पर ध्यान दें।
अस्य गद्यांशस्य एकं समुचितं शीर्षकं लिखत ।
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चरण 1: गद्यांश का केंद्रीय भाव समझना:
पूरा गद्यांश 'संस्कृति' की परिभाषा, उसके कार्यों और उसके महत्व पर केंद्रित है।
चरण 2: उपयुक्त शीर्षक चुनना:
गद्यांश का मुख्य विषय 'संस्कृति' है। इसलिए, सबसे सरल और उपयुक्त शीर्षक "संस्कृतिः" होगा। एक अन्य उपयुक्त शीर्षक "संस्कृतेः महत्त्वम्" (संस्कृति का महत्व) भी हो सकता है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, एक समुचित शीर्षक संस्कृतिः है।
Quick Tip: शीर्षक लिखते समय, ऐसा शब्द या वाक्यांश चुनें जो पूरे गद्यांश के सार को दर्शाता हो। अक्सर, जो शब्द गद्यांश में बार-बार आता है, वह एक अच्छा शीर्षक होता है।
अधोलिखित गद्यांशं ध्यानपूर्वकं पठित्वा तदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि निर्देशानुसारं दत्त ।
रामायणं मम प्रियपुस्तकम् । भगवतो मर्यादापुरुषोत्तमस्य श्रीरामचन्द्रस्य पावनं चरितं रामायणे वर्णितम् अस्ति । अस्य लेखकः महर्षिः वाल्मीकिः आसीत् । तस्य रचना 'आदिकाव्यम्' इति विदुषां मतम् । अत एव वाल्मीकिः आदिकविः आसीत् । रामायणम् अनुष्टुप्-छन्दसि लिखितम् । अस्मिन् श्लोकसंख्या चतुर्विंशतिसहस्रम् वर्तते । अस्मात् कारणात् रामायणं महाकाव्यं 'चतुर्विंशतिसाहस्री-संहिता' इत्युच्यते विद्वद्भिः ।
मम प्रियपुस्तकं किम् ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि मेरा प्रिय पुस्तक कौन सा है।
चरण 2: गद्यांश में उत्तर खोजना:
गद्यांश की पहली ही पंक्ति है: "रामायणं मम प्रियपुस्तकम् ।"
चरण 3: एक पद में उत्तर:
अतः, एक पद में उत्तर रामायणम् है।
Quick Tip: गद्यांश के पहले वाक्य पर हमेशा विशेष ध्यान दें, क्योंकि यह अक्सर गद्यांश का विषय प्रस्तुत करता है और कई प्रश्नों का उत्तर वहीं मिल सकता है।
आदिकविः कः आसीत् ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि आदिकवि कौन थे।
चरण 2: गद्यांश में उत्तर खोजना:
गद्यांश की पंक्ति है: "अत एव वाल्मीकिः आदिकविः आसीत् ।"
चरण 3: एक पद में उत्तर:
अतः, एक पद में उत्तर वाल्मीकिः है।
Quick Tip: प्रश्न के मुख्य शब्द ('आदिकविः') को गद्यांश में ढूंढें। उत्तर सीधे उसी वाक्य में दिया गया है।
रामायणे किं वर्णितम् अस्ति ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि रामायण में क्या वर्णित है।
चरण 2: गद्यांश में उत्तर खोजना:
गद्यांश की दूसरी पंक्ति है: "भगवतो मर्यादापुरुषोत्तमस्य श्रीरामचन्द्रस्य पावनं चरितं रामायणे वर्णितम् अस्ति ।"
चरण 3: पूर्ण वाक्य में उत्तर:
अतः, पूर्ण वाक्य में उत्तर होगा: "रामायणे भगवतो मर्यादापुरुषोत्तमस्य श्रीरामचन्द्रस्य पावनं चरितं वर्णितम् अस्ति ।"
Quick Tip: पूर्ण वाक्य वाले प्रश्नों के लिए, सुनिश्चित करें कि आपका उत्तर व्याकरण की दृष्टि से पूर्ण और सही है, जैसा कि गद्यांश में दिया गया है।
विद्वद्भिः रामायणं किम् उच्यते ?
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चरण 1: प्रश्न को समझना:
प्रश्न में पूछा गया है कि विद्वानों द्वारा रामायण को क्या कहा जाता है।
चरण 2: गद्यांश में उत्तर खोजना:
गद्यांश की अंतिम पंक्ति है: "...रामायणं महाकाव्यं 'चतुर्विंशतिसाहस्री-संहिता' इत्युच्यते विद्वद्भिः ।"
चरण 3: पूर्ण वाक्य में उत्तर:
अतः, पूर्ण वाक्य में उत्तर होगा: "विद्वद्भिः रामायणं 'चतुर्विंशतिसाहस्री-संहिता' इत्युच्यते ।"
Quick Tip: ध्यान दें कि रामायण के दो नाम दिए गए हैं - 'आदिकाव्यम्' और 'चतुर्विंशतिसाहस्री-संहिता'। प्रश्न को ध्यान से पढ़ें कि किसके द्वारा कहा गया नाम पूछा जा रहा है।
अस्य गद्यांशस्य एकं समुचितं शीर्षकं लिखत ।
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चरण 1: गद्यांश का केंद्रीय भाव समझना:
यह पूरा गद्यांश रामायण, उसके लेखक, उसकी विषय-वस्तु और उसकी विशेषताओं का वर्णन करता है।
चरण 2: उपयुक्त शीर्षक चुनना:
गद्यांश का मुख्य विषय 'रामायण' है। अतः, सबसे उपयुक्त शीर्षक "रामायणम्" होगा। "आदिकाव्यं रामायणम्" भी एक अच्छा विकल्प है।
चरण 3: अंतिम उत्तर:
अतः, एक समुचित शीर्षक रामायणम् है।
Quick Tip: शीर्षक गद्यांश के मुख्य विषय को प्रतिबिंबित करना चाहिए। यहाँ, पूरा गद्यांश एक ही ग्रंथ - रामायण - के इर्द-गिर्द घूमता है।
अपने उत्तम परीक्षाफल का विवरण देते हुए पिताजी को संस्कृत में पत्र लिखें ।
दिनांकः XX.XX.XXXX पूज्य पितृचरणाः,
सादरं प्रणामाः।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। अद्यैव मम वार्षिकपरीक्षायाः परिणामः प्रकाशितः। अहं स्वकक्षायां प्रथमं स्थानं प्राप्तवान् अस्मि इति ज्ञापयितुं अतीव प्रसन्नोऽस्मि। मया गणित-विषये पञ्चनवतिः (95), विज्ञाने द्विनवतिः (92) तथा संस्कृते षण्णवतिः (96) अङ्काः लब्धाः।
एतत् सर्वं भवताम् आशीर्वादेन गुरूणां मार्गदर्शनेन च सम्भवम् अभवत्। मातृचरणयोः मम प्रणामं कथयतु। भवतः पत्रस्य प्रतीक्षायां।
भवदीयः प्रियः पुत्रः,
(तव नाम)
कक्षा - दशमी
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Step 1: Understanding the Concept:
यह एक अनौपचारिक पत्र (Informal Letter) है, जो पुत्र द्वारा पिता को अपने परीक्षा परिणाम की सूचना देने के लिए लिखा गया है। इसमें उचित संबोधन, अभिवादन और समापन का प्रयोग करना आवश्यक है।
Step 3: Detailed Explanation:
पत्र के विभिन्न भाग इस प्रकार हैं:
स्थान और दिनांक: पत्र के ऊपरी दाएँ कोने में स्थान (जैसे - परीक्षाभवनात्) और दिनांक लिखा जाता है।
संबोधन: पिता के लिए आदरसूचक संबोधन 'पूज्य पितृचरणाः' या 'आदरणीय पितृमहोदयाः' का प्रयोग होता है।
अभिवादन: 'सादरं प्रणामाः' (सादर प्रणाम)।
मुख्य विषय-वस्तु:
कुशल-क्षेम से पत्र का आरम्भ करें: अत्र कुशलं तत्रास्तु। (यहाँ सब कुशल है, वहाँ भी हो)।
पत्र लिखने का कारण बताएँ: अद्यैव मम वार्षिकपरीक्षायाः परिणामः प्रकाशितः। (आज ही मेरी वार्षिक परीक्षा का परिणाम प्रकाशित हुआ है)।
परिणाम की जानकारी दें: अहं स्वकक्षायां प्रथमं स्थानं प्राप्तवान् अस्मि। (मैंने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है)।
कुछ विषयों में प्राप्त अंकों का उल्लेख करें: मया गणित-विषये पञ्चनवतिः... (मुझे गणित में 95... अंक मिले हैं)।
सफलता का श्रेय दें: एतत् सर्वं भवताम् आशीर्वादेन... (यह सब आपके आशीर्वाद से... संभव हुआ)।
समापन: माँ को प्रणाम कहें (मातृचरणयोः मम प्रणामं कथयतु।) और पत्र की प्रतीक्षा का उल्लेख करें।
अंतिम अभिवादन: 'भवदीयः प्रियः पुत्रः' (आपका प्रिय पुत्र) लिखकर अपना नाम और कक्षा लिखें।
Step 4: Final Answer:
ऊपर दिया गया पत्र का प्रारूप इस प्रश्न के लिए एक आदर्श उत्तर है।
Quick Tip: संस्कृत में पत्र लिखते समय विभक्ति और क्रिया के रूपों का विशेष ध्यान रखें। जैसे - 'मैंने प्राप्त किया' के लिए 'अहं प्राप्तवान् अस्मि' (पुल्लिंग) या 'अहं प्राप्तवती अस्मि' (स्त्रीलिंग) का प्रयोग करें।
विद्यालय में वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजन हेतु प्रधानाध्यापक को संस्कृत में आवेदन पत्र लिखें ।
श्रीमन्तः प्रधानाध्यापकमहोदयाः,
राजकीय-उच्च-विद्यालयः,
पटनानगरम्।
\textbf{विषयः - वृक्षारोपण-कार्यक्रमस्य आयोजनार्थं प्रार्थनापत्रम्।}
महाशय!,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् वयं दशमकक्षायाः छात्राः विद्यालयस्य प्राङ्गणे एकं वृक्षारोपण-कार्यक्रमम् आयोजयितुम् इच्छामः। पर्यावरणस्य रक्षणाय वृक्षाणाम् अत्यधिकं महत्त्वम् अस्ति। अनेन अस्माकं विद्यालयस्य परिसरः हरितः सुन्दरः च भविष्यति।
अतः श्रीमन्तः कृपया अस्मिन् कार्ये अस्माकं साहाय्यं कुर्वन्तु तथा च कार्यक्रमस्य आयोजनार्थम् अनुमतिं ददतु। एतदर्थं वयं सर्वे छात्राः भवतः सदा आभारी भविष्यामः।
सधन्यवादः।
\begin{flushleft} भवताम् आज्ञाकारिणः छात्राः
दशम-कक्षा
दिनांकः - XX.XX.XXXX
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Step 1: Understanding the Concept:
यह एक औपचारिक आवेदन पत्र (Formal Application) है, जो छात्रों द्वारा प्रधानाध्यापक को विद्यालय में वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति के लिए लिखा गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
आवेदन पत्र के विभिन्न भाग इस प्रकार हैं:
प्रेषिती का पता: पत्र के आरम्भ में बाईं ओर 'सेवायाम्' लिखकर प्रधानाध्यापक का पद, विद्यालय का नाम और स्थान लिखा जाता है।
विषय: स्पष्ट रूप से आवेदन का उद्देश्य लिखें, जैसे - वृक्षारोपण-कार्यक्रमस्य आयोजनार्थं प्रार्थनापत्रम्। (वृक्षारोपण कार्यक्रम के आयोजन के लिए प्रार्थना पत्र)।
संबोधन: 'महाशय!' या 'महोदय!' का प्रयोग करें।
मुख्य विषय-वस्तु:
विनम्रतापूर्वक निवेदन से शुरू करें: सविनयं निवेदनम् अस्ति यत्... (सविनय निवेदन है कि...)।
अपना परिचय और उद्देश्य बताएँ: वयं दशमकक्षायाः छात्राः... एकं वृक्षारोपण-कार्यक्रमम् आयोजयितुम् इच्छामः। (हम दसवीं कक्षा के छात्र... एक वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित करना चाहते हैं)।
कार्यक्रम का महत्व समझाएँ: पर्यावरणस्य रक्षणाय वृक्षाणाम् अत्यधिकं महत्त्वम् अस्ति। (पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षों का अत्यधिक महत्व है)।
अनुमति के लिए प्रार्थना करें: अतः श्रीमन्तः कृपया... अनुमतिं ददतु। (अतः श्रीमान कृपया... अनुमति दें)।
धन्यवाद ज्ञापन: 'सधन्यवादः' लिखें।
समापन: 'भवताम् आज्ञाकारिणः छात्राः' (आपके आज्ञाकारी छात्र) लिखकर कक्षा और दिनांक का उल्लेख करें।
Step 4: Final Answer:
उपरोक्त प्रारूप इस विषय पर आवेदन पत्र लिखने के लिए पूर्ण और सटीक है।
Quick Tip: औपचारिक पत्र में भाषा विनम्र और सीधी होनी चाहिए। 'इच्छामः' (हम चाहते हैं), 'करिष्यामः' (हम करेंगे) जैसे उत्तम पुरुष बहुवचन क्रियाओं का सही प्रयोग करें जब आप समूह की ओर से लिख रहे हों।
जन्मदिवस की बधाई देते हुए अपने अनुज को संस्कृत में पत्र लिखें ।
देहलीतः।
दिनांकः XX.XX.XXXX
प्रिय अनुज रमेश,
शुभाशिषः।
अत्र कुशलं तत्रास्तु। अद्य तव जन्मदिवसः अस्ति इति स्मृत्वा मम मनः अतीव प्रसन्नम् अस्ति। अस्मिन् शुभे अवसरे मम हार्दिकीः शुभकामनाः स्वीकुरु। ईश्वरं प्रार्थये यत् त्वं जीवने महतीं सफलतां प्राप्नुयाः, दीर्घायुः यशस्वी च भव।
आशासे त्वम् अध्ययनं मनसा करिष्यसि। पितृभ्यां मम प्रणामाञ्जलिः। पुनः एकवारं जन्मदिवसस्य कोटिशः शुभकामनाः।
तव अग्रजः,
सुरेशः
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Step 1: Understanding the Concept:
यह एक अनौपचारिक पत्र है, जो एक बड़े भाई द्वारा अपने छोटे भाई (अनुज) को उसके जन्मदिन पर बधाई देने के लिए लिखा गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
पत्र के विभिन्न भाग इस प्रकार हैं:
स्थान और दिनांक: पत्र के ऊपरी दाएँ कोने में।
संबोधन: छोटे भाई के लिए 'प्रिय अनुज' के साथ उसका नाम लिखें।
अभिवादन: छोटे भाई के लिए 'शुभाशिषः' (आशीर्वाद) या 'सस्नेहं नमः' (स्नेहपूर्वक नमस्कार) का प्रयोग करें।
मुख्य विषय-वस्तु:
कुशल-क्षेम से पत्र का आरम्भ करें: अत्र कुशलं तत्रास्तु।
बधाई दें: अद्य तव जन्मदिवसः अस्ति... मम हार्दिकीः शुभकामनाः स्वीकुरु। (आज तुम्हारा जन्मदिन है... मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करो)।
शुभकामनाएँ और आशीर्वाद दें: ईश्वरं प्रार्थये यत् त्वं... यशस्वी च भव। (मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि तुम... यशस्वी बनो)।
कुछ सलाह दें: आशासे त्वम् अध्ययनं मनसा करिष्यसि। (आशा है तुम मन से पढ़ाई करोगे)।
समापन: माता-पिता को प्रणाम कहें (पितृभ्यां मम प्रणामाञ्जलिः।) और एक बार फिर बधाई दें।
अंतिम अभिवादन: 'तव अग्रजः' (तुम्हारा बड़ा भाई) लिखकर अपना नाम लिखें।
Step 4: Final Answer:
उपरोक्त पत्र इस प्रश्न के उत्तर के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
Quick Tip: परिवार के सदस्यों को पत्र लिखते समय स्नेहपूर्ण और सरल भाषा का प्रयोग करें। आशीर्वाद देने के लिए लोट् लकार (जैसे - भव) या विधिलिङ् लकार (जैसे - भवेः) की क्रियाओं का उपयोग किया जा सकता है।
विद्यालय परित्याग प्रमाण पत्र निर्गत करने के लिए प्रधानाध्यापक को एक आवेदन पत्र संस्कृत में लिखें ।
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
सर्वोदय-बाल-विद्यालयः,
पाटलिपुत्रम्।
विषयः - विद्यालय-परित्याग-प्रमाणपत्रं प्राप्तुं निवेदनम्।
महोदय!,
सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् अहं भवतां विद्यालयस्य दशमकक्षायाः छात्रः अस्मि। मम पितुः स्थानान्तरणं देहलीनगरम् अभवत्। मम सम्पूर्णः परिवारः तत्रैव गमिष्यति। अतः अहम् अग्रिम-अध्ययनाय तत्रैव एकस्मिन् विद्यालये प्रवेशं ग्रहीष्यामि।
एतदर्थं मह्यं विद्यालय-परित्याग-प्रमाणपत्रस्य आवश्यकता अस्ति। अतः श्रीमन्तः, कृपया मह्यं विद्यालय-परित्याग-प्रमाणपत्रं प्रदाय माम् अनुगृह्णन्तु।
सधन्यवादः।
भवदीयः आज्ञापालकः छात्रः,
नाम - अजय कुमारः
कक्षा - दशमी (अ)
क्रमांकः - १०
दिनांकः - XX.XX.XXXX
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Step 1: Understanding the Concept:
यह एक औपचारिक आवेदन पत्र है, जो एक छात्र द्वारा प्रधानाध्यापक को विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र (School Leaving Certificate - SLC) जारी करने के लिए लिखा गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
आवेदन पत्र के विभिन्न भाग इस प्रकार हैं:
प्रेषिती का पता: बाईं ओर 'सेवायाम्' से शुरू करते हुए प्रधानाचार्य का पद और विद्यालय का पता लिखें।
विषय: आवेदन का उद्देश्य स्पष्ट रूप से लिखें: विद्यालय-परित्याग-प्रमाणपत्रं प्राप्तुं निवेदनम्। (विद्यालय परित्याग प्रमाण पत्र प्राप्त करने हेतु निवेदन)।
संबोधन: 'महोदय!' या 'महाशय!'।
मुख्य विषय-वस्तु:
अपना परिचय दें: सविनयं निवेदनम् अस्ति यत् अहं भवतां विद्यालयस्य दशमकक्षायाः छात्रः अस्मि। (सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय का दसवीं कक्षा का छात्र हूँ)।
प्रमाण पत्र की आवश्यकता का कारण बताएँ: मम पितुः स्थानान्तरणं देहलीनगरम् अभवत्। (मेरे पिता का स्थानांतरण दिल्ली नगर में हो गया है)।
भविष्य की योजना का संक्षिप्त उल्लेख करें: अहम् अग्रिम-अध्ययनाय तत्रैव... प्रवेशं ग्रहीष्यामि। (मैं आगे की पढ़ाई के लिए वहीं... प्रवेश लूँगा)।
विनम्रतापूर्वक प्रमाण पत्र जारी करने का अनुरोध करें: अतः... कृपया मह्यं विद्यालय-परित्याग-प्रमाणपत्रं प्रदाय...। (अतः... कृपया मुझे विद्यालय परित्याग प्रमाण पत्र प्रदान करके...)।
धन्यवाद ज्ञापन: 'सधन्यवादः'।
समापन: 'भवदीयः आज्ञापालकः छात्रः' (आपका आज्ञाकारी छात्र) लिखकर अपना नाम, कक्षा, क्रमांक और दिनांक स्पष्ट रूप से लिखें।
Step 4: Final Answer:
ऊपर दिया गया प्रारूप इस प्रश्न के लिए एक सही और पूर्ण उत्तर है।
Quick Tip: आवेदन पत्र में कारण स्पष्ट और संक्षिप्त होना चाहिए। 'स्थानान्तरणम्' (Transfer), 'प्रवेशम्' (Admission), 'प्रमाणपत्रम्' (Certificate) जैसे उपयुक्त शब्दों का प्रयोग करें।
अधोलिखित में से किसी एक विषय पर सात वाक्यों में एक अनुच्छेद संस्कृत में लिखें :
पुस्तकालयः
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Step 1: Understanding the Concept:
इस प्रश्न में 'पुस्तकालयः' (Library) विषय पर संस्कृत में सात सरल और व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध वाक्य लिखने के लिए कहा गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
प्रत्येक वाक्य का निर्माण और उसका अर्थ नीचे दिया गया है:
पुस्तकालयः ज्ञानस्य मन्दिरं कथ्यते।
(पुस्तकालय को ज्ञान का मंदिर कहा जाता है।)
अत्र विभिन्नविषयाणां पुस्तकानि भवन्ति।
(यहाँ विभिन्न विषयों की पुस्तकें होती हैं।)
जनाः अत्र आगत्य स्व-रुच्यनुसारं पुस्तकानि पठन्ति।
(लोग यहाँ आकर अपनी रुचि के अनुसार पुस्तकें पढ़ते हैं।)
पुस्तकालये वार्ता-पत्राणि पत्रिकाः च अपि उपलब्धनि भवन्ति।
(पुस्तकालय में समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ भी उपलब्ध होती हैं।)
अत्र शान्त-वातावरणे पठनाय उत्तमः अवसरः मिलति।
(यहाँ शांत वातावरण में पढ़ने का उत्तम अवसर मिलता है।)
निर्धन-छात्राः अत्र निःशुल्कं ज्ञानं प्राप्नुवन्ति।
(गरीब छात्र यहाँ निःशुल्क ज्ञान प्राप्त करते हैं।)
अतः अस्माभिः पुस्तकालयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(इसलिए हमें पुस्तकालय का सदुपयोग करना चाहिए।)
Step 4: Final Answer:
ऊपर दिए गए सात वाक्य 'पुस्तकालयः' विषय पर एक पूर्ण अनुच्छेद का निर्माण करते हैं।
Quick Tip: अनुच्छेद लिखते समय सरल शब्दों और छोटे वाक्यों का प्रयोग करें। कर्ता, क्रिया और विभक्ति के सही प्रयोग पर विशेष ध्यान दें ताकि व्याकरण संबंधी त्रुटियाँ न हों।
अधोलिखित में से किसी एक विषय पर सात वाक्यों में एक अनुच्छेद संस्कृत में लिखें :
देववाणी संस्कृतभाषा
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Step 1: Understanding the Concept:
इस प्रश्न में 'देववाणी संस्कृतभाषा' (Sanskrit, the language of Gods) विषय पर संस्कृत में सात शुद्ध वाक्य लिखने के लिए कहा गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
प्रत्येक वाक्य का निर्माण और उसका अर्थ नीचे दिया गया है:
संस्कृतभाषा विश्वस्य सर्वासु भाषासु प्राचीना अस्ति।
(संस्कृत भाषा विश्व की सभी भाषाओं में प्राचीन है।)
इयं भाषा 'देववाणी' इति नाम्ना अपि ज्ञायते।
(यह भाषा 'देववाणी' इस नाम से भी जानी जाती है।)
अस्माकं सर्वे प्राचीन-ग्रन्थाः संस्कृते एव लिखिताः सन्ति।
(हमारे सभी प्राचीन ग्रंथ संस्कृत में ही लिखे हुए हैं।)
व्याकरण-दृष्ट्या इयं एका परिष्कृता भाषा अस्ति।
(व्याकरण की दृष्टि से यह एक परिष्कृत भाषा है।)
संस्कृतम् अनेकासां भारतीय-भाषाणां जननी अस्ति।
(संस्कृत अनेक भारतीय भाषाओं की जननी है।)
अस्याः साहित्यं ज्ञान-विज्ञान-सम्पन्नम् अस्ति।
(इसका साहित्य ज्ञान-विज्ञान से संपन्न है।)
अतः संस्कृतस्य संरक्षणम् अस्माकं परमं कर्तव्यम् अस्ति।
(इसलिए संस्कृत का संरक्षण हमारा परम कर्तव्य है।)
Step 4: Final Answer:
उपरोक्त सात वाक्य 'देववाणी संस्कृतभाषा' विषय पर एक सारगर्भित अनुच्छेद प्रस्तुत करते हैं।
Quick Tip: विषय से संबंधित महत्वपूर्ण शब्दों (जैसे - देववाणी, प्राचीना, जननी) का प्रयोग करें। वाक्य बनाते समय कर्ता के अनुसार क्रिया का वचन और पुरुष सुनिश्चित करें।
अधोलिखित में से किसी एक विषय पर सात वाक्यों में एक अनुच्छेद संस्कृत में लिखें :
वृक्षारोपणम्
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Step 1: Understanding the Concept:
इस प्रश्न में 'वृक्षारोपणम्' (Tree Plantation) विषय पर संस्कृत में सात वाक्य लिखने हैं, जिसमें वृक्षों के महत्व और वृक्षारोपण की आवश्यकता पर प्रकाश डालना है।
Step 3: Detailed Explanation:
प्रत्येक वाक्य का निर्माण और उसका अर्थ नीचे दिया गया है:
वृक्षाः अस्माकं जीवनस्य आधारः सन्ति।
(वृक्ष हमारे जीवन के आधार हैं।)
तेभ्यः वयं फलानि, काष्ठानि, औषधानि च प्राप्नुमः।
(उनसे हम फल, लकड़ियाँ और औषधियाँ प्राप्त करते हैं।)
वृक्षाः पर्यावरणं शुद्धं कुर्वन्ति।
(वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करते हैं।)
ते वायुमण्डलात् कार्बन-डाइ-ऑक्साइड इति विष-वायुं गृह्णन्ति।
(वे वायुमंडल से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड नामक विषैली गैस को ग्रहण करते हैं।)
ते ऑक्सीजन-वायुं त्यजन्ति, यः प्राणवायुः अस्ति।
(वे ऑक्सीजन गैस छोड़ते हैं, जो प्राणवायु है।)
वृक्षाणां रोपणं 'वृक्षारोपणम्' इति कथ्यते।
(वृक्षों को लगाना 'वृक्षारोपण' कहलाता है।)
अतः पर्यावरणस्य रक्षणाय अस्माभिः अधिकं वृक्षारोपणं करणीयम्।
(इसलिए पर्यावरण की रक्षा के लिए हमें अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।)
Step 4: Final Answer:
ये सात वाक्य 'वृक्षारोपणम्' की महत्ता को सफलतापूर्वक दर्शाते हैं।
Quick Tip: पर्यावरण से संबंधित विषयों पर लिखते समय, उससे होने वाले लाभों को क्रमबद्ध तरीके से लिखें। सरल क्रियापदों जैसे 'अस्ति', 'सन्ति', 'भवन्ति', 'कुर्वन्ति' का प्रयोग करें।
अधोलिखित में से किसी एक विषय पर सात वाक्यों में एक अनुच्छेद संस्कृत में लिखें :
सरस्वती पूजा
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Step 1: Understanding the Concept:
इस प्रश्न में 'सरस्वतीपूजा' विषय पर संस्कृत में सात वाक्यों का एक अनुच्छेद लिखना है, जिसमें पूजा के समय, देवी के स्वरूप और पूजा विधि का संक्षिप्त वर्णन हो।
Step 3: Detailed Explanation:
प्रत्येक वाक्य का निर्माण और उसका अर्थ नीचे दिया गया है:
सरस्वतीपूजा छात्राणां प्रमुखः उत्सवः अस्ति।
(सरस्वती पूजा छात्रों का प्रमुख उत्सव है।)
इयं पूजा प्रतिवर्षं माघ-मासस्य शुक्लपक्षस्य पञ्चम्यां तिथौ भवति।
(यह पूजा हर वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होती है।)
देवी सरस्वती ज्ञानस्य विद्यायाः च देवी अस्ति।
(देवी सरस्वती ज्ञान और विद्या की देवी हैं।)
अस्याः वाहनं हंसः वीणा च पुस्तकं धारयति।
(उनका वाहन हंस है और वे वीणा तथा पुस्तक धारण करती हैं।)
अस्मिन् दिने छात्राः विद्यालयेषु महाविद्यालयेषु च देव्याः प्रतिमां स्थापयन्ति।
(इस दिन छात्र विद्यालयों और महाविद्यालयों में देवी की प्रतिमा स्थापित करते हैं।)
ते श्रद्धया देव्याः पूजनं कुर्वन्ति।
(वे श्रद्धा से देवी की पूजा करते हैं।)
सर्वे छात्राः विद्या-बुद्धि-प्राप्त्यर्थं देवीं प्रार्थयन्ते।
(सभी छात्र विद्या और बुद्धि की प्राप्ति के लिए देवी से प्रार्थना करते हैं।)
Step 4: Final Answer:
उपरोक्त सात वाक्य 'सरस्वतीपूजा' का एक संक्षिप्त और सटीक वर्णन प्रस्तुत करते हैं।
Quick Tip: किसी उत्सव पर अनुच्छेद लिखते समय, उत्सव का नाम, समय (तिथि/मास), महत्व और मनाने की विधि को क्रम से लिखें। इससे अनुच्छेद सुगठित बनता है।
अधोलिखित में से किसी एक विषय पर सात वाक्यों में एक अनुच्छेद संस्कृत में लिखें :
वसन्तोत्सवः
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Step 1: Understanding the Concept:
इस प्रश्न में 'वसन्तोत्सवः' (Spring Festival) विषय पर संस्कृत में सात वाक्यों का अनुच्छेद लिखना है, जिसमें वसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन हो।
Step 3: Detailed Explanation:
प्रत्येक वाक्य का निर्माण और उसका अर्थ नीचे दिया गया है:
वसन्तः ऋतुराजः कथ्यते।
(वसंत को ऋतुराज कहा जाता है।)
वसन्त-ऋतोः आगमने 'वसन्तोत्सवः' मन्यते।
(वसंत ऋतु के आगमन पर 'वसंतोत्सव' मनाया जाता है।)
अस्मिन् ऋतौ प्रकृतिः अतीव शोभते।
(इस ऋतु में प्रकृति अत्यंत सुशोभित होती है।)
सर्वत्र नूतनानि पुष्पाणि विकसन्ति।
(सब जगह नए फूल खिलते हैं।)
वृक्षाः नव-पल्लवैः युक्ताः भवन्ति।
(वृक्ष नए पत्तों से युक्त हो जाते हैं।)
आम्र-वृक्षेषु कोकिलाः कूजन्ति।
(आम के पेड़ों पर कोयलें कूकती हैं।)
अयं उत्सवः सर्वेभ्यः आनन्दं ददाति।
(यह उत्सव सभी को आनंद देता है।)
Step 4: Final Answer:
ये सात वाक्य 'वसन्तोत्सवः' और वसंत ऋतु की प्राकृतिक छटा का सुंदर वर्णन करते हैं।
Quick Tip: प्रकृति से संबंधित विषयों पर लिखते समय, प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों (जैसे - फूलों का खिलना, नए पत्ते आना) का वर्णन करें। इससे आपका लेख जीवंत लगेगा।
आलस्य मनुष्य का शत्रु है ।
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Step 1: Understanding the Concept:
इस वाक्य का संस्कृत में अनुवाद करने के लिए हमें कर्ता, संबंध कारक और क्रिया की पहचान करनी होगी। यह एक सामान्य वर्तमान काल का वाक्य है।
Step 3: Detailed Explanation:
आलस्य (कर्ता) -> संस्कृत में नपुंसकलिंग शब्द 'आलस्यम्' होगा।
मनुष्य का (संबंध) -> 'का/के/की' के लिए संबंध कारक (षष्ठी विभक्ति) का प्रयोग होता है। 'मनुष्य' का षष्ठी विभक्ति एकवचन रूप 'मनुष्यस्य' होगा।
शत्रु (पूरक) -> 'शत्रुः' (पुल्लिंग, प्रथमा विभक्ति)।
है (क्रिया) -> वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन के लिए 'अस्' धातु का रूप 'अस्ति' होगा।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: आलस्यं मनुष्यस्य शत्रुः अस्ति।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: आलस्यं मनुष्यस्य शत्रुः अस्ति।
Quick Tip: संस्कृत में नपुंसकलिंग शब्दों का प्रथमा विभक्ति में रूप 'म्' के साथ समाप्त होता है, जैसे - फलम्, ज्ञानम्, आलस्यम्। संबंध दर्शाने के लिए हमेशा षष्ठी विभक्ति का प्रयोग करें।
आम मीठा होता है ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह एक सरल वाक्य है जिसमें एक कर्ता (आम) और उसका विशेषण (मीठा) है। क्रिया 'होता है' के लिए 'भू' धातु का प्रयोग होगा।
Step 3: Detailed Explanation:
आम (कर्ता) -> संस्कृत में 'आम्रम्' (नपुंसकलिंग, प्रथमा विभक्ति, एकवचन)।
मीठा (विशेषण) -> विशेषण का लिंग, वचन और विभक्ति विशेष्य (कर्ता) के अनुसार होती है। चूँकि 'आम्रम्' नपुंसकलिंग है, इसलिए 'मीठा' का रूप 'मधुरम्' होगा।
होता है (क्रिया) -> 'भू' धातु, लट् लकार (वर्तमान काल), अन्य पुरुष, एकवचन का रूप 'भवति' होगा। 'अस्ति' का प्रयोग भी किया जा सकता है, लेकिन 'होता है' के भाव के लिए 'भवति' अधिक उपयुक्त है।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: आम्रं मधुरं भवति।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: आम्रं मधुरं भवति।
Quick Tip: संस्कृत में विशेषण और विशेष्य में समान लिंग, विभक्ति और वचन होता है। जैसे यहाँ 'आम्रम्' (नपुंसकलिंग, प्रथमा, एकवचन) के लिए 'मधुरम्' (नपुंसकलिंग, प्रथमा, एकवचन) का प्रयोग हुआ है।
वह स्वभाव से सज्जन है ।
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Step 1: Understanding the Concept:
इस वाक्य में 'से' का प्रयोग कारण या साधन के अर्थ में हुआ है, जिसके लिए तृतीया विभक्ति का उपयोग होता है।
Step 3: Detailed Explanation:
वह (कर्ता) -> पुल्लिंग के लिए 'सः'।
स्वभाव से (करण) -> 'जिस गुण से पहचाना जाए' उसमें तृतीया विभक्ति लगती है। 'स्वभाव' का तृतीया विभक्ति एकवचन रूप 'स्वभावेन' होगा। (प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम् सूत्र से)।
सज्जन (पूरक) -> 'सज्जनः'।
है (क्रिया) -> 'अस्ति'।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: सः स्वभावेन सज्जनः अस्ति।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: सः स्वभावेन सज्जनः अस्ति।
Quick Tip: जब 'से' का प्रयोग किसी गुण, प्रकृति या स्वभाव को बताने के लिए हो, तो वहाँ तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे - प्रकृत्या सरलः (प्रकृति से सरल), स्वभावेन मधुरः (स्वभाव से मधुर)।
मेरा मित्र पटना में रहता है ।
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Step 1: Understanding the Concept:
इस वाक्य में संबंध ('मेरा'), स्थान ('पटना में') और वर्तमान काल की क्रिया ('रहता है') का अनुवाद करना है।
Step 3: Detailed Explanation:
मेरा (संबंध) -> 'अस्मद्' (मैं) शब्द का षष्ठी विभक्ति एकवचन रूप 'मम' होगा।
मित्र (कर्ता) -> 'मित्रम्' (नपुंसकलिंग)।
पटना में (अधिकरण) -> स्थान के लिए अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति) का प्रयोग होता है। 'पटना' को संस्कृत में 'पाटलिपुत्रम्' कहते हैं। इसका सप्तमी विभक्ति एकवचन रूप 'पाटलिपुत्रे' होगा।
रहता है (क्रिया) -> 'नि + वस्' (रहना) धातु, लट् लकार, अन्य पुरुष, एकवचन का रूप 'निवसति' होगा।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: मम मित्रं पाटलिपुत्रे निवसति।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: मम मित्रं पाटलिपुत्रे निवसति।
Quick Tip: 'में' या 'पर' से स्थान का बोध होने पर हमेशा सप्तमी विभक्ति का प्रयोग करें। जैसे - गृहे (घर में), वृक्षे (पेड़ पर), पाटलिपुत्रे (पटना में)।
तालाब में कमल खिलते हैं ।
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Step 1: Understanding the Concept:
इस वाक्य में कर्ता बहुवचन ('कमल') में है, इसलिए क्रिया भी बहुवचन में होगी। स्थान के लिए सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होगा।
Step 3: Detailed Explanation:
तालाब में (अधिकरण) -> 'तडाग' शब्द का सप्तमी विभक्ति एकवचन रूप 'तडागे' होगा।
कमल (कर्ता, बहुवचन) -> 'कमलम्' (नपुंसकलिंग) शब्द का प्रथमा विभक्ति बहुवचन रूप 'कमलानि' होगा।
खिलते हैं (क्रिया) -> 'वि + कस्' (खिलना) धातु, लट् लकार, अन्य पुरुष, बहुवचन का रूप 'विकसन्ति' होगा, क्योंकि कर्ता 'कमलानि' बहुवचन है।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: तडागे कमलानि विकसन्ति।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: तडागे कमलानि विकसन्ति।
Quick Tip: संस्कृत में क्रिया का पुरुष और वचन हमेशा कर्ता के पुरुष और वचन के अनुसार होता है। यहाँ कर्ता 'कमलानि' (अन्य पुरुष, बहुवचन) है, इसलिए क्रिया 'विकसन्ति' (अन्य पुरुष, बहुवचन) है।
तुम चलो, मैं आता हूँ।
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Step 1: Understanding the Concept:
इस वाक्य में दो भाग हैं। पहला भाग आज्ञा ('तुम चलो') के अर्थ में है, जिसके लिए लोट् लकार का प्रयोग होता है। दूसरा भाग सामान्य वर्तमान काल ('मैं आता हूँ') में है, जिसके लिए लट् लकार का प्रयोग होगा।
Step 3: Detailed Explanation:
तुम चलो ->
तुम (कर्ता) -> 'त्वम्'।
चलो (क्रिया, आज्ञा) -> 'चल्' धातु, लोट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन का रूप 'चल' होगा।
मैं आता हूँ ->
मैं (कर्ता) -> 'अहम्'।
आता हूँ (क्रिया) -> 'आ + गम्' (आना) धातु, लट् लकार, उत्तम पुरुष, एकवचन का रूप 'आगच्छामि' होगा।
दोनों भागों को मिलाकर वाक्य बनता है: त्वं चल, अहं आगच्छामि।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: त्वं चल, अहं आगच्छामि।
Quick Tip: आज्ञा देने या अनुरोध करने के लिए संस्कृत में लोट् लकार का प्रयोग होता है। मध्यम पुरुष एकवचन में प्रायः धातु का मूल रूप ही क्रियापद होता है, जैसे - पठ, लिख, चल, गच्छ।
रोहन का भाई मोहन है ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह एक सरल वाक्य है जिसमें संबंध कारक ('का') का प्रयोग हुआ है। इसके लिए षष्ठी विभक्ति का उपयोग किया जाएगा।
Step 3: Detailed Explanation:
रोहन का (संबंध) -> 'रोहन' शब्द का षष्ठी विभक्ति एकवचन रूप 'रोहनस्य' होगा।
भाई (कर्ता) -> 'भ्रातृ' शब्द का प्रथमा विभक्ति एकवचन रूप 'भ्राता' होता है।
मोहन (पूरक) -> 'मोहनः'।
है (क्रिया) -> 'अस्ति'।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: रोहनस्य भ्राता मोहनः अस्ति।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: रोहनस्य भ्राता मोहनः अस्ति।
Quick Tip: 'का', 'के', 'की' द्वारा संबंध बताने के लिए हमेशा षष्ठी विभक्ति (-स्य, -योः, -नाम्) का प्रयोग करें। जैसे रामस्य (राम का), बालकस्य (बालक का)।
परिश्रम के बिना विद्या नहीं ।
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Step 1: Understanding the Concept:
इस वाक्य में 'के बिना' अव्यय का प्रयोग हुआ है। संस्कृत में 'विना' अव्यय के योग में द्वितीया, तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
Step 3: Detailed Explanation:
परिश्रम के बिना ->
के बिना के लिए 'विना' अव्यय।
परिश्रम शब्द में 'विना' के योग में द्वितीया ('परिश्रमम्'), तृतीया ('परिश्रमेण') या पंचमी ('परिश्रमात्') विभक्ति लगा सकते हैं। यहाँ द्वितीया या तृतीया अधिक प्रचलित है।
विद्या (कर्ता) -> 'विद्या' (स्त्रीलिंग, प्रथमा)।
नहीं -> 'न'।
वाक्य के भाव को पूर्ण करने के लिए 'अस्ति' (है) या 'भवति' (होती है) क्रिया जोड़ी जा सकती है। 'भवति' अधिक उपयुक्त है।
अतः वाक्य बनेगा: परिश्रमं विना विद्या न भवति। या परिश्रमेण विना विद्या न भवति।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: परिश्रमं विना विद्या न भवति।
Quick Tip: 'विना' (बिना), 'सह' (साथ), 'नमः' (नमस्कार) जैसे कुछ अव्यय और उपपद शब्दों के साथ एक निश्चित विभक्ति का ही प्रयोग होता है। इन्हें उपपद विभक्ति कहते हैं, इन्हें याद करना आवश्यक है।
मैं मन से पढ़ता हूँ ।
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Step 1: Understanding the Concept:
इस वाक्य में 'मन से' का अर्थ है 'मन लगाकर', जो कि क्रिया की रीति या साधन को बता रहा है। इसके लिए करण कारक (तृतीया विभक्ति) का प्रयोग होगा।
Step 3: Detailed Explanation:
मैं (कर्ता) -> 'अहम्'।
मन से (करण) -> 'मनस्' (नपुंसकलिंग) शब्द का तृतीया विभक्ति एकवचन रूप 'मनसा' होता है।
पढ़ता हूँ (क्रिया) -> कर्ता 'अहम्' (उत्तम पुरुष, एकवचन) के अनुसार 'पठ्' धातु, लट् लकार का रूप 'पठामि' होगा।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: अहं मनसा पठामि।
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: अहं मनसा पठामि।
Quick Tip: जब 'से' का प्रयोग साधन (instrument) के अर्थ में हो, तो हमेशा तृतीया विभक्ति का प्रयोग करें। जैसे - हस्तेन लिखामि (हाथ से लिखता हूँ), मनसा चिन्तयामि (मन से सोचता हूँ)।
तुम कौन हो ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह एक प्रश्नवाचक वाक्य है। इसमें कर्ता 'तुम' के अनुसार क्रिया का प्रयोग होगा और प्रश्नवाचक शब्द 'कौन' का प्रयोग होगा।
Step 3: Detailed Explanation:
तुम (कर्ता) -> 'त्वम्'।
कौन (प्रश्नवाचक शब्द) -> पुल्लिंग के लिए 'किम्' शब्द का प्रथमा विभक्ति एकवचन रूप 'कः' होगा। (यदि किसी स्त्री से पूछा जाए तो 'का' होगा)।
हो (क्रिया) -> कर्ता 'त्वम्' (मध्यम पुरुष, एकवचन) के अनुसार 'अस्' धातु, लट् लकार का रूप 'असि' होगा।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: त्वं कः असि?
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: त्वं कः असि?
Quick Tip: उत्तम पुरुष (अहम्, आवाम्, वयम्) और मध्यम पुरुष (त्वम्, युवाम्, यूयम्) के कर्ताओं के साथ क्रिया के निश्चित रूप ही लगते हैं (जैसे - पठामि, पठामः, पठसि, पठथ)। इन्हें अच्छी तरह याद कर लें।
तुम्हारे पिताजी कब आएँगे ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह भविष्यत् काल (Future Tense) का एक प्रश्नवाचक वाक्य है। भविष्यत् काल के लिए लृट् लकार का प्रयोग होता है।
Step 3: Detailed Explanation:
तुम्हारे (संबंध) -> 'युष्मद्' (तुम) शब्द का षष्ठी विभक्ति एकवचन रूप 'तव' होगा।
पिताजी (कर्ता) -> 'पितृ' शब्द का प्रथमा विभक्ति एकवचन रूप 'पिता' होता है।
कब (प्रश्नवाचक अव्यय) -> 'कदा'।
आएँगे (क्रिया) -> 'आ + गम्' (आना) धातु, लृट् लकार (भविष्यत् काल), अन्य पुरुष, एकवचन (कर्ता 'पिता' के अनुसार) का रूप 'आगमिष्यति' होगा।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: तव पिता कदा आगमिष्यति?
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: तव पिता कदा आगमिष्यति?
Quick Tip: भविष्यत् काल (लृट् लकार) के क्रियारूप सामान्यतः '-इष्यति', '-इष्यतः', '-इष्यन्ति' जोड़कर बनते हैं। जैसे - पठिष्यति, लेखिष्यति, गमिष्यति।
सभी भाइयों में राम श्रेष्ठ थे ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह भूतकाल (Past Tense) का वाक्य है। इसमें 'में' का प्रयोग एक समूह में से किसी एक को श्रेष्ठ बताने के लिए हुआ है, जिसके लिए निर्धारण में सप्तमी या षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
Step 3: Detailed Explanation:
सभी भाइयों में (निर्धारण) -> जब किसी समूह में से एक की विशेषता बताई जाए, तो उस समूह में सप्तमी या षष्ठी विभक्ति लगती है। यहाँ सप्तमी बहुवचन का प्रयोग करेंगे। 'सभी भाई' के लिए 'सर्व भ्रातृ'। 'सर्व' का सप्तमी बहुवचन 'सर्वेषु' और 'भ्रातृ' का 'भ्रातृषु' होगा। तो यह बनेगा 'सर्वेषु भ्रातृषु'।
राम (कर्ता) -> 'रामः'।
श्रेष्ठ (विशेषण) -> 'श्रेष्ठः'।
थे (क्रिया) -> भूतकाल के लिए 'अस्' धातु, लङ् लकार, अन्य पुरुष, एकवचन (कर्ता 'रामः' के अनुसार) का रूप 'आसीत्' होगा।
इन सभी को मिलाकर वाक्य बनता है: सर्वेषु भ्रातृषु रामः श्रेष्ठः आसीत्। (षष्ठी विभक्ति से: सर्वेषां भ्रातॄणां रामः श्रेष्ठः आसीत्।)
Step 4: Final Answer:
अतः, सही अनुवाद है: सर्वेषु भ्रातृषु रामः श्रेष्ठः आसीत्।
Quick Tip: 'कवियों में कालिदास श्रेष्ठ हैं' - 'कविषु कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति।' इस प्रसिद्ध उदाहरण से आप निर्धारण में सप्तमी विभक्ति के नियम को याद रख सकते हैं।
आत्मा के स्वरूप का वर्णन करें ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'मंगलम्' पाठ के द्वितीय श्लोक पर आधारित है, जो कठोपनिषद् से संकलित है। इसमें आत्मा के रहस्यमय और दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
'मंगलम्' पाठ में आत्मा के स्वरूप की व्याख्या करते हुए महर्षि वेदव्यास कहते हैं:
सूक्ष्म और महान: आत्मा अणु से भी सूक्ष्म (छोटी) और महान से भी महान (बड़ी) है। इसका अर्थ है कि यह भौतिक मापदंडों से परे है।
निवास स्थान: यह प्रत्येक जीव की हृदय रूपी गुफा में स्थित है।
दर्शन: विद्वान और शोक-रहित व्यक्ति ही ईश्वर की कृपा से आत्मा की इस महिमा को देख पाता है और सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है।
अजर-अमर: आत्मा न जन्म लेती है और न मरती है। इसे शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकती।
Step 4: Final Answer:
अतः, आत्मा का स्वरूप अणोरणीयान् महतो महीयान् है, जो प्राणियों के हृदय में स्थित है और जिसे केवल निष्काम और शोक-रहित व्यक्ति ही जान सकता है।
Quick Tip: उत्तर लिखते समय श्लोक 'अणोरणीयान् महतो महीयान्...' का उल्लेख करने से आपके उत्तर का महत्व बढ़ जाएगा और आपको पूरे अंक प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
महान लोग संसाररूपी सागर को कैसे पार करते हैं ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'मंगलम्' पाठ के श्वेताश्वतर उपनिषद् से लिए गए श्लोक पर आधारित है। इसमें मोक्ष प्राप्ति और संसार के बंधनों से मुक्त होने का मार्ग बताया गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
महर्षि वेदव्यास ज्ञानी और अज्ञानी व्यक्ति में अंतर स्पष्ट करते हुए कहते हैं:
अज्ञानी लोग अंधकार-स्वरुप होते हैं, जबकि ज्ञानी लोग प्रकाश-स्वरुप होते हैं।
महान लोग उस परमपिता परमात्मा को जानते हैं जो सूर्य के समान तेजस्वी और अंधकार से परे है।
उसी परमेश्वर को जानकर और उनका ध्यान करके वे मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेते हैं।
इस संसार रूपी भवसागर को पार करने का इससे श्रेष्ठ कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
Step 4: Final Answer:
अतः, महान लोग परमपिता परमेश्वर के दिव्य स्वरूप को जानकर ही संसाररूपी सागर को पार करते हैं, क्योंकि मोक्ष प्राप्ति का यही एकमात्र सच्चा मार्ग है।
Quick Tip: इस उत्तर में 'श्वेताश्वतर उपनिषद्' का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है। यह दर्शाता है कि आपको पाठ की गहरी समझ है। 'वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्...' श्लोक का संदर्भ भी दे सकते हैं।
मंत्री वीरेश्वर की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'अलसकथा' पाठ से संबंधित है, जिसमें मिथिला के मंत्री वीरेश्वर के उदार चरित्र का वर्णन किया गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
मंत्री वीरेश्वर की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित थीं:
दानशील: वीरेश्वर अत्यंत दानशील थे। वे गरीबों और जरूरतमंदों को बिना किसी भेदभाव के अन्न और वस्त्र दान करते थे।
कारुणिक और दयालु: उनका हृदय दया और करुणा से भरा हुआ था। वे दूसरों के दुःख को देखकर द्रवित हो जाते थे और उनकी सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते थे।
आलसियों के प्रति उदारता: वे मानते थे कि आलसी लोग अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ नहीं कर सकते, इसलिए उनकी सहायता करना एक मंत्री का कर्तव्य है। इसी सोच के कारण उन्होंने आलसियों के लिए एक आलसशाला का निर्माण करवाया।
विवेकशील: जब आलसशाला में धूर्त लोग भी आलसी बनकर आने लगे, तो उन्होंने उनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई ताकि केवल वास्तविक आलसियों की ही मदद की जा सके। यह उनकी विवेकशीलता को दर्शाता है।
Step 4: Final Answer:
इस प्रकार, वीरेश्वर एक आदर्श मंत्री थे जो दानशील, दयालु, कारुणिक और विवेकशील गुणों से परिपूर्ण थे।
Quick Tip: उत्तर में 'मिथिला के मंत्री', 'दानशील', 'कारुणिक', और 'आलसशाला' जैसे प्रमुख शब्दों का प्रयोग अवश्य करें। यह आपके उत्तर को सटीक और पूर्ण बनाता है।
'भारतमहिमा' पाठ का उद्देश्य क्या है ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'भारतमहिमा' पाठ के मूल भाव और उसके संदेश को स्पष्ट करने के लिए पूछा गया है। इस पाठ में पौराणिक और आधुनिक पद्यों के माध्यम से भारत की महिमा का गुणगान किया गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
'भारतमहिमा' पाठ के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
देशभक्ति का संचार: पाठ का सर्वप्रमुख उद्देश्य पाठकों, विशेषकर युवा पीढ़ी में अपने देश के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना को जगाना है।
गौरवशाली परंपरा का ज्ञान: यह पाठ भारत की महान परंपरा, प्राकृतिक सुंदरता, और इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि यह भूमि इतनी पवित्र है कि देवता भी यहाँ जन्म लेने के लिए तरसते हैं।
एकता का संदेश: पाठ यह बताता है कि भारत में विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग एकता के भाव से रहते हैं, जो हमारी सबसे बड़ी विशेषता है।
कर्तव्य का बोध: यह पाठ हमें याद दिलाता है कि भारत के नागरिक होने के नाते हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने देश की सेवा करें और इसकी गरिमा को बनाए रखें।
Step 4: Final Answer:
अतः, 'भारतमहिमा' पाठ का उद्देश्य भारत की विशेषताओं का वर्णन करके भारतीयों में देशभक्ति, एकता और गौरव की भावना उत्पन्न करना है।
Quick Tip: इस प्रश्न के उत्तर में देशभक्ति, सांस्कृतिक एकता, और गौरवशाली अतीत जैसे वाक्यांशों का उपयोग करें। यह परीक्षक पर अच्छा प्रभाव डालता है।
देवगण किसका गुणगान करते हैं और क्यों ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'भारतमहिमा' पाठ के प्रथम (विष्णुपुराण से) और द्वितीय (भागवतपुराण से) श्लोकों पर आधारित है, जिसमें देवताओं की भारत-भूमि के प्रति इच्छा व्यक्त की गई है।
Step 3: Detailed Explanation:
देवगण भारत का गुणगान करते हैं, जिसके निम्नलिखित कारण हैं:
धन्य जन्म: देवता गीत गाते हुए कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका जन्म भारत भूमि पर होता है।
स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग: यह भूमि स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति का साधन है। यहाँ रहकर अच्छे कर्म करने से मोक्ष की प्राप्ति सुलभ हो जाती है।
श्रीहरि की सेवा का अवसर: भारत भूमि पर जन्म लेकर मनुष्य भगवान मुकुंद (श्रीहरि) की सेवा के योग्य बन जाता है। ऐसी इच्छा स्वयं देवता भी रखते हैं।
ईश्वर की कृपा: ऐसा माना जाता है कि जिन पर स्वयं हरि प्रसन्न होते हैं, वे ही इस पवित्र भूमि पर जन्म लेते हैं।
Step 4: Final Answer:
अतः, देवगण भारत देश का गुणगान इसलिए करते हैं क्योंकि यह भूमि पुण्य और मोक्षदायिनी है और यहाँ जन्म लेना वे अपना सौभाग्य समझते हैं।
Quick Tip: उत्तर में 'विष्णुपुराण' और 'भागवतपुराण' का संदर्भ देना आपके उत्तर को और भी प्रामाणिक बना देगा। याद रखें कि देवता भी भारत में जन्म लेने की इच्छा रखते हैं।
'नीतिश्लोकाः' पाठ से किसी एक श्लोक को शुद्ध-शुद्ध लिखें ।
\textbf{त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।}
\textbf{कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।}
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'नीतिश्लोकाः' पाठ से आपकी स्मरण शक्ति और संस्कृत लेखन की शुद्धता को परखने के लिए दिया गया है। इस पाठ में महात्मा विदुर द्वारा धृतराष्ट्र को दिए गए उपदेश हैं।
Step 3: Detailed Explanation:
ऊपर दिया गया श्लोक 'नीतिश्लोकाः' पाठ से लिया गया है। इसका अर्थ है:
काम (अत्यधिक इच्छा), क्रोध (गुस्सा) और लोभ (लालच) - ये तीन प्रकार के द्वार नरक की ओर ले जाते हैं।
ये आत्मा का नाश करने वाले हैं, अर्थात व्यक्ति को अधोगति में ले जाते हैं।
इसलिए, इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।
एक अन्य श्लोक:
षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
अर्थ: ऐश्वर्य या उन्नति चाहने वाले पुरुष को नींद, तंद्रा (ऊंघना), भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता (काम को टालने की आदत) - इन छह दोषों को त्याग देना चाहिए।
Step 4: Final Answer:
प्रश्न के उत्तर के लिए ऊपर दिए गए किसी भी एक श्लोक को शुद्ध रूप में लिखा जा सकता है।
Quick Tip: परीक्षा में श्लोक लिखते समय मात्राओं और विसर्ग (ः) का विशेष ध्यान रखें। अशुद्ध लिखने पर अंक काटे जा सकते हैं। किसी सरल और छोटे श्लोक को याद करना बेहतर होता है।
नरक के द्वार कौन-कौन से हैं ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'नीतिश्लोकाः' पाठ के एक महत्वपूर्ण श्लोक पर आधारित है, जिसमें आत्म-विनाश के तीन प्रमुख कारणों को नरक के द्वार के रूप में बताया गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
महात्मा विदुर धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहते हैं कि नरक के तीन द्वार हैं जो व्यक्ति को पतन की ओर ले जाते हैं:
काम: अत्यधिक सांसारिक इच्छाएं और वासना व्यक्ति को गलत मार्ग पर ले जाती हैं।
क्रोध: क्रोध व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति को नष्ट कर देता है और वह अनुचित कार्य कर बैठता है।
लोभ: लालच मनुष्य को अंधा बना देता है और वह सही-गलत का भेद भूलकर केवल धन या वस्तु प्राप्ति के पीछे भागता है।
ये तीनों अवगुण आत्मा का नाश करते हैं, अर्थात व्यक्ति के चरित्र और सद्गुणों को समाप्त कर उसे अधोगति की ओर ले जाते हैं। इसलिए, सुख और शांतिपूर्ण जीवन के लिए इन तीनों का त्याग करना अनिवार्य है।
Step 4: Final Answer:
अतः, काम, क्रोध और लोभ नरक के तीन द्वार हैं।
Quick Tip: यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है जो अक्सर परीक्षाओं में पूछा जाता है। श्लोक 'त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं...' को याद कर लें, यह आपको उत्तर लिखने में मदद करेगा।
अलसकथा पाठ का संदेश क्या है ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न विद्यापति द्वारा रचित 'अलसकथा' पाठ के मूल उद्देश्य और शिक्षा पर केंद्रित है। यह कथा व्यंग्यात्मक शैली में आलस्य के दुष्परिणामों को दर्शाती है।
Step 3: Detailed Explanation:
'अलसकथा' पाठ से हमें निम्नलिखित प्रमुख संदेश मिलते हैं:
आलस्य एक महान रोग है: कथा यह स्पष्ट करती है कि आलस्य एक महान रोग के समान है जो व्यक्ति को अकर्मण्य बना देता है।
पराश्रित जीवन: आलसी व्यक्ति अपने भोजन के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहते हैं। वे स्वयं कोई प्रयास नहीं करते और केवल दया के पात्र बनकर जीना चाहते हैं।
विकास में बाधक: जीवन में प्रगति और विकास के लिए परिश्रम अत्यंत आवश्यक है। आलसी व्यक्ति कभी भी उन्नति नहीं कर सकता।
आत्म-विनाश का कारण: आलस्य न केवल व्यक्ति का, बल्कि उसके परिवार और समाज का भी विनाश करता है।
कथा में चार वास्तविक आलसियों का चित्रण यह दर्शाता है कि वे आग लगने पर भी भागने का प्रयास नहीं करते, जो आलस्य की चरम सीमा को दिखाता है।
Step 4: Final Answer:
अतः, इस पाठ का स्पष्ट संदेश है कि हमें आलस्य को शत्रु मानकर त्याग देना चाहिए और सफलता के लिए सदैव परिश्रमी और कर्मठ बने रहना चाहिए।
Quick Tip: इस उत्तर में 'आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है' इस वाक्य को अवश्य शामिल करें। यह इस पाठ का केंद्रीय भाव है। विद्यापति का नाम भी लेखक के रूप में उल्लेख कर सकते हैं।
'कर्मवीर कथा' पाठ के आधार पर रामप्रवेश राम के परिवार का वर्णन करें ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'कर्मवीर कथा' पाठ के मुख्य पात्र रामप्रवेश राम की पारिवारिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के बारे में है, जिसने उनकी सफलता को और भी महत्वपूर्ण बना दिया।
Step 3: Detailed Explanation:
रामप्रवेश राम के परिवार की स्थिति का वर्णन इस प्रकार है:
निवास स्थान: उनका परिवार बिहार के भीखनटोला गाँव में, गाँव के बाहर एक कुटिया में रहता था।
आर्थिक स्थिति: परिवार अत्यंत गरीब और शिक्षा-विहीन था। वे बहुत कठिनाई से अपना जीवन यापन करते थे।
घर की दशा: उनकी झोपड़ी जर्जर अवस्था में थी, जो धूप से तो किसी तरह बचा लेती थी, परंतु बारिश के पानी को नहीं रोक पाती थी।
परिवार के सदस्य: परिवार में कुल चार सदस्य थे - रामप्रवेश के माता-पिता (गृह स्वामी और उनकी पत्नी), एक पुत्र (स्वयं रामप्रवेश) और एक छोटी पुत्री।
ऐसी कठिन परिस्थितियों के बावजूद रामप्रवेश ने अपनी लगन और परिश्रम से शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया।
Step 4: Final Answer:
अतः, रामप्रवेश राम का परिवार एक दलित और अत्यंत निर्धन परिवार था जो भीखनटोला में एक जर्जर कुटिया में निवास करता था और अत्यंत अभावग्रस्त जीवन व्यतीत कर रहा था।
Quick Tip: उत्तर लिखते समय 'भीखनटोला', 'जर्जर कुटिया', और 'निर्धन दलित परिवार' जैसे शब्दों का प्रयोग करें। यह उनके संघर्ष को प्रभावी ढंग से दर्शाता है।
अनिष्ट से इष्टप्राप्ति का परिणाम कैसे बुरा होता है ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'व्याघ्रपथिककथा' नामक पाठ के नैतिक संदेश पर आधारित है। यह कथा हितोपदेश से ली गई है और लोभ के दुष्परिणाम को दर्शाती है।
Step 3: Detailed Explanation:
'व्याघ्रपथिककथा' में एक बूढ़ा बाघ (अनिष्ट) सोने का कंगन (इष्ट) देने का लालच देकर एक पथिक को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि:
लोभ विनाश का कारण है: पथिक ने सोने के कंगन को देखकर सोचा कि ऐसा अवसर भाग्य से ही मिलता है। वह लोभ के वशीभूत होकर बाघ की बातों में आ गया।
दुष्ट पर विश्वास घातक है: पथिक ने हिंसक बाघ पर विश्वास करने का जोखिम उठाया, जबकि उसे पता था कि बाघ एक नरभक्षी प्राणी है।
बुरे साधन से प्राप्त फल बुरा होता है: जब किसी अच्छी वस्तु को गलत या अनैतिक माध्यम से प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है, तो उसका परिणाम विनाशकारी होता है। पथिक को कंगन तो नहीं मिला, उल्टे वह कीचड़ में फँस गया और बाघ द्वारा मार कर खा लिया गया।
Step 4: Final Answer:
अतः, यह सिद्ध होता है कि अनिष्ट (बाघ) से इष्ट (सोने का कंगन) प्राप्त करने की कोशिश का परिणाम बुरा (मृत्यु) होता है, क्योंकि लोभ में व्यक्ति सही और गलत का निर्णय नहीं कर पाता।
Quick Tip: इस उत्तर को 'व्याघ्रपथिककथा' का उदाहरण देकर समझाना सबसे उत्तम तरीका है। 'सोने का कंगन', 'बूढ़ा बाघ' और 'कीचड़ में फँसना' जैसे प्रसंगों का उल्लेख अवश्य करें।
दानवीर कर्ण का चरित्र-चित्रण करें ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'कर्णस्य दानवीरता' पाठ पर आधारित है, जो भास द्वारा रचित 'कर्णभारम्' नाटक से लिया गया है। इसमें कर्ण के उदार और दानी चरित्र का वर्णन है।
Step 3: Detailed Explanation:
दानवीर कर्ण के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
महान दानवीर: कर्ण को उनकी दानवीरता के लिए जाना जाता है। वे अपने द्वार पर आए किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाते थे।
वचन के पक्के: उन्होंने इंद्र को वचन दिया कि वे जो भी मांगेंगे, वह उन्हें देंगे। अपने वचन की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों की भी चिंता नहीं की।
निर्भीक और त्यागी: यह जानते हुए भी कि कवच और कुंडल उनके प्राण रक्षक हैं, उन्होंने क्षण भर भी सोचे बिना उन्हें दान कर दिया। यह उनके त्याग और निर्भीकता को दर्शाता है।
मित्र के प्रति निष्ठावान: वे कुंतीपुत्र होते हुए भी अपने मित्र दुर्योधन के प्रति निष्ठावान रहे और उसी के पक्ष से युद्ध किया।
महान योद्धा: कर्ण एक अत्यंत पराक्रमी और कुशल योद्धा थे।
Step 4: Final Answer:
अतः, कर्ण एक आदर्श दानवीर, सत्यवादी, त्यागी, मित्र के प्रति समर्पित और महान योद्धा थे। उनकी दानवीरता भारतीय साहित्य में अद्वितीय है।
Quick Tip: उत्तर में 'कवच और कुंडल का दान', 'इंद्र को दान', और 'सूर्यपुत्र' जैसे बिंदुओं को अवश्य शामिल करें। यह कर्ण के चरित्र के सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं। भास के नाटक 'कर्णभारम्' का उल्लेख भी कर सकते हैं।
अथर्ववेद में किन पाँच ऋषिकाओं का वर्णन है ?
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः' पाठ से है, जिसमें वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक संस्कृत साहित्य में महिलाओं के योगदान पर प्रकाश डाला गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
वैदिक युग में पुरुषों के समान ही महिलाएँ भी वेदों का अध्ययन करती थीं और मंत्रों की रचना करती थीं। इन मंत्रों का साक्षात्कार करने वाली महिलाओं को 'ऋषिका' कहा जाता था।
ऋग्वेद: ऋग्वेद में लगभग चौबीस ऋषिकाओं का उल्लेख है।
अथर्ववेद: अथर्ववेद में विशेष रूप से पाँच ऋषिकाओं के योगदान का वर्णन मिलता है।
पाँच ऋषिकाएँ: ये पाँच ऋषिकाएँ हैं:
यमी
अपाला
उर्वशी
इन्द्राणी
वागाम्भृणी
इन ऋषिकाओं ने वैदिक साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Step 4: Final Answer:
अतः, अथर्ववेद में वर्णित पाँच ऋषिकाएँ यमी, अपाला, उर्वशी, इन्द्राणी और वागाम्भृणी हैं।
Quick Tip: इन पाँचों नामों को अच्छी तरह से याद कर लें। यह प्रश्न अक्सर वस्तुनिष्ठ (objective) या लघु उत्तरीय (short answer) रूप में पूछा जाता है।
पटना के विभिन्न नामों का उल्लेख करें ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'पाटलिपुत्रवैभवम्' पाठ पर आधारित है, जिसमें पटना (प्राचीन पाटलिपुत्र) के ऐतिहासिक महत्व और उसके विभिन्न नामों का वर्णन किया गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
पटना के विभिन्न नाम समय-समय पर प्रचलित रहे हैं, जिनका उल्लेख इस प्रकार है:
पाटलिग्राम: भगवान बुद्ध के समय में गंगा नदी के तट पर स्थित यह एक गाँव था, और उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि यह भविष्य में एक महानगर बनेगा।
पाटलिपुत्र: पाटलिग्राम ही बाद में पाटलिपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ और मगध साम्राज्य की राजधानी बना। चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक के समय में यह नगर अत्यंत वैभवशाली था।
पुष्पपुर और कुसुमपुर: कुछ प्राचीन संस्कृत ग्रंथों और पुराणों में पाटलिपुत्र का नाम पुष्पपुर या कुसुमपुर भी मिलता है। इसका कारण यह था कि यहाँ गुलाब के फूलों (पाटल पुष्प) का उत्पादन बहुतायत में होता था।
अजीमाबाद: मुगल काल में, राजकुमार अजीम-उस-शान ने इसका नाम बदलकर अजीमाबाद कर दिया था।
Step 4: Final Answer:
अतः, पटना के विभिन्न नाम हैं - पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र, पुष्पपुर, कुसुमपुर और अजीमाबाद।
Quick Tip: उत्तर में कम से कम तीन-चार नामों (पाटलिपुत्र, पुष्पपुर, कुसुमपुर) का उल्लेख अवश्य करें। यह आपके उत्तर को पूर्णता प्रदान करेगा।
जन्मपूर्व कितने संस्कार होते हैं ? उल्लेख करें ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'भारतीयसंस्काराः' पाठ से लिया गया है। भारतीय जीवन दर्शन में कुल सोलह संस्कारों का विधान है, जिन्हें पाँच मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है। जन्मपूर्व संस्कार इनमें से पहली श्रेणी है।
Step 3: Detailed Explanation:
जन्म से पूर्व शिशु और माता के लिए तीन महत्वपूर्ण संस्कार किए जाते हैं। ये इस प्रकार हैं:
गर्भाधान (Garbhadhana): यह एक उत्तम संतान की प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाने वाला प्रथम संस्कार है।
पुंसवन (Pumsavana): यह संस्कार गर्भधारण के दूसरे या तीसरे महीने में किया जाता है। इसका उद्देश्य गर्भस्थ शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास को सुनिश्चित करना और विशेष रूप से पुत्र प्राप्ति की कामना करना होता था।
सीमन्तोनयन (Simantonnayana): यह संस्कार गर्भावस्था के छठे या आठवें महीने में किया जाता है। इसका उद्देश्य गर्भवती स्त्री को अमंगलकारी शक्तियों से बचाना और उसे प्रसन्न रखना होता है।
ये तीनों संस्कार मिलकर जन्मपूर्व संस्कारों को पूर्ण करते हैं।
Step 4: Final Answer:
अतः, जन्मपूर्व कुल तीन संस्कार होते हैं: गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्तोनयन।
Quick Tip: संस्कारों की संख्या (तीन) और उनके नाम स्पष्ट रूप से लिखें। नामों को संस्कृत में सही-सही लिखना महत्वपूर्ण है।
'विश्वशान्तिः' पाठ के आधार पर शान्ति स्थापित करने के उपायों को लिखें ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'विश्वशान्तिः' पाठ पर आधारित है, जिसमें अशांति के कारणों और शांति स्थापित करने के उपायों पर चर्चा की गई है।
Step 3: Detailed Explanation:
पाठ के अनुसार, अशांति के दो प्रमुख कारण हैं - द्वेष (ईर्ष्या) और असहिष्णुता (दूसरे की उन्नति को सहन न कर पाना)। शांति स्थापित करने के उपाय निम्नलिखित हैं:
वैर का त्याग: भगवान बुद्ध ने कहा था कि वैर से वैर कभी शांत नहीं होता है। अवैर, करुणा और मैत्री भाव से ही वैर शांत होता है। अतः, राष्ट्रों को आपसी दुश्मनी को भूलना होगा।
परोपकार की भावना: जब एक देश संकट में हो तो दूसरे देशों को उसकी सहायता करनी चाहिए। परोपकार और मानवता की भावना शांति स्थापना के लिए आवश्यक है।
संवाद और सहिष्णुता: आपसी विवादों को युद्ध के बजाय शांतिपूर्ण बातचीत से सुलझाना चाहिए। एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता का भाव रखना चाहिए।
महापुरुषों के उपदेशों का पालन: हमें महापुरुषों द्वारा दिए गए शांति और सद्भाव के उपदेशों का पालन करना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की भूमिका: अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को भी राष्ट्रों के बीच शांति स्थापित करने के लिए निष्पक्ष रूप से कार्य करना चाहिए।
Step 4: Final Answer:
अतः, द्वेष, असहिष्णुता और वैर का त्याग करके, तथा करुणा, मैत्री, परोपकार और संवाद को अपनाकर ही विश्व में स्थायी शांति स्थापित की जा सकती है।
Quick Tip: उत्तर में अशांति के दो मुख्य कारण (द्वेष और असहिष्णुता) और उनके निवारण के उपाय (करुणा, मैत्री, परोपकार) का उल्लेख अवश्य करें। भगवान बुद्ध के कथन 'न हि वैरेण वैराणि शाम्यन्तीह कदाचन' का संदर्भ भी दे सकते हैं।
मध्यकाल में भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों के विषय में लिखें ।
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Step 1: Understanding the Concept:
यह प्रश्न 'स्वामी दयानन्दः' पाठ की पृष्ठभूमि से संबंधित है, जिसमें उन्नीसवीं सदी के समाज सुधार आंदोलन और उस समय की सामाजिक बुराइयों का वर्णन किया गया है।
Step 3: Detailed Explanation:
मध्यकाल में भारतीय समाज में अनेक गलत प्रथाएँ और अंधविश्वास प्रचलित हो गए थे, जिन्होंने समाज को दूषित कर दिया था। प्रमुख कुरीतियाँ निम्नलिखित थीं:
जातिवाद और छुआछूत: समाज जातियों में बंटा हुआ था और निम्न जातियों के साथ भेदभाव और छुआछूत का व्यवहार किया जाता था।
धार्मिक आडंबर: धर्म के नाम पर पाखंड और व्यर्थ के कर्मकांडों का बोलबाला था। मूर्तिपूजा का गलत अर्थ निकालकर आडंबर फैलाया जाता था।
स्त्रियों की दुर्दशा: समाज में स्त्रियों की स्थिति बहुत दयनीय थी। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता था।
बाल विवाह: बहुत छोटी उम्र में लड़कियों का विवाह कर दिया जाता था, जिसका उनके स्वास्थ्य और जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता था।
सती प्रथा: पति की मृत्यु के बाद विधवा को उसकी चिता पर जीवित जला देने की क्रूर प्रथा थी।
विधवा विवाह का निषेध: विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं थी और उनका जीवन अत्यंत कष्टमय होता था।
इन कुरीतियों के कारण समाज का पतन हो रहा था, जिसे स्वामी दयानंद जैसे समाज सुधारकों ने दूर करने का प्रयास किया।
Step 4: Final Answer:
अतः, मध्यकाल में भारतीय समाज जातिवाद, छुआछूत, धार्मिक आडंबर, बाल विवाह, सती प्रथा और स्त्रियों की अशिक्षा जैसी अनेक गंभीर कुरीतियों से व्याप्त था।
Quick Tip: इस उत्तर में कम से कम 4-5 कुरीतियों (जैसे- जातिवाद, सती प्रथा, बाल विवाह) का उल्लेख स्पष्ट रूप से करें। स्वामी दयानंद का संदर्भ देने से आपका उत्तर और भी प्रासंगिक हो जाएगा।



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